श्रमिक सुरक्षा- श्रमिक का अधिकार
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत के समक्ष मौजूद श्रमिक सुरक्षा की चुनौती पर चर्चा की गई। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण प्रत्येक श्रमिक का मूल अधिकार है। हालाँकि, यदि राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इस अधिकार का हनन एक आम बात हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आँकड़े बताते हैं कि वैश्विक स्तर एक वर्ष में 125 मिलियन से अधिक श्रमिक व्यावसायिक दुर्घटनाओं और बीमारी के शिकार होते हैं एवं इनमें से लगभग 220,000 श्रमिकों की मौत हो जाती है और लगभग 10 मिलियन पूर्णतः अक्षम हो जाते हैं।
भारत में श्रमिक सुरक्षा
- वर्षों से मज़बूत विकास के बावजूद व्यावसायिक और औद्योगिक सुरक्षा को प्रोत्साहन देने के संबंध में भारत का रिकॉर्ड भी काफी अच्छा नहीं है।
- कार्य वातावरण को सुरक्षित बनाना सदैव ही नीति निर्माताओं के लिये निम्न प्राथमिकता का विषय रहा है, जबकि इस विषय पर जानकारों का मानना है कि यदि इस प्रकार व्यापक निवेश किया जाए तो इससे उत्पादकता लाभ को काफी अधिक बढ़ाया जा सकता है।
- इस ओर ध्यान न दिये जाने के परिणामस्वरूप प्रायः दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, लेकिन एक ऐसे बाज़ार में जहाँ श्रमबल की निरंतर आपूर्ति हो रही हो, नीति निर्धारकों ने इस तरह की दुर्घटनाओं के व्यापक प्रभाव को अनदेखा ही किया है।
- इसलिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि नवी मुंबई में तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) के गैस प्रतिष्ठान में एक वरिष्ठ अधिकारी सहित चार लोगों की मौत अथवा बटाला, पंजाब के एक पटाखे के कारखाने में हुई दुर्घटना में लगभग दो दर्जन लोगों की मौत को हम जल्द ही भूल गए हैं।
- हालाँकि भारत में श्रमिकों के अधिकारों और स्वास्थ्य की रक्षा के लिये बहुत से कानून मौजूद हैं, लेकिन उनके अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण अब तक उनका सही लाभ आम लोगों तक नहीं पहुँच पाया है।
- आँकड़े बताते हैं कि भारत में कुल श्रमबल का केवल 8.8 प्रतिशत हिस्सा ही संगठित क्षेत्र में कार्यरत है।
- वर्ष 2017 में एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष व्यावसायिक दुर्घटनाओं के कारण कुल 48000 लोगों की मृत्यु हो जाती है एवं इसमें सर्वाधिक (24.20 प्रतिशत) योगदान निर्माण क्षेत्र का होता है।
- साथ ही संगठन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया था कि 1.25 बिलियन आबादी वाले भारत में 465 मिलियन कर्मचारी हैं, परंतु उनमें से केवल 20 प्रतिशत ही स्वास्थ्य और सुरक्षा के मौजूदा कानूनी ढाँचे के अंतर्गत आते हैं।
भारत में स्थिति इतनी खराब क्यों है?
- भारत में इस स्थिति के लिये निम्नलिखित कारकों को ज़िम्मेदार माना जाता है:
- भारत में कार्यबल काफी आसानी से एवं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
- देश का 90 प्रतिशत से अधिक श्रमबल असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है और उसमें उचित कौशल की कमी भी है।
- साथ ही देश में बेरोज़गारी की दर भी काफी उच्च है, जो श्रमिकों को शोषण के प्रति अतिसंवेदनशील बनाती है।
श्रमिक सुरक्षा हेतु किये गए भारत के प्रयास
कारखाना अधिनियम, 1948
- स्वास्थ्य संबंधी प्रावधान
- नियोक्ताओं के लिये यह अनिवार्य है कि वे प्रत्येक कारखाने में साफ-सफाई सुनिश्चित करें।
- सभी कारखानों में अपशिष्ट प्रबंधन की उचित व्यवस्था होनी चाहिये।
- कारखानों में वायु संचालन के लिये पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिये।
- प्रत्येक कारखाने के लिये यह अनिवार्य है कि वह अपने कार्य से उत्पन्न हुए धूल और धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था करे।
- प्रत्येक श्रमिक के लिये एक विशिष्ट स्थान की व्यवस्था होनी चाहिये, ताकि भीड़-भाड़ से बचा जा सके।
- नियोक्ताओं के लिये आवश्यक है कि वे श्रमिकों के लिये पर्याप्त और उपयुक्त प्रकाश की व्यवस्था करें।
- सभी श्रमिकों के लिये स्वच्छ पेय जल की व्यवस्था होनी चाहिये।
- सुरक्षा संबंधी प्रावधान
- सभी प्रकार की मशीनों के खतरनाक हिस्से को सही ढंग से ढका जाना चाहिये और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी मशीनों का उचित रखरखाव होना चाहिये।
- किसी भी व्यक्ति को किसी भी मशीन पर कार्य करने की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिये, जब तक उसे मशीन के संदर्भ में सभी जानकारियाँ सही ढंग से उपलब्ध न करा दी जाएँ।
- कारखाने में किसी भी व्यक्ति को इतना बोझ उठाने के लिये विवश नहीं किया जाएगा, जिससे उसे क्षति पहुँचने की संभावना हो।
- यदि कारखाने में कोई ऐसा कार्य हो रहा है जिससे श्रमिकों की आँखों को कोई खतरा है तो यह अनिवार्य है कि नियोक्ता इससे बचाव हेतु उचित उपकरणों (जैसे-गॉगल) की व्यवस्था करे।
- किसी व्यक्ति को कारखाने के ऐसे स्थानों, जहाँ रासायनिकों गैसों के प्रभाव में आने का खतरा है, पर तब तक जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक कि उसे बचाव हेतु उचित उपकरण न दिये जाएँ।
- सभी कारखानों पर इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिये कि आग लगने जैसी किसी भी आपातकाल की स्थिति में सभी श्रमिक आसानी से बच सकें।
उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम नियोक्ताओं को श्रमिकों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखने के लिये भी बाध्य करता है और इसमें कारखानों के निरीक्षण के लिये एक मुख्य कारखाना निरीक्षक की नियुक्ति का भी प्रावधान है। परंतु इस अधिनयम के अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण अब तक यह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में विफल रहा है। देश में मुख्य कारखाना निरीक्षकों की संख्या बहुत ही कम है और जो हैं भी उसके पास संसाधनों की कमी है।
खदान अधिनयम, 1952
- स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी प्रावधान
- अधिनियम में प्रत्येक खदान के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वो अपने सभी कर्मचारियों के लिये ठंडे और स्वास्थ्यप्रद जल की व्यवस्था करें।
- प्रत्येक खदान में पुरुष व महिलाओं के लिये अलग-अलग एवं पर्याप्त शौचालाय होने चाहिये।
- सभी खदानों में प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिये एवं यथासंभव उसकी देखभाल भी होनी चाहिये। साथ ही यह भी अनिवार्य है कि यह सुविधा ऐसे स्थानों पर होनी चाहिये जहाँ से वह सभी को आसानी से उपलब्ध हो सके।
- यदि खदान में कोई दुर्घटना हो जाती है तो खदान नियोक्ता अथवा प्रबंधक के लिये अनिवार्य है कि वे संबंधी अधिकारी को इस बात की जल्द-से-जल्द सूचना दें।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम की स्थिति संहिता, 2019
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम की स्थिति संहिता, 2019 को श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था।
- यह संहिता ऐसे स्थान पर लागू होती है जहाँ कम-से-कम 10 श्रमिक कार्य कर रहे हों।
- साथ ही इस संहिता में कुछ विशेष प्रकार के प्रतिष्ठानों और कर्मचारियों के वर्गों जैसे- कारखानों, खदानों और निर्माण श्रमिकों के लिये विशेष प्रावधान किये गए हैं।
- यह संहिता सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों से संबंधित 13 श्रम कानूनों को निरस्त कर उन्हें प्रतिस्थापित करता है।
निरस्त होने वाले प्रमुख श्रम कानून
- कारखाना अधिनियम 1948
- खदान अधिनियम 1952
- भवन और अन्य निर्माण कार्य (रोज़गार का विनियमन और सेवा शर्तें) कानून 1996
- बागान श्रम अधिनियम 1951
- संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970
संहिता के प्रमुख प्रावधान
- संबंधित अधिकारी
संहिता के तहत कवर किये गए सभी संस्थानों को पंजीकृत अधिकारी के समक्ष पंजीकृत होना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त निरीक्षण अधिकारी समय-समय पर संस्थानों का निरीक्षण कर सकते हैं। उपरोक्त दोनों ही प्राधिकारियों को केंद्र अथवा राज्य द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- सलाहकार निकाय
केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड स्थापित करेंगी। ये बोर्ड केंद्र और राज्य सरकारों को संहिता के तहत बनाए जाने वाले मानकों, नियमों और विनियमों की सलाह देंगे।
- नियोक्ताओं के कर्तव्य:
इस संहिता में नियोक्ताओं के निम्नलिखित कर्तव्य निर्दिष्ट किये गए हैं:
- कर्मचारियों को ऐसे कार्यस्थल प्रदान करना जो सभी जोखिमों से मुक्त हों।
- कर्मचारियों को नि: शुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच की सुविधा उपलब्ध कराना। यदि कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या उसे गंभीर शारीरिक चोट लग जाती है तो नियोक्ता को संबंधित अधिकारियों को तत्काल सूचित करना चाहिये।
- कर्मचारियों के अधिकार और कर्तव्य
संहिता में कर्मचारियों के निम्नलिखित अधिकार और कर्तव्य दिये गए हैं:
- अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य का ख्याल रखना।
- निर्दिष्ट सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों का पालन करना
- निरीक्षक को असुरक्षित स्थितियों की रिपोर्ट करना।
- काम करने के घंटे
सभी संस्थानों में कार्य के घंटों का निर्धारण केंद्र अथवा राज्य द्वारा बनाए नियमों के आधार पर किया जाएगा। ओवरटाइम काम के लिये श्रमिक को दैनिक मज़दूरी दर से दोगुना भुगतान किया जाना चाहिये।
- अवकाश
- कोई भी कर्मचारी सप्ताह में 6 दिनों से अधिक काम नहीं कर सकता है।
- चिकित्सा अवकाश के दौरान, श्रमिक को उसकी दैनिक मज़दूरी का आधा भुगतान किया जाना चाहिये।
- अपराध और दंड
यदि दुर्घटना के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तो नियोक्ता को 2 साल तक की कैद अथवा अथवा पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों दिये जा सकते हैं।
नोट : अब तक यह संहिता लोकसभा में ही प्रस्तुत की गई है।
निष्कर्ष
एक सुरक्षित कार्य वातावरण सभी श्रमिकों का एक बुनियादी अधिकार है और यह आवश्यक है कि भविष्य में नीति निर्माता विकास योजनाओं को बनाते समय इसे ध्यान में रखें। साथ ही नई संहिता पर पुनर्विचार किया जाए जहाँ अनुभवी सांसद इसका सतर्क परीक्षण करें और इसमें कामगारों, नियोक्ताओं और विशेषज्ञों के सुझावों को भी शामिल करें।
प्रश्न: बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाएँ एक मज़बूत श्रमिक सुरक्षा कानून की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। तर्क सहित कथन की विवेचना कीजिये।