भारतीय अर्थव्यवस्था
एक्सेस टू मेडिसिन इंडेक्स रिपोर्ट 2024
- 25 Nov 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:मलेरिया, तपेदिक, उष्णकटिबंधीय रोग, गैर-संचारी रोग, वैक्सीन, मातृ स्वास्थ्य, आपूर्ति श्रृंखला, प्राकृतिक आपदाएँ, अफ्रीकी संघ, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, डिजिटल स्वास्थ्य, अनुसंधान एवं विकास प्रयास। मेन्स के लिये:गरीब तथा निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के लिये दवाओं, टीकों और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता का महत्त्व। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक्सेस टू मेडिसिन फाउंडेशन ने अपनी वर्ष 2024 की इंडेक्स रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में चल रही चुनौतियों के बावजूद निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में दवा की पहुँच बढ़ाने के क्रम में 20 दवा कंपनियों के प्रयासों का मूल्याँकन किया गया है।
एक्सेस टू मेडिसिन इंडेक्स रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- क्लिनिकल परीक्षणों की कमी: वैश्विक जनसंख्या में 80% की भागीदारी होने के बावजूद, विश्व भर में किये गए सभी क्लिनिकल परीक्षणों में LMIC की केवल 43% ही हिस्सेदारी है।
- इससे नई दवाओं के विकास में LMIC देशों की भागीदारी सीमित होने के साथ नवीन उपचारों तक इनकी पहुँच में देरी होती है।
- सीमित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं दवा तक सीमित पहुँच: स्वैच्छिक लाइसेंसिंग एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संदर्भ में ब्राज़ील, चीन और भारत जैसे देश केंद्रबिंदु हैं, जिससे उप-सहारा अफ्रीका का अधिकांश भाग इससे बाहर रहने से कई निम्न आय वाले क्षेत्रों में दवाओं की उपलब्धता सीमित हो जाती है।
- निम्न आय वाले देशों के संदर्भ में पहुँच अंतराल: कुछ कंपनियाँ समावेशी व्यापार मॉडल अपना रही हैं लेकिन मूल्याँकन किये गए 61% से अधिक उत्पादों में निम्न आय वाले देशों हेतु विशिष्ट रणनीतियों का अभाव है।
- इससे निरंतर असमानताओं पर प्रकाश पड़ता है क्योंकि सुविधाएँ अभी भी उच्च-मध्यम आय वाले क्षेत्रों तक ही केंद्रित हैं।
- प्राथमिकता वाले रोगों के संदर्भ में अनुसंधान तथा विकास में कमी: फार्मास्युटिकल कंपनियाँ प्राथमिकता वाले रोगों जैसे मलेरिया, तपेदिक और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के संदर्भ में अनुसंधान एवं विकास पर कम ध्यान दे रही हैं, जिससे LMIC असमान रूप से प्रभावित होते हैं।
- इस रिपोर्ट में दवा कंपनियों द्वारा दवाओं तक समान पहुँच हेतु प्रयास करने तथा पारदर्शी रणनीति बनाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
LMIC में दवाओं तक पहुँच की आवश्यकताएँ और चुनौतियाँ क्या हैं?
दवाओं तक बेहतर पहुँच की आवश्यकता:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, LMIC को संक्रामक और गैर-संचारी रोगों (NCD) के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ता है, जो कमज़ोर स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव डालता है। प्रतिवर्ष 70 वर्ष की आयु से पूर्व 17 मिलियन लोग NCD से मर जाते हैं, इनमें से 86% मौतें LMIC में होती हैं।
- इन चुनौतियों से निपटने और मृत्यु दर को कम करने के लिये सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाली दवाईयाँ, उपचार और वैक्सीन की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त आवश्यक दवाओं की विश्वसनीय आपूर्ति और LMIC में आयात पर निर्भरता कम करने के लिये स्थानीय औषधि विनिर्माण और वितरण नेटवर्क को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है।
LMIC में दवाएँ उपलब्ध कराने में चुनौतियाँ:
- आर्थिक बाधाएँ: निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में दवाओं तक पहुँच आर्थिक बाधाओं के कारण सीमित है।
- विशेष रूप से, पेटेंट दवाओं सहित आवश्यक दवाओं की उच्च लागत, सीमित क्रय शक्ति वाले रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के लिये पहुँच को सीमित कर देती है।
- वित्तीय परिणाम: स्वास्थ्य देखभाल पर जेब से होने वाला खर्च परिवारों को आवश्यक दवाओं और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के बीच विनाशकारी विकल्प चुनने के लिये मज़बूर करता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः भयावह वित्तीय परिणाम सामने आते हैं जो स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को बढ़ाते हैं।
- बुनियादी ढाँचे की चुनौतियाँ: अपर्याप्त परिवहन बुनियादी ढाँचा, जिसमें खराब रखरखाव वाली सड़कें और अपर्याप्त कोल्ड चेन सुविधाएँ शामिल हैं।
- इससे दवाओं के कुशल वितरण में बाधा उत्पन्न होती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जबकि अविश्वसनीय विद्युत तापमान-संवेदनशील दवाओं की अखंडता से समझौता करती है।
- आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान, विशेषकर महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, LMIC में दवाओं की कमी को बढ़ा देता है।
- विनियामक मुद्दे: कमज़ोर विनियामक ढाँचे घटिया और नकली दवाओं के प्रसार में योगदान करते हैं, उपचार की प्रभावकारिता और सुरक्षा को कमज़ोर करते हैं, क्योंकि अपर्याप्त प्रवर्तन क्षमताएँ औषधि गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने में विफल रहती हैं।
- औषधि नवाचार प्रायः उच्च आय वाले देशों में प्रचलित बीमारियों पर केंद्रित है, जिससे मातृ स्वास्थ्य और बाल्यावस्था संबंधी बीमारियों जैसी LMIC-विशिष्ट स्वास्थ्य चुनौतियों पर काफी हद तक ध्यान नहीं दिया जाता है।
- कार्यबल की सीमाएँ: प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उचित उपचार और दवा प्रबंधन को प्रतिबंधित करती है।
- इसके अतिरिक्त, न्यून स्वास्थ्य साक्षरता और सांस्कृतिक मान्यताएँ निर्धारित उपचारों के पालन में बाधा डालती हैं, जिससे LMIC में आवश्यक दवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
UHC 2030 का लक्ष्य
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) 2030 का उद्देश्य वित्तीय कठिनाई के बिना आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना, समतामूलक पहुँच को बढ़ावा देना और विश्व भर में स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित UHC 2030, राजनीतिक प्रतिबद्धता और जवाबदेही प्रयासों के माध्यम से UHC को आगे बढ़ाने के लिये हितधारकों को संगठित करता है।
आगे की राह
- स्थानीय विनिर्माण को मज़बूत करना: क्षेत्रीय दवा उत्पादन केंद्र स्थापित करने से आयात पर निर्भरता कम होगी और दवाओं की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
- उदाहरण के लिये, अफ्रीकी संघ की वर्ष 2040 तक महाद्वीप की वैक्सीन आवश्यकताओं का 60% उत्पादन करने की पहल, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये एक मॉडल है।
- LMIC आवश्यकताओं के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश: मेडिसिन पेटेंट पूल सहयोग जैसी सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मलेरिया, तपेदिक और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों जैसी प्राथमिकता वाली बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इन सहयोगों में LMIC की विशिष्ट स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिये किफायती, क्षेत्र-विशिष्ट समाधानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- डिजिटल स्वास्थ्य सेवा का विस्तार: डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियाँ और AI-संचालित उपकरण रोग निगरानी में सुधार, निदान को बढ़ाने और दूरस्थ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को सक्षम करके LMIC में स्वास्थ्य सेवा वितरण में क्रांति ला सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, टेलीमेडिसिन और परामर्श प्लेटफॉर्म जैसी प्रौद्योगिकी संचालित पहलें दूरस्थ स्वास्थ्य सेवा पहुंच को सुविधाजनक बना सकती हैं, और भारत के U-Win (सार्वभौमिक टीकाकरण के लिये पोर्टल) और को-विन (कोविड-19 टीकाकरण प्रबंधन के लिये पोर्टल) जैसे प्लेटफॉर्म टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवा समन्वय प्रदान करते हैं।
- विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: सामंजस्यपूर्ण विनियामक ढाँचे की स्थापना से दवाओं की मंजूरी में तेज़ी आएगी और जीवन रक्षक उपचारों की तेज़ी से तैनाती में सुविधा होगी।
- पेटेंट एवरग्रीनिंग को रोकना, LMIC में स्थानीय जेनेरिक उत्पादन को प्रोत्साहित करना, और उच्च मानकों वाले देशों के साथ अनुमोदन की पारस्परिक मान्यता को सक्षम करना।
- वित्तपोषण तंत्र का विस्तार: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को संयुक्त खरीद मॉडल बनाने और दवाओं को अधिक किफायती और सुलभ बनाने के लिये वित्तपोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- लैंगिक असमानताओं को संबोधित करना: महिलाओं और ट्रांसजेंडर के स्वास्थ्य को शामिल करने के लिये अनुसंधान एवं विकास प्रयासों का विस्तार करना तथा स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में लिंग आधारित बाधाओं को संबोधित करने वाली नीतियों को प्राथमिकता देना, LMIC में समग्र स्वास्थ्य समानता में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों को किफायती दवाओं और टीकों तक पहुँच बनाने में किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और भारत ने इसका कैसे जवाब दिया है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में न्यूमोकोकल संयुग्मी वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine) के उपयोग का क्या महत्त्व है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है?(2019) |