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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

11 वीं ADMM बैठक और बौद्ध धर्म

  • 25 Nov 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस, बौद्ध सिद्धांत, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS), 1982, आसियान, ग्लोबल कॉमन्स, हाई सी, अंटार्कटिका, बाह्य अंतरिक्ष, विनय पिटक, बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC), भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA)

मेन्स के लिये:

भारत की एक्ट ईस्ट नीति, भारत और उसके पड़ोसी-संबंध।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, भारत के रक्षा मंत्री ने लाओ PDR के वियनतियाने में आयोजित 11 वें आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-प्लस) फोरम को संबोधित किया।

  • उन्होंने संघर्षों के समाधान में बौद्ध सिद्धांतों की भूमिका पर ज़ोर दिया और भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के एक दशक पूरे होने का जश्न मनाया।

11 वीं ADMM बैठक-प्लस  की मुख्य बातें क्या हैं?

  • नौवहन की स्वतंत्रता: भारत ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता के लिये समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS), 1982 के अनुपालन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • भारत ने एक ऐसी आचार संहिता की वकालत की जो राष्ट्रों के अधिकारों और हितों की रक्षा करती हो तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप हो।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था: भारत ने ऐसे विश्व में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बौद्ध सिद्धांतों को अधिकाधिक अपनाने का आह्वान किया, जो तीव्रता के साथ ब्लॉकों और शिविरों में केंद्रित है।
  • संवाद की वकालत: सीमा विवादों, व्यापार समझौतों और अन्य चुनौतियों के प्रति भारत का दृष्टिकोण विश्वास, समझ और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये खुले संचार में उसके विश्वास को दर्शाता है।
  • एशियाई शताब्दी: भारत ने 21 वीं शताब्दी को "एशियाई शताब्दी" के रूप में वर्णित किया तथा आसियान की आर्थिक गतिशीलता तथा इसके जीवंत व्यापार, वाणिज्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर बल दिया।
  • एक्ट ईस्ट पॉलिसी का दशक: भारत ने अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी की सफलता पर प्रकाश डाला , जिसने पिछले दशक में आसियान और हिंद-प्रशांत देशों के साथ संबंधों को मज़बूत किया है।
    • एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत नवंबर 2014 में म्याँमार की राजधानी नेपीता में आयोजित 12 वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • जलवायु परिवर्तन और रक्षा: भारत ने परस्पर जुड़ी सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिये जलवायु परिवर्तन पर ADMM-प्लस रक्षा रणनीति के विकास का प्रस्ताव रखा।
  • वैश्विक साझा संपत्ति: भारत ने ग्लोबल कॉमन्स की सुरक्षा के महत्त्व को रेखांकित किया, जिसमें राष्ट्रीय सीमाओं से परे साझा प्राकृतिक संसाधन भी शामिल हैं।

नोट: भारत ने रवींद्रनाथ टैगोर की वर्ष 1927 की दक्षिण-पूर्व एशिया यात्रा के दौरान की गई टिप्पणी को उद्धृत किया: "मैं हर जगह भारत को देख सकता था, फिर भी मैं इसे पहचान नहीं पाया।"

  • यह वक्तव्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच गहरे और व्यापक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक है।

ADMM-प्लस फोरम क्या है?

  • परिचय: यह एक बहुपक्षीय रक्षा सहयोग ढाँचा है, जो 10 आसियान सदस्य देशों, 8 से अधिक देशों (वार्ता साझेदारों) और तिमोर लेस्ते के रक्षा मंत्रियों को एक साथ लाता है।
    • आसियान सदस्यों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम शामिल हैं।
    • 8 संवाद साझेदारों में भारत , चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका शामिल हैं
  • स्थापना: ADMM-प्लस का उद्घाटन 12 अक्तूबर 2010 को हनोई, वियतनाम में आयोजित किया गया था।
    • वर्ष 2017 से, ADMM-प्लस की वार्षिक बैठक होती है, ताकि आसियान और प्लस देशों के बीच संवाद एवं सहयोग को बढ़ाया जा सके।
  • केंद्रित क्षेत्र: ADMM-प्लस वर्तमान में व्यावहारिक सहयोग के सात क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, अर्थात्
    • समुद्री सुरक्षा (MS)
    • आतंकवाद निरोधक (CT)
    • मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन (HADR) 
    • शांति स्थापना अभियान (PKO) 
    • सैन्य चिकित्सा (MM) 
    • ह्यूमिनैटेरियन माइन ऐक्शन (HMA) 
    • साइबर सुरक्षा (CS)  
  • विशेषज्ञ कार्य समूह (EWG): इन क्षेत्रों में सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये EWG की स्थापना की गई है। 
    • प्रत्येक EWG की सह-अध्यक्षता एक आसियान सदस्य देश और एक प्लस देश द्वारा की जाती है, जो तीन-वर्षीय चक्र में कार्य करते हैं।

दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसार

  • सांस्कृतिक केंद्र: भारतीय व्यापारियों, नाविकों और भिक्षुओं ने दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायता की, श्रीविजय (सुमात्रा, इंडोनेशिया) और चंपा (वियतनाम) जैसे बंदरगाह 7वीं से 13वीं शताब्दी तक शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करते रहे।
  • शासकों की वैधता: दक्षिण-पूर्व एशियाई शासकों ने अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिये बौद्ध धर्म को अपनाया, तथा अपने शासन को वैध बनाने के लिये बुद्ध या हिंदू देवी-देवताओं की अधीनता स्वीकार की
    • सुमात्रा में केंद्रित श्रीविजय साम्राज्य बौद्ध धर्म के प्रसार में एक प्रमुख भूमिका निभाता था।
  • हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का सम्मिश्रण: दक्षिण पूर्व एशिया में, बौद्ध धर्म अक्सर स्थानीय मान्यताओं और हिंदू धर्म के साथ मिश्रण है
    • दक्षिण-पूर्व एशिया के बौद्ध और हिंदू मंदिर, जैसे अंकोरवाट (कंबोडिया) और बोरोबुदुर (इंडोनेशिया), इस सम्मिश्रण को प्रदर्शित करते हैं। 
  • सांस्कृतिक प्रसार: बौद्ध धर्म ने बाली और जावा जैसे स्थानों की स्थानीय संस्कृतियों को प्रभावित किया, जिसे उनके नृत्य, अनुष्ठानों और मंदिर स्थापत्य में देखा जा सकता है।

संघर्ष समाधान में बौद्ध आदर्शों की क्या भूमिका है? 

  • बौद्ध दृष्टिकोण: तीन महत्त्वपूर्ण बौद्ध दृष्टिकोण, जो संघर्ष को हल करने या कम करने में हमारी मदद कर सकते हैं।
    • प्रत्येक व्यक्ति बुद्ध है, अत्यंत सम्मान का पात्र है।
    • संवाद, लोगों के बीच समझ और सम्मान पैदा करने का सबसे शक्तिशाली साधन है।
    • हमारा आंतरिक परिवर्तन ही विश्व के परिवर्तन की कुंजी है ( क्रोध रूपी विष को कम करना जिसमें लोभ (लोभ), घृणा (द्वेष) और भ्रम (मोह) शामिल हैं)।
  • अधिकरण शमथ धम्म: बौद्ध पाठ विनय पिटक में अधिकरण शमथ धम्म, भिक्षुओं के संघर्षों को हल करने के सिद्धांतों की रूपरेखा दी गई है।
    • यह भिक्षुओं को स्वीकारोक्ति, मेल-मिलाप, विवादों को सुलझाने और संघ में मतभेदों को दूर करने के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
      • यह उन सभी लोगों पर लागू होता है, जो मतभेदों में सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं, चाहे वे मतभेद व्यक्तिगत हों या राजनीतिक।
  • मध्यम मार्ग: संतुलित नीतियों का समर्थन करना, जिसमें सभी हितधारकों की आवश्यकताओं पर विचार किया जाए, अतिवाद से बचते हुए न्यायसंगत समाधानों को बढ़ावा दिया जाए।
  • परस्पर निर्भरता (प्रतीत्यसमुत्पाद): जलवायु परिवर्तन और संसाधन संघर्ष जैसे वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिये राष्ट्रों के बीच आपसी समझ तथा साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना।
  • करुणा: मानवीय सहायता को प्राथमिकता देना और संघर्ष क्षेत्रों में दुख के मूल कारणों, जैसे गरीबी तथा असमानता का समाधान करना।

भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) क्या है?

  • भारत की AEP एक रणनीतिक पहल है जिसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भारत के साथ संबंधों को मज़बूत करना है।
    • यह 1992 की पूर्वोन्मुखी नीति से विकसित हुआ है, जो आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय भागीदारी पर केंद्रित है।
  • सामरिक साझेदारी: भारत ने इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य (ROK), ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर सहित क्षेत्र के कई प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को सामरिक साझेदारी तक उन्नत किया है।
  • क्षेत्रीय सहभागिता: भारत आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS), बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC), एशिया सहयोग वार्ता (ACD), मेकांग गंगा सहयोग (MGC) और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) में सक्रिय रूप से शामिल है।
  • बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना, भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, रि-टिडिम रोड परियोजना और बॉर्डर हाट (Border Haats) शामिल हैं। 
  • सुरक्षा सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों और मानदंडों को बनाए रखने तथा क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये भारत और आसियान के बीच साझा प्रतिबद्धता है ।
  • पूर्वोत्तर भारत: व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत और आसियान के बीच संपर्क में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (एशियाई त्रिपक्षीय राजमार्ग) म्याँमार के माध्यम से भारत (मोरेह, मणिपुर) और थाईलैंड (माए सोत) को जोड़ेगा तथा इसे कंबोडिया, लाओस एवं वियतनाम तक विस्तारित करने की योजना है।

निष्कर्ष

11वें ADMM-प्लस में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। संघर्ष समाधान के लिये बौद्ध सिद्धांतों पर जोर, एक्ट ईस्ट पॉलिसी की सफलता तथा जलवायु परिवर्तन रक्षा रणनीतियाँ शांतिपूर्ण, एकीकृत एवं सतत् हिंद-प्रशांत क्षेत्र हेतु  भारत के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: आज की वैश्विक शांति और सद्भावना के लिये बौद्ध सिद्धांतों की प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया 
  2. कनाडा
  3. चीन 
  4. भारत
  5. जापान 
  6. यू.एस.ए.

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान ( ए. एस. इ. ए एन.) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में से हैं?

(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)


प्रश्न: 'रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहाँ जाता है? (2016) 

(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC

उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)

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