भूगोल
अंटार्कटिक और भारत
- 28 May 2024
- 18 min read
यह एडिटोरियल 25/05/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Southern sojourn: On the 46th Antarctic Treaty Consultative Meeting in India” लेख पर आधारित है। इसमें कोच्चि में आयोजित 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक की चर्चा की गई है, जहाँ प्रतिनिधियों ने अंटार्कटिक में बढ़ते पर्यटन को विनियमित करने पर ध्यान केंद्रित किया ताकि इसके पर्यावरण की रक्षा की जा सके और क्षेत्रीय चिंताओं का समाधान किया जा सके।
प्रिलिम्स के लिये:अंटार्कटिक, 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक, A23a हिमखंड, आइसक्यूब (IceCube) न्यूट्रिनो वेधशाला, पेंगुइन, अंटार्कटिक संधि, मैत्री एवं भारती। मेन्स के लिये:अंटार्कटिक में अन्वेषण का भारत के लिये महत्त्व, अंटार्कटिक में अपनी भूमिका और योगदान बढ़ाने के लिये भारत द्वारा उठाए जाने वाले कदम। |
अंटार्कटिक का हिम क्षेत्र—जो मानव सभ्यता से अछूता रहा है और अनूठे जीवन रूपों से भरा हुआ है—लंबे समय से रहस्यपूर्ण बना रहा है। हालाँकि, इसकी सुदूर स्थिति अब तेज़ी से बदल रही है। इस महाद्वीप में पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है, जहाँ वर्ष 1993 में आगंतुकों की संख्या 8,000 से बढ़कर वर्ष 2022 में 1,05,000 से अधिक हो गई। इस उछाल ने महाद्वीप के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है और इसी परिदृश्य में केरल के कोच्चि में 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक (Antarctic Treaty Consultative Meeting- ATCM) का आयोजन किया गया जहाँ इस अछूते क्षेत्र में पर्यटन के भविष्य पर विमर्श किया गया।
ATCM में आयोजित विमर्श अंटार्कटिक के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। इस बैठक के माध्यम से महाद्वीप के भविष्य में बढ़ती हिस्सेदारी के साथ एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत के पास उत्तरदायी पर्यटन को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने का एक अनूठा अवसर मौजूद है कि अंटार्कटिक की अछूती सुंदरता आने वाली पीढ़ियों के लिये सुलभ बनी रहे।
अंटार्कटिक का महत्त्व क्यों बढ़ता जा रहा है?
- जलवायु परिवर्तन के निहितार्थ: अंटार्कटिक पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके हिम आवरणों के पिघलने से वैश्विक समुद्र स्तर और मौसम के पैटर्न के लिये दूरगामी परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
- हाल ही में प्राप्त उपग्रह छवियों से पता चला है कि A23a नामक अंटार्कटिक हिमखंड अंटार्कटिक प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे से आगे बढ़ रहा है।
- संसाधन संबंधी संभावना: ऐसा माना जाता है कि अंटार्कटिक में बहुमूल्य खनिजों के महत्त्वपूर्ण भंडार मौजूद हैं, जिनमें दुर्लभ मृदा तत्व, कोयला तथा संभावित रूप से अप्रयुक्त तेल एवं गैस भंडार शामिल हैं।
- संसाधनों की बढ़ती वैश्विक मांग और पारंपरिक स्रोतों की समाप्ति के साथ अंटार्कटिक में उत्तरदायी एवं संवहनीय संसाधन अन्वेषण की संभावना की ओर ध्यान आकृष्ट हुआ है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के अवसर: अंटार्कटिक का अनूठा एवं अछूता वातावरण ग्लेशियोलॉजी, खगोल विज्ञान, भूविज्ञान और जीवविज्ञान सहित विभिन्न विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
- जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति के कारण अनुसंधान के अधिक परिष्कृत तरीके सामने आ रहे हैं, अंटार्कटिक का वैज्ञानिक महत्त्व बढ़ता जा रहा है।
- उदाहरण: अंटार्कटिक में अमुंडसेन-स्कॉट दक्षिण ध्रुव स्टेशन (Amundsen-Scott South Pole Station) पर स्थित आइसक्यूब न्यूट्रीनो वेधशाला।
- बढ़ते भू-राजनीतिक हित: चूँकि विभिन्न राष्ट्र रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति और प्रभाव स्थापित करना चाहते हैं, अंटार्कटिक बढ़ते भू-राजनीतिक हित का क्षेत्र बन गया है।
- संभावित संसाधन अवसरों और वैश्विक प्रभाव की इच्छा से प्रेरित होकर विभिन्न देश अंटार्कटिक क्षेत्र से संबंधित शासन एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अधिक सशक्त अभिव्यक्ति पाने के लिये होड़ कर रहे हैं।
- उल्लेखनीय है कि अंटार्कटिक में अमेरिका के तीन स्टेशन मौजूद हैं, जबकि चीन ने फरवरी 2024 में अंटार्कटिक में अपना 5वाँ स्टेशन (क्विनलिंग स्टेशन) स्थापित किया है।
- पर्यावरण निगरानी और संरक्षण: अंटार्कटिक वैश्विक पर्यावरणीय परिवर्तनों के एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करता है और इसके पारिस्थितिकी तंत्र एवं वन्य जीवन की निगरानी पृथ्वी के स्वास्थ्य के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती है।
- अंटार्कटिक प्रायद्वीप पृथ्वी पर सबसे तीव्र गति से तापमान वृद्धि का अनुभव करने वाले क्षेत्रों में से एक है, जिसके कारण यहाँ की पेंगुइन एवं क्रिल आबादी में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आ रहा है।
- पर्यटन और साहसिक अभियान: साहसिक पर्यटन की वृद्धि के साथ अंटार्कटिक के अनूठे एवं अछूते भूदृश्य असाधारण अनुभव की इच्छा रखने वाले यात्रियों के लिये आकर्षक गंतव्य बन गए हैं।
- इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ अंटार्कटिक टूर ऑपरेटर्स (IAATO) के अनुसार, वर्ष 2022-23 सीज़न में रिकॉर्ड 105,331 लोगों ने अंटार्कटिक का दौरा किया।
अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty):
- परिचय: यह अंतर्राष्ट्रीय भूभौतिकीय वर्ष (1957-58) के दौरान अंटार्कटिक अनुसंधान में सक्रिय 12 देशों द्वारा वर्ष 1959 में हस्ताक्षरित की गई।
- वर्तमान में भारत (जो वर्ष 1983 में संधि में शामिल हुआ) सहित 57 देश इसके सदस्य हैं।
- प्रमुख प्रावधान:
- शांतिपूर्ण उपयोग: अंटार्कटिक केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये समर्पित है (अनुच्छेद I)।
- वैज्ञानिक सहयोग: वैज्ञानिक अन्वेषण और सहयोग की स्वतंत्रता को प्रोत्साहन (अनुच्छेद II)।
- सूचना साझेदारी: वैज्ञानिक अवलोकनों और निष्कर्षों का आदान-प्रदान किया जाना चाहिये तथा उन्हें त्वरित रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिये (अनुच्छेद III)।
- क्षेत्रीय दावे:
- सात हस्ताक्षरकर्ता देश—अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, चिली, फ्राँस, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे और यूके—अतिव्यापी क्षेत्रीय दावे रखते हैं।
- हालाँकि अन्य देश इन दावों को मान्यता नहीं देते हैं।
- अमेरिका और रूस ने बिना मुखर दावे के ‘दावे के आधार’ (basis of claim) को बना रखा है।
- संधि का अनुच्छेद IV यथास्थिति बनाए रखता है, जहाँ निम्नलिखित दृष्टिकोण का पालन किया जाता है:
- क्षेत्रीय दावों का समर्थन या खंडन करने के लिये किसी भी मौजूदा गतिविधि का उपयोग करने की अनुमति नहीं देना।
- संधि के प्रभावी रहने तक नए या विस्तारित क्षेत्रीय दावों को निषिद्ध करना।
- सात हस्ताक्षरकर्ता देश—अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, चिली, फ्राँस, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे और यूके—अतिव्यापी क्षेत्रीय दावे रखते हैं।
- निरीक्षण व्यवस्था:
- संधि का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अंटार्कटिक के सभी क्षेत्र (स्टेशनों और प्रतिष्ठानों सहित) किसी भी समय किसी भी पक्ष द्वारा निरीक्षण के अधीन हैं (अनुच्छेद VII)।
भारत के लिये अंटार्कटिक के अन्वेषण का महत्त्व:
- भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को आगे बढ़ाना: अंटार्कटिक की अनूठी अवस्थिति और परिस्थितियाँ इसे भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों, जैसे लैंडर, रॉकेट एवं रिमोट सेंसिंग प्रणालियों के लिये एक आदर्श परीक्षण स्थल बनाती हैं।
- अंटार्कटिक के कठोर वातावरण में पर्यावरण-अनुकूल प्रयोग एवं परीक्षण से भारत को भविष्य के मिशनों के लिये अपनी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को परिष्कृत करने में मदद मिल सकती है।
- ऊर्जा और खनिज संसाधन प्राप्त करना: भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग (जहाँ वह विश्व में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है) और महत्त्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता के साथ, उत्तरदायी एवं संवहनीय संसाधन अन्वेषण के लिये अंटार्कटिक की क्षमता (अंटार्कटिक संधि प्रणाली के नियमों के अधीन) देश की दीर्घकालिक संसाधन सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकती है।
- जलवायु परिवर्तन अनुसंधान और अनुकूलन को आगे बढ़ाना: भारत की भौगोलिक स्थिति (उत्तर में हिमालय, दक्षिण में हिंद महासागर) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति इसकी संवेदनशीलता को बढ़ाती है, जिससे अंटार्कटिक जलवायु प्रणालियों में परिवर्तन को समझना इसके लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- भारत की समुद्री क्षमताओं को सुदृढ़ करना: अंटार्कटिक लॉजिस्टिक्स और परिचालन में भारत की भागीदारी इसकी समुद्री क्षमताओं (बर्फीले जल में नौवहन, ध्रुवीय वातावरण के लिये जहाज़ निर्माण एवं उन्नत आइसब्रेकर जहाज़ों के विकास सहित) को बढ़ाने के लिये मूल्यवान अवसर प्रदान कर सकती है।
- इससे हिंद महासागर क्षेत्र और उससे परे भी, भारत के रणनीतिक हितों को बढ़ावा मिलेगा।
- जैव-पूर्वेक्षण के अवसर: अंटार्कटिक के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र में नए सूक्ष्मजीव, एंजाइम एवं जैव-सक्रिय यौगिक पैदा करने की क्षमता है, जिनका उपयोग फार्मास्यूटिकल्स, जैव-प्रौद्योगिकी और कृषि जैसे उद्योगों में किया जा सकता है। भारतीय शोधकर्ता अंटार्कटिक में जैव-पूर्वेक्षण के अवसरों की खोज कर सकते हैं, जिससे देश की जैव-अर्थव्यवस्था में योगदान प्राप्त हो सकता है।
भारत अंटार्कटिक में अपनी भूमिका और योगदान को किस प्रकार बढ़ा सकता है?
- ध्रुवीय अन्वेषण के लिये उन्नत स्वायत्त प्रणालियों का विकास करना: भारत रोबोटिक्स और AI का लाभ उठाते हुए उन्नत स्वायत्त प्रणालियों (Advanced Autonomous Systems)—जैसे ध्रुवीय अन्वेषण के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए मानवरहित हवाई वाहन (UAVs) और स्वायत्त जल-निमग्न वाहन (AUVs)—के विकास में एक अग्रणी देश बन सकता है।
- इन प्रणालियों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा मानचित्रण, सर्वेक्षण और निगरानी के लिये किया जा सकता है, जिससे भारत की वैज्ञानिक कूटनीति को बढ़ावा मिलेगा।
- दुर्लभ मृदा तत्व (REE) अन्वेषण पर सहयोग: हाई-टेक उद्योगों में दुर्लभ मृदा तत्वों की बढ़ती मांग को देखते हुए, भारत अंटार्कटिक में संभावित REE भंडारों के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण एवं आकलन के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग स्थापित कर सकता है।
- यह भविष्य में अंटार्कटिक संधि प्रणाली के नियमों के अधीन उत्तरदायी एवं संवहनीय REE अन्वेषण प्रयासों की दिशा में भारत को एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरने में मदद कर सकता है।
- संवहनीय अवसंरचना विकास में निवेश: भारत अंटार्कटिक में संवहनीय अवसंरचना—जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियाँ, अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएँ और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन समाधान, के विकास में निवेश कर सकता है।
- इससे न केवल भारत के अनुसंधान और लॉजिस्टिक्स संबंधी कार्यों को सहायता मिलेगी, बल्कि इस भूभाग में पर्यावरणीय प्रभावों को न्यूनतम करने की उसकी प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित करेगी।
- वर्तमान में भारत द्वारा ‘मैत्री’ और ‘भारती’ नामक दो सक्रिय अनुसंधान केंद्र संचालित हैं।
- लगभग चार दशकों के बाद, अप्रैल 2024 में भारतीय डाक विभाग द्वारा अंटार्कटिक के भारती अनुसंधान स्टेशन पर दूसरी शाखा खोली गई।
- भारत ने वर्ष 1984 में अंटार्टिका में ‘दक्षिण गंगोत्री’ (जो इसका पहला अनुसंधान केंद्र था) में अपना पहला डाकघर स्थापित किया था। दुर्भाग्य से वर्ष 1988-89 में दक्षिण गंगोत्री हिम में डूब गया और उसे सेवामुक्त कर दिया गया।
- उत्तरदायी एवं संवहनीय अंटार्कटिक पर्यटन को बढ़ावा देना: भारत उत्तरदायी एवं संवहनीय अंटार्कटिक पर्यटन के लिये दिशानिर्देश एवं सर्वोत्तम पद्धतियाँ विकसित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग स्थापित कर सकता है।
- इसमें भारतीय टूर ऑपरेटरों एवं गाइडों को पर्यावरणीय प्रभावों को न्यूनतम करने, विनियमों का सख्त अनुपालन करने तथा शैक्षिक अनुभव प्रदान करने पर प्रशिक्षण देना शामिल हो सकता है, जो क्षेत्र के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र और संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता को बढ़ाएगा।
- भारत ने 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक में महाद्वीप में पर्यटन को नियंत्रित करने वाले एक नियामक ढाँचे को लागू करने के प्रस्ताव पर बल दिया।
- राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान है, जिसे ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में देश की अनुसंधान गतिविधियों का कार्य सौंपा गया है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये अंटार्कटिक के रणनीतिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व की चर्चा कीजिये। भारत इस भूभाग में अपने योगदान और नेतृत्व को किस प्रकार आगे बढ़ा सकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021) प्रश्न. आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों में भारत क्यों रुचि ले रहा है? (2018) |