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जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिम अंटार्कटिका की हिम परत का पिघलना

  • 03 Nov 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंटार्कटिक संधि, राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र, भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम 2022, मैत्री, भारती, दक्षिण गंगोत्री

मेन्स के लिये:

पश्चिम अंटार्कटिक में हिम परत पिघलने की प्रक्रियाएँ, भारत द्वारा उठाए गए कदम, संरक्षण।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

एक हालिया अध्ययन में समुद्री जल का तापमान बढ़ने के परिणामस्वरुप पश्चिम अंटार्कटिक की हिम परत के अपरिहार्य रूप से पिघलने के संदर्भ में चिंताजनक पूर्वानुमान सामने आए हैं। 

  • हिम परत के पिघलने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसमें वैश्विक औसत समुद्र जल स्तर 5.3 मीटर तक बढ़ने की संभावना भी शामिल है, जो भारत सहित विश्व भर के सुभेद्य तटीय शहरों में रहने वाले लाखों लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।

हिम परत का अभिप्राय एवं समुद्र के जलस्तर पर उनका प्रभाव:

  • परिचय: 
    • हिम परत मूलतः हिमानी बर्फ की एक मोटी परत है जो 50,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि को कवर करती है।
      • हिम परत, जैसे कि पश्चिम अंटार्कटिक हिम परत, विशाल भू क्षेत्रों को समाहित करती है, इसमें पर्याप्त मात्रा में मीठा जल होता है।
      • पृथ्वी पर मीठे जल का लगभग दो तिहाई भाग विश्व की दो सबसे बड़ी हिम परतों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में समाहित है।
    • जब हिम परतों का द्रव्यमान बढ़ता या घटता है, तो वे क्रमशः वैश्विक औसत समुद्री स्तर में गिरावट या वृद्धि में योगदान करते हैं।

नोट: वर्तमान अंटार्कटिक हिम परत पृथ्वी पर मौजूद कुल बर्फ की मात्रा का 90% हिस्सा है।

  • पश्चिम अंटार्कटिक हिम परत को पिघलाने वाली प्रक्रियाएँ:
    • हिम परतें अपने ठीक पीछे भूमि-आधारित ग्लेशियरों को स्थिर करती हैं। हिम परतों का पिघलना विभिन्न तरीकों से होता है। समुद्री जल के गर्म होने के कारण हिम परतों का पिघलना एक प्रमुख प्रक्रिया है
    • जैसे ही ये हिम परतें पतली या विघटित होती हैं, उनके पीछे के ग्लेशियर तेज़ी से आगे बढ़ते हैं, जिससे समुद्र में बर्फीले जल का स्त्राव होता है और परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।

नोट: हिम परतें और हिम समूह समुद्री बर्फ से भिन्न होते हैं, जो ध्रुवीय क्षेत्रों में स्वतंत्र-तैरती बर्फ का निर्माण करती है। समुद्री बर्फ तब बनती है जब समुद्री जल जम जाता है।

  • वर्तमान प्रवृत्ति और परिणाम:
    • हाल के परिणाम अमुंडसेन सागर के व्यापक, बड़े पैमाने पर गर्म होने और मूल्यांकन किये गए सभी परिदृश्यों में बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाने से संबंधित हैं।
    • इस प्रत्याशित बर्फ के पिघलन के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि का अनिवार्य रूप से विश्वभर के तटीय समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  • भारत और संवेदनशील तटीय क्षेत्रों के लिये निहितार्थ:
    • भारत विस्तृत तटरेखा और घनी आबादी के साथ समुद्र जल के स्तर में वृद्धि के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है।
    • बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण तटीय समुदायों को विस्थापन का सामना करना पड़ सकता है या जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं, जो सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचे के निर्माण जैसी अनुकूली रणनीतियों की आवश्यकता को उजागर करता है।

भारत द्वारा अंटार्कटिका से संबंधित कार्रवाई:

  • भारत वर्ष 1983 में अंटार्कटिक संधि में शामिल हुआ, 12 सितंबर, 1983 को इसे परामर्शदाता का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (तत्कालीन राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान केंद्र) भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान है जो ध्रुवीय तथा दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार है।
  • भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम, 2022 अंटार्कटिका में यात्राओं और गतिविधियों को नियंत्रित करता है, जिसमें खनिज संरक्षण, देशी पौधों का संरक्षण एवं गैर-देशीय पक्षियों के परिचय पर प्रतिबंध शामिल है।
  • वर्तमान में भारत के अंटार्कटिका में दो परिचालन अनुसंधान स्टेशन हैं - मैत्री और भारती।
    • दक्षिण गंगोत्री पहला स्टेशन था जो वर्ष 1985 से पहले बनाया गया था लेकिन अब चालू नहीं है।

आगे की राह:

  • पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण: महाद्वीप के अद्वितीय पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिये अंटार्कटिक संधि तथा संबंधित समझौतों का कड़ाई से पालन करना।
    • इसमें मानवीय गतिविधियों को विनियमित करना, अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करना शामिल है।
  • नवीन सामग्री और बुनियादी ढाँचा: न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव सुनिश्चित करते हुए कठोर ध्रुवीय परिस्थितियों में कार्य करने वाले अनुसंधान स्टेशनों और जहाज़ों के लिये अधिक कुशल सामग्री एवं बुनियादी ढाँचा विकसित करना।
  • जियोइंजीनियरिंग तकनीक: शोधकर्ता हिम के पिघलने को संभावित रूप से धीमा करने के लिये सौर विकिरण प्रबंधन की खोज कर रहे हैं। मध्यम उत्सर्जन के परिदृश्य मे सौर विकिरण प्रबंधन हिम परत के क्षरण के विरुद्ध एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है।
    • उपयोग किये जाने से पूर्व इन प्रायोगिक तकनीकों की प्रभावकारिता एवं पर्यावरणीय प्रभावों की और अधिक जाँच की जानी चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर जल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. नदियों और झीलों में जल की मात्रा भू-जल की मात्रा से अधिक है।
  2. ध्रुवीय हिमच्छद और हिमनदों में जल की मात्रा भू-जल की मात्रा से अधिक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

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