प्रारंभिक परीक्षा
अंटार्कटिक में हीटवेव
- 12 Aug 2024
- 8 min read
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के समय में अंटार्कटिक अत्यंत शीत ऋतु में भी भीषण हीटवेव का सामना कर रहा है, जो पिछले दो वर्षों में रिकॉर्ड तापमान की दूसरी घटना है।
- जुलाई 2024 के मध्य से भूमि का तापमान सामान्य से औसतन 10 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया है, कुछ क्षेत्रों में 28 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि देखी गई है।
अंटार्कटिक में शीत ऋतु में हीटवेव के क्या कारण हैं?
- ध्रुवीय भँवर/पोलर वोर्टेक्स का कमज़ोर होना:
- पोलर वोर्टेक्स/ध्रुवीय भँवर (जिसे पोलर पिग के नाम से भी जाना जाता है) पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के आस-पास निम्न दाब और ठंडी पवनों का एक बड़ा क्षेत्र है।
- "वोर्टेक्स" शब्द का अर्थ पवन के वामावर्त प्रवाह से है जो ध्रुवों के निकट ठंडी पवन को बनाए रखने में सहायता करता है। यह हमेशा ध्रुवों के निकट मौजूद रहता है लेकिन गर्मियों में कमज़ोर हो जाता है व सर्दियों में मज़बूत हो जाता है।
- उच्च तापमान और शक्तिशाली वायुमंडलीय तरंगों (वायुमंडलीय चर के क्षेत्रों में आवधिक अवरोध) ने वोर्टेक्स/भँवर को बाधित कर दिया।
- इससे ऊपर से आने वाली गर्म पवनों ने नीचे पहुँच कर ठंडी पवनों को प्रतिस्थापित कर दिया। इन गर्म पवनों के आगमन ने क्षेत्र के तापमान में वृद्धि की।
- पोलर वोर्टेक्स/ध्रुवीय भँवर (जिसे पोलर पिग के नाम से भी जाना जाता है) पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के आस-पास निम्न दाब और ठंडी पवनों का एक बड़ा क्षेत्र है।
- अंटार्कटिक समुद्री बर्फ में कमी:
- अंटार्कटिक समुद्री बर्फ ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर पहुँच गई है, जिससे सौर ऊर्जा को परावर्तित करने और शीत पवनों एवं गर्म जल के बीच अवरोध के रूप में कार्य करने की इसकी क्षमता कम हो गई है। यह कमी वैश्विक तापमान में वृद्धि में योगदान देती है।
- ग्लोबल वार्मिंग की उच्च दर:
- अंटार्कटिका वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी दर से वार्मिंग का अनुभव कर रहा है, जिसका अनुमान प्रति दशक 0.22 से 0.32 डिग्री सेल्सियस है।
- IPCC के अनुमानों के अनुसार पूरी पृथ्वी प्रति दशक 0.14-0.18 डिग्री सेल्सियस की दर से गर्म हो रही है।
- यह त्वरित वार्मिंग मुख्य रूप से मानवजनित जलवायु परिवर्तन द्वारा संचालित है, जो प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रभावों को बढ़ाता है।
- अंटार्कटिका वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी दर से वार्मिंग का अनुभव कर रहा है, जिसका अनुमान प्रति दशक 0.22 से 0.32 डिग्री सेल्सियस है।
- दक्षिणी महासागर का प्रभाव:
- गर्म होता दक्षिणी महासागर समुद्री बर्फ में कमी के कारण अत्यधिक ऊष्मा को अवशोषित करता है, जिससे एक फीडबैक लूप बनता है जो अंटार्कटिका पर हवा के तापमान को बढ़ाता है तथा चरम मौसम घटनाओं के जोखिम को बढ़ाता है।
अंटार्कटिका में हीट वेव के परिणाम क्या हैं?
- बर्फ का त्वरित विगलन: अंटार्कटिका शीतकालीन तापमान बढ़ने के कारण बर्फ का पिघलना तीव्र हो रहा है तथा हाल के दशकों में 1980 और 1990 के दशक की तुलना में इसमें 280% की वृद्धि देखी गई है।
- जिससे वैश्विक समुद्र के बढ़ते स्तर का महत्त्वपूर्ण जोखिम उजागर हुआ। मार्च 2022 में एक हीट वेव के कारण लगभग 1300 वर्ग किलोमीटर का एक हिमनद का हिस्सा ढह गया, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर के बढ़ने का खतरा बन गया है।
- वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि: अंटार्कटिक हिम चादर अंटार्कटिका के 98% हिस्से को आच्छादित करती है और इसमें विश्व के 60% से अधिक मीठे जल का भंडार है।
- समुद्र के स्तर में कुछ फीट की मामूली वृद्धि के परिणामस्वरूप मौजूदा उच्च ज्वार रेखाओं के 3 फीट के भीतर रहने वाले लगभग 230 मिलियन व्यक्तियों का विस्थापन हो सकता है, जो तटीय शहरों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न करता है।
- महासागर परिसंचरण में व्यवधान: पिघलते हिमनद से मीठे जल का प्रवाह समुद्री जल की लवणता और घनत्व को बदल देता है, जिससे वैश्विक महासागर परिसंचरण धीमा हो जाता है।
- वर्ष 2023 के एक अध्ययन से पता चला है कि यह मंदी महासागर की उष्णता, कार्बन और पोषक तत्त्वों को संग्रहीत करने एवं परिवहन करने की क्षमता को कमज़ोर करती है, जो जलवायु विनियमन के लिये आवश्यक हैं। कम महासागर परिसंचरण गर्मी और CO2 अवशोषण को कम करता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग तेज़ होती है और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ जाती है जो विश्व भर में पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव आबादी को प्रभावित करती हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र व्यवधान: तापमान परिवर्तन और हिमनद की हानि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, स्थिर बर्फ पर निर्भर प्रजातियों को खतरा होता है, जिससे जैवविविधता की हानि होती है तथा वैश्विक खाद्य जाल में बदलाव होता है।
- उदाहरणतः ध्रुवीय भालू और पेंगुइन जैसी प्रजातियाँ जीवित रहने के लिये स्थिर बर्फ पर निर्भर रहती हैं।
- फीडबैक लूप: बर्फ पिघलने से सूर्य के प्रकाश का परावर्तन (एल्बिडो प्रभाव) कम हो जाता है, जिससे महासागरों और भूमि द्वारा ऊष्मा का अवशोषण बढ़ जाता है, जिससे बर्फ पिघलने की प्रक्रिया और तेज़ हो जाती है, जिससे एक फीडबैक लूप का निर्माण होता है, जो जलवायु परिवर्तन को और बदतर बना देता है।
- एल्बिडो, सतहों की सूर्य के प्रकाश (सूर्य से आने वाली गर्मी) को परावर्तित करने की क्षमता की अभिव्यक्ति है।
अंटार्कटिक के लिये भारत की पहल
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर जल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |