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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 30 Jul, 2024
  • 27 min read
प्रारंभिक परीक्षा

डार्क ऑक्सीजन की खोज

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में वैज्ञानिकों ने बताया कि एक अज्ञात प्रक्रिया के तहत विश्व के महासागरों की गहराई, जहाँ सूर्य के प्रकाश की कमी के कारण प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है, में ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है।

  • यह खोज महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ऑक्सीजन समुद्री जीवन को सहारा देती है और यह बताती है कि वहाँ पहले से अज्ञात पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद हो सकते हैं।

डार्क ऑक्सीजन क्या है?

  • परिचय:
    • वैज्ञानिकों ने वितलीय क्षेत्र (जहाँ सूर्य का प्रकाश अत्यंत कम है और प्रकाश संश्लेषण के लिये अपर्याप्त है) के कुछ क्षेत्रों में ऑक्सीजन की सांद्रता में अप्रत्याशित वृद्धि देखी।
    • शोधकर्त्ताओं ने कहा कि यह खोज ऑक्सीजन के एक नए स्रोत का प्रतिनिधित्व करती है जहाँ प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है, और इसे 'डार्क ऑक्सीजन' नाम दिया गया है।
  • डार्क ऑक्सीजन उत्पन्न होने का संभावित कारण:
    • आमतौर पर ऑक्सीजन एक वैश्विक परिसंचरण तंत्र 'ग्रेट कन्वेयर बेल्ट' द्वारा प्रदान की जाती है, जो स्थानीय उत्पादन के बिना कम हो जाएगी, क्योंकि छोटे जीव-जंतु इसे ग्रहण कर लेते हैं।
    • ऑक्सीजन उत्पादन के लिये एक परिकल्पना यह है कि बहुधात्विक ग्रंथिकाएँ (पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स) विद्युत आवेशों का परिवहन करते हैं जो जल के अणुओं का अपघटन करते हैं, जिससे ऑक्सीजन मुक्त होती है।
      • पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स/बहुधात्विक ग्रंथिका समुद्र तल पर पाए जाने वाले लोहे, मैंगनीज हाइड्रॉक्साइड और चट्टान के ढेर होते हैं।
      • हालाँकि, बहुधात्विक ग्रंथिकाओं की ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता का सटीक ऊर्जा स्रोत अभी भी स्पष्ट नहीं है।
  • अध्ययन के स्थान:
    • यह क्षेत्र विश्व में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स की सर्वाधिक सांद्रता के लिये जाना जाता है।
      • यह अध्ययन मैक्सिको के पश्चिमी तट के क्लेरियन-क्लिपर्टन ज़ोन में किया गया था।

गहरे समुद्र में खनन क्या है?

  • परिचय:
    • गहरे समुद्र में खनन से तात्पर्य गहरे समुद्र तल से खनिज और धातु निष्कर्षण की प्रक्रिया से है। गहरे समुद्र में खनन के तीन प्रकार हैं:
      • समुद्र तल में जमा-समृद्ध बहुधातु ग्रंथिकाओं (Nodules) का पृथक्करण
      • समुद्री तल से बड़े पैमाने पर सल्फाइड भंडार का खनन
      • चट्टान से कोबाल्ट परतों का पृथक्करण।
    • इन ग्रंथिकाओं (Nodules), भंडारों और परतों में निकेल, दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व, कोबाल्ट और अन्य पदार्थ पाए जाते हैं, ये नवीकरणीय ऊर्जा के दोहन में प्रयोग की जाने वाली बैटरी तथा अन्य सामग्रियों, सेलफोन एवं कंप्यूटर जैसी रोजमर्रा की तकनीक के लिये भी आवश्यक होती हैं।
    • पॉलीमेटेलिक ग्रंथिकाओं की उपलब्धता के कारण आने वाले दशकों में गहरे समुद्र में खनन एक प्रमुख समुद्री संसाधन निष्कर्षण गतिविधि बनने की उम्मीद है।
  • पर्यावरणीय चिंता:
    • ‘डार्क ऑक्सीजन’ की खोज से इस ऑक्सीजन स्रोत पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित नुकसान की चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों को चिंता है कि गहरे समुद्र में खनन (जिसमें पॉलीमेटेलिक ग्रंथिकाओं को हटाया जाता है) इन समुद्री पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकता है।
    • नवंबर 2023 में, एक अध्ययन ने संकेत दिया कि गहरे समुद्र में खनन से गहरे समुद्र में रहने वाली जेलीफ़िश को नुकसान हो सकता है (समुद्र के जल में कीचड़ के गुबार बनाकर जो समुद्री प्रजातियों के पोषण और प्रजनन चक्र में हस्तक्षेप करते हैं)।
    • भूमि के ऊपर स्थित पारिस्थितिकी तंत्रों की तुलना में वितलीय क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्रों के बारे में सीमित वैज्ञानिक ज्ञान, इन पारिस्थितिकी तंत्रों पर गहरे समुद्र में खनन के संभावित प्रभाव और वैश्विक जलवायु प्रक्रियाओं में उनकी भूमिका का आकलन करने के प्रयासों को जटिल बना सकता है।
  • भारतीय संदर्भ:
    • भारत प्रशांत महासागर में गहन समुद्र में खनिजों की खोज के लिये लाइसेंस हेतु आवेदन करना चाहता है।
      • इसके अलावा, वर्ष 1987 में भारत ‘अग्रणी निवेशक’ का दर्जा पाने वाला पहला देश था और उसे बहुधात्विक ग्रंथि अन्वेषण के लिये मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में लगभग 1.5 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र दिया गया था।
      • मध्य हिंद महासागर बेसिन में समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक ग्रंथियों का अन्वेषण करने के भारत के विशेष अधिकार को वर्ष 2017 में पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।
      • भारत ने वर्ष 2024 में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर हिंद महासागर के समुद्री क्षेत्र में अन्वेषण के अधिकार के लिये आवेदन किया है, जिसमें कोबाल्ट समृद्ध अफानासी निकितिन सीमाउंट (AN सीमाउंट) भी शामिल है।
    • भारत का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हिंद महासागर में समान संसाधनों की खोज और खनन के लिये अपने डीप ओशन मिशनके हिस्से के रूप में एक पनडुब्बी वाहन (समुद्रयान मिशन) का निर्माण कर रहा है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

वैश्विक सागर आयोग (ग्लोबल ओशन कमीशन) अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय (सीबेड) खोज़ और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।

भारत ने अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय खनिज की खोज़ के लिये लाइसेंस प्राप्त किया है।

'दुर्लभ मृदा खनिज (रेअर अर्थ मिनरल)' अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र अधस्तल पर उपलब्ध है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रारंभिक परीक्षा

महासागर परिसंचरण और जलवायु परिवर्तन

स्रोत: साइंस डेली

हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन में महासागर की भूमिका के विषय में अपने अप्रत्याशित निष्कर्षों के कारण ध्यान आकर्षित किया है।

  • अध्ययन से पता चलता है कि क्षीण महासागरीय परिसंचरण के कारण वायुमंडलीय CO2 का स्तर बढ़ सकता है, जो कि पिछली धारणाओं के विपरीत है।

जलवायु परिवर्तन और महासागर परिसंचरण के बीच क्या संबंध है?

  • विपरीत परिसंचरण की भूमिका: महासागर विपरीत परिसंचरण एक वैश्विक कन्वेयर बेल्ट के रूप में कार्य करता है, जो समुद्र के पार जल और पोषक तत्त्वों का परिवहन करता है। यह एक दोहरी प्रक्रिया है।   
    • जैसे ही सतही जल CO2 को अवशोषित कर लेता है और ठंडा हो जाता है, वह सघन हो जाता है तथा गहरे समुद्र में नीचे की ओर प्रवाहित होने लगता है तथा कार्बन को वायुमंडल से दूर ले जाता है।
    • गहरे जल से पोषक तत्त्व और कार्बन सतह पर वापस आते हैं, जिनसे समुद्री जीवन को पोषण प्राप्त होता है तथा वायुमंडलीय CO2 का स्तर भी नियंत्रित होता है।
  • महासागर परिसंचरण और जलवायु परिवर्तन पर पारंपरिक दृष्टिकोण: जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन होता है, वैज्ञानिक विभिन्न कारकों के कारण महासागर परिसंचरण के कमज़ोर होने का पूर्वानुमान करते हैं।
    • पिघलते हिम आवरण: अंटार्कटिका में पिघलते हिम आवरण समुद्र में लवण जल के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे परिसंचरण पैटर्न बदल जाता है।
    • तापमान में बदलाव: ग्लोबल वार्मिंग समुद्र के तापमान में बदलाव को प्रभावित करती है, जिससे परिसंचरण पर और भी असर पड़ता है। 
    • पारंपरिक दृष्टिकोण यह है कि कमज़ोर परिसंचरण का अर्थ है कि गहरे समुद्र में कम कार्बन संग्रह होगा, लेकिन कम कार्बन के वापस ऊपर आने के कारण समुद्र का कार्बन सिंक प्रभाव संतुलित रहेगा।
  • शोध से नई जानकारी: नए शोध से महासागर परिसंचरण, लौह उपलब्धता, सूक्ष्मजीवों और लिगैंड्स से जुड़े एक जटिल प्रतिक्रिया तंत्र का पता चलता है, जो दर्शाता है कि क्षीण महासागर परिसंचरण पिछले मान्यताओं के विपरीत वायुमंडलीय CO2 के स्तर को बढ़ा सकता है।
    • लिगैंड्स कार्बनिक अणु होते हैं जो लोहे के साथ बंध कर उसे घुलनशील और फाइटोप्लांकटन वृद्धि के लिये सुलभ बनाए रखते हैं, लेकिन उनकी उपलब्धता वैश्विक स्तर पर लौह निषेचन प्रयासों की प्रभावशीलता को सीमित कर सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन हेतु निहितार्थ: अध्ययन में जलवायु परिवर्तन शमन में महासागर की भूमिका पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है क्योंकि कमज़ोर महासागर परिसंचरण कार्बन सिंक प्रभावशीलता को कम कर सकता है जिससे वायुमंडलीय CO2 में वृद्धि हो सकती है और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ सकती है।

मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (MOC) क्या है? 

  • परिभाषा: मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (MOC) वैश्विक महासागरीय परिसंचरण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो जल, ऊष्मा, लवण, कार्बन और पोषक तत्त्वों को मुख्य रूप से महासागरीय बेसिन के भीतर व बीच में उत्तर-दक्षिण दिशा में ले जाता है। यह पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • तंत्र:
    • उत्तर की ओर प्रवाह: अटलांटिक महासागर में, ऊष्मा और लवणीय जल दक्षिण अटलांटिक से नॉर्डिक समुद्र (ग्रीनलैंड, इंग्लैंड और उत्तरी कनाडा के पास) की ओर ले जाया जाता है। यहाँ, यह जल ठंडा होकर सघन हो जाता है और समुद्र तल की ओर प्रवाहित होता है, जिससे गहन जल-धाराएँ बनती हैं जो दक्षिण की ओर अंटार्कटिका की ओर प्रवाहित होती हैं।
    • अंटार्कटिका का योगदान: अंटार्कटिका के समीप और भी सघन जल बनता है। इस जल का समुद्र तल के साथ उत्तर की ओर उत्तरी अटलांटिक में प्रवाह होता हैं, जहाँ यह वापस दक्षिण की ओर प्रवाहित होने से पूर्व अन्य जल के साथ मिल जाता है।
  • महत्त्व:
    • MOC महासागरीय उत्तर की ओर ऊष्मा संवहन के लगभग दो-तिहाई के लिये जिम्मेदार है, जो इसे जलवायु विनियमन के लिये आवश्यक बनाता है।
    • MOC में परिवर्तन क्षेत्रीय और वैश्विक ऊष्मा वितरण को प्रभावित करते हैं, जिससे जलवायु एवं मौसम के पैटर्न प्रभावित होते हैं।
  • चक्र अवधि: MOC का संपूर्ण परिसंचरण चक्र, जिसे महासागरीय कन्वेयर बेल्ट के रूप में भी जाना जाता है, बहुत ही धीमा है। बेल्ट के साथ जल की किसी मात्रा (किसी भी दिये गए घन मीटर की मात्रा) को एक चक्र पूरा करने के लिये को लगभग 1,000 वर्ष लगते हैं।

Meridional_Overturning_Circulation

अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC )

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष द्वारा स्थापित स्टिग्लिट्ज़ आयोग अंतरराष्ट्रीय समाचारों में था। किसके साथ सौदा करने के लिये आयोग का समर्थन किया गया था। 

(a) आसन्न वैश्विक जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियाँ और एक रोडमैप तैयार करना।
(b) वैश्विक वित्तीय प्रणालियों की कार्यप्रणाली और अधिक टिकाऊ वैश्विक व्यवस्था को सुरक्षित करने के तरीकों और साधनों का पता लगाना।
(c) वैश्विक आतंकवाद और आतंकवाद के शमन के लिये एक वैश्विक कार्य योजना तैयार करना।
(d) वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. वैश्विक तापमान का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव का, उदाहरणों के साथ, आकलन कीजिये। (2019)


रैपिड फायर

विश्व हेपेटाइटिस दिवस

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

वायरल हेपेटाइटिस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है। यह यकृत की सूजन है जो गंभीर यकृत रोग और कैंसर का कारण बनती है।

  • इसके लिये 28 जुलाई की तारीख इसलिये चुनी गई क्योंकि यह नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. बारूक ब्लमबर्ग का जन्मदिन है, जिन्होंने हेपेटाइटिस B वायरस (HBV) की खोज की थी और वायरस के लिये नैदानिक ​​परीक्षण तथा टीका बनाया था।
  • विश्व हेपेटाइटिस दिवस 2024 की थीम है: “It’s time for action” अर्थात् कार्रवाई का समय।
  • हेपेटाइटिस के लक्षणों में बुखार, थकान, भूख न लगना, मतली, वमन, पेट में दर्द, गहरे रंग का मूत्र, गहरे रंग का मल, जोड़ों में दर्द और पीलिया शामिल हैं।
  • हेपेटाइटिस वायरस के पाँच मुख्य प्रकार हैं: A, B, C, D, व E इनमें प्रत्येक के संचरण, भौगोलिक वितरण और रोकथाम के तरीके अलग-अलग हैं। हेपेटाइटिस B और C सबसे सामान्य हैं, जो प्रत्येक वर्ष 1.3 मिलियन मृत्यु और 2.2 मिलियन नए संक्रमण का कारण बनते हैं। हेपेटाइटिसरोग से प्रत्येक 30 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु होती है।     
    • अन्य कारणों में ड्रग्स और अल्कोहल का दुरुपयोग, यकृत में वसा का निर्माण (फैटी लीवर हेपेटाइटिस) या एक ऑटोइम्यून प्रक्रिया शामिल है जिसमें एक व्यक्ति का शरीर एंटीबॉडी बनाता है जो यकृत (ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस) पर हमला करता है।

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ग्लोबल हेपेटाइटिस रिपोर्ट 2024


रैपिड फायर

‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान

स्रोत : पीआईबी

15 अगस्त 2024 को 78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर रक्षा मंत्रालय पूरे देश में 15 लाख वृक्षारोपण अभियान चलाएगा।

और पढ़ें : विश्व पर्यावरण दिवस 2024


रैपिड फायर

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2024

स्रोत : लाइव मिंट

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है, ताकि इस शानदार लेकिन लुप्तप्राय जीव के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। 

  • यह दिन शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले भारत सहित 13 देशों के सामूहिक प्रयास की याद दिलाता है, जिसके तहत TX2 वैश्विक लक्ष्य के माध्यम से वर्ष 2022 तक जंगली बाघों की संख्या को दोगुना किया जाएगा।   
  • यह दिन पहली बार वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में स्थापित किया गया था। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करके, स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने और उन देशों में (जहाँ बाघों की बहुत बड़ी जीवसंख्या पाई जाती है) पर्याप्त वन क्षेत्र बनाए रखने के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को तेज़ करने का आग्रह करना है।

TIGER

और पढ़ें: बाघ संरक्षण के लिये पुरस्कार


रैपिड फायर

रोज़गार डेटा संग्रहण तंत्र

स्रोत : द हिंदू

केंद्र सरकार वर्ष 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में उजागर की गई चिंताओं के बाद, रोज़गार के रुझानों पर व्यापक डेटा की कमी पर चिंताओं को दूर करने के लिये सभी मंत्रालयों के सहयोग से एक रोज़गार डेटा संग्रह तंत्र (EDCM) बनाने के लिये तैयार है। 

  • EDCM का उद्देश्य रोज़गार डेटा में सुधार करना और रोज़गार, बेरोज़गारी, वेतन हानि तथा नौकरी छूटने के आँकड़ों में अंतर को दूर करना है। 
  • सरकार रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये श्रम, रसद, बुनियादी ढाँचे और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में सुधार कर रही है। पीएम गति शक्ति, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएँ, भारतमाला और सागरमाला एवं रोज़गार से जुड़ी प्रोत्साहन पैकेज जैसी पहलों का उद्देश्य रोज़गार उत्पन्न करना है। 
    • देश की कामकाजी आबादी वर्ष 2021-31 से प्रति वर्ष 9.7 मिलियन और वर्ष 2031-41 से प्रति वर्ष 4.2 मिलियन बढ़ने की उम्मीद है। 
    • केंद्रीय बजट 2024-2025 में प्रधानमंत्री पैकेज के तहत तीन "रोज़गार से जुड़ी प्रोत्साहन" योजनाओं सहित रोजगार और कौशल योजनाओं के लिये 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। 
      • ये योजनाएँ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) में नामांकन पर ध्यान केंद्रित करती हैं और नए कर्मचारियों तथा उनके नियोक्ताओं के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती हैं। इन योजनाओं से रोज़गार में प्रवेश करने वाले कुल 290 लाख युवाओं को लाभ मिलने की उम्मीद है।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के पास प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजन के लिये विभिन्न कार्यक्रम तथा परियोजनाएँ हैं, लेकिन अभी तक रोज़गार सृजन का अनुमान लगाने हेतु  उनका प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया गया है।

और पढ़ें: भारत में रोज़गार के रुझान


रैपिड फायर

भारत ने एशियन डिज़ास्टर प्रीपेयर्डनेस सेंटर की अध्यक्षता संभाली

स्रोत: पी.आई.बी. 

भारत ने सत्र 2024-25 के लिये एशियन डिज़ास्टर प्रीपेयर्डनेस सेंटर (ADPC) के अध्यक्ष का पदभार संभाला, जो वैश्विक और क्षेत्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

  • ADPC एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर केंद्रित है।
    • इसकी स्थापना भारत और आठ पड़ोसी देशों: बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपींस, श्रीलंका और थाईलैंड द्वारा की गई थी।
    • ADPC एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में कार्य करता है जो न्यासी बोर्ड द्वारा शासित होता है, जिसका मुख्यालय बैंकॉक, थाईलैंड में है और परिचालक देशों में इसके उप-केंद्र हैं।
    • भारत ने DRR में, विशेष रूप से आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) की स्थापना के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की अगुवाई की है। भारत आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क (SFDRR) के लिये प्रतिबद्ध है, जिस पर इसने वर्ष 2015 में आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किये थे।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 भारत में राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिये कानूनी एवं संस्थागत फ्रेमवर्क स्थापित करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) नीति निर्माण के लिये जिम्मेदार शीर्ष निकाय है, जबकि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) राज्य तथा ज़िला स्तर की नीतियों एवं योजनाओं की देखरेख करते हैं।
  • प्रमुख संस्थान: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) क्षमता विकास, प्रशिक्षण, अनुसंधान पर केंद्रित है जो NDMA के तहत कार्य करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) आपदा रहत के लिये समर्पित विश्व का सबसे बड़ा त्वरित प्रतिक्रिया बल है। यह रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु आपात स्थितियों सहित प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिये एक विशेष प्रतिक्रिया बल है। यह NDMA के निर्देशन में कार्य करता है।

और पढ़ें: भारत को आपदा रोधी बनाना


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