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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 29 Oct, 2024
  • 21 min read
प्रारंभिक परीक्षा

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) का पुनः प्रवर्तन

स्रोत: द हिंदू 

हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) में सुधार कर इसे पुनः प्रवर्तित करने की सूचना दी गई।

नवीन मिशन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • राष्ट्रीय पांडुलिपि प्राधिकरण: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय पांडुलिपि प्राधिकरण नामक एक स्वायत्त निकाय की स्थापना करने की योजना की जा रही है।
  • NMM की उपलब्धियाँ: इस मिशन के अंतर्गत वर्ष 2003 से 2024 तक 52 लाख पांडुलिपियों का मेटाडेटा तैयार किया गया, 3 लाख से अधिक पुस्तकों का डिजिटलीकरण किया गया जिनमें से एक तिहाई को सफलतापूर्वक अपलोड कर दिया गया।
  • संबंधित चिंताएँ: कुल अपलोड की गई 1.3 लाख पांडुलिपियों में से केवल 70,000 ही सार्वजानिक रूप से उपलब्ध हैं।
    • पांडुलिपियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा निजी स्वामित्व में है तथा इनके स्वामियों द्वारा इसे सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाने हेतु प्रदान किया जाने वाला प्रोत्साहन बहुत सीमित है।
  • भविष्य का रोडमैप: 
    • विदेशों में प्राचीन भारतीय अध्ययन से संबंधित विभागों में पीठों की स्थापना करना।
    • विदेशों में पांडुलिपियों के विक्रय और निजी स्वामित्व से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और विधिशास्त्रियों को शामिल करने के सुझाव।
    • ब्राह्मी से इतर और अल्प ज्ञात लिपियों के संरक्षण की कार्यनीति।

पांडुलिपि

  • परिभाषा: पांडुलिपि कागज़, छाल, धातु, ताड़ के पत्ते अथवा किसी अन्य सामग्री पर कम से कम 75 वर्ष पहले हस्त लिखित संयोजन को कहते हैं जिसका वैज्ञानिक, ऐतिहासिक अथवा सौंदर्यपरक महत्त्व हो|
  • अपवर्जन: लिथोग्राफ और मुद्रित खंड पांडुलिपि नहीं होती हैं।
  • लिपि परिवर्तनशीलता: प्रायः एक भाषा विभिन्न लिपियों में लिखी होती है। उदाहरण के लिये संस्कृत उड़िया लिपि, ग्रंथ लिपि, देवनागरी लिपि और कई अन्य लिपियों में लिखी जाती है।
  • ऐतिहासिक अभिलेखों से भिन्नता: पांडुलिपियाँ ऐतिहासिक रिकॉर्डों जैसे शिलालेखों, फरमानों, राजस्व अभिलेखों से भिन्न होती है जो इतिहास में घटनाओं अथवा प्रक्रियाओं के संबंध में सीधी सूचना प्रदान करते हैं| पांडुलिपियों में ज्ञान निहित होता है|
    • पांडुलिपियों में दर्शन, विज्ञान, साहित्य एवं कला का ज्ञान निहित है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 18वीं शताब्दी में अवध के नवाब ने पादशाहनामा की शानदार प्रस्तुति वाली पांडुलिपि को इंग्लैंड के किंग जॉर्ज III को भेंट में दे दिया|
    • 7वीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग भारत से कई पांडुलिपियाँ अपने साथ ले गया।
  • ब्रिटिश रुचि: विलियम जोन्स, सी.पी. ब्राउन, जॉन लेडेन, कोलिन मैकेंज़ी, चार्ल्स विल्किंस, एच.एच. विल्सन और एच.टी. कोलब्रुक ने भारतीय पांडुलिपियों के अध्ययन और संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
  • कैटलॉग बनाने के प्रारंभिक प्रयास: भारतीय पांडुलिपियों का कैटलॉग बनाने का प्रयास वर्ष 1803 में ही एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के चौथे अध्यक्ष एच.टी. कोलब्रुक के प्रयासों से शुरू हुआ।

NMM से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: यह भारत के पांडुलिपियों के विशाल संग्रह को संरक्षित और प्रलेखित करने के लिये संस्कृति मंत्रालय की एक पहल है।
    • इसे भारत की विशाल पांडुलिपीय संपदा को अनावृत करने, प्रलेखन करने, संरक्षित करने और उसे उपलब्ध कराने के लिये वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था।
  • कार्यान्वयन मंत्रालय: संस्कृति विभाग इस मिशन का कार्यान्वयन करता है, जबकि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) मिशन का केंद्रक अभिकरण है।
  • उद्देश्य: यह पांडुलिपियों के संरक्षण और उनमें निहित ज्ञान के प्रसार के लिये समर्पित है तथा अपने आदर्श वाक्य "भविष्य के लिये अतीत का संरक्षण" की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • कार्यक्षेत्र और संग्रह: भारत में अनुमानतः पाँच मिलियन पाण्डुलिपियाँ हैं जो संभवतः विश्व का सबसे बड़ा संकलन है।
    • 70% पांडुलिपियाँ संस्कृत में हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में अलेक्जेंडर री, ए.एच. लॉन्गहर्स्ट, रॉबर्ट सेवेल, जेम्स बर्गेस और वाल्टर इलियट किस गतिविधि से जुड़े थे? (2023)

(a) पुरातात्त्विक उत्खनन
(b) औपनिवेशिक भारत में अंग्रेज़ी प्रेस की स्थापना
(c) देशी रजवाड़ों में गिरजाघरों की स्थापना
(d) औपनिवेशिक भारत में रेल का निर्माण

उत्तर: (a)


प्रश्न. इनमें से किस मुगल सम्राट ने सचित्र पांडुलिपियों से ध्यान हटाकर चित्राधार (एल्बम) और वैयक्तिक रूपचित्रों पर अधिक ज़ोर दिया? (2019)

(a) हुमायूँ   
(b) अकबर
(c) जहाँगीर 
(d) शाहजहाँ

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

मधुमेह के उपचार हेतु स्मार्ट इंसुलिन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

नवीनतम परीक्षण में NNC2215 नामक एक इंजीनियर्ड इंसुलिन अणु विकसित किया गया है, जिसमें एक अंतर्निर्मित "ऑन-ऑफ स्विच" शामिल है, जो इसे रक्त शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव के अनुसार स्वचालित रूप से अनुक्रिया करने में सक्षम बनाता है। 

  • NNC2215 के दो मुख्य घटक:
    • एक वलयाकार (Ring-Shaped) संरचना इंसुलिन अणु को रक्त शर्करा के स्तर के आधार पर आकार बदलने में सक्षम बनाती है।
    • ग्लूकोसाइड अणु संरचना में ग्लूकोज जैसा प्रतीत होता है और इंसुलिन के सक्रियण को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • मधुमेह: मधुमेह एक चिरकालिक रोग है जो अग्न्याशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन करने में अक्षम होने अथवा शरीर द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाने से होता है।
    • WHO के अनुसार,वर्ष 2019 में, मधुमेह के कारण विश्व में कुल 1.5 मिलियन व्यक्तियों की मृत्यु हुई और इसके कारण होने वाली सभी मौतों में 48% व्यक्तियों की आयु 70 वर्ष से कम थी।
    • संबंधित पहल:

Types of Diabetes

और पढ़ें: मधुमेह और क्षय रोग


प्रारंभिक परीक्षा

पार्टिकुलेट मैटर और SO₂ नियंत्रण

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में CSIR- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने भारतीय ताप विद्युत संयंत्रों (TPPs) में फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) की स्थापना न करने की सलाह दी है, जिसमें कहा गया है कि सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन का परिवेशी वायु गुणवत्ता पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। 

  • इस संस्थान की रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि SO₂ उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय पार्टिकुलेट मैटर (PM) को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

नोट:

  • CSIR-NEERI भारत सरकार द्वारा निर्मित और वित्तपोषित एक अनुसंधान संस्थान है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1958 में नागपुर में की गई थी जिसका उद्देश्य जल आपूर्ति, सीवेज निपटान, संचारी रोग और कुछ हद तक औद्योगिक प्रदूषण पर ध्यान केंद्रित करना था।

फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) क्या है?

  • परिचय:
    • FGD जीवाश्म ईंधन संचालित बिजलीघरों के उत्सर्जन से सल्फर यौगिकों को हटाने की प्रक्रिया है।
    • इसका प्रयोग अतिरिक्त अवशोषक के रूप में किया जाता है, जो ग्रिप गैस से 95% तक सल्फर डाइऑक्साइड को पृथक कर सकता है।
      • जब कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस अथवा लकड़ी जैसे जीवाश्म ईंधन को ऊष्मा या विद्युत उत्पादन के लिये जलाया जाता है, तब इससे निकलने वाले पदार्थ को फ्लू गैस के रूप में जाना जाता है।

FGD स्थापित करने के लिये विद्युत संयंत्रों का वर्गीकरण:

वर्ग स्थान/क्षेत्र अनुपालन के लिये समय-सीमा
वर्ग A राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region- NCR) के 10 कि.मी. के दायरे में या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर (भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार) 31 दिसंबर, 2024 तक
वर्ग B गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के 10 कि.मी. के दायरे में (CPCB द्वारा परिभाषित) 31 दिसंबर, 2025 तक
वर्ग C वर्ग A और B में शामिल लोगों के अलावा अन्य 31 दिसंबर, 2026 तक

वायु प्रदूषण क्या है?

  • परिचय: 
    • वायु प्रदूषण में वायुमंडल में ठोस, तरल, गैस, शोर और रेडियोधर्मी विकिरण की उपस्थिति शामिल है, जो मनुष्यों, जीवित जीवों, संपत्ति या पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के लिये हानिकारक होते है।
      • प्रदूषक के रूप में जाने जाने वाले ये पदार्थ प्राकृतिक या मानव निर्मित हो सकते हैं तथा विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे औद्योगिक प्रक्रियाएँ, वाहन उत्सर्जन, कृषि गतिविधियाँ, एवं प्राकृतिक घटनाएँ जैसे वनाग्नि और ज्वालामुखी विस्फोट।
  • कणिकीय पदार्थ (PM):
    • PM का तात्पर्य वायु में मौजूद अत्यंत सूक्ष्म कणों और तरल बूंदों के जटिल मिश्रण से है। इन कणों का आकार भिन्न भिन्न प्रकार का होता है और यह असंख्य यौगिकों से बने हो सकते हैं।
      • PM10 (स्थूल कण)- 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
      • PM2.5 (सूक्ष्म कण)- 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
  • सल्फर डाइऑक्साइड:
    • वायु प्रदूषण में SO2 उत्सर्जन का प्रमुख योगदान है। यह वायुमंडल में मौजूद अन्य यौगिकों के साथ अभिक्रिया कर छोटे कण बना सकता है। 
      • ये कण PM प्रदूषण में योगदान करते हैं।
    • वायुमंडल में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत बिजली संयंत्रों और अन्य औद्योगिक सुविधाओं में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
      • अन्य स्रोतों में औद्योगिक प्रक्रम जैसे अयस्क से धातु का निष्कर्षण, प्राकृतिक स्रोत जैसे ज्वालामुखी तथा इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन एवं भारी उपकरण शामिल हैं जिसमें उच्च सल्फर सामग्री वाले ईंधन का दहन शामिल है।
  • वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये सरकारी पहल:

नोट: एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मूल अधिकार के भाग के रूप में माना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. ताम्र प्रगलन संयंत्रों के बारे में चिंता का कारण क्या है? (2021)

  1. वे पर्यावरण में कार्बन मोनोक्साइड को घातक मात्राओं में निर्मुक्त कर सकते हैं।
  2. ताम्रमल (कॉपर स्लैग) पर्यावरण में कुछ भारी धातुओं के निक्षालन (लीचिंग) का कारण बन सकता है।
  3. वे सल्फर डाइऑक्साइड को एक प्रदूषक के रूप में निर्मुक्त कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. भट्टी तेल (फर्नेस ऑयल) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)

  1. यह तेल परिष्करणियों (रिफाइनरी) का एक उत्पाद है।
  2. कुछ उद्योग इसका उपयोग ऊर्जा (पावर) उत्पादन के लिये करते हैं।
  3. इसके उपयोग से पर्यावरण में गंधक का उत्सर्जन होता है।

उपर्युक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

चक्रवात का लैंडफॉल

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में चक्रवात दाना ने ओडिशा में दस्तक दी।

  • लैंडफॉल एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात की घटना है जिसमे चक्रवात समुद्रीय सतह से भू-भाग पर आ जाता है, विशेष रूप से जब चक्रवात का केंद्र (चक्रवात की आँख) समुद्रीय तट को पार का लेता है।
    • यह प्रत्यक्ष प्रक्रिया से भिन्न है, जिसमें चक्रवात का केंद्र तट से दूर रहता है, लेकिन तीव्र पवन का केंद्र (या आई-वॉल) तट की ओर चला जाता है।
  • निम्न वायुमंडलीय दाब, गर्म तापमान और साफ आसमान वाला केंद्रीय क्षेत्र चक्रवात की आँख के नाम से जाना जाता है।
  • चक्रवात के अन्य घटक:
    • आई-वॉल: यह उष्णकटिबंधीय चक्रवात का सबसे जोखिमपूर्ण हिस्सा है, जिनकी विशेषताओं में अधिक तीव्र पवन, अत्याधिक वर्षा और 15,000 मीटर (49,000 फीट) तक ऊँचे संवहनीय बादल शामिल हैं।
    • वर्षा पट्टियाँ (Rainbands): आई-वॉल बादलों और चक्रवातों की सर्पिलाकार पट्टियों से घिरी होती है, जो बवंडर, तीव्र पवन और मूसलाधार बारिश उत्पन्न कर सकती हैं।

अधिक पढ़ें: चक्रवात दाना 


रैपिड फायर

भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) का विस्तार

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में भारत ने भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) शब्दकोष में अंग्रेज़ी और हिंदी के शब्दों सहित लगभग 2,500 नए शब्द जोड़े हैं, जैसे- आधार कार्ड, ब्लॉकचेन, उरसा नेबुला आदि।

  • अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 2024 के उत्सव के दौरान "सांकेतिक भाषा अधिकारों के लिये साइन अप करें" थीम के साथ नए शब्द जोड़े गए।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2017 में 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में घोषित किया गया था, जिसे पहली बार वर्ष 2018 में मनाया गया था।
    • विश्व बधिर संघ (WFD) की स्थापना 23 सितंबर, 1951 को हुई थी।
  • ISL के विस्तार से बधिर समुदाय की सहभागिता विशेष रूप से वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और इंटरनेट संबंधी संदर्भों में सुगम हुई।
  • ISL शब्दकोष के विस्तार का नेतृत्व भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) ने किया।
    • ISLRTC एक स्वायत्त संगठन है जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत स्थापित है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • यह शोध, शैक्षिक पहुँच को बढ़ावा देने और भाषाई प्रणाली के रूप में भारतीय सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है।

और पढ़ें: दिव्यांग व्यक्तियों को सशक्त बनाना


रैपिड फायर

जियांट फर्टिलाइज़र बम

स्रोत: द हिंदू

"प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़" में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि 3.26 अरब वर्ष पहले एक उल्कापिंड के प्रभाव ने पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन के संदर्भ में एक जियांट फर्टिलाइज़र बम का कार्य किया था।

  • पोषक तत्त्व वितरण: दक्षिण अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी भाग में बार्बरटन ग्रीनस्टोन बेल्ट की प्राचीन चट्टानों से उल्कापिंड के प्रभाव के बाद सूक्ष्मजीवों के पुनरुद्धार एवं वृद्धि के साक्ष्य मिले हैं।
    • कार्बनयुक्त कोंड्राइट उल्कापिंड से फाॅस्फोरस और लौह जैसे आवश्यक पोषक तत्त्व मिलने से प्रारंभिक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि में सहायता मिली।
  • प्रभाव: 23-36 मील व्यास वाले तथा डायनासोर को नष्ट करने वाले क्षुद्रग्रह से 50-200 गुना बड़े इस उल्कापिंड से व्यापक तबाही हुई।
  • इसके प्रभाव से वाष्प के विशाल बादल बनने के साथ सुनामी की स्थिति होने के परिणामस्वरूप लंबे समय तक अंधकार और गर्मी की स्थिति बनी रही, जिससे उस समय जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
  • प्रारंभिक जीवों का अनुकूलन: प्रारंभिक विनाश के बावजूद इस प्रभाव से उत्पन्न पोषक तत्त्वों से भरपूर वातावरण में सूक्ष्मजीवों को अनुकूलन वाला वातावरण मिला।
  • इस निष्कर्ष से इस धारणा को चुनौती मिलती है कि उल्कापिंड का प्रभाव केवल विनाशकारी रहा है। इसके साथ ही इसमें प्रारंभिक जीवन को बढ़ावा देने में इनकी संभावित भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

और पढ़ें: दियोदर उल्कापिंड


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