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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 28 May, 2024
  • 21 min read
प्रारंभिक परीक्षा

विरुपाक्ष मंदिर मंडप का जीर्णोद्धार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) जल्द ही यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर के ढह चुके सालू मंतपा या मंडप (एक प्रकार का मंडप) का जीर्णोद्धार कार्य शुरू करेगा।

विरुपाक्ष मंदिर हम्पी के संबंध में प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • विरुपाक्ष मंदिर मध्य कर्नाटक के हम्पी में स्थित है, जो 7वीं शताब्दी में निर्मित प्राचीन शिव मंदिर है।
  • भगवान विरुपाक्ष, जिन्हें पंपापति (Pampapathi) भी कहा जाता है, इस मंदिर के मुख्य देवता हैं।
  • विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण विजयनगर शैली की वास्तुकला में किया गया था, जिसका निर्माण शासक देव राय द्वितीय के नायक लक्कन दंडेशा ने करवाया था।

Virupaksha_Temple_Hampi

हम्पी में स्मारकों का समूह:

  • मध्य कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी (Tungabhadra River) के तट पर स्थित हम्पी एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। लगभग 4,200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस स्थल में 1,600 से अधिक स्मारक हैं, जिनमें किले, मंदिर, महल और अन्य संरचनाएँ शामिल हैं।
    • यह शहर एक समय विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था, जो अपने ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के लिये जाना जाता है।
  • ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों और तुंगभद्रा नदी के बीच हम्पी का स्थान, राजधानी शहर के लिये एक प्राकृतिक रक्षात्मक घेरे के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है।
  • हम्पी के स्मारक विजयनगर वास्तुकला के शिखर को प्रदर्शित करते हैं, जो इंडो-इस्लामिक प्रभावों के साथ द्रविड़ शैली का एक संश्लेषण है।
  • वास्तुकला के चमत्कार: विट्ठल मंदिर परिसर में उत्कृष्ट नक्काशीदार खंभे और प्रतिष्ठित पत्थर का रथ है।
    • एक अन्य उदाहरण में शाही परिक्षेत्र (Royal Enclosure) भी शामिल है जिसमें लोटस महल और हाथी अस्तबल जैसी राजसी संरचनाओं का समावेश है।
    • हज़ारा राम मंदिर, अपनी जटिल पत्थर की नक्काशी और मूर्तिकला पैनलों (Sculpted Panels) के लिये जाना जाता है।
    • विशाल विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी के सबसे पुराने और पवित्र स्थलों में से एक है।
  • प्रसिद्ध संरचनाएँ: कृष्ण मंदिर परिसर, नरसिम्हा, गणेश, हेमकुटा मंदिर समूह, अच्युतराय मंदिर परिसर, विट्ठल मंदिर परिसर, पट्टाभिराम मंदिर परिसर और लोटस महल परिसर।
  • हम्पी के खंडहरों को वर्ष 1800 में कर्नल कॉलिन मैकेंज़ी नामक एक इंजीनियर और पुरातत्त्ववेत्ता द्वारा प्रकाश में लाया गया था।
  • इसके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की मान्यता में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) ने वर्ष 1986 में हम्पी को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी।

UNESCO_World_Heritage_Sites_in India


प्रारंभिक परीक्षा

पाषाण युग में लकड़ी की कलाकृतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हुए अध्ययन द्वारा पारंपरिक पाषाण युग के दृष्टिकोण को चुनौती दी गई है, यह सुझाव देते हुए कि इसे ‘काष्ठ युग’ कहना अधिक उपयुक्त हो सकता है।

  • यह परिप्रेक्ष्य जर्मनी के शॉनिंगन में 300,000 से 400,000 वर्ष पुरानी लकड़ी की कलाकृतियों की खोज और विश्लेषण द्वारा उत्पन्न हुआ है।
  • हाल ही में मध्य प्रदेश के घुघवा में प्रागैतिहासिक कलाकृतियों की खोज से पता चलता है कि प्राचीन शिकारी-संग्राहक औजार बनाने के लिये जीवाश्म लकड़ी का उपयोग करते थे, जो अनुमानतः 10,000 वर्ष से अधिक पुरानी है, जिसमें उसी क्षेत्र में पाए गए मध्यम आकार के टुकड़े और माइक्रोलिथ शामिल हैं।

नोट:

  • भारत और जर्मनी में मानव उपस्थिति हजारों साल पुरानी है, जहाँ नर्मदा घाटी में 1.5 मिलियन वर्ष पुराने पत्थर के औजार और राइन घाटी में 800,000 वर्ष पुराने पत्थर के औजार पाए गए हैं।

लकड़ी के औज़ार पाषाण युग के विचारों को कैसे चुनौती देते हैं?

  • परिष्कृत लकड़ी के उपकरण: कलाकृतियों ने साधारण नुकीली छड़ियों से परे लकड़ी की तकनीक की एक विविध शृंखला का प्रदर्शन किया।
  • प्रारंभिक मानव व्यवहार और क्षमताएँ: शिकार के प्राचीन औजारों की खोज से इस विचार पर संदेह पैदा होता है कि ये लोग केवल सफाई कर्मी (scavengers) थे, तथा इससे यह पता चलता है कि वे पहले से योजना बनाने, रणनीतिक रूप से शिकार करने तथा औजारों की मरम्मत और पुनः उपयोग करने में सक्षम थे।
  • संरक्षण पूर्वाग्रह: शोध से पता चलता है कि पुरातत्त्व में कार्बनिक पदार्थों के बजाय पत्थर को संरक्षित करने का पूर्वाग्रह है, जो प्रागैतिहासिक काल में लकड़ी की प्रासंगिकता के संदर्भ में हमारी समझ को विकृत कर सकता है, बावजूद इसके कि संरक्षित लकड़ी की कलाकृतियाँ इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका का  प्रदर्शन करती हैं। 

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पाषाण युग क्या है?

  • पाषाण युग लगभग 3.4 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ, जब आधुनिक इथियोपिया में होमिनिड्स ने सर्वप्रथम पत्थर के औज़ारों का उपयोग किया। यह अवधि लगभग 6,000 से 4,000 वर्तमान से पूर्व (Before Present- BP) तक रही, मानव इतिहास का 99% हिस्सा है।
  • भारत में पाषाण युग: भारत में पाषाण युग के दौरान, उपलब्ध विविध भूभागों, जल, पौधों व पशुओं के कारण लोग हिमालय और सिंधु-गंगा के मैदानों को छोड़कर देशभर में रहने में सक्षम थे। भारतीय पुरापाषाण काल को तीन विकासात्मक चरणों में वर्गीकृत किया गया है:
    • निम्न पुरापाषाण काल (600,000 वर्ष ईसा पूर्व से 150,000 वर्ष ईसा पूर्व): इसमें चॉपर और काटने के उपकरण, हाथ की कुल्हाड़ी, क्लीवर, चाकू आदि बनाने के लिये बड़े कंकड़ अथवा गुच्छे का उपयोग किया जाता था। निम्न पुरापाषाण काल में औजारों के निर्माण की दो सांस्कृतिक परंपराएँ थीं:
      • सोनियन कंकड़-उपकरण परंपरा
      • प्रायद्वीपीय भारतीय हस्त कुल्हाड़ी-क्लीवर परंपरा।
    • मध्य पुरापाषाण काल (165,000 ईसा पूर्व से 31,000 वर्ष ईसा पूर्व): यह स्क्रेपर्स, पॉइंट्स, बोरर्स और अन्य उपकरण तैयार करने के लिये कोर से निकाले गए विभिन्न प्रकार के फ्लेक्स के उपयोग पर आधारित है।
    • उच्च पुरापाषाण काल (40,000 वर्ष ईसा पूर्व से 12,000 वर्ष ईसा पूर्व): इस चरण में हुए सुधारों में पंच तकनीक का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के उपकरण जैसे ब्लंटेड ब्लेड, पेननाइफ ब्लेड, दाँतेदार किनारों वाले ब्लेड और लंबे समानांतर-पक्षीय ब्लेड से तीर बिंदु बनाना शामिल था।
  • मध्य पाषाण कालीन संस्कृति: इस युग के दौरान, लोग अर्द्ध-स्थायी और अस्थायी बस्तियों में रहते थे, गुफाओं व खुले क्षेत्रों का उपयोग करते थे, दफन अनुष्ठानों (Burial Rituals) का अभ्यास करते थे, कलात्मक क्षमताओं का प्रदर्शन करते थे, सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखते थे तथा छोटे शिकार के शिकार के लिये सूक्ष्म पाषाण उपकरणों का उपयोग करते थे।
  • नवपाषाण काल: इसने कृषि और पशुपालन की शुरुआत को चिह्नित किया। 
    • नवपाषाण संस्कृति के प्रारंभिक प्रमाण मिस्र और मेसोपोटामिया के उपजाऊ अर्धचंद्र क्षेत्र, सिंधु क्षेत्र, भारत की गंगा घाटी व चीन में भी पाए गए हैं।

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  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये : (2021)

(ऐतिहासिक स्थान)  :    (ख्याति का कारण)

  1. बुर्ज़होम               :         शैलकृत देव मंदिर
  2. चंद्रकेतुगढ़           :         टेराकोटा कला
  3. गणेश्वर                :          ताम्र कलाकृतियाँ

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/कौन-से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-सा एक हड़प्पा स्थल नहीं है? (2019)

(a) चन्हुदड़ो
(b) कोट दीजी
(c) सोहगौरा
(d) देसलपुर

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

सेना प्रमुख के कार्यकाल का विस्तार

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति (Appointments Committee of Cabinet- ACC) ने वर्तमान सेनाध्यक्ष (Chief of the Army Staff- CoAS) जनरल मनोज पांडे को एक माह का सेवा विस्तार प्रदान किया है।

  • CoAS, सेना प्रमुख के रूप में कार्य करता है और सेना से संबंधित मामलों पर रक्षा मंत्रालय को सलाह देता है तथा भारत के राष्ट्रपति के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है।
  • पाँच दशकों में इस प्रकार के केवल दो सेवा विस्तार दिये गए हैं; पहला जनरल GG बेवूर को, जिन्होंने वर्ष 1973 में फील्ड मार्शल SHFJ मानेकशॉ के सेवानिवृत्त होने के पश्चात सेना प्रमुख का पद संभाला था।
  • ACC ने सेना नियम 1954 के नियम 16 A(4) के तहत वर्तमान सेना अध्यक्ष (CoAS) के सेवा के विस्तार को उनके सामान्य कार्यकाल से अधिक एक माह के लिये मंज़ूरी दी, जो "सेवाओं की अनिवार्यताओं" के आधार पर अधिकारियों को बनाए रखने से संबंधित है जिस पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार लेती है।
    • CoAS, भारतीय सेना में सर्वोच्च रैंकिंग वाला अधिकारी होता है, जिसे ACC द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • CoAS नियुक्ति के तीन साल बाद अथवा 62 वर्ष की आयु में, जो भी पहले हो, सेवानिवृत्त हो जाता है।

और पढ़े: भारत में रक्षा एकीकरण को आगे बढ़ाना


रैपिड फायर

खगोलीय क्षणिकाएँ

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में श्रीनिवास कुलकर्णी, एक भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक, को 2024 के लिये खगोल विज्ञान में शॉ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें खगोलीय क्षणिकाएँ (Astronomical Transient) में कार्य हेतु दिया गया था।

  • खगोलीय क्षणिकाएँ वे आकाशीय पिंड या घटनाएँ हैं जो अपेक्षाकृत कम समय में अपनी चमक बदलती हैं, जबकि लंबी अवधि में तारे व आकाशगंगाएँ बदलते और विकसित होते हैं।
  • इन ऊर्जावान, अल्पकालिक ब्रह्मांडीय घटनाओं का अध्ययन ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली वस्तुओं और भौतिक नियमों के रहस्यों को उजागर कर सकता है। खगोलीय क्षणिकाएँ के कुछ विभिन्न प्रकार हैं:
    • सुपरनोवा: जब एक तारा अपना जीवन चक्र समाप्त करते हुए अपने जीवन के अंतिम चरण में होता है तो वह एक तीव्र विस्फोट के साथ समाप्त होता है जिसे सुपरनोवा कहा जाता है। सुपरनोवा विस्फोट के दौरान काफी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा बड़े पैमाने पर तारे के कोर में हुए विस्फोट के कारण उत्पन्न होती है जो कि सूर्य के द्रव्यमान से कई गुणा अधिक होती है।
    • सक्रिय गैलेक्टिक न्यूक्लियस (AGN): AGN से उत्सर्जित एक्स-रे के ध्रुवीकरण को मापने की XPoSat की क्षमता इन विशाल ब्लैक होल के आस-पास के क्षेत्रों की ज्यामिति एवं भौतिकी के साथ-साथ उनके उच्च-ऊर्जा उत्सर्जन हेतु ज़िम्मेदार प्रक्रियाओं के संबंध में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
    • तेज़ रेडियो विस्फोट (FRBs): फास्ट रेडियो बर्स्ट्स/तेज़ रेडियो विस्फोट रेडियो तरंगों के शक्तिशाली विस्फोट हैं जो एक सेकंड के कुछ हज़ारवें हिस्से के दौरान इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं जितनी सूर्य तीन दिनों में उत्सर्जित करता है।

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और पढ़ें: खगोलीय महाचक्र, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स सुपरनोवा


रैपिड फायर

मालदीव में रुपे सेवा का शुभारंभ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में मालदीव ने घोषणा की है कि वह शीघ्र ही अपने देश में भारत की रुपे (RuPay) सेवा शुरू करेगा।

  • रुपे भारत का अपनी तरह का पहला घरेलू कार्ड भुगतान नेटवर्क है, जिसकी पूरे भारत में एटीएम, पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale- POS) डिवाइसों और ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर व्यापक पहुँच है।
    • रुपे नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (National Payment Corporation of India- NPCI) का एक उत्पाद है, जो देश में खुदरा भुगतान को शक्ति प्रदान करने वाला प्रमुख संगठन है।
      • कंपनी अधिनियम के तहत NPCI एक "गैर-लाभकारी कंपनी" है।
      • भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 ने भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) और भारतीय बैंक संघ (Indian Banks’ Association- IBA) को भारत में एक सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक भुगतान एवं निपटान प्रणाली स्थापित करने का अधिकार दिया।
      • NPCI इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड (NIPL) NPCI की अंतर्राष्ट्रीय शाखा है, जिसे भारत के डिजिटल भुगतान समाधान जैसे रुपे (RuPay) और यूपीआई (UPI) को वैश्विक स्तर पर निर्यात हेतु वर्ष  2018 में स्थापित किया गया था।
    • रुपे ने समाज के विभिन्न वर्गों के लिये विभिन्न कार्ड वेरिएंट शुरू किये हैं।
  • रुपे के लेनदेन सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और सऊदी अरब में पहले से ही स्वीकार किये जाते हैं।

Maldives

और पढ़ें: श्रीलंका और मॉरीशस में UPI सेवाएँ, भारत मालदीव संबंध


रैपिड फायर

स्पेन ISA का 99वाँ सदस्य बन गया

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

हाल ही में स्पेन पनामा के बाद अनुसमर्थन दस्तावेज़ सौंपकर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) का 99वाँ सदस्य बन गया है।

  • वर्तमान में 119 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, इसका 119वाँ देश माल्टा है, जिनमें से 98 देशों ने ISA के पूर्ण सदस्य बनने के क्रम में अनुसमर्थन हेतु आवश्यक सभी दस्तावेज़ जमा कर दिये हैं।
  • भारत और फ्राँस ने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये पेरिस में पार्टियों के सम्मेलन (Conference of the Parties- COP) के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) लॉन्च किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) एक सदस्य-केंद्रित पहल है जिसका उद्देश्य सदस्य देशों में ऊर्जा पहुँच, सुरक्षा और संक्रमण को बढ़ाने के लिये सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी तैनाती को बढ़ावा देना है।

और पढ़े: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)


प्रारंभिक परीक्षा

ग्लिसे 12 b पृथ्वी के निकट संभावित रूप से निवासनीय एक्सोप्लैनेट

स्रोत: डाउन टू अर्थ

NASA ने पृथ्वी से सिर्फ 40 प्रकाश वर्ष दूर स्थित, पृथ्वी के आकार के संभावित रहने योग्य ग्लिसे 12 b नामक एक्सोप्लैनेट की खोज की घोषणा की है, इस संदर्भ में यह हमारे सौरमंडल के सबसे करीबी ज्ञात संभावित रहने योग्य ग्रहों में से एक है।

  • ग्लिसे 12 b का औसत सतही तापमान 42 डिग्री सेल्सियस है, जो अब तक खोजे गए लगभग 5,000 या उससे ज़्यादा एक्सोप्लैनेट में से अधिकांश से कम है।
    • यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से थोड़ा छोटा है तथा इसका आकार शुक्र के बराबर है।
  • ग्लिसे 12b एक सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट है जो हर 12.8 दिनों में M-टाइप (लाल बौना) तारे, ग्लिसे 12 की परिक्रमा करता है। इस तारे के कुल सात ग्रह हैं, जो लगभग पृथ्वी के आकार के होने के साथ संभवतः चट्टानी हैं।
    • ग्लिसे 12 की परिक्रमा करने वाले तीन ग्रह निवासनीय ज़ोन (एक तारे से वह दूरी जिस पर ग्रहों की सतहों पर तरल अवस्था में जल मौज़ूद हो सकता है) के अंतर्गत आते हैं।
    • इस तारे में धातुओं का अभाव है, जिससे पता चलता है कि इसमें पृथ्वी की तुलना में क्षीण चुंबकीय क्षेत्र होने के साथ ज्वालामुखीय क्षेत्र प्रबल हो सकता है, जो ग्लिसे 12b के वातावरण को बनाए रखने में सहायक हो सकता है।
  • नासा के ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) ने ग्लिसे 12 b की शुरुआती पहचान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के साथ आगे के अवलोकन और विश्लेषण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

और पढ़ें: एक्सोप्लैनेट


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