रैपिड फायर
Z-मोड़ सुरंग
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
श्रीनगर-सोनमर्ग राजमार्ग पर स्थित रणनीतिक बुनियादी ढाँचा परियोजना Z-मोड़ सुरंग में आतंकवादी हमले में सात लोगों की मृत्यु हो गई। जम्मू-कश्मीर में किसी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजना पर यह पहला आतंकवादी हमला है।
Z-मोड़ सुरंग:
- यह 6.4 किलोमीटर लंबी सुरंग है, जिसका उद्देश्य श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सोनमर्ग को सभी मौसम में संपर्क प्रदान करना है ।
- मूल रूप से इसकी योजना वर्ष 2012 में सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) द्वारा बनाई गई थी। बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (National Highways & Infrastructure Development Corporation Limited- NHIDCL) द्वारा एक निजी कंपनी को पुनः निविदा दी गई।
सामरिक महत्त्व:
- सुरंग का निर्माण ऐसे क्षेत्र में किया जा रहा है जहाँ हिमस्खलन की आशंका रहती है, जिससे शीतकाल में अधिकांश समय सोनमर्ग तक जाने वाली सड़क पर आवागमन असंभव हो जाता है।
- यह बड़ी ज़ोजिला सुरंग परियोजना का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और लद्दाख तक सभी मौसम में संपर्क के लिये आवश्यक है, जिससे सैन्य कर्मियों को लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों तक त्वरित पहुँच की सुविधा मिलती है।
- यह संपर्क पाकिस्तान सीमा के पास तैनात भारतीय रक्षा बलों और पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के खिलाफ तैनाती के लिये महत्त्वपूर्ण है।
प्रारंभिक परीक्षा
चेंचू जनजाति
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
आंध्र प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत चेंचू विशेष परियोजना के बंद होने के परिणामस्वरूप चेंचू जनजाति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है जिससे उनकी आजीविका, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
चेंचू कौन हैं?
- चेंचू (जिसे 'चेंचुवारु' या 'चेंचवार' भी कहा जाता है) संख्यात्मक रूप से ओडिशा की सबसे छोटी अनुसूचित जनजाति है।
- उनकी पारंपरिक जीवनशैली शिकार और भोजन संग्रहण पर आधारित रही है।
- उन्हें सबसे पुरानी तेलुगु भाषी जनजातियों में से एक माना जाता है।
- ये आंध्र प्रदेश के 12 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में से एक हैं जो कम साक्षरता और विकास तक सीमित पहुँच वाली जनजातियों को दिया गया वर्गीकरण है।
- ये मुख्य रूप से वन क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें नल्लामालाई वन और आसपास के क्षेत्र शामिल हैं, तथा यह अपनी आजीविका के लिये वनोपज पर निर्भर होते हैं।
PVTGs के लिये प्रमुख पहल
मनरेगा क्या है?
- परिचय:
- यह ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया विश्व का सबसे बड़ा रोज़गार गारंटी कार्यक्रम है।
- यह प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को (जो वैधानिक न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हों) सौ दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- कार्य करने का विधिक अधिकार:
- पूर्ववर्ती रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत, इस अधिनियम का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से गरीबी के दीर्घकालिक कारणों का समाधान करना है।
- इसके लाभार्थियों में कम से कम एक तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मजदूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मजदूरी के अनुसार मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर:(b) प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (2021) (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) |
प्रारंभिक परीक्षा
पर्यावरण जहाज़ सूचकांक और मोरमुगाओ पत्तन
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गोवा का मोरमुगाओ पत्तन प्राधिकरण (MPA) हाल ही में हरित श्रेय कार्यक्रम के तहत पर्यावरण जहाज़ सूचकांक (ESI) में सूचीबद्ध पहला भारतीय पत्तन बन गया है
- इसे अंतर्राष्ट्रीय पत्तन एवं पत्तन संघ (IAPH) द्वारा स्वीकार किया गया।
- इसके साथ ही सरकार प्रमुख पत्तनों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिये उनके निकट अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनलों (IWTs) के विकास को सीमित करने की योजना बना रही है।
पर्यावरण जहाज़ सूचकांक (ESI) क्या है?
- परिचय: यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे जहाज़ो के पर्यावरणीय प्रदर्शन के आधार पर उनका मूल्यांकन करने और उन्हें पुरस्कृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- ESI के तहत उन समुद्री जहाज़ों की पहचान होती है जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के अनुसार वर्तमान उत्सर्जन मानकों की तुलना में वायु उत्सर्जन को कम करने में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
- IMO की वर्ष 2023 की ग्रीनहाउस गैस (GHG) रणनीति में वर्ष 2030 तक अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की कार्बन तीव्रता में कम से कम 40% की कमी लाने की परिकल्पना की गई है।
- ESI के तहत उन समुद्री जहाज़ों की पहचान होती है जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के अनुसार वर्तमान उत्सर्जन मानकों की तुलना में वायु उत्सर्जन को कम करने में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
- ESI की उत्पत्ति: ESI पहल 1 जनवरी 2011 को शुरू हुई और तब से इसका डेटाबेस अंतर्राष्ट्रीय पत्तन और पत्तन संघ (IAPH) के प्रशासन के अधीन है।
- मूल्यांकन मानदंड: इसमें जहाज़ों द्वारा उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और सल्फर ऑक्साइड (SOx) के उत्सर्जन का आकलन किया जाता है।
- इस सूचकांक में जहाज़ों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के संदर्भ में एक रिपोर्टिंग योजना शामिल है।
- ESI की मुख्य विशेषताएँ:
- पत्तन-केंद्रित प्रणाली: इसे पत्तनों से पत्तनों तक की प्रणाली के रूप में विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है।
- स्वैच्छिक भागीदारी: इसमें जहाज़ मालिकों को स्वैच्छिक आधार पर अपने जहाज़ों के पर्यावरणीय प्रदर्शन को प्रदर्शित करने की अनुमति दी गई है।
- प्रयोज्यता: यह आकार या कार्य से परे सभी प्रकार के समुद्री जहाज़ों पर प्रभावी हो सकता है।
- स्वचालित गणना: इसकी गणना और रखरखाव स्वचालित रूप से किया जाता है।
- प्रोत्साहन: पत्तन और प्राधिकारी उच्च ESI स्कोर वाले जहाज़ों को कम पत्तन शुल्क या प्राथमिकता बर्थिंग जैसे प्रोत्साहन दे सकते हैं।
मोरमुगाओ पत्तन प्राधिकरण (MPA)
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: मोरमुगाओ पत्तन वर्ष 1888 में शुरू किया गया था।
- गोवा में खनन के एक प्रमुख उद्योग के रूप में उभरने के साथ, मोरमुगाओ पत्तन को लौह अयस्क टर्मिनल के रूप में विकसित किया गया।
- प्रमुख पत्तन का पदनाम: मोरमुगाओ पत्तन को वर्ष 1964 में एक प्रमुख पत्तन घोषित किया गया था।
- लौह अयस्क पारगमन में वृद्धि (विशेष रूप से औद्योगिक पुनर्निर्माण के दौरान जापान की मांग के कारण) मोरमुगाओ पत्तन के विकास में प्रमुख सहायता मिली।
- रणनीतिक विकास योजनाएँ: वर्ष 1965 में लौह अयस्क बाज़ार में ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रतिस्पर्द्धा एवं गहरे जल तक पहुँच और उच्च क्षमता वाली लोडिंग के लिये मोरमुगाओ पत्तन को विकसित करने के क्रम में एक परिप्रेक्ष्य योजना की शुरुआत की गई थी।
- हरित परिवर्तन: हरित श्रेय कार्यक्रम (जिसके तहत उन जहाज़ों को पत्तन शुल्क पर छूट प्रदान की जाती है जो हरित ईंधन का उपयोग करते हैं और जिनसे नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा सल्फर ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता है) को अक्टूबर 2023 में शुरू किया गया था।
अंतर्देशीय जलमार्गों पर विकास:
- राष्ट्रीय जलमार्ग (NW) का विस्तार: भारत 111 राष्ट्रीय जलमार्ग (NW) विकसित कर रहा है जो 20,000 किलोमीटर से अधिक लंबा होगा।
- अंतर्देशीय जल परिवहन केंद्रों की वर्तमान स्थिति: वर्तमान में लगभग 50 अंतर्देशीय जल परिवहन केंद्र कार्यरत हैं।
- कार्गो यातायात वृद्धि: वित्त वर्ष 2013-14 से, अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से परिवहन किये जाने वाले कार्गो यातायात में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है, वित्त वर्ष 2014-15 में कुल यातायात 29.16 मिलियन टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 133.03 मिलियन टन हो गया है।
- प्रभावी लक्ष्य: समुद्री भारत विज़न 2030 और समुद्री अमृत काल विज़न 2047 के तहत, सरकार का अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से वस्तुओं के यातायात को 2030 तक 200 मिलियन टन और वर्ष 2047 तक 500 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सार्वजनिक परिवहन में बसों के लिये ईंधन के रूप में हाइड्रोजन समृद्ध CNG (H-CNG) के उपयोग के प्रस्तावों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
प्रारंभिक परीक्षा
प्रेसिज़न मेडिसिन और बायोबैंक
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
प्रेसिज़न मेडिसिन या व्यक्तीकृत चिकित्सा व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा के एक नए युग की शुरुआत कर रही है। वैज्ञानिकों द्वारा मानव जीनोम परियोजना (HGP) को पूरा करने के बाद इस क्षेत्र ने एक नया आकार लेना शुरू कर दिया।
- अब इसमें कैंसर, दीर्घकालिक, प्रतिरक्षा, हृदय और यकृत जैसे रोगों के निदान और उपचार के लिये जीनोमिक्स को शामिल किया गया है।
नोट:
- भारतीय जनसंख्या की अद्वितीय आनुवंशिक विविधता को स्वीकार करते हुए, HGP का लक्ष्य देश भर के सभी प्रमुख जातीय समुदायों के 10,000 स्वस्थ व्यक्तियों के संपूर्ण जीनोम को अनुक्रमित करके विभिन्न भारतीय समूहों के बीच आनुवंशिक विविधताओं की पहचान करना और उन्हें सूचीबद्ध करना है।
प्रेसिज़न मेडिसिन क्या है?
- परिचय:
- यह रोगों के उपचार और निराकरण के लिये एक नवीन रणनीति है जो आनुवांशिकी, पर्यावरण और जीवनशैली में व्यक्तिगत अंतर पर केंद्रित है।
- यह सभी के लिये एक ही दृष्टिकोण अपनाने के बजाय प्रत्येक रोगी की विशिष्ट विशेषताओं के अनुसार चिकित्सा देखभाल उपलब्ध कराने पर ज़ोर देती है।
- यह विधि स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्त्ताओं को अधिक सटीक रूप से यह पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बनाती है कि कौन से उपचार और निवारक उपाय विशिष्ट व्यक्तियों के समूह के लिये प्रभावी हैं।
- बायोबैंक की भूमिका:
- बायोबैंक शोध के लिये जैविक नमूने (जैसे, DNA, कोशिकाएँ, ऊतक) संग्रहीत करते हैं। व्यापक आबादी को लाभ पहुँचाने के लिये प्रेसिज़न मेडिसिन के लिये उनकी विविधता महत्त्वपूर्ण है।
- बायोबैंक डेटा का उपयोग करके हाल के अध्ययनों से अज्ञात दुर्लभ आनुवंशिक विकारों की पहचान करने में मदद मिली है।
उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका:
- जीन संपादन: CRISPR जैसी तकनीकों ने आनुवंशिक दोषों के निराकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे पहले से उपचार न किये जा सकने वाली स्थितियों के लिये संभावित उपचार उपलब्ध हो गया है।
- mRNA थेरेप्यूटिक्स: कोविड -19 महामारी ने mRNA तकनीक की शक्ति को प्रदर्शित किया, जिससे वैक्सीन का तेज़ी से विकास संभव हुआ। इस अभिनव दृष्टिकोण ने आधुनिक चिकित्सा में इसके महत्त्व को उज़ागर किया जिसके लिये इसे नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
भारत में प्रेसिज़न मेडिसिन और बायोबैंक की स्थिति क्या है?
- बाज़ार वृद्धि:
- भारतीय प्रेसिज़न मेडिसिन बाज़ार के 16% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है, जो वर्ष 2030 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
- वर्तमान में, यह राष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था का 36% हिस्सा है, जिसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी, जीन एडिटिंग और बायोलॉजिक्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- भारतीय प्रेसिज़न मेडिसिन बाज़ार के 16% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है, जो वर्ष 2030 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
- नीति विकास:
- प्रेसिज़न मेडिसिन विज्ञान की उन्नति को नई 'बायोई 3' नीति में शामिल किया गया है।
- इसका उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में जैव-आधारित उत्पादों का उत्पादन शामिल है।
- प्रेसिज़न मेडिसिन विज्ञान की उन्नति को नई 'बायोई 3' नीति में शामिल किया गया है।
- हालिया स्वीकृतियाँ और विकास:
- वर्ष 2023 में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा भारत की घरेलू रूप से विकसित CAR-T सेल थेरेपी, NexCAR19 को मंजूरी दी गई।
- वर्ष 2024 में, सरकार ने IIT बॉम्बे में CAR-T सेल थेरेपी के लिये एक समर्पित केंद्र भी स्थापित किया।
- वर्ष 2023 में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा भारत की घरेलू रूप से विकसित CAR-T सेल थेरेपी, NexCAR19 को मंजूरी दी गई।
- भारत में बायोबैंक की स्थिति:
- जीनोम इंडिया कार्यक्रम: 'जीनोम इंडिया' कार्यक्रम ने 99 जातीय समूहों के 10,000 जीनोमों की अनुक्रमणिका पूरी की, जिसका उद्देश्य अन्य लक्ष्यों के अलावा दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के उपचार की पहचान करना था।
- फेनोम इंडिया परियोजना: अखिल भारतीय 'फेनोम इंडिया' परियोजना ने कार्डियो-मेटाबोलिक रोगों के लिये पूर्वानुमान मॉडल को बढ़ाने हेतु 10,000 नमूने एकत्र किये हैं।
- बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिकी पर मिशन (PRaGeD) कार्यक्रम: इस मिशन का उद्देश्य बच्चों को प्रभावित करने वाले आनुवंशिक रोगों के लिये लक्षित चिकित्सा विकसित करने हेतु नए जीन या वेरिएंट की पहचान करना है।
- विनियामक चुनौतियाँ: भारत में बायोबैंकिंग विनियमन, प्रेसिज़न मेडिसिन की पूरी क्षमता को साकार करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- ब्रिटेन, अमेरिका, जापान और कई यूरोपीय देशों के विपरीत, जिनके पास बायोबैंकिंग मुद्दों (जैसे, सूचित सहमति, गोपनीयता, डेटा संरक्षण) को संबोधित करने के लिये व्यापक नियम हैं, भारत का नियामक ढाँचा असंगत है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक मानव शरीर में B कोशिकाओं और T कोशिकाओं की भूमिका का सर्वोत्तम वर्णन है? (2022) (a) वे शरीर को पर्यावरणीय प्रत्युजर्कों (एलर्जनों) से संरक्षित करती हैं। उत्तर: (d) |
रैपिड फायर
करतारपुर कॉरिडोर समझौते का नवीनीकरण
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में, भारत और पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर समझौते को वर्ष 2029 तक बढ़ा दिया है, जिससे पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारा तक भारतीय तीर्थयात्रियों की वीजा-मुक्त आवाजाही अगले पाँच वर्षों तक सुनिश्चित हो जाएगी।
- करतारपुर कॉरिडोर के बारे में:
- यह पाकिस्तान के नारोवाल ज़िले में स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारे को भारत के पंजाब प्रांत के गुरदासपुर ज़िले में स्थित डेरा बाबा नानक मंदिर से जोड़ता है।
- यह भारत में रावी नदी के पूर्वी तट पर, भारत-पाकिस्तान सीमा से लगभग 1 कि.मी. दूर स्थित है।
- इसका निर्माण 12 नवंबर, 2019 को गुरु नानक देव की 550वीं जयंती समारोह के उपलक्ष्य में किया गया था।
- गुरु नानक देव:
- वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
- उनका जन्म वर्ष 1469 में उस स्थान पर हुआ था जिसे अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब कहा जाता है।
- उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' स्वरूप का समर्थन किया। उन्होंने बलि, अनुष्ठान, मूर्ति पूजा, तपस्या और हिंदू तथा मुस्लिम दोनों के धर्मग्रंथों को अस्वीकार किया।
और पढ़ें: SCO शिखर सम्मेलन, 2024
रैपिड फायर
जंपिंग स्पाइडर की नई प्रजाति
स्रोत: द हिंदू
अराक्नोलॉजिस्टों (मकड़ियों और अन्य एराक्निडों का अध्ययन करने वाले) की एक टीम ने 'टेनकाना' नामक कूदने वाली मकड़ियों (Jumping Spiders) की एक नई प्रजाति की पहचान की है, जो पूरे दक्षिण भारत में पाई जाती है।
- इन्होंने कर्नाटक में भी एक नई प्रजाति (तेनकना जयमंगली) की खोज की।
- इसका नाम कर्नाटक में जयमंगली नदी के नाम पर रखा गया है, जहाँ इसे पहली बार देखा गया था।
- तेनकाना मकड़ी:
- यह नया समूह कूदने वाली मकड़ियों की प्लेक्सिपिना उप-जनजाति से संबंधित है और यह हाइलस और टेलामोनिया जैसे संबंधित समूहों से अलग है।
- इस जीनस का नाम तेनकना, कन्नड़ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है "दक्षिण"। जिससे इस बात पर प्रकाश पड़ता है कि इसकी सभी ज्ञात प्रजातियाँ दक्षिण भारत और उत्तरी श्रीलंका की स्थानिक हैं।
- तेनकाना मकड़ियाँ शुष्क वातावरण हेतु अनुकूल हैं।
- इन्हें तमिलनाडु, पुदुचेरी, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में खोजा गया है।
- दो प्रजातियाँ (जो पहले कोलोपसस जीनस के अंतर्गत वर्गीकृत थीं- दक्षिण भारत और श्रीलंका में पाई जाने वाली तेनकाना मनु तथा कर्नाटक में पाई जाने वाली तेनकाना अर्कावती) को नव स्थापित तेनकाना जीनस में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
- यह नया समूह कूदने वाली मकड़ियों की प्लेक्सिपिना उप-जनजाति से संबंधित है और यह हाइलस और टेलामोनिया जैसे संबंधित समूहों से अलग है।
और पढ़ें: प्युसेटिया छापराजनिर्विन की खोज
रैपिड फायर
नए दिव्यांगता प्रमाण-पत्र संबंधी नियम
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में, भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने दिव्यांगजन व्यक्तियों के अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 को अधिसूचित किया।
- प्रमाणन प्रक्रिया में परिवर्तन:
- प्राधिकारी की आवश्यकता: केवल ज़िला स्तर पर नामित चिकित्सा प्राधिकारी ही दिव्यांगता प्रमाण-पत्र जारी कर सकता है।
- कलर-कोडित UDID कार्ड: दिव्यांगजन के स्तर को दर्शाने के लिये कलर-कोडित विशिष्ट सफेद, पीले और नीले दिव्यांगता पहचान कार्ड (UDID) पेश किये गए। नीला रंग 80% या उससे अधिक दिव्यांगता स्तर को दर्शाता है।
- केवल ऑनलाइन आवेदन: नए नियमों के अनुसार दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिये ऑनलाइन आवेदन करना अनिवार्य कर दिया गया है।
- एक्सटेंडेड प्रोसेसिंग टाइम: दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी करने की अवधि एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने कर दी गई है।
- पुनः आवेदन की आवश्यकता: यदि दिव्यांगता प्रमाण पत्र आवेदन पर दो वर्ष के भीतर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो आवेदक को पुनः आवेदन करना होगा।
और पढ़ें: दिव्यांगजन व्यक्तियों को सशक्त बनाना