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भारतीय विरासत और संस्कृति

गुरु नानक जयंती

  • 30 Nov 2020
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

30 नवंबर, 2020 को भारत के राष्ट्रपति ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएँ दीं।

  • सिखों के प्रथम गुरु व सिख समुदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्मदिन गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती कार्तिक महीने में पूर्णिमा (Poornima) के दिन होती है, इस कारण इसे कार्तिक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

गुरु नानक देव:

  • जन्म: वर्ष 1469 में लाहौर के पास तलवंडी राय भोई (Talwandi Rai Bhoe) गाँव में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।
  • वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
  • योगदान:
    • गुरु नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, चिंतक एवं कवि थे।
    • इन्होंने समानता और भाईचारे पर आधारित समाज तथा महिलाओं के सम्मान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • गुरु नानक देव जी ने विश्व को 'नाम जपो, किरत करो, वंड छको' का संदेश दिया जिसका अर्थ है- ईश्वर के नाम का जप करो, ईमानदारी व मेहनत के साथ अपनी ज़िम्‍मेदारी निभाओ तथा जो कुछ भी कमाते हो उसे ज़रूरतमंदों के साथ बाँटो।
    • उन्होंने यज्ञ, धार्मिक स्नान, मूर्ति पूजा, कठोर तपस्या को नकार दिया।
    • वे एक आदर्श व्यक्ति थे, जो एक संत की तरह रहे और पूरे विश्व को 'कर्म' का संदेश दिया।
    • उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' रूप की शिक्षा दी।
    • इसके अलावा उन्होंने अपने अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया और सामूहिक पूजा (संगत) के लिये कुछ नियम बनाए।
      • उन्होंने अपने अनुयायियों को ‘एक ओंकार’ (Ek Onkar) का मूल मंत्र दिया और जाति, पंथ एवं लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने पर ज़ोर दिया।
  • मृत्यु: वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में।

आधुनिक भारत के लिये गुरु नानक देव की प्रासंगिकता:

  • एक समतावादी समाज का निर्माण: समानता का उनका विचार निम्नलिखित नवीन सामाजिक संस्थानों में देखा जा सकता है, जो उनके द्वारा शुरू किया गया था:
    • लंगर: सामूहिक खाना बनाना और भोजन को वितरित करना।
    • पंगत: उच्च एवं निम्न जाति के भेद के बिना भोजन करना।
    • संगत: सामूहिक निर्णय लेना।
  • सामाजिक सद्भाव:
    • उनके अनुसार, पूरी दुनिया ईश्वर की रचना है और सभी एक समान हैं, केवल  एक सार्वभौमिक रचनाकार है अर्थात् "एक ओंकार सतनाम" (Ek Onkar Satnam)
    • इसके अलावा क्षमा, धैर्य, संयम और दया उनके उपदेशों के मूल केंद्र हैं।
  • एक समाज का निर्माण:
    • उन्होंने अपने शिष्यों के सम्मुख ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड छको’ (काम, पूजा और साझा) का आदर्श रखा।
    • उनके धर्म का आधार कर्म के सिद्धांत पर आधारित था और उन्होंने अध्यात्मवाद के विचार को सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा में परिणत कर दिया।
    • उन्होंने ‘दशवंध’ (Dasvandh) की अवधारणा या ज़रूरतमंद व्यक्तियों को अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा दान करने की वकालत की।
  • लैंगिक समानता:
    • उनके अनुसार, ‘महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी ईश्वर की कृपा को साझा करते हैं और अपने कार्यों के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार होते हैं।
    • महिलाओं के लिये सम्मान और लैंगिक समानता शायद उनके जीवन से सीखने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक है।
  • शांति स्थापना:
    • भारतीय दर्शन के अनुसार, एक गुरु वह है जो रोशनी (अर्थात् ज्ञान) प्रदान करता है, संदेह को दूर करता है और सही रास्ता दिखाता है। इस संदर्भ में गुरु नानक देव के विचार दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
    • वर्ष 2019 में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती मनाई गई और करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया, जो भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

स्रोत: पी.आई.बी

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