उपग्रह आधारित नौसेना अनुप्रयोगों पर सहयोग के लिये समझौता ज्ञापन
हाल ही में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (ISRO) और भारतीय नौसेना के बीच समुद्र विज्ञान तथा मौसम विज्ञान में उपग्रह आधारित नौसेना अनुप्रयोगों पर डेटा साझाकरण एवं सहयोग पर समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
समझौता ज्ञापन की मुख्य विशेषताएँ:
- यह सहयोग को बढ़ाएगा और आपसी सहयोग के एक साझा मंच की शुरुआत करेगा।
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र द्वारा वैज्ञानिक प्रगति को उपग्रह डेटा पुनर्प्राप्ति और अनुप्रयोगों के क्षेत्र में तेज़ी से विकास के साथ राष्ट्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारतीय नौसेना के प्रयासों के साथ तालमेल बिठाया जाएगा।
- सहयोग में विभिन्न आयाम शामिल होंगे:
- गैर-गोपनीय अवलोकन डेटा को साझा करना।
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) से उत्पन्न मौसम संबंधी जानकारियों का सैन्य अभियानों में इस्तेमाल और नए उपकरणों के विकास, अंशांकन और ओशन मॉडल के सत्यापन के लिये उपग्रह डेटा के प्रसंस्करण हेतु विषय विशेषज्ञों (एसएमई) का प्रावधान शामिल है।
- महासागरीय मॉडलों का अंशांकन एवं सत्यापन प्रदान करना।
अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र:
- परिचय:
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का एक प्रमुख अनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
- यह अहमदाबाद में स्थित है और बहु-विषयक गतिविधियाँ करता है।
- केंद्र की मुख्य क्षमता अंतरिक्ष-जनित और वायु-जनित उपकरणों / पेलोड के विकास तथा राष्ट्रीय विकास एवं सामाजिक लाभ के लिये उनके अनुप्रयोगों में निहित है।
- ये अनुप्रयोग विविध क्षेत्रों में किये जा रहे हैं और मुख्य रूप से देश की संचार, नेविगेशन एवं रिमोट सेंसिंग आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का एक प्रमुख अनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
- उपलब्धियाँ:
- केंद्र ने इसरो के वैज्ञानिक और ग्रह मिशन जैसे- चंद्रयान -1, मार्स ऑर्बिटर मिशन आदि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- सेंटर फॉर इंडियन नेशनल सैटेलाइट (INSAT) और जियो सिंक्रोनस सैटेलाइट (GSAT) शृंखला के उपग्रहों में विकसित संचार ट्रांसपोंडर का उपयोग सरकारी एवं निजी क्षेत्र द्वारा वीसैट, डीटीएच, इंटरनेट, प्रसारण, टेलीफोन आदि के लिए किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स के लिये: प्रश्न: दूरसंचार प्रसारण हेतु प्रयुक्त उपग्रहों को भू-अप्रगामी कक्षा में रखा जाता है। एक उपग्रह ऐसी कक्षा में तब होता है जब: (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: a व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
सुपरचार्ज्ड बायोटेक राइस
हाल ही में चाइनीज़ एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ के वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि कैसे एक ट्रांसक्रिप्शनल रेगुलेटर अनाज की पैदावार को बढ़ा सकता है और चावल के तैयार होने की अवधि को कम कर सकता है।
- सुपरचार्ज्ड बायोटेक चावल की पैदावार में 40 फीसदी की वृद्धि करता है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें:
- सुपरचार्ज्ड चावल:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि चाइनीज़ चावल की एक किस्म के ज़ीन की दूसरी प्रति से उसकी उपज में 40 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
- चावल के पौधे को OsDREB1C नामक एकल जीन की दूसरी प्रति से जुड़ने से लाभ होता है क्योंकि यह प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोज़न के उपयोग को बढ़ाता है, फलने-फूलने की गति में वृद्धि करता है तथा नाइट्रोजन को अधिक प्रभावी ढंग से अवशोषित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर अधिक मात्रा में अनाज का उत्पादन होता है।
- इस परिवर्तन से पौधे को अधिक उर्वरक अवशोषित करने में मदद मिलती है, प्रकाश संश्लेषण को बढ़ावा मिलता है, और पौधे का विकास तेज़ी होता है। ये सभी अधिक फसल पैदावार में मदद कर सकते हैं।
- इसके लिये शोधकर्त्ताओं ने फिर से उसी 'देशी/मूल' जीन को जोड़ा, न कि कोई विदेशी जीन (जैसा कि BT कपास या BT सोयाबीन के मामले में किया गया)। इस तकनीक का वर्णन करने के लिये जेनेटिक मॉड्यूलेशन सबसे अच्छा शब्द है।
- जीन मोड्यूलेशन अंतर्निहित सेलुलर डीएनए में आनुवंशिक परिवर्तन किये बिना अस्थायी रूप से जीन अभिव्यक्ति के स्तर को बदलने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
- यह एक आनुवंशिक संशोधन (GM) नहीं है और न ही किसी अन्य दाता से तत्त्वों को ले जाने वाले ट्रांसजेनिक पौधे का परिणाम है।
- भारत के संदर्भ में महत्त्व:
- यह रिपोर्ट भारत के लिये विशेष रूप से प्रासंगिक है, जिसका उद्देश्य चावल के उत्पादन और विपणन में अपनी वैश्विक स्थिति को बनाए रखना है।
- भारत दुनिया भर में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसने वर्ष 2021-22 के दौरान 150 से अधिक देशों को 18.75 मिलियन मीट्रिक टन चावल का निर्यात किया, जिससे 6.11 बिलियन डॉलर की आय हुई।
- उत्पादन की दृष्टि से वियतनाम दूसरे स्थान पर है।
- आने वाले वर्षों में बढ़ती मांग को देखते हुए भारत को चावल के उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने के लिये नई रणनीति बनानी चाहिये तथा विश्व में चावल के सबसे बड़े उत्पादक एवं निर्यातक के रूप में अपनी भूमिका को विस्तारित करने के लिये यह आँकड़ा 18.75 मिलियन टन से कहीं अधिक होना चाहिये।
- कुछ शीर्ष चावल शोधकर्त्ता आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ पूरे भारत में कई प्रयोगशालाओं में आनुवंशिक इंजीनियरिंग पर काम कर रहे हैं।
- इस संबंध में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के साथ सहयोग कर सकता है तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के पोषण विशेषज्ञ इन शोधकर्त्ताओं को दुनिया में प्रमुख चावल निर्यातक के रूप में भारत की भूमिका को बढ़ाने के लिये समर्थन कर सकते हैं।
चावल की खेती के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण बिंदु
- यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) और उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है एवं वार्षिक वर्षा 100 सेमी से अधिक होनी चाहिये।
- चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों, तटीय क्षेत्रों एवं डेल्टा क्षेत्रों में उगाया जाता है।
- चावल उत्पादन के लिये गहरी चिकनी और दोमट मृदा आदर्श मानी जाती है।
- चावल के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
- अधिक चावल की उपज वाले राज्य हैं- पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
- दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु की स्थिति के चलते एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलों की खेती की जाती है।
- असम, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में एक वर्ष में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं; ये हैं 'औस', 'अमन और 'बोरो'।
- अधिक चावल की उपज वाले राज्य हैं- पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
- यह अधिकांश भारतीय लोगों की मुख्य खाद्य फसल है।
- भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में कुल फसली क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई चावल की खेती के अंतर्गत आता है।
- चावल की खेती का समर्थन करने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना कुछ सरकारी पहलें हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2013)
इनमें से कौन-सी खरीफ फसलें हैं? (a) केवल 1 और 4 उत्तर: (c) |
स्रोत: द हिंदू
सूखा सहिष्णु फसल
हाल ही में, एक अध्ययन में यह उल्लेख किया गया है कि "पोर्टुलाका ओलेरेशिया" (Portulaca Oleracea) नामक एक सामान्य खरपतवार जिसे आमतौर पर पर्सलेन (कुल्फा) के रूप में जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन से घिरे विश्व में सूखा-सहिष्णु फसलों के उत्पादन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
- येल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिये दो चयापचय मार्गों को एकीकृत किया जो खरपतवार को अत्यधिक 'उत्पादक' रखते हुए सूखे का सामना करने में सक्षम बनाता है।
पर्सलेन (कुल्फा)
- परिचय:
- पर्सलेन (कुल्फा) में विकासवादी अनुकूलन हैं जो इसे अत्यधिक उत्पादक और सूखा सहिष्णु बनाता है।
- यह अधिकतर वार्षिक खरपतवार है, लेकिन यह उष्णकटिबंधों में बारहमासी हो सकता है।
- तने चिकने, मांसल, बैंगनी-लाल, हरे रंग के होते हैं जो एक मुख्य जड़ से उत्पन्न होते हैं और सपाट चटाई की भाँति फैलते हैं।
- वितरण:
- यह समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुतायत से पाया जाता है, हालाँकि यह उष्णकटिबंधीय तथा उच्च अक्षांशों की ओर भी विस्तृत हो रहा है।
- आवास:
- यह खेतों, बगीचों, अंगूर-वाटिका, लॉन, सड़कों के किनारे, टिब्बा, समुद्र तट, नमक दलदल, अपशिष्ट क्षेत्रों, ढलानों, झालरों और नदी के किनारों पर पाया जाता है।
- प्रभावित प्रजातियाँ:
- यह कई क्षेत्रों में फसल संसाधनों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है, विशेष रूप से वे प्रजातियाँ जो अंकुरित हो रही हैं।
- प्रभावित फसलों में शामिल हैं: शतावरी, लाल चुकंदर, अजवाइन, क्रूस, कपास, मक्का, प्याज, आलू, चावल, सोयाबीन, गन्ना, टमाटर और गेहूँ।
- पारिस्थितिकी:
- इसमें अधिक प्रकाश अवधि, प्रकाश की तीव्रता, तापमान, नमी और मिट्टी के विभिन्न प्रकारों के प्रति व्यापक सहनशीलता होती है।
- बीज उन परिस्थितियों में अंकुरित होते हैं जो अंकुर की उत्तरजीविता को बढ़ाते हैं।
- प्रजाति स्व-प्रतिस्पर्द्धी है।
प्रमुख बिंदु
- प्रकाश संश्लेषण में सुधार के लिये पौधों ने स्वतंत्र रूप से विभिन्न तंत्र विकसित किये हैं, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा हरे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और जल से पोषक तत्त्वों को संश्लेषित करने के लिये सूर्य के प्रकाश का उपयोग करते हैं।
- मक्का और गन्ने ने C4 प्रकाश संश्लेषण विकसित किया, जो पौधे के उच्च तापमान पर भी उत्पादक बने रहने में सहायक है।
- रसीला जैसे कैक्टि और एगेव्स जैसे रसीले पदार्थ में एक अन्य प्रकार का CAM प्रकाश संश्लेषण होता है, जो उन्हें रेगिस्तान तथा अन्य क्षेत्रों में कम जल के साथ जीवित रहने में मदद करता है।
- C4 और CAM दोनों अलग-अलग कार्य करते हैं लेकिन नियमित प्रकाश संश्लेषण के लिये 'ऐड-ऑन' के रूप में कार्य करने हेतु एक ही जैव रासायनिक विधि का अनुसरण करते हैं।
- अध्ययन ने पर्सलेन की पत्तियों के भीतर जीन अभिव्यक्ति का स्थानिक विश्लेषण किया और पाया कि C4 तथा CAM गतिविधि पूरी तरह से एकीकृत है।
- वे एक ही कोशिकाओं में काम करते हैं, CAM प्रतिक्रियाओं के उत्पादों को C4 विधि द्वारा संसाधित किया जाता है।
- यह प्रणाली सूखे के समय C4 संयंत्र को असामान्य स्तर की सुरक्षा प्रदान करती है।
- वे एक ही कोशिकाओं में काम करते हैं, CAM प्रतिक्रियाओं के उत्पादों को C4 विधि द्वारा संसाधित किया जाता है।
C3, C4 और CAM पौधे:
- C3 चक्र:
- इसे केल्विन चक्र के नाम से भी जाना जाता है।
- यह प्रकाश संश्लेषण के अँधेरे चरण में होने वाली एक चक्रीय प्रतिक्रिया है।
- इस अभिक्रिया में CO शर्करा में परिवर्तित हो जाती है और इसलिये यह कार्बन स्थिरीकरण की प्रक्रिया है।
- केल्विन चक्र पहली बार मेल्विन केल्विन द्वारा क्लोरेला एककोशिकीय हरे शैवाल में देखा गया था। इस काम के लिये केल्विन को वर्ष 1961 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- चूँकि केल्विन चक्र में पहला स्थिर यौगिक 3 कार्बन यौगिक (3 फॉस्फोग्लिसरिक एसिड) है, चक्र को C3 चक्र भी कहा जाता है।
- C3 पौधे के उदाहरण: गेहूँ, जई, चावल, सूरजमुखी, कपास आदि।
- C4 पौधे:
- C4 पौधे एक अलग प्रकार की पत्ती की संरचना दिखाते हैं।
- क्लोरोप्लास्ट प्रकृति में द्विरूपी होते हैं। इन पौधों की पत्तियों में संवहनी बंडल बड़े पैरेन्काइमेटस कोशिकाओं के बंडल म्यान से घिरे होते हैं।
- इन बंडल म्यान कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होते हैं।
- बंडल म्यान के ये क्लोरोप्लास्ट बड़े होते हैं, इनमें ग्रेन की कमी होती है और स्टार्च के दाने होते हैं।
- मेसोफिल कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट छोटे होते हैं और उनमें हमेशा ग्रेना होता है। C4 पौधों की पत्तियों की इस अजीबोगरीब शारीरिक रचना को क्रांज एनाटॉमी कहा जाता है।
- C4 पौधों के उदाहरण: मक्का, गन्ना, ऐमारैंथस।
- CAM चक्र:
- CAM एक चक्रीय प्रतिक्रिया है जो क्रसुलासी के पौधों में प्रकाश संश्लेषण के अँधेरे चरण में होती है।
- यह एक CO2 निर्धारण प्रक्रिया है जिसमें प्रांभिक उत्पाद मैलिक अम्ल होता है।
- यह मेसोफिल कोशिकाओं में होने वाले केल्विन चक्र का तीसरा वैकल्पिक मार्ग है।
- CAM के पौधे आमतौर पर रसीले होते हैं और वे अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में विकसित होते हैं। इन पौधों में पत्तियाँ रसीली या मांसल होती हैं।
- इन पौधों में रात के समय रंध्र खुले रहते हैं और दिन के समय बंद रहते हैं।
- CAM के पौधे प्रकाश-संश्लेषण के लिये अनुकूल होते हैं और प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहते हैं।
- उदाहरण: सेडम, कलंचो, अनानस, ओपंटिया, सांप का पौधा।
- CAM एक चक्रीय प्रतिक्रिया है जो क्रसुलासी के पौधों में प्रकाश संश्लेषण के अँधेरे चरण में होती है।
स्रोत: डाउनटूअर्थ
फॉरएवर केमिकल्स
प्रिलिम्स के लिये:प्रति और पॉलीफ्लोरोआकाइल पदार्थ (PFA), फॉरएवर केमिकल्स, भस्मीकरण, सुपरक्रिटिकल वाटर ऑक्सीडेशन, प्लाज़्मा रिएक्टर। मेन्स के लिये:मानव शरीर पर पर्यावरण प्रदूषकों का प्रभाव। |
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया है कि दुनिया भर में कई स्थानों से वर्षा जल, पर एंड पॉलीफ्लोरोअल्काइल सबस्टेंस (Per- and Polyfluoroalkyl Substances-PFAs) से दूषित होता है।
- इसके अलावा वातावरण, वर्षा जल और मृदा में लंबे समय तक रहने की प्रवृत्ति के कारण उन्हें फॉरएवर केमिकल्स कहा जाता है।
- स्टॉकहोम कन्वेंशन में PFA भी सूचीबद्ध हैं।
स्टॉकहोम कन्वेंशन
- परिचय:
- यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को POPs से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है। POPs ऐसे रसायन हैं जो लंबे समय तक पर्यावरण में बरकरार रहते हैं तथा भौगोलिक तौर पर व्यापक रूप से वितरित हो जाते हैं, जीवित जीवों के वसायुक्त ऊतक में जमा हो जाते हैं एवं मनुष्यों और वन्यजीवों के लिये ज़हरीले होते हैं।
- उद्देश्य:
- सुरक्षित विकल्पों के संक्रमण का समर्थन करना।
- कार्रवाई के लिये अतिरिक्त POPs को लक्षित करना।
- POPs युक्त पुराने स्टॉकपाइल्स और उपकरण की सफाई करना।
- POP-मुक्त भविष्य के लिये मिलकर काम करना।
- भारत ने अनुच्छेद 25 (4) के अनुसार, 13 जनवरी, 2006 को स्टॉकहोम समझौते की पुष्टि की थी जिसने इसे स्वयं को एक डिफ़ॉल्ट "ऑप्ट-आउट" स्थिति में रखने के लिये सक्षम बनाया, ताकि समझौते के विभिन्न अनुलग्नकों में संशोधन तब तक लागू न हो सके जब तक कि सत्यापन/स्वीकृति/अनुमोदन या मंज़ूरी का प्रपत्र स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र के न्यासी/धरोहर स्थान (Depositary) में जमा न हो जाए।
पर एंड पॉलीफ्लोरोअल्काइल सबस्टेंस (PFAs):
- परिचय:
- वे मानव निर्मित रसायन हैं जिनका उपयोग नॉनस्टिक कुकवेयर, जल-विकर्षक कपड़े, दाग-प्रतिरोधी कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, अग्निशामक रूपों और कई अन्य उत्पादों को बनाने के लिये किया जाता है जो ग्रीस, जल तथा तेल का प्रतिरोध करते हैं।
- वे अपने उत्पादन और उपयोग के दौरान मृदा, जल एवं हवा में प्रवेश कर सकते हैं।
- अधिकांश PFAs विघटित नहीं हैं, वे लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।
- इसके अलावा इनमें से कुछ PFAs लोगों और जानवरों में बन सकते हैं यदि वे बार-बार रसायनों के संपर्क में आते हैं।
- हानिकारक प्रभाव:
- PFA के संपर्क में रहने के कारण कुछ बीमारियों के होने का ज़ोखिम बढ़ जाता है जिसमें प्रजनन क्षमता में कमी, बच्चों में विकासात्मक प्रभाव, शरीर के हार्मोन में हस्तक्षेप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि और कुछ प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
- हाल के शोध से यह भी पता चला है कि कुछ PFA के लंबे समय तक निम्न-स्तर के संपर्क में विभिन्न बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण के बाद मनुष्यों के लिये एंटीबॉडी का निर्माण करना मुश्किल हो सकता है।
- PFA के संपर्क में रहने के कारण कुछ बीमारियों के होने का ज़ोखिम बढ़ जाता है जिसमें प्रजनन क्षमता में कमी, बच्चों में विकासात्मक प्रभाव, शरीर के हार्मोन में हस्तक्षेप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि और कुछ प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
रसायनों को दूर करने के तरीके:
- भस्मीकरण:
- PFA को नष्ट करने का सबसे आम तरीका भस्मीकरण है, लेकिन अधिकांश PFA उल्लेखनीय ढंग से अग्नि-प्रतिरोधी हैं। यही कारण है कि उनका उपयोग अग्निशामक फोम में किया जाता है।
- PFA में कार्बन परमाणु से जुड़े कई फ्लोरीन परमाणु होते हैं और कार्बन एवं फ्लोरीन के बीच का बंधन सबसे मज़बूत होता है।
- सामान्यतः बंधन तोड़कर ही किसी चीज़ को जलाया जा सकता है लेकिन फ्लोरीन का कार्बन से बंधन आसानी से नहीं टूटता।
- अधिकांश PFA लगभग 1,500 डिग्री सेल्सियस (2,730 डिग्री फ़ारेनहाइट) के तापमान पर पूरी तरह से टूट जाएंगे, लेकिन यह ऊर्जा गहन है और उपयुक्त भस्मक दुर्लभ हैं।
- सुपरक्रिटिकल जल ऑक्सीकरण:
- PFA को नष्ट करने के लिये वैज्ञानिकों ने सुपरक्रिटिकल वॉटर ऑक्सीडेशन विकसित किया है।
- उच्च तापमान और दबाव के कारण रसायन विज्ञान इस कदर तेज़ हो जाता है जिससे पानी की स्थिति बदल जाती है और खतरनाक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
- PFA को नष्ट करने के लिये वैज्ञानिकों ने सुपरक्रिटिकल वॉटर ऑक्सीडेशन विकसित किया है।
- प्लाज़्मा रिएक्टर्स :
- शोधकर्त्ता प्लाज़्मा रिएक्टरों के साथ काम कर रहे हैं, जो PFA को तोड़ने के लिये पानी, बिजली और आर्गन गैस का उपयोग करते हैं।
- निस्पंदन प्रणाली:
- वर्षा जल संचयन प्रणाली में सक्रिय कार्बन के साथ निस्पंदन प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।
- सक्रिय कार्बन को नियमित रूप से हटाने और बदलने की आवश्यकता होगी। साथ ही पुरानी दूषित सामग्री को नष्ट करना होगा।
- वर्षा जल संचयन प्रणाली में सक्रिय कार्बन के साथ निस्पंदन प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।
- कई अन्य प्रयोगात्मक तकनीकें हैं जो आशाजनक हैं लेकिन बड़ी मात्रा में रसायनों के उपचार के लिये उनका उपयोग नहीं हुआ है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत के कुछ भागों में पीने के जल में प्रदूषक के रूप में पाए जाते हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मिथिला मखाना हेतु GI टैग
हाल ही में सरकार ने मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया है।
- इस कदम से उत्पादकों को उनकी प्रीमियम उपज के लिये अधिकतम मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
भौगोलिक संकेतक (GI) टैग
- परिचय:
- GI एक संकेतक है, जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली विशेष विशेषताओं वाले सामानों को पहचान प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण एवं बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
- यह विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापार-संबंधित पहलुओं का भी हिस्सा है।
- पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1 (2) और 10 के तहत यह निर्णय लिया गया और यह भी कहा गया कि औद्योगिक संपत्ति और भौगोलिक संकेत का संरक्षण बौद्धिक संपदा के तत्त्व हैं।
- यह मुख्य रूप से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) है।
- वैधता:
- भौगोलिक संकेत का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिये वैध होता है। इसे समय-समय पर 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।
- भौगोलिक संकेतक का महत्त्व:
- एक बार भौगोलिक संकेतक का दर्जा प्रदान कर दिये जाने के बाद कोई अन्य निर्माता समान उत्पादों के विपणन के लिये इसके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। यह ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के बारे में भी सुविधा प्रदान करता है।
- किसी उत्पाद का भौगोलिक संकेतक अन्य पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
- जो कानूनी सुरक्षा प्रदान करके भारतीय भौगोलिक संकेतों के निर्यात को बढ़ावा देता है और विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्य देशों को कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने में भी सक्षम बनाता है।
- GI टैग उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- यह ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के बारे में भी सुविधा प्रदान करता है।
- GI रजिस्ट्रेशन:
- GI उत्पादों के पंजीकरण की उचित प्रक्रिया है जिसमें आवेदन दाखिल करना, प्रारंभिक जाँच और परीक्षा, कारण बताओ नोटिस, भौगोलिक संकेत पत्रिका में प्रकाशन, पंजीकरण का विरोध और पंजीकरण शामिल है।
- कानून द्वारा या उसके तहत स्थापित व्यक्तियों, उत्पादकों, संगठन या प्राधिकरण का कोई भी संघ आवेदन कर सकता है।
- आवेदक को उत्पादकों के हितों का प्रतिनिधित्व करना चाहिये।
- GI टैग उत्पाद:
- कुछ प्रसिद्ध वस्तुएँ जिनको यह टैग प्रदान किया गया है उनमें बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, चंदेरी फैब्रिक, मैसूर सिल्क, कुल्लू शॉल, कांगड़ा चाय, तंजावुर पेंटिंग, इलाहाबाद सुरखा, फर्रुखाबाद प्रिंट, लखनऊ जरदोजी, कश्मीर केसर और कश्मीर अखरोट की लकड़ी की नक्काशी शामिल हैं।
मिथिला मखाना
- मिथिला मखाना या माखन (वानस्पतिक नाम: यूरीले फेरोक्स सालिसब) बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में उगाया जाने वाला एक विशेष किस्म का मखाना है।
- मखाना मिथिला की तीन प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पहचानों में से एक है।
- पान, माखन और मच्छ (मछली) मिथिला की तीन प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पहचान हैं।
- यह नवविवाहित जोड़ों के लिये मनाए जाने वाले मैथिल ब्राह्मणों के कोजागरा उत्सव में भी बहुत प्रसिद्ध है।
- मखाने में कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और फास्फोरस जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ-साथ प्रोटीन और फाइबर होता है।
GI टैग प्राप्त बिहार के अन्य उत्पाद:
- बिहार में उत्पादों की GI टैगिंग ने ब्रांड निर्माण, स्थानीय रोजगार सृजित करने, एक क्षेत्रीय ब्रांड बनाने, पर्यटन में स्पिन-ऑफ प्रभाव पैदा करने, पारंपरिक ज्ञान और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के संरक्षण और जैव विविधता के संरक्षण में मदद की है।
- बिहार के कई उत्पादों को GI टैग दिया गया है, जैसे:
- भागलपुरी जर्दालु आम
- कतरनी चावल
- मगही पत्ते (पान)
- शाही लीची
- सिलाओ खाजा (एक स्वादिष्ट व्यंजन)
- मधुबनी चित्रकला
- पिपली वर्क
- जून 2022 में, चेन्नई में भौगोलिक संकेत (GI) रजिस्ट्री ने नालंदा की 'बावन बूटी' साड़ी, गया की 'पत्थरकट्टी पत्थर शिल्प' और हाजीपुर की 'चिनिया' किस्म के केले को GI टैग प्रदान करने के प्रारंभिक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
- बिहार की तीन मिठाइयों- खुरमा, तिलकुट और बालूशाही को GI टैग देने का भी प्रस्ताव है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स: Q. निम्नलिखित में से किसे 'भौगोलिक संकेतक' का दर्जा प्रदान किया गया है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C व्याख्या:
Q. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक(पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018) (a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन उत्तर: (D) व्याख्या:
|
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हंगर स्टोन्स
हाल ही में यूरोप भयानक सूखे से ग्रस्त था, इसलिये वहाँ की नदियाँ सूख गई और हंगर स्टोन्स तल से ऊपर उदित हुए हैं।
हंगर स्टोन्स
- परिचय:
- वे मध्य यूरोप में सामान्य ‘हाइड्रोलॉजिकल मार्कर’ हैं और ‘प्री-इंस्ट्रुमेंटल’ युग के हैं।
- वे आज की पीढ़ी को पहले की भीषण पानी की कमी की याद दिलाते हैं।
- आमतौर जब नदियाँ गंभीर स्तर पर आ गईं और उसके बाद अकाल और भोजन की कमी हो गई तब यूरोप में पूर्वजों द्वारा हंगर स्टोन्स को नदियों में समाहित किया गया था।
- कई हंगर स्टोन्स पर अनूठी नक्काशी की गई है जो अगली पीढ़ी को याद दिलाना चाहते हैं कि अगर नदी का जल-स्तर इस बिंदु पर पहुँच गया तो भोजन की उपलब्धता प्रभावित होगी।
- ये स्टोन्स 15वीं से 19वीं सदी तक जर्मनी और अन्य जर्मन बस्तियों की नदियों में डूबे हुए थे।
- वे मध्य यूरोप में सामान्य ‘हाइड्रोलॉजिकल मार्कर’ हैं और ‘प्री-इंस्ट्रुमेंटल’ युग के हैं।
- शिलालेख:
- इसके अनुसार, सूखे ने खराब फसल, भोजन की कमी, उच्च कीमतों और गरीब लोगों की भूख को जन्म दिया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सकल राज्य घरेलू उत्पाद
हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद के आँकड़े जारी किये हैं।
- 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की अर्थव्यवस्थाओं ने अपने पूर्व-कोविड स्तरों को पार कर लिया है, जिसमें वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान सात रिकॉर्ड दोहरे अंकों की विकास दर दर्ज की गई है।
- इसमें गुजरात और महाराष्ट्र सहित 11 राज्यों की विकास दर वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये उपलब्ध नहीं थी।
प्रमुख निष्कर्ष:
- 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के आकार में वर्ष 2020-21 के दौरान नगण्य वृद्धि दर्ज की गई थी, जब सरकार ने कोविड -19 के प्रकोप को देखते हुए देशव्यापी लॉकडाउन लगाया था।
- ये 19 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश आंध्र प्रदेश, राजस्थान, बिहार, तेलंगाना, दिल्ली, ओडिशा, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, त्रिपुरा, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, झारखंड, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड और पुद्दुचेरी हैं।
- इन राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं (GSDP) ने वर्ष 2021-22 में पुनःप्राप्ति की और अपने पूर्व-कोविड (2019-20) स्तरों को पार कर लिया।
- वर्ष 2021-22 में केरल और उत्तर प्रदेश एकमात्र अपवाद हैं, जिनके GSDP पूर्व-कोविड स्तरों से नीचे दर्ज किये गए हैं।
- आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक 11.43 प्रतिशत जबकि पुद्दुचेरी में सबसे कम 3.31% की वृद्धि दर्ज की गई।
- आंध्र प्रदेश के अलावा पाँच अन्य राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश ने वर्ष 2021-22 में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की:
- राजस्थान:11.04%
- बिहार: 10.98%
- तेलंगाना: 10.88%
- ओडिशा: 10.19%
- मध्य प्रदेश: 10.12%
- दिल्ली: 10.23%
- कुछ राज्यों के GSDP में तेज़ उछाल आधार प्रभाव के कारण है; जो महामारी के बाद की आर्थिक सुधार को दर्शाती है।
- वर्ष 2021-22 में, भारत का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2020-21 में 6.6% संकुचन के मुकाबले 8.7% पर विस्तारित हुआ।
सकल राज्य घरेलू उत्पाद
- परिचय:
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) एक निश्चित अवधि (आमतौर पर एक वर्ष और बिना दोहराव के) के दौरान राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं की कुल मात्रा का मौद्रिक उपाय है।
- महत्त्व:
- राज्य के आर्थिक विकास को मापने के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) या राज्य की आय सबसे महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
- समय के साथ अर्थव्यवस्था के ये अनुमान आर्थिक विकास के स्तरों में परिवर्तन की सीमा और दिशा को प्रकट करते हैं।
- राज्य घरेलू उत्पाद को प्राथमिक क्षेत्र, माध्यमिक क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र जैसे तीन व्यापक क्षेत्रों के तहत वर्गीकृत किया गया है और इसे राष्ट्रीय लेखा प्रभाग, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा निर्धारित पद्धति के अनुसार आर्थिक गतिविधिवार संकलित किया जाता है।
- वर्ष 2015 में NSO ने आधार वर्ष 2011-12 (पूर्व आधार वर्ष 2004-05 था) के साथ राष्ट्रीय खातों के आँकड़ों की नई शृंखला की शुरुआत की।
- राज्य के आर्थिक विकास को मापने के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) या राज्य की आय सबसे महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015))
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22अगस्त, 2022
दही हांडी को खेल का दर्जा
हाल ही में दही हांडी को महाराष्ट्र में खेल का दर्जा दिया गया है। इसे एक तरह का एडवेंचर स्पोर्ट्स माना जाएगा। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में बताया कि दही हांडी में शामिल होने वाले गोविंदाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ, सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। गोविंदा को अब बीमा सुरक्षा भी प्रदान की जाएगी। यदि दही हांडी खेलते समय कोई दुर्घटना हो जाती है और ऐसी स्थिति में किसी गोविंदा की मृत्यु हो जाती है तो संबंधित गोविंदा के परिजनों को सहायता के रूप में 10 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। गोविंदा की दोनों आँखें या दोनों पैर या दोनों हाथ या शरीर के कोई दो महत्त्वपूर्ण अंगों पर गंभीर चोट लगने पर राज्य सरकार की ओर से उसे साढ़े सात लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। ऐसे में यदि किसी गोविंदा का हाथ, पैर या शरीर का कोई अंग ख़राब हो जाता है तो ऐसी स्थिति में उसे 5 लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। दही हांडी पर्व को मनाने के लिये मिट्टी के घड़े में दही या माखन भरकर उसे रस्सी के सहारे लटका दिया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को गोविंदा कहा जाता है। गोविंदाओं की टोली मानव पिरामिड बनाकर रस्सी के सहारे लटके दही और माखन से भरी हुई मटकी को तोड़ने का प्रयास करते हैं। दही हांडी का उत्सव भगवान कृष्ण की आराधना का एक हिस्सा है। इसके माध्यम से भगवान कृष्ण द्वारा बाल अवस्था में की गई लीलाओं और शरारतों का चित्रण किया जाता है। वर्ष 1907 में मुंबई में शुरू हुई दही हांडी की परंपरा नवी मुंबई के पास घनसोली गाँव में पिछले 104 वर्षों से चली आ रही है। दही हांडी उत्सव को देखने के लिये देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग यहाँ आते हैं।
अंतिम पंघल
हरियाणा की 17 वर्षीय अंतिम पंघल बुलगारिया के सोफिया में अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई हैं। उन्होंने 53 किलोग्राम वर्ग में कज़ाखस्तान की एटलिन शागायेवा को 8-0 से हराया। भारत के लिये यह स्वर्ण पदक ऐतिहासिक है क्योंकि भारत को अंडर-20 विश्व चैंपियनशिप की महिला कुश्ती में अभी तक कोई स्वर्ण पदक नहीं मिला था। अंतिम पंघल हरियाणा में हिसार ज़िले के भगाना गाँव की निवासी हैं। सोनम मलिक ने 62 किलोग्राम और प्रियंका ने 65 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीता। विश्व कुश्ती चैंपियनशिप संयुक्त विश्व कुश्ती द्वारा आयोजित शौकिया (Amateur) कुश्ती विश्व चैंपियनशिप हैं। पुरुषों का ग्रीको-रोमन कुश्ती टूर्नामेंट वर्ष 1904 में शुरू हुआ और पुरुषों का फ्रीस्टाइल कुश्ती टूर्नामेंट वर्ष 1951 में शुरू हुआ। महिला फ्रीस्टाइल कुश्ती टूर्नामेंट पहली बार वर्ष 1987 में आयोजित किया गया था।
इलेक्ट्रिक डबल डेकर बस
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने मुंबई में भारत की पहली एसी डबल डेकर इलेक्ट्रिक बस (Double Decker Electric Bus) का उद्घाटन किया। अशोक लीलैंड समर्थित स्विच मोबिलिटी लिमिटेड (Switch) द्वारा निर्मित इस इलेक्ट्रिक डबल-डेकर में अधिक क्षमता है और यह सिंगल-डेकर बसों की तुलना में लगभग दोगुने यात्रियों को ले जा सकती है। इलेक्ट्रिक बस में फील गुड इंटीरियर और एक्सटीरियर के साथ समकालीन स्टाइल है। सिंगल-डेकर बस की तुलना में स्विच इलेक्ट्रिक डबल-डेकर (Switch electric bus) दोगुने यात्रियों का भार वहन करने में सक्षम है, जिसमें कर्ब वेट में सिर्फ 18 प्रतिशत की वृद्धि होती है। इसमें पॉवरिंग स्विच 231 kWh क्षमता, 2-स्ट्रिंग, लिक्विड-कूल्ड, उच्च घनत्व NMC केमिस्ट्री बैटरी पैक है जिसमें डुअल गन चार्जिंग सिस्टम है। यह इलेक्ट्रिक डबल डेकर को शहर के भीतर 250 किलोमीटर की सीमा तक अनुप्रयोग के लिये सक्षम बनाता है। भारत में भविष्य में इलेक्ट्रिक बसें बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह ईंधन आयात बिल को कम करने की सरकार की पहल का समर्थन करेगी। इसके अलावा वायु प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।