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डेली न्यूज़

  • 21 Jul, 2022
  • 55 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पर्यावरण प्रभाव आकलन

प्रिलिम्स के लिये:

ईआईए अधिसूचना 2006, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रभाव आकलन ।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA ) नियमों में संशोधन को अधिसूचित किया है, जिसमें पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये कई प्रकार की छूट दी गई है।

  • किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों का आकलन (तद्नुसार कम करने) करने हेतु एक परियोजना या गतिविधि के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारियों की जाँच करने के लिये वर्ष 2006 में MoEFCC द्वारा एक नई EIA अधिसूचना जारी की गई थी जिसमे वर्ष 2016, 2020 और 2021 में संशोधन किये गए थे।

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में वर्ष 2006 में किये गए संशोधन:

  • परियोजना मंज़ूरी प्रकिया का विकेंद्रीकरण: इसके तहत विकासात्मक परियोजनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया:
    • श्रेणी ‘A’ (राष्ट्रीय स्तरीय मूल्यांकन): इन विकासात्मक परियोजनाओं का मूल्यांकन ‘प्रभाव आकलन एजेंसी’ और ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ द्वारा किया जाता है।
    • श्रेणी ‘B’ (राज्य स्तरीय मूल्यांकन): इस श्रेणी की विकासात्मक परियोजनाओं को ‘राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण’ (SEIAA) और राज्य ‘स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ (SEAC) द्वारा मंज़ूरी प्रदान की जाती है।
  • विभिन्न चरणों की शुरुआत: संशोधन के माध्यम से पर्यावरण प्रभाव आकलन में चार चरणों की शुरुआत की गई; स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, जन सुनवाई और मूल्यांकन।
    • श्रेणी ‘A’ परियोजनाओं को अनिवार्य पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, अतः इस प्रकार उन्हें स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता है।
    • श्रेणी ‘B’ परियोजनाएँ एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुज़रती हैं और उन्हें ‘B1’ (अनिवार्य रूप से पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता) तथा ‘B2’ (पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता नहीं) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • अनिवार्य मंज़ूरी वाली परियोजनाएँ: खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं तथा बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।

परियोजनाओं को छूट:

  • सामरिक और रक्षा परियोजनाएँ:
    • सामरिक और रक्षा महत्त्व की राजमार्ग परियोजनाएँ, जो नियंत्रण रेखा से 100 किमी. की दूरी पर हैं, को अन्य स्थानों की तुलना में निर्माण से पहले पर्यावरण मंज़ूरी से छूट दी जाती है।
      • सीमावर्ती राज्यों में रक्षा और सामरिक महत्त्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाएंँ प्रकृति में संवेदनशील होती हैं और इन्हें कई मामलों में रणनीतिक, रक्षा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता पर निष्पादित करने की आवश्यकता होती है।
      • रणनीतिक महत्त्व के राजमार्गों को दी जाने वाली छूट विवादास्पद चार धाम परियोजना के निर्माण के लिये हरित मंज़ूरी की आवश्यकता को समाप्त करती है, जिसमें उत्तराखंड के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री मंदिरों से कनेक्टिविटी में सुधार के लिये 899 किलोमीटर सड़कों को चौड़ा करना शामिल है। .
        • फिलहाल मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायलय में चल रही है, जिसने मामले की जांँच के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है।
  • बायोमास आधारित विद्युत संयंत्र:
    • कोयला, लिग्नाइट या पेट्रोलियम उत्पादों जैसे सहायक ईंधन का उपयोग करने वाले उन बायोमास या गैर-खतरनाक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट पर आधारित 15 मेगावाट तक के ताप विद्युत संयंत्रों को भी छूट दी गई है जब तक कि ईंधन मिश्रण पर्यावरण के अनुकूल है।
  • मत्स्य प्रबंधन वाले बंदरगाह और डॉकयार्ड:
    • अन्य की तुलना में कम प्रदूषण, मत्स्य प्रबंधन तथा छोटे मछुआरों की ज़रूरतों को पूरा करने वाले बंदरगाहों और डॉकयार्डों को पर्यावरण मंज़ूरी से छूट दी गई है।
  • टोल प्लाज़ा:
    • टोल प्लाज़ा जिन्हें बड़ी संख्या में वाहनों की आवाजाही के लिये टोल संग्रह बूथों की स्थापना हेतु अधिक चौड़ाई वाले स्थान की आवश्यकता होती है और मौजूदा हवाई अड्डे, जिन्हें टर्मिनल बिल्डिंग विस्तार से संबंधित गतिविधियों की आवश्यकता होती है, हवाई अड्डों के मौजूदा क्षेत्र में वृद्धि के बिना (रनवे आदि के विस्तार के अतिरिक्त) दो अन्य परियोजनाओं को छूट दी गई है।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन:

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को किसी परियोजना से संबंधित निर्णय लेने से पूर्व पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • लक्ष्य:
    • परियोजना नियोजन और डिज़ाइन के प्रारंभिक चरण में पर्यावरणीय प्रभावों की भविष्यवाणी करना, प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के तरीके और साधन खोजना, परियोजनाओं को स्थानीय पर्यावरण के अनुरूप आकार देना तथा निर्णय निर्माताओं के लिये विकल्प प्रस्तुत करना।
  • प्रक्रिया:
    • स्क्रीनिंग: EIA का पहला चरण, जो यह निर्धारित करता है कि प्रस्तावित परियोजना के लिये EIA की आवश्यकता है या नहीं और यदि है तो मूल्यांकन के किस स्तर की आवश्यकता होगी।
    • स्कोपिंग: यह चरण उन प्रमुख मुद्दों एवं प्रभावों का निर्धारण करता है जिनकी आगे जाँच की जानी चाहिये। यह चरण अध्ययन की सीमा तथा समय-सीमा को भी परिभाषित करता है।
    • प्रभाव विश्लेषण: EIA का यह चरण प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव का निर्धारण एवं पूर्वानुमान प्रदान करता है तथा महत्त्व का मूल्यांकन करता है।
    • मिटिगेशन: EIA का यह कदम विकास गतिविधियों के संभावित प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने तथा उनसे बचने के लिये कार्यों की संस्तुति करता है।
    • रिपोर्टिंग: यह चरण निर्णय निर्माण निकाय एवं अन्य इच्छुक पक्षकारों की रिपोर्ट के रूप में EIA के परिणाम प्रस्तुत करता है।
    • जन सुनवाई: EIA रिपोर्ट के पूरा होने पर परियोजना स्थल के करीब रहने वाले सार्वजनिक और पर्यावरण समूहों को सूचित किया जा सकता है तथा उनसे परामर्श किया जा सकता है।
    • EIA की समीक्षा: यह EIA रिपोर्ट की पर्याप्तता एवं प्रभावशीलता की जाँच करती है तथा निर्णय निर्माण के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करती है।
    • निर्णय लेना: यह इस बात को निर्धारित करता है कि परियोजना को अस्वीकार कर दिया गया है, स्वीकृत किया गया है अथवा इसमें और परिवर्तनों की आवश्यकता है।
    • निगरानी के बाद: परियोजना के प्रारंभ होने के पश्चात् यह चरण अस्तित्व में आता है जो यह सुनिश्चित करने के लिये जाँच करता है कि परियोजना के प्रभाव कानूनी मानकों से अधिक नहीं हैं एवं शमन उपायों का कार्यान्वयन EIA रिपोर्ट में वर्णित तरीके से हुआ है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

गोल 2.0

प्रिलिम्स के लिये:

गोल कार्यक्रम, डिजिटल प्रौद्योगिकी, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, ई-स्किल इंडिया पोर्टल, समग्र शिक्षा

मेन्स के लिये:

भारतीय समाज के लिये डिजिटल सशक्तीकरण का महत्त्व, संबंधित सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्रालय और मेटा (पूर्व में फेसबुक) ने गोल प्रोग्राम (GOAL 2.0) का दूसरा चरण शुरू किया है।

GOAL कार्यक्रम:

  • GOAL (गोइंग ऑनलाइन एज़ लीडर्स) कार्यक्रम को मई 2020 में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था और यह दिसंबर 2021 में पूरा हुआ।
  • इसका उद्देश्य मेंटॉर (सलाहकार या प्रशिक्षण देने वाला) और मेंटी (प्रशिक्षु) की अवधारणा के माध्यम से जनजातीय युवाओं व महिलाओं का डिजिटल सशक्तीकरण करना है।
  • यह कार्यक्रम पूरी तरह से मेटा (फेसबुक इंडिया) द्वारा वित्तपोषित है।
  • इस चरण में प्रशिक्षुओं को तीन पाठ्यक्रम आधारों में प्रशिक्षण प्रदान किया गया था।
    • संचार व जीवन कौशल
    • डिजिटल उपस्थिति को सक्षम बनाना
    • नेतृत्व व उद्यमिता

GOAL 2.0:

  • परिचय:
    • GOAL 2.0 कार्यक्रम जनजातीय समुदाय के सभी लोगों के लिये खुला है।
      • चरण- I में एक प्रशिक्षक को दो प्रशिक्षकों से जोड़कर ऑनलाइन डिजिटल मेंटरशिप प्रदान की गई।
  • उद्देश्य:
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य फेसबुक लाइव सत्र और एक डिजिटल शिक्षण उपकरण- मेटा बिज़नेस कोच के माध्यम से जनजातीय युवाओं के कौशल को बढ़ाना और उन्हें डिजिटल रूप में सक्षम बनाना है।
    • 50,000 वन धन स्वंय सहायता समूहों के 10 लाख से अधिक सदस्यों पर विशेष फोकस रहेगा।
      • उन्हें अपने उत्पादों की बाज़ार मांग, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और विपणन के संबंध में डिजिटल रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा।
    • GOAL 2.0 के तहत विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग विशेषज्ञों द्वारा क्रमिक सत्रों के आधार पर प्रशिक्षुओं की आवश्यकताओं के अनुरूप चैटबॉट के प्रावधान के साथ जनजातीय युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ताकिें वे अधिकतम भागीदारी के साथ लाभान्वित हो सकें।
  • शामिल एजेंसियाँ:
    • इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समन्वय से जनजातीय कार्य मंत्रालय इस कार्यक्रम के तहत चुने गए 175 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में से प्रत्येक में 6 डिजिटल कक्षाएँ संचालित करेगा।
    • यह परियोजना ERNET की ओर से कार्यान्वित की जा रही है जो इलेक्ट्रॉनिकी एवं और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeITY) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।

कौशल विकास के लिये कुछ अन्य पहलें:

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):
    • स्किल इंडिया मिशन के तहत कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) इस योजना को लागू कर रहा है।
    • PMKVY 3.0 के तहत डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं उद्योग 4.0 पर कौशल विकास हेतु भी ध्यान दिया गया है।
    • क्षेत्र कौशल परिषदों (SSC) ने नई और उभरती डिजिटल तकनीकों व उद्योग 4.0 कौशल जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) में भी रोज़गार का सृजन किया है।
  • ई-स्किल इंडिया पोर्टल:
    • MSDE के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) ने eSkill India पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन कौशल कार्यक्रम शुरू किया है।
    • यह मंच साइबर सुरक्षा, ब्लॉकचेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग, प्रेडिक्टिव मॉडलिंग, सांख्यिकीय व्यापार विश्लेषिकी, क्लाउड तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर सीखने का अवसर प्रदान करता है, साथ ही डिज़ाइन विधि, परियोजना प्रबंधन और डिजिटल मार्केटिंग जैसे पेशेवर कौशल भी प्रदान करता है।
  • समग्र शिक्षा:
    • 'समग्र शिक्षा' के व्यावसायिक शिक्षा घटक के तहत आने वाले स्कूलों में कक्षा 9वीं से 12वीं तक के आदिवासी छात्रों सहित स्कूली छात्रों के लिये राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के अनुरूप व्यावसायिक पाठ्यक्रम पेश किये जाते हैं।
    • इसमें संचार कौशल, स्व-प्रबंधन कौशल, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी कौशल, उद्यमिता कौशल एवं हरित कौशल शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

MSP और प्राकृतिक खेती पर सरकारी पैनल

प्रिलिम्स के लिये:

प्राकृतिक खेती, कृषि विपणन प्रणाली, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)।

मेन्स के लिये:

प्राकृतिक खेती और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और प्राकृतिक खेती संबंधी मुद्दों को देखने के लिये पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

समिति के गठन का उद्देश्य:

  • इसका गठन प्रधानमंत्री द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करन की घोषणा के बाद किया गया था।
  • विरोध कर रहे किसानों द्वारा स्वामीनाथन आयोग के 'C2+50% फॉर्मूले' के आधार पर MSP को लेकर कानूनी गारंटी की मांग की गई थी।
    • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि MSP में सरकार को उत्पादन की औसत लागत के कम-से-कम 50% की वृद्धि करनी चाहिये। इसे C2+50% सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसमें किसानों को 50% प्रतिफल/रिटर्न देने के लिये पूंजी पर अध्यारोपित लागत एवं भूमि पर लगान (जिसे ’C2’ कहा जाता है) को भी शामिल किया गया है।
  • यह तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग के अतिरिक्त था :
    • किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020
    • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण व संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020
    • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020

समिति की भूमिका:

  • MSP पर:
    • यह घरेलू उत्पादन और निर्यात का लाभ उठाकर किसानों को उनकी उपज के लाभकारी मूल्य के माध्यम से उच्च मूल्य सुनिश्चित करने हेतु देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार कृषि विपणन प्रणाली के लिये कार्य करेगी।
    • व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाकर देश के किसानों को MSP उपलब्ध कराने के लिये सुझाव देना।
    • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) को अधिक स्वायत्तता देने के लिये सुझाव देना तथा इसे और अधिक वैज्ञानिक बनाने के उपाय करना।
  • प्राकृतिक खेती:
    • भारतीय प्राकृतिक कृषि प्रणाली के तहत मूल्य शृंखला विकास, प्रोटोकॉल सत्यापन और भविष्य की ज़रूरतों के लिये अनुसंधान तथा क्षेत्र विस्तार हेतु सहयोग कार्यक्रमों एवं योजनाओं का सुझाव प्रदान करेगी।
    • इसके अलावा प्रचार के माध्यम से और किसान संगठनों की भागीदारी एवं योगदान के माध्यम से भारतीय प्राकृतिक कृषि प्रणाली के तहत क्षेत्र के विस्तार के लिये समर्थन को बढ़ावा देना।
  • फसल विविधीकरण:
    • यह उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों में कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों के मौजूदा फसल पैटर्न की जाँच एवं मानचित्रण करेगा।
    • देश की बदलती ज़रूरतों के अनुसार फसल पैटर्न को बदलने के लिये विविधीकरण नीति दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):

  • परिचय:
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कृषि कीमतों में किसी भी तेज़ गिरावट के खिलाफ कृषि उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा बाज़ार में हस्तक्षेप का एक रूप है।
    • कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर कुछ फसलों के लिये बुवाई के मौसम की शुरुआत में भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है।
    • वर्तमान में सरकार 23 फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है।
    • MSP द्वारा कवर की जाने वाली फसलों में शामिल हैं:
      • 7 प्रकार के अनाज (धान, गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ)।
      • 5 प्रकार की दालें (चना, अरहर/तूर, उड़द, मूँगऔर मसूर)।
      • 7 तिलहन (रेपसीड-सरसों, मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजरसीड)।
      • 4 व्यावसायिक फसलें (कपास, गन्ना, खोपरा, कच्चा जूट)।
  • उद्देश्य:
    • MSP भारत सरकार द्वारा उत्पादक-किसानों को बंपर उत्पादन वर्षों के दौरान कीमतों में अत्यधिक गिरावट से बचाने के लिये निर्धारित मूल्य है।
    • इसका प्रमुख उद्देश्य किसानों को संकटग्रस्त बिक्री में सहयोग करना और सार्वजनिक वितरण के लिये खाद्यान्न की खरीद करना है।
      • यदि बंपर उत्पादन और बाज़ार में वस्तुओं की भरमार के कारण वस्तु का बाज़ार मूल्य घोषित न्यूनतम मूल्य से कम हो जाता है, तो सरकारी एजेंसियाँ किसानों द्वारा दी गई पूरी मात्रा को घोषित न्यूनतम मूल्य पर खरीद लेती हैं।
  • MSP निर्धारित करने के वाले कारक:
    • किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति।
    • इसकी उत्पादन लागत।
    • बाज़ार मूल्य रुझान (घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों)।
    • अंतर-फसल मूल्य समता।
    • कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें (अर्थात् कृषि आदानों एवं कृषि उत्पादों की कीमतों का अनुपात)।
    • उत्पादन लागत पर मार्जिन के रूप में न्यूनतम 50%।
    • उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर MSP के संभावित प्रभाव।

प्राकृतिक खेती:

  • परिचय:
    • इसे "रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) और पशुधन आधारित (livestock based)" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • कृषि-पारिस्थितिकी के मानकों पर आधारित यह एक विविध कृषि प्रणाली है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैवविविधता के इष्टतम उपयोग की अनुमति मिलती है।
    • यह मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ाने तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या न्यून करने जैसे कई अन्य लाभ प्रदान करते हुए किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है।
      • कृषि के इस दृष्टिकोण को एक जापानी किसान और दार्शनिक मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka) ने वर्ष 1975 में अपनी पुस्तक द वन-स्ट्रॉ रेवोल्यूशन में पेश किया था।
  • लाभ:
    • अन्य कृषि प्रणालियों की तुलना में वास्तविक शारीरिक कार्य और श्रम में 80% तक की कमी आई है।
    • मृदा की गुणवत्ता में सुधार।
    • ह्यूमस का निर्माण।
    • जल प्रतिधारण में सुधार होता है, इसलिये यह 60 से 80% जल बचाता है।
    • पौधों के आसपास सूक्ष्म जलवायु।
    • लाभकारी कीटों को आकर्षित किया जाता है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)  

  1. सभी अनाजों, दालों और तिलहनों के मामले में भारत के किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद असीमित है।  
  2. अनाज और दालों के मामले में MSP किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर तय किया जाता है जहाँ बाज़ार मूल्य कभी नहीं बढ़ेगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: D

व्याख्या:  

  • भारत सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष दोनों फसल मौसमों में 22 प्रमुख कृषि वस्तुओं के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा करती है
  • कुल खरीद मात्रा आमतौर पर उस विशेष वर्ष/मौसम के लिये वस्तु के वास्तविक उत्पादन के 25% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 25% की सीमा से अधिक खरीद के लिये कृषि विभाग (DAC) के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • MSP को विभिन्न राज्यों द्वारा दिये गए MSP प्रस्तावों के औसत के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है, जिनमें से कुछ प्रस्ताव केंद्र की सिफारिश से अधिक हो सकते हैं, जबकि इनपुट लागत पर आधारित प्रस्ताव अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं। मूल्य असमानता से बचने के लिये MSP को तय किया जाता है। जब बज़ार में कीमतें MSP से नीचे के स्तर तक गिर जाती हैं, तो सरकारी एजेंसियाँ किसानों की सुरक्षा के लिये उपज को खरीद लेती हैं। ऐसे में बाज़ार में कीमतें MSP से ऊपर जा सकती हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प D सही है।

स्रोत : हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल बैंक

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल बैंक एवं डिजिटल बैंकिंग इकाइयों में अंतर, वित्तीय समावेशन, यूपीआई।

मेन्स के लिये:

डिजिटल बैंक और इसकी आवश्यकता, डिजिटल बैंक पर नीति आयोग की रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक 'डिजिटल बैंक: ए प्रपोजल फॉर लाइसेंसिंग एंड रेगुलेटरी रिजीम फॉर इंडिया' (Digital Banks: A Proposal for Licensing & Regulatory Regime for India) है।

  • इसने डिजिटल बैंको के लिये एक लाइसेंसिंग व नियामक ढाँचा स्थापित करने का सुझाव दिया है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • हाल के वर्षों में भारत ने प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और इंडिया स्टैक द्वारा उत्प्रेरित वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में तीव्र प्रगति की है।
  • हालाँकि ऋण तक पहुँच एक नीतिगत चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से देश के 63 मिलियन MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) के लिये।
  • वित्तीय समावेशन को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) द्वारा आगे बढ़ाया गया है, जिसे बड़े पैमाने पर अपनाया गया है।
    • UPI ने अक्तूबर 2021 में 7.7 ट्रिलियन रुपए के 4.2 बिलियन से अधिक लेन-देन दर्ज किये हैं।
  • FI ने पीएम-किसान जैसे एप, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) और पीएम-स्वनिधि के माध्यम से स्ट्रीट वेंडर्स के लिये सूक्ष्म ऋण सुविधाओं का विस्तार किया।
  • भारत अपने स्वयं के ‘खुले बैंकिंग ढांँचे’ को संचालित करने के करीब है।
  • डिजिटल बैंकिंग नियामक और नीति के लिये एक ढांँचा का निर्माण भारत को फिनटेक में वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के साथ-साथ कई सार्वजनिक नीतिगत चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करेगा।

सिफारिशें:

  • लाइसेंस प्राप्त ग्राहकों की मात्रा/मूल्य और इसी तरह के अन्य उदाहरणों के संदर्भ में एक प्रतिबंधित डिजिटल बैंक लाइसेंस जारी करने पर रोक लगे।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिनियमित एक नियामक सैंडबॉक्स फ्रेमवर्क में लाइसेंसधारकों की सूची।
  • प्रमुख, विवेकपूर्ण और तकनीकी जोखिम प्रबंधन सहित नियामक सैंडबॉक्स में लाइसेंसधारी के संतोषजनक प्रदर्शन पर निर्भर 'पूर्ण पैमाने' वाला डिजिटल बैंक लाइसेंस जारी करना।

डिजिटल बैंक और इसकी आवश्यकता:

  • डिजिटल बैंक:
    • इसे बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में परिभाषित किया जाएगा और अपनी बैलेंस शीट ंके साथ इसका कानूनी अस्तित्व होगा।
    • यह केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 में वित्त मंत्री द्वारा घोषित 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (DBU) से अलग होगा, जो कि कम सेवा वाले क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान, बैंकिंग और फिनटेक नवाचारों को आगे बढ़ाने के लिये स्थापित किये जा रहे हैं।
      • DBU विशेष निश्चित बिंदु व्यापार इकाई या डिजिटल बैंकिंग उत्पादों और सेवाओं को वितरित करने के साथ-साथ मौजूदा वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं को किसी भी समय स्वयं सेवा मोड में डिजिटल रूप से सुविधा प्रदान करने के लिये कुछ न्यूनतम डिजिटल आधारभूत संरचनाओं का हब है।
    • डिजिटल बैंक मौजूदा वाणिज्यिक बैंकों के समान विवेकपूर्ण और तरलता मानदंडों के अधीन होंगे।

आवश्यकता:

  • क्रेडिट गैप:
    • भुगतान के मोर्चे पर भारत ने जो सफलता देखी है, उसे अपने सूक्ष्म, लघु और मध्यम व्यवसायों की ऋण ज़रूरतों को पूरा करने में दोहराया जाना बाकी है।
    • क्रेडिट गैप से पता चलता है कि इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रभावी ढंग से प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना साथ ही वंचितों को औपचारिक वित्तीय दायरे में लाने की ज़रूरत है।
  • डिजिटल चैनलों पर रिलायंस:
    • डिजिटल बैंकिंग सेवाओं की पेशकश करने वाले बैंक और फिनटेक व्यवसाय मुख्य रूप से डिजिटल चैनलों पर भरोसा करते हैं, जिनमें मौजूदा वाणिज्यिक बैंकों के सापेक्ष उच्च दक्षता वाले तंत्र होते हैं।
    • यह संरचनात्मक विशेषता उन्हें एक संभावित प्रभावी चैनल बनाती है जिसके माध्यम से नीति निर्माता कम बैंकिंग वाले छोटे व्यवसायों को सशक्त बनाने और खुदरा उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बढ़ाने जैसे सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  • नियो-बैंक मॉडल चुनौतियों का सामना:
    • मौजूदा साझेदारी-आधारित नियो-बैंक मॉडल राजस्व सृजन और व्यवहार्यता जैसी कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
      • नियो-बैंक के पास स्वयं का कोई बैंक लाइसेंस नहीं है, लेकिन बैंक लाइसेंस प्राप्त सेवाएँ प्रदान करने के लिये बैंक भागीदारों पर भरोसा करते हैं।
    • उनके पास सीमित राजस्व क्षमता, पूंजी की उच्च लागत और केवल भागीदार बैंकों के उत्पादों की पेशकश है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत: शीर्ष प्रेषण प्राप्तकर्त्ता

प्रिलिम्स के लिये:

प्रेषण रसीद, आर्थिक सर्वेक्षण, वैश्विक प्रेषण रसीद स्तर पर भारत की स्थिति, डब्ल्यूएचओ, शरणार्थियों और प्रवासियों के स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

प्रेषण का महत्त्व, प्रवासन के नकारात्मक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही मे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 'शरणार्थियों और प्रवासियों के स्वास्थ्य पर जारी विश्व रिपोर्ट' के अनुसार, भारत को वर्ष 2021 में प्रेषण (Remittance) द्वारा 87 बिलियन अमेरिकी डाॅलर प्राप्त हुए हैं।

रिपोर्ट के बारे में:

  • परिचय:
    • यह स्वास्थ्य और प्रवास की वैश्विक समीक्षा की पेशकश करने वाली पहली रिपोर्ट है और दुनिया भर में शरणार्थियों एवं प्रवासियों को उनकी ज़रूरतों के लिये संवेदनशील स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने हेतु तत्काल और ठोस कार्रवाई करने का आह्वान करती है।
  • परिणाम:
    • प्रवासन:
      • रिपोर्ट के अनुसार, 'विश्व स्तर पर प्रत्येक आठ में से लगभग एक व्यक्ति प्रवासी है (कुल 1 अरब प्रवासी हैं)।
      • 1990 से 2020 तक:
        • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की कुल संख्या 153 मिलियन से बढ़कर 281 मिलियन हो गई है।
          • लगभग 48% अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी महिलाएँ हैं और लगभग 36 मिलियन बच्चे हैं।
      • वर्ष 2020 तक यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या मौजूद थी, इसके बाद उत्तरी अफ्रीका एवं पश्चिमी एशिया का स्थान है।
      • वर्ष 2021 की पहली छमाही के दौरान नए मान्यता प्राप्त शरणार्थियों में से आधे से अधिक पाँच देशों से थे:
        • मध्य अफ्रीकी गणराज्य
        • दक्षिण सूडान
        • सीरियाई अरब गणराज्य
        • अफग़ानिस्तान
        • नाइजीरिया
  • प्रेषण:
    • वर्ष 2021 में शीर्ष पांँच प्रेषण प्राप्तकर्त्ता (अमेरिकी डॉलर में) निम्न और मध्यम आय वाले देश थे:
      • भारत: 83 अरब
        • वर्ष 2021 में भारत के प्रेषण में 4.8% की वृद्धि हुई। (वर्ष 2020 में प्रेषण 83 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था)।
      • चीन: 53 अरब डाॅलर
      • मेक्सिको: 53 अरब डाॅलर
      • फिलीपींस: 36 अरब डाॅलर
      • मिस्र: 33 अरब डाॅलर
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के हिस्से के रूप में वर्ष 2021 में शीर्ष पांँच प्रेषण प्राप्तकर्त्ता छोटी अर्थव्यवस्थाएंँ थीं:
      • टोंगा: 44%
      • लेबनान: 35%
      • किर्गिज़स्तान: 30%
      • ताजिकिस्तान: 28%
      • होंडुरास: 27%
    • यूरोप और मध्य एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका, दक्षिणी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका व अधिकांश अन्य क्षेत्रों में म5-10% की वृद्धि दर्ज करते हुए प्रेषण में तीव्र सुधार हुआ है।
    • लेकिन चीन को छोड़कर पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 1.4% की धीमी गति से वृद्धि हुई।

प्रेषण:

  • प्रेषित धन या रेमिटेंस का आशय प्रवासियों द्वारा मूल देश में मित्रों और रिश्तेदारों को किये गए वित्तीय या अन्य तरह के हस्तांतरण से है।
  • यह मूलतः दो मुख्य घटकों का योग है- निवासी और अनिवासी परिवारों के बीच नकद या वस्तु के रूप में व्यक्तिगत स्थानांतरण और कर्मचारियों का मुआवज़ा, जो उन श्रमिकों की आय को संदर्भित करता है जो सीमित समय के लिये दूसरे देश में काम करते हैं।
  • प्रेषण, प्राप्तकर्त्ता देश में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में मदद करते हैं, लेकिन यह ऐसे देशों को उन पर अधिक निर्भर भी बना सकता है।
    • यह अक्सर प्रत्यक्ष निवेश और आधिकारिक विकास सहायता की राशि से अधिक होता है।
  • प्रेषण परिवारों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं।
  • भारत दुनिया में सबसे अधिक प्रेषण प्राप्तकर्त्ता है।
    • प्रेषण भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाता है और चालू खाते के घाटे को पूरा करने में मदद करता है।

प्रेषण का महत्त्व:

  • प्रेषण उपभोक्ता खर्च को बढ़ाते हैं या बनाए रखते हैं और इसने कोविड -19 महामारी के दौरान आर्थिक कठिनाई में मदद की हैं।
    • इन पूर्वानुमानों के बावजूद कि कोविड-19 महामारी (कुछ हद तक यात्रा प्रतिबंधों और आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप) के कारण प्रेषण गिर जाएगा या लचीला हो जाएगा
  • प्रेषण स्वयं प्रवासियों के लिये और अपने मूल देशों में शेष परिवार और दोस्तों के लिये प्रवासन का एक " महत्त्वपूर्ण और सकारात्मक" आर्थिक परिणाम है।
  • प्रेषण अब आधिकारिक विकास सहायता से तीन गुना अधिक है और चीन को छोड़कर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तुलना में 50% से अधिक है।

प्रवासन के नकारात्मक प्रभाव:

  • प्रतिभा पलायन:
    • कुशल श्रम के परिणामस्वरूप एक तथाकथित प्रतिभा पलायन हो सकता है आमतौर पर निम्न-आय वाले देशों से और उच्च आय वाले देशों में एक प्रक्रिया में मस्तिष्क लाभ होता है जिसे आमतौर पर मस्तिष्क परिसंचरण के रूप में जाना जाता है।
      • प्रतिभा पलायन का प्रभाव सेवाओं की उपलब्धता को नुकसान पहुँचा सकता है, जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल, अत्यधिक कुशल डॉक्टर और नर्स बेहतर आर्थिक अवसर की तलाश में कम आय वाले देशों को छोड़ देते हैं।
  • प्रवासन परिवार:
    • प्रवासन न केवल उन लोगों को प्रभावित करता है जो आगे बढ़ते हैं बल्कि उनके परिवार और समुदाय के सदस्यों को भी प्रभावित करते हैं:
      • एक अनुमान के अनुसार लगभग 193 मिलियन प्रवासी श्रमिकों के परिवार के सदस्य अपने मूल देश या स्थान पर ही
    • नौकरी करने के लिये उच्च आय वाले देशों में व्यक्तियों का प्रवास उनके अपने परिवारों के लिये विशेष रूप से बच्चों और वृद्धों लोगों के देखभाल में कमपैदा कर सकता है।
  • भेदभाव और ज़ेनोफोबिया:
    • इससे शरणार्थियों और प्रवासियों को घृणित व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है।
      • ज़ेनोफ़ोबिया लोगों का उनकी भाषा, संस्कृति, उपस्थिति या जन्म स्थान के कारण बाहरी लोगों के प्रति किया गया अनुचित व्यवहार है।
      • ज़ेनोफोबिया मेजबान देशों में शरणार्थियों और प्रवासियों के प्रति भेदभाव, दुर्व्यवहार या हिंसा को बढ़ावा देता है जिसके गंभीर परिणाम परिलक्षित होते हैं।
  • मानव तस्करी एवं ह्यूमन ट्रैफिकिंग:
    • अधिकांश प्रवासन की घटना कानूनों या विनियमों के उल्लंघन के रूप में होती है,  अतः प्रवासियों के एक बड़े हिस्से  का आपराधिक नेटवर्क द्वारा दुरूपयोग एवं शोषण किया जाता है।

 स्रोत:  इकोनॉमिक टाइम्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गगनयान हेतु एबॉर्ट मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

गगनयान हेतु एबॉर्ट मिशन, इसरो, GSLV लो अर्थ ऑर्बिट, ISS

मेन्स के लिये:

गगनयान मिशन और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

गगनयान मिशन के दौरान चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) वर्ष 2022 में दो मानव रहित 'एबॉर्ट मिशन ('Abort Mission)' लॉन्च करेगा।

  • यह अंतरिक्ष में देश की पहली मानवयुक्त उड़ान के लिये इसरो के रोडमैप का एक हिस्सा है।
  • इस उद्देश्य के लिये पहला परीक्षण वाहन सितंबर 2021 में लॉन्च किया जाएगा।

गगनयान से पहले एबॉर्ट मिशन:

  • एबॉर्ट मिशन उन प्रणालियों का परीक्षण करने के लिये है जो विफलता के मामले में चालक दल को अंतरिक्षयान की बीच उड़ान में बचने में मदद कर सकते हैं।
    • इसरो ने पहले ही वर्ष 2018 में पैड एबॉर्ट टेस्ट किया था, जहाँ लॉन्च पैड पर आपात स्थिति में चालक दल अंतरिक्षयान से बच सकता है।
  • एबॉर्ट मिशनों के लिये इसरो ने परीक्षण वाहन विकसित किये हैं जो सिस्टम को एक निश्चित ऊँचाई तक भेज सकते हैं, विफलता का पता एवं एस्केप सिस्टम की जाँच कर सकते हैं।
    • एस्केप सिस्टम को पाँच "त्वरित-अभिनय" सॉलिड फ्यूल मोटर्स के साथ एक उच्च बर्न रेट प्रोपल्शन सिस्टम और स्थिरता बनाए रखने के लिये फिन के साथ डिज़ाइन किया गया है।
  • क्रू एस्केप सिस्टम विस्फोटक नटों को फायर करके क्रू मॉड्यूल से अलग हो जाएगा।
  • इसरो का उद्देश्य उस प्रणाली को पूर्ण करने पर है जो भारतीयों को अंतरिक्ष मिशन पर ले जाएगी और मिशन विफल होने पर अंतरिक्ष यात्रियों की रक्षा करेगी।

गगनयान मिशन:

  • परिचय:
    • गगनयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) का एक मिशन है।
    • गगनयान वर्ष 2023 में लॉन्च होगा जिसके तहत:
      • तीन अंतरिक्ष अभियानों को कक्षा में भेजा जाएगा।
      • इन तीन मिशनों में से 2 मानवरहित होंगे, जबकि एक मानव युक्त मिशन होगा।
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, जिसे ऑर्बिटल मॉड्यूल कहा जाता है, में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे।
    • यह मिशन 5-7 दिनों के लिये पृथ्वी से 300-400 किमी. की ऊँचाई पर निम्न भू-कक्षा में पृथ्वी का चक्कर लगाएगा।
  • पेलोड:
    • पेलोड में शामिल होंगे:
      • क्रू मॉड्यूल- मानव को ले जाने वाला अंतरिक्षयान।
      • सर्विस मॉड्यूल- दो तरल प्रणोदक इंजनों द्वारा संचालित।
    • यह आपातकालीन निकास और आपातकालीन मिशन अबोर्ट व्यवस्था से लैस होगा।
  • प्रमोचन:
    • गगनयान के प्रमोचन हेतु तीन चरणों वाले GSLV Mk III का उपयोग किया जाएगा जो भारी उपग्रहों के प्रमोचन में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि GSLV Mk III को प्रमोचन वाहन मार्क-3 (Launch Vehicle Mark-3 or LVM 3) भी कहा जाता है।
  • रूस में प्रशिक्षण:
    • जून 2019 में इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र तथा रूस सरकार के स्वामित्व वाली Glavkosmos ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये, जिसमें उम्मीदवारों के चयन में रूस का समर्थन, चयनित यात्रियों का चिकित्सीय परीक्षण तथा अंतरिक्ष प्रशिक्षण शामिल हैं।
    • अंतरिक्ष यात्री के रूप में चयनित उम्मीदवार सोयुज़ (Soyuz) मानव युक्त अंतरिक्षयान की प्रणालियों का विस्तार से अध्ययन करेंगे, साथ ही Il-76MDK विमान में अल्पकालिक भारहीनता मोड में प्रशिक्षित होंगे।
    • सोयुज़ एक रूसी अंतरिक्षयान है जो लोगों को अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाने तथा वापस लाने और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति का कार्य करता है।
    • Il-76MDK एक सैन्य परिवहन विमान है जिसे विशेष रूप से प्रशिक्षु अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष पर्यटकों की परवलयिक उड़ानों के लिये डिज़ाइन किया गया है।

गगनयान मिशन का महत्त्व:

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संवर्द्धन:
    • यह देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के स्तर को बढ़ाने तथा युवाओं को प्रेरित करने में मदद करेगा।
    • गगनयान मिशन में विभिन्न एजेंसियों, प्रयोगशालाओं, उद्योगों और विभागों को शामिल किया जाएगा
    • यह औद्योगिक विकास में सुधार करने में मदद करेगा।
  • औद्योगिक विकास में सुधार:
    • सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने हेतु किये जा रहे सुधारों के क्रम में हाल ही में एक नए संगठन IN-SPACe के गठन की घोषणा की है।
    • यह सामाजिक लाभों के लिये प्रौद्योगिकी के विकास में मदद करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
    • कई देशों द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) इसके लिये पर्याप्त नहीं है। अतः  गगनयान क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र की ज़रूरतों और भोजन, पानी एवं ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान  केंद्रित करेगा।

अन्य आगामी परियोजनाएँ:

  • चंद्रयान-3 मिशन: भारत ने चंद्रयान-3 नामक एक नए चंद्रमा मिशन की योजना तैयार की है जिसके वर्ष 2022 में लॉन्च होने की संभावना है।
  • शुक्रयान मिशन: इसरो भी शुक्र के लिये एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से शुक्रयान कहा जाता है।
  • XpoSat: अंतरिक्ष वेधशाला, XpoSat, जिसे कॉस्मिक एक्स-रे का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • आदित्य L1 मिशन: यह एक भारतीय अंतरिक्षयान को सूर्य और पृथ्वी के बीच L1 या लैग्रेंजियन बिंदु तक 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर जाते हुए देखेगा।
    • किन्हीं दो खगोलीय पिंडों के बीच पाँच लैग्रेंजियन बिंदु होते हैं, जहाँ उपग्रह पर दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव, ईंधन को खर्च किये बिना उपग्रह को कक्षा में रखने के लिये आवश्यक बल के बराबर होता है, जिसका अर्थ है अंतरिक्ष में एक पार्किंग स्थल।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सिंथेटिक बायोलॉजी

प्रिलिम्स के लिये:

सिंथेटिक बायोलॉजी, सिंथेटिक बायोलॉजी के अनुप्रयोग

मेन्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक नवाचार और खोजें

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका के अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रह पर सभी जानवरों और पौधों की प्रजातियों में से एक-तिहाई वर्ष 2070 तक विलुप्त हो सकते हैं।

  • पर्यावरणविद जैव विविधता को संरक्षित करने और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिये सिंथेटिक बायोलॉजी या 'सिनबियो' को संभावित उपकरण मानते हैं।

सिंथेटिक बायोलॉजी:

  • 'सिंथेटिक बायोलॉजी' शब्द का इस्तेमाल पहली बार ‘बारबरा होबोमिन’ ने वर्ष 1980 में बैक्टीरिया का वर्णन करने के लिये किया था, जिन्हें पुनः संयोजक डीएनए तकनीक का उपयोग करके आनुवंशिक रूप से निर्मित किया गया था।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी, अप्राकृतिक जीवों या कार्बनिक अणुओं के निर्माण के लिये आनुवंशिक अनुक्रमण, संपादन और संशोधन प्रक्रिया का उपयोग करने संबंधी विज्ञान को संदर्भित करता है जो जीवित प्रणालियों में कार्य कर सकते हैं।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी वैज्ञानिकों को स्क्रैच से डीएनए के नए अनुक्रमों को डिज़ाइन और संश्लेषित करने में सक्षम बनाती है।
  • इस शब्द का प्रयोग अप्राकृतिक कार्बनिक अणुओं के संश्लेषण का वर्णन करने के लिये किया गया था जो जीवित प्रणालियों में कार्य करते हैं।
    • इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक रूप से 'जीवन को नया स्वरूप देने' के प्रयासों के संदर्भ में किया गया है।

synthetic-biology

सिंथेटिक बायोलॉजी के अनुप्रयोग:

  • यह तकनीक जैव उर्जा, दवाओं और भोजन के सतत् उत्पादन के लिये उपयोग में सहायक हो सकती है।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी का बेहतर अनुप्रयोग औद्योगिक उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिये किया जा सकता है।
    • इसके अलावा कैप्चर की गई गैस को फिर से सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके ईंधन में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। संभावित रूप से इस तरह के परिवर्तनों में लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करने से लेकर वन्यजीव उत्पादों के सिंथेटिक विकल्प प्रदान करने तक के लाभ शामिल हैं।
  • यह तकनीक हमें संक्रामक बीमारी से बचाव, दवाओं के विकास और साथ ही साथ समाज में स्थिरता स्थापित करने में सहायता करेगी।
  • यह वैज्ञानिकों को खोज में मदद कर सकता है और तीव्र एवं कुशल तरीके से उन्हें नवाचार की ओर ले जाता है।

सिंथेटिक जीवविज्ञान से संबंधित चिंताएँ:

  • आर्थिक चिंताएँ:
    • यह अर्थव्यवस्था में अस्थिरता पैदा कर सकता है, जिससे जैव प्रौद्योगिकी आधारित अर्थव्यवस्थाओं में अवांछित बदलाव हो सकता है।
    • यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कम आय वाले उष्णकटिबंधीय देशों को प्रभावित करेगा।
    • प्राकृतिक उत्पाद आमतौर पर कम आय वाले देशों में उगाए जाते हैं, सिंथेटिक जीव विज्ञान की प्रगति के क्रम में इसके विस्थापित होने की आशंका विद्यमान है।
  • पर्यावरणीय चिंताएँ:
    • जब एक नई प्रजाति का निर्माण किया जाता है या जब एक प्रजाति को तीव्रता से संशोधित किया जाता है, तो प्रजातियों की गतिविधि और अन्य जीवों के साथ उनका सह-अस्तित्व अप्रत्याशित होता है।

आगे की राह

  • संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों तक पहुँचने में सक्षम होने के लिये उत्सर्जन को कम करने के परे अतिरिक्त रास्ता तय करने की आवश्यकता है।
  • पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना और हमारी औद्योगिक प्रक्रियाओं तथा दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से प्रदूषण एवं प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करना समय की मांग है।
  • यह पर्यावरण के लिये सबसे गंभीर खतरों के समाधान का एक हिस्सा है, जिसमें रासायनिक और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना तथा पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को रोकना शामिल है, लेकिन हमें एक नागरिक के रूप में भी पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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