प्रारंभिक परीक्षा
अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो- 2023
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने 47वें अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (IMD) को मनाने के लिये नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो-2023 का उद्घाटन किया।
- प्रधानमंत्री ने विश्व के सबसे बड़े संग्रहालय ‘युग-युगीन भारत’ योजना का भी अनावरण किया जो भारत के 5,000 वर्षों के इतिहास को प्रदर्शित करेगी।
अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस:
- संदर्भ: संग्रहालयों के विषय में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 18 मई को IMD दिवस मनाया जाता है।
- इतिहास: अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय परिषद (ICOM) द्वारा वर्ष 1977 में इस दिवस की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 2023 की थीम है: 'संग्रहालय, स्थिरता और कल्याण'।
- उद्देश्य: इस तथ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये कि संग्रहालय सांस्कृतिक आदान-प्रदान, संस्कृतियों के संवर्द्धन और आपसी समझ, सहयोग के साथ लोगों के बीच शांति के विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
- अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस और SDG: वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के एक समूह का समर्थन करता है। वर्ष 2023 में हम इन तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे:
- लक्ष्य 3 वैश्विक स्वास्थ्य और कल्याण, लक्ष्य 13 जलवायु कार्रवाई, लक्ष्य 15 भूमि पर जीवन।
संग्रहालय की अंतर्राष्ट्रीय परिषद:
- प्लेटिनम एक सदस्यता संघ और एक गैर-सरकारी संगठन है जो संग्रहालय गतिविधियों के लिये पेशेवर एवं नैतिक मानकों को स्थापित करता है। यह संग्रहालय क्षेत्र में यह एकमात्र वैश्विक संगठन है।
- इसे वर्ष 1946 में बनाया गया था और इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।
- जोखिमग्रस्त सांस्कृतिक वस्तुओं की ICOM लाल सूची सांस्कृतिक वस्तुओं के अवैध यातायात को रोकने के लिये व्यावहारिक उपकरण है।
एक्सपो की प्रमुख विशेषताएँ:
- प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो के शुभंकर, ग्राफिक उपन्यास - संग्रहालय में एक दिन, भारतीय संग्रहालयों की निर्देशिका, कर्तव्य पथ के पॉकेट मानचित्र और संग्रहालय कार्ड का अनावरण किया।
- अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो का शुभंकर चेन्नापटनम कला शैली में लकड़ी से बनी डांसिंग गर्ल का समकालीन संस्करण है।
- प्रधानमंत्री ने इतिहास को संरक्षित करने, स्थिरता को बढ़ावा देने और कल्याण की भावना को बढ़ावा देने में संग्रहालयों के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला।
- विरासत को संरक्षित करना और सांस्कृतिक अवसंरचना को पुनर्जीवित करना:
- भारत की समृद्ध विरासत के संरक्षण और लंबे समय से लुप्त देश की सांस्कृतिक विरासत के पहलुओं को पुनर्जीवित करने पर महत्त्व दिया जा रहा है।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम और इसकी हज़ारों वर्ष पुरानी विरासत को प्रदर्शित करने के लिये एक नया सांस्कृतिक ढाँचा विकसित किया जा रहा है।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों के योगदान को सम्मान देने और उनकी अमरगाथा को प्रदर्शित करने के लिये 10 विशेष संग्रहालयों की स्थापना की जा रही है।
- सस्टेनेबिलिटी एंड वेल-बीइंग को बढ़ावा देना:
- 'सस्टेनेबिलिटी एंड वेल-बीइंग' की थीम वर्तमान समय की वैश्विक प्राथमिकताओं के साथ संरेखित है, जागरूकता बढ़ाने और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने में संग्रहालयों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- कलाकृतियों की तस्करी और विनियोजन से निपटना:
- विशेष रूप से भारत जैसे प्राचीन संस्कृतियों वाले देशों के लिये कलाकृतियों की तस्करी और विनियोजन की चुनौतियों को स्वीकार किया गया है।
- चुराई गई कलाकृतियों को पुनर्प्राप्त करने और वापस लाने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पिछले नौ वर्षों में 240 से अधिक प्राचीन वस्तुओं की पुनर्प्राप्ति हुई है।
- उदाहरण: बनारस से चुराई गई 18वीं सदी की अन्नपूर्णा मूर्ति (हाल ही में कनाडा से लौटाई गई), गुजरात से चोरी हुई महिषासुर मर्दिनी की 12वीं सदी की मूर्ति (वर्ष 2018 में न्यूयॉर्क के मौसम संग्रहालय द्वारा लौटाई गई) और चोल साम्राज्य के दौरान बनाई गई नटराज की मूर्तियाँ।
- कलाकृतियों के अनैतिक अधिग्रहण को रोकने के लिये विश्व भर में कला पारखी और संग्रहालयों के बीच सहयोग बढ़ाने की वकालत की जाती है।
- विरासत को संरक्षित करना और सांस्कृतिक अवसंरचना को पुनर्जीवित करना:
भारत में संग्रहालयों का प्रशासन:
- कई मंत्रालयों के पास विभिन्न संग्रहालयों का प्रभार है।
- सभी संग्रहालय संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रशासित नहीं होते हैं।
- कुछ संग्रहालयों को न्यासी बोर्ड के अंतर्गत लोगों द्वारा बिना सरकारी सहायता के प्रबंधित किया जाता है।
भारत में उल्लेखनीय संग्रहालय:
- राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली (संस्कृति मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय)
- नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, बंगलूरू
- विक्टोरिया मेमोरियल हॉल (VMH), कोलकाता
- एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता
- राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (NMNH), नई दिल्ली
स्रोत :पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
वर्ल्ड फूड इंडिया 2023
अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष 2023 के उपलक्ष्य में भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय 'वर्ल्ड फूड इंडिया (World Food India) 2023' के दूसरे संस्करण का आयोजन करेगा, जिसका उद्देश्य भारत की समृद्ध खाद्य संस्कृति को प्रदर्शित करना एवं विविध खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वैश्विक निवेश को आकर्षित करना है।
- यह आयोजन 3-5 नवंबर, 2023 को नई दिल्ली में होगा।
वर्ल्ड फूड इंडिया 2023
- परिचय:
- वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 भारतीय खाद्य अर्थव्यवस्था का प्रवेश द्वार है, जो भारतीय और विदेशी निवेशकों के बीच साझेदारी को सुगम बनाता है।
- यह वैश्विक खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माताओं, उत्पादकों, खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं, निवेशकों, नीति निर्माताओं और संगठनों का अपनी तरह का अद्वितीय आयोजन होगा।
- यह वैश्विक खाद्य मूल्य शृंखला के साथ खुदरा, प्रसंस्करण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विनिर्माण और कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स को प्रदर्शन, जुड़ाव एवं सहयोग का मंच है।
- यह बैकवर्ड लिंकेज, प्रसंस्करण उपकरण, अनुसंधान और विकास, कोल्ड चेन स्टोरेज, स्टार्ट-अप्स, लॉजिस्टिक्स तथा रिटेल चेन में निवेश के अवसरों को प्रदर्शित करेगा।
- लक्षित क्षेत्र:
- श्री अन्न (मिलेट्स): विश्व के लिये भारत के सुपर फूड का लाभ उठाना मिलेट्स प्राचीन अनाज हैं जो सहस्राब्दियों से भारत की समृद्ध विरासत का हिस्सा रहे हैं।
- वे सुपर खाद्य पदार्थ हैं जो उच्च पोषण, लस मुक्त, जलवायु लचीलापन और इको-फ्रेंडली वातावरण प्रदान करते हैं।
- मिलेट्स जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और कुपोषण जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिये खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा तथा स्थिरता को बढ़ा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर में मिलेट्स के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (IYM 2023) घोषित किया है।
- एक्सपोनेंशियल फूड प्रोसेसिंग: पोज़िशनिंग इंडिया एज़ द ग्लोबल हब
- भारत के पास खाद्य प्रसंस्करण का वैश्विक केंद्र बनने और विश्व खाद्य बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ अर्जित करने का विज़न है।
- इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये भारत अपने ऐसे समर्थकों को बढ़ावा देना चाहता है जो इसके खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का समर्थन और उसे गति प्रदान कर सकें।
- प्रमुख प्रवर्तकों में से एक कृषि खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं का वित्तपोषण है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को पर्याप्त और वहनीय ऋण प्रदान करना, जो उद्योग का एक बड़ा हिस्सा है, भारत के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक है।
- सामरिक खंड: विकास के लिये संभावनाओं को खोलना
- भारत में एक गतिशील और विविध खाद्य प्रसंस्करण उद्योग है जिसमें कई उप-क्षेत्र शामिल हैं जैसे कि समुद्री उत्पाद, फल एवं सब्जियाँ उत्पाद, मांस और पोल्ट्री उत्पाद, RTE/RTC (पैक्ड खाद्य पदार्थ) तथा डेयरी उत्पाद।
- इन उप-क्षेत्रों में उत्पादन, खपत, निर्यात और मूल्यवर्द्धन के मामले में विकास की अपार संभावनाएँ हैं।
- भारत विश्व के सबसे बड़े खाद्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है।
- भारत में एक गतिशील और विविध खाद्य प्रसंस्करण उद्योग है जिसमें कई उप-क्षेत्र शामिल हैं जैसे कि समुद्री उत्पाद, फल एवं सब्जियाँ उत्पाद, मांस और पोल्ट्री उत्पाद, RTE/RTC (पैक्ड खाद्य पदार्थ) तथा डेयरी उत्पाद।
- कुशल पारिस्थितिकी तंत्र: समावेशन के साथ अवसरों का दोहन
- एक कुशल तथा सर्वव्यापी पारिस्थितिकी तंत्र बाधाओं को दूर करने और एक समन्वित एवं एकीकृत ढाँचे की स्थापना की आवश्यकता है। समावेशी अवसर उत्पन्न करने के लिये मूल्य शृंखलाओं का निर्माण और ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- विदेशी निवेश को लुभाने हेतु सरकार ने 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये दरवाज़े खोल दिये हैं और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स में अपनी स्थिति मज़बूत करने का प्रयास कर रही है।
- सतत् विकास: समृद्धि के लिये प्रसंस्करण
- सतत् विकास समृद्धि के लिये प्रसंस्करण की प्राप्ति में एक मौलिक घटक है।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों एवं सतत् कृषि और खाद्य प्रसंस्करण प्रथाओं को शामिल करने वाली ये प्रौद्योगिकियाँ प्रमुख तथा आशाजनक रुझान बन गई हैं, जो अधिक धारणीय भविष्य की दिशा में हुए वैश्विक दृष्टिकोण में परिवर्तन को दर्शाती हैं।
- श्री अन्न (मिलेट्स): विश्व के लिये भारत के सुपर फूड का लाभ उठाना मिलेट्स प्राचीन अनाज हैं जो सहस्राब्दियों से भारत की समृद्ध विरासत का हिस्सा रहे हैं।
वर्ल्ड फूड इंडिया 2017:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने खाद्य अर्थव्यवस्था में परिवर्तन (Transforming the Food Economy) थीम के साथ वर्ष 2017 में वर्ल्ड फूड इंडिया का पहला संस्करण लॉन्च किया।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व को भारत की विविध और समृद्ध खाद्य संस्कृति से परिचित कराना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का एक लक्ष्य धारणीय रीति से देश के चुनिंदा ज़िलों में खेतिगत ज़मीन में बढ़ोतरी और उत्पादकता बढ़ाकर कुछ फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करना है। वे फसलें कौन -कौन सी हैं? (2010) (a) केवल चावल और गेहूँ उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों में विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019) (a) चीन उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकीयों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
रेडियोमीट्रिक डेटिंग के लिये कैल्शियम-41
वैज्ञानिकों ने जीवाश्म हड्डियों और चट्टानों की आयु निर्धारित करने हेतु कार्बन-14 के विकल्प के रूप में रेडियोमेट्रिक डेटिंग के लिये कैल्शियम-41 का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
- उन्होंने एक समाधान के रूप में एटम-ट्रैप ट्रेस एनालिसिस (Atom-Trap Trace Analysis- ATTA) नामक एक तकनीक का सुझाव दिया है, क्योंकि ATTA कैल्शियम-41, जो कि एक दुर्लभ आइसोटोप है, का पता लगाने के लिये पर्याप्त संवेदनशील है।
कैल्शियम-41 और ATTA:
- कैल्शियम-41:
- कैल्शियम-41 99,400 वर्षों की अर्द्ध आयु के साथ कैल्शियम का एक दुर्लभ लंबे समय तक रहने वाला रेडियोआइसोटोप है।
- जब अंतरिक्ष से कॉस्मिक किरणें मिट्टी या चट्टानों में कैल्शियम परमाणुओं से टकराती हैं तो पृथ्वी की सतह अर्थात् भूपर्पटी (Crust) में कैल्शियम-41 का उत्पादन होता है ।
- इस समस्थानिक (आइसोटोप) में उन वस्तुओं के लिये डेटिंग विधियों में नियोजित होने की क्षमता है जो कार्बन-14 डेटिंग का उपयोग करके सटीक रूप से निर्धारित की जा सकती हैं।
- ATTA:
- यह लेज़र परिचालन और तटस्थ परमाणुओं का पता लगाने पर आधारित है।
- नमूने को वाष्पीकृत करने के बाद परमाणुओं को लेज़र द्वारा धीमा या ट्रैप किया जाता है और प्रकाश एवं चुंबकीय क्षेत्र कोष्ठ में रखा जाता है।
- लेज़र की आवृत्ति को ट्यून करके इलेक्ट्रॉन संक्रमण के माध्यम से कैल्शियम-41 परमाणुओं का पता लगाया जा सकता है।
- इलेक्ट्रॉन संक्रमण: परमाणु की एक कक्षा से एक इलेक्ट्रॉन दूसरी कक्षा में संक्रमण कर सकता है यदि उसे एक विशिष्ट मात्रा में ऊर्जा प्रदान की जाती है तो फिर वह उस ऊर्जा को मुक्त करके वापस अपनी कक्षा में वापस लौटता है।
- शोधकर्त्ताओं ने समुद्री जल में 12% सटीकता के साथ प्रत्येक 1016 कैल्शियम परमाणुओं में एक कैल्शियम-41 परमाणु को खोजने में सक्षम होने की सूचना दी।
- यह चयनात्मक है और पोटेशियम-41 परमाणुओं के साथ भ्रम से बचाता है
- ATTA के अनुप्रयोग:
- कैल्शियम समस्थानिक के सफल अनुप्रयोग से अन्य धातु समस्थानिकों के विस्तार की संभावना खुल जाती है।
- ATTA को आर्गन-39, क्रिप्टोन-81 और क्रिप्टोन-85 जैसे अन्य समस्थानिकों का अध्ययन करने के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
- ऊष्मीय जलवायु में हिमनद पीछे हट जाते हैं परिणामस्वरूप नीचे की चट्टान पर कैल्शियम-41 जमा होता है एवं शीत जलवायु में ग्लेशियर आगे बढ़ते हैं तथा कैल्शियम-41 को चट्टान तक पहुँचने से रोकते हैं। इस तरह वैज्ञानिकों को ATTA के अध्ययन करने से यह जानकारी मिलने की आशा है कि कोई चट्टान बर्फ से कितने समय तक ढकी रही है।
- कैल्शियम समस्थानिक के सफल अनुप्रयोग से अन्य धातु समस्थानिकों के विस्तार की संभावना खुल जाती है।
रेडियोधर्मी डेटिंग:
- संदर्भ:
- रेडियोधर्मी डेटिंग एक विधि है जिसका उपयोग रेडियोधर्मी समस्थानिकों के क्षय के आधार पर चट्टानों, खनिजों और जीवाश्मों की आयु निर्धारित करने के लिये किया जाता है।
- यह इस सिद्धांत पर निर्भर करता है कि तत्त्वों के कुछ समस्थानिक अस्थिर होते हैं और समय के साथ अधिक स्थिर रूपों में अनायास क्षय हो जाते हैं। क्षय की दर को अर्द्ध-जीवन द्वारा मापा जाता है, जो कि मूल समस्थानिक के आधे भाग के छोटे समस्थानिक में क्षय होने लगते हैं।
- अलग-अलग समस्थानिकों का आधा जीवन अलग-अलग होता है, जो उन्हें विभिन्न समय-सीमाओं के डेटिंग के लिये उपयोगी बनाता है।
- उदाहरण के लिये कार्बन-14 डेटिंग लगभग 50,000 वर्ष पुरानी जैविक सामग्री के डेटिंग के लिये प्रभावी है। जब कोई जैविक इकाई जीवित होती है तब उसका शरीर कार्बन-14 परमाणुओं को अवशोषित और साथ ही उत्सर्जित करता रहता है। जब यह मृत हो जाता है तब यह प्रक्रिया बंद हो जाती है और मौजूदा कार्बन-14 का भी क्षय होने लगता है।
- शोधकर्त्ता यह निर्धारित कर सकते हैं कि शरीर में इन परमाणुओं की सापेक्ष मात्रा की तुलना उस संख्या से की जा सकती है जो मौजूद होनी चाहिये थी।
- कार्बन-14 की सीमाएँ:
- कार्बन-14 कार्बन का एक अस्थिर और कमज़ोर रेडियोधर्मी समस्थानिक है। इसका अर्द्ध आयु 5,700 वर्ष है तथा इसका उपयोग कार्बन आधारित सामग्रियों की आयु का अनुमान लगाने हेतु किया जाता है।
- कार्बन-14 का उपयोग कर कार्बन डेटिंग कार्बन-14 के 5,700 वर्ष की अर्द्ध आयु के कारण 50,000 वर्ष तक की वस्तुओं तक सीमित है।
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
निएंडरथल से मिला नाक का आकार
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) तथा फुडान यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा विश्व भर के शोधकर्त्ताओं के सहयोग से किये गए हालिया शोध ने मानव नाक को प्रभावित करने वाले आनुवंशिक कारकों पर प्रकाश डाला है।
- अध्ययन ने नाक से जुड़े आनुवंशिक जीन की अवस्थिति की पहचान की है, जिसमें निएंडरथल वंश से प्रभावित जीन अवस्थिति भी शामिल है।
शोध की मुख्य विशेषताएँ:
- आनुवंशिक अध्ययन:
- अध्ययन के अंतर्गत द्वि-आयामी (2D) छवियों का विश्लेषण किया गया और 6,000 से अधिक लैटिन अमेरिकी व्यक्तियों में चेहरे के विभिन्न हिस्सों के मध्य की दूरी को मापा गया
- शोध ने नाक से जुड़े 42 नवीन आनुवंशिक जीनों (लोकी) की पहचान की, जिनमें से 26 में एशियाई, यूरोपीय और अफ्रीकियों सहित विभिन्न क्षेत्रों की वैश्विक आबादी में दोहराव देखा गया।
- एक 'लोकस' जिसका बहुवचन 'लोकी', होता है, मानव गुणसूत्र में एक विशेष जीन की स्थिति है।
- एक विशिष्ट बिंदुपथ, 1q32.3, पहले निएंडरथल मानव के आनुवंशिक योगदान से जुड़ा था, साथ ही मध्य चेहरे की ऊँचाई को प्रभावित करने वाले कारक के रूप में पाया गया था।
- 1q32.3 बिंदुपथ में जीन ATF3 (सक्रियण प्रतिलेखन कारक-3) होता है, जो कपाल और चेहरे के विकास में शामिल फोर्कहेड बॉक्स L2 (FOXL2) जीन द्वारा नियंत्रित होता है।
- निएंडरथल की विरासत:
- आनुवंशिक साक्ष्य बताते हैं कि निएंडरथल और प्रारंभिक मनुष्यों की प्रजनन क्रिया के परिमाणस्वरूप मानव आबादी में निएंडरथल आनुवंशिक अनुक्रमों का अंतर्मुखीकरण हुआ।
- वर्ष 2022 में फिज़ियोलॉजी और मेडिसिन के लिये नोबेल पुरस्कार विजेता, विकासवादी आनुवंशिकीविद् स्वांते पाबो के प्रभावशाली काम ने निएंडरथल और डेनिसोवन्स के साथ आधुनिक मनुष्यों जैसे पुरातन होमिनिड्स के बीच इंटरब्रीडिंग घटनाओं में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
- इस इंटरब्रीडिंग ने हमारी प्रजातियों पर स्थायी आनुवंशिक छाप छोड़ी है, जो विभिन्न लक्षणों एवं रोग संवेदनशीलताओं को प्रभावित करती है।
- गैर-अफ्रीकी समूहों में वर्तमान में 1-2% निएंडरथल DNA है, जो इस इंटरब्रिडिंग घटना की आनुवंशिक विरासत का प्रदर्शन करता है।
- नाक के आकार के अलावा निएंडरथल आनुवंशिक योगदान को मनुष्यों द्वारा रोगजनकों एवं कुछ त्वचा तथा रक्त स्थितियों, कैंसर और यहाँ तक कि अवसाद के प्रति उनकी संवेदनशीलता के प्रति प्रतिक्रिया को जोड़कर देखा गया है।
- यह अध्ययन जिसमें दिखाया गया है कि कैसे निएंडरथल और डेनिसोवन के जीनोम का समकालीन मानव जीव विज्ञान एवं स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- जीनोमिक अनुसंधान का भविष्य:
- आनुवंशिक अनुसंधान का एक आकर्षक क्षेत्र इंटरब्रीडिंग घटनाओं एवं उनके प्रभावों का विश्लेषण है।
- जैसा कि अधिक अध्ययन पुरातन और आधुनिक मानव जीनोम के बीच परस्पर क्रिया की हमारी समझ में योगदान करते हैं, हम अपनी आनुवंशिक विरासत की अधिक व्यापक छवि प्राप्त करेंगे।
- इस ज्ञान में रोगों के अध्ययन में क्रांति लाने और मानव आनुवंशिक विविधता के जटिल टेपेस्ट्री के लिये हमारी प्रशंसा बढ़ाने की क्षमता है।
निएंडरथल:
- परिचय:
- निएंडरथल लगभग 400,000 से 40,000 वर्ष पहले यूरेशिया में रहते थे।
- वे पुरातन मानवों की एक प्रजाति थे जो एक सामान्य पूर्वज साझा करने वाले आधुनिक मनुष्यों से निकटता से संबंधित थे।
- शारीरिक विशेषताएँ:
- निएंडरथल के शरीर का गठन मज़बूत और गठीला था, जो ठंडे वातावरण में जीवित रहने के लिये अनुकूलित था।
- उनकी विशिष्ट शारीरिक विशेषताएँ थीं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रमुख भौंह रिज
- बड़ी नाक
- पीछे हटती ठुड्डी
- कौशल और उपकरण:
- निएंडरथल कुशल शिकारी और औज़ार बनाने वाले थे।
- ये विभिन्न उद्देश्यों के लिये पत्थर के औज़ारों और हथियारों का उपयोग करते थे जो उनकी अनुकूलन क्षमता और संसाधनशीलता को दर्शाता है।
- सांस्कृतिक परिष्कार:
- निएंडरथल की एक परिष्कृत संस्कृति थी, जैसा कि इसका सबूत है:
- प्रतीकात्मक व्यवहार जैसे गुफा चित्र और व्यक्तिगत आभूषण।
- दफन अनुष्ठान, मृत्यु के बारे में जागरूकता और संभवतः आध्यात्मिक विश्वासों का संकेत देते हैं।
- कलात्मक भाव, उनकी रचनात्मकता और संज्ञानात्मक क्षमताओं का प्रदर्शन करना।
- निएंडरथल की एक परिष्कृत संस्कृति थी, जैसा कि इसका सबूत है:
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 मई, 2023
सतत् भूमि प्रबंधन हेतु उत्कृष्टता केंद्र
सतत् भूमि प्रबंधन हेतु उत्कृष्टता केंद्र (CoE-SLM) का औपचारिक उद्घाटन 20 मई, 2023 को भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE), देहरादून में किया गया। इस पहल की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन (UNCCD) के 14वें सम्मेलन (COP-14) के दौरान की गई थी। CoE-SLM का उद्देश्य स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से भूमि क्षरण के मुद्दों से निपटना, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना और भूमि निम्नीकरण तटस्थता (LDN) में योगदान करना है। तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण एवं ज्ञान साझा कर CoE-SLM का इरादा खराब भूमि को बहाल करना, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और लक्ष्यों जैसे कि SDG, जैविक विविधता पर सम्मेलन तथा UNFCCC के साथ संरेखित करना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जैवविविधता हानि पर भूमि क्षरण के प्रभावों का समाधान करना है। CoE-SLM की स्थापना पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
और पढ़ें… मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर संवाद
DRI ने एम्बरग्रीस तस्करी गिरोह का पर्दाफाश किया
राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने एम्बरग्रीस तस्करी गिरोह का पर्दाफाश करके एक महत्त्वपूर्ण सफलता हासिल की है, जो देश की वनस्पतियों और जीवों के लिये खतरा है। DRI एक भारतीय खुफिया एजेंसी है जो केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC), वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा सीमा शुल्क की चोरी से संबंधित तस्करी एवं वाणिज्यिक धोखाधड़ी के खतरे का मुकाबला करने के लिये वर्ष 1957 में शीर्ष तस्करी विरोधी एजेंसी के रूप में इसका गठन किया गया था। राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) तस्करी विरोधी राष्ट्रीय समन्वय केंद्र (SCord) के लिये प्रमुख एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है, जो तस्करी विरोधी गतिविधियों में शामिल विभिन्न एजेंसियों के प्रयासों का समन्वय करता है। DRI का देश भर में क्षेत्रीय और आंचलिक (ज़ोनल) इकाइयों का नेटवर्क है, साथ ही कुछ देशों में विदेशी संपर्क कार्यालय भी हैं। एम्बरग्रीस, जिसे प्रायः व्हेल की उल्टी (Vomit) के रूप में जाना जाता है। यह एक ठोस और मोम जैसा पदार्थ है जो स्पर्म व्हेल की आँतों में उत्पन्न होता है। स्पर्म व्हेल में से केवल 1% ही एम्बरग्रीस का उत्पादन करती हैं। रासायनिक रूप से एम्बरग्रीस में एल्कलॉइड, एसिड और एंब्रेन नामक एक विशिष्ट यौगिक होता है, जो कोलेस्ट्रॉल के समान होता है। यह जल निकाय की सतह के चारों ओर तैरता है तथा कभी-कभी तट के समीप आकर इकठ्ठा हो जाता है। इसके उच्च मूल्य के कारण इसे तैरता हुआ सोना कहा जाता है। एम्बरग्रीस का मुख्य उपयोग इत्र उद्योग में होता है, विशेष रूप से कस्तूरी सुगंध बनाने के लिये। ऐसा माना जाता है कि दुबई जैसे देशों में जहाँ इत्र का एक बड़ा बाज़ार है, इसकी अधिक मांग है। प्राचीन मिस्रवासी इसका प्रयोग धूप (Incense) के रूप में करते थे। ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग कुछ पारंपरिक औषधियों और मसालों के रूप में भी किया जाता है। हालाँकि अपने उच्च मूल्य के कारण विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में यह तस्करों के निशाने पर रहा है।
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आर्सेनिक एक्सपोज़र
हाल के एक अध्ययन ने भारत में बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों पर आर्सेनिक के निम्न स्तर पर सेवन के संभावित संज्ञानात्मक प्रभावों पर प्रकाश डाला है। शोध से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आर्सेनिक के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों ने एकाग्रता, कार्य-स्विचिंग और सूचना भंडारण के लिये उत्तरदायी महत्त्वपूर्ण मस्तिष्क क्षेत्रों में कम ग्रे-पदार्थ और कमज़ोर संपर्क प्रदर्शित किये। यह सुझाव देता है कि आर्सेनिक का पुराना संपर्क वैश्विक आबादी के एक बड़े भाग को प्रभावित करने वाली "मौन महामारी" हो सकता है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने विश्लेषण किया कि मुख्य रूप से भोजन के सेवन के माध्यम से आर्सेनिक का संपर्क विशेष रूप से दक्षिण भारत में चावल की खपत के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ था। हालाँकि चावल को एक विशिष्ट तरीके से पकाने से भूरे चावल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली आर्सेनिक की मात्रा 50% से अधिक और सफेद चावल में 74% तक चावल की सूक्ष्म पोषक सामग्री से समझौता किये बिना अधिकतम कम की जा सकती है। यह अनुसंधान “सी-वेद पहल” का एक भाग है, जो औद्योगिकीकरण और औद्योगिक समाजों में कमज़ोर आबादी सहित संज्ञानात्मक विकास पर विभिन्न जोखिम कारकों के प्रभाव का आकलन करने के लिये भारत तथा यूनाइटेड किंगडम के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है। आर्सेनिक एक गंधहीन और स्वादहीन उपधातु है जो पृथ्वी की उपरी सतह में व्यापक रूप से वितरित है। यह स्वाभाविक रूप से कई देशों की पृथ्वी की उपरी सतह और भू-जल में उच्च स्तर पर मौजूद है। यह अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषैला होता है। आर्सेनिकोसिस, आर्सेनिक विषाक्तता के लिये चिकित्सीय शब्द है जो शरीर में बड़ी मात्रा में आर्सेनिक के संचय के कारण होता है।
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7 लाख रुपए तक के वार्षिक विदेशी मुद्रा खर्च पर TCS से छूट
करदाताओं और व्यवसायों के व्यापक विरोध के बाद भारत सरकार ने विदेशी क्रेडिट कार्ड खर्च पर 20% कर लगाने के अपने निर्णय को उलट दिया है। वित्त मंत्रालय ने घोषणा की है कि किसी भी प्रक्रियात्मक अनिश्चितता को खत्म करने हेतु अपने अंतर्राष्ट्रीय डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को प्रति वित्तीय वर्ष 7 लाख रुपए तक के भुगतान पर लेवी से छूट दी जाएगी। यह निर्णय 1 जुलाई, 2023 से उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) के तहत छोटे लेन-देन के लिये स्रोत पर कर संग्रह (TCS) के आवेदन के संबंध में उठाई गई चिंताओं के जवाब में आया है। इसने स्पष्ट किया कि प्रति वर्ष 7 लाख रुपए तक का व्यय न तो LRS के अंतर्गत आएगा और न ही TCS के अधीन होगा। इस छूट को सुविधाजनक बनाने के लिये विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेन-देन नियम), 2000 में आवश्यक परिवर्तन अलग से जारी किये जाएंगे। इसके अतिरिक्त मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा और स्वास्थ्य भुगतान के लिये मौजूदा लाभकारी TCS उपचार जारी रहेगा, इस तरह के भुगतान के लिये 5% की TCS दर प्रतिवर्ष 7 लाख रुपए तक होगी। इसके अलावा भारतीय रिज़र्व बैंक ने हाल ही में LRS के तहत एक नया प्रावधान पेश किया है, जिससे व्यक्तियों को वार्षिक 2.5 लाख अमेरिकी डॉलर तक का विदेशी मुद्रा प्रेषण करने की अनुमति मिलती है।
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