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कृषि

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस

  • 15 May 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस

मेन्स के लिये:

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में अब पारंपरिक रोपाई (Conventional Transplanting) के स्थान पर 'डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस' (Direct Seeding of Rice- DSR) तकनीक को अपनाने के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि COVID-19 की वज़ह से पलायन के कारण प्रवासी किसानों को मज़दूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 
  • एक अनुमान के अनुसार, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को आगामी खरीफ मौसम में धान की रोपाई हेतु लगभग 10 लाख मज़दूरों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। ये सभी मज़दूर (अत्यधिक उत्तर प्रदेश और बिहार के निवासी) जुलाई की शुरुआत में धान की रोपाई हेतु पंजाब और हरियाणा राज्यों में आते हैं।

पारंपरिक रोपाई (Conventional Transplanting):

  • पारंपरिक रोपाई के तहत सबसे पहले किसानों द्वारा नर्सरी (संपूर्ण खेत का 5-10% क्षेत्र) तैयार कर धान के बीज की बुआई की जाती है।
  • 25-35 दिनों के पश्चात् इन धान के छोटे-छोटे पौधों को नर्सरी से हटाकर कर पूरे खेत में बुआई की जाती है।  
  • बारिश ने होने की स्थिति में धान में लगभग 4-5 सेमी. पानी की गहराई बनाए रखने हेतु लगभग रोजाना सिंचाई करनी पड़ती है। 
  • जलमग्न अवस्था में ऑक्सीजन की कमी के कारण खेत में खर-पतवारों की वृद्धि नहीं होती है, जबकि ‘एरेंचिमा ऊतक’ (Aerenchyma Tissues) के कारण धान की जड़ों में वायु पहुँचती रहती है। अतः जल धान के लिये एक दवा के रूप में कार्य करता है।    

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस

(Direct Seeding of Rice- DSR):

  • ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ के तहत नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इसके तहत ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनों की मदद से खेत में बीज़ों की बुआई की जाती है।
  • इस विधि के तहत किसानों को बीज़ों की बुआई से पूर्व जमीन को समतल तथा एक बार सिंचाई करनी होती है।
  • खेत की मृदा में आवश्यक नमी प्राप्त होने के पश्चात् दो बार जुताई करनी होती है जिसके बाद बीजों की बुआई और तृणनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है। 
  • दरअसल तृणनाशक (Herbicides) एक ऐसी दवा है जो खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक साबित होती है। ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ विधि के तहत इसका दो बार छिड़काव किया जाता हैं-
    • धान के अंकुरण से पूर्व।
    • बुआई के 20-25 दिन पश्चात्।
  • उल्लेखनीय है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punjab Agricultural University) ने एक ‘लकी सीड ड्रिल’ भी विकसित किया है जिसकी मदद से बीज की बुआई एवं खरपतवारों को नियंत्रित करने हेतु तृणनाशक (हर्बिसाइड्स) का छिड़काव एक साथ किया जा सकता है।

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस के लाभ:

  • पानी की बचत।
  • कम संख्या में मज़दूरों की आवश्यकता।
  • श्रम लागत में कमी।

डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस की खामियाँ:

  • बाज़ार में तृणनाशक की कमी।
  • ‘डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस’ तकनीक के तहत धान की रोपाई में प्रति एकड़ 8-10 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक रोपाई में मात्र 4-5 किग्रा. बीज की ही आवश्यकता होती है।
  • बुआई से पूर्व जमीन को समतल की आवश्यकता के कारण प्रति एकड़ 1000 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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