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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 20 Jun, 2023
  • 30 min read
प्रारंभिक परीक्षा

महिला 20 शिखर सम्मेलन 2023

हाल ही में भारत ने G20 की अध्यक्षता के एक भाग के रूप में तमिलनाडु के महाबलीपुरम में महिला 20 (W20) शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जिसकी थीम 'महिला-नेतृत्व विकास- परिवर्तन, उन्नति करना और आगे बढ़ना' था।

  • इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य महिला सशक्तीकरण का जश्न मनाना तथा आर्थिक सशक्तीकरण, व्यापार एवं निवेश और अर्थव्यवस्था की देखभाल से संबंधित प्रमुख मुद्दों को संबोधित करना है।

W20 शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ: 

  • महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पदों और नेतृत्व की भूमिकाओं तक पहुँचने से रोकने वाली अदृश्य बाधाओं एवं पूर्वाग्रहों को तोड़ने पर चर्चा की गई।
  • स्वयं सहायता समूह (SHG), पीएम मुद्रा योजना और GeM पोर्टल जैसी सरकारी पहलों पर प्रकाश डाला गया है जो महिलाओं को बाज़ार और वित्त तक पहुँच प्रदान करते हैं।  
  • आर्थिक भागीदारी में लैंगिक असमानताओं को उजागर किया जाता है क्योंकि वित्तीय संसाधनों, बाज़ारों और व्यापार नेटवर्क सहित आर्थिक अवसरों तक पहुँचने में महिलाओं को अक्सर असमानताओं का सामना करना पड़ता है।  
  • प्रतिभागियों ने प्रणालीगत बाधाओं पर चर्चा की, जैसे कि क्रेडिट तक पहुँच की कमी, सीमित संपत्ति अधिकार और भेदभावपूर्ण प्रथाएँ, जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में बाधा डालती हैं।
  • यह शिखर सम्मेलन महिला सशक्तीकरण हेतु उन्नयन, लचीलापन और प्रगति के जश्न के रूप में मनाया गया।

W20: 

  • परिचय: 
    • W20 (महिला 20) G20 के तहत एक आधिकारिक जुड़ाव समूह है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2015 में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से की गई थी।
      • पहला W20 शिखर सम्मेलन वर्ष 2015 में तुर्किये की G20 अध्यक्षता में आयोजित किया गया था।
    • यह समूह G20 की चर्चाओं में लैंगिक विचारों को मुख्यधारा में शामिल करने के साथ उन्हें नीतियों और प्रतिबद्धताओं में परिवर्तित करने का प्रयास करता है।
      • यह G20 एजेंडे को प्रभावित करता है और विभिन्न वैश्विक चुनौतियों हेतु लैंगिक-संवेदनशील दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
  • प्राथमिकताएँ:
    • महिला उद्यमिता
    • धरातलीय स्तर पर महिला नेतृत्व
    • जेंडर डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना
    • शिक्षा और कौशल विकास
    • जलवायु परिवर्तन
  • संरचना: 
    • W20 में प्रतिनिधियों का एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क शामिल है।
    • ये प्रतिनिधि गैर-सरकारी महिला संगठनों, नागरिक समाज, महिला उद्यमियों, व्यवसायों और थिंक टैंक का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
    • यह नेटवर्क G20 सदस्य देशों तक फैला हुआ है। 
  • W20 और भारत की अध्यक्षता: 
    • W20 भारत ने 12 दिसंबर, 2022 को W20 इंडोनेशिया से इसकी अध्यक्षता ग्रहण की।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप

पुणे की इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) द्वारा विकसित सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को सौंप दिया गया है।

  • इस अद्वितीय अंतरिक्ष टेलीस्कोप को ISRO के आदित्य-L1 मिशन के साथ एकीकृत किया जाएगा जिसे अगस्त 2023 के मध्य में लॉन्च किया जाएगा।

सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT):

  • परिचय:  
    • SUIT का उद्देश्य सूर्य के पराबैंगनी (UV) उत्सर्जन का अध्ययन करना और विभिन्न UV तरंग दैर्ध्य में सूर्य के वातावरण की हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज को कैप्चर करना है जिसे कोरोना के रूप में जाना जाता है।
    • यह 200-400 नैनोमीटर के तरंग दैर्ध्य को कवर करते हुए दूर और निकट पराबैंगनी क्षेत्रों में काम करेगा।
    • यह सूर्य के वातावरण के गर्म तथा अधिक गतिशील क्षेत्रों जैसे कि संक्रमण क्षेत्र और कोरोना का अवलोकन करेगा।
  • महत्त्व:  
    • सूर्य अपने उच्च उत्सर्जन और विकिरण के कारण पृथ्वी के वातावरण से बाहर अध्ययन करने वाली सबसे कठिन वस्तुओं में से एक है।
      • SUIT वैज्ञानिकों को सूर्य के रहस्यों तथा पृथ्वी और अन्य ग्रहों पर इसके प्रभाव को जानने में सक्षम बनाएगा।
    • SUIT त्वचा कैंसर हेतु ज़िम्मेदार खतरनाक पराबैगनी विकिरण को भी मापेगा।
    • SUIT सूर्य की गतिविधि की निगरानी करेगा और संभावित सौर ज्वालाओं एवं कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करेगा, जो उपग्रहों, संचार प्रणालियों, पावर ग्रिड तथा पृथ्वी पर मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।

आदित्य-L1 मिशन:  

  • परिचय:  
    • ADITYA-L1 मिशन सूर्य का अध्ययन करने हेतु समर्पित होगा और पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर लैग्रेंजियन पॉइंट 1 (L1) तक उड़ान भरेगा, जो सूर्य का अवलोकन करने के लिये पाँच अनुकूल स्थानों में से एक है।
    • इस मिशन को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) रॉकेट का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा।
    • यह सूर्य की सतह की घटनाओं और अंतरिक्ष मौसम पर नियमित छवियाँ तथा  अपडेट प्रदान करेगा।
  • विशेषताएँ:  
    • आदित्य-L1 सात अलग-अलग पेलोड ले जाएगा जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम और सौर तूफान में सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं का अध्ययन करने में सक्षम हैं। इन 7 पेलोड में शामिल हैं:
      • दृश्यमान उत्सर्जन रेखा कोरोनाग्राफ (VELC)  
      • सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT)
      • सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS)
      • आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX)
      • हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)
      • प्लाज़्मा एनालाइज़र पैकेज फॉर आदित्य (PAPA)
      • एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर 

L1: 

  • L1 का अर्थ ‘लैग्रेंजियन/‘लैग्रेंज पॉइंट-1’ से है, जो पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के ऑर्बिट में स्थित पाँच बिंदुओं में से एक है। ‘लैग्रेंज पॉइंट्स’ का आशय अंतरिक्ष में स्थित उन बिंदुओं से है, जहाँ दो अंतरिक्ष निकायों (जैसे- सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आकर्षण एवं प्रतिकर्षण का क्षेत्र उत्पन्न होता है।
    • इसका नाम इतालवी-फ्राँसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लाग्रेंज के सम्मान में रखा गया है।
    • इसका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा सही स्थिति में बने रहने के लिये आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने हेतु किया जा सकता है। 
  • L1 सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पाँच लैग्रेंज बिंदुओं में से एक है। लैग्रेंज के पाँच बिंदुओं में से तीन अस्थिर हैं और दो स्थिर हैं।
    • L1, L2 और L3 के रूप में ये अस्थिर लैग्रेंज बिंदु दो बड़े द्रव्यमानों को जोड़ने वाली रेखा पर स्थित हैं।
    • L4 और L5 के रूप में स्थिर लैग्रेंज बिंदु दो समबाहु त्रिभुजाकार शीर्ष का निर्माण करते हैं जिनके किनारे पर बड़े द्रव्यमान होते हैं।
      • L4 पृथ्वी की कक्षा का नेतृत्व करता है और L5 इसका अनुसरण करता है। 
  • पृथ्वी-सूर्य प्रणाली का L1 बिंदु सूर्य का एक निर्बाध दृश्य प्रदान करता है तथा वर्तमान में सोलर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला उपग्रह का आवास है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


प्रारंभिक परीक्षा

पृथ्वी के घूर्णन पर भू-जल निष्कर्षण का प्रभाव

जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पृथ्वी के घूर्णन अक्ष पर भू-जल निष्कर्षण के प्रभाव और वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया है। 

  • शोधकर्त्ताओं ने शुरू में केवल बर्फ की परतों (Ice Sheets) और हिमनदों में हुए बदलाव के बाद भू-जल पुनर्वितरण परिदृश्यों में परिवर्तन के साथ-साथ पृथ्वी के घूर्णन अक्ष और जल के बहाव की गति में परिवर्तन पाया।

पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित करने वाले कारक: 

  • ध्रुवीय गति में योगदान देने वाले कारकों में मौसम, क्रोड का पिघलना और शक्तिशाली तूफान शामिल हैं।
    • पृथ्वी की भू-पर्पटी की तुलना में इसके घूर्णन अक्ष की गति को ध्रुवीय गति के रूप में जाना जाता है, जो अक्ष के घूर्णन पर ग्रह की प्रत्येक परत के बीच पदार्थ विनिमय और बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण के प्रभाव को इंगित करता है।
    • आमतौर पर ध्रुवीय गति का कारण जलमंडल, वायुमंडल, महासागरों अथवा स्थलमंडल में परिवर्तन है।
  • पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वे हैं जहाँ इन दोनों ध्रुवों की धुरी सतह को प्रतिच्छेदित करती है। हालाँकि यह निश्चित नहीं हैं। इसलिये पृथ्वी के द्रव्यमान वितरण में भिन्नता के कारण धुरी और ध्रुवों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
  • भूतकाल में ध्रुवों का विस्थापन केवल समुद्र की धाराओं और पृथ्वी के नीचे गहरी गर्म चट्टान के संवहन जैसी प्राकृतिक शक्तियों के कारण होता था।
  • नए शोध में विस्थापन के लिये प्राथमिक कारक के रूप में भू-जल के पुनर्वितरण को उत्तरदायी माना गया है। 
    • वर्ष 2016 में पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन में जल की भूमिका का पता चला और अब तक विस्थापन में भूजल के योगदान की खोज नहीं हो सकी है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • पृथ्वी का झुकना: 
    • वर्ष 1993 से 2010 के बीच भू-जल निष्कर्षण ने पृथ्वी को लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुका दिया है।
    • पृथ्वी में जल का परिसंचरण यह निर्धारित करता है कि द्रव्यमान कैसे वितरित होता है।
      • वर्ष 1993 से 2010 के बीच लोगों ने 2,150 गीगाटन भू-जल का निष्कर्षण किया है या समुद्र के स्तर में 6 मिलीमीटर से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • ध्रुवीय विस्थापन पर प्रभाव: 
    • अत्यधिक भू-जल पम्पिंग ने वर्ष 1993 और 2010 के बीच प्रतिवर्ष 4.36 सेंटीमीटर की दर से पृथ्वी के ध्रुवीय विस्थापन का कारण बना दिया है, जिससे यह ध्रुवीय गति पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला जलवायु संबंधी कारक बन गया है।
    • मध्य अक्षांश से पानी का पुनर्वितरण ध्रुवीय विस्थापन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, इसलिये पुनर्वितरण का स्थान ध्रुवीय विस्थापन को निर्धारित करता है।
      • अध्ययन अवधि के दौरान अधिकांश पुनर्वितरण पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत में हुआ, दोनों मध्य अक्षांशों पर स्थित हैं।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि पर भू-जल पम्पिंग का प्रभाव:
    • उल्लिखित अवधि के दौरान भू-जल पम्पिंग ने समुद्र के स्तर में 6.24 मिमी. की वृद्धि में योगदान दिया।
    • उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका जैसे मध्य अक्षांश क्षेत्रों से पम्पिंग का पृथ्वी के धुरी प्रवाह पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • ध्रुवीय विस्थापन का प्रभाव: 
    • रोटेशनल पोल सामान्य रूप से लगभग एक वर्ष के भीतर कई मीटर तक बदल जाता है, इसलिये भू-जल पम्पिंग के कारण होने वाले परिवर्तनों से मौसम बदलने का जोखिम नहीं होता है।
    • लेकिन भूगर्भीय समय के पैमाने पर ध्रुवीय विस्थापन का जलवायु पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • अनुशंसाएँ:
    • विशेष रूप से उन संवेदनशील क्षेत्रों में भू-जल की कमी दर को कम करने के प्रयास, सैद्धांतिक रूप से विस्थापन की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन यह केवल तभी संभव है जब ऐसे जल संरक्षण उपायों को दशकों तक बनाए रखा जाए।

अध्ययन का महत्त्व:

  • इस अध्ययन  के निष्कर्ष वैश्विक स्तर पर भू-जल की कमी और इसके परिणामों को उजागर करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
  • यह खोज पृथ्वी की घूर्णन गति और बढ़ते समुद्र के स्तर के विश्लेषण में एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में भू-जल की कमी पर विचार करने के महत्त्व को रेखांकित करती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


प्रारंभिक परीक्षा

मियावाकी वृक्षारोपण विधि

भारत के प्रधानमंत्री ने 'मन की बात' के अपने हालिया एपिसोड में मियावाकी वृक्षारोपण की अवधारणा पर चर्चा की। उन्होंने सीमित स्थानों में घने शहरी वन स्थापित करने की जापानी तकनीक पर प्रकाश डाला।

  • उन्होंने केरल के एक शिक्षक रफी रामनाथ की प्रेरक कहानी का भी उल्लेख किया, जिन्होंने मियावाकी पद्धति का उपयोग करके भूमि के एक बंजर टुकड़े को विद्यावनम नामक लघु वन में परिवर्तित कर दिया।

मियावाकी वृक्षारोपण विधि: 

  • परिचय:  
    • मियावाकी पद्यति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी (Akira Miyawaki) हैं। इस पद्यति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • यह कार्यविधि 1970 के दशक में विकसित की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भीतर हरित आवरण को सघन बनाना था।
    • इस कार्यविधि में पेड़ स्वयं अपना विकास करते हैं और तीन वर्ष के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं।
      • मियावाकी पद्धति में उपयोग किये जाने वाले पौधे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद एवं जल देने जैसे नियमित रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है।
  • महत्त्व: 
    • स्थानीय वृक्षों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ उद्यान स्थापित किया गया है। साथ ही पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं।
      • इन वनों के लिये उपयोग किये जाने वाले कुछ सामान्य स्थानीय पौधों में अंजन, अमला, बेल, अर्जुन और गुंज शामिल हैं।
    • ये वन नई जैव-विविधता और एक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं जिससे मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है। 

मुंबई में मियावाकी वन पद्धति:

  • मुंबई जैसे एक सीमित क्षेत्र वाले शहर में मियावाकी वृक्षारोपण पद्धति हरित आवरण को पुनर्प्राप्त करने में काफी मददगार साबित हुई है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने, प्रदूषण के स्तर को कम करने और शहर के हरित आवरण में वृद्धि करने के लिये मुंबई के विभिन्न खाली भूमि क्षेत्रों में बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) द्वारा मियावाकी वन दृष्टिकोण को लागू किया जा रहा है।
    • मुंबई में अब तक 64 मियावाकी वन लगाए जा चुके हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "मियावाकी पद्धति" किसके लिये विख्यात है: (2022) 

(a) शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में वाणिज्यिक कृषि का संवर्द्धन 
(b) आनुवंशिकतः रूपांतरित पुष्पों का प्रयोग कर उद्यानों का विकास 
(c) शहरी क्षेत्रों में लघु वनों का सृजन  
(d) तटीय क्षेत्रों और समुद्री सतहों पर पवन ऊर्जा का संग्रहण 

उत्तर: (c)  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

एलीगेटर गार फिश

कश्मीर की डल झील में पाई गई एक आक्रामक प्रजाति एलीगेटर गार फिश (एट्रैक्टोस्टियस स्पैटुला/Atractosteus spatula) ने चिंता बढ़ा दी है।

  • झील संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण (Lake Conservation and Management Authority- LCMA) तथा मत्स्य विभाग द्वारा इसके आक्रमण की सीमा एवं संभावित प्रभाव को समझने हेतु सहयोग किया जा रहा है।

एलीगेटर गार फिश एवं इससे संबद्ध जोखिम: 

  • परिचय:  
    • यह एलीगेटर गार बॉलफिन प्रजाति से संबंधित है। यह रे-फिनेड यूरीहैलाइन मछली है (ऐसे जीव जल की विस्तृत शृंखला, जो लवणता में भिन्न हो, में अनुकूलित होने की क्षमता रखते हैं), यह उत्तरी अमेरिका में मीठे जल की सबसे बड़ी मछलियों में से एक है और "गार" परिवार की सबसे बड़ी प्रजाति है।
      • यह भारत के कुछ हिस्सों जैसे- भोपाल और केरल में पाई जाती है। 
    • ये काफी तेज़ी से बढ़ते हैं और इनका जीवन काल 20 से 30 वर्ष का होता है।
  • संरक्षण स्थिति: 
    • IUCN: कम चिंतनीय 
  • चिंताएँ:  
    • इस प्रजाति की मछलियाँ आठ फीट तक लंबी सकती हैं। यह स्वदेशी मछली प्रजातियों के लिये खतरनाक हो सकती है। सर्दियों के दौरान यह डल झील के ठंडे जल में भी खुद को जीवित रख सकती है क्योंकि ये ज़्यादातर 11-23 डिग्री सेल्सियस तापमान में रहती हैं
  • जैवविविधता अधिनियम,  2002:  
    • जैवविविधता अधिनियम, 2002 के अनुसार, प्राकृतिक मछली आबादी को नुकसान पहुँचाने वाली आक्रामक मछली प्रजातियों की उपस्थिति प्रतिबंधित है

डल झील:

  • यह केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में स्थित एक झील है।
  • यह विश्व की सबसे बड़ी प्राकृतिक झीलों में से एक है और जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है।
  • यह कश्मीर में पर्यटन एवं मनोरंजन का अभिन्न अंग है तथा इसे "कश्मीर का मुकुट" या "श्रीनगर का गहना" नाम दिया गया है।
  • यह वाणिज्यिक मत्स्यन और जल संचयन संयंत्र गतिविधियों हेतु भी एक प्रमुख स्रोत है।
  • यह 18 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली है और तैरते हुए बगीचों (floating gardens) सहित एक प्राकृतिक आर्द्रभूमि का भाग है।
    • तैरते बगीचों (Floating Gardens) को कश्मीरी भाषा में "राड" (Raad) के रूप में जाना जाता है जिनमें जुलाई और अगस्त के दौरान कमल के फूल खिलते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जून, 2023

'अभ्यास खान क्वेस्ट' 2023 

"अभ्यास खान क्वेस्ट 2023" के रूप में जाना जाने वाला शांति स्थापना हेतु बहुराष्ट्रीय संयुक्त अभ्यास 20 से अधिक देशों के सैन्य दल और पर्यवेक्षकों की भागीदारी के साथ मंगोलिया में शुरू हो गया है। इस 14-दिवसीय अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना संचालन (United Nations Peacekeeping Operations- UNPKO) के लिये भाग लेने वाले देशों की अंतर-क्षमता को बढ़ाना, अनुभव साझा करना एवं वर्दीधारी कर्मियों को प्रशिक्षण देना है। यह अभ्यास भविष्य के संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों हेतु प्रतिभागियों को तैयार करेगा, शांति संचालन क्षमताओं को विकसित करेगा एवं सैन्य तैयारी को बढ़ाएगा। मंगोलिया उत्तर में रूस तथा दक्षिण में चीन के बीच एशिया में अवस्थित है। यहाँ सरकार का संसदीय रूप अपनाया गया है। मंगोलिया की राजधानी उलानबटार है। मंगोलिया में बोली जाने वाली भाषाओं में खलखा मंगोल (आधिकारिक), तुर्किक और रूसी शामिल हैं। प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ अल्ताई, खंगई व खेंटी हैं। इसकी प्रमुख नदी ओरखोन है।

और पढ़ें… Ex Khaan Quest, India-Mongolia Relations अभ्यास खान क्वेस्ट, भारत-मंगोलिया संबंध

नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NIXI) 

नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NIXI) ने अपना 20वाँ स्थापना दिवस मनाया, यह भारत के इंटरनेट बुनियादी ढाँचे के निर्माण के प्रति अपने अटूट समर्पण की पुष्टि करता है। वर्ष 2003 को स्थापित NIXI, इलेक्ट्रोनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्त्वावधान में एक गैर-लाभकारी (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8) कंपनी है और यह इंटरनेट इकोसिस्टम को सक्षम करने के लिये विभिन्न बुनियादी ढाँचे के पहलुओं को सुविधाजनक बनाकर भारत में इंटरनेट पैठ बनाने का कार्य करती है। NIXI के अंतर्गत आने वाली चार सेवाएँ IXPs की स्थापना कर रही हैं, इसमें इंटरनेट एक्सचेंज पॉइंट्स के निर्माण के लिये डॉटइन डोमेन, डिजिटल पहचान के निर्माण हेतु डॉटइन रजिस्ट्री, IPv4 के लिये IRINN और IPv4 IPv6 अड्रेस अपनाने तथा NIXI-CSS के तहत डेटा स्टोरेज सेवाओं हेतु डेटा सेंटर सेवाएँ शामिल हैं। Pv6 विशेषज्ञ पैनल (IP गुरु) उन सभी भारतीय संस्थाओं को समर्थन प्रदान करने वाला एक समूह है जो IPv6 को स्थानांतरित करने और अपनाने में तकनीकी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

और पढ़ें…नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया

दक्षता: सरकारी प्रशासन में युवा पेशेवरों को सशक्त बनाना 

iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म पर युवा पेशेवरों के लिये हाल ही में लॉन्च किया गया संग्रह दक्षता (प्रशासन में समग्र परिवर्तन के लिये दृष्टिकोण, ज्ञान और कौशल का विकास) का उद्देश्य सरकार में युवा पेशेवरों एवं सलाहकारों को अपने कर्तव्यों एवं ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निर्वहन करने के लिये आवश्यक दक्षताओं से परिपूर्ण करना है। यह 18 पाठ्यक्रमों को मिलाकर बना है। इस संग्रह में युवा पेशेवरों तथा सलाहकारों की भूमिकाओं के लिये महत्त्वपूर्ण विषयों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है जिसमें डेटा-आधारित निर्णय लेना, आचार संहिता, प्रभावी संचार कौशल, सार्वजनिक नीतियों का अनुसंधान, तनाव प्रबंधन आदि शामिल हैं। iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म, मिशन कर्मयोगी के तहत स्थापित एक ऑनलाइन पोर्टल है जो सरकारी पदाधिकारियों के क्षमता निर्माण, कैरियर प्रबंधन और नेटवर्किंग के लिये व्यापक संसाधन प्रदान करता है। 

और पढें… iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म, मिशन कर्मयोगी 

न्यूस्पेस इंडिया MSS टर्मिनलों के साथ समुद्री संचार को बढ़ाएगा 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने समुद्र में जहाज़ों के साथ संचार में सुधार और भारतीय जल क्षेत्र की निगरानी बढ़ाने के लिये एक परियोजना शुरू की है। कंपनी की योजना 13 तटीय राज्यों में लगभग एक लाख मोटर चालित तथा मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर मोबाइल उपग्रह सेवा (MSS) टर्मिनल स्थापित करने की है। MSS टर्मिनल समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाज़ों की निगरानी और ​​नियंत्रण में सक्षम होंगे। यह प्रणाली भारत की अपनी नेविगेशन उपग्रह प्रणाली, भारतीय नक्षत्र में नेविगेशन (NavIC) द्वारा संचालित होगी। इस महत्त्वाकांक्षी पहल का उद्देश्य समुद्री क्षेत्र में आपातकालीन संचार क्षमताओं एवं परिसंपत्तियों की ट्रैकिंग को मज़बूत करना है, जिससे भारत की तटरेखा के साथ अधिक सुरक्षित संचालन को बढ़ावा मिलेगा।

और पढ़ें: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन


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