पश्चिमी घाट में नया पठार
हाल ही में महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में एक दुर्लभ कम ऊँचाई वाले बेसाल्ट पठार की खोज की गई है। यह खोज जलवायु परिवर्तन का प्रजातियों के अस्तित्त्व पर होने वाले प्रभाव को समझने और विश्व भर में चट्टानी उभारों एवं उनके विशाल जैवविविधता के महत्त्व को संरक्षित करने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- निम्न ऊँचाई वाला बेसाल्ट पठार: यह इस क्षेत्र में पहचाना जाने वाला चौथे प्रकार का पठार है; पिछले तीन उच्च तथा निम्न ऊँचाई वाले लेटराइट एवं उच्च ऊँचाई वाला बेसाल्ट पठार हैं।
- विविध जैवविविधता: पठार के सर्वेक्षण के दौरान 24 विभिन्न वर्गों के पौधों और झाड़ियों की 76 प्रजातियों के संबंध में जानकारी मिली। यह एक महत्त्वपूर्ण खोज है क्योंकि यह अन्य तीन चट्टानी उभारों के साथ मिलकर उनके साथ एक सामान्य पारिस्थितिकी तंत्र साझा करता है।
- यह अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थितियों में प्रजातियों की अंतःक्रिया का अध्ययन करने के लिये एक अद्वितीय मॉडल प्रणाली प्रदान करता है।
नोट: रॉक (चट्टान) आउटक्रॉप में मौसमी जल की उपलब्धता, सीमित मिट्टी और पोषक तत्त्व होते हैं, जो उन्हें प्रजातियों के अस्तित्त्व पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिये आदर्श प्रयोगशाला बनाते हैं। पठार इस प्रकार अंतर्दृष्टि का एक मूल्यवान स्रोत है कि प्रजातियाँ चरम स्थितियों में कैसे जीवित रह सकती हैं।
पश्चिमी घाट:
- परिचय:
- पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तट के समानांतर और केरल, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, तमिलनाडु तथा कर्नाटक राज्यों के पहाड़ों की शृंखला से मिलकर बना है।
- पश्चिमी घाट भारत के चार वैश्विक जैवविविधता हॉटस्पॉट में से एक है।
- अन्य तीन हिमालय, भारत-बर्मा क्षेत्र और सुंडालैंड (निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं) हैं।
- इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- महत्त्व:
- घाट भारतीय मानसून मौसम पैटर्न को प्रभावित करते हैं जो इस क्षेत्र की गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु को प्रभावित करते हैं।
- वे दक्षिण-पश्चिम से आने वाली बारिश से चलने वाली मानसूनी हवाओं के लिये बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
- पश्चिमी घाट उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के साथ-साथ विश्व स्तर पर खतरे वाली 325 प्रजातियों का घर है।
- पश्चिमी घाट में पठार प्रमुख परिदृश्य हैं, जो स्थानिक प्रजातियों की प्रबलता के कारण महत्त्वत्पूर्ण हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. कभी-कभी खबरों में रहने वाली 'गाडगिल कमेटी रिपोर्ट' और 'कस्तूरीरंगन कमेटी रिपोर्ट' किससे संबंधित हैं (2016) (a) संवैधानिक सुधार उत्तर: (d) |
स्रोत: पी.आई.बी.
अतिचालकता
हाल ही में इटली में L'Aquila विश्वविद्यालय के भौतिकविदों द्वारा पहली बार पारे (Mercury) की अतिचालकता के संबंध में सूक्ष्मता से जानकारी प्रदान की गई है या यूँ कहें कि एक सूक्ष्म समझ विकसित हुई है।
- अतिचालकता की विशेषता से पूर्ण पहली सामग्री पारा थी, लेकिन शोधकर्त्ताओं को यह समझाने में 111 वर्ष लग गए कि आखिर यह ऐसा कैसे करता है।
अतिचालकता:
- किसी प्रतिरोध के बिना विद्युत धारा को प्रवाहित करने की किसी पदार्थ की क्षमता को अतिचालकता कहा जाता है। यह तब होता है जब किसी पदार्थ को क्रांतिक ताप (Critical Temperature) से नीचे ठंडा किया जाता है।
पारे की अतिचालकता:
- परिचय:
- वर्ष 1911 में हाइके कामरलिंघ ऑन्स ने पारे में अतिचालकता की खोज की।
- ऑन्स ने पदार्थ को पूर्ण शून्य (सबसे कम संभव तापमान) तक ठंडा करने की विधि की खोज की थी।
- इस विधि का उपयोग करते हुए उन्होंने पाया कि बहुत कम तापमान पर जिसे थ्रेशोल्ड तापमान (Threshold Temperature) कहा जाता है, ठोस पारा विद्युत प्रवाह का कोई प्रतिरोध नहीं करता है। यह भौतिकी के क्षेत्र में ऐतिहासिक खोज है।
- विभिन्न पद्धतियाँ: पारे की अतिचालकता को विभिन्न पद्धतियों द्वारा समझाया गया है:
- BCS सिद्धांत:
- बार्डीन-कूपर-श्रिफर (Bardeen-Cooper-Schrieffer- BCS) अतिचालक में परमाणुओं के ग्रिड द्वारा उत्पन्न कंपन ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों को जोड़ी बनाने के लिये प्रोत्साहित करती है, जिससे तथाकथित कूपर जोड़े बनते हैं।
- ये तांबे के जोड़े एक धारा में जल की भाँति आगे बढ़ सकते हैं, जो एक थ्रेसहोल्ड तापमान के नीचे अपने प्रवाह के लिये कोई प्रतिरोध नहीं करता है।
- ये बता सकते हैं कि पारा का इतना कम थ्रेसहोल्ड तापमान (लगभग -270 डिग्री सेल्सियस) क्यों है।
- स्पिन-ऑर्बिट कपलिंग:
- स्पिन-ऑर्बिट कपलिंग (SOC) वह तरीका है जिससे एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा उसके स्पिन और गति के बीच के संबंध से प्रभावित होती है।
- SOC ने फोनाॅन की ऊर्जा का बेहतर दृश्य प्रदान किया और समझाया कि पारा में इतना कम थ्रेसहोल्ड तापमान (लगभग -270 डिग्री सेल्सियस) क्यों है।
- कूलॉम प्रतिकर्षण:
- एक अन्य कारक प्रत्येक जोड़ी में दो इलेक्ट्रॉनों के बीच कूलॉम प्रतिकर्षण (जैसे 'आवेश प्रतिकर्षण ') था।
- अतिचालकता की अवस्था को इलेक्ट्रॉनों के बीच एक आकर्षी अंतःक्रिया, फोनाॅन द्वारा मध्यस्थता तथा प्रतिकर्षी कूलॉम अन्तःक्रिया (ऋणात्मक आवेशों के बीच विद्युत स्थैतिक प्रतिकर्षण) संतुलन द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- BCS सिद्धांत:
पारा:
- पारा प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला तत्त्व है जो वायु, जल और मृदा में पाया जाता है।
- प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे- चट्टानों के अपक्षय, ज्वालामुखी विस्फोट, भूतापीय गतिविधियों, वनाग्नि आदि के माध्यम से वातावरण में उत्सर्जित होता है।
- मानव गतिविधियों के माध्यम से भी पारा उत्सर्जित होता है।
- यह एकमात्र ऐसी धातु है जो कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में रहती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कंप्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7 उत्तर: (b) |
स्रोत: द हिंदू
हाइब्रिड इम्युनिटी
द लांसेट इन्फेक्शियस डिज़ीज़ जर्नल में हाल ही में किये गए एक अध्ययन में कहा गया है कि "हाइब्रिड इम्युनिटी" गंभीर कोविड-19 के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है, जबकि कुछ महीनों के भीतर पुन: संक्रमण के खिलाफ सभी प्रकार की प्रतिरक्षा कम हो जाती है।
- यह अध्ययन पिछले SARS-CoV-2 (कोविड) संक्रमण की सुरक्षात्मक प्रभावशीलता पर 11 अन्य अध्ययनों और हाइब्रिड इम्युनिटी की सुरक्षात्मक प्रभावशीलता पर 15 अध्ययनों के मेटा-विश्लेषण पर आधारित है।
हाइब्रिड इम्युनिटी:
- संक्रमण से हाइब्रिड इम्युनिटी वैक्सीन द्वारा प्रदान की गई प्रतिरक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक सुरक्षा का एक संयोजन है।
- यह केवल संक्रमण या टीकाकरण की तुलना में मज़बूत सुरक्षा परिणाम देती है।
- कोविड-19 के मामले में हाइब्रिड इम्युनिटी तब होती है जब कोई टीका लगवाने से पहले कोविड संक्रमण ठीक हो चुका होता है
प्रमुख बिंदु
- बेहतर सुरक्षा:
- एक हाइब्रिड इम्युनिटी अकेले संक्रमण की तुलना में सुरक्षा का "उच्च परिमाण और स्थायित्व" प्रदान करती है, जो टीकाकरण की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
- हालाँकि तेज़ी से फैलने वाले ओमीक्रॉन वेरिएंट से अधिक संक्रमण होता है और परिणामस्वरूप अधिक लोग इस हाइब्रिड इम्युनिटी को विकसित कर लेते हैं।
- हाइब्रिड इम्युनिटी की प्रभावकारिता:
- व्यक्ति को हुए संक्रमण के तीन महीने बाद अकेले Sars-CoV-2 संक्रमण के चलते होने वाली गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने से बचाव की दर 82.5% पाई गई।
- सुरक्षा की यह दर 12 महीनों में 74.6% और 15 महीनों में 71.6% के स्तर पर थी।
- पुन: संक्रमित होने से सुरक्षा में क्रमशः तीन महीने में 65.2% और 12 महीनों में 24.7% एवं 15 महीनों में 15.5% की गिरावट देखी गई है।
- इसी संबंध में हाइब्रिड इम्युनिटी के प्राथमिक वैक्सीन के आँकड़े बेहतर हैं- तीन महीने में 96% और 12 महीने में 97.4% तक की सुरक्षा क्षमता।
- वहीं तीन महीने में पुन: संक्रमण के खिलाफ 69% सुरक्षा प्रदान कर सकती है, जबकि 12 महीनों में 41.8% तक गिरावट देखी गई है।
- व्यक्ति को हुए संक्रमण के तीन महीने बाद अकेले Sars-CoV-2 संक्रमण के चलते होने वाली गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने से बचाव की दर 82.5% पाई गई।
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- प्राथमिक और साथ ही बूस्टर खुराक के साथ संक्रमण से प्राप्त हाइब्रिड इम्युनिटी की प्रभावशीलता तीन महीने में 97.2% और छह महीने में 95.3% थी।
- क्रियान्वयन:
- इसका उपयोग SARS-CoV-2 वैक्सीन की संख्या और समय निर्धारण के संबंध में किया जा सकता है।
- इसमें कहा गया है कि उच्च SARS-CoV-2 सीरो-प्रचलन वाले क्षेत्रों में प्राथमिक वैक्सीन (मुख्य रूप से उन लोगों जो गंभीर बीमारी के उच्चतम जोखिम जैसे पुरानी या सह-रुग्णता पर केंद्रित है) गंभीर बीमारी और कम-से-कम एक वर्ष के लिये अस्पताल में भर्ती होने के खिलाफ उच्च सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2022)
उपर्युक्त कथनों में कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: B व्याख्या:
अत: विकल्प B सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जनवरी, 2023
सबमरीन वागीर
भारतीय नौसेना कलवरी श्रेणी की पाँचवीं सबमरीन “वागीर” को अपने बेड़े में शामिल करेगी। भारत में इस सबमरीन का निर्माण मुंबई के मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने फ्राँस की कंपनी नेवल ग्रुप के सहयोग से किया है। वागीर स्वदेश में निर्मित अब तक की सभी सबमरीन में सबसे कम समय में तैयार हुई है। इससे भारतीय नौसेना की क्षमता में वृद्धि होगी। प्रोजेक्ट- 75 के तहत स्कॉर्पीन डिज़ाइन की छह सबमरीन का स्वदेशी निर्माण किया जाना शामिल है। कलवरी-श्रेणी की सबमरीन में युद्ध-रोधी और सबमरीन-रोधी संचालन, खुफिया जानकारी एकत्र करने और निगरानी तथा माइन बिछाने सहित विभिन्न प्रकार के नौसैनिक युद्ध संचालन की क्षमता है। भारतीय नौसेना में पहली सबमरीन INS कलवरी को दिसंबर 2017, दूसरी सबमरीन INS खंडेरी को सितंबर 2019 में, तीसरी सबमरीन INS करंज को मार्च 2021 में और चौथी सबमरीन INS वेला को नवंबर 2021 में सेवा में शामिल किया गया था। छठी और आखिरी सबमरीन वाग्शीर को वर्ष 2023 के अंत तक नौसेना को सौंपे जाने की उम्मीद है।
बत्तख की दुर्लभ प्रजाति
बत्तख की एक दुर्लभ प्रजाति ग्रेटर स्कूप, जिसे स्थानीय रूप से सदांगमन के नाम से जाना जाता है, को हाल ही में 94 वर्षों के अंतराल के बाद मणिपुर के बिष्णुपुर ज़िले में लोकटक झील में देखा गया है। ग्रेटर स्कूप एक मध्यम आकार की गोता लगाने वाली बत्तख की प्रजाति है जो एनाटिडे वर्ग से संबंधित है। बत्तख की इस प्रजाति को मणिपुर के पक्षी विज्ञानी कुमम जुगेश्वर और वन्यजीव खोजकर्त्ताओं द्वारा देखा गया। पक्षी वैज्ञानिकों का कहना है कि 94 वर्षों बाद लोकटक झील में बत्तख देखे जाने का यह पहला रिकॉर्ड है, जबकि ब्रिटिश काल के दौरान मणिपुर में ग्रेटर स्कूप के व्यापक रूप से बसेरा करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। ऐसा माना जाता है कि गोरखा राइफल्स के कैप्टन एल गैंबल और भारतीय सिविल सेवा अधिकारी जेपी मिल्स ने क्रमश: जनवरी 1925 एवं दिसंबर 1927 में इन बत्तखों का शिकार किया था। वर्तमान में लोकटक झील में व्हिसलिंग बत्तख और कूट भी देखे जा सकते हैं।
सैन्य रणक्षेत्रम् 2.0
भारतीय सेना के सेना प्रशिक्षण कमान मुख्यालय (HQ Training Command) द्वारा अक्तूबर 2022 से जनवरी 2023 तक "सैन्य रणक्षेत्रम् 2.0" नाम से हैकथॉन (Hackathon) के दूसरे संस्करण का आयोजन किया गया। सैन्य रणक्षेत्रम् 2.0 का लक्ष्य परिचालन संबंधित साइबर चुनौतियों का समाधान तलाशना, साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अभिनव समाधानों को तत्काल शुरू करना और इसके विकास में लगने वाले समय को कम करना है। साथ ही इसका लक्ष्य साइबर प्रतिरोध, सुरक्षा सॉफ्टवेयर कोडिंग, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम परिचालन एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग के क्षेत्र में प्रशिक्षण मानक को बढ़ावा देना भी था। इसमें सभी भारतीय नागरिक व्यक्तिगत या टीम के रूप में हिस्सा ले सकते थे। 17 जनवरी, 2023 को एक वर्चुअल समारोह में सैन्य प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने इस आयोजन के पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF)
केंद्रीय गृह मंत्री ने हाल ही में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force- NDRF) को उसके 18वें स्थापना दिवस (19 जनवरी) पर बधाई दी। NDRF दुनिया की सबसे बड़ी त्वरित मोचन बल है जो आपदा मोचन के लिये समर्पित है। NDRF का गठन वर्ष 2006 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं हेतु विशेष मोचन के उद्देश्य से किया गया था। वर्ष 2008 में कोसी बाढ़ NDRF का पहला मिशन था।
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सर्वोच्च न्यायालय का Google-CCI मुद्दे से संबंधित याचिका पर विचार करने से इनकार
सर्वोच्च न्यायालय ने Google पर 1,337 करोड़ रुपए के ज़ुर्माने पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार करने वाले NCLAT के आदेश के खिलाफ Google की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने का 10% जमा करने के लिये Google को 7 दिन का समय दिया है। भारतीय कंपनियों ने Google के खिलाफ न्यायालय के इस कदम का स्वागत किया है। इससे पहले CCI ने एंड्रॉइड मोबाइल डिवाइस इकोसिस्टम से संबंधित बाज़ारों में ‘अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने’ के लिये Google पर ज़ुर्माना लगाया था। इस संबंध में Google ने CCI के आदेश के खिलाफ NCLAT में अपील दायर की थी जिसे NCLAT ने अस्वीकार कर दिया था।
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सांसद खेल महाकुंभ 2022-23
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने बस्ती (UP) में आयोजित सांसद खेल महाकुंभ 2022-23 (18-28 जनवरी) के दूसरे चरण का उद्घाटन किया। पहले चरण का आयोजन 10-16 दिसंबर, 2022 तक किया गया था। खेल महाकुंभ एक अनूठी पहल है जो खेल प्रतिभाओं को प्रदर्शित करने का अवसर एवं मंच प्रदान करता है तथा लोगों को खेल को कॅरियर विकल्प के रूप में अपनाने के लिये प्रेरित करता है। खेल महाकुंभ द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं (इनडोर और आउटडोर) का आयोजन किया जाता है जैसे- कुश्ती, कबड्डी, खो-खो, बास्केटबॉल, फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल आदि के साथ-साथ निबंध लेखन, पेंटिंग एवं रंगोली बनाने की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। इन खेलों के माध्यम से प्रदर्शन करने वाले एथलीटों को भारतीय खेल प्राधिकरण के अंतर्गत आगे के प्रशिक्षण हेतु चुना जा रहा है।
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