20वीं समुद्री राज्य विकास परिषद
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गोवा में 20वीं समुद्री राज्य विकास परिषद (Maritime State Development Council- MSDC) की बैठक संपन्न हुई, जिसमें भारत के समुद्री क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई।
- इस कार्यक्रम में 80 से अधिक मुद्दों का हल करने हेतु केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के हितधारकों को बंदरगाह आधुनिकीकरण, समुद्री अवसंरचना, संपर्कता तथा नियामक फ्रेमवर्क के लिये केंद्रित कर एक मंच पर लाया गया।
20वीं MSDC की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
- नई पहल:
- MSDC ने नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम प्लेटफॉर्म पर नेशनल सेफ्टी इन पोर्ट्स कमेटी (NSPC) एप्लीकेशन की शुरुआत की, ताकि कार्य निष्पादन की रियल-टाइम मॉनिटरिंग और बेहतर सूचना साझाकरण के माध्यम से विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सके, दक्षता में सुधार लाया जा सके तथा समुद्री क्षेत्र के हितधारकों के लिये लागत कम की जा सके।
- मल्टी-मॉडल और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री विवादों को सुलझाने के लिये भारतीय अंतर्राष्ट्रीय समुद्री विवाद समाधान केंद्र (IIMDRC) की शुरुआत की गई, जिससे ‘भारत में समाधान’ पहल को बल मिला।
- थिंक टैंक भारतीय समुद्री केंद्र (IMC), जो समुद्री हितधारकों के बीच सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, को लॉन्च किया गया।
- बंदरगाह और राज्य रैंकिंग प्रणाली: परिषद द्वारा समुद्री क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने तथा प्रदर्शन में सुधार करने के लिये राज्य रैंकिंग फ्रेमवर्क एवं बंदरगाह रैंकिंग प्रणाली के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई।
- विरासत पहल: गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) को एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में रेखांकित किया गया, जो उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत की समृद्ध समुद्री विरासत को प्रदर्शित करता है।
- नाविकों पर ध्यान: नाविकों को आवश्यक कर्मचारी के रूप में मान्यता दी गई, जिससे उनकी कार्य स्थितियों में सुधार हुआ और उन्हें तटीय अवकाश की सुविधा मिली।
- प्रमुख बंदरगाह परियोजनाएँ: महाराष्ट्र के वधावन में भारत का 13वाँ प्रमुख बंदरगाह तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में गैलेथिया खाड़ी को 'प्रमुख बंदरगाह' के रूप में नामित करने पर प्रकाश डाला गया।
- इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में भारत के सबसे बड़े ड्रेजर, 12,000 घन मीटर ट्रेलर सक्शन हॉपर ड्रेजर (TSHD) के निर्माण हेतु कील बिछाने का समारोह भी किया गया, जो भारत की समुद्री अवसंरचना और क्षमताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- मेगा शिपबिल्डिंग पार्क: जहाज़ निर्माण क्षमताओं को प्रबल करने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये कई राज्यों में मेगा शिपबिल्डिंग पार्क स्थापित करने पर चर्चा की गई।
- रेडियोधर्मी जाँच उपकरण (RDE): सुरक्षा बढ़ाने के लिये बंदरगाहों पर रेडियोधर्मी जाँच उपकरण के बुनियादी ढाँचे का विकास की योजना बनाई गई। संकट में फँसे जहाज़ों को लंगर लगाने के लिये आश्रय स्थल बनाने पर भी चर्चा हुई।
भारत के समुद्री क्षेत्र से संबंधित अन्य पहल क्या हैं?
समुद्री राज्य विकास परिषद
- वर्ष 1997 में स्थापित MSDC भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास हेतु शीर्ष सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य राज्य सरकारों के साथ निकट समन्वय में प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के एकीकृत विकास को बढ़ावा देना है।
- MSDC समुद्री राज्यों में छोटे, कैप्टिव और निजी बंदरगाहों के विकास की निगरानी करता है, ताकि प्रमुख बंदरगाहों के साथ उनका एकीकृत विकास सुनिश्चित किया जा सके तथा अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं का आकलन कर संबंधित मंत्रियों की सिफारिशें की जा सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित राज्यों में से किसने एक लंबे नौसंचालन चैनल द्वारा समुद्र से जोड़े जाने के लिये एक कृत्रिम अंतर्देशीय बंदरगाह के निर्माण की संभावना का पता लगाया है? (2016) (a) आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) |
टाइफून यागी
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में टाइफून यागी ने दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर छति पहुँचाई है, जिससे फिलीपींस, चीन, लाओस, म्याँमार, थाईलैंड और विशेष रूप से वियतनाम प्रभावित हुए हैं।
- यह सितंबर 2024 तक एशिया में आने वाला सबसे शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात है और हरिकेन बेरिल (अटलांटिक महासागर) के बाद विश्व का दूसरा सबसे शक्तिशाली चक्रवात है।
- इसकी उत्पत्ति पश्चिमी फिलीपीन सागर में एक उष्णकटिबंधीय तूफान (63 किमी. प्रति घंटे तक की वायु की गति) के रूप में हुई थी, जो 260 किमी. प्रति घंटे की वायु की गति के साथ श्रेणी 5 टाइफून में बदल गया।
- सैफिर-सिंपसन विंड स्केल (Saffir-Simpson Hurricane Wind Scale) हरिकेन या उष्णकटिबंधीय चक्रवात को श्रेणी 1 (119-153 किमी. प्रति घंटे) से श्रेणी 5 (252 किमी. प्रति घंटे या उससे अधिक) में वर्गीकृत करता है, श्रेणी 3 और उससे अधिक तक पहुँचने वाले तूफानों को उनके महत्त्वपूर्ण नुकसान के कारण प्रमुख उष्णकटिबंधीय चक्रवात माना जाता है।"
- 119 किमी. प्रति घंटे और उससे अधिक की गति वाली तूफान प्रणालियों को हरिकेन, टाइफून या उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।"
- भारत सरकार द्वारा वियतनाम, लाओस और म्याँमार को सहायता तथा तत्काल आपूर्ति प्रदान करने हेतु ऑपरेशन “सद्भाव” शुरू किया गया है।
- ऑपरेशन ‘सद्भाव’ भारत की दीर्घकालिक 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' के अनुरूप, आसियान क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत (HDAR) में योगदान देने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है।
- उच्च गति के टाइफून के कारण: वर्ष 1850 के बाद से वैश्विक औसत समुद्री सतह के तापमान में लगभग 0.9°C तथा पिछले चार दशकों में लगभग 0.6°C की वृद्धि हुई है।
- समुद्र की सतह का उच्च तापमान समुद्री उष्ण तरंगों और वाष्पीकरण में वृद्धि करता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च गति वाले टाइफून आते हैं, जो समुद्रतटों के निकट विकसित होते हैं तथा तीव्र गति में बदल जाते हैं।
नोट: टाइफून बेबिनका ने चीन के शंघाई में दस्तक दी। यह 75 वर्षों में शंघाई में आने वाला सबसे शक्तिशाली टाइफून है। यह शायद ही कभी प्रत्यक्ष रूप से शंघाई को प्रभावित करते हैं, इसके बजाय वे आमतौर पर चीन के दक्षिण में अधिक तेज़ी से दस्तक देते हैं।
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चुंबकों में एमपेम्बा प्रभाव
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR) के वैज्ञानिकों ने चुंबकीय पदार्थों पर किये गए एक अध्ययन में एमपेम्बा (Mpemba) प्रभाव की पुष्टि की है।
- वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि गर्म पैरामैग्नेट अपने फेरोमैग्नेटिक चरणों में तेज़ी से संक्रमण करते हैं भले ही वे शुरुआत में उच्च तापमान पर हों।
- परमाणु चुंबकों के यादृच्छिक संरेखण के कारण पैरामैग्नेट में चुंबकीय क्षेत्रों के प्रति अस्थायी और कमज़ोर आकर्षण होता है, जबकि फेरोमैग्नेट व्यवस्थित परमाणु चुंबकों के साथ स्थायी व मज़बूत आकर्षण प्रदर्शित करते हैं।
- पैरामैग्नेटिक (अनुचुंबकीय) से फेरोमैग्नेटिक (लौहचुंबकीय) अवस्था में संक्रमण तब होता है, जब तापमान कम होकर एक "महत्त्वपूर्ण" (Critical) बिंदु पर पहुँचता है, जिसे क्यूरी बिंदु के रूप में जाना जाता है।
- एमपेम्बा प्रभाव: यह एक विरोधाभासी घटना है जिसमें एक गर्म द्रव कुछ स्थितियों में ठंडे द्रव की तुलना में तेज़ी से ठंडा हो सकता है अथवा जम सकता है।
- इसका उल्लेख सर्वप्रथम अरस्तू ने अपनी पुस्तक मेटेरोलॉजिका (Meterologica) में किया था। इसे 1960 के दशक में तंजानिया में एक स्कूली छात्र एरास्टो एमपेम्बा द्वारा पुनः खोजा गया था।
- निहितार्थ: इसके विविध अनुप्रयोग हो सकते हैं, जैसे- उपकरणों में बेहतर तापीय नियंत्रण, उन्नत शीतलन रणनीतियाँ आदि।
और पढ़ें: एमपेम्बा प्रभाव
डोडो की मानव-प्रेरित विलुप्ति
स्रोत: TH
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के शोधकर्त्ताओं और अन्य द्वारा किये गए एक नए अध्ययन ने इस विचार को चुनौती दी है कि डोडो एक सुस्त एवं स्थूल पक्षी है।
- अध्ययन में साक्ष्य मिले है कि डोडो और उससे संबंधित प्रजाति, रॉड्रिक्स सॉलिटेयर, वास्तव में तेज़ गति से चलने वाले अनुकूलित वन पक्षी थे।
- डोडो के विलुप्त होने का मुख्य कारण उनमें बुद्धिमत्ता की कमी नहीं, बल्कि उनके आवास में मानवीय गतिविधियों और आक्रामक गैर-मूल प्रजातियों (जैसे- सूअर, चूहे और बिल्लियों) का समावेशन था, जो उनके अंडों एवं चूजों का शिकार करते थे।
- DNA एनालिसिस के माध्यम से यह सिद्ध किया गया है कि डोडो कबूतरों के परिवार (कोलंबिडे) से संबंधित था और इसकी निकट संबंधी प्रजाति निकोबार कबूतर थी।
डोडोस और रॉड्रिग्स सॉलिटेयर्स:
डोडो |
सॉलिटेयर्स |
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वैज्ञानिक नाम |
राफस क्यूकुलैटस |
पेजोफैप्स सॉलिटेरिया |
विशेषताएँ |
इसके पंख भूरे रंग के थे तथा इसकी चोंच बड़ी और मुड़ी हुई थी। |
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प्राकृतिक आवास |
मॉरीशस द्वीप का स्थानिक और वनों में निवास करने वाला |
मॉरीशस के रॉड्रिग्स द्वीप में स्थानिक |
विकासवादी इतिहास |
डोडो में संभवतः दौड़ने की प्रबल क्षमता थी। |
मॉरीशस में शिकारियों की अनुपस्थिति के कारण यह उड़ने में असमर्थ हो गया। |
खोज और विलुप्ति |
वर्ष 1681 में विलुप्त |
विलुप्त (अंतिम बार 1760 के दशक में पुष्टि हुई) |
और पढ़ें: अलेक्जेंड्रिन पैराकेट्स
ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफॉर्म
स्रोत: ET
हाल ही में सरकार ने निर्यात और आयात से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करने हेतु ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफॉर्म (Trade Connect ePlatform) नामक पोर्टल लॉन्च किया है।
- ट्रेड कनेक्ट ई-प्लेटफॉर्म को विदेश मंत्रालय और MSME, एक्जिम बैंक (निर्यात-आयात बैंक) , सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख TCS तथा वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Services (DFS) के सहयोग से विकसित किया गया है।
- यह बड़ी संख्या में आयात-निर्यात कोड (Import-Export code- IEC) धारकों , भारतीय मिशन के अधिकारियों , निर्यात संवर्द्धन परिषद के अधिकारियों , विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT) और वाणिज्य विभाग के अधिकारियों को जोड़ेगा।
- महत्त्व:
- इस पोर्टल का उद्देश्य निर्यातकों को व्यापक सहायता तंत्र और संसाधन उपलब्ध कराकर सूचना विषमता को कम करना है।
- यह मंच उत्पाद और देश-विशिष्ट सीमा शुल्क एवं विनियमों, मुक्त व्यापार समझौतों का विवरण तथा विभिन्न सरकारी विभागों व एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली व्यापार-संबंधी सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।
- इसके अतिरिक्त यह गैर-टैरिफ बाधाओं, वैश्विक खरीदारों और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों पर अद्यतन जानकारी भी प्रदान करेगा।
- वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करेगा।
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