विशेषाधिकार उल्लंघन नोटिस
स्रोत: द हिंदू
मुख्य विपक्षी दल ने पूर्व उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के खिलाफ “अपमानजनक” टिप्पणी करने के लिये प्रधानमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस प्रस्तुत किया।
विशेषाधिकार का उल्लंघन क्या है?
- परिचय:
- जब कोई व्यक्ति या अधिकारी किसी सदस्य के विशेषाधिकार, अधिकार और उन्मुक्ति का उल्लंघन करता है, चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या सदन की सामूहिक क्षमता में, तो उस अपराध को विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है तथा सदन द्वारा दंडनीय होता है।
- इसके अतिरिक्त, सदन के प्राधिकार या गरिमा का अनादर करने वाली कोई भी कार्रवाई, जैसे उसके आदेशों की अनदेखी करना या उसके सदस्यों, समितियों या अधिकारियों का अपमान करना, विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
- सदन की अवमानना बनाम औचित्य के मुद्दे:
- सदन की अवमानना: इसे सामान्यतः ऐसे किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो संसद के किसी भी सदस्य या सदन को उसके कर्त्तव्य और कार्यों के निर्वहन में बाधा डालता है।
- औचित्य के बिंदु: संसद और उसके सदस्यों को विशिष्ट प्रथाओं तथा परंपराओं का पालन करना चाहिये एवं इनका उल्लंघन करना 'अनुचित' माना जाता है।
- संसद की दण्ड देने की शक्ति:
- संसद का प्रत्येक सदन अपने विशेषाधिकारों का संरक्षक है।
- भारत में न्यायालयों ने माना है कि संसद का सदन (या राज्य विधानमंडल) किसी विशेष मामले में सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन हुआ है या नहीं, इसका निर्णय करने का एकमात्र प्राधिकारी है।
- सदन विशेषाधिकारों के उल्लंघन या सदन की अवमानना का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को फटकार या चेतावनी देकर या निर्दिष्ट अवधि के लिये कारावास से दंडित कर सकता है।
- इसके अलावा सदन अपने सदस्यों को दो अन्य तरीकों से दंडित कर सकता है अर्थात् सेवा से निलंबन और निष्कासन।
- हालाँकि सदस्य द्वारा बिना शर्त माफी मांगने की स्थिति में सदन आमतौर पर अपनी गरिमा के हित में मामले को आगे बढ़ाने से बचता है।
- कार्यविधि: विशेषाधिकार के प्रश्नों से निपटने की प्रक्रिया राज्यसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम, 187 से 203 में निर्धारित की गई है।
- सदन में विशेषाधिकार का प्रश्न सभापति की सहमति प्राप्त करने के बाद ही उठाया जा सकता है।
- यह प्रश्न कि क्या कोई मामला वास्तव में विशेषाधिकार का उल्लंघन है या सदन की अवमानना का है, इसका निर्णय पूरी तरह से सदन को करना है।
- किसी अन्य सदन के सदस्य द्वारा विशेषाधिकार का उल्लंघन:
- विशेषाधिकार समितियों की संयुक्त रिपोर्ट,1954 की के अनुसार, जब सदन के कार्मिकों से संबंधित विशेषाधिकार हनन का मामला लोकसभा या राज्यसभा में उठाया जाता है, तो पीठासीन अधिकारी मामले को दूसरे सदन के पीठासीन अधिकारी को प्रेषित कर देता है।
- सदन इसे अपने विशेषाधिकार के उल्लंघन के रूप में देखता है तथा जाँच एवं की गई कार्रवाई के बारे में रिपोर्ट देता है।
- विशेषाधिकार समितियों की संयुक्त रिपोर्ट,1954 की के अनुसार, जब सदन के कार्मिकों से संबंधित विशेषाधिकार हनन का मामला लोकसभा या राज्यसभा में उठाया जाता है, तो पीठासीन अधिकारी मामले को दूसरे सदन के पीठासीन अधिकारी को प्रेषित कर देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी संसदीय समिति जाँच करती है और सदन को रिपोर्ट करती है कि संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों, उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का कार्यपालिका द्वारा प्रतिनिधिमंडल के दायरे में उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है। (2018) (a) सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ (इम्यूनिटीज़), जैसे कि वे संविधान की धारा 105 में परिकल्पित हैं, अनेकों असंहिताबद्ध (अन कोडिफ़ाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारों के जारी रहने का स्थान खाली छोड़ देती हैं। संसदीय विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारणों का आकलन कीजिये। इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है? (2014) |
वैश्विक DPI को आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
डिजिटल क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है, विशेष रूप से डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure- DPI) में इसकी प्रगति के माध्यम से।
- DPI पर भारत के G20 टास्क फोर्स की हालिया रिपोर्ट में इस क्षेत्र में भारत के नेतृत्व पर प्रकाश डाला गया है और देश से वैश्विक दक्षिण में अपने डिजिटल समाधानों को सक्रिय रूप से विस्तारित करने का आग्रह किया गया है।
नोट: टास्क फोर्स की स्थापना जनवरी 2023 में DPI और वित्तीय समावेशन पर भारत के G20 प्रेसीडेंसी एजेंडे की देखरेख के लिये की गई थी।
- इसका उद्देश्य डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाकर उत्पादकता को बढ़ावा देना और सरकार की डिजिटल अर्थव्यवस्था नीतियों का समर्थन करना है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- वैश्विक निकाय की पहचान: रिपोर्ट में विभिन्न क्षेत्रों में DPI पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग करने के लिये एक वैश्विक-मानक संगठन की स्थापना की सिफारिश की गई है।
- इस इकाई की बहुराष्ट्रीय उपस्थिति होनी चाहिये और नीतियों को तैयार करने तथा रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये आवश्यक विशेषज्ञता होनी चाहिये। इसका लक्ष्य राष्ट्रों के बीच, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में सहयोग को सुविधाजनक बनाना होगा।
- DPI के साथ AI का एकीकरण: नैतिक उपयोग और डेटा गोपनीयता सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए DPI क्षमताओं को बढ़ाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता के एकीकरण का पता लगाना।
- रिपोर्ट में DPI में नवाचार और मापनीयता को बढ़ावा देने के लिये ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर तथा एआई मॉडल का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है, जिससे इसे निजी अभिकर्त्ताओं हेतु अधिक सुलभ बनाया जा सके।
- AI-सक्षम सेवाओं में विश्वास बनाने के लिये उपयोगकर्त्ता डेटा की सुरक्षा के उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
- AI एल्गोरिदम में पूर्वाग्रहों को संबोधित करने से सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित होता है, AI प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने से डिजिटल सेवाओं में जनता का विश्वास हासिल करने में मदद मिलती है।
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) क्या है?
- परिभाषा: DPI को साझा डिजिटल प्रणालियों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, जो सुरक्षित और अंतर-संचालनीय होना चाहिये तथा सामाजिक स्तर पर सार्वजनिक और/या निजी सेवाओं तक समान पहुँच प्रदान करने के लिये खुले मानकों एवं विनिर्देशों पर बनाया जा सकता है।
- DPI को लागू कानूनी ढाँचे और सक्षम नियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है ताकि मानव अधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए विकास, समावेशन, नवाचार, विश्वास एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया जा सके।
- DPI के घटक:
- प्रौद्योगिकी: इसमें डिजिटल प्रणालियाँ और अनुप्रयोग (जैसे- सॉफ्टवेयर कोड, बिल्डिंग ब्लॉक्स, प्रोटोकॉल, मानक) शामिल हैं जो अंतर-संचालनीय हैं।
- शासन व्यवस्था: शासन व्यवस्था DPI में लोगों का विश्वास स्थापित कर बड़े पैमाने पर उपयोगकर्त्ताओं द्वारा इसे अपनाने में सहायता करता है। शासन ढाँचे में निम्नलिखित तत्त्व शामिल हैं:
- हितधारक की गतिविधि को नियंत्रित करने वाले सहभागिता के नियम।
- क्रॉस-कटिंग और डोमेन-विशिष्ट मानदंड, विधि तथा नीतियाँ।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों में अंतर्निहित शासन।
- इसके डिज़ाइन, परिनियोजन और कार्यान्वयन पर निगरानी बनाए रखने के लिये उत्तरदायी संस्थान।
- समुदाय: समुदाय की सक्रिय और समावेशी भागीदारी मूल्य सृजन को सक्षम कर सकती है। इसमें निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के अभिकर्त्ता भी शामिल हैं जो नवाचार को बढ़ावा देने तथा मूल्य सृजन के लिये सहयोग कर सकते हैं।
- आधारभूत DPI:
- पहचान: इसमें लोगों और व्यवसायों के लिये अपनी पहचान को सुरक्षित रूप से सत्यापित करने की क्षमता, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर तथा सत्यापन योग्य क्रेडेंशियल जैसी विश्वास की पूरक सेवाएँ हैं।
- भुगतान: इसकी सहायता से लोगों, व्यवसायों और सरकारों के बीच धन का सुगम तथा त्वरित अंतरण संभव है।
- डेटा साझाकरण: यह शासन ढाँचे के अनुसार वैयक्तिक डेटा सुरक्षा के लिये सुरक्षा उपायों की सहायता से सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में सहमति के साथ डेटा को निर्बाध रूप से साझा करने की सविधा प्रदान करता है।
- DPI संबंधी भारतीय उदाहरण और उनकी उपलब्धियाँ:
भारत वर्तमान में वैश्विक DPI में किस प्रकार योगदान कर रहा है?
- UPI का वैश्वीकरण: यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को वैश्वीकृत करने के लिये विदेशों में भारतीय मिशनों के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है जिसके तहत अभी तक 80 से अधिक देशों के साथ वार्ता और 30 से अधिक देशों में भागीदारी की गई है।
- NPCI की भूमिका: भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) UPI के अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति के लिये ज़ोर दे रहा है जो वैश्विक स्तर पर डिजिटल वित्त के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।
और पढ़ें: डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना व्याख्या: (a)
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। |
विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसियाँ (SAAs)
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court - SC) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने प्रत्येक ज़िले में विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसियाँ (Specialised Adoption Agencies - SAAs) स्थापित नहीं कीं तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।
- भारत के 760 ज़िलों में से 370 ज़िलों में SAA क्रियाशील नहीं हैं, जबकि न्यायालय ने देश भर में SAA की स्थापना अनिवार्य करने का आदेश दिया है।
- इस अंतर के कारण दत्तक ग्रहण पंजीकरण (वर्ष 2023-2024 में 13,467) और वास्तविक दत्तक ग्रहण (लगभग 4,000) के बीच काफी असमानता पैदा हो गई है, जिसका मुख्य कारण अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा है।
- केवल गोवा, कर्नाटक, केरल, राजस्थान और चंडीगढ़ ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पूरी तरह से पालन किया है।
- उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ 75 में से 61 ज़िलों में SAA नहीं है।
- भारत में दत्तक ग्रहण हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA), 1956 (हिंदुओं, जैन, सिख और बौद्धों के लिये) और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा शासित है।
- केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority- CARA) भारत में अनाथ और परित्यक्त बच्चों के दत्तक ग्रहण को विनियमित करने वाली नोडल संस्था है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1990 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत की गई थी।
- यह बच्चों के संरक्षण और सहयोग पर हेग कन्वेंशन, 1993 का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- यह राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (SARA), SAA, प्राधिकृत विदेशी दत्तक ग्रहण एजेंसी (AFAA), बाल कल्याण समितियों (CWC) और ज़िला बाल संरक्षण इकाइयों (DPU) को नियंत्रित करता है।
और पढ़ें: भारत में दत्तक ग्रहण
संविधान हत्या दिवस
स्रोत: पीआईबी
हाल ही में 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया जाना, उस मार्मिक अवधि की याद दिलाता है जब भारत के संविधान का, विशेष रूप से वर्ष 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान,दमन किया गया था।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह दिन उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देगा, जिन्होंने आपातकाल की ज़्यादतियों को झेला। यह नागरिकों को उनके अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा में संविधान के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने के साधन के रूप में कार्य करता है।
- 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की अवधि आपातकाल की अवधि थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में महत्त्वपूर्ण कार्यकारी और विधायी परिवर्तन लागू करने के लिये संविधान में विशेष प्रावधानों का उपयोग किया था।
- आपातकाल की घोषणा से सत्ता का केंद्रीकरण होता है, जिससे संघ को राज्य सरकारों को निर्देश देने की अनुमति मिलती है, जिससे वे केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं, जिससे प्रभावी रूप से एकात्मक प्रणाली का निर्माण होता है।
- भारत ने तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की है। सर्वप्रथम वर्ष 1962 से वर्ष 1968 तक भारत-चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान और तीसरी बार वर्ष 1975 से वर्ष 1977 तक राजनीतिक अस्थिरता के कारण आपातकाल की घोषणा की गई थी।
संविधान में आपातकालीन प्रावधान:
अनुच्छेद |
विषय-वस्तु |
अनुच्छेद-352 |
आपातकाल की उद्घोषणा |
अनुच्छेद-353 |
आपातकाल की उद्घोषणा का प्रभाव |
अनुच्छेद-354 |
आपातकाल की उद्घोषणा लागू होने पर राजस्व के वितरण से संबंधित प्रावधानों का अनुप्रयोग |
अनुच्छेद-355 |
बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्यों की रक्षा करना संघ का कर्त्तव्य |
अनुच्छेद-356 |
राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में प्रावधान |
अनुच्छेद-357 |
अनुच्छेद 356 के तहत जारी उद्घोषणा के तहत विधायी शक्तियों का प्रयोग |
अनुच्छेद-358 |
आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 के प्रावधानों का निलंबन |
अनुच्छेद-359 |
आपातकाल के दौरान भाग III द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन |
अनुच्छेद-360 |
वित्तीय आपातकाल के संबंध में प्रावधान |
और पढ़ें: 1975 का आपातकाल और उसका प्रभाव