प्रिलिम्स फैक्ट्स (10 Apr, 2025)



ओटावा लैंडमाइन कन्वेंशन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

NATO सदस्य: पोलैंड, फिनलैंड और तीन बाल्टिक राष्ट्र (एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया) वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से बढ़ते सुरक्षा खतरों का हवाला देते हुए वर्ष 1997 के ओटावा कन्वेंशन से अलग हो रहे हैं।

  • उनके अनुसार युद्ध विराम से रूस के पुनः हथियारबंद होने की संभावना है जिससे उनकी सुरक्षा को खतरा होगा।

ओटावा कन्वेंशन 1997 क्या है?

  • परिचय:
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसके अंतर्गत नररोधी (एंटी-पर्सनल) लैंड माइन के उपयोग, उत्पादन, भंडारण और हस्तांतरण को प्रतिबंधित किया गया है।
      • लैंड माइन छुपे हुए विस्फोटक यंत्र होते हैं जो मानव की निकटता अथवा दाब से सक्रिय हो जाते हैं। 
      • एंटी-पर्सनल माइंस को विशेष रूप से सैनिकों सहित व्यक्तियों को क्षति अथवा चोट पहुँचाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह हस्ताक्षरकर्त्ताओं को 4 वर्षों के भीतर इस प्रकार के भंडारों को नष्ट करने, लैंड माइन वाले क्षेत्रों को साफ करने और पीड़ितों की सहायता करने के लिये बाध्य करता है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य लैंडमाइंस से होने वाले नागरिक नुकसान को कम करना है, जो संघर्ष समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक घातक बनी रहती हैं।
  • अंगीकरण: 18 सितंबर 1997 को ओस्लो में राजनयिक सम्मेलन में इसे अंतिम रूप दिया गया तथा 1 मार्च 1999 को यह लागू हुआ।
  • क्षेत्र: एंटी-पर्सनल लैंडमाइंस पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन एंटी-व्हीकल माइंस (वाहनों को नुकसान पहुँचाने या नष्ट करने के लिये बनाई गई) पर लागू नहीं होता है।
  • सदस्यता: 164 राज्य देश।
    • अमेरिका, रूस और भारत जैसी प्रमुख शक्तियाँ इसके पक्षकार नहीं हैं।

क्लस्टर युद्ध सामग्री पर 2008 अभिसमय

  • यह अभिसमय क्लस्टर युद्ध सामग्री के सभी उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगाता है। 
    • क्लस्टर हथियार ऐसे हथियार हैं जो एक बड़े क्षेत्र में कई छोटे विस्फोटक (Bomblets) छोड़ते हैं, इससे प्रायः नागरिकों को नुकसान पहुँचता है तथा स्थायी मानवीय जोखिम उत्पन्न होता है।
  • इसमें 112 पक्षकार और 12 हस्ताक्षरकर्त्ता हैं। हाल ही में, लिथुआनिया ने क्लस्टर युद्ध सामग्री पर वर्ष 2008 के अभिसमय से खुद को अलग कर लिया है, जो ऐसे हथियारों पर प्रतिबंध लगाता है जो छोटे बमों का प्रयोग विस्तृत क्षेत्रों में करते हैं। 
    • इस अभिसमय पर भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूक्रेन, पाकिस्तान और इज़रायल सहित कई देशों ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित में से किसका उपयोग विस्फोटक के रूप में किया जाता है? (2009)

(a) फॉस्फोरस ट्राइक्लोराइड
(b) मरक्यूरिक ऑक्साइड
(c) ग्रेफाइट
(d) नाइट्रोग्लिसरीन

उत्तर: (d)


अंतर-संसदीय संघ की 150वीं सभा

स्रोत: पी.आई.बी.

लोकसभा अध्यक्ष ने भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में आयोजित अंतर-संसदीय संघ (IPU) की 150 वीं बैठक में भाग लिया।

अंतर-संसदीय संघ (IPU)

  • वर्ष 1889 में स्थापित अंतर-संसदीय संघ, संसदीय कूटनीति के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने वाला राष्ट्रीय संसदों का वैश्विक संगठन है। 
    • इसका मुख्यालय जिनेवा में है, इसमें 182 संसद सदस्य और 15 सहयोगी सदस्य (वर्ष 2025) हैं। 
    • मुख्य रूप से सदस्यों के योगदान से वित्त पोषित, इसका नारा है: "फॉर डेमोक्रेसी। फॉर एवरीवन।"
  • उद्देश्य:  इसका उद्देश्य संसदों को जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये सशक्त बनाकर लोकतांत्रिक शासन, संवाद और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना है।
  • IPU असेंबली: यह इसका प्रमुख वैधानिक निकाय है, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, शांति और सतत्त विकास पर प्रस्तावों पर चर्चा करने और उनका अंगीकरण करने के लिये वर्ष में दो बार बैठक आयोजित करता है।
  • 150वें IPU संबंधी प्रमुख तथ्य: भारत ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के माध्यम से समावेशी लोकतंत्र पर ज़ोर दिया, 'वसुधैव कुटुंबकम' जैसे मूल्यों को बढ़ावा दिया, उज़्बेकिस्तान, इज़रायल और कज़ाकिस्तान के साथ नियमित संसदीय आदान-प्रदान का प्रस्ताव रखा एवं ताशकंद में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि अर्पित की।

और पढ़ें: भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन, भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि 


जलवायु परिवर्तन पर भारत का पहला स्टेशन

स्रोत: पी.आई.बी

भारत ने जम्मू-कश्मीर के नत्थाटॉप में हिमालयी उच्च तुंगता वायुमंडलीय और जलवायु अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन किया है, जो वैश्विक जलवायु विज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

हिमालयी उच्च तुंगता वायुमंडलीय और जलवायु अनुसंधान केंद्र 

  • रणनीतिक अवस्थिति: यह केंद्र नत्थाटॉप में समुद्र तल से 2,250 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जिसका निर्धारण इसकी स्वच्छ वायु और न्यूनतम प्रदूषण के कारण किया किया गया है।
    • जो इस केंद्र को उच्च सटीकता वाले वायुमंडलीय और जलवायु माप के लिये आदर्श बनाता है।
  • अनुसंधान क्षेत्र: यह केंद्र मेघ निर्माण, एरोसोल अंतर्क्रिया और मौसम पैटर्न पर अत्याधुनिक अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगा।
  • आइस-क्रंच: इस उद्घाटन के साथ भारत-स्विस संयुक्त अनुसंधान परियोजना, आइस-क्रंच (उत्तर-पश्चिमी हिमालय में हिम के न्यूक्लिएन कण और मेघ संघनन नाभिक गुण) का शुभारंभ हुआ। 
    • यह अध्ययन आइस-न्यूक्लियेटिंग कणों (INP) और मेघ संघनन नाभिक (ठोस/तरल रूप में सूक्ष्म निलंबित कण,) का अवबोधन करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में जलवायु मॉडलिंग और वर्षा प्रतिरूप की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  • महत्त्व: इससे जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व सुदृढ़ होगा और इससे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों में सहायता मिलेगी, जिसमें देश की नेट-ज़ीरो उत्सर्जन (वर्ष 2070 तक) के प्रति प्रतिबद्धता भी शामिल है।

और पढ़ें: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR), हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण


नौसैनिक अभ्यास इंद्र-2025

स्रोत: पी.आई.बी

भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास इंद्र-2025 का 14 वाँ संस्करण चेन्नई में आयोजित किया गया।

इंद्र 2025

  • यह दो चरणों में आयोजित किया गया: 
    • चेन्नई में हार्बर फेज़, जिसमें विशेषज्ञों का आदान-प्रदान, जहाज़ का दौरा और खेल शामिल हैं।
    • बंगाल की खाड़ी में सी फेज़, जिसमें सामरिक युद्धाभ्यास, वायुरोधी संचालन और हेलीकॉप्टर लैंडिंग जैसे उन्नत अभ्यास शामिल हैं।
  • इस अभ्यास में पेचंगा, रेज्की, अलदार त्सिडेंझापोव जैसे रूसी जहाज़ों और भारतीय युद्धपोतों - राणा, कुठार और P-8I एयरक्राफ्ट ने भाग लिया।

इंद्र अभ्यास

  • यह वर्ष 2003 से नियमित रूप से आयोजित किया जाने वाला द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है।
  • इसका उद्देश्य समुद्री खतरों का मुकाबला करना, वैश्विक शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना तथा संयुक्त अभियानों को मज़बूत करना है।
  • यह भारत-रूस रक्षा संबंधों की पुष्टि करता है, सामूहिक समुद्री सुरक्षा को बढ़ाता है, तथा नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

भारत के अन्य संयुक्त नौसैनिक अभ्यास

अभ्यास

देश

मालाबार 

भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया

वरुण

भारत, फ्राँस

ला पेरोस

भारत, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, जापान और यूनाइटेड किंगडम

सी ड्रैगन 

भारत, अमेरिका, जापान, कनाडा, दक्षिण कोरिया

कोंकण 

भारत, यूनाइटेड किंगडम

AIME और IMDEX

भारत, आसियान देश

ब्राइट स्टार 

भारत, 34 देश

SALVEX

भारत, अमेरिका

SLINEX 

भारत, श्रीलंका

समुद्र शक्ति 

भारत, इंडोनेशिया

अल-मोहद अल-हिंदी

भारत, सऊदी अरब

भारत - फ्राँस - UAE त्रिपक्षीय अभ्यास

भारत, फ्राँस, संयुक्त अरब अमीरात

भारत - फ्राँस - UAE त्रिपक्षीय PASSEX

भारत, फ्राँस, संयुक्त अरब अमीरात

KOMODO 

भारत, संयुक्त (36 देश)

AUSINDEX

भारत, ऑस्ट्रेलिया

SIMBEX

भारत, सिंगापुर

 और पढ़ें: भारत के प्रमुख सैन्य अभ्यास 


दौलताबाद किला

स्रोत: द हिंदू

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर ज़िले में दौलताबाद किले में लगी आग के बाद  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हुई क्षति का आकलन शुरू कर दिया है। 

  • महत्त्व: मूल रूप से इसे देवगिरि (देवताओं की पहाड़ी) कहा जाता था। 14वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुगलक ने जब अपनी राजधानी यहाँ स्थानांतरित की तो इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया गया।
    • यह स्थल यादवों, तुगलकों, बहमनी, निजामशाही, मुगलों और हैदराबाद के निजामों से पहले मराठों सहित कई राजवंशों की राजधानी रहा है।
    • यह एक यूनेस्को-नामांकित विरासत स्थल है जो अपने ऐतिहासिक, वास्तुशिल्प और पारिस्थितिकी महत्त्व के लिये जाना जाता है।
  • वास्तुकला की उत्कृष्टता: दौलताबाद किला तीन स्तरों पर अंबरकोट, महाकोट और कालाकोट में खाइयों, बुर्जों तथा लोहे के नुकीली दरवाजों से घिरा हुआ है।
  • इसमें अंधेरी नामक एक घातक सुरंग है , जिसका उपयोग आक्रमणकारियों को फंसाने और उन पर हमला करने के लिये किया जाता था।
  • स्मारक एवं संरचनाएँ:

    • चाँद मीनार (1435 ई.): कुतुबमीनार के अनुरूप निर्मित इंडो-इस्लामिक शैली का विजय टॉवर।
    • किले के भीतर स्थित भारत माता मंदिर, कुतुबुद्दीन मुबारक के शासनकाल (1318 ई.) के दौरान पहले जामा मस्जिद था।
    • चीनी महल (एक भव्य महल) को औरंगजेब ने जेल में बदल दिया।
  • तोपखाना और तोपें: यह किला लगभग 288 तोपों से सुसज्जित था इनमें एक उल्लेखनीय तोप औरंगजेब की मेंढा थी जिसे किला शिकन (किला तोड़ने वाला) भी कहा जाता था, जो सैन्य शक्ति का प्रतीक थी।

और पढ़ें: जिंजी किला यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के लिये नामांकित