भारत-इंडोनेशिया संयुक्त रक्षा सहयोग समिति 7वीं बैठक
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में संपन्न हुई भारत-इंडोनेशिया संयुक्त रक्षा सहयोग समिति (JDCC) की 7वीं बैठक में दोनों देशों के रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के लिये चल रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला गया।
- बैठक में विभिन्न द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पहलों की प्रगति की समीक्षा की गई तथा रक्षा एवं रक्षा उद्योग सहयोग पर कार्य समूहों की बैठकों हेतु विचार-विमर्श किया गया।
- बैठक में यह निर्धारित किया गया कि वर्तमान सहयोग को कैसे बेहतर बनाया जाए, विशेष रूप से बहुपक्षीय सहयोग, समुद्री सुरक्षा और रक्षा उद्योग कनेक्शन के क्षेत्रों में।
- JDCC भारतीय और इंडोनेशियाई रक्षा मंत्रालयों के बीच आयोजित होने वाली एक वार्षिक बैठक है, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग की विस्तृत शृंखला पर चर्चा की जाती है।
- भारत और इंडोनेशिया ने वर्ष 2018 में अपनी रणनीतिक साझेदारी को व्यापक स्तर पर पहुँचाया तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण के साथ एक रक्षा सहयोग समझौते पर भी हस्ताक्षर किये।
- इंडोनेशिया भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इसका विशेष महत्त्व है।
हिदाया चक्रवात
हाल ही में ‘हिदाया’ नामक एक भीषण चक्रवाती तूफान हिंद महासागर से प्रारंभ होकर तंज़ानिया के दार एस सलाम के समुद्री तट से टकराया है।
- चक्रवात हिदाया (अरबी में मार्गदर्शन), तंज़ानिया के तांगा, मोरोगोरो, उन्गुजा और पेंबा द्वीपों जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा एवं तेज़ पवनों का कारण बन सकता है।
- यह चक्रवात दक्षिण हिंद महासागर के में उत्पन्न हुआ था एवं इसका नाम हिंद महासागर में फ्राँस के समुद्र-पार भूभाग(फ्रेंच गुयाना) के लोगों द्वारा रखा गया था।
- हालाँकि, केन्या को सामान्यतः चक्रवातों से सुरक्षित माना जाता है, परंतु अब यह चक्रवात हिदाया के से प्रभावित है और इससे निपटने की तैयारी कर रहा है।
- केन्या 4° उत्तर और दक्षिण अक्षांश के अंतर्गत आता है तथा इसे चक्रवातों से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि सामान्यतः चक्रवात क्षीण कोरिओलिस बल के कारण भूमध्य रेखा के 5° के भीतर नहीं बनते हैं, जो चक्रवात बनाने के लिये आवश्यक है।
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः भूमध्य रेखा के 5° और 30° उत्तर या दक्षिण के बीच के क्षेत्रों में विकसित होते हैं।
- हालाँकि, सामान्य सुरक्षा के बावजूद, केन्या की चक्रवात हिदाया से प्रभावित होने की संभावना है। यदि ऐसा होता है, तो यह पहली बार होगा जब केन्या को किसी चक्रवात का सामना करना पड़ा है।
- केन्या 4° उत्तर और दक्षिण अक्षांश के अंतर्गत आता है तथा इसे चक्रवातों से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि सामान्यतः चक्रवात क्षीण कोरिओलिस बल के कारण भूमध्य रेखा के 5° के भीतर नहीं बनते हैं, जो चक्रवात बनाने के लिये आवश्यक है।
और पढ़ें: चक्रवात
कार्ल एरिक मुलर के लिथोग्राफ
स्रोत: पी.आई.बी
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts- IGNCA) के संरक्षण और अभिलेखागार प्रभाग ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस (2 मई) के अवसर पर 'पीपल एंड प्लेसेज़ ऑफ इंडिया- ए रेट्रोस्पेक्ट' नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
- प्रदर्शनी में IGNCA अभिलेखागार से जर्मन कलाकार कार्ल एरिक मुलर के लिथोग्राफ प्रदर्शित किये गए।
- मुलर की ये कृतियाँ 1970 के दशक में रोज़मर्रा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं जिनमें मजदूर, परिवहन श्रमिक, कारखाने के कर्मचारी और अपने प्राकृतिक वातावरण में मछुआरे शामिल हैं।
- मुलर की कृतियाँ IGNCA, NGMA (नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट) और भारत कला भवन में रखी गई हैं।
- अपने लिथोग्राफ में उन्होंने सामान्य जीवन के सार को समाहित किया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी अभिव्यक्तियों को पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती ।
- IGNCA की स्थापना वर्ष 1987 में संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।
- इसे कला के क्षेत्र में अनुसंधान, अकादमिक खोज और प्रसार केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था।
और पढ़ें: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र
नेपाल की मुद्रा पर भारतीय क्षेत्रों का चित्रण
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में नेपाल सरकार ने 100 रुपए के नए नोट की छपाई की घोषणा की है, जिसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी क्षेत्रों को देश के मानचित्र में दिखाया जाएगा। नेपाल के इस तरह के कार्य को भारत पहले ही ‘कृत्रिम विस्तार’ (Artificial Enlargement) और ‘असमर्थनीय’ (Untenable) करार दे चुका है।
भारत ने नेपाल के निर्णय पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है तथा भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि इससे स्थिति या वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा।
भारत और नेपाल के बीच किन क्षेत्रों को लेकर सीमा-विवाद है?
- परिचय:
- वर्तमान में भारत व नेपाल के मध्य कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख त्रि-जंक्शन और सुस्ता क्षेत्र (पश्चिमी चंपारण ज़िला, बिहार) को लेकर सीमा विवाद है।
- कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख त्रि-जंक्शन (कालापानीक्षेत्र):
- यह नेपाल के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित 35 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है, जो उस त्रि-जंक्शन के पास है जहाँ भारत, नेपाल और चीन की सीमाएँ मिलती हैं।
- कालापानी एक घाटी है जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के एक हिस्से के रूप में भारत द्वारा प्रशासित है। यह कैलाश मानसरोवर मार्ग पर स्थित है।
- कालापानी 20,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित है और उस क्षेत्र के लिये एक निगरानी चौकी के रूप में कार्य करता है।
- कालापानी क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच सीमा निर्धारण काली नदी द्वारा होता है।
- नेपाल साम्राज्य और ब्रिटिश भारत (एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद) ने वर्ष 1816 में सुगौली की संधि पर हस्ताक्षर किये थे।
- संधि में काली नदी (या महाकाली नदी) को नेपाल की पश्चिमी सीमा निर्धारित किया गया।
- संधि द्वारा काली नदी के पूर्व की भूमि नेपाल के नियंत्रण में आ गई, जबकि नदी के पश्चिम का क्षेत्र ब्रिटिश भारत (वर्तमान भारत) का हिस्सा बन गया।
- काली नदी के उद्गम स्थल के निर्धारण में विसंगति के कारण भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद उत्पन्न हो गया तथा दोनों देश अपने-अपने दावों के समर्थन में विभिन्न मानचित्र प्रस्तुत करते रहे।
- कालापानी क्षेत्र पर भारत और नेपाल के दावे:
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नेपाल का रुख:
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नेपाल के दावों के अनुसार, काली नदी का उद्गम लिपुलेख दर्रे के उत्तर-पश्चिम में लिम्पियाधुरा की एक धारा से होता है।इस प्रकार कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख नदी के पूर्व में स्थित हैं और नेपाल के धारचूला ज़िले का हिस्सा हैं।
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वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद राजा महेंद्र ने कालापानी का क्षेत्र भारत को देने का प्रस्ताव रखा था, जो चीन से
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खतरे को देखते हुए भारत की सुरक्षा में मदद करना चाहते थे।
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भारत का रुख:
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भारत का दावा है कि काली नदी का उद्गम लिपुलेख दर्रे के काफी नीचे स्थित झरनों से होता है, जिससे कालापानी क्षेत्र प्रभावी रूप से भारत के नियंत्रण में आ जाता है।
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सुगौली की संधि इन धाराओं के उत्तर में स्थित क्षेत्रों का सीमांकन नहीं करती है।
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उन्नीसवीं सदी के प्रशासनिक और राजस्व अभिलेखों से भी पता चलता है कि कालापानी भारत का क्षेत्र था और उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का भाग माना जाता था।
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सुस्ता क्षेत्र:
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सुगौली की संधि ने गंडक नदी को भारत और नेपाल के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में परिभाषित किया।
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नदी का दक्षिणी तट नेपाल के नियंत्रण में था जबकि बायाँ तट भारत के नियंत्रण में था।
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संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के समय सुस्ता गाँव दाएँ तट पर था और यह नेपाल का भाग था।
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हालाँकि, विगत कुछ वर्षों में गंडक नदी के अपवाह मार्ग में परिवर्तन के परिणामस्वरुप सुस्ता क्षेत्र बाएँ तट पर चला गया और अब यह भारत के नियंत्रण में है।
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निष्कर्ष:
- यद्यपि दोनों देश अपने दावों के समर्थन में सुगौली संधि के ऐतिहासिक दस्तावेज़ और स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस समस्या का समाधान अभी भी कठिन बना हुआ है
- रचनात्मक वार्ता और साझा पृष्ठभूमि तैयार करने की आकाँक्षा लंबे समय से चले आ रहे इस मुद्दे को सुलझाने तथा नेपाल व भारत के बीच मज़बूत संबंधों को बढ़ावा देने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? उत्तर: (c) |
वल्लभाचार्य जयंती
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
4 मई 2024 को मनाई जाने वाली वल्लभाचार्य जयंती, प्रसिद्ध हिंद विद्वान और भगवान कृष्ण के भक्त, श्री वल्लभाचार्य (1479-1531 ई.) को समर्पित है।
- वल्लभाचार्य को वेदों और उपनिषदों का अच्छा ज्ञान था। उन्हें वल्लभ तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य की उपाधि दी गई थी।
- वल्लभाचार्य ने शुद्ध अद्वैत या शुद्ध अद्वैतवाद का दर्शन प्रतिपादित किया। उन्होंने भारत के ब्रज क्षेत्र में कृष्ण-केंद्रित पंथ, वैष्णववाद के पुष्टि संप्रदाय की भी स्थापना की।
- वल्लभाचार्य का जन्म 1479 ई. में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लेखन में उनकी काफी रूचि थी और उन्होंने अपने जीवनकाल में कई साहित्यिक कृतियों की रचना की, जिनमें सोलह स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में "षोडश ग्रंथ" शामिल है।
बोइंग स्टारलाइनर की पहली क्रू टेस्ट फ्लाइट
स्रोत: द हिंदू
एटलस V रॉकेट दो अनुभवी अंतरिक्ष यात्रियों, बैरी विल्मोर और सुनीता विलियम्स के साथ उड़ान भरने को तैयार है, जो बोइंग द्वारा निर्मित स्टारलाइनर नामक क्रू कैप्सूल पर सवार हैं।
- यह कैप्सूल की तीसरी परीक्षण उड़ान (Test Flight) तथा अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहली उड़ान है, जिसका लक्ष्य उन्हें लो अर्थ ऑर्बिट में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक पहुँचाना है।
- यदि यह सफल रहा तो अमेरिका अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम दो अंतरिक्ष यानों के साथ एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करेगा।
- वर्तमान में, स्पेसएक्स का ड्रैगन अंतरिक्ष यान एकमात्र अंतरिक्ष यान है, जो पृथ्वी पर महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को वापस ला सकता है और यह मनुष्यों को अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जाने वाला पहला निजी अंतरिक्ष यान है।
- स्टारलाइनर एक अंतरिक्ष यान है, जो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाता है, इसे एक रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया जाता है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री आवास के लिये एक क्रू (Crew) कैप्सूल होता है, जिसे पुन: प्रवेश के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो एक गैर-पुन: प्रयोज्य सर्विस मॉड्यूल जीवन समर्थन (Life Support) और प्रणोदन प्रणाली प्रदान करता है।
तीर्थहल्ली सुपारी
स्रोत: द हिंदू
कर्नाटक के तीर्थहल्ली क्षेत्र को लंबे समय से तीर्थहल्ली सुपारी के असाधारण उत्पादन के लिये जाना जाता है, जैसा कि कर्नाटक के शिवमोग्गा के केलाडी शिवप्पा नायक कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय के एरेका अनुसंधान केंद्र द्वारा किये गए एक हालिया विश्लेषण से पुष्टि हुई है।
- उच्च श्रेणी के नट्स के उत्पादन में इसकी उपयुक्तता के कारण तीर्थहल्ली सुपारी की अत्यधिक मांग है, इस किस्म के उत्पादक प्रतिष्ठित नुली और हासा ग्रेड की कृषि करने में सक्षम हैं।
- अरेका नट पाम नामक यह किस्म पान के साथ प्रयुक्त होने वाली लोकप्रिय सुपारी का स्रोत है जिसे सुपारी या बीटल नट के नाम से जाना जाता है। भारत सुपारी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता है। इसकी कृषि प्रमुख रूप से कर्नाटक, केरल, असम, तमिलनाडु, मेघालय और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में होती है।
- सुपारी के दानों को उबाला जाता है और इसकी भूसी निकालकर सुपारी के सत (Areca Precipitates) को इसमें मिलाया जाता है। इसके बाद नट्स को सुखाया जाता है और उनके बाज़ार मूल्य के आधार पर नुली, हासा, राशी, बेट्टे और गोराबलु के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- नुली और हासा नट्स की कीमत राशी, बेट्टे और गोराबलु से अधिक होती है
- इससे पहले कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले में उत्पादित होने वाली 'सिरसी सुपारी' को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिल चुका है।
और पढ़ें: 'सिरसी सुपारी'
एटा एक्वारिड उल्कावृष्टि
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हैली धूमकेतु से संबद्ध एटा एक्वेरिड उल्कापात 5 और 6 मई, 2024 को हुआ, जिसने विश्व भर के खगोलविदों के लिये दुर्लभ खगोलीय दृश्य उत्पन्न किया।
एटा एक्वारिड ‘उल्कावृष्टि’ क्या है?
- एटा एक्वारिड उल्कापात प्रतिवर्ष मई महीने के प्रारंभ में होता है। इस घटना की विशेषता इसके तीव्र उल्कापिंड हैं, जो धूमकेतु हैली द्वारा छोड़े गए मलबे से उत्पन्न होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक गतिशील रहने वाले, चमकदार पुच्छल तारे बनते हैं।
- इस घटना के चरम के समय प्रति घंटे लगभग 30 से 40 एटा एक्वारिड उल्काएँ देखी जा सकती हैं, जो विशेष रूप से दक्षिणी गोलार्द्ध से दिखाई देती हैं।
- दक्षिणी गोलार्द्ध में इस उल्कापात की चमक को, कुंभ तारामंडल की उच्च स्थिति के कारण देखने का अधिक अनुकूल अनुभव मिलता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में पर्यवेक्षक क्षितिज पर लंबे उल्कापिंडों को उड़ते हुए देख सकते हैं।
- एटा एक्वेरिड्स की चमक कुंभ तारामंडल में पड़ती है तथा उल्काएँ एटा एक्वेरी तारे के आसपास के क्षेत्र से आती हुई प्रतीत होती हैं।
- इस तारे एवं तारामंडल के कारण इस उल्का बौछार को एटा एक्वारिड्स नाम दिया गया है।
धूमकेतु 1P/हैली:
- 1705 में एडमंड हैली द्वारा खोजा गया धूमकेतु हैली (1P\हैली) लगभग हर 76 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा करता है। एकमात्र नग्न आँखों से देखा जाने वाला धूमकेतु जो मानव जीवनकाल में दो बार दिखाई दे सकता है।
- इसके द्वारा उत्पन्न मालवा शामिल मई में एटा एक्वारिड्स और अक्तूबर में ओरियोनिड्स का उत्पादन करता है, जब पृथ्वी इसके द्वारा उत्पन्न मलबे वाले क्षेत्रों से गुजरती है।
- विशेष रूप से पर्यवेक्षकों को हैली अंतिम बार 1986 में दिखाई दी थी तथा यह 2061 तक पुनः दिखाई नहीं देगी।
- धूमकेतु हैली सौर मंडल की सबसे कम परावर्तक वस्तुओं में से एक है, जिसका अल्बेडो 0.03 है।
धूमकेतु क्या हैं?
- परिचय:
- धूमकेतु सौरमंडल के प्रारंभिक अवशेष हैं, जो धूल, चट्टान और बर्फ से बने होते हैं। वे वलयाकार पथों में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
- सूर्य द्वारा ऊष्मा प्राप्त किये जाने पर धूमकेतु गैस और धूल का उत्सर्जन करते हैं, जिससे एक चमकता हुआ सिर तथा एक पुच्छ बनती है।
- नासा का दावा है कि नेप्च्यून के अलावा कुइपर बेल्ट और सुदूर ऊर्ट क्लाउड में अरबों धूमकेतु हैं जो सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं।
- उल्कापिंड का धूमकेतुओं से संबंध:
- उल्कापिंडों की उत्पत्ति धूमकेतुओं और टूटे हुए क्षुद्रग्रहों के अवशेषों से होती है। वे धूल या चट्टान के छोटे कण हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही जल जाते हैं, जिससे प्रकाश की संक्षिप्त पुच्छ बनती हैं।
प्रमुख शर्तें:
- उल्का और उल्कापिंड:
- उल्कापिंड अंतरिक्ष चट्टानें हैं जिनका आकार धूल के कणों से लेकर छोटे क्षुद्रग्रहों तक होता है।
- यह पद तभी लागू होता है जब ये पिंड अभी भी अंतरिक्ष में मौज़ूद हों।
- जब उल्कापिंड तेज़ गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और हवा के घर्षण के कारण जल जाते हैं, तो उन्हें उल्का कहा जाता है।
- एक उल्कापिंड को ‘उल्कापिंड’ कहा जाता है यदि वह पूर्णतः जले बिना पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है एवं सतह पर गिरता है।
- उल्कापिंड अंतरिक्ष चट्टानें हैं जिनका आकार धूल के कणों से लेकर छोटे क्षुद्रग्रहों तक होता है।
- तारामंडल:
- यह तारों का एक समूह है जो रात्रि के समय आकाश में एक पहचानने योग्य पैटर्न बनाता है
- कई संस्कृतियाँ सदियों से इसका उपयोग समय निर्धारण, कहानियों और नेविगेशन के लिये करती रही हैं।
- यह नेप्च्यून की कक्षा से परे सौरमंडल का एक क्षेत्र है। यह एक विशाल, बर्फीला क्षेत्र है जो हज़ारों बर्फीले पिंडों का मूल निवास है, जिनमें प्लूटो, धूमकेतु और कुइपर बेल्ट ऑब्जेक्ट (KBO) जैसे बौने ग्रह शामिल हैं।
- यह तारों का एक समूह है जो रात्रि के समय आकाश में एक पहचानने योग्य पैटर्न बनाता है
- ऊर्ट क्लाउड:
- यह बर्फीले पिंडों का एक विशाल, गोलाकार मेघ है जो कुइपर बेल्ट की तुलना में बहुत अधिक दूरी पर सौरमंडल को घेरता है।
- ऊर्ट क्लाउड, धूमकेतु होते हैं जिन्हें दीर्घावधि के धूमकेतुओं का स्रोत माना जाता है, जिन्हें सूर्य की परिक्रमा करने में अनेकों वर्ष का समय लगता है।
- यह बर्फीले पिंडों का एक विशाल, गोलाकार मेघ है जो कुइपर बेल्ट की तुलना में बहुत अधिक दूरी पर सौरमंडल को घेरता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. क्षुदग्रहों तथा धूमकेतु के बीच क्या अंतर होता है? (2011
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं (a) केवल 1 और उत्तर: (b) |