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नीतिशास्त्र

भारत के नैतिक विचारकों और दार्शनिकों का योगदान

  • 20 Jul 2023
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चाणक्य, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, श्री कृष्ण

मेन्स के लिये:

भारत के नैतिक विचारकों और दार्शनिकों जैसे- महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, श्री कृष्ण की शिक्षा की प्रासंगिकता और महत्त्व

चाणक्य:

  • चाणक्य के अन्य नाम कौटिल्य और विष्णुगुप्त हैं, साथ ही वह अर्थशास्त्र के लेखक भी हैं। अर्थशास्त्र मूल रूप से प्राचीन भारत में लिखा गया एक राजनीतिक ग्रंथ था।
  • चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त को सत्ता स्थापित करने में सहायता प्रदान की थी। चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त और उनके पुत्र बिंदुसार दोनों के प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य किया।
  • चाणक्य प्राचीन भारत में एक राजकीय सलाहकार, शिक्षक, लेखक, रणनीतिकार, दार्शनिक और अर्थशास्त्री थे।
  • चाणक्य के अनुसार एक राजा साम्राज्य का सार्वजनिक चेहरा होता है क्योंकि वह समाज में जो कुछ भी होता है उसके लिये उत्तरदायी होता है। राजा मूलत: एक दर्पण होता है जो उसके क्षेत्र की संस्कृति को दर्शाता है।
  • चाणक्य एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जिसमें भौतिक संपत्तियों पर अत्यधिक ज़ोर न दिया जाए। उनके लिये अध्यात्म भी उतना ही महत्त्वपूर्ण था।
  • एक राजा का अंतिम उद्देश्य प्रजा का कल्याण होना चाहिये तथा इसे प्राप्त करने का प्रयास भी उसके द्वारा किया जाना चाहिये।
  • धर्म का प्रचार-प्रसार करना राजा का कर्तव्य है। सामाजिक निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिये एक राजा अपराधियों को दंडित कर सकता है। यह सुनिश्चित करना राजा का कर्तव्य है कि निर्दोष लोगों को किसी भी तरह से दंडित न किया जाए।
  • चाणक्य ने यह भी टिप्पणी की थी कि मामलों की सुनवाई यथाशीघ्र की जानी चाहिये, साथ ही न्याय में देरी भी नहीं की जानी चाहिये।
  • धार्मिक तपस्या एक व्यक्ति को करनी चाहिये, अध्ययन दो को और गायन तीन को करना चाहिये। यात्रा का संचालन चार लोगों द्वारा, कृषि का संचालन पाँच लोगों द्वारा तथा  युद्ध का संचालन असंख्य लोगों द्वारा किया जाना चाहिये।

महात्मा गांधी:

  • ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखने वाले गांधीजी को सदैव उनकी सर्वोच्चता का अनुभव होता था। वह अपने भीतर ईश्वर को महसूस करते थे। ईश्वर में उनका गहरा विश्वास उन्हें जीवन में कुछ भी और सब कुछ करने की शक्ति देता है।
  • गांधीजी के अनुसार, सत्य और कुछ नहीं बल्कि ईश्वर का प्रतिबिंब है। इसलिये उन्होंने अपनी आत्मकथा "माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ" में बताया था कि सत्य को व्यापक अर्थों में प्राप्त किया जा सकता है, जहाँ सत्य का अर्थ केवल सच बोलना  होना नहीं है, साथ ही सत्य को जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू किया जाना चाहिये।
  • उनके अनुसार हम ईश्वर के अस्तित्व को तब अनुभव कर सकते हैं जब हम तीन सिद्धांतों- सत्य, अहिंसा और अच्छाई का पालन करते हैं तथा साथ ही अपनी वाणी, कर्म एवं  कार्यों में सत्य को लागू करते हैं। इस प्रकार गांधीजी के लिये सत्य और ईश्वर एक हैं।
  • सत्य के मार्ग पर चलना ही एकमात्र तरीका है जिससे हम अपने भीतर ईश्वर का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर सर्वोच्च, अमर महाशक्ति है जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया।
  • गांधीजी ने यह भी कहा था कि सत्य और अहिंसा अविभाज्य हैं। वे एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, अहिंसा साधन है और सत्य साध्य है।
  • एक प्रसिद्ध व्यक्ति जो अपने महत्त्वाकांक्षी आदर्शों के लिये पहचाना जाता था वह महात्मा गांधी थे। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें सही और गलत की गहरी समझ थी। उन्होंने अपने नागरिकों को सशक्त बनाकर राष्ट्र निर्माण की इच्छा प्रदर्शित की।
  • वह हमेशा ईश्वर के पूर्ण अस्तित्व के प्रति आश्वस्त थे, जिसे हम सभी अपनी आत्मा के रूप में धारण करते हैं।
  • वह मनुष्य के नैतिक और आध्यात्मिक विकास को लेकर सदैव चिंतित रहते थे।
  • वह मुख्य रूप से मज़बूत सामाजिक एकीकरण के साथ दूसरों के लिये अंतहीन प्रेम पर ज़ोर देते थे, जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  • उन्होंने अपनी व्यापक रूप से पढ़ी जाने वाली पुस्तक हिंद-स्वराज में पश्चिमी सभ्यता पर सवाल उठाया, जिसे वे आध्यात्मिक नहीं मानते थे। उन्होंने ब्रिटिश लोकतंत्र पर आक्रमण किया। उन्होंने ब्रिटिश संसद को "बकबक करने वाली दुकान" कहा।
  • वह चाहते थे कि भारत में एक ऐसा स्वराज हो जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता की भव्यता का आनंद उठा सके। वह नहीं चाहते थे कि भारत पश्चिम की लोकतांत्रिक एवं प्रशासनिक पद्धतियों को अपनाए। स्वराज के उनके विचार में सत्ता के विकेंद्रीकरण का आह्वान किया गया था, साथ ही उन्होंने हज़ारों स्वायत्त गाँवों से निर्मित भारत की कल्पना की थी।
  • स्वराज की गांधीवादी अवधारणा के अनुसार, हमारे समाज में ईश्वर का राज्य या रामराज्य स्थापित होने से पहले यह हमारे अपने हृदय में निर्मित होना चाहिये। गांधीजी की सबसे अधिक दिलचस्पी इस बात में थी कि किसी व्यक्ति के कार्य उसकी सोच को किस प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पुरुषों को सामाजिक जीवन जीने की दिशा में कार्य करना चाहिये, जिसमें विशेष रूप से दूसरों के साथ रहना तथा परस्पर कल्याण भी शामिल है। गांधीजी के पूरे जीवन में दो मार्गदर्शक सिद्धांत- सत्य और अहिंसा थे। कुछ संतों द्वारा उन्हें नैतिकता की पराकाष्ठा माना जाता था।
  • गांधीजी के दर्शन की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता अहिंसा है। दुनिया को जीतने के लिये अहिंसा एक मज़बूत हथियार है। उनका अहिंसा में दृढ़ विश्वास था तथा उन्होंने कहा कि घृणा और हिंसा पर विजय पाने के लिये प्रेम और अहिंसा आवश्यक है।
  • उनके अनुसार, हिंसा समाज में असंतुलन के साथ आंतरिक अशांति उत्पन्न कर सकती है। इस प्रकार अहिंसा स्वस्थ चित्त वाले व्यक्तियों के लिये वह हथियार है जो सहिष्णुता, आत्म-पीड़ा, धैर्य, आत्म-बलिदान, प्रेम और सहानुभूति जैसे विभिन्न गुणों को विकसित कर सकती है।
  • अहिंसा सभी जीवित प्राणियों के प्रति दुर्भावना का पूर्ण अभाव है। अपनी गतिशील स्थिति में इसका अर्थ सचेतन पीड़ा है। अहिंसा अपने सक्रिय स्वरूप में समस्त जीवन के प्रति सद्भावना है। यह शुद्ध प्रेम है।' इसलिये अहिंसा सभी बुराइयों के खिलाफ पूर्ण आत्म-संयम है।

स्वामी विवेकानंद:

  • स्वामी विवेकानंद ने वेदांत दर्शन, कर्म योग (वर्ष 1896), राज योग (वर्ष 1896) आदि जैसे अनेक विषयों पर कार्य किया। 
  • एक समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति के रूप में पहचान बनाने वाले वे आरंभिक भारतीय दार्शनिकों में से एक थे। लोगों द्वारा भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करना, कम काम, कोई उत्पीड़न नहीं, कोई युद्ध नहीं, पर्याप्त भोजन की अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है।”
  • स्वामी विवेकानंद के अनुसार, "यदि हम भारत की राजनीति को समझना चाहते हैं, तो हमें धर्म की भाषा के माध्यम से इसे समझना होगा।" उनके अनुसार, केवल धर्म, शिक्षा और मार्गदर्शन के द्वारा ही भारत जैसे राष्ट्र में निम्न वर्गों को जागृत किया जा सकता है।
  • स्वामी विवेकानंद ने कहा कि वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये। संन्यासी भिक्षुओं ने बड़ी संख्या में अपनी धार्मिक शिक्षाओं व उपदेशों का कई क्षेत्रों में प्रचार किया।
  • विवेकानंद ने भारतीयों में राष्ट्रप्रेम, मानवीय गरिमा और राष्ट्रीय गौरव की भावना पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • उन्होंने अपनी धर्मनिरपेक्षता के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे को बढ़ावा दिया और सभी लोगों के लिये समता के सिद्धांत का समर्थन किया।
  • एक प्रगतिशील भारतीय विचारक के रूप में स्वामी विवेकानंद के विचारों ने भारतीयों में देशभक्ति और राष्ट्रीय आत्म-चेतना के विकास में सहायता की।
  • विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन उपनिषदों, भगवद्गीता और अद्वैत वेदांत के शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित है।
  • विवेकानंद की शिक्षा का मुख्य विचार मनुष्य निर्माण, चरित्र निर्माण और विचारों का आत्मसातीकरण था।
  • उन्होंने सदैव ही पवित्रता, सरलता, निष्ठा और सत्यता को किसी भी भौतिक संपत्ति से अधिक महत्त्व दिया।
  • स्वामी विवेकानंद का लक्ष्य महिलाओं को उनकी अपनी सांस्कृतिक महत्त्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने में सहायता करना था। उनके अनुसार, महिलाओं का उद्देश्य धार्मिक शिक्षा प्राप्त करना एवं चारित्रिक विकास होना चाहिये व धर्म उनकी शिक्षा का केंद्रबिंदु होना चाहिये।
  • शिक्षा के संबंध में विवेकानंद का दृष्टिकोण पूर्ण मानवीय संतुष्टि की ओर ले जाने वाले अभिव्यक्ति अथवा प्रकटीकरण के वैदिक विचार से काफी प्रभावित था।
  • विवेकानंद ने शिक्षा को "मनुष्य में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति" और धर्म को "मनुष्य में पहले से मौजूद दिव्यता की अभिव्यक्ति" के रूप में परिभाषित किया।
  • उनके अनुसार, पूर्णतः जागृत भारत ही भारत की सभी समस्याओं का एकमात्र और सही उत्तर है। निम्नलिखित इस बात का संक्षिप्त विवरण है कि विवेकानंद भारतीय जीवन का मूल या आधारभूत विषय, इसका जीवन-केंद्र एवं रीढ़ तथा इसकी समझ और व्याख्या के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को क्या मानते हैं।

बुद्ध:

  • बौद्ध धर्म के सिद्धांत:
    • बुद्ध ने अपने अनुयायियों को सांसारिक सुखों में भोग की दो चरम सीमाओं और सख्त संयम तथा तपस्या के अभ्यास से बचने का उपदेश दिया।
    • उन्होंने इसके स्थान पर 'मध्यम मार्ग' के पालन पर बल दिया।
    • उनके अनुसार, अपने जीवन में खुशी लाना हर व्यक्ति की स्वयं ज़िम्मेदारी है, उन्होंने बौद्ध धर्म के व्यक्तिवादी घटक पर बल दिया।
    • बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाएँ चार महान सत्य अथवा अरिया-सच्चनी और अष्टांगिक मार्ग या अष्टांगिका मार्ग की मूल अवधारणा में समाहित हैं।
  • बुद्ध द्वारा प्रचारित चार आर्य सत्य:
    • दुखों की विद्यमानता (दुःख)
    • दुखों का मूल (दुःख-समुदाय)
    • दुखों का अंत (दुःख-निरोध) 
    • दुखों के नाश का उपाय एवं अंत (दुःख-निरोध-मार्ग) अथंगा मग्गा (अष्टांगिक मार्ग)
  • अष्टांगिक मार्ग: इसमें ज्ञान, आचरण और ध्यान संबंधी प्रथाओं से संबंधित विभिन्न परस्पर जुड़ी गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • सम्यक दृष्टि
    • सम्यक संकल्प
    • सम्यक वचन
    • सम्यक कर्म
    • सम्यक आजीविका
    • सम्यक व्यायाम
    • सम्यक स्मृति
    • सम्यक समाधि
  • बुद्ध ने भिक्षुओं और आम लोगों दोनों के लिये एक आचार संहिता भी निर्धारित की जिसे पाँच उपदेश अथवा पंचशील के रूप में भी जाना जाता है तथा उन्होंने इनसे परहेज करने का भी आह्वान किया:
    • हिंसा
    • चोरी
    • यौन दुराचार
    • झूठ बोलना अथवा गपशप करना
    • नशीले पदार्थ अथवा पेय का सेवन

आदि शंकराचार्य:

  • आदिगुरु शंकराचार्य आठवीं शताब्दी के भारतीय आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक थे। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म केरल की सबसे बड़ी नदी पेरियार के तट पर स्थित कलाडी गाँव में हुआ था।
  • आदि शंकराचार्य का दर्शन अत्यंत ही स्पष्ट और सरल था। उन्होंने परमात्मा एवं आत्मा दोनों के अस्तित्त्व के विचार का प्रतिपादन किया।
  • उनके अनुसार, केवल परमात्मा का ही पूर्ण अस्तित्त्व है और वही बस वास्तविक है, जबकि आत्मा परिवर्तनशील होती है।
  • उन्हें हिंदुओं को एक सर्वशक्तिमान की अवधारण से अवगत कराने का  भी श्रेय दिया जाता है।
  • दर्शन:
    • अद्वैत वेदांत: अद्वैत वेदांत आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित एक दर्शन है जो चरम अद्वैतवाद (प्राचीन उपनिषद में निहित एक पुनरीक्षण विश्वदृष्टि) की दार्शनिक स्थिति को स्पष्ट करता है।
    • दर्शनशास्त्र के अनुसार, संपूर्ण विश्व एकमात्र ईश्वर (ब्रह्म) की अभिव्यक्ति है और जो भी विविधता हम देखते हैं वह अज्ञान (अविद्या) के कारण होने वाला भ्रम (माया) है।
    • मठों की स्थापना: शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के प्रसार के लिये श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी और जोशीमठ में अनेकों मठों की स्थापना की।
  • आदि शंकराचार्य के प्रमुख कार्य:
    • वेदों और उपनिषदों में विश्वास बहाल करने  में शंकराचार्य ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • आदि शंकराचार्य ने लगभग 116 रचनाएँ कीं, ब्रह्म सूत्र और गीता इसके प्रमुख उदाहरण हैं। आदि शंकराचार्य की सबसे प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ मनीषा पंचकम और सौंदर्यलहिरी हैं।
    • विवेकचूड़ामणि की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यह वेदांत के छात्रों के लिये आवश्यक मानदंड निर्दिष्ट करती है।
    • कनकधारा स्तोत्रम का लेखन कार्य भी उन्होंने ही किया था। उन्होंने नंबूदिरी ब्राह्मणों की सामाजिक सर्वोच्चता को प्रदर्शित करने का प्रयास करने वाले शंकर स्मृति जैसे साहित्य की भी रचना की।

श्रीकृष्ण:

  • श्रीकृष्ण ने धर्म को बनाए रखने और बुराई को नष्ट करने के विचार पर बल दिया। गीता में दिये गए उनके उपदेश ज्ञान का विशाल संग्रह हैं।
  • कई बुद्धिजीवियों ने गीता के उद्देश्य और महत्त्व को विस्तार से समझाने का प्रयास किया है।
  • गीता के अनुसार, मानव जीवन जीने के दो तरीके हैं: प्रवृत्ति, कर्म और उन्नति का मार्ग तथा दूसरा है निवृत्ति, आत्मनिरीक्षण एवं आध्यात्मिक विकास का मार्ग। भगवदगीता वैदिक विचारों से परिपूर्ण है।
  • भगवदगीता में श्रीकृष्ण एक अमूल्य संदेश देते हैं कि किसी चीज़ को पाने के निरंतर प्रयास, आत्म-केंद्रित सोच, अधूरी इच्छाओं के कारण उत्पन्न दुःख, अवांछनीय वस्तुओं की इच्छा, वांछित वस्तुओं से अलगाव के कारण होने वाले अहंकार-केंद्रित जीवन का कोई अर्थ नहीं है। जबकि जीवन का आधार आस्था, भक्ति, आत्म-समर्पण, वैराग्य तथा निष्पक्ष भाव से कर्त्तव्य निर्वहन होना चाहिये।
  • अर्जुन का वह प्रसंग जिसमें कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अच्छी और बुरी ताकतें एक-दूसरे से भिड़ने को एक-दूसरे के समक्ष खड़ी थीं तथा  शोक एवं दुविधा में लीन अर्जुन की स्वयं ईश्वर ने सहायता की थी, प्रतीकात्मक अथवा वास्तविक रूप से पुस्तक के आध्यात्मिक मूल्य को दर्शाता है जो लोगों को उनके दैनिक जीवन की कठिनाइयों से जूझने व उबरने में मदद कर सकता है। 
  • भगवदगीता बताती है कि किस प्रकार व्यक्ति अपने कार्यों के परिणामों की चिंता किये बिना अपना जीवनयापन कर सकता है।
  • प्रख्यात विद्वानों के अनुसार, भगवदगीता इसके तीन प्रमुख विचारों पर केंद्रित है जिन्हें "गीता के तीन रहस्य" के रूप में जाना जाता है:
    • पहला कर्त्तव्य से संबंधित है। व्यक्ति को अपने स्वभाव (स्वधर्माचरण) के अनुसार अपने कर्त्तव्यों को पूरा करना चाहिये।
    • दूसरा अदृश्य स्व से संबंधित है। प्रत्येक की दो तरह की वास्तविकता होती है, एक जो दृश्य होती है और दूसरी अदृश्य स्व। इन दोनों में भिन्नता होती है
    • तीसरा ईश्वर की सर्वव्यापकता से संबंधित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. “भ्रष्टाचार सरकारी राजकोष का दुरुपयोग, प्रशासनिक अदक्षता और राष्ट्रीय विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है।” कौटिल्य के विचारों की विवेचना कीजिये। (2016)

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