कैलाश मानसरोवर मार्ग और नेपाल का विरोध

प्रीलिम्स के लिये

कैलाश मानसरोवर मार्ग

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में कूटनीतिक संवाद की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल ने भारत सरकार द्वारा उत्तराखंड में 80 किलोमीटर लंबी सड़क के उद्घाटन का विरोध करते हुए भारत से ‘नेपाल के क्षेत्र में किसी भी गतिविधि को न करने को कहा है।’

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में नेपाल के सत्तारूढ़ दल ने भारत पर नेपाल की संप्रभुता को कम करने का आरोप लगाया है। नेपाल के अनुसार, भारत द्वारा किया गया 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन पूर्ण रूप से ‘एकतरफा कृत्य’ है और यह दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी विवादों को हल करने पर बनी समझ के पूर्णतः विपरीत है।
  • नेपाल के विरोध के पश्चात् भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह 80 किलोमीटर लंबी सड़क पूर्ण रूप से भारतीय क्षेत्र में आती है। वहीं सीमा विवादों को लेकर विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत नेपाल के साथ अपने घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के मद्देनज़र कूटनीतिक स्तर पर सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • ध्यातव्य है कि यह सड़क उत्तराखंड के धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से जोड़ती है। नेपाल का दावा है कि कालापानी के पास पड़ने वाला यह क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है और भारत ने नेपाल से वार्ता किये बिना इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य किया है।

कैलाश मानसरोवर मार्ग

  • हाल ही में भारतीय ‘रक्षा मंत्री’ (Defence Minister) ने उत्तराखंड में 80 किलोमीटर की सड़क को देश को समर्पित किया जो लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये एक नवीन मार्ग है।
  • इस सड़क मार्ग का निर्माण ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) के करीब उत्तराखंड में किया गया है। 
  • इस सड़क का निर्माण 'सीमा सड़क संगठन' (Border Roads Organisation- BRO) द्वारा किया गया है। यह सड़क धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे से जोड़ती है।
  • यह मार्ग इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसकी लंबाई कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये उपलब्ध अन्य मार्गों की तुलना में लगभग पाँचवें हिस्से के बराबर है। अत: नवीन मार्ग लंबाई में सबसे छोटा तथा यात्रा खर्च के अनुसार सबसे सस्ता है।

विवाद

  • लिपुलेख दर्रा नेपाल और भारत के मध्य कालापानी क्षेत्र के पास एकदम पश्चिमी बिंदु है और भारत तथा नेपाल के मध्य सीमा विवाद का क्षेत्र है। भारत और नेपाल दोनों ही इस क्षेत्र को अपने-अपने देश का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। 
  • भारत के अनुसार, यह क्षेत्र उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का हिस्सा है जबकि नेपाल इस क्षेत्र को धारचूला ज़िले का हिस्सा मानता है।
  • नेपाल ने इस संबंध में वर्ष 1816 में हुई सुगौली संधि (Sugauli treaty) का ज़िक्र किया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय के अनुसार, सुगौली संधि (वर्ष 1816) के तहत काली (महाकाली) नदी के पूर्व के सभी क्षेत्र, जिनमें लिम्पियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) शामिल हैं, नेपाल का अभिन्न अंग हैं।
  • एंग्लो-नेपाली युद्ध (Anglo-Nepalese War) के पश्चात् वर्ष 1816 में नेपाल और ब्रिटिश भारत द्वारा सुगौली की संधि हस्ताक्षरित की गई थी। उल्लेखनीय है कि सुगौली संधि में महाकाली नदी को नेपाल की पश्चिमी सीमा के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • नेपाल सरकार के अनुसार, बीते वर्ष जम्मू-कश्मीर के विभाजन के पश्चात् भारत सरकार द्वारा प्रकाशित नए मानचित्रों में भिन्नता से स्पष्ट था कि भारत द्वारा इस मानचित्रों में छेड़खानी की गई है।

आगे की राह

  • नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह दो देशों के मध्य घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक संधि, दस्तावेज़ों, तथ्यों और नक्शों के आधार पर सीमा के मुद्दों का कूटनीतिक हल प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • वहीं भारत सरकार की ओर से भी कहा गया है कि भारत और नेपाल के पास सभी सीमा विवादों से निपटने के लिये एक स्थापित तंत्र है।
  • विदेश मंत्रालय के अनुसार, नेपाल के साथ सीमा परिसीमन (Boundary Delineation) का कार्य जारी है। साथ ही भारत कूटनीतिक संवाद के माध्यम से बकाया सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • आवश्यक है कि विभिन्न सीमा विवादों का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के स्थान पर उन्हें कूटनीतिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस