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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 03 Aug, 2023
  • 22 min read
प्रारंभिक परीक्षा

कोशिका-मुक्त DNA

चर्चा में क्यों?  

हाल के वर्षों में कोशिका-मुक्त या सेल-फ्री डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (cell-free  Deoxyribonucleic Acid- cfDNA) की खोज से चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। cfDNA रोग की पहचान, निदान और उपचार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

  • cfDNA चिकित्सा विज्ञान के संपूर्ण परिदृश्य को नया आकार देने के लिये तैयार है।

कोशिका-मुक्त DNA (cfDNA): 

  • परिचय: 
    • cfDNA, DNA के उन टुकड़ों को संदर्भित करता है जो कोशिकाओं के बाहर, विशेष रूप से शरीर के विभिन्न तरल पदार्थों में मौजूद होते हैं। अधिकांश DNA के विपरीत जो कोशिकाओं के भीतर घिरा होता है।
    • हालाँकि cfDNA के बारे में वैज्ञानिक वर्ष 1948 से ही जानते हैं लेकिन पिछले दो दशकों में वे यह समझ पाए हैं कि इसके साथ क्या किया जाए।
    • cfDNA को कोशिका मृत्यु या अन्य सेलुलर प्रक्रियाओं सहित विभिन्न परिस्थितियों में बाह्य कोशिकीय वातावरण में जारी किया जाता है।
    • इन cfDNA टुकड़ों में आनुवंशिक सूचना होती है और ये किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, संभावित बीमारियों और आनुवंशिक विविधताओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
  • अनुप्रयोग: 
    • गैर-आक्रामक प्रसव-पूर्व परीक्षण (Non-Invasive Prenatal Testing- NIPT)
      • कोशिका-मुक्त DNA विकासशील भ्रूणों में डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) जैसे गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं की जाँच के लिये एक मूल्यवान उपकरण के रूप में कार्य करता है।
      • एमनियोसेंटेसिस जैसी प्रक्रियाओं के स्थान पर NIPT के उपयोग से गर्भवती माताओं और भ्रूण दोनों के लिये जोखिम कम हो जाता है। 
      • मातृ रक्त के cfDNA का विश्लेषण भ्रूण के आनुवंशिक स्वास्थ्य के बारे में अहम जानकारी प्रदान करता है।
    • प्रारंभिक अवस्था में कैंसर की पहचान: 
      • शीघ्र उपचार के लिये प्रारंभिक अवस्था में कैंसर की पहचान।
      • 'जेमिनी (GEMINI)' परीक्षण उच्च सटीकता के साथ फेफड़ों के कैंसर का पता लगाने के लिये cfDNA अनुक्रमण का उपयोग करता है।
      • cfDNA विश्लेषण और मौजूदा तरीकों के संयुक्त उपयोग से कैंसर का पता लगाने में बेहतर सहायता मिल सकती है। 
    • अंग प्रत्यारोपण की निगरानी: 
      • दाता से प्राप्त cfDNA प्रत्यारोपित अंगों के स्वाथ्य और स्वीकृति के लिये एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
      • cfDNA स्तरों में उतार-चढ़ाव सबसे पहले अंग अस्वीकृति या स्वीकृति का संकेत प्रदान कर सकता है। 
      • अंगों की अस्वीकृति का शीघ्र पता लगाने से अंग प्रत्यारोपण में समय पर आवश्यक उपचार की सुविधा मिलती है और परिणाम भी बेहतर प्राप्त होते हैं।
    • तंत्रिका संबंधी विकार बायोमार्कर: 
      • तंत्रिका संबंधी विकारों के लिये बायोमार्कर के रूप में cfDNA की क्षमता की जाँच करना।
      • अल्ज़ाइमर रोग, न्यूरोनल ट्यूमर और स्ट्रोक जैसी स्थितियों के निदान तथा निगरानी में सहायता करना। 
    • चयापचय विकार संबंधी अंतर्दृष्टि:
      • चयापचय संबंधी विकारों के लिये बायोमार्कर के रूप में cfDNA की भूमिका का पता लगाना।
      • टाइप-2 मधुमेह और गैर-अल्कोहल वसायुक्त यकृत (Fatty Liver) रोग जैसी स्थितियों का पता लगाना और प्रबंधन।
    • रोग अनुसंधान में प्रगति: 
      • cfDNA विश्लेषण का उपयोग शोधकर्ताओं द्वारा रोग के कारणों का पता लगाने, उपचार की प्रभावकारिता को ट्रैक करने के लिये किया जाता है।
      • cfDNA अनुप्रयोग जटिल बीमारियों और उनके अंतर्निहित आनुवंशिक कारकों की गहरी समझ में योगदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  विज्ञान में हुए अभिनव विकासों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है? (2019)  

(a) विभिन्न जातियों की कोशिकाओं से लिये गए DNA के खंडों को जोड़कर प्रकार्यात्मक गुणसूत्र रचे जा सकते है।
(b)  प्रयोगशालाओं में कृत्रिम प्रकार्यात्मक DNA के हिस्से रचे जा सकते हैं।  
(c) किसी जंतु कोशिका से निकाले गए DNA के किसी हिस्से को जीवित कोशिका से बाहर प्रयोगशाला में, प्रतिकृत कराया जा सकता है।  
(d) पादपों और जंतुओं से निकाली गई कोशिकाओं में प्रयोगशाला की पेट्री डिश में कोशिका विभाजन कराया जा सकता है।

उत्तर: (a)  

  • वर्ष 2017 में अमेरिकी शोधकर्ता ई. कोली बैक्टीरिया के नए अर्द्ध -सिंथेटिक स्ट्रेन को विकसित करने में सफल रहे, जो एक जीवित जीव है, यह प्राकृतिक और कृत्रिम DNA दोनों को शामिल करता है तथा पूरी तरह से नए सिंथेटिक प्रोटीन बनाने में सक्षम है।
  • शुद्ध प्रोटीन युक्त इन-विट्रो DNA प्रतिकृति प्रणाली में विभिन्न प्रकार के डबल स्ट्रैंडेड DNA टेम्पलेट्स को बड़े पैमाने पर दोहराया जाता है।
  • सूक्ष्म प्रसार के माध्यम से पौधों को प्रयोगशाला में विकसित किया जा सकता है, उदाहरण के लिये क्लैमाइडोम्नास कोशिकाओं को प्रकाश विविधता के माध्यम से इसे दोहराया जा सकता है। अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।

प्रश्न.  भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले "जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सिक्वेंसिंग)" की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)  

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने हेतु जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।  
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।  
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी रोगाणु-संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

  • चीनी वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डिकोड किया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने चावल की बेहतर किस्मों जैसे- पूसा बासमती-1 और पूसा बासमती-1121 को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया, जिसने वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में काफी हद तक वृद्धि की है। कई ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं, जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और वायरस प्रतिरोधी पपीता शामिल हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की जाँच करते हैं और उन पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर उन सभी पौधों में लक्षणों को उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी और अविश्वसनीय है जो कि प्रजनक चाहते हैं। हालाँकि जीनोम अनुक्रमण में कम समय लगता है, इस प्रकार यह अधिक बेहतर विकल्प है। अत:  कथन 2 सही है।
  • जीनोम अनुक्रमण एक फसल के संपूर्ण DNA अनुक्रम का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता प्रदान करता है। अत:  कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023

चर्चा में क्यों? 

लोकसभा ने हाल ही में जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 [Registration of Births and Deaths (Amendment) Bill, 2023] को मंज़ूरी दे दी है जो डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र (Digital Birth Certificates) की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है।

  • ये प्रमाणपत्र शैक्षिक प्रवेश से लेकर सरकारी आवेदन तक कई उद्देश्यों के लिये एक व्यापक दस्तावेज़ के रूप में काम करेंगे।

जन्म और मृत्यु (संशोधन) विधेयक, 2023 का पंजीकरण:

  • परिचय:
    • जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम, 1969 में संशोधन करना चाहता है।
      • जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 जन्म और मृत्यु के विनियमन तथा पंजीकरण का प्रावधान करता है। जन्म और मृत्यु का पंजीकरण समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, जो संसद तथा राज्य विधानसभाओं दोनों को इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति देता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र: यह विधेयक डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र की अवधारणा पेश करता है, जो कई उद्देश्यों के लिये एक व्यापक दस्तावेज़ के रूप में काम करेगा, जिससे जन्म विवरण सत्यापित करने के लिये कई दस्तावेज़ों की आवश्यकता कम हो जाएगी।
    • आधार विवरण: विधेयक में माता-पिता और सूचना देने वालों के आधार विवरण को जन्म प्रमाण पत्र से जोड़ने का प्रस्ताव है।
      • आधार समावेशन का दायरा चिकित्सा अधिकारियों, जेलरों और संस्थानों के प्रबंधकों सहित विभिन्न रिपोर्टिंग प्राधिकरणों तक विस्तारित है।
    • केंद्रीकृत डेटाबेस: जन्म और मृत्यु रिकॉर्ड को प्रबंधित करने, कुशल सेवा वितरण की सुविधा प्रदान करने तथा सटीक एवं अद्यतन जानकारी बनाए रखने के लिये एक केंद्रीकृत डेटाबेस स्थापित किया जाएगा।
      • जन्म प्रमाण पत्र के अलावा केंद्रीकृत डेटाबेस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR), राशन कार्ड और संपत्ति पंजीकरण को भी अपडेट करेगा।
      • विधेयक में राज्यों के लिये केंद्र के नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) पोर्टल पर जन्म और मृत्यु को पंजीकृत करना तथा डेटा को भारत के महापंजीयक, (Registrar General of India) जो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत कार्य करता है, के साथ साझा कर अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है।
  • लाभ:
    • केंद्रीकृत डेटाबेस से सूचना का एक विश्वसनीय और एकीकृत स्रोत प्रदान करने से  प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि की उम्मीद है।
    • एकल डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग नागरिकों के लिये शैक्षिक प्रवेश, सरकारी नौकरियाँ, पासपोर्ट आदि जैसी विभिन्न सेवाओं तक सुव्यवस्थित पहुँच सुनिश्चित करेगा
    • यह विधेयक भारत द्वारा डिजिटल परिवर्तन हेतु किये जाने वाले प्रयासों के अनुरूप है, जो बेहतर नागरिक सेवाओं के लिये प्रशासनिक प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • चिंताएँ:
    • जन्म प्रमाण पत्र के अभाव के आधार पर बच्चों को विद्यालयों में प्रवेश न देना, शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
      • इस विधेयक ने नागरिकों की निजता के अधिकार की सुरक्षा और प्रशासनिक दक्षता के लिये लाभ प्रदान करने वाली प्रौद्योगिकी के मध्य संतुलन को लेकर विवाद उत्पन्न कर दिया है।
      • विधेयक के प्रावधान संभावित रूप से शिक्षा के अधिकार और निजता के अधिकार जैसे संवैधानिक अधिकारों के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।
    • इस विधेयक को पारदर्शिता के आधार पर विरोध का सामना करना पड़ा है, जबकि आलोचकों ने डेटा संग्रह और उसके उपयोग के लिये सरकार के दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाया है।
    • आलोचकों का यह भी तर्क है कि डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र अनजाने में उन व्यक्तियों को बाहर कर सकता है जिनकी डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुँच नहीं है, जिसके कारण सेवाओं तक पहुँच में असमानता की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
    • ऐसी आशंका है कि यह विधेयक किशोर न्याय अधिनियम, 2015 एवं अन्य प्रासंगिक कानूनों के प्रावधानों के अनुरूप न हो

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 3 अगस्त, 2023

मणिपुर जातीय हिंसा के बीच विस्थापित स्कूली बच्चों को राहत

मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण विस्थापित 14,000 से अधिक स्कूली बच्चों की निरंतर शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा त्वरित कदम उठाए गए हैं।

  • 3 मई, 2023 को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' से मणिपुर में जातीय झड़पों की शुरुआत हुई, यह मार्च मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में आयोजित किया गया था।
    • मैतेई लोगों को मणिपुरी लोगों के रूप में भी जाना जाता है।
    • उनकी प्राथमिक भाषा ‘मैतेई’ है, जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है और यह मणिपुर की एकमात्र आधिकारिक भाषा है।
    • ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं, हालाँकि इनकी एक बड़ी जनसंख्या असम, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम जैसे भारत के अन्य राज्यों में रहती है।
    • मैतेई लोग कबीलों में विभाजित हैं और एक ही कबीले के सदस्य आपस में विवाह नहीं करते हैं।

और पढ़ें…मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग

पीएम यशस्वी योजना 

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class- OBC), SC, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (Denotified, Nomadic and semi-Nomadic Tribe- DNT) तथा आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति (Economically Backward Caste- EBC) की श्रेणियों के छात्रों के लिये ‘पीएम यंग अचीवर्स स्कॉलरशिप अवार्ड योजना फॉर वाइब्रेंट इंडिया’ (PM Young Achievers Scholarship Award Scheme for Vibrant India- PM YASASVI) नामक एक व्यापक योजना लागू कर रहा है।

  • योजना के प्रमुख घटकों में शामिल हैं:
    • OBC, EBC और DNT छात्रों के लिये प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति।
    • OBC, EBC और DNT छात्रों के लिये पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति।
    • OBC, EBC और DNT छात्रों के लिये शीर्ष श्रेणी की स्कूली शिक्षा।
    • OBC, EBC और DNT छात्रों के लिये शीर्ष श्रेणी की कॉलेज शिक्षा।
    • OBC बालक-बालिकाओं के लिये छात्रावास का निर्माण।

और पढ़ें…भारत में छात्रवृत्ति योजनाएँ

CAPF में मनोरोग के बढ़ते मामले

हाल ही में गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Forces- CAPF) में मनोरोग रोगियों की चिंताजनक वृद्धि की सूचना दी है। यह संख्या वर्ष 2020 के 3,584 से बढ़कर वर्ष 2022 में  4,940 हो गई है, जो रिपोर्ट किये गए मनोरोगियों के आँकड़ों में लगभग 38% की वृद्धि को दर्शाता है।

  • मनोरोग संबंधी मामले ऐसे व्यक्तियों को संदर्भित करते हैं जो मानसिक स्वास्थ्य विकारों या स्थितियों का अनुभव कर रहे हैं और जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से निदान, उपचार एवं  देखभाल की आवश्यकता होती है।
    • इन मामलों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है, जो इस प्रकार है:
      • द्विध्रुवी विकार: मनोदशा में अत्यधिक परिवर्तन आना, जिसमें उन्मत्तता और अवसादग्रस्तता जैसी स्थितियाँ शामिल हैं।
      • अवसाद: लगातार उदासी, निराशा और गतिविधियों में रुचि की कमी की भावना।
      • सिज़ोफ्रेनिया: मतिभ्रम, भ्रम,अव्यवस्थित विचार, असामान्य भावनात्मक स्थिति वाला एक गंभीर मानसिक विकार।
  • इसके अलावा महामारी के बाद की अवधि में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने वाले कर्मियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है। वर्ष 2022 में 11,211 कर्मियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, जो कार्यबल में संभावित असंतोष और अक्रियाशीलता का संकेत है।

और पढ़ें…केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे

आदि पेरुक्कु 2023

आदि पेरुक्कु, जिसे पथिनेट्टम पेरुक्कु के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु में मानसून के आगमन और जल के जीवनदायी गुणों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिये मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है।

  • तमिल कैलेंडर के अनुसार,आदि महीने के 18वें दिन पड़ने वाला यह त्योहार मानसून की शुरुआत का प्रतीक है, जबकि तमिल मान्यताओं के अनुसार इस त्योहार को मनाने से नदियों में जल स्तर बढ़ता है, जिससे फसल की बुवाई में तथा वनस्पतियों को लाभ होता है।
  • आदि पेरुक्कु के दौरान लोग अनुष्ठान और प्रार्थना करने के लिये नदियों, मूलतः कावेरी नदी के तट पर एकत्रित होते हैं।

और पढ़ें: विभिन्न राज्यों के प्रमुख त्योहार


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