भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के लिये सेवा-आधारित विकास मॉडल
यह एडिटोरियल “Services offer a fast and reliable path to economic development” पर आधारित है, जो 30/12/2024 को लाइवमिंट में प्रकाशित हुआ था। यह लेख विनिर्माण से सेवा-आधारित विकास की ओर परिवर्तन को दर्शाता है जो विदेशी निवेश, उच्च-कुशल नौकरियों और कार्यबल में महिलाओं के लिये अधिक अवसरों को बढ़ावा देने में डिजिटल परिवर्तन की भूमिका पर बल देता है। भारत के लिये, यह वैश्विक प्रवृत्ति सतत् आर्थिक विकास के लिये एक आशाजनक मार्ग प्रस्तुत करती है।
प्रिलिम्स के लिये:सेवा-आधारित विकास, रेलवे का विकास, पंचवर्षीय योजनाएँ, BPO (बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग), दूरसंचार, ई-कॉमर्स, स्मार्ट सिटीज़, PMGDISHA, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, एडटेक मार्केट, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, भारतीय रिज़र्व बैंक, PM जन-धन योजना, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा, भारत का ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स-2023, e-NAM, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स मुख्य परीक्षा के लिये:भारत के आर्थिक विकास के लिये उत्प्रेरक के रूप में सेवा-आधारित विकास, भारत के लिये सेवा-आधारित विकास मॉडल से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
एक ऐसे दौर में जब विकासशील देश आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना कर रहे हैं, एक प्रतिमान बदलाव विश्व भर में विकास रणनीतियों को नया आयाम दे रहा है। यद्यपि विनिर्माण-आधारित विकास समृद्धि का पारंपरिक मार्ग रहा है, विश्व बैंक के नए शोध से पता चलता है कि सेवाओं को केंद्र में रखा जाना चाहिये। डिजिटल परिवर्तन इस विकास में महत्त्वपूर्ण रहा है, जिसमें सेवाओं ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया है, उच्च-कुशल नौकरियों का सृजन किया है, और कार्यबल में महिलाओं के लिये नए अवसर खोले हैं। जैसा कि भारत अपने आर्थिक भविष्य की रूपरेखा बना रहा है, यह वैश्विक प्रवृत्ति इस संदर्भ में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है कि किस प्रकार सेवा-आधारित विकास सतत् आर्थिक विकास के लिये उत्प्रेरक हो सकता है।
भारत में सेवा क्षेत्र का विकास किस प्रकार हुआ है?
- स्वतंत्रता-पूर्व युग (वर्ष 1947 से पूर्व)
- सीमित भूमिका: सेवा क्षेत्र अविकसित था, मुख्य रूप से औपनिवेशिक प्रशासन, परिवहन और व्यापार एवं शिक्षा जैसी पारंपरिक सेवाओं तक सीमित था।
- बुनियादी अवसंरचना पर ध्यान: ब्रिटिश पहलों के कारण रेलवे, डाक सेवाओं और टेलीग्राफ प्रणालियों का विकास हुआ, जिसने आधुनिक सेवा उद्योगों की नींव रखी।
- शहरी संकेंद्रण: सेवा क्षेत्र की गतिविधियाँ मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरी केंद्रों में केंद्रित थीं।
- स्वतंत्रता के बाद और प्रारंभिक दशक (1947-1980)
- राज्य संचालित विकास: सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग, बीमा और परिवहन जैसी सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ( जैसे, LIC, SBI जैसे राष्ट्रीयकृत बैंक) की स्थापना से वित्तीय और प्रशासनिक सेवाएँ सुदृढ़ हुईं।
- कृषि और औद्योगिक फोकस: सेवा क्षेत्र के विकास के बावजूद, पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि और औद्योगीकरण पर बल दिया गया।
- सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का मामूली योगदान, लगभग 30% था, जिसमें निम्न उत्पादकता वाली पारंपरिक सेवाओं का प्रभुत्व था।
- राज्य संचालित विकास: सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग, बीमा और परिवहन जैसी सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण (वर्ष 1991 के बाद)
- 1991 के आर्थिक सुधार: उदारीकरण नीतियों ने व्यापार, विदेशी निवेश और निजी उद्यम पर प्रतिबंध हटा दिये।
- भारत के कुशल, अंग्रेज़ी बोलने वाले कार्यबल और लागत लाभ के कारण BPO (बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) और KPO (नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग) क्षेत्र का विकास हुआ।
- IT और IT-सक्षम सेवा (ITES) उद्योग एक परिवर्तनकारी उद्योग के रूप में उभरा है।
- इंफोसिस, TCS और Wipro जैसी कंपनियाँ सॉफ्टवेयर सेवाओं में वैश्विक अग्रणी बन गईं।
- वित्तीय एवं व्यावसायिक सेवाओं का विकास: बैंकिंग, बीमा और शेयर बाज़ार क्षेत्रों के उदारीकरण ने विस्तार को बढ़ावा दिया।
- घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों की सेवा करने वाली कानूनी, परामर्शदाता और लेखा फर्मों का उदय हुआ।
- पर्यटन और आतिथ्य: घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन में संवृद्धि ने अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- वर्तमान रुझान (2000 के दशक से आगे)
- सकल घरेलू उत्पाद में प्रमुख भूमिका: सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5-60% का योगदान देता है, लेकिन केवल 32% कार्यबल को ही रोज़गार देता है।
- विविध उप-क्षेत्र:
- IT और डिजिटल सेवाएँ: भारत एक वैश्विक IT पावरहाउस है, जो विश्व भर में सॉफ्टवेयर और डिजिटल सॉल्यूशन प्रदान करता है।
- दूरसंचार: इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं के तेज़ी से प्रसार के साथ, भारत दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्त्ता आधार बन गया है।
- ई-कॉमर्स: फ्लिपकार्ट, अमेज़न और जोमैटो जैसी कंपनियों ने खुदरा और सेवा वितरण में क्रांति ला दी है।
- स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा: निजी अस्पतालों और विश्वविद्यालयों की वृद्धि ने भारत को चिकित्सा पर्यटन एवं वैश्विक शिक्षा सेवाओं का केंद्र बना दिया है।
- मीडिया और मनोरंजन: बॉलीवुड, OTT प्लेटफॉर्म एवं खेल प्रसारण GDP में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में उभरे हैं।
सेवा-आधारित विकास भारत के आर्थिक विकास के किस प्रकार उत्प्रेरक सिद्ध हो सकता है?
- उभरते क्षेत्रों में रोज़गार सृजन: सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से IT, डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स अपने बड़े, कुशल कार्यबल का लाभ उठाते हुए भारत में रोज़गार संवृद्धि के प्राइमरी इंजन के रूप में स्थापित हुए हैं।
- यह विभिन्न कौशल क्षेत्रों में अवसर प्रदान करता है, तथा बेरोज़गारी और अल्परोज़गार को कम करता है।
- उदाहरण के लिये, IT-BPM क्षेत्र में 5.4 मिलियन पेशेवर कार्यरत हैं (मार्च, 2023 तक), और भारत की गिग इकॉनमी वर्ष 2030 तक 23.5 मिलियन श्रमिकों तक पहुँचने की उम्मीद है।
- डिजिटल सेवाओं में वैश्विक नेतृत्व: IT और उभरती प्रौद्योगिकियों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त इसे डिजिटल सॉल्यूशन के लिये वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करती है, जो आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करती है।
- AI, ब्लॉकचेन और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्र निर्यात को रणनीतिक महत्त्व देते हैं।
- भारत का IT-BPM राजस्व सत्र 2023-24 में 245 बिलियन डॉलर था, और UPI ने देश में डिजिटल भुगतान में क्रांति ला दी है।
- स्मार्ट सेवाओं के माध्यम से शहरी विकास: सेवा-आधारित शहरी समाधान यातायात प्रबंधन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी शहरीकरण चुनौतियों का समाधान करते हैं, तथा सतत् विकास को बढ़ावा देते हैं।
- स्मार्ट सिटीज़ जैसी परियोजनाएँ शहरी जीवन-यापन को बेहतर बनाती हैं तथा बुनियादी अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण के लिये, 100 स्मार्ट शहरों में 84,000 से अधिक CCTV निगरानी कैमरे लगाए गए हैं, जिससे अपराध निगरानी, शहरी सुरक्षा और दक्षता में सुधार करने में मदद मिली है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से ग्रामीण समावेशन: डिजिटल सेवाएँ ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बैंकिंग तक अभिगम को लोकतांत्रिक बनाती हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानताएँ कम होती हैं।
- ये मंच ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाते हैं और उन्हें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एकीकृत करते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत में टेलीमेडिसिन बाज़ार सत्र 2020-25 की अवधि के लिये 31% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है, जबकि PMGDISHA के तहत 47.8 मिलियन ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल रूप से साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया है।
- पर्यावरणीय स्थिरता के लिये हरित सेवाएँ: हरित वित्त और नवीकरणीय ऊर्जा परामर्श जैसी स्थिरता-केंद्रित सेवाएँ जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- वे आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए स्वच्छ ऊर्जा में निवेश को बढ़ावा देते हैं।
- सरकार ने वित्त वर्ष 2024 में 20,000 करोड़ रूपए मूल्य के सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड की नीलामी की और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन से वर्ष 2030 तक 6 लाख नौकरियाँ सृजित होने का अनुमान है, जो ग्रीन जॉब्स मॉडल को दर्शाता है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा के माध्यम से मानव पूंजी विकास: स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सेवाओं का विस्तार एक स्वस्थ, कुशल कार्यबल को बढ़ावा देता है, जो दीर्घकालिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- एडटेक और स्वास्थ्य योजनाएँ अभिगम और परिणामों में बदलाव ला रही हैं।
- स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार हुआ है, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खातों से 42 करोड़ से अधिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड जोड़े गए हैं, जिससे चिकित्सा इतिहास तक आसान अभिगम संभव हो रहा है। इसके अतिरिक्त भारत का एडटेक मार्केट वर्ष 2023 में 5 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है, जिससे सेवा वितरण एवं गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
- फिनटेक के माध्यम से वित्तीय समावेशन: फिनटेक नवाचार बैंकिंग में क्रांति ला रहे हैं, वित्तीय अभिगम सुनिश्चित कर रहे हैं और आर्थिक असमानताओं को कम कर रहे हैं।
- यह डिजिटल परिवर्तन बचत और औपचारिक आर्थिक गतिविधि को बढ़ाता है।
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) लेन-देन वित्त वर्ष 2017-18 में 92 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 13,116 करोड़ हो गया है और PM जन-धन योजना खाते अगस्त 2023 में 500 मिलियन को पार कर गए हैं, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है।
- सेवा निर्यात से व्यापार संतुलन को बढ़ावा: सेवा निर्यात भारत के वस्तु व्यापार घाटे की भरपाई और विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- IT और व्यावसायिक सेवाओं में भारत की मज़बूत पकड़ इस रणनीति का आधार है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत का सेवा निर्यात सत्र 2022-23 (वित्त वर्ष 23) में रिकॉर्ड 26.6% बढ़कर 322 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे वस्तु व्यापार घाटे की भरपाई हुई और भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति मज़बूत हुई।
- PPP के माध्यम से बुनियादी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना: लॉजिस्टिक्स और परिवहन जैसी सेवाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) बुनियादी अवसंरचना के विकास को बढ़ाती है, तथा आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देती है।
- 17 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा औद्योगिक और लॉजिस्टिक्स सेवाओं को एकीकृत करता है, जिससे आर्थिक उत्पादकता बढ़ती है।
- ऐसी पहल संधारणीय विकास रणनीतियों को आधार प्रदान करती हैं।
- 17 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा औद्योगिक और लॉजिस्टिक्स सेवाओं को एकीकृत करता है, जिससे आर्थिक उत्पादकता बढ़ती है।
भारत के लिये सेवा-आधारित विकास मॉडल से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- सेवा क्षेत्र में बेरोज़गारी वृद्धि: यद्यपि सेवा क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद पर हावी है, लेकिन बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन करने की इसकी क्षमता कृषि और विनिर्माण की तुलना में सीमित है।
- अधिकतर नौकरियाँ या तो कम वेतन वाली हैं या फिर उनके लिये विशेष कौशल की ज़रूरत होती है, जिससे असमानताएँ बढ़ती हैं। सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग आधे का योगदान देता है, लेकिन यह अपने कार्यबल के केवल एक-तिहाई हिस्से को ही रोज़गार देता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत की बेरोज़गारी दर 8.1% (CMIE, अप्रैल 2024) है, जो रोज़गार सृजन और कार्यबल की मांग के बीच असंतुलन को दर्शाती है।
- विनिर्माण और कृषि पर ध्यान का अभाव: सेवाओं पर अत्यधिक बल देने से विनिर्माण और कृषि से ध्यान हट जाता है, जो बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन एवं ग्रामीण विकास के लिये आवश्यक क्षेत्र हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण (2023-24) के अनुसार, भारत का कार्यबल लगभग 56.5 करोड़ है, जिसमें से 45% से अधिक कृषि में और 11.4% विनिर्माण में कार्यरत हैं।
- केवल सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से असमान क्षेत्रीय विकास होगा, जिससे समग्र आर्थिक विकास प्रभावित होगा।
- अधिकतर नौकरियाँ या तो कम वेतन वाली हैं या फिर उनके लिये विशेष कौशल की ज़रूरत होती है, जिससे असमानताएँ बढ़ती हैं। सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग आधे का योगदान देता है, लेकिन यह अपने कार्यबल के केवल एक-तिहाई हिस्से को ही रोज़गार देता है।
- विषम क्षेत्रीय विकास: सेवा-आधारित विकास अनुपातहीन रूप से शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्र अविकसित रह जाते हैं।
- इससे क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न होता है और ग्रामीण गरीबी बढ़ती है।
- उदाहरण के लिये, कर्नाटक के IT निर्यात (बंगलुरु जैसे शहरों के नेतृत्व में) में 27% की प्रभावशाली संवृद्धि हुई, जिससे भारत के IT निर्यात में राज्य की हिस्सेदारी बढ़कर 42% हो गई।
- NITI आयोग के अनुसार बिहार और झारखंड जैसे राज्य कृषि पर निर्भर हैं, जहाँ गरीबी क्रमशः 33.76% और 28.81% है।
- बाह्य मांग पर निर्भरता: भारत का सेवा निर्यात, विशेषकर IT और BPO, वैश्विक बाज़ारों पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिससे अर्थव्यवस्था अमेरिका या यूरोपीय संघ में मंदी जैसे बाह्य झटकों के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- इस तरह की निर्भरता वैश्विक मांग में अस्थिरता के लिये इस क्षेत्र को उजागर करती है। निर्मल बंग सिक्योरिटीज़ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की मज़बूत आर्थिक स्थिति के बावजूद, देश संभावित अमेरिकी मंदी से पूरी तरह से अछूता नहीं है।
- यहाँ तक कि "सामान्य" आर्थिक परिस्थितियों में भी, वैश्विक आर्थिक दबावों ने भारत की घरेलू संवृद्धि को लगभग 1.5-2.5% तक धीमा कर दिया है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका में मंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
- इस तरह की निर्भरता वैश्विक मांग में अस्थिरता के लिये इस क्षेत्र को उजागर करती है। निर्मल बंग सिक्योरिटीज़ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की मज़बूत आर्थिक स्थिति के बावजूद, देश संभावित अमेरिकी मंदी से पूरी तरह से अछूता नहीं है।
- कौशल अंतराल और कार्यबल बेमेल: कार्यबल के कौशल और उद्योग की मांग के बीच संरेखण की कमी सेवा क्षेत्र की मापनीयता को सीमित करती है।
- यद्यपि इस क्षेत्र में तकनीक-प्रेमी और उच्च-कुशल पेशेवरों की मांग है, फिर भी भारत की अधिकांश श्रम शक्ति अर्द्ध-कुशल बनी हुई है।
- भारत के ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स-2023 से पता चला है कि रोज़गार अभ्यर्थी भारतीय स्नातकों में से केवल 45% के पास उद्योगों की तेज़ी से विकसित हो रही मांगों को पूरा करने के लिये आवश्यक कौशल हैं।
- NSSO के 68वें दौर के अनुसार, भारत के केवल 4.69% कार्यबल को औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है, जबकि अमेरिका में यह 52%, ब्रिटेन में 68% और जर्मनी में 75% है।
- शहरी भीड़भाड़ और बुनियादी अवसंरचना पर दबाव: सेवा-आधारित शहरीकरण के कारण प्रमुख शहरों में भीड़भाड़, यातायात की भीड़भाड़ और अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना की समस्या उत्पन्न हो गई है।
- इससे उत्पादकता और जीवनयापन में कमी आती है। उदाहरण के लिये, बंगलुरु को विश्व स्तर पर दूसरा सबसे खराब यातायात वाला शहर माना गया है।
- भारत में वर्तमान में 35% शहरी आबादी है, अनुमान है कि वर्ष 2047 तक यह आँकड़ा बढ़कर 53% हो जाएगा। इसका मतलब है कि शहरी आबादी लगभग दोगुनी हो जाएगी, अतिरिक्त 400 मिलियन लोग शहरों की ओर रूख करेंगे, जिससे शहरी सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ेगा।
- अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का बहिष्कार: अनौपचारिक क्षेत्र, जो 90% से अधिक कार्यबल को रोज़गार देता है, सेवा-आधारित विकास मॉडल के लाभों से बहुत हद तक बाहर रखा गया है।
- इससे असुरक्षा की स्थिति बनी रहती है तथा श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा और आय स्थिरता का अभाव रहता है।
- उदाहरण के लिये, स्विगी और उबर जैसे प्लेटफॉर्म के उदय के बावजूद, गिग वर्कर्स को अधिक काम के बावजूद वेतन शोषण का सामना करना पड़ता है (77% से अधिक लोग सालाना 2.5 लाख रुपए से कम अर्जित कर पाते हैं)।
- हाल ही में भारत के 32 शहरों में किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 85% गिग वर्कर्स ड्राइवर और राइडर के रूप में प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक काम करते हैं, तथा 21% कर्मचारी प्रतिदिन 12 घंटे से अधिक काम करते हैं।
- सेवाओं की कम घरेलू खपत: सेवा-आधारित विकास बहुत हद तक निर्यात पर निर्भर करता है, क्योंकि निम्न आय स्तर और अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना के कारण सेवाओं की घरेलू खपत सीमित रहती है।
- उदाहरण के लिये, कम घरेलू मांग के कारण मई 2024 में भारत के सेवा क्षेत्र की संवृद्धि धीमी पड़ गई, तथा क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) गिरकर 60.2 पर आ गया।
भारत सेवा-आधारित विनिर्माण और कृषि विकास को आगे बढ़ाते हुए सेवा क्षेत्र के विकास को किस प्रकार कायम रख सकता है?
- कौशल विकास और उद्योग सहयोग को बढ़ावा देना: भारत को कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की मांगों के अनुरूप बनाना होगा, ताकि सेवाओं और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में कार्यबल के अंतर को कम किया जा सके।
- स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी पहलों के तहत निजी भागीदारों के साथ सहयोग करके रोज़गारपरकता और मापनीयता सुनिश्चित की जा सकती है।
- उदाहरण के लिये, इंफोसिस जैसी दिग्गज़ IT कंपनियों के साथ साझेदारी से युवाओं को डिजिटल प्रौद्योगिकियों में कौशल प्रदान किया जा सकता है, IT सेवाओं को समर्थन दिया जा सकता है, जबकि उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के तहत उन्नत विनिर्माण तकनीकों में प्रशिक्षण से औद्योगिक उत्पादकता को बढ़ावा मिल सकता है।
- एकीकृत कृषि प्रसंस्करण और सेवा केंद्रों का विकास: लॉजिस्टिक्स और डिजिटल सेवाओं के साथ एकीकृत कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना से कृषि में मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा मिल सकता है तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ा जा सकता है।
- प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकीकरण (PMFME) जैसी पहल, e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) के साथ मिलकर ऐसे केंद्र बना सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, किसानों को खरीददारों से जोड़ने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म कार्यकुशलता बढ़ा सकते हैं, जबकि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ ग्रामीण रोज़गार सृजन कर सकती हैं तथा निर्यात को बढ़ावा दे सकती हैं।
- शहरी-ग्रामीण संपर्क के लिये स्मार्ट बुनियादी अवसंरचना में निवेश: ग्रामीण सड़कों, कोल्ड चेन और वेयरहाउसिंग सहित स्मार्ट बुनियादी अवसंरचना का निर्माण, ग्रामीण कृषि उत्पादन को शहरी सेवा एवं विनिर्माण उद्योगों से जोड़ सकता है।
- लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर के लिये PM गति शक्ति और रूर्बन मिशन के अभिसरण से इन अंतरालों को दूर किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, सुविकसित लॉजिस्टिक्स नेटवर्क पंजाब जैसे खाद्य अधिशेष वाले राज्यों को शहरी बाज़ारों से जोड़ सकता है, जिससे बर्बादी में कमी आ सकती है और आपूर्ति शृंखला दक्षता बढ़ सकती है।
- डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के साथ MSME समर्थन को बढ़ावा: यदि डिजिटल परिवर्तन के माध्यम से समर्थन दिया जाए तो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) सेवा और विनिर्माण क्षेत्रों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- पंजीकरण में सुविधा के लिये उद्यम पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म का विस्तार, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) के साथ मिलकर, छोटे व्यवसायों को मुख्यधारा की आपूर्ति शृंखलाओं में लाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, छोटे निर्माताओं को डिजिटल बनाने से वे आतिथ्य या IT जैसे बड़े सेवा उद्योगों को कल-पुर्जे आपूर्ति करने में सक्षम हो सकते हैं।
- कृषि और ग्रामीण ऋण के लिये फिनटेक का लाभ उठाना: फिनटेक नवाचारों का उपयोग करते हुए वित्तीय पहुँच का विस्तार करके किसानों और ग्रामीण उद्यमों को आधुनिक कृषि एव्न्न कृषि-व्यवसाय में निवेश करने के लिये आवश्यक ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) जैसी योजनाओं को किसान क्रेडिट कार्ड डिजिटलीकरण जैसे प्लेटफॉर्मों के साथ मिलाकर निर्बाध ऋण वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, ग्रामीण ऋण के साथ AI-आधारित जोखिम मूल्यांकन उपकरणों को एकीकृत करने से NPA में कमी आ सकती है और किसानों को उच्च उपज तकनीक अंगीकरण के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
- ग्रामीण रोज़गार के लिये पर्यटन और आतिथ्य को बढ़ावा देना: होमस्टे कार्यक्रमों, सांस्कृतिक सर्किटों और इको-टूरिज़्म के माध्यम से ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने से रोज़गार के अवसरों के सृजन हो सकते हैं, साथ ही ग्रामीण विरासत को संरक्षित किया जा सकता है।
- स्वदेश दर्शन और प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) जैसी योजनाएँ कारीगरों व छोटे उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिये सहयोग कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, उत्तराखंड में इको-टूरिज़्म परियोजनाएँ स्थानीय लोगों को स्थायी आय प्रदान करती हैं, तथा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने के साथ ही कृषि को आतिथ्य से जोड़ती हैं।
- विनिर्माण को समर्थन देने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा सेवाओं को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा सेवाओं को बढ़ाने से विनिर्माण और कृषि के लिये संधारणीय एवं कम लागत वाली बिजली उपलब्ध हो सकती है।
- KUSUM (सौर सिंचाई) और राष्ट्रीय सौर मिशन जैसी योजनाएँ ग्रामीण उद्यमों के लिये ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहयोग कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, सौर ऊर्जा चालित शीत भण्डारण, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं तथा लघु कृषि प्रसंस्करण उद्योगों को भी सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार को सुदृढ़ करना: PPP के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करने से सेवाओं और विनिर्माण दोनों में प्रगति हो सकती है।
- स्टार्टअप इंडिया के तहत इंडस्ट्रियल पार्क के साथ नवाचार केंद्रों की स्थापना से स्वचालन, कृषि-तकनीक और लॉजिस्टिक्स में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिये, विश्वविद्यालयों और महिंद्रा एग्री सॉल्यूशंस जैसी कंपनियों के बीच साझेदारी से किफायती कृषि मशीनरी बनाई जा सकती है, तथा कृषि परिवर्तन के लिये विनिर्माण के साथ सेवाओं का सम्मिश्रण किया जा सकता है।
- दक्षता के लिये आपूर्ति शृंखलाओं को डिजिटल बनाना: भारत ब्लॉकचेन और IoT जैसे डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाकर कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं में आपूर्ति शृंखलाओं को सुव्यवस्थित कर सकता है।
- PM गति शक्ति जैसी योजनाएँ रियल टाइम ट्रैकिंग और वितरण में सुधार के लिये तकनीकी प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत हो सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, कृषि निर्यात में ब्लॉकचेन-सक्षम ट्रेसेबिलिटी वैश्विक गुणवत्ता मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित कर सकती है, जिससे किसानों और निर्यातकों दोनों को लाभ होगा।
- कौशल और सेवा एकीकरण के माध्यम से निर्यात क्षमता का विस्तार: विनिर्माण को लॉजिस्टिक्स, वित्त और IT जैसी उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं के साथ एकीकृत करने से भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है।
- सेवा निर्यात के लिये PLI प्रोत्साहनों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नीतियों के साथ संरेखित करने से वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी उद्योग सृजित हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, दवा विनिर्माण को नियामक परामर्श सेवाओं के साथ संयोजित करने से नवोदित बाज़ारों तक अभिगम में मदद मिल सकती है।
- सेवाओं और कृषि में महिला सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करना: यदि महिलाओं को शिक्षा, ऋण और उद्यमशीलता के अवसरों तक पहुँच में सहायता प्रदान की जाए तो वे ग्रामीण आर्थिक विकास को गति दे सकती हैं।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों (SHG) को डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म से जोड़ने से महिला किसानों और सेवा प्रदाताओं को सशक्त बनाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, गुजरात में महिलाओं के नेतृत्व वाली डेयरी सहकारी समितियों ने कृषि और सेवाओं के बीच तालमेल प्रदर्शित करते हुए अमूल की सफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
निष्कर्ष:
भारत की सेवा-आधारित संवृद्धि सतत् आर्थिक विकास के लिये एक आशाजनक मार्ग प्रदान करती है, जो SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) एवं SDG 9 (उद्योग, नवाचार और बुनियादी अवसंरचना) के साथ संरेखित है। डिजिटल सेवाओं का लाभ उठाकर, कौशल विकास में सुधार करके और ग्रामीण एवं शहरी संपर्कों के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देकर, भारत मौजूदा असमानताओं व क्षेत्रीय विषमताओं को दूर कर सकता है। साथ ही, समग्र और दीर्घकालिक विकास के लिये कृषि एवं विनिर्माण के साथ सेवाओं के विकास को संतुलित करने की भी आवश्यकता बनी हुई है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में आर्थिक विकास के लिये सेवा-आधारित विकास को संभावित उत्प्रेरक के रूप में पहचाना गया है। भारत के आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में सेवा क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा करते हुए सतत् विकास को प्राप्त करने में इसके द्वारा प्रस्तुत अवसरों और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. S & P 500 किससे संबंधित है? (2008) (a) सुपरकंप्यूटर उत्तर: (d) प्रश्न 2. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं ? (2017) प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |