एडिटोरियल (26 Sep, 2024)



परमाणु निरस्त्रीकरण: भारत का संतुलक कार्य

यह संपादकीय 26/09/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Taking stock of global nuclear disarmament” पर आधारित है । यह लेख वैश्विक चुनौतियों के बीच परमाणु आयुधों के निषेध पर संधि (TPNW) के बढ़ते महत्त्व और NPT के बाहर एक परमाणु शक्ति के रूप में भारत की संवेदनशील स्थिति पर प्रकाश डालता है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को परमाणु आयुधों को अवैध बनाने की TPNW की क्षमता के साथ संतुलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु आयुधों के निर्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, परमाणु अप्रसार संधि, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, 1963 आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि, स्माइलिंग बुद्धा, व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि, इज़रायल और हमास, एआई समर्थित युद्ध, पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-V, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूहअग्नि-P मिसाइल    

मेन्स के लिये:

वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों का विकास, भारत के समक्ष वर्तमान परमाणु-संबंधी मुद्दे

परमाणु आयुधों के निर्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस (26 सितंबर) वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों, विशेष रूप से परमाणु आयुधों के निषेध पर संधि (TPNW) पर नवीकृत रूप से ध्यान केंद्रित करता है। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र, यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन जैसे विभाजनकारी मुद्दों से जूझ रहा है, इसलिये TPNW का एजेंडा महत्त्व प्राप्त करता है। वर्ष 2021 में कार्यान्वित यह संधि परमाणु आयुधों के विकास, परीक्षण, उत्पादन और उपयोग पर व्यापक रूप से प्रतिबंध लगाकर परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से आगे निकल जाती है। जुलाई 2024 तक 70 पक्षकार देशों दलों और 27 हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ, TPNW परमाणु आयुधों को अवैध बनाने के लिये बढ़ते आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता है।

NPT ढाँचे के बाहर एक परमाणु शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को देखते हुए, TPNW पर भारत का रुख महत्त्वपूर्ण है। जबकि भारत ने ऐतिहासिक रूप से NPT को भेदभावपूर्ण मानते हुए इसका विरोध किया है, इसने सक्रिय रूप से संधि को अवमूल्यित नहीं किया है। जैसा कि वैश्विक समुदाय हाल के भू-राजनीतिक तनावों के मद्देनज़र परमाणु जोखिमों का पुनर्मूल्यांकन कर रहा है, भारत को परमाणु आयुधों को अवैध बनाने में TPNW की मानक क्षमता पर विचार करते हुए अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को अग्रेषित करना चाहिये। 

समय के साथ वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयास कैसे विकसित हुए? 

  • प्रारंभिक परमाणु युग और प्रथम निरस्त्रीकरण प्रयास (वर्ष 1945-1960): आधुनिक परमाणु युग की शुरुआत ट्रिनिटी परीक्षण और वर्ष 1945 में  हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी के साथ हुई।
    • वर्ष 1949 तक सोवियत संघ ने अपने पहले परमाणु उपकरण का परीक्षण कर लिया था, जिससे आयुध स्पर्द्धा शुरू हो गई। 
    • वर्ष 1946 की बारूक योजना में परमाणु ऊर्जा पर अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण का प्रस्ताव रखा गया था, परंतु शीत युद्ध के तनाव के कारण यह विफल हो गई। 
    • वर्ष 1953 में, ड्वाइट आइज़नहावर के "एटम्स फॉर पीस" भाषण ने शांतिपूर्ण परमाणु अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया। 
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की स्थापना वर्ष 1957 में शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग को प्रोत्साहित करने और सैन्य अनुप्रयोगों को रोकने के लिये की गई थी। 
    • स्वतंत्रता के बाद भारत ने शुरू में पूर्ण निरस्त्रीकरण की वकालत की, परंतु 1950 के दशक में होमी भाभा के नेतृत्व में उसने अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू किया।
  • परमाणु अप्रसार संधि और आंशिक परीक्षण प्रतिबंध (वर्ष 1960-1970): वर्ष 1963 की आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि ने भूमि के ऊपर परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगा दिया। 
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर वर्ष 1968 में किये गए तथा इसे वर्ष 1970 में कार्यान्वित किया गया। 
    • NPT ने पांच परमाणु आयुध संपन्न राष्ट्रों (अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन) को मान्यता दी तथा इसका उद्देश्य आगे परमाणु प्रसार को रोकना था। 
      • संधि ने प्रत्येक पांच वर्ष में समीक्षा प्रक्रिया स्थापित की। 
      • भारत ने NPT को भेदभावपूर्ण मानते हुए उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों की आड़ में अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।
  • SALT, START और क्षेत्रीय परमाणु-मुक्त क्षेत्र (वर्ष 1970-1990): अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सामरिक शस्त्र सीमा वार्ता (SALT) के परिणामस्वरूप बैलिस्टिक रोधी मिसाइल संधि (वर्ष 1972) और SALT  (वर्ष 1972) जैसी संधियाँ हुई। 
    • पहला परमाणु-आयुध-मुक्त क्षेत्र लैटिन अमेरिका में स्थापित किया गया (ट्लाटेलोल्को संधि)। 
    • मध्यम दूरी परमाणु बल संधि (1987 ) ने परमाणु हथियारों की एक पूरी श्रेणी को समाप्त कर दिया। 
    • भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण "स्माइलिंग बुद्धा" वर्ष 1974 में किया था
  • शीत युद्धोत्तर निरस्त्रीकरण गति (वर्ष 1990-2000): शीत युद्ध की समाप्ति के बाद निरस्त्रीकरण प्रयासों को गति मिली। 
    • सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (START I) पर वर्ष 1991 में हस्ताक्षर किये गए, जिसके तहत परमाणु आयुधों के परिनियोजन में कमी लाई गई। 
    • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर वर्ष 1996 में किये गए थे।
      • यद्यपि, प्रमुख राज्यों द्वारा अनुमोदन न किये जाने के कारण यह कार्यान्वित नहीं हो सका है। 
    • भारत और पाकिस्तान दोनों ने वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण किया और NPT ढाँचे के बाहर स्वयं को परमाणु शक्ति घोषित किया।
  • निरस्त्रीकरण की चुनौतियाँ और नई पहल (वर्ष 2000-2010): अमेरिका ने नए सुरक्षा खतरों का हवाला देते हुए  वर्ष 2002 में बैलिस्टिक रोधी मिसाइल संधि से प्रत्याहृत कर लिया।
    • विश्वभर में परमाणु सामग्री को सुरक्षित करने के लिये वर्ष 2004 में वैश्विक खतरा न्यूनीकरण पहल शुरू की गई थी। 
    • भारत ने वर्ष 2008 में अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिससे उसे परमाणु अप्रसार संधि से बाहर रहते हुए भी अपनी परमाणु स्थिति को वास्तविक मान्यता प्राप्त हुई थी।
  • मानवीय पहल और प्रतिबंध संधि (वर्ष 2010-2020): वर्ष 2010 में शुरू की गई मानवीय पहल ने परमाणु आयुधों के भयावह मानवीय परिणामों पर निरस्त्रीकरण प्रयासों को पुनः केंद्रित किया। 
    • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2017 में परमाणु आयुधों के निषेध पर संधि (TPNW) पर वार्ता हुई, जिसे वर्ष 2021 में कार्यान्वित किया गया। 
    • वर्ष 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना (ईरान परमाणु समझौता) एक महत्त्वपूर्ण अप्रसार उपलब्धि थी, यद्यपि वर्ष 2018 में अमेरिका के प्रत्याहरण से इसे चुनौती मिली। 
      • भारत ने "विश्वसनीय न्यूनतम निवारण" की अपनी नीति को कायम रखा तथा सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत जारी रखी।
  • नई चुनौतियाँ और अनिश्चित भविष्य (वर्ष 2020-वर्तमान): कोविड -19 महामारी ने निरस्त्रीकरण कूटनीति को बाधित कर दिया, जिसके कारण कई बैठकें स्थगित कर दी गईं या वर्चुअल रूप से आयोजित की गईं। 
    • अमेरिका और रूस ने वर्ष 2021 में न्यू स्टार्ट को पाँच वर्ष के लिये बढ़ा दिया, जिससे अंतिम शेष द्विपक्षीय परमाणु आयुध नियंत्रण संधि सुरक्षित रही। 
    • यूक्रेन युद्ध के कारण परमाणु मुद्दे पर बयानबाजी में वृद्धि हुई, जिससे वैश्विक चिंताएँ बढ़ गईं। 
      • इसके अतिरिक्त, इजरायल और हमास के बीच हाल ही में बढ़े तनाव ने व्यापक संघर्ष के खतरे को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जिससे मध्य पूर्व में परमाणु सुरक्षा पर प्रश्न उठ रहे हैं। 
    • अतिध्वनिक आयुध  और एआई समर्थित युद्ध जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ सामरिक स्थिरता के लिये नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं।
    • भारत अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण जारी रखे हुए है, साथ ही सिद्धांत रूप में निरस्त्रीकरण का समर्थन कर रहा है तथा सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये एक समयबद्ध रूपरेखा की वकालत कर रहा है।

भारत वर्तमान में किन परमाणु-संबंधी समस्याओं का सामना कर रहा है? 

  • निरस्त्रीकरण की वकालत के साथ परमाणु निर्मूलन का संतुलन: भारत के समक्ष वैश्विक निरस्त्रीकरण की वकालत करते हुए अपने परमाणु निर्मूलन के सातत्य की चुनौती है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2023 तक भारत के पास लगभग 160 परमाणु आयुध होंगे।
    • भारत अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण जारी रखे हुए है, जिसमें K-4 जैसी पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) का विकास भी शामिल है।
    • इसके साथ ही, भारत सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण का मुखर समर्थक रहा है तथा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समयबद्ध रूपरेखा की मांग करता रहा है। 
    • यह दोहरा रुख राजनय तनाव उत्पन्न करता है क्योंकि भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर है, जबकि वैश्विक परमाणु व्यवस्था में अधिक एकीकरण की मांग कर रहा है।
  • चीन-पाकिस्तान परमाणु धुरी का प्रबंधन: चीन और पाकिस्तान के बीच सामरिक साझेदारी भारत की सुरक्षा गणना के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। 
    • पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के लिये चीन का समर्थन, जिसमें मिसाइल प्रौद्योगिकी और परमाणु सामग्री का कथित हस्तांतरण भी शामिल है, लंबे समय से चिंता का विषय रहा है।
    • हाल के घटनाक्रमों, जैसे कि चीन द्वारा पाकिस्तान में नाभिकीय संयंत्रों का निर्माण (जैसे, कराची नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र इकाई 2 और 3), ने इन चिंताओं को बढ़ा दिया है। 
    • दो मोर्चों पर परमाणु खतरे की संभावना भारत की रक्षा योजना और परमाणु स्थिति को जटिल बनाती है। 
      • इसके परिणामस्वरूप भारत ने अग्नि-V जैसी लंबी दूरी की मिसाइलों का विकास किया है, जो चीन के पार लक्ष्यों तक पहुँचने में सक्षम हैं तथा समुद्र आधारित प्रतिरोधक क्षमताओं में निवेश किया है।
  • परमाणु सिद्धांत और नो फर्स्ट यूज़ नीति: भारत का परमाणु सिद्धांत, जो नो फर्स्ट यूज़ (NFU) की नीति पर केंद्रित है, उभरते क्षेत्रीय गतिशीलता के आलोक में जाँच और बहस का सामना कर रहा है। 
    • कुछ रणनीतिकार, विशेष रूप से पाकिस्तान के सामरिक परमाणु आयुधों के विकास और चीन के परमाणु विस्तार को देखते हुए NFU नीति में संशोधन की वकालत करते हैं। 
    • अगस्त 2019 में, भारत के रक्षा मंत्री के इस बयान से कि NFU का भविष्य परिस्थितियों पर निर्भर करेगा, संभावित सैद्धांतिक परिवर्तनों के विषय में अटकलें लगाई जाने लगीं। 
    • इस बात पर बहस जारी है कि क्या भारत की NFU नीति उसकी निवारक विश्वसनीयता को बढ़ाती है या कम करती है, विशेषकर असममित संघर्ष परिदृश्यों में। इस चर्चा का भारत की परमाणु स्थिति, बल संरचना और राजनय संबंधों पर प्रभाव पड़ता है।
  • परमाणु सुरक्षा एवं संरक्षा संबंधी चिंताएँ: अपने बढ़ते परमाणु बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। 
    • देश में वर्ष 2023 तक 23 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं तथा वर्ष 2031 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 22,480 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना है।
    • यद्यपि भारत का परमाणु सुरक्षा रिकॉर्ड अच्छा है, फिर भी वर्ष 2010 में मायापुरी में हुई विकिरण दुर्घटना जैसी घटनाएँ संभावित सुभेद्यता को प्रकट करती हैं। 
    • परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन प्रक्रिया जैसी वैश्विक पहलों में भारत की भागीदारी के बावजूद, भारत की परमाणु सामग्री की सुरक्षा के बारे में अंतर्राष्ट्रीय चिंताएँ बनी हुई हैं।
    • परमाणु खतरा पहल (NTI) परमाणु सुरक्षा सूचकांक में भारत को आयुध-प्रयोग योग्य परमाणु सामग्री वाले 22 देशों में 20वां स्थान दिया गया है, जो परमाणु सुरक्षा प्रथाओं में सुधार के क्षेत्रों का संकेत देता है।
  • असैन्य परमाणु सहयोग और NSG सदस्यता: वैश्विक परमाणु व्यवस्था में अधिक समेकन के लिये भारत की खोज को निरंतर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • वर्ष 2008 के ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते और उसके बाद परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) से अधित्यजन के बावजूद, NSG में भारत की पूर्ण सदस्यता अभी भी अप्राप्य बनी हुई है। 
    • पाकिस्तान की समानांतर NSG सदस्यता के प्रयास से संबंधित चीन का विरोध एक महत्त्वपूर्ण बाधा रहा है। 
    • यह स्थिति भारत की उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों तक अभिगम्यता तथा वैश्विक परमाणु वाणिज्य में पूर्णतः भाग लेने की उसकी क्षमता को प्रभावित करती है।
    • हाल की घटनाएँ, जैसे कि जापान जैसे देशों के साथ भारत के असैन्य परमाणु सहयोग समझौते (जो वर्ष 2017 में कार्यान्वित हुए) प्रगति को प्रदर्शित करते हैं, परंतु वैश्विक परमाणु परिदृश्य में भारत की विशिष्ट स्थिति की जटिलताओं को भी प्रकट करते हैं।
  • तकनीकी उन्नयन और सामरिक स्थिरता: उन्नत परमाणु और मिसाइल प्रौद्योगिकियों की दिशा में भारत की प्रगति अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है। 
    • दिसंबर 2021 में अग्नि-P मिसाइल का सफल परीक्षण, बेहतर सटीकता और त्वरित प्रतिक्रिया समय वाली एक कनस्तीकृत मिसाइल, भारत की निवारक क्षमताओं को संवर्द्धित करती है।
    • यद्यपि, इस तरह की प्रगति, मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल्स (MIRV) और बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) प्रणालियों के विकास के साथ, संभवतः क्षेत्र में आयुध स्पर्द्धा को उत्प्रेरित कर सकती है।
  • परमाणु ऊर्जा विस्तार और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: भारत की परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के विस्तार की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ हैं। 
    • वर्ष 2031 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 22,480 मेगावाट तक बढ़ाने के लक्ष्य के लिये पर्याप्त निवेश और सार्वजनिक विरोध पर काबू पाने की आवश्यकता है। 
    • कुडनकुलम और जैतापुर जैसे नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में चिंताओं को प्रकट करते हैं। 
    • स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने का प्रयास, जिसका उदाहरण 700 मेगावाट क्षमता वाले दाबयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) की अभिकल्पना है, का उद्देश्य विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करना है, परंतु इसमें तकनीकी और आर्थिक बाधाएँ भी हैं। 

परमाणु निवारण और निरस्त्रीकरण के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये भारत क्या उपाय कर सकता है? 

  • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण (CMD) का सुदृढ़ीकरण: भारत वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में "न्यूनतम"  क्या है, इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करके अपने विश्वसनीय न्यूनतम निवारण रुख को सुदृढ़ कर सकता है।
    • वर्ष 2020 में K-4 पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण, विश्वसनीय समुद्र-आधारित निवारक के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। 
    • अपने परमाणु आधुनिकीकरण प्रयासों में मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर बल देकर, भारत संयम और अंततः निरस्त्रीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का संकेत देते हुए निवारण क्षमता के सातत्य को अभिपुष्ट कर सकता है।
  • क्षेत्रीय सामरिक स्थिरता संवाद को प्रोत्साहन: भारत दक्षिण एशिया के परमाणु और गैर-परमाणु दोनों राष्ट्रों को सम्मिलित करते हुए क्षेत्रीय सामरिक स्थिरता संवाद शुरू कर सकता है और उसमें भाग ले सकता है।
    • ये संवाद जोखिम न्यूनीकरण उपायों, विश्वास निर्माण और संकट प्रबंधन तंत्र पर केंद्रित हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत, अमेरिका-रूस मॉडल के समान, पाकिस्तान के साथ परमाणु जोखिम न्यूनीकरण केंद्रों की नियमित बैठकों का प्रस्ताव कर सकता है।
    • मुक्त संचार प्रणालियों को संवर्द्धित करके भारत परमाणु तनाव को कम करने की दिशा में कार्य कर सकता है, साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता और अंततः निरस्त्रीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित कर सकता है।
  • वैश्विक निरस्त्रीकरण पहल में संलग्नता: अपनी निवारक क्षमता के सातत्य के साथ भारत वैश्विक निरस्त्रीकरण पहल में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
    • इसमें निरस्त्रीकरण सम्मेलन जैसे मंचों पर परमाणु आयुध मुक्त विश्व की दिशा में ठोस कदम प्रस्तावित करना शामिल हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत अपनी स्वयं की नीति के आधार पर परमाणु आयुधों के प्रथम प्रयोग न करने पर एक बहुपक्षीय संधि के विकास में अग्रणी हो सकता है। 
    • परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलनों में भारत की भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में इसका योगदान, रचनात्मक सहभागिता की इसकी क्षमता को प्रदर्शित करता है। 
    • ऐसी पहलों का नेतृत्व करके भारत अंतिम निरस्त्रीकरण के लिये प्रतिबद्ध एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सकता है।
  • सत्यापन प्रौद्योगिकियों में निवेश: भारत परमाणु निरस्त्रीकरण सत्यापन प्रौद्योगिकियों के विकास में निवेश तथा योगदान कर सकता है। 
    • यह वर्तमान निवारक क्षमताओं के सातत्य के साथ भविष्य में निरस्त्रीकरण के लिये आवश्यक तकनीकी परिस्थितियों का निर्माण करने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
    • अंतरिक्ष और उपग्रह प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता, जो 2023 में चंद्रयान-3 जैसे मिशनों द्वारा प्रदर्शित की गई है, का उपयोग सत्यापन उपग्रहों के विकास के लिये किया जा सकता है।
      • इस तरह के निवेश भारत को निरस्त्रीकरण प्रक्रियाओं के भविष्य को आकार देने में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं।
  • स्वदेशी नियंत्रण और निर्यात विनियमन का सुदृढ़ीकरण: भारत अपने स्वदेशी परमाणु नियंत्रण और निर्यात विनियमन को और अधिक सुदृढ़ कर सकता है, जिससे निवारण के सातत्य के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी के ज़िम्मेदार प्रबंधन का प्रदर्शन किया जा सके। 
    • इसमें परमाणु सुविधाओं पर भौतिक सुरक्षा का संवर्द्धन, परमाणु सामग्री लेखा प्रणालियों में सुधार तथा दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों पर निर्यात नियंत्रण को दृढ़ करना शामिल हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत द्वारा विशेष रसायन, जीव, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकी (SCOMET) सूची के कार्यान्वयन को और अधिक परिष्कृत तथा विस्तारित किया जा सकता है, जो संवेदनशील वस्तुओं के निर्यात को नियंत्रित करती है। 
    • ये उपाय भारत की छवि को एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में सुदृढ़ करते हैं जो परमाणु अप्रसार और अंततः निरस्त्रीकरण के लिये प्रतिबद्ध है।
  • सतत् विकास के लिये नाभिकीय ऊर्जा को प्रोत्साहन: भारत परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग पर बल दे सकता है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास लक्ष्यों को संबोधित करने में, साथ ही इसकी निवारक क्षमता को भी बनाए रख सकता है। 
    • इसमें उन्नत, सुरक्षित रिएक्टर अभिकल्पनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना सम्मिलित हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत द्वारा उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR) का विकास, जो थोरियम ईंधन चक्र का उपयोग करता है, संवहनीय नाभिकीय ऊर्जा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। 
    • परमाणु प्रौद्योगिकी के नागरिक लाभों पर प्रकाश डालकर, भारत दीर्घकालिक रूप से वैश्विक निरस्त्रीकरण की वकालत करते हुए अपने परमाणु कार्यक्रम के लिये जन समर्थन के सातत्य को अभिपुष्ट कर सकता है।
  • ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 राजनय में संलिप्तता: भारत परमाणु जोखिम न्यूनीकरण और निरस्त्रीकरण पर केंद्रित ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 राजनय पहलों में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है और उनका समर्थन कर सकता है। 
    • इन अनौपचारिक संवादों से नवीन विचारों का अन्वेषण किया जा सकता है तथा ऐसे संबंध निर्मित किये जा सकते हैं जो आधिकारिक संवाद को सुविधाजनक बना सकें। 
    • उदाहरण के लिये, भारत स्टिमसन सेंटर द्वारा आयोजित  "स्थिरता-अस्थिरता विरोधाभास" कार्यशालाओं के समान, परमाणु जोखिम न्यूनीकरण पर क्षेत्रीय कार्यशालाओं को प्रायोजित कर सकता है।
    • इस तरह की पहल से भारत को अपनी निवारक स्थिति के सातत्य के साथ निरस्त्रीकरण चर्चा में योगदान करने का अवसर प्राप्त होता है।

निष्कर्ष: 

भारत को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को वैश्विक निरस्त्रीकरण लक्ष्यों के साथ संतुलित करने के जटिल कार्य का सामना करना पड़ रहा है। परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये सक्रिय रूप से वकालत करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय राजनय में शामिल होते हुए और शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकियों में निवेश करते हुए अपनी निवारक क्षमताओं का आधुनिकीकरण करके, भारत अंततः निरस्त्रीकरण के लिये प्रतिबद्ध एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

भू-राजनीतिक तनावों और उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के विशेष संदर्भ में वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कीजिये। भारत को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को वैश्विक निरस्त्रीकरण लक्ष्यों के साथ कैसे संतुलित करना चाहिये?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिऐक्टर "आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते ?

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य वोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)