भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था
यह एडिटोरियल 18/10/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Sustaining the marine economy with blue bonds” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि चूँकि भारत के पास एक लंबी तटरेखा और एक विशाल समुद्री अर्थव्यवस्था है, वह ‘ब्लू बॉण्ड’ से किस प्रकार लाभान्वित हो सकता है।
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, ब्लू बॉण्ड, समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, सागरमाला परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS), मालाबार अभ्यास, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ), प्रवाल विरंजन, महासागरीय अम्लीकरण मेन्स के लिये:समुद्री अर्थव्यवस्था: महत्त्व, संभावनाएँ, चुनौतियाँ एवं आगे की राह; ब्लू बॉण्ड तथा यह भारत की कैसे मदद कर सकते हैं। |
हिंद महासागर विशाल एवं विविध समुद्री जीवन का घर है, लेकिन प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्य ग्रहण और जलवायु परिवर्तन के कारण इस पर दबाव भी बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल (United Nations Environment Programme Finance Initiative- UNEP FI) द्वारा जारी नए दिशा-निर्देश हिंद महासागर की रक्षा एवं पुनर्स्थापना के लिये आवश्यक वित्तपोषण का अवसर पाने में मदद कर सकता है। ‘ब्लू बॉण्ड’ (Blue bonds) में हिंद महासागर के सतत् विकास में उल्लेखनीय योगदान देने की क्षमता है।
सेबी (SEBI) भारत में ब्लू बॉण्ड के लिये दिशा-निर्देश विकसित कर रहा है। नई नीतियों के क्रियान्वयन के बाद ब्लू बॉण्ड ऐसी कई परियोजनाओं को वित्त पोषित कर सकते हैं जो भारतीय समुद्री पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाएँगे।
भारत में समुद्री अर्थव्यवस्था (Marine Economy) का महत्त्व
- खाद्य सुरक्षा और आजीविका: यह उन लाखों लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा, निर्धनता उन्मूलन और रोज़गार सृजन में योगदान दे सकती है जो अपनी आजीविका के लिये समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय संवहनीयता: यह पवन, तरंग, ज्वार और समुद्री तापीय ऊर्जा (ocean thermal energy) जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की क्षमता का दोहन कर ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकती है।
- भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से 5 गीगावॉट अपतटीय पवन परियोजनाओं से प्राप्त होने की उम्मीद थी।
- व्यापार और संपर्क: यह समुद्री संपर्क और अवसंरचना में सुधार कर अन्य देशों के साथ (विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में) भारत के व्यापार एवं निवेश के अवसरों को बढ़ा सकती है।
- भारत ने अपने समुद्री व्यापार और संपर्क/कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये सागरमाला परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor) और चाबहार बंदरगाह के विकास जैसी कई पहलें शुरू की है।
- पारिस्थितिक प्रत्यास्थता और जलवायु अनुकूलन: यह भारत को अपने समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को संरक्षित एवं पुनर्स्थापित करने के माध्यम से पारिस्थितिक प्रत्यास्थता का निर्माण करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने में मदद कर सकती है।
- भारत अपने समुद्री पर्यावरण की संरक्षा के लिये जैविक विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity- CBD), सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) और पेरिस समझौता (Paris Agreement) जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों एवं समझौतों का हस्ताक्षरकर्ता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हित: यह भारत की समुद्री सीमाओं और परिसंपत्तियों को बाहरी खतरों एवं चुनौतियों से सुरक्षित कर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों को भी सुदृढ़ कर सकती है।
- भारत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में प्रबल नौसैनिक उपस्थिति रखता है और अपने समुद्री सहयोग एवं सुरक्षा को संवृद्ध करने के लिये हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) एवं मालाबार अभ्यास जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों और अभ्यासों में भागीदारी करता है।
- खनिज संसाधन: पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Polymetallic nodules)—जो छोटे गोलाकार नोड्यूल्स होते हैं जिनमें निकेल, कोबाल्ट, लोहा एवं मैंगनीज मौजूद होता है और जो समुद्र तल पर लाखों वर्षों में विकसित हुए हैं, प्रायः जल की गहराई में 4-5 किलोमीटर की दूरी पर पाए जाते हैं।
- वर्ष 1987 में भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स के अन्वेषण का विशेष अधिकार प्रदान किया गया था, जिसे वर्ष 2017 में 5 वर्ष की अवधि के लिये और बढ़ा दिया गया था।
- तब से भारत ने चार मिलियन वर्ग मील क्षेत्र का अन्वेषण किया है और दो खदान स्थल स्थापित किये हैं।
- वर्ष 1987 में भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स के अन्वेषण का विशेष अधिकार प्रदान किया गया था, जिसे वर्ष 2017 में 5 वर्ष की अवधि के लिये और बढ़ा दिया गया था।
भारत में समुद्री अर्थव्यवस्था के लिये संभावनाएँ
- भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था अपने कानूनी अधिकार क्षेत्र में समुद्री संसाधनों, समुद्री अवसंरचना और तटीय क्षेत्रों को शामिल करती है।
- भारत में नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों के साथ 7,500 किमी लंबी समुद्री तटरेखा मौजूद है।
- भारत का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) 2 मिलियन वर्ग किमी में विस्तृत है, जहाँ तेल और गैस जैसे मूल्यवान संसाधन मौजूद हैं।
- तटीय अर्थव्यवस्था 4 मिलियन मछुआरों और तटीय समुदायों का संपोषण करती है। भारत 250,000 मत्स्यग्रहण नौकाओं के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन गया है।
- भारत के नौ राज्य तट रेखा तक पहुँच रखते हैं और देश में 200 बंदरगाह हैं। इन बंदरगाहों में 12 प्रमुख बंदरगाह हैं जिन्होंने वित्त वर्ष 2021 में 541.76 मिलियन टन कार्गो का प्रबंधन किया और इनमें गोवा का मोर्मुगाओ बंदरगाह अग्रणी रहा।
- ‘ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन’ के अनुसार, हिंद महासागर दुनिया के महासागरीय प्रभागों में तीसरा सबसे बड़ा प्रभाग है। यह 70 मिलियन वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में विस्तृत है और अपने प्रचुर तेल एवं खनिज संसाधनों के लिये जाना जाता है।
भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ
- अवसंरचना की कमी: भारत को संपर्क/कनेक्टिविटी एवं दक्षता में सुधार के लिये अपने तटीय क्षेत्रों में बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सड़कों, रेलवे और अन्य अवसंरचना में वृहत निवेश करने की आवश्यकता है।
- प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बंदरगाह क्षमता महज 1.5 बिलियन टन प्रति वर्ष है, जबकि इसका बंदरगाह यातायात वर्ष 2025 तक 2.5 बिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- समुद्री प्रदूषण: भारत का तटीय जल औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, कृषि अपवाह, प्लास्टिक कचरा और तेल रिसाव जैसे विभिन्न स्रोतों से प्रदूषित है। समुद्री प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के स्वास्थ्य के साथ-साथ मछली और समुद्री खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, 60 प्रमुख भारतीय शहरों से उत्पन्न 15,000 मीट्रिक टन से अधिक अपशिष्ट (जिनमें एक बड़ा भाग प्लास्टिक का होता है) प्रति दिन दक्षिण एशियाई समुद्र में निपटान किया जाता है।
- संसाधनों का अति-दोहन: भारत के समुद्री संसाधन अत्यधिक मत्स्यग्रहण (overfishing), अवैध मत्स्यग्रहण और अनियमित जलीय कृषि (aquaculture) के दबाव में हैं। अत्यधिक मत्स्यग्रहण से मत्स्य भंडार में कमी आ सकती है, मछुआरों की आय एवं आजीविका में कमी आ सकती है और लाखों लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा को खतरा पहुँच सकता है। अवैध मत्स्यग्रहण भारत के समुद्री क्षेत्र की संप्रभुता एवं सुरक्षा को भी कमज़ोर कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है, क्योंकि इससे समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय कटाव, तूफान, बाढ़, लवणीकरण, प्रवाल विरंजन (coral bleaching),महासागरीय अम्लीकरण(ocean acidification) और समुद्री धाराओं एवं तापमान में परिवर्तन जैसे परिदृश्य उत्पन्न हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन समुद्री प्रजातियों के वितरण एवं प्रचुरता के साथ-साथ उनके प्रवासन पैटर्न और प्रजनन चक्र को भी प्रभावित कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 20वीं सदी के दौरान वैश्विक औसत समुद्र स्तर में लगभग 15 सेमी की वृद्धि हुई है और वर्ष 2100 तक इसमें 26 से 82 सेमी तक वृद्धि हो सकती है।
भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- एक राष्ट्रीय लेखा ढाँचा विकसित करना: यह सकल घरेलू उत्पाद, रोज़गार, व्यापार और अन्य संकेतकों में समुद्री अर्थव्यवस्था के योगदान की माप करेगा। इससे समुद्री अर्थव्यवस्था के महत्त्व एवं प्रभाव का आकलन करने और उचित नीतियों एवं हस्तक्षेपों को अभिकल्पित करने में मदद मिलेगी।
- तटीय और समुद्री स्थानिक नियोजन: एक ऐसे तटीय और समुद्री स्थानिक नियोजन (Coastal and Marine Spatial Planning) का क्रियान्वयन करना जो समन्वित तरीके से विभिन्न गतिविधियों और क्षेत्रों के लिये स्थान एवं संसाधन आवंटित करे। इससे संघर्षों से बचने, संसाधन उपयोग को इष्टतम करने और पर्यावरणीय संवहनीयता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- महासागर शासन के लिये कानूनी और संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ करना: यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एवं विनियमनों का अनुपालन सुनिश्चित करेगा। इससे भारत की संप्रभुता एवं सुरक्षा की रक्षा करने, अवैध गतिविधियों को रोकने और विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।
- समुद्री अनुसंधान और नवाचार के लिये क्षमता और प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाना: यह साक्ष्य-आधारित निर्णयन में सहायता करेगा और विकास के नए अवसरों को बढ़ावा देगा। इससे अपतटीय ऊर्जा, गहन समुद्र खनन, जैव प्रौद्योगिकी और जलीय कृषि जैसे उभरते क्षेत्रों की क्षमता का पता लगाने में मदद मिलेगी।
- सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना: हिंद महासागर क्षेत्र में समान हितों एवं चुनौतियों को साझा करने वाले अन्य देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना। इससे आपसी विश्वास को बढ़ाने, सर्वोत्तम अभ्यासों को साझा करने, तालमेल का लाभ उठाने और साझा खतरों से निपटने में मदद मिलेगी।
- ब्लू बॉण्ड: ब्लू बॉण्ड भारत में स्वच्छ ऊर्जा पहल, अपतटीय पवन फार्म, समुद्री संरक्षण प्रयास और प्रदूषण की रोकथाम एवं सफाई जैसे संवहनीय महासागरीय परियोजनाओं के लिये धन प्रदान कर सकते हैं। ये परियोजनाएँ रोज़गार सृजित कर सकती हैं, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकती हैं।
ब्लू बॉण्ड क्या हैं?
- ब्लू बॉण्ड (Blue Bonds) एक प्रकार के सतत् बॉण्ड (sustainable bonds) हैं जो विशेष रूप से उन परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं जो महासागर और उसके संसाधनों की रक्षा राम पुनर्स्थापन करते हैं।
- ब्लू बॉण्ड ग्रीन बॉण्ड (green bonds) और सोशल बॉण्ड (social bonds) जैसे अन्य सतत् बॉण्ड जैसे ही हैं।
- हालाँकि, वे विशेष रूप से महासागर संरक्षण और सतत् विकास पर केंद्रित हैं।
- इन्हें सरकारों, विकास बैंकों या अन्य संगठनों द्वारा जारी किया जा सकता है और व्यक्तिगत निवेशकों, संस्थागत निवेशकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा इनकी खरीद की जा सकती है।
ब्लू बॉण्ड भारत के लिये किस प्रकार सहायक सिद्ध हो सकते हैं?
- सतत् परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण: ब्लू बॉण्ड भारत में सतत् समुद्री परियोजनाओं के लिये आवश्यक वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं। इसमें स्वच्छ ऊर्जा पहल, अपतटीय पवन फार्म, तरंग ऊर्जा कनवर्टर (wave energy converters), समुद्री संरक्षित क्षेत्र और संवहनीय मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि शामिल हैं।
- ये परियोजनाएँ रोज़गार पैदा कर सकती हैं, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकती हैं।
- समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा के लिये समर्थन: भारत सक्रिय रूप से नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश कर रहा है और इसकी तटरेखा अपतटीय पवन एवं तरंग ऊर्जा के लिये महत्त्वपूर्ण क्षमता प्रदान करती है।
- ब्लू बॉण्ड इन परियोजनाओं को वित्त पोषित कर सकते हैं, जिससे भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और जलवायु परिवर्तन का शमन करने में मदद मिलेगी।
- समुद्री संरक्षण: ब्लू बॉण्ड को समुद्री संरक्षण प्रयासों और प्रवाल भित्तियों, समुद्री वन्यजीवों एवं समग्र पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य की रक्षा के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
- ये परियोजनाएँ जैव विविधता को बनाए रखने और पर्यटन को समर्थन देने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
- प्रदूषण की रोकथाम और सफाई: ब्लू बॉण्ड समुद्री प्रदूषण से निपटने और समुद्र तट की सफाई से संबंधित पहल को वित्तपोषित कर सकते हैं।
- यह भारत के महासागरों और समुद्र तटों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये आवश्यक है, जो पर्यटन और मात्स्यिकी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- जागरूकता और शिक्षा: ब्लू बॉण्ड समुद्र संरक्षण और संवहनीय अभ्यासों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं। इससे आबादी के बीच अधिक उत्तरदायी व्यवहार और पर्यावरण प्रबंधन को बढ़ावा मिल सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत में समुद्री अर्थव्यवस्था के महत्त्व और इसके समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। ‘ब्लू बॉण्ड’ की शुरूआत भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में किस प्रकार योगदान कर सकती है?
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