भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार
यह एडिटोरियल 18/5/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The hyperpoliticisation of Indian higher education” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय उच्च शिक्षा के राजनीतिकरण के मुद्दे पर चर्चा की गई है और महत्त्वपूर्ण सुधारों का आह्वान किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली, एशिया के लिये QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2024, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, विशिष्ट संस्थान योजना, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क, SWAYAM, राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क, अंतरिम बजट 2024-25, भारत कौशल रिपोर्ट 2024। मेन्स के लिये:उच्च शिक्षा से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल, वर्तमान में भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ। |
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली (higher education system) विश्व की सबसे बड़ी प्रणालियों में से एक है, जो इसकी ऐतिहासिक विरासत और भविष्य के लिये इसकी आकांक्षाओं, दोनों को परिलक्षित करती है। देश में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) एवं भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs) से लेकर विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के विशाल नेटवर्क तक संस्थानों की एक प्रभावशाली शृंखला मौजूद है। ‘QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग फॉर एशिया 2024’ के अनुसार भारत में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त उच्च शिक्षा प्रणाली मौजूद है।
हालाँकि इस विस्तृत संरचना के अंदर ऐसी चुनौतियाँ और अवसर छिपे हैं जो भारत में उच्च शिक्षा के वर्तमान परिदृश्य को परिभाषित करते हैं। अभिगम्यता में उल्लेखनीय विस्तार के बावजूद गुणवत्ता, प्रासंगिकता और 21वीं सदी की माँगों के लिये युवाओं को तैयार करने की क्षमता के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं। हाल की रिपोर्टों ने भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में बढ़ते राजनीतिकरण की चिंताजनक प्रवृत्ति को भी उजागर किया है, जो अकादमिक स्वतंत्रता, बौद्धिक विमर्श और शिक्षा की समग्र गुणवत्ता के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली की वर्तमान स्थिति
जनवरी 2024 में जारी अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) 2021-22 के अनुसार:-
- छात्र नामांकन: उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्र नामांकन की संख्या वर्ष 2021-22 तक 4.33 करोड़ थी, जो वर्ष 2020-21 में 4.14 करोड़ और वर्ष 2014-15 में 3.42 करोड़ से उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाती है।
- उच्च शिक्षा में नामांकित महिलाओं की संख्या वर्ष 2021-22 तक 2.07 करोड़ थी, जो वर्ष 2014-15 में 1.5 करोड़ से 32% अधिक है।
- स्नातकोत्तर स्तर पर नामांकित महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक (55.4%) देखा गया।
- सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio- GER) और लिंग समता सूचकांक (Gender Parity Index- GPI): भारत में 18-23 आयु वर्ग के लिये अनुमानित GER 28.4% है।
- GPI—जो महिला GER और पुरुष GER के अनुपात को दर्शाता है, अखिल भारतीय स्तर पर 1.01 है, जो लैंगिक समता की स्थिति को प्रकट करता है।
- विषय-वार नामांकन: स्नातक स्तर पर, कला स्नातक (BA) कार्यक्रम में सबसे अधिक नामांकन (34.2%) देखा गया, जिसके बाद विज्ञान (14.8%), वाणिज्य (13.3%) और इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी (11.8%) का स्थान है।
- स्नातकोत्तर स्तर पर सामाजिक विज्ञान विषय में सबसे अधिक नामांकन (10.8 लाख छात्र) देखा गया।
- शोध या पीएचडी स्तर पर इंजीनियरिंग विषय में सबसे अधिक नामांकन देखा गया, जिसके बाद विज्ञान और सामाजिक विज्ञान का स्थान है।
- सरकारी संस्थानों की प्रधानता: सभी छात्रों में से 73.7% छात्र सरकारी विश्वविद्यालयों में नामांकित थे, जो सभी विश्वविद्यालयों के केवल 58.6% हैं।
- सरकारी स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों में से राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में नामांकन का सबसे बड़ा भाग पाया गया (लगभग 31%)।
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020: NEP 2020 का उद्देश्य उच्च शिक्षा सहित संपूर्ण शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाना है, जहाँ बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- यह वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 50% तक बढ़ाने का प्रस्ताव करता है।
- इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस (Institutions of Eminence- IoE) योजना: शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2018 में IoE योजना शुरू की थी जिसके अनुसार ऐसे 20 संस्थानों का चयन किया जाना था जो पूर्ण स्वायत्तता का उपभोग कर सकते थे।
- नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (National Credit Framework): इसे शिक्षा प्रणाली में प्रशिक्षण और कौशल विकास को एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों तक विस्तृत होगा।
- छात्रों द्वारा अर्जित क्रेडिट को एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (Academic Bank of Credits) में डिजिटल रूप से संग्रहित किया जाएगा, जो इससे लिंक्ड ‘डिजिलॉकर एकाउंट’ के माध्यम से अभिगम्य होंगे।
- संशोधित प्रत्यायन एवं रैंकिंग प्रणाली: विभिन्न श्रेणियों में उच्च शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग करने के लिये वर्ष 2015 में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework- NIRF) की शुरुआत की गई।
- संस्थानों में गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (National Assessment and Accreditation Council- NAAC) का पुनर्गठन किया गया है।
- डिजिटल पहलें: स्वयं (SWAYAM- Study Webs of Active-Learning for Young Aspiring Minds) एक ऐसा मंच है जो स्कूली स्तर से स्नातकोत्तर स्तर तक के ऑनलाइन पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है।
- भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी शैक्षिक संसाधनों के विशाल संग्रह तक पहुँच प्रदान करती है।
- ‘स्टडी इन इंडिया’ कार्यक्रम: वर्ष 2018 में शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रवृत्ति प्रदान कर और प्रवेश प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाकर अधिकाधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को भारत में अध्ययन करने के लिये आकर्षित करना है।
- भारत में विदेशी संस्थान: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने वर्ष 2023 में ऐसे विनियमन जारी किये हैं, जो विश्व के शीर्ष 500 में शामिल विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये भारत में शाखा परिसर स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- INSPIRE के तहत SHE कार्यक्रम: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा इंस्पायर (Innovation in Science Pursuit for Inspired Research- INSPIRE) योजना के एक भाग के रूप में उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति (Scholarship for Higher Education- SHE) कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, जिसका उद्देश्य योग्य उम्मीदवारों को छात्रवृत्ति प्रदान कर स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर मौलिक एवं प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने और शोध कॅरियर बनाने के लिये छात्रों को आकर्षित करना है।
भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:
- असमान पहुँच और निम्न GER: उच्च शिक्षा की अभिगम्यता विषम बनी हुई है, जहाँ सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, लिंग और भौगोलिक स्थिति के आधार पर उल्लेखनीय असमानताएँ पाई जाती हैं।
- इसके अलावा, भारत के GER में उल्लेखनीय सुधार तो हुआ है (वर्तमान में 28.4%), लेकिन यह अभी भी वैश्विक औसत 36.7% से नीचे है।
- राजनीतिकरण और स्वायत्तता का अभाव: उच्च शिक्षा संस्थानों के बढ़ते राजनीतिकरण को लेकर चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं, जहाँ नियुक्तियों और पाठ्यक्रम निर्णयों में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगाए गए हैं।
- कई संस्थानों में संकाय भर्ती, पाठ्यक्रम अभिकल्पना और संसाधन आवंटन जैसे क्षेत्रों में स्वायत्तता का अभाव है, जिससे उनकी नवाचार करने और बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलन करने की क्षमता बाधित होती है।
- राज्यपालों को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने और उनके द्वारा कुछ कुलपतियों की नियुक्ति के मामले में हाल में विवाद उत्पन्न हुए हैं।
- सीमित वित्तपोषण: भारत में शिक्षा के लिये अंतरिम बजट 2024-25 में 7% की कटौती की गई है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के लिये आवंटन में 61% की कटौती की गई है।
- इसके अलावा, इस तथ्य के बावजूद कि भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षेत्र विकास कर रहा है—जैसा कि अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (Gross Expenditure on Research and Development- GERD) से पता चलता है जो वर्ष 2010-11 में 6,01,968 मिलियन रुपए से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 12,73,810 मिलियन रुपए हो गया है—सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश अभी भी पर्याप्त कम है (0.64% है)।
- यह चीन (2.4%), जर्मनी (3.1%), दक्षिण कोरिया (4.8%) और संयुक्त राज्य अमेरिका (3.5%) जैसे देशों से बहुत पीछे है।
- संकाय की कमी और प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन): भारत उच्च शिक्षा संस्थानों में योग्य संकाय सदस्यों की भारी कमी का सामना कर रहा है।
- वर्ष 2023 तक की स्थिति के अनुसार, भारत के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 30% से अधिक शिक्षण पद रिक्त बने हुए थे।
- बेहतर अवसरों और पारिश्रमिक के लिये प्रतिभाशाली शिक्षाविदों का अन्य देशों या निजी क्षेत्र की ओर पलायन एक गंभीर चुनौती है।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग का अभाव: भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों के बीच प्रभावी सहयोग का अभाव पाया जाता है, जिसके कारण स्नातकों में कौशल अंतराल पैदा हो रहा है।
- भारत कौशल रिपोर्ट 2024 के अनुसार ML इंजिनियर, डेटा साइंटिस्ट, DevOps इंजीनियर और डेटा आर्किटेक्ट जैसी प्रमुख भूमिकाओं में 60-73% मांग-आपूर्ति अंतराल मौजूद है।
- उच्च शिक्षा का असमान क्षेत्रीय विकास: भारत में विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में उच्च शिक्षा संस्थानों का असमान विकास हुआ है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में प्रतिष्ठित संस्थानों की संख्या अधिक है, जबकि पूर्वोत्तर और मध्य क्षेत्रों के कई राज्य गुणवत्ता एवं अभिगम्यता के मामले में पिछड़े हुए हैं।
भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिये आवश्यक उपाय:
- विश्वविद्यालयों की भूमिका को पुनर्परिभाषित करना: दूसरे वर्ष से ही परियोजना आधारित शिक्षा, इंटर्नशिप और उद्योग सहयोग के माध्यम से रटन लर्निंग के बजाय व्यावहारिक कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- विश्वविद्यालयों को सामाजिक विकास परियोजनाओं पर स्थानीय समुदायों के साथ काम करने के लिये प्रोत्साहित करना, छात्रों के बीच सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देना।
- उच्च शिक्षण संस्थानों को मात्र डिग्री जारी करने वाले संस्थानों से कौशल सृजनकर्ता के रूप में रूपांतरित करना।
- मुक्त शिक्षा संसाधन (OER) पहल: भारत के राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी को उन्नत करना और मुक्त शैक्षिक संसाधनों के विकास एवं अंगीकरण को बढ़ावा देना। इसे MIT के OpenCourseWare पहल के समान क्रियान्वित किया जा सकता है, जो पाठ्यक्रम सामग्री और व्याख्यानों तक निःशुल्क पहुँच प्रदान करता है।
- इस दृष्टिकोण से गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच बढ़ सकती है, लागत कम हो सकती है और ज्ञान साझाकरण एवं सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकता है।
- उद्यमिता और नवाचार केंद्र: स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के स्टार्टएक्स (StartX) एवं उद्यमिता कार्यक्रमों जैसे सफल उदाहरणों के आधार पर भारतीय विश्वविद्यालयों में समर्पित उद्यमिता एवं नवाचार केंद्रों की स्थापना करना।
- ये केंद्र छात्रों और शिक्षकों को उनके नवोन्मेषी विचारों को सफल उद्यमों में बदलने के लिये मार्गदर्शन, वित्तपोषण के अवसर तथा सहायक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान कर सकते हैं।
- HCL TechBee कक्षा 12 के उन छात्रों की सहायता करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है जो सूचना प्रौद्योगिकी (IT) में कॅरियर बनाने में रुचि रखते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा साझेदारी (Transnational Education Partnerships): अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा साझेदारी को बढ़ावा देना, जहाँ भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान संयुक्त डिग्री, ट्विनिंग कार्यक्रमों या शाखा परिसरों की पेशकश करने के लिये प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सहकार्यता स्थापित कर सकते हैं।
- इस कदम से वैश्विक संपर्क में वृद्धि हो सकती है, ज्ञान हस्तांतरण सुगम बन सकता है और भारतीय उच्च शिक्षा की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हो सकता है।
- IIT मद्रास द्वारा हाल ही में अफ्रीका में IIT-M जंजीबार परिसर की स्थापना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- दोहरे अध्ययन कार्यक्रम: जर्मनी के प्रशिक्षुता मॉडल के समान दोहरे अध्ययन कार्यक्रमों (Dual Study Programs) का चरणबद्ध कार्यान्वयन करना, जहाँ छात्र विश्वविद्यालयों में प्राप्त सैद्धांतिक शिक्षा को कंपनियों में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ संयुक्त करते हैं।
- यह दृष्टिकोण उद्योग-प्रासंगिक कौशल विकास सुनिश्चित करता है और रोजगार-क्षमता को बढ़ाता है, साथ ही कंपनियों के लिये कुशल कार्यबल भी उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- योग्यता-आधारित प्रमाणन और ब्लॉकचेन प्रमाणपत्र: योग्यता-आधारित प्रमाणन प्रणाली का कार्यान्वयन करना, जो विभिन्न शिक्षण मार्गों के माध्यम से अर्जित कौशल एवं दक्षताओं को चिह्नित करता है और मान्यता प्रदान करता है।
- हेरफेर से सुरक्षित और सत्यापन योग्य डिजिटल प्रमाणपत्र के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना ताकि प्रमाणन या क्रेडेंशियल प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं भरोसा सुनिश्चित हो सके।
- यह दृष्टिकोण आजीवन लर्निंग, कौशल-आधारित शिक्षा और विविध शिक्षण अनुभवों की मान्यता को बढ़ावा दे सकता है।
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