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NIRF रैंकिंग में खामियाँ

  • 21 Jun 2023
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बिब्लियोमेट्रिक्स, NIRF रैंकिंग मानदंड

मेन्स के लिये:

NIRF रैंकिंग- कार्यप्रणाली, खामियाँ, नतीज़े और आगे की राह

चर्चा में क्यों?  

शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institution Ranking Framework- NIRF)  ने हाल ही में विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय रैंकिंग की घोषणा की, जिसे विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा त्रुटिपूर्ण बताया गया है।

NIRF रैंकिंग की प्रक्रिया और इससे संबद्ध समस्या: 

  • NIRF विभिन्न श्रेणियों में रैंकिंग जारी करता है, जैसे- 'समग्र' (Overall), 'अनुसंधान संस्थान' (Research Institutions), 'विश्वविद्यालय' और 'कॉलेज' (Universities and Colleges), तथा इंजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मेसी, कानून आदि जैसे विशिष्ट विषय।
  • NIRF द्वारा संस्थानों की रैंकिंग उनके कुल अंकों के आधार पर की जाती है, इस स्कोर/अंक को निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित पाँच संकेतकों का उपयोग किया जाता है:
    • शिक्षण, शिक्षा और संसाधन (Teaching, Learning and Resources- TLR)- भारांक 30 फीसदी।
    • अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices- RP)- भारांक 30 फीसदी।
    • स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes- GO)- भारांक 20 फीसदी।
    • पहुँच और समावेशिता (Outreach and Inclusivity- OI)- भारांक 10 फीसदी।
    • समकक्ष अनुभूति (Peer Perception)- भारांक 10 फीसदी। 
  • NIRF रैंकिंग से जुड़े मुद्दे: 
    • इस मूल्यांकन में अनुसंधान और पेशेवर/व्यावसायिक प्रथाओं को प्राथमिकता दी जाती है, यह अन्य प्रकार के बौद्धिक योगदानों की अनदेखी करता है जिसमें पुस्तकें, पुस्तक अध्याय, मोनोग्राफ, गैर-पारंपरिक प्रकाशन जैसे- लोकप्रिय लेख, कार्यशाला रिपोर्ट आदि एवं अन्य प्रकार के ग्रे साहित्य शामिल हैं।
      • उन्होंने तर्क दिया है कि बिब्लियोमेट्रिक्स संकेतक (Bibliometric Indicators) वैज्ञानिक प्रदर्शन की जटिलता को पूरी तरह से पकड़ नहीं पाते हैं तथा एक अधिक व्यापक मूल्यांकन पद्धति की आवश्यकता है।
    • विषय विशेषज्ञों द्वारा किये गए गुणात्मक आकलन की तुलना में अनुसंधान परिणाम का आकलन करने के लिये एक उपकरण के रूप में बिब्लियोमेट्रिक्स का आकर्षण इसकी दक्षता और सुविधा में निहित है जो अधिक संसाधन-गहन एवं समय लेने वाला है। 
  • नोट:  
    • बिब्लियोमेट्रिक्स अनुसंधान के मापने योग्य पहलुओं को संदर्भित करता है जैसे- प्रकाशित पत्रों की संख्या, उनके उद्धृत किये जाने की संख्या, पत्रिकाओं के प्रभाव कारक आदि। 

दोषपूर्ण रैंकिंग के परिणाम:

  • संस्थानों की गुणवत्ता एवं प्रतिष्ठा के बारे में भावी छात्रों और अभिभावकों को गुमराह करना। 
  • प्रणाली के स्तर को बनाए रखने के लिये संस्थानों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और प्रोत्साहन
  • रैंकिंग फ्रेमवर्क की विश्वसनीयता एवं उपयोगिता में गिरावट लाना।
  • संस्थागत उत्कृष्टता के अन्य पहलुओं जैसे- नवाचार, विविधता, सामाजिक प्रभाव आदि की उपेक्षा करना।
  • यदि विदेशी संस्थाएँ भारत में अपने परिसर स्थापित करती हैं तो वे शिक्षण संस्थानों की धारणा, प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। 

NIRF रैंकिंग में सुधार हेतु प्रयास:

  • पर्याप्त संसाधन, प्रोत्साहन और मान्यता प्रदान करके संकाय अनुसंधान परिणाम को बढ़ावा देना चाहिये।
  • ग्रंथसूची (Bibliometrics) का उपयोग किसी भी मूल्यांकन के उद्देश्य हेतु एकमात्र मानदंड के रूप में नहीं किया जाना चाहिये। उचित निर्णय लेने के लिये उसे हमेशा मूल्यांकन के अन्य रूपों के साथ शामिल किया जाना चाहिये, जैसे- सहकर्मी समीक्षा।
  • अनुसंधान के प्रकाशन और प्रभाव को प्रदर्शित करने और प्रसारित करने हेतु संस्थागत भंडार स्थापित करना।
  • परिणाम-आधारित पाठ्यक्रम तैयार करना, नवीन शिक्षाशास्त्र का उपयोग और छात्र प्रतिक्रिया तथा संतुष्टि सुनिश्चित करके शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया में सुधार करना।
  • प्लेसमेंट, उद्यमशीलता और छात्रों हेतु उच्च शिक्षा के अवसरों में सुधार करके स्नातक परिणामों को बढ़ाना।
  • छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की विविधता को बढ़ाकर एवं स्थानीय तथा वैश्विक समुदायों के साथ जुड़कर पहुँच व समावेशिता को बढ़ावा देना।
  • NIRF रैंकिंग को पारदर्शी होना चाहिये जैसे- वे कौन सा डेटा एकत्र करते हैं, इसे कैसे एकत्र करते हैं और यह डेटा कुल स्कोर का आधार कैसे निर्मित करता है। 

स्रोत: द हिंदू

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