जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में कार्बन ट्रेडिंग का भविष्य
यह एडिटोरियल 12/03/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Designing a carbon market” पर आधारित है। यह लेख भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) की तस्वीर पेश करता है, जिसे वर्ष 2026 के मध्य में लॉन्च किया जाना है, जो ऊर्जा दक्षता से ग्रीनहाउस गैस-आधारित उत्सर्जन व्यापार में बदलाव करके परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड स्कीम को प्रतिस्थापित करेगी।
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड स्कीम, कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM), ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), EU ETS (उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम), अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) बाज़ार CCTS और इसके नियामक एवं संस्थागत कार्यढाँचे। मेन्स के लिये:भारत के लिये कार्बन बाज़ार के प्रमुख लाभ, भारत में कार्बन बाज़ार के प्रभावी कामकाज में बाधाएँ। |
भारत की आगामी कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), जिसे वर्ष 2026 के मध्य में लॉन्च किया जाना है, देश की जलवायु नीति रूपरेखा में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है। मौजूदा परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड स्कीम की जगह, यह उत्सर्जन व्यापार प्रणाली ऊर्जा दक्षता मीट्रिक से ग्रीनहाउस गैस समकक्षों में परिवर्तित हो जाएगी, जो शुरूआत में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों जो भारत के उत्सर्जन का 16% हिस्सा हैं, को लक्षित करेगी ।
कार्बन मार्केट और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) क्या है?
- कार्बन बाज़ार और इसके घटक: UNEP के अनुसार, कार्बन बाज़ार कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र हैं जो सरकारों और गैर-राज्य अभिनेताओं को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन क्रेडिट का व्यापार करने में सक्षम बनाते हैं।
- भारतीय कार्बन मार्केट फ्रेमवर्क में दो प्रमुख तंत्र हैं:
- अनुपालन तंत्र - ऊर्जा उपयोग और औद्योगिक क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करता है, अनिवार्य कटौती सुनिश्चित करता है। उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा दायित्वों को पूरा करने वाले बिजली संयंत्र।
- ऑफसेट मैकेनिज़्म - अनुपालन तंत्र के अंतर्गत शामिल न होने वाली संस्थाओं द्वारा GHG उत्सर्जन को कम करने के लिये स्वैच्छिक कार्यों को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण: वनरोपण परियोजनाओं में निवेश करने वाली IT कंपनियाँ।
- भारतीय कार्बन मार्केट फ्रेमवर्क में दो प्रमुख तंत्र हैं:
- CCTS: देश के महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये, एक विश्वसनीय राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) के लिये एक मज़बूत राष्ट्रीय कार्यढाँचा विकसित किया जा रहा है।
- विनियामक ढाँचा: ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 केंद्र सरकार को कार्बन ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। यह संशोधन एक निर्दिष्ट एजेंसी को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करने की भी अनुमति देता है, जिनमें से प्रत्येक वायुमंडल से एक टन CO₂ समतुल्य (tCO₂e) की कमी या निवारण का प्रतिनिधित्व करता है।
- इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार ने कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को अधिसूचित किया है।
- संस्थागत ढाँचा: केंद्र सरकार ने भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) के कामकाज़ की देखरेख हेतु कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) के तहत भारतीय कार्बन बाज़ार (NSCICM) के लिये राष्ट्रीय संचालन समिति की स्थापना की है। प्रमुख संस्थागत भूमिकाओं में शामिल हैं:
- राष्ट्रीय संचालन समिति (NSCICM) - इसकी अध्यक्षता विद्युत मंत्रालय के सचिव करेंगे तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव इसके सह-अध्यक्ष होंगे।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) - ICM के प्रशासक के रूप में कार्य करता है।
- ग्रिड कंट्रोलर ऑफ इंडिया (GCI) - आईसीएम रजिस्ट्री का प्रबंधन और संचालन करने वाले रजिस्ट्री ऑपरेटर के रूप में कार्य करता है।
- केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) - ICM के तहत व्यापारिक गतिविधियों के लिये नियामक के रूप में कार्य करता है।
- विनियामक ढाँचा: ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 केंद्र सरकार को कार्बन ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। यह संशोधन एक निर्दिष्ट एजेंसी को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करने की भी अनुमति देता है, जिनमें से प्रत्येक वायुमंडल से एक टन CO₂ समतुल्य (tCO₂e) की कमी या निवारण का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत के लिये कार्बन बाज़ार के प्रमुख लाभ क्या हैं?
- औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और हरित नवाचार को बढ़ावा: एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) उद्योगों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण और ऊर्जा दक्षता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करती है, जिससे दीर्घकालिक परिचालन लागत कम हो जाती है।
- निम्न-कार्बन प्रक्रियाओं में निवेश करने वाली कंपनियों को वैश्विक बाज़ारों में, विशेष रूप से इस्पात, सीमेंट और रसायन जैसे क्षेत्रों में, प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त प्राप्त होती है।
- भारत द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को बढ़ावा देना इस बदलाव के अनुरूप है, जिससे उद्योगों को सस्टेनेबल मॉडलों में बदलाव करने में मदद मिलेगी।
- वर्ष 2022-23 के दौरान, PAT के अंतर्गत उपरोक्त इकाइयों ने 25.77 मिलियन टन तेल समतुल्य (MTOE) की बचत की है।
- टाटा स्टील ने वर्ष 2045 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का संकल्प लिया है, कार्बन कैप्चर में निवेश किया है तथा हरित नवाचार को बढ़ावा दिया है।
- वैश्विक कार्बन सीमा विनियमों के अनुपालन को सुगम बनाना: यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2026 से कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM) को लागू करने के साथ, भारतीय निर्यातकों (विशेष रूप से लौह, इस्पात और एल्यूमीनियम में) को उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ेगा जब तक कि उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया जाता।
- एक मज़बूत घरेलू कार्बन बाज़ार भारतीय उद्योगों को अनुपालन के लिये तैयार कर सकता है, वित्तीय घाटे को कम कर सकता है और प्रमुख बाज़ारों तक निरंतर अभिगम सुनिश्चित कर सकता है।
- वैश्विक व्यापार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये भारतीय कंपनियों को कार्बन मूल्य निर्धारण को एकीकृत करना होगा।
- यूरोपीय संघ का CBAM कार्बन-गहन उद्योगों से आयात पर CO2 कर लगाएगा।
- वर्ष 2022 में, भारत के 8.2 बिलियन डॉलर मूल्य के लौह, इस्पात और एल्यूमीनियम (जो क्षेत्र CBAM से सीधे प्रभावित होते हैं) उत्पादों के निर्यात का 27% यूरोपीय संघ को गया (वाणिज्य मंत्रालय, 2024)।
- जलवायु कूटनीति में भारत की स्थिति मज़बूत होगी: चूँकि भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य रखा है, इसलिये एक प्रभावी कार्बन बाज़ार जलवायु वार्ताओं में इसकी विश्वसनीयता को बढ़ाता है और वैश्विक निवेशकों से जलवायु वित्त को आकर्षित करता है।
- कार्बन ट्रेडिंग में भागीदारी भारत को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ जोड़ती है, ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) जैसी प्रणालियों से वित्त पोषण प्राप्त करने में मदद कर सकती है और कार्बन बाज़ारों के लिये विश्व बैंक की सहभागिता रोडमैप के साथ संरेखित कर सकती है।
- इससे COP शिखर सम्मेलनों में भारत की कूटनीतिक स्थिति में भी सुधार होगा। भारत ने अपने अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के तहत वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को 45% तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- राजस्व और आर्थिक विकास उत्पन्न करता है: एक कार्यात्मक कार्बन ट्रेडिंग बाज़ार उद्योगों और सरकार दोनों के लिये राजस्व का एक नया स्रोत बनाता है।
- जो कंपनियाँ उत्सर्जन को अपने लक्ष्य से नीचे लाती हैं, वे अधिशेष कार्बन क्रेडिट बेच सकती हैं, जिससे चक्रीय राजस्व सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
- सरकार कार्बन क्रेडिट की नीलामी भी कर सकती है, जिससे हरित बुनियादी अवसंरचना और संधारणीय प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास के लिये धन जुटाया जा सकेगा।
- उदाहरण के लिये, EU ETS (उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम) ने वर्ष 2023 में 43.6 बिलियन यूरो का राजस्व (IEA, 2024) उत्पन्न किया, जिसे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में पुनर्निवेशित किया जाएगा।
- भारत के अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) बाज़ार में वर्ष 2023 में ट्रेडिंग वॉल्यूम में 65% की वृद्धि (IEX, 2023) देखी गई, जो निवेशकों की बढ़ती रुचि को दर्शाता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण और डीकार्बोनाइज़ेशन को प्रोत्साहित करता है: कार्बन बाज़ार कार्बन-गहन ऊर्जा स्रोतों को वित्तीय रूप से अव्यवहारिक बनाकर, उद्योगों को सौर, पवन और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण करने के लिये प्रेरित करता है।
- यह भारत के ऊर्जा परिवर्तन रोडमैप के अनुरूप है और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने की इसकी प्रतिबद्धता को गति प्रदान करता है।
- वर्ष 2023 में, भारत ने 9.7 गीगावाट सौर PV क्षमता जोड़ी, जो नई स्थापनाओं और संचयी क्षमता के लिये विश्व स्तर पर 5वें स्थान पर है। सरकार के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
- विदेशी निवेश और हरित वित्त को आकर्षित करना: एक पारदर्शी और सुविनियमित कार्बन बाज़ार, भारत को निम्न-कार्बन परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के इच्छुक विदेशी निवेशकों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाता है।
- संस्थागत निवेशक, स्वायत्त धन कोष और बहुराष्ट्रीय निगम दीर्घकालिक संवहनीयता से जुड़े निवेश के लिये स्थिर कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र वाली अर्थव्यवस्थाओं को पसंद करते हैं।
- इससे भारत की ग्रीन बॉण्ड और ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) फंड तक पहुँच भी आसान हो गई है, जो वैश्विक बाज़ारों में तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
- सत्र 2023-24 में सरकार ने 50 अरब रुपए के चार किश्तों में 200 अरब रुपए मूल्य के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किये हैं
- वर्ष 2023 में, विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने भारत के निम्न-कार्बन ऊर्जा के विकास में तेज़ी लाने के लिये 1.5 बिलियन डॉलर के वित्तपोषण को मंजूरी दी।
भारत में कार्बन बाज़ार के प्रभावी संचालन में क्या बाधाएँ हैं?
- सख्त उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों का अभाव: भारत की कार्बन क्रेडिट प्रणाली मुख्य रूप से उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने पर ध्यान केंद्रित करती है, न कि पूर्ण उत्सर्जन पर, जिसके परिणामस्वरूप क्रेडिट की अधिक आपूर्ति और कम व्यापारिक कीमतें होती हैं।
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना में देखे गए कमज़ोर लक्ष्यों के परिणामस्वरूप उद्योगों को हरित प्रौद्योगिकी अंगीकरण के लिये न्यूनतम वित्तीय प्रोत्साहन मिला है।
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार कार्यक्रम के चरण II में खरीदे जाने वाले कुल ESCerts में से केवल 51% ही वास्तव में खरीदे गए।
- वर्ष 2022 में एक ESCerts की कीमत 1,200 रुपए से गिरकर 200 रुपए हो गई। हालाँकि, ESCerts के विक्रेताओं और खरीदारों के बीच का अंतर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है, जो स्वच्छ तकनीक अंगीकरण के लिये आवश्यक लागत से काफी कम है।
- अपर्याप्त अनुपालन और प्रवर्तन तंत्र: मौजूदा कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के बावजूद, कमज़ोर दंड और प्रवर्तन अंतराल के कारण गैर-अनुपालन उच्च बना हुआ है।
- कई कंपनियाँ अनिवार्य कार्बन क्रेडिट नहीं खरीदती हैं, और गैर-अनुपालन के लिये जुर्माना या तो लगाया नहीं जाता है या इतना कम होता है कि वह रोकने लायक नहीं होता है।
- सख्त नियामक निगरानी के बिना, उद्योग दायित्वों से बचते रहेंगे, जिससे कार्बन बाज़ार की विश्वसनीयता कम होगी।
- सीमित क्षेत्रीय कवरेज और प्रमुख प्रदूषकों का बहिष्कार: भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) के प्रारंभिक चरण में थर्मल पावर प्लांट जैसे प्रमुख प्रदूषणकारी क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है, जो भारत के GHG उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- इसके अतिरिक्त, प्रमुख परिवहन और कृषि क्षेत्र (महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन योगदानकर्त्ता) अभी तक व्यापार कार्यढाँचे का हिस्सा नहीं हैं, जिसके कारण बाज़ार पर सीमित प्रभाव पड़ रहा है।
- आंशिक दृष्टिकोण बाज़ार की गहराई और मूल्य खोज को कमज़ोर करता है।
- यूरोपीय संघ की उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) उसके कुल उत्सर्जन का 45% कवर करती है, जबकि भारत की योजना फिलहाल पीछे है।
- इसके अतिरिक्त, प्रमुख परिवहन और कृषि क्षेत्र (महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन योगदानकर्त्ता) अभी तक व्यापार कार्यढाँचे का हिस्सा नहीं हैं, जिसके कारण बाज़ार पर सीमित प्रभाव पड़ रहा है।
- विश्वसनीय कार्बन मापन और सत्यापन प्रणालियों का अभाव: एक कुशल कार्बन बाज़ार के लिये, उत्सर्जन को सटीक रूप से समायोजित किया जाना चाहिये, सत्यापित किया जाना चाहिये और पारदर्शी रूप से रिपोर्ट किया जाना चाहिये।
- हालाँकि, भारत में मज़बूत निगरानी कार्यढाँचे का अभाव है, जिसके कारण कार्बन क्रेडिट की दोहरी गणना, उत्सर्जन में कमी की अधिक रिपोर्टिंग और धोखाधड़ी की चिंताएँ हैं।
- सुदृढ़ तृतीय-पक्ष सत्यापन के बिना, निवेशकों का विश्वास और वैश्विक विश्वसनीयता कमज़ोर बनी रहेगी।
- कुछ क्षेत्रों, जैसे कृषि और भूमि उपयोग में जटिल उत्सर्जन पथ और अनेक स्रोत हैं।
- इन क्षेत्रों से उत्सर्जन पर डेटा एकत्र करने के लिये व्यापक अनुसंधान, निगरानी और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों के एकीकरण की आवश्यकता होती है।
- कार्बन क्रेडिट के लिये एक सुपरिभाषित द्वितीयक बाज़ार का अभाव: मूल्य निर्धारण और उद्योगों एवं निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये एक कुशल द्वितीयक बाज़ार महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि, भारत के कार्बन बाज़ार में कार्बन क्रेडिट की पुनर्विक्रय के लिये संरचित तंत्र का अभाव है, जिसके कारण बाज़ार में गतिविधि कम है और क्रेडिट की कीमतों में अस्थिरता है।
- संस्थागत निवेशकों व सट्टा व्यापार की अनुपस्थिति बाज़ार की मापनीयता एवं आकर्षण को और सीमित कर देती है।
- हालाँकि, भारत के कार्बन बाज़ार में कार्बन क्रेडिट की पुनर्विक्रय के लिये संरचित तंत्र का अभाव है, जिसके कारण बाज़ार में गतिविधि कम है और क्रेडिट की कीमतों में अस्थिरता है।
- वैश्विक कार्बन बाज़ारों के साथ अपर्याप्त एकीकरण: भारत का कार्बन बाज़ार बहुत हद तक घरेलू है और अभी तक अंतर्राष्ट्रीय कार्बन व्यापार तंत्रों, जैसे कि यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (EU ETS) या स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों के साथ संरेखित नहीं है।
- इससे भारत की कार्बन क्रेडिट प्रणाली में वैश्विक निवेशकों और उद्योगों की भागीदारी प्रतिबंधित हो जाती है।
- वैश्विक मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित किये बिना, भारतीय कार्बन क्रेडिट का कम मूल्यांकन किये जाने का खतरा है, जिससे उत्सर्जन में कमी लाने के लिये सक्रिय रूप से काम करने वाली कंपनियों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन सीमित हो जाएगा।
भारत एक प्रभावी और कुशल कार्बन बाज़ार स्थापित करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- गतिशील कार्बन मूल्य सीमा के साथ उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को सुदृढ़ बनाना: भारत को एक मज़बूत कार्बन बाज़ार सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वाकांक्षी किन्तु यथार्थवादी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य निर्धारित करने होंगे।
- ऋणों की अधिक आपूर्ति को रोकने तथा उद्योगों को उत्सर्जन में कटौती करने के लिये आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये कार्बन मूल्य न्यूनतम निर्धारित किया जाना चाहिये।
- सरकार को भी एक प्रगतिशील कटौती मार्ग स्थापित करना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उद्योग समय के साथ स्वच्छ विकल्पों की ओर अग्रसर हो जाएँ।
- वैश्विक कार्बन बाज़ारों से जुड़ा एक गतिशील मूल्य निर्धारण तंत्र, ऋण मूल्यों को स्थिर करने और बाज़ार में गिरावट को रोकने में मदद कर सकता है।
- बाज़ार की गहनता को अधिकतम करने के लिये क्षेत्रीय कवरेज का विस्तार: कार्बन बाज़ार को धीरे-धीरे औद्योगिक क्षेत्रों से आगे बढ़ाकर इसमें बिजली उत्पादन, परिवहन और कृषि को भी शामिल किया जाना चाहिये, जो उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
- चरणबद्ध दृष्टिकोण से व्यवधानों को न्यूनतम करते हुए इन क्षेत्रों का निर्बाध एकीकरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप विद्युत संयंत्रों को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) के अंतर्गत लाया जाना चाहिये।
- सरकार राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के साथ कार्बन बाज़ारों को एकीकृत करके निम्न-कार्बन कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित कर सकती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) ट्रेडिंग के साथ कार्बन बाज़ार को एकीकृत करना: कार्बन क्रेडिट, नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) और ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणपत्रों को मिलाकर एक एकीकृत ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म बाज़ार की दक्षता को बढ़ा सकता है।
- इससे उद्योगों को अपने कार्बन न्यूनीकरण दायित्वों को पूरा करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और भारत का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन नवीकरणीय ऋण बाज़ार के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- एक अंतर-क्षेत्रीय ऋण प्रणाली पुनरावृत्ति को रोकेगी तथा अधिक समग्र डीकार्बोनाइज़ेशन रणनीति तैयार करेगी।
- कार्बन निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) कार्यढाँचे को मज़बूत करना: धोखाधड़ी वाले कार्बन क्रेडिट दावों को रोकने के लिये एक पारदर्शी और छेड़छाड़-रहित MRV प्रणाली आवश्यक है।
- उत्सर्जन पर सटीक रूप से नज़र रखने के लिये ब्लॉकचेन-आधारित रजिस्ट्री और AI-संचालित कार्बन ऑडिटिंग टूल का उपयोग किया जा सकता है।
- जवाबदेही बढ़ाने के लिये तृतीय-पक्ष सत्यापन एजेंसियों को मान्यता दी जानी चाहिये और विनियमित किया जाना चाहिये।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को भारत के कार्यढाँचे को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाने के लिये वेरा और गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे वैश्विक कार्बन मानकों के साथ सहयोग करना चाहिये।
- कार्बन ट्रेडिंग प्रोत्साहन के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना: एक अच्छी तरह से काम करने वाले कार्बन बाज़ार के लिये सक्रिय निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता होती है, जिसे कर प्रोत्साहन, रियायती ऋण और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये प्राथमिकता वाले ऋण के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
- सरकार को इस्पात, सीमेंट और परिवहन जैसे उद्योगों में कार्बन ऑफसेट परियोजनाओं को निगमित सामाजिक दायित्वों (CSR) से जोड़कर प्रोत्साहित करना चाहिये।
- एक स्पष्ट कार्बन मूल्य निर्धारण रोडमैप व्यवसायों को नीतिगत निश्चितता प्रदान करेगा तथा दीर्घकालिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
- बाज़ार स्थिरता के लिये राष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग एक्सचेंज का निर्माण: चलनिधि, मूल्य स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) के समान एक केंद्रीकृत कार्बन ट्रेडिंग एक्सचेंज की स्थापना की जानी चाहिये।
- यह एक्सचेंज मौजूदा बिजली बाज़ारों और कमोडिटी एक्सचेंजों के साथ एकीकृत होकर निर्बाध व्यापारिक अनुभव प्रदान कर सकता है।
- डिजिटल वित्त (जैसे UPI और ONDC) में भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, एक डिजिटल-प्रथम कार्बन बाज़ार मंच अभिगम एवं भागीदारी में सुधार कर सकता है।
- कार्बन बाज़ार को वैश्विक व्यापार विनियमों के अनुरूप बनाना: यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) और अमेरिका की इसी तरह की नीतियों के साथ, भारत को व्यापार प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिये अपनी कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना होगा।
- प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ द्विपक्षीय कार्बन क्रेडिट मान्यता तंत्र स्थापित किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय निर्यातकों को CBAM-अनुरूप निधि के माध्यम से समर्थन दिया जाना चाहिये, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाए बिना कम कार्बन उत्पादन प्रक्रियाओं में परिवर्तन करने में मदद मिलेगी।
- कार्बन क्रेडिट जागरूकता और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना: कार्बन बाज़ार के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये एक सुविज्ञ उद्योग और कार्यबल आवश्यक है।
- कार्बन ट्रेडिंग तंत्र को समझने के लिये उद्योगों, MSME और नीति निर्माताओं के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये।
- बिज़नेस स्कूलों और अनुसंधान संस्थानों को कार्बन वित्त और कार्बन बाज़ार परिचालन पर विशेष पाठ्यक्रम विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) में उत्सर्जन में कमी लाने, औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने और वैश्विक कार्बन बाज़ारों के साथ तालमेल बिठाने की अपार संभावनाएँ हैं। नियामक तंत्र को मज़बूत करना, बाज़ार में भागीदारी का विस्तार करना और अंतरराष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग प्रणालियों के साथ एकीकरण करना इसकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। एक अच्छी तरह से काम करने वाला कार्बन बाज़ार भारत को जलवायु कार्रवाई में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है और साथ ही सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत का कार्बन बाज़ार संधारणीय औद्योगिक विकास को बढ़ावा देते हुए अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। कम कार्बन अर्थव्यवस्था में प्रभावी बदलाव सुनिश्चित करने में भारत के कार्बन बाज़ार की क्षमता और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2023)
उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है? (a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है। उत्तर: (b) प्रश्न 2. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई? (2009) (a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो उत्तर: (b) |