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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय ऊर्जा विनिमय खरीद

  • 23 Aug 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय ऊर्जा विनिमय खरीद, विद्युत अधिनियम, 2003, केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग

मेन्स के लिये:

डिस्कॉम का विनियमन और भारत के विद्युत क्षेत्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तेलंगाना की विद्युत उपयोगिताओं (डिस्कॉम) के प्रबंधन को विद्युत खरीद के लिये इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (IEX) के साथ डे-अहेड मार्केट (DAM) में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

  • डिस्कॉम द्वारा भुगतान किये जाने के बावजूद उन पर प्रतिबंध इस आधार पर लगाया गया कि उन्होंने जेनकोस (एक पॉवर जनरेटर कंपनी) को बकाया का भुगतान नहीं किया था।
  • हालाँकि किये गए भुगतान से संबंधित खातों का मिलान करने के बाद अब प्रतिबंध हटा लिया गया है।

प्रतिबंध के संदर्भ में

  • राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र (National Load Despatch Centre-NLDC) ने संबंधित खातों का जेनकोस के खातों के साथ मिलान किये बिना ही ऊर्जा खरीद (Energy Procurement) में तेलंगाना (डिस्कॉम) द्वारा बोली लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • तेलंगाना (डिस्कॉम) ने प्रतिबंध लगाने से पहले एजेंसी द्वारा बताए गए 1,381 करोड़ रुपए के बकाया में से 1,360 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया है।
  • डिस्कॉम के अनुसार, एजेंसी वर्तमान में लागू विद्युत अधिनियम, 2003 के अधिदेश से परे कार्य कर रही थी।
    • वर्ष 2003 के अधिनियम के अनुसार, एजेंसी को केवल ग्रिड नियम बद्धता की निगरानी और रख-रखाव करना चाहिये न कि अपने वर्तमान एकतरफा निर्णय जैसे किसी भी व्यावसायिक गतिविधि में शामिल होना चाहिये।
  • आधिकारिक तौर पर 19 अगस्त, 2022 को प्रतिबंध हटा लिया गया था, जिससे डिस्कॉम को विद्युत की खरीद की अनुमति मिल गई है।

इंडियन एनर्जी एक्सचेंज

  • परिचय:
  • मिशन:
    • उपभोक्ताओं को वहनीय, विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करने के लिये पारदर्शी एवं कुशल ऊर्जा बाज़ार स्थापित करने में प्रौद्योगिकी एवं नवाचार की उपस्थिति का लाभ उठाना।
  • व्यापारिक मंच:
    • ऊर्जा बाज़ार:
      • डे-अहेड मार्केट (DAM):
        • यह मध्यरात्रि से शुरू होने वाले अगले दिन के 24 घंटों में किसी भी/कुछ/पूर्ण समय के वितरण हेतु भौतिक विद्युत व्यापार बाज़ार है।
      • टर्म-अहेड मार्केट (TAM):
        • TAM के तहत यह अनुबंध 11 दिनों की अवधि के लिये विद्युत के क्रय/विक्रय की सीमा को कवर करता है।
        • यह प्रतिभागियों को दैनिक अनुबंधों के माध्यम से सात दिनों के रोलिंग हेतु  दैनिक आधार पर अगले दिन के लिये इंट्रा-डे अनुबंधों के माध्यम से उसी दिन विद्युत के क्रय में सक्षम बनाता है।
      • रियल टाइम मार्केट:
        • बाज़ार में प्रत्येक 30 मिनट में एक नया नीलामी सत्र आयोजित होता है, जिसमें 4 टाइम ब्लॉक्स या नीलामी बंद होने के एक घंटे बाद विद्युत की आपूर्ति की जाती है।
        • विद्युत की कीमत और मात्रा द्विपक्षीय एवं बंद नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित की जाती है।
      • सीमा पार विद्युत व्यापार:
        • विद्युत के क्षेत्र में सीमा पार एक एकीकृत दक्षिण एशियाई विद्युत बाज़ार के निर्माण की दिशा में भारतीय विद्युत बाज़ार का विस्तार करने का एक प्रयास है
        • ग्रिड से जुड़े दक्षिण एशियाई देश जैसे नेपाल, भूटान और बांग्लादेश विनिमय पर डे फॉरवर्ड मार्केट और टर्म फॉरवर्ड मार्केट में भाग ले सकेंगे।
    • ग्रीन मार्केट:
      • ग्रीन टर्म अहेड मार्केट:
        • ग्रीन-टर्म अहेड मार्केट (G-TAM), CERC की मंजूरी के बाद अक्षय ऊर्जा में व्यापार के लिये उपलब्ध एक नया बाज़ार है।
        • नए बाज़ार खंड में शामिल अनुबंध हैं:
          • ग्रीन-इंट्रा डे
          • ग्रीन-डे-अहेड कांटेन्जेन्सी  (DAC)
          • ग्रीन-डेली और ग्रीन-वीकली।
        • ग्रीन-इंट्रा डे, ग्रीन-DAC और ग्रीन-डेली अनुबंध हेतु मैचिंग मैकेनिज्म निरंतर/त्वरित व्यापार की व्यवस्था, जबकि ग्रीन-वीकली के लिये द्विपक्षीय एवं खुली नीलामी की प्रक्रिया लागू की जानी है।
      • ग्रीन-डे-अहेड मार्केट:
        • ग्रीन डे फॉरवर्ड मार्केट अगले दिन अक्षय ऊर्जा में अनामिकता और द्विपक्षीय बंद सामूहिक नीलामी की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
        • यह विनिमय, पारंपरिक और नवीकरणीय उत्पादों के लिये अलग-अलग बिडिंग विंडो के माध्यम से एकीकृत माध्यम से बोलियों को आमंत्रित करता है।
        • पारंपरिक खंड के बाद ट्रांसमिशन कॉरिडोर की उपलब्धता पर विचार करते हुए, अनिवार्य रूप से नवीकरणीय खंड में क्रमिक समाशोधन होता है।
    • प्रमाणपत्र बाज़ार:
      • अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC):
        • REC तंत्र के तहत, एक उत्पादक देश के किसी भी हिस्से में अक्षय संसाधनों के माध्यम से विद्युत उत्पादन कर सकता है।
          • विद्युत के हिस्से के लिये उत्पादक किसी भी पारंपरिक स्रोत से लागत के बराबर मूल्य प्राप्त करता है, जबकि पर्यावरण विशेषता को बाज़ार निर्धारित मूल्य पर विनिमय के माध्यम से बेचा जाता है।
        • देश के किसी भी हिस्से से बाध्य संस्थाएँ इन REC को अपने नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) अनुपालन को पूरा करने के लिये क्रय कर सकती हैं।
          • बाध्य संस्थाएँ या तो अक्षय ऊर्जा का क्रय कर सकती हैं या संबंधित राज्यों के RPO के तहत अपने RPO को पूरा करने के लिये REC खरीद सकती हैं।
      • ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESCerts):

विद्युत अधिनियम, 2003 और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग:

  • विद्युत अधिनियम 2003:
    • विद्युत अधिनियम, 2003 विद्युत क्षेत्र को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
    • इस अधिनियम में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों (CERC और SERCs) पर विद्युत नियामक आयोग का प्रावधान किया  गया है।
      • इन आयोगों के कार्यों में शामिल हैं:
        • टैरिफ का विनियमन और निर्धारण
        • प्रसारण के लिये लाइसेंस जारी करना
        • वितरण और विद्युत का व्यापार
        • अपने-अपने क्षेत्राधिकार के भीतर विवादों का समाधान।
  • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग:
    • CERC भारत में विद्युत क्षेत्र का नियामक है।
    • यह थोक विद्युत बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार, निवेश को बढ़ावा देने और सरकार की मांग आपूर्ति अंतर को कम करने हेतु संस्थागत बाधाओं को दूर करने की सलाह देता है।
    • यह विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत अर्ध-न्यायिक स्थिति के साथ कार्यरत एक वैधानिक निकाय है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्र. सरकार की एक योजना 'उदय' का उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन सा है? (2016)

(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर तक विद्युत पहुँचाना।
(c) समय के साथ कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d)  विद्युत वितरण कंपनियों के वित्तीय बदलाव और पुनरुद्धार प्रदान करना। (to provide for)

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • विद्युत मंत्रालय द्वारा उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY) शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य राज्य विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMS) को वित्तीय और परिचालन रूप से स्वस्थ बनाने में मदद करना है ताकि वे सस्ती दरों पर पर्याप्त विद्युत की आपूर्ति कर सकें।
  • इसमें वित्तीय बदलाव, परिचालन सुधार, विद्युत उत्पादन की लागत में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास, ऊर्जा दक्षता और संरक्षण की परिकल्पना की गई है।
  • यह योजना वित्तीय और परिचालन रूप से मजबूत DISCOMs, विद्युत की बढ़ती मांग, उत्पादन संयंत्रों के प्लांट लोड फैक्टर (PLF) में सुधार, स्ट्रेस्ड एसेट्स में कमी, सस्ते फंड की उपलब्धता, पूंजी निवेश में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विकास को प्रभावित करने का प्रयास करती है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिन्दू

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