अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी का सुदृढ़ीकरण
यह एडिटोरियल 17/02/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Foundation for layered India-America relations” पर आधारित है। इस लेख में भारत-अमेरिका संबंधों की मज़बूती का उल्लेख किया गया है जो रक्षा, प्रौद्योगिकी और क्षेत्रीय सहयोग में प्रगति पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, F-35 लड़ाकू विमान, टाइगर ट्रायम्फ, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), NISAR उपग्रह, NASA-ISRO AXIOM मिशन-4, आर्टेमिस समझौते (2023), गगनयान, CAATSA मेन्स के लिये:भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र, भारत और अमेरिका के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र। |
वाशिंगटन डीसी में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हाल ही में हुई उच्च स्तरीय कूटनीतिक साझेदारी ने व्यापक प्रशासनिक अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता का एक क्षण प्रदान किया। द्विपक्षीय बैठक में प्रौद्योगिकी, रक्षा, ऊर्जा और क्षेत्रीय सहयोग जैसे कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई। इसने वैश्विक गतिशीलता में बदलाव के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों की समुत्थानशक्ति को प्रदर्शित किया, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी अंतरण और रक्षा सहयोग जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। हालाँकि, महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना अब भी शेष है, विशेषकर व्यापार नीतियों और व्यापक भू-राजनीतिक संतुलन के संबंध में।
भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
- रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग: भारत और अमेरिका ने अपने रक्षा संबंधों का काफी विस्तार किया है, तथा वे क्रेता-विक्रेता संबंध से आगे बढ़कर सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी साझाकरण की ओर बढ़ गए हैं।
- भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार (MDP) का दर्जा दिये जाने तथा STA-1 में शामिल किये जाने से उच्च तकनीक रक्षा व्यापार में सुविधा होगी, जिसमें F-35 लड़ाकू विमानों तक संभावित अभिगम भी शामिल है।
- ‘ऑटोनोमस सिस्टम्स इंडस्ट्री अलायंस (ASIA)’ और Anduril Industries एवं महिंद्रा ग्रुप और L3 हैरिस-भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच समझौते AI-संचालित रक्षा क्षमताओं को बढ़ाते हैं।
- जैवलिन मिसाइलों और स्ट्राइकर व्हीकल्स (वर्ष 2025) की खरीद तथा विस्तारित ‘टाइगर ट्रायम्फ’ त्रि-सेवा अभ्यास बढ़ती हुई अंतर-संचालन क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
- व्यापार और निवेश संबंध: दोनों देशों का लक्ष्य वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 बिलियन डॉलर तक पहुँचाना है, जिसमें बाज़ार अभिगम, टैरिफ और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता जैसे दीर्घकालिक मुद्दों का समाधान करना शामिल है।
- वर्ष 2025 तक नियोजित द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) निष्पक्ष व्यापार को बढ़ाएगा, टैरिफ को कम करेगा तथा विनियमन को आसान बनाएगा, विशेष रूप से कृषि, ICT एवं औद्योगिक वस्तुओं में।
- भारत ने बॉर्बन, मोटरसाइकिल और ICT उत्पादों पर टैरिफ कम कर दिया है, जबकि अमेरिका ने भारतीय आम, अनार और फार्मा उत्पादों तक बाज़ार अभिगम में सुधार किया है।
- लगभग 155 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 22 अरब डॉलर का निवेश किया है, जबकि टेस्ला और माइक्रोन जैसी अमेरिकी कंपनियाँ भारत में अपना विस्तार कर रही हैं।
- ऊर्जा और जलवायु सहयोग: ऊर्जा सुरक्षा भारत-अमेरिका संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ है, जिसमें अमेरिका भारत को कच्चे तेल, LNG और पेट्रोलियम उत्पादों का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बन गया है।
- अमेरिका-भारत ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी (वर्ष 2025) हाइड्रोकार्बन व्यापार, नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा पर केंद्रित है, जिसमें भारत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने के लिये तैयार है।
- जनवरी-नवंबर 2024 के दौरान: भारत ने अमेरिका से 5.12 मिलियन टन LNG आयात किया, जो कुल LNG आयात का 20% है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी: दोनों राष्ट्र ‘यूएस-इंडिया ट्रस्ट’ पहल (2025) के तहत AI, अर्द्धचालक, क्वांटम और जैव प्रौद्योगिकी में सहयोग को आगे बढ़ा रहे हैं।
- रिकवरी और प्रसंस्करण पहल लिथियम, दुर्लभ मृदा तत्त्व और क्रिटिकल मिनरल्स में सहयोग को मज़बूत करती है, जो EV एवं रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- INDUS इनोवेशन (वर्ष 2025) मंच निजी क्षेत्र के नवाचार को बढ़ावा देता है, तथा रक्षा तकनीक सहयोग के लिये INDUS-X का पूरक है।
- वर्ष 2023 में, माइक्रोन ने भारत में चिप सुविधाओं में 825 मिलियन डॉलर तक के निवेश की पुष्टि की।
- अंतरिक्ष सहयोग: भारत और अमेरिका मानव अंतरिक्ष उड़ान और ग्रह अन्वेषण में NASA-ISRO साझेदारी के साथ अंतरिक्ष सहयोग को मज़बूत कर रहे हैं।
- NISAR उपग्रह (2024) पृथ्वी के वायुमंडल होने वाले परिवर्तनों की मैपिंग करेगा, जिससे जलवायु अनुकूलन में सहायता मिलेगी।
- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का दौरा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री को वर्ष 2025 में NASA-ISRO AXIOM मिशन- 4 पर भेजा जाएगा।
- NASA के साथ आर्टेमिस समझौते (2023) में भारत का प्रवेश प्रगाढ़ होते संबंधों को रेखांकित करता है।
- अमेरिका भारत के गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन का भी समर्थन कर रहा है।
- सामरिक हिंद-प्रशांत सहयोग: प्रमुख क्वाड साझेदारों के रूप में, भारत और अमेरिका चीन की आक्रामकता का मुकाबला करते हुए एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक मोचन को समर्थन देने के लिये साझा एयरलिफ्ट कैपेसिटी और अंतर-संचालन क्षमता में सुधार के लिये समुद्री गश्त पर क्वाड पहल वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रही है।
- क्वाड क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक ग्रुप बुनियादी अवसंरचना, व्यापार एवं डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देते हैं।
- नवंबर 2023 में घोषित बहुराष्ट्रीय अमेरिकी नेतृत्व वाली कंबाइंड मेरीटाइम फोर्सेज़ (CMF) में भारत की पूर्ण सदस्यता, भारत-अमेरिका संबंधों में एक बड़ा बदलाव दर्शाती है।
- प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक मोचन को समर्थन देने के लिये साझा एयरलिफ्ट कैपेसिटी और अंतर-संचालन क्षमता में सुधार के लिये समुद्री गश्त पर क्वाड पहल वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रही है।
- जन-जन संपर्क और शैक्षणिक संबंध: भारतीय-अमेरिकी समुदाय, जिसकी संख्या वर्ष 2023 में 5 मिलियन तक हो जाएगी, कई बाधाओं को पार कर सबसे प्रभावशाली आप्रवासी समूहों में से एक बन गया है।
- अमेरिका में 3.3 लाख से अधिक भारतीय छात्रों ने (वर्ष 2024 तक) वहाँ की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसमें शिक्षा इस द्विपक्षीय संबंध की आधारशिला है।
- शिक्षा एवं कौशल विकास पर भारत-अमेरिका कार्य समूह ड्यूअल डिग्री, संयुक्त अनुसंधान और संकाय आदान-प्रदान को बढ़ावा दे रहा है।
- IIT काउंसिल और एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन यूनिवर्सिटीज़ ने वर्ष 2023 में इंडो-US ग्लोबल चैलेंजेज़ इंस्टीट्यूट स्थापित करने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
भारत और अमेरिका के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
- व्यापार विवाद और टैरिफ बाधाएँ: प्रगति के बावजूद, व्यापार असंतुलन और टैरिफ विवाद बाधाएँ बनी हुई हैं।
- अमेरिका लंबे समय से कृषि और औद्योगिक उत्पादों पर भारत के उच्च टैरिफ की आलोचना करता रहा है, जबकि भारत को फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं पर गैर-टैरिफ बाधाओं से आपत्ति है।
- वर्ष 2018 में जब अमेरिका ने स्टील और एल्युमीनियम पर शुल्क लगाया तो भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 29 अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया।
- भारत के साथ अमेरिकी वस्तु व्यापार घाटा वर्ष 2024 में 5.4% बढ़कर 45.7 बिलियन डॉलर हो गया, जो व्यापार असंतुलन को लेकर वाशिंगटन के लिये बढ़ती चिंता का विषय है।
- रक्षा प्रौद्योगिकी और निर्यात नियंत्रण प्रतिबंध: बढ़ते रक्षा संबंधों के बावजूद, अमेरिकी निर्यात नियंत्रण प्रौद्योगिकी अंतरण और सह-विकास को सीमित करते हैं।
- भारत पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट और उन्नत समुद्री प्रणालियाँ चाहता है, लेकिन अमेरिका ने इस पर प्रतिबंध (हालाँकि इस पर समीक्षा चल रही है) लगा दिया है।
- पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) समझौते (वर्ष 2025) का उद्देश्य नियामक विसंगतियों को दूर करना है।
- यद्यपि भारत को STA-1 का दर्जा (वर्ष 2018) प्रदान किया गया था, यह अभी भी AI, ड्रोन और मिसाइल प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंधों से जूझ रहा है।
- चीन नीति और सामरिक स्वायत्तता पर मतभेद: हालाँकि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता पर चिंता व्यक्त करते हैं, लेकिन उनके रणनीतिक दृष्टिकोण अलग-अलग हैं।
- अमेरिका चाहता है कि भारत पश्चिमी सुरक्षा कार्यढाँचे के साथ अधिक निकटता से जुड़े, लेकिन भारत गुटनिरपेक्ष और स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखना चाहता है।
- भारत द्वारा संधि-आधारित सुरक्षा गठबंधन में शामिल होने की अनिच्छा के कारण क्वाड की सैन्य क्षमता कुछ हद तक बाधित हो रही है।
- भारतीय पेशेवरों के लिये वीज़ा और आव्रजन प्रतिबंध: सुदृढ़ शैक्षिक और व्यावसायिक संबंधों के बावजूद, वीज़ा प्रतिबंध और कार्य परमिट के मुद्दे टकराव उत्पन्न करते रहते हैं।
- भारत के IT क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण H-1B वीज़ा कार्यक्रम कोटा, विलंब और विस्तार पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है।
- भारतीयों के बीच अमेरिकी ग्रीन कार्ड की मांग अभी भी उच्च बनी हुई है, फिर भी लंबित आवेदनों की संख्या एवं सख्त वार्षिक सीमा के कारण प्रगति धीमी है।
- असैन्य परमाणु सहयोग में प्रगति का अभाव: ऐतिहासिक अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते (2008) के बावजूद, देयता संबंधी चिंताओं और नियामक बाधाओं के कारण परमाणु सहयोग अवरुद्ध हो गया है।
- अमेरिका चाहता है कि भारत परमाणु क्षति के लिये असैन्य दायित्व अधिनियम (CLNDA) में संशोधन करे, ताकि आपूर्तिकर्त्ताओं को अत्यधिक उत्तरदायित्व से बचाया जा सके।
- लेकिन हाल ही में केंद्रीय बजट 2025 में भारत ने वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा विकसित करने के लिये परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम में संशोधन करने की योजना बनाई है।
- अमेरिका चाहता है कि भारत परमाणु क्षति के लिये असैन्य दायित्व अधिनियम (CLNDA) में संशोधन करे, ताकि आपूर्तिकर्त्ताओं को अत्यधिक उत्तरदायित्व से बचाया जा सके।
- डिजिटल व्यापार और डेटा स्थानीयकरण मुद्दे: अमेरिका भारत के डेटा स्थानीयकरण आदेशों का विरोध करता है और यह तर्क देता है कि इससे गूगल, अमेज़न और मेटा जैसी अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को नुकसान होगा।
- दूसरी ओर, भारत उपयोगकर्त्ता की गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिये डेटा सॉवरेनिटी पर बल देता है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (2023) सेंसिटिव डेटा के लोकल स्टोरेज को अनिवार्य बनाता है, जिससे सीमा पार डेटा फ्लो प्रभावित होता है।
- अमेरिका ने बिग टेक में भारत की एंटी ट्रस्ट प्रोब पर भी आपत्ति जताई है, जिसमें बाज़ार प्रभुत्व के लिये गूगल और एप्पल के खिलाफ हाल के मामले भी शामिल हैं।
- बहुपक्षीय मंचों और वैश्विक शासन पर मतभेद: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अमेरिकी समर्थन के बावजूद, वैश्विक शासन दृष्टिकोण पर मतभेद बने हुए हैं।
- अमेरिका चाहता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस विरोधी रुख अपनाए, लेकिन भारत तटस्थ रुख अपनाए हुए है। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले UNGA वोट से स्वयं को दूर रखा है।
- कृषि सब्सिडी पर WTO विवाद से भी संबंध खराब हो रहे हैं, क्योंकि अमेरिका भारत की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति का विरोध कर रहा है।
- नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्यापार असंतुलन और अनुचित प्रथाओं का हवाला देते हुए भारत सहित BRICS देशों पर उच्च शुल्क लगाने की धमकी दी है।
अमेरिका के साथ संबंधों को और भी बेहतर बनाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- रक्षा सह-विकास और औद्योगिक सहयोग को मज़बूत करना: भारत को भारत-अमेरिका रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप जैसी पहलों के तहत अधिक प्रौद्योगिकी अंतरण, संयुक्त उत्पादन एवं सह-विकास पर बल देना चाहिये।
- पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) संधि जैसे समझौतों में तेज़ी लाने से रक्षा उपकरणों की खरीद और अंतर-संचालन को सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
- संयुक्त AI, ड्रोन और समुद्री युद्ध परियोजनाओं का विस्तार करने से रक्षा संतुलन में वृद्धि होगी।
- रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने से भारत एक मज़बूत रणनीतिक साझेदार बनेगा।
- व्यापार बाधाओं का समाधान और द्विपक्षीय समझौतों का विस्तार: भारत को टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाओं और व्यापार विवादों को कम करने के लिये द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को अंतिम रूप देने की दिशा में काम करना चाहिये।
- खुदरा, कृषि और डिजिटल क्षेत्रों में अमेरिकी फर्मों के लिये बाज़ार अभिगम बढ़ाने तथा भारतीय निर्यात के लिये तरज़ीही व्यवस्था सुनिश्चित करने से व्यापार संतुलन में सुधार होगा।
- अर्द्धचालकों, क्रिटिकल मिनरल्स और फार्मास्यूटिकल्स में आपूर्ति शृंखला एकीकरण को सुदृढ़ करने से भू-राजनीतिक जोखिमों को कम किया जा सकता है।
- आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये भारत को IPEF जैसे क्षेत्रीय व्यापार कार्यढाँचे का लाभ उठाना चाहिये।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और विनियामक मानकों को अमेरिकी मानदंडों के अनुरूप बनाने से व्यापार को सुगम बनाया जा सकता है।
- ऊर्जा और जलवायु सहयोग को गहन करना: भारत को LNG, कच्चे तेल और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को सुरक्षित करने के लिये अमेरिका के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा समझौतों का विस्तार करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण में साझेदारी को मज़बूत करना वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप होगा।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) और असैन्य परमाणु परियोजनाओं के संयुक्त विकास से भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता को बढ़ावा मिल सकता है।
- कार्बन कैप्चर, बैटरी प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर सहयोग से भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को समर्थन मिलेगा।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी को गति देना: भारत को अमेरिका-भारत ट्रस्ट पहल के तहत AI, अर्द्धचालक, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में संयुक्त अनुसंधान एवं विकास तथा सह-विकास में तीव्रता लानी चाहिये।
- INDUS-X और INDUS इनोवेशन प्लेटफॉर्मों के विस्तार से रक्षा-तकनीक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- विश्वसनीय डिजिटल आपूर्ति शृंखलाओं को समुत्थानशील करना तथा चुनिंदा रूप से डेटा लोकलाइज़ेशन मानदंडों में ढील देना अमेरिकी तकनीकी निवेशों को आकर्षित कर सकता है।
- भारतीय तकनीकी स्टार्टअप्स में अमेरिकी उद्यम पूंजी की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने से नवाचार विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- अगली पीढ़ी के दूरसंचार और 5G/6G बुनियादी अवसंरचना का संयुक्त उत्पादन तकनीकी संबंधों को मज़बूत कर सकता है।
- सामरिक और हिंद-प्रशांत सहयोग बढ़ावा देना: भारत को हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री एवं खुफिया सहयोग का विस्तार करना चाहिये।
- अमेरिकी समर्थन से दक्षिण पूर्व एशिया में रक्षा अवसंरचना परियोजनाओं का विस्तार करके क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों का मुकाबला किया जा सकता है।
- अमेरिका-भारत रणनीतिक वार्ता के अंतर्गत साइबर एवं अंतरिक्ष सुरक्षा नीतियों को संतुलित करने से सुरक्षा सहयोग में सुधार होगा।
- IMEC जैसे आर्थिक गलियारों पर सहयोग बढ़ाने से क्षेत्रीय संपर्क मज़बूत होगा।
- आव्रजन और गतिशीलता कार्यढाँचे में सुधार: भारत को H-1B वीज़ा की सीमा बढ़ाने, ग्रीन कार्ड में छूट देने और भारतीय पेशेवरों के लिये सुव्यवस्थित कार्य परमिट के लिये वार्ता करनी चाहिये।
- दोहरी डिग्री कार्यक्रम और विश्वविद्यालय सहयोग की स्थापना से ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ सकता है।
- व्यावसायिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता को सुदृढ़ करने से कुशल कार्यबल की गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
- तीव्र वीज़ा प्रक्रिया सुनिश्चित करने तथा कार्य परमिट प्रतिबंधों को कम करने से भारतीय छात्रों एवं पेशेवरों को लाभ होगा।
- बहुपक्षीय और वैश्विक शासन सहभागिता का विस्तार: भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता एवं वैश्विक संस्थाओं में नेतृत्व की भूमिका के लिये अमेरिका से पूर्ण समर्थन प्राप्त करना चाहिये।
- विश्व व्यापार संगठन के कार्यढाँचे के भीतर वैश्विक व्यापार नीतियों को संरेखित करने से व्यापार असंतुलन कम हो जाएगा।
- आतंकवाद-प्रतिरोध, साइबर सुरक्षा और परमाणु निरस्त्रीकरण पर समन्वय से रणनीतिक संतुलन में वृद्धि होगी।
- वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा तथा विश्वमारी मोचन हेतु तैयारी पर सहयोग को मज़बूत करने से राजनयिक संबंध और गहरे हो सकते हैं।
- क्वाड, I2U2 और IPEF जैसे बहुपक्षीय समूहों में शामिल होने से भारत का वैश्विक प्रभाव मज़बूत हो सकता है।
- डिजिटल और डेटा गवर्नेंस सहयोग को मज़बूत करना: भारत को डिजिटल व्यापार प्रतिबंधों को कम करने के लिये अमेरिकी मानकों के साथ डेटा गोपनीयता नियमों को सुसंगत बनाने पर काम करना चाहिये।
- अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र तथा सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने से निवेश प्रवाह में वृद्धि होगी।
- साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे और AI शासन नीतियों को संरेखित करने से उभरती हुई तकनीकी सहयोग हेतु विश्वास में सुधार हो सकता है।
- फिनटेक विनियमन के लिये संयुक्त कार्यढाँचे का विकास डिजिटल वित्तीय सेवाओं का विस्तार कर सकता है।
- राजनयिक संलग्नता के माध्यम से द्विपक्षीय मतभेदों का समाधान: भारत को व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकार संबंधी मतभेदों को सक्रिय रूप से हल करने के लिये उच्च स्तरीय रणनीतिक वार्ता को संस्थागत बनाना चाहिये।
- ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 राजनयिक चैनलों को सुदृढ़ करने से सतत् संचार सुनिश्चित होगा।
- अमेरिकी राज्यों और भारतीय राज्यों के बीच विधायी एवं उप-राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार करने से स्थानीय साझेदारियाँ बढ़ सकती हैं।
- नीतिगत सिफारिशों को आकार देने के लिये थिंक टैंक और उद्योग समूहों को शामिल करने से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होगा।
- सांस्कृतिक और प्रवासी कूटनीति को बढ़ावा देना (क्रिकेट कूटनीति के माध्यम से, जैसा कि T20 वर्ल्ड कप- 2024 में देखा गया है) पारस्परिक सद्भावना को दृढ़ करेगा।
भारत और अमेरिका किन प्रमुख समूहों का हिस्सा हैं?
- क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता): एक स्वतंत्र, खुला और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिये जापान एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक साझेदारी।
- I2U2 (भारत-इज़रायल-UAE-USA): मध्य पूर्व में आर्थिक सहयोग, बुनियादी अवसंरचना, खाद्य सुरक्षा एवं स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करता है।
- इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF): व्यापार, आपूर्ति शृंखला, स्वच्छ ऊर्जा और भ्रष्टाचार विरोधी हेतु अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल, जिसके चार स्तंभों में से तीन में भारत शामिल है।
- G20: एक वैश्विक आर्थिक मंच जहाँ भारत और अमेरिका जलवायु कार्रवाई, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं वैश्विक वित्तीय स्थिरता पर सहयोग करते हैं।
- वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF): दोनों देश आतंकवाद के वित्तपोषण और धन शोधन विरोधी प्रयासों पर सहयोग करते हैं।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA): संवहनीय ऊर्जा संक्रमण और जैव ईंधन अंगीकरण के लिये संयुक्त प्रयास।
- आर्टेमिस समझौता: NASA के चंद्र और डीप स्पेस मिशनों के अंतर्गत अंतरिक्ष अन्वेषण सहयोग।
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हुई उच्च स्तरीय साझेदारी वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच उनकी रणनीतिक साझेदारी की समुत्थानशीलता को रेखांकित करती है। यद्यपि रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा सहयोग में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन व्यापार बाधाओं, रणनीतिक स्वायत्तता संबंधी चिंताओं एवं नियामक बाधाओं जैसी प्रमुख चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। संस्थागत कार्यढाँचों को मज़बूत करना, उभरती प्रौद्योगिकियों में सह-विकास को बढ़ावा देना और व्यापार असंतुलन का हल करना इस साझेदारी की पूरी क्षमता का सदुपयोग करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत-अमेरिका संबंधों की उभरती गतिशीलता पर चर्चा कीजिये, सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों और चुनौतियों पर प्रकाश डालिये। दोनों देश रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करते हुए व्यापार असंतुलन को किस प्रकार दूर कर सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न 1. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और मंहत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। |