भारत का आर्थिक परिदृश्य : चुनौतियाँ और अवसर
यह एडिटोरियल 16/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Five things the next government needs to focus on” लेख पर आधारित है। इसमें हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन और आगामी सरकार के लिये जिन प्रमुख पाँच क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, उन पर विचार किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:GDP, विवादास्पद कृषि कानून, विनिवेश, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII), NEP-2020, आर्थिक वृद्धि, चालू खाता, महामारी से प्रेरित व्यवधान, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI), पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान, भारतमाला प्रोजेक्ट, सागरमाला प्रोजेक्ट, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया 2.0, आत्मनिर्भर भारत अभियान, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों के महत्त्व की जाँच कीजिये। |
लगातार तीन वर्षों से 7% से अधिक की दर से भारत के आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के सूक्ष्म विश्लेषण की आवश्यकता है। वर्ष 2018-19 तक के पिछले पाँच वर्षों में अर्थव्यवस्था ने व्यापक वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुभव किया था, लेकिन उसके आगे के पाँच वर्षों में (वर्ष 2023-24) कोविड महामारी से प्रेरित व्यवधानों के कारण इसमें उल्लेखनीय मंदी देखी गई। यह सूक्ष्म विश्लेषण आगामी सरकार के नीतिगत एजेंडे के लिये एक महत्त्वपूर्ण आरंभिक बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है।
विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति क्या है?
- प्रबल वृद्धि: भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले दशक में प्रबल एवं प्रत्यास्थी वृद्धि प्रदर्शित की है, जहाँ यह विश्व स्तर पर 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ती हुई 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और भारत G20 देशों के बीच सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हुआ है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वित्त वर्ष 202-/25 के लिये भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.8% और वर्ष 2025-26 के लिये 6.5% रहने का अनुमान लगाया है।
- चालू खाता घाटा: आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार, भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 1% तक कम हो गया है, जिसका श्रेय प्रत्यास्थी सेवा निर्यात और तेल आयात लागत में कमी को दिया जाता है।
- विदेशी निवेश: प्रबल विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) अंतर्वाह ने विदेशी मुद्रा भंडार को लगभग 643 बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया है। वर्ष 2023-24 में FII अंतर्वाह 41 बिलियन डॉलर रहा था, जबकि इसके पिछले वर्ष 5.5 बिलियन डॉलर का शुद्ध बहिर्वाह हुआ था।
- अवसंरचनात्मक विकास: देश का अवसंरचनात्मक विकास भी उल्लेखनीय रहा है, जहाँ पिछले 9 वर्षों में 74 हवाई अड्डों का निर्माण किया गया है।
- सरकार ने अपने पूंजीगत व्यय (Capex) में व्यापक वृद्धि की है। वित्त वर्ष 24 के लिये कैपेक्स-जीडीपी अनुपात (Capex-to-GDP ratio) बढ़कर 3.3% हो गया और आगामी वित्तीय वर्ष में इसके 3.4% तक पहुँचने का अनुमान है।
- विनिर्माण क्षेत्र: विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता उपयोगिता 74% तक पहुँच रही है, जो दीर्घकालिक औसत के आसपास है और आगामी तिमाहियों में निजी पूंजीगत व्यय चक्र में संभावित तेज़ी के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।
- मुद्रास्फीति: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक के 6% के ऊपरी लक्ष्य बैंड से नीचे गिर गई है और अप्रैल 2024 में कोर मुद्रास्फीति 4% से नीचे बनी रही, जिसका मुख्य कारण सेवा क्षेत्र में अवस्फीति की स्थिति है
- शहरी बेरोज़गारी में कमी: वर्ष 2023-24 में अर्थव्यवस्था में 7.3% की अनुमानित दर से वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 22 में 9.1% और वित्त वर्ष 23 में 7.2% की वृद्धि दर पर आधारित थी। इसी अवधि में शहरी बेरोज़गारी दर में 6.6% की गिरावट देखी गई।
- ग्रामीण मांग: इसमें सकारात्मक रुझान दिख रहा है। नीलसन (Nielsen) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) की मात्रा वृद्धि 2.2% से बढ़कर वर्ष 2023 के उत्तरार्द्ध में 6.2% हो गई।
पिछले पाँच वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
- आर्थिक विकास में मंदी:
- कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में भारत में पर्याप्त आर्थिक गिरावट आई, जिससे विकास दर नकारात्मक हो गई।
- हालाँकि, वर्ष 2021 में अर्थव्यवस्था में प्रबल उछाल देखा गया, जहाँ लगभग 9% की वृद्धि दर दर्ज की गई। आगे के वर्षों में विकास दर लगभग 7% के आसपास स्थिर बनी रही है।
- बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार:
- कोविड-19 महामारी ने स्थिति को बदतर कर दिया, क्योंकि कई व्यवसाय बंद हो गए या उनका परिचालन कम हो गया, जिससे रोज़गार की हानि हुई।
- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, अप्रैल से जुलाई 2020 के बीच 1.8 करोड़ से अधिक वेतनभोगी नौकरियों की हानि हुई।
- अगस्त 2020 में बेरोज़गारी दर 7.4% थी, जबकि अगस्त 2019 में यह 5.4% रही थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की वर्ष 2021-22 की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 के लिये बेरोज़गारी दर 4.1% थी।
- कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में चुनौतियाँ:
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हाल की वृद्धि के बावजूद, कृषि क्षेत्र में समान रूप से प्रगति नहीं हुई है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों ने पिछले छह वर्षों में 4.6% की औसत वार्षिक वृद्धि दर का अनुभव किया है, जो किसानों की आय में पर्याप्त सुधार के लिये आवश्यक वांछित विकास दर से कम है।
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान समय के साथ घटता गया है। यह वर्ष 1990-91 में 35% था जो वित्त वर्ष 23 तक घटकर 15% रह गया।
- घरेलू उपभोग में मंदी और आय असमानता:
- आय असमानता के उच्च स्तर के कारण उपभोग मांग में गिरावट आती है, विशेष रूप से निम्न आय वर्ग के लिये, जिसके परिणामस्वरूप निवेश मांग कम हो जाती है तथा इससे विकास दर में आगे और गिरावट आती है।
- भारत का गिनी गुणांक, जो आय असमानता की एक माप है, वर्ष 2019-20 में 0.38 था, जो उल्लेखनीय आय असमानताओं को परिलक्षित करता है।
- अवसंरचना घाटा और निजी निवेश:
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
- निजी निवेश में लगातार कमी आई, जो वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 19.6% के निम्न स्तर तक पहुँच गई।
- भारत का अवसंरचना घाटा 1.4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, जिसमें परिवहन, ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना जैसे प्रमुख चिंता के क्षेत्र शामिल हैं।
- निजी निवेश में सुस्ती बनी हुई है, जहाँ वित्त वर्ष 2020-21 में निजी निगमों द्वारा सकल नियत पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation- GFCF) में -14.5% की गिरावट आई।
- नियत परिसंपत्ति अधिग्रहण में से निवासी उत्पादकों द्वारा किये गए निपटान को घटाकर GFCF की गणना की जाती है।
- नियत परिसंपत्तियाँ (Fixed assets) उत्पादन प्रक्रियाओं से प्राप्त मूर्त या अमूर्त परिसंपत्तियाँ हैं, जिनका उपयोग अन्य उत्पादन प्रक्रियाओं में कम से कम एक वर्ष तक बार-बार एवं निरंतर किया जाता है।
- भू-राजनीतिक तनावों के बीच निर्यात संबंधी चुनौतियाँ:
- भू-राजनीतिक तनाव, जैसे सीमा विवाद और व्यापार संघर्ष, वैश्विक व्यापार पैटर्न को बाधित कर सकते हैं।
- कपड़ा निर्यात जैसे उद्योगों में गिरावट देखी गई है और फुटवियर क्षेत्र में वैश्विक व्यापार में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है; हालाँकि भारत का निर्यात संकुचित हुआ है।
- इसके अलावा, वैश्विक दवा उद्योग में अग्रणी शक्ति बनने के भारत के प्रयास में बाधाएँ आ रही हैं। भारत की वृद्धि मांग के साथ तालमेल रखने में विफल रही है, जो 9 प्रतिशत पर पीछे रह गई है, जबकि वैश्विक बाज़ार में पिछले चार वर्षों में 12 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिये कौन-सी पहलें की गई हैं?
- नई आर्थिक नीति (New Economic Policy- NEP) 2020:
- NEP 2020 में 20 लाख करोड़ रुपए का वृहत प्रोत्साहन पैकेज शामिल है, जो सकल घरेलू उत्पाद के 10% के बराबर है, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों एवं खंडों को बढ़ावा देना है।
- इसके अतिरिक्त, नई नीति में कृषि, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, खनन, बिजली एवं कराधान से संबद्ध सुधारों की एक शृंखला शामिल है और इस नीति का उद्देश्य कोविड-19 संकट को झेलने के बाद भारत के आर्थिक परिदृश्य में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
- रणनीतिक विनिवेश :
- भारत ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSEs) के निजीकरण की दिशा में भी कदम बढ़ाया है, जो सरकार के स्वामित्व वाली या उसके द्वारा प्रबंधित निकाय हैं।
- निजीकरण के लक्ष्यों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता, लाभप्रदता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना, राजकोषीय बोझ को कम करना और विकासात्मक उद्देश्यों के लिये संसाधन जुटाना शामिल हैं।
- निजीकरण विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकता है, जिसमें विनिवेश (निजी निवेशकों को शेयर की बिक्री करना), रणनीतिक बिक्री (निजी खरीदारों को प्रबंधन नियंत्रण हस्तांतरित करना) या समापन (लाभहीन इकाइयों को बंद करना) शामिल हैं।
- वर्ष 1991 से अब तक भारत ने 60 से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण किया है और इस प्रक्रिया में 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जुटाई है।
- व्यापक श्रम संहिता:
- केंद्रीय श्रम कानूनों को चार मुख्य श्रेणियों—मज़दूरी/वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, में सुव्यवस्थित एवं समेकित करने के लिये चार संहिताएँ पेश की गई हैं।
- इन संहिताओं का उद्देश्य नियोक्ताओं को कार्यबल प्रबंधन में लचीलापन प्रदान करना, व्यवसायों के लिये पंजीकरण एवं अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना, अनौपचारिक श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार करना और ट्रेड यूनियनों तथा सामूहिक सौदेबाजी के प्रभाव को मज़बूत करना है।
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन: उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Initiative- PLI) का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना है।
- पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान: मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना के लिये पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान तैयार किया गया है।
- भारतमाला परियोजना: यह पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी में सुधार का लक्ष्य रखती है।
- स्टार्ट-अप इंडिया: भारत में स्टार्ट-अप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ कार्यक्रम लॉन्च किया गया है।
- मेक इन इंडिया 2.0: मेक इन इंडिया 2.0 का उद्देश्य भारत को वैश्विक डिज़ाइन एवं विनिर्माण केंद्र में परिणत करना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के वे संभावनाशील क्षेत्र कौन-से हैं जिन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है?
- रोज़गार के अवसर सृजित करना:
- रोज़गार सृजन, जो मुख्य रूप से निजी क्षेत्र द्वारा संचालित होता है, के लिये अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है।
- यद्यपि सरकार कुछ सीमा तक रिक्त पदों को भर सकती है, लेकिन स्थायी रोज़गार सृजन उपभोग आधारित विकास पर निर्भर करता है।
- इसलिये, उपभोग को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार सृजन में योगदान करेंगी।
- निजी निवेश का पुनरुद्धार करना:
- यद्यपि सरकार पूंजीगत व्यय, विशेषकर अवसंरचना विकास में सक्रिय रही है, निजी क्षेत्र की भागीदारी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- सड़क और रेलवे जैसे क्षेत्रों में निवेश ने विकास को गति दी है, लेकिन लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित निजी कंपनियों को अनुकूल माहौल की आवश्यकता है।
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना ने सीमित सफलता दिखाई है और विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को समर्थन देने के लिये इसका विस्तार किया जाना चाहिये।
- निवेश भत्ते (investment allowances) जैसे प्रोत्साहन प्रदान करने से भी निजी निवेश को उत्प्रेरित किया जा सकता है।
- कृषि सुधार:
- कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करना, विशेष रूप से विवादास्पद कृषि कानूनों के संदर्भ में, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- राज्य सहकारी समितियों के माध्यम से खेती में सरकार की भागीदारी और कृषि व्यापार नीतियों को स्पष्ट करने से किसानों को निश्चितता प्राप्त हो सकती है।
- इसके अलावा, बाज़ार व्यवधानों को कम करने के लिये खरीद एवं वितरण प्रक्रियाओं का मानकीकरण आवश्यक है।
- कृषि उत्पादों में वायदा कारोबार पर प्रतिबंध पर पुनर्विचार से बाजार की दक्षता एवं समग्र उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
- घरेलू उपभोग को बढ़ावा देना:
- घरेलू उपभोग में हालाँकि उतार-चढ़ाव दिखा है, लेकिन महामारी के बाद इसमें सुधार के संकेत मिले हैं।
- हालाँकि उपभोक्ता वस्तुओं की मांग अभी भी सुस्त बनी हुई है, जिसका आंशिक कारण अधिशेष क्षमता और उच्च मुद्रास्फीति है।
- उपभोग को बढ़ावा देने के लिये कर दरों पर पुनर्विचार करने और GST स्लैब को युक्तिसंगत बनाने जैसे राजकोषीय उपाय आवश्यक हैं।
- इसके अतिरिक्त, कर संरचना में सुधार के माध्यम से घटती घरेलू बचत को संबोधित करना भी आवश्यक है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण:
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की भागीदारी, विशेषकर वस्तु निर्यात में, एक रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता रखती है।
- निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते संपन्न करना आवश्यक है।
- यद्यपि आईटी क्षेत्र ने सेवा निर्यात में उत्कृष्टत प्रदर्शन किया है, संतुलित आर्थिक विकास के लिये वस्तु निर्यात पर बल देना भी आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों एवं अवसरों पर विचार कीजिये। संवहनीय एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने में विभिन्न क्षेत्रों के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर:(c) मेन्स:प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |