अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरें और भारत
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (Federal Reserve) की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने अपनी हालिया बैठक में नीतिगत निर्णय लेते हुए ब्याज दरों को अपरिवर्तित रहने दिया है। बेहतर आर्थिक विकास, एक मज़बूत श्रम बाज़ार और मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने ऐसा निर्णय लिया है।
महत्त्वपूर्ण क्यों?
- फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में परिवर्तन या अन्य फैसलों से न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि यह अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों पर एक निश्चित प्रभाव डालता है।
फेडरल रिज़र्व दरों का भारत पर प्रभाव
- भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ विकसित देशों (अमेरिका और कई यूरोपीय देश) की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दर रखती हैं।
- अत: वित्तीय संस्थान, विशेष रूप से विदेशी संस्थागत निवेशक ( Foreign Institutional Investors- FIIs), कम ब्याज दरों पर अमेरिका से पैसा उधार लेकर उस पैसे को अधिक ब्याज दर पर उभरते देशों के सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं।
- जब फेडरल रिज़र्व अपनी घरेलू ब्याज दरों को बढ़ाता है तो दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच अंतर कम हो जाता है, इस प्रकार भारतीय मुद्रा बाज़ार के लिए कम आकर्षक रह जाता है।
भारत पर असर?
इक्विटी मार्केट पर
- वैश्विक बाज़ार में डॉलर की कमी के कारण ‘बॉण्ड यील्ड’ बढ़ेगा।
- अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ और अन्य प्रमुख राष्ट्रों के बीच व्यापार युद्ध (Trade War), डॉलर के मज़बूत होने और अनिश्चितताओं के कारण पिछले साल भारत के ऋण और इक्विटी बाजारों से 40,000 करोड़ रुपए से अधिक पूंजी का बहिर्गमन हुआ।
निर्यात पर
रुपए की तुलना में मज़बूत डॉलर के होने से भारत के निर्यात, विशेष रूप से आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं को लाभ होगा। हालाँकि, निर्यात बाज़ार में मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा के कारण निर्यातकों को समान लाभ नहीं मिल सकता है।
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII)
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) एक निवेशक या निवेश निधि है जो उस देश के बाहर पंजीकृत है जिसमें वह निवेश कर रहा है। संस्थागत निवेशकों में विशेष रूप से हेज फंड, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड और म्यूचुअल फंड शामिल हैं।