पश्चिमी देशों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाने की कवायद
यह एडिटोरियल 12/06/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A chance to reboot relations with the West” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की कूटनीतिक संलग्नताओं की जटिलता की चर्चा की गई है, जिसमें वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच पश्चिम के साथ संबंधों का विस्तार करते हुए चीन के साथ संघर्ष और रूस के साथ सहयोग का प्रबंधन करना शामिल है।
प्रिलिम्स के लिये:रूस-यूक्रेन संघर्ष से संबंधित स्थान, जी7, पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC), यूरोपीय संघ, टाइगर ट्रायम्फ 2024, अमेरिका-चीन तकनीकी वियोजन, इंडो-पैसिफिक समृद्धि आर्थिक ढाँचा , संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली, प्रतिबंध अधिनियम के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का प्रतिकार (CAATSA)। मेन्स के लिये:भारत और पश्चिमी देशों के बीच टकराव के बिंदु, पश्चिम देशों के साथ बेहतर संबंधों का महत्त्व। |
भारत का कूटनीतिक परिदृश्य लगातार जटिल होता जा रहा है, जहाँ भारत को चीन के साथ अपने संघर्षों और रूस के साथ सहयोग को प्रबंधित करने के साथ ही पश्चिम के साथ अपने संबंधों का विस्तार करने की आवश्यकता है। जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन एवं उसके पड़ोसी देशों के बीच बढ़ते सैन्य तनाव के बीच यह संतुलन बनाना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।
G-7 सम्मेलनों के एक नियमित भागीदार के रूप में भारत के लिये ‘सामूहिक पश्चिम’ के साथ सहयोग को गहन करना उसके हित में है। चूँकि पश्चिम भी भारत को वैश्विक शासन संरचनाओं में शामिल करने की उत्सुकता रखता है, इसलिये आगामी G-7 शिखर सम्मेलन (इटली की मेजबानी में आयोजित) भारत के लिये पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को नया आकार देने के लिये एक प्रमुख अवसर प्रदान करता है।
G-7 क्या है?
- परिचय: G-7 औद्योगिक लोकतांत्रिक देशों—संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और यूनाइटेड किंगडम का एक अनौपचारिक समूह है, जो वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और अब हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे मुद्दों पर चर्चा करने के लिये प्रतिवर्ष बैठक करता है।
- इतिहास: संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, इटली, जापान, ब्रिटेन और पश्चिम जर्मनी ने वर्ष 1975 में छह देशों के समूह (Group of Six) का निर्माण किया था, जिसका उद्देश्य गैर-साम्यवादी देशों के लिये दबावपूर्ण आर्थिक चिंताओं से निपटने हेतु एक मंच प्रदान करना था। इन आर्थिक चिंताओं में पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) के तेल प्रतिबंध से उत्पन्न मुद्रास्फीति और मंदी शामिल थी।
- कनाडा वर्ष 1976 में इस समूह में शामिल हुआ।
- यूरोपीय संघ (EU) ने वर्ष 1981 से G-7 में एक ‘गैर-प्रगणित’ सदस्य (non enumerated member) (यानी वह सम्मेलन की मेजबानी और अध्यक्षता नहीं करता) के रूप में पूर्ण भागीदारी की है।
- रूस वर्ष 1998 से 2014 तक इस मंच का सदस्य रहा, जब इस समूह को आठ देशों के समूह (G-8) के रूप में से जाना जाता था। यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर रूस के कब्जे के बाद उसकी सदस्यता निलंबित कर दी गई।
- सचिवालय: G-7 का कोई औपचारिक चार्टर या सचिवालय नहीं है।
- इसकी अध्यक्षता प्रत्येक वर्ष सदस्य देशों के बीच बारी-बारी वितरित होती है और अध्यक्ष देश द्वारा उस वर्ष का एजेंडा तय किया जाता है।
- G-7 का 50वाँ शिखर सम्मेलन इटली के अपुलिया के फसानो शहर में (13 से 15 जून) आयोजित किया जाएगा जिसमें भारत को भी आमंत्रित किया गया है।
भू-राजनीतिक संदर्भ में ‘पश्चिम’ (West) का क्या अर्थ है?
- भौगोलिक क्षेत्र: परंपरागत रूप से, पश्चिम से तात्पर्य पश्चिमी यूरोप और उसके उपनिवेशित क्षेत्रों (मुख्यतः उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलेशिया) से था।
- पूर्वी यूरोप को इसमें शामिल करने के संबंध में बहस जारी है, जहाँ कुछ लोग इसे पूर्व सोवियत प्रभाव क्षेत्र का अंग मानते हैं।
- हालाँकि, अब यह परिभाषा इतनी स्पष्ट नहीं रह गई है। विश्व की बढ़ती हुई अंतर्संबंधता ‘पश्चिम’ और ‘पूर्व’ के बीच स्पष्ट अंतर को चुनौती देती है।
- सांस्कृतिक विशेषताएँ:
- ग्रीको-रोमन विरासत: पश्चिमी संस्कृति प्राचीन ग्रीस और रोम की दार्शनिक एवं राजनीतिक परंपराओं से व्यापक रूप से प्रभावित है तथा तर्क, विवेक एवं व्यक्तिगत अधिकारों पर बल देती है।
- ईसाई धर्म: जबकि धार्मिक अभ्यास अधिक विविध हो गए हैं, ईसाई धर्म (विशेष रूप से कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट धर्म) ने पश्चिमी मूल्यों और संस्थाओं को महत्त्वपूर्ण रूप से आकार प्रदान किया है।
- राजनीतिक और आर्थिक प्रणालियाँ:
- लोकतंत्र: व्यक्तिगत ‘फ्रीडम’ एवं ‘लिबर्टी’ के साथ प्रतिनिधि सरकार की अवधारणा पश्चिमी राजनीतिक प्रणालियों की आधारशिला है।
- पूंजीवाद: अधिकांश पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ निजी स्वामित्व और प्रतिस्पर्द्धा वाली मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था की विशेषता रखती हैं।
- विधि का शासन: पश्चिमी देश स्थापित विधि एवं प्रक्रियाओं पर आधारित विधिक प्रणाली पर बल देते हैं, जो निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
भारत को पश्चिम के साथ अपने संबंधों को पुनःस्थापित करने की आवश्यकता क्यों है?
- चीन की चुनौती का प्रबंधन: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और भारत के साथ सीमा पर तनाव एक गंभीर चुनौती है।
- पश्चिमी देश, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन को एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं।
- भारत-पश्चिम संबंधों में सुधार से आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से चीन की बहुआयामी चुनौती के प्रबंधन में बेहतर समन्वय संभव हो सकेगा।
- भारत और अमेरिका ने हाल ही में संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘टाइगर ट्रायम्फ 2024’ का आयोजन किया, जो सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर परस्पर सहयोग की इच्छा को प्रदर्शित करता है।
- रूस के साथ संबंधों में संतुलन: रक्षा सहयोग सहित अन्य क्षेत्रों में रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध पश्चिम के साथ टकराव का विषय रहे हैं, विशेष रूप से यूक्रेन संघर्ष के परिदृश्य में, जहाँ भारत ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूसी कच्चे तेल के आयात में पर्याप्त वृद्धि की है।
- संबंधों को नया आकार देने से भारत को अपना रुख बेहतर ढंग से समझा सकने में मदद मिलेगी, साथ ही ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर दोनों पक्षों को साझा आधार तलाश सकने में भी सहायता प्राप्त होगी।
- अमेरिका-चीन प्रौद्योगिकीय वियोजन का प्रबंधन: अमेरिका-चीन के बीच बढ़ता प्रौद्योगिकीय युद्ध (tech wars) और AI एवं 5G जैसी प्रौद्योगिकियों का द्विभाजन भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- इस क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष बने रहने से भारत की प्रौद्योगिकीय आकांक्षाओं और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- संबंधों की पुनःस्थापना से भारत को संतुलित दृष्टिकोण अपनाने और अमेरिकी एवं पश्चिमी प्रौद्योगिकियों तक पहुँच बनाने के साथ ही अपने बाज़ार आकार का लाभ उठाते हुए अनुकूल शर्तों पर बातचीत करने और अपनी सामरिक स्वायत्तता की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
- वैश्विक व्यापार वास्तुकला को पुनराकार देना: WTO की चुनौतियों और ‘समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचे’ (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity) जैसी बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के उदय के साथ, वैश्विक व्यापार व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आ रहा है।
- चूँकि पश्चिम अपने हितों के अनुरूप नियम-आधारित ढाँचा बनाने का लक्ष्य रखता है, भारत को भी सक्रिय रूप से इसमें शामिल होना चाहिये ताकि डेटा स्थानीयकरण, ई-कॉमर्स और डिजिटल कराधान जैसे मुद्दों पर उसकी चिंताओं का समाधान सुनिश्चित हो सके।
- संबंधों के नवीकरण से भारत डिजिटल युग के लिये व्यापार नियमों को नया स्वरूप देने में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण की भू-राजनीति में आगे बढ़ना: जलवायु परिवर्तन रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का क्षेत्र बनता जा रहा है, जहाँ पश्चिमी देश नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज़ी से संक्रमण करने और ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ एवं ‘कार्बन कैप्चर’ जैसी प्रौद्योगिकियों के संभावित शस्त्रीकरण (weaponization of technologies) पर ज़ोर दे रहे हैं।
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा संबंधी अनिवार्यताएँ और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (फ्राँस के साथ) जैसी पहलों में इसका नेतृत्व इसे एक महत्त्वपूर्ण साझीदार बनाता है।
- संशोधित साझेदारी जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ऊर्जा परिवर्तन के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण को सुगम बना सकती है।
- क्षेत्रीय संपर्क पर सहयोग: एकीकृत क्षेत्रीय संपर्क ढाँचे के लिये भारत का दृष्टिकोण (जैसे ‘भारत-मध्यपूर्व-यूरोप कॉरिडोर’ जैसी पहलों के माध्यम से) वित्तपोषण, क्षमता निर्माण और व्यापक नियम-आधारित व्यवस्था के साथ तालमेल के लिये पश्चिमी सहयोग की आवश्यकता रखता है।
भारत और पश्चिम के बीच टकराव के प्रमुख विषय
- वैश्विक शासन और सुधार पर मतभेद: भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और विश्व बैंक जैसी वैश्विक शासन संस्थाओं में सुधार की मांग करता रहा है, ताकि ये बदलते शक्ति समीकरण को प्रतिबिंबित कर सकें।
- लेकिन पश्चिम के कुछ देश ऐसे सुधारों का समर्थन करने के प्रति अनिच्छुक रहे हैं जो इन निकायों में उसके प्रभाव को कम कर देंगे। इससे भारत की वृहत वैश्विक भूमिका पाने की आकांक्षाओं के साथ एक टकराव उत्पन्न होता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर भारत का रुख और जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के इसके प्रयासों के कारण प्रायः पश्चिमी दवा कंपनियों तथा सरकारों के साथ तनाव पैदा होता है।
- संभावित विचलन या लीकेज की चिंता के कारण पश्चिमी देश भारत को संवेदनशील प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के प्रति भी सतर्क बने रहे हैं।
- रणनीतिक स्वायत्तता बनाम संरेखण संबंधी अपेक्षाएँ: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की खोज, जो इसकी गुटनिरपेक्ष विरासत में निहित है, प्रायः रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर निकट संरेखण की पश्चिमी अपेक्षाओं से टकराव रखती है।
- पश्चिम भारत के बहुपक्षीय दृष्टिकोण को पक्षधरता की अनिच्छा के रूप में देखता है, जबकि भारत इसे सर्वपक्षीय दृष्टिकोण वाली व्यावहारिक विदेश नीति के रूप में देखता है (जो इसके प्रभाव और समझौता वार्ता की शक्ति को सुरक्षित रखती है)।
- क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति भिन्न दृष्टिकोण: क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण, विशेष रूप से अपने पड़ोस में, कभी-कभी पश्चिमी दृष्टिकोण से भिन्न प्रकट हुआ है।
- उदाहरण के लिये, म्याँमार के राजनीतिक संकट में हस्तक्षेप करने की भारत की अनिच्छा या अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के प्रति भारत के सतर्क रुख ने पश्चिमी नीतियों और अपेक्षाओं के साथ टकराव पैदा किया।
- खालिस्तान का मुद्दा: कनाडा और यूके जैसे पश्चिमी देशों में प्रवासी भारतीयों के कुछ तत्वों द्वारा खालिस्तान आंदोलन का पुनरुत्थान टकराव का एक गंभीर स्रोत बन गया है।
- भारत ने इन देशों पर भारत विरोधी गतिविधियों के लिये मंच उपलब्ध कराने तथा खालिस्तान समर्थक तत्वों को आश्रय देने का आरोप लगाया है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा हो रहा है।
- रक्षा सहयोग और शस्त्र निर्यात: रूस के साथ भारत का रक्षा सहयोग और S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली जैसी रूसी हथियार प्रणालियों की खरीद, पश्चिम के साथ (विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ) टकराव का स्रोत रही है।
- पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है। हालाँकि भारत को CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के अंतर्गत छूट प्रदान की गई थी, लेकिन हाल के समय में चिंताओं का पुनः उभार हुआ है।
भारत और पश्चिम अपने मतभेदों को किस प्रकार सुलझा सकते हैं?
- बहुपक्षीय प्रौद्योगिकी गठबंधन की स्थापना करना: भारत और पश्चिमी देश एक बहुपक्षीय प्रौद्योगिकी गठबंधन (Plurilateral Tech Alliance) के निर्माण पर विचार कर सकते हैं, जो AI, क्वांटम कंप्यूटिंग एवं साइबर सुरक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये मानकों के विकास एवं निर्धारण पर केंद्रित हो।
- यह गठबंधन समान अवसर सुनिश्चित करते हुए और भागीदार पक्षों के रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए संयुक्त अनुसंधान, ज्ञान साझाकरण और विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के सह-विकास को सुगम बना सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु नवाचार कोष का निर्माण करना: जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण पर टकराव को दूर करने के लिये, भारत और पश्चिमी देश संयुक्त रूप से स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के अनुसंधान, विकास एवं क्रियान्वयन को वित्तपोषित करने और उसमें तेज़ी लाने के लिये एक समर्पित कोष का निर्माण कर सकते हैं।
- यह कोष ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर, संवहनीय विमानन ईंधन और जलवायु-प्रत्यास्थी अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में क्रियान्वित परियोजनाओं का समर्थन कर सकता है, सहयोग को बढ़ावा दे सकता है और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं जलवायु वित्त संबंधी चिंताओं का शमन कर सकता है।
- उत्तरदायी अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये संयुक्त ढाँचा: अंतरिक्ष अन्वेषण एवं वाणिज्यीकरण में तेज़ी के साथ, भारत और पश्चिमी देश उत्तरदायी अंतरिक्ष अन्वेषण एवं प्रशासन के लिये एक संयुक्त ढाँचा विकसित कर सकते हैं।
- यह ढाँचा अंतरिक्ष संसाधनों के संवहनीय उपयोग, अंतरिक्ष मलबे की रोकथाम और अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग जैसे मुद्दों को संबोधित कर सकता है तथा प्रत्येक भागीदार के रणनीतिक हितों का सम्मान करते हुए सहयोग को बढ़ावा दे सकता है।
- क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर ध्यान केंद्रित करना: यद्यपि एक अखिल भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, फिर भी भारत यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ हाल ही में संपन्न TEPA की तर्ज पर विशिष्ट देशों के साथ लघु क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की संभावना तलाश सकता है।
- इससे तीव्र प्रगति संभव होगी और विविध आर्थिक हितों की पूर्ति होगी।
- मुद्दा-आधारित संरेखण: भारत को कुछ क्षेत्रों के लिये ‘मुद्दा-आधारित संरेखण’ ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है, जो अन्य विषयों पर भारत के स्वतंत्र रुख का सम्मान करते हुए परस्पर चिंता के क्षेत्रों में सहयोग का अवसर प्रदान करेगा।
- भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के बारे में मिथ्या धारणाओं एवं चिंताओं को दूर करने के लिये और पारदर्शिता एवं खुला संचार सुनिश्चित करने के लिये संवाद तंत्रों की स्थापना की जानी चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और रणनीतिक अनिवार्यताओं के परिप्रेक्ष्य में, भारत के लिये अपने हितों को पश्चिमी देशों के साथ संरेखित करने में निहित चुनौतियों और अवसरों का मूल्यांकन कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ ‘नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्राें के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्य योजना’ नामक सौदे पर हस्ताक्षर किये हैं? (a) जापान उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के निम्नलिखित राष्ट्रपतियों में से कौन कुछ समय के लिये गुटनिरपेक्ष आंदोलन के महासचिव भी थे? (2009) (a) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन उत्तर: (c) |