जल की कमी का समाधान
यह एडिटोरियल 07/09/2023 को ‘हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘India is staring at water poverty’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में जल की कमी के आसन्न खतरे और इसके समाधान के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये: दक्षिण-पश्चिम मानसून, विश्व बैंक, अल नीनो, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), UNICEF, IoT, AI, रिमोट सेंसिंग, आर्द्रभूमि, गन्ना, सूक्ष्म सिंचाई तकनीक, राष्ट्रीय जल नीति, 2012, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल शक्ति अभियान- कैच द रेन अभियान, अटल भूजल योजना, प्रति बूँद अधिक फसल मेन्स के लिये: भारत में जल की कमी के कारण, जल की कमी के प्रभाव, इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम और आगे की राह। |
भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, जून-अगस्त 2023 के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून (South-West monsoon) देश के 42% ज़िलों में सामान्य से नीचे रहा है। अगस्त माह में देश में वर्षा सामान्य से 32% कम हुई, जबकि दक्षिणी राज्यों में यह 62% कम रही। इसे भारत में पिछले 122 वर्षों में (यानी वर्ष 1901 के बाद से अब तक) अगस्त माह में सबसे कम वर्षा के रूप में दर्ज़ किया गया। दक्षिण-पश्चिम मानसून के समाप्त होने में अब जबकि केवल एक माह शेष रह गया है, वर्षा की इस कमी से न केवल कृषि क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इससे देश के विभिन्न क्षेत्रों में जल की भारी कमी उत्पन्न हो सकती है।
संबंधित आँकड़े:
- भारत में एक वर्ष में उपयोग किये जा सकने वाले जल की शुद्ध मात्रा 1,121 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) अनुमानित है। हालाँकि, जल संसाधन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आँकड़ों से पता चलता है कि जल की कुल माँग वर्ष 2025 में 1,093 bcm और वर्ष 2050 में 1,447 bcm तक पहुँच सकती है।
- इसका अर्थ यह है कि अगले 10 वर्षों में भारत में जल की भारी कमी उत्पन्न होगी।
- फाल्कनमार्क जल सूचकांक (Falkenmark Water Index)—जो विश्व भर में जल की कमी के मापन के लिये उपयोग किया जाता है, के अनुसार जहाँ भी प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल की उपलब्ध मात्रा 1,700 क्यूबिक मीटर से कम है, वहाँ जल की कमी की स्थिति है।
- इस सूचकांक के अनुसार, भारत में लगभग 76% लोग पहले से ही जल की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं।
तमिलनाडु का मामला:
तमिलनाडु—जो प्रति व्यक्ति उपलब्धता के मामले में जल की कमी वाले राज्यों में से एक है, में वर्ष 1990-91 के पहले से ही जल की मांग इसकी आपूर्ति से अधिक रही है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2004 में तमिलनाडु की जल की कुल आवश्यकता 31,458 मिलियन क्यूबिक मीटर (mcm) थी, लेकिन आपूर्ति केवल 28,643 mcm थी। इसका अर्थ यह है कि तमिलनाडु पिछले 30 वर्षों से जल की कमी का सामना कर रहा है।
भारत में जल की कमी के पीछे के प्राथमिक कारण:
- वर्षा का असमान वितरण: भारत में वर्षा के असमान वितरण की स्थिति पाई जाती है, जहाँ अधिकांश वर्षा मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में प्राप्त होती है। केरल और मेघालय जैसे राज्यों में अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि राजस्थान और गुजरात जैसे शुष्क क्षेत्रों में जल की लगातार कमी बनी रहती है।
- 1 सितंबर, 2023 तक संचयी वर्षा दीर्घकालिक औसत से 11% कम दर्ज की गई।
- भूजल का अत्यधिक दोहन: सिंचाई, औद्योगिक क्षेत्र और घरेलू उद्देश्यों के लिये भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण जलभृतों (aquifers) का ह्रास हुआ है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपने भूजल संसाधनों का खतरनाक दर से अत्यधिक दोहन कर रहा है, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड ने जून 2022 में बताया कि पंजाब का ऊपरी 100 मीटर का भूजल वर्ष 2029 तक समाप्त हो जाएगा।
- वर्ष 2039 तक 300 मीटर की पहुँच तक भूजल समाप्त हो जाएगा।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड ने जून 2022 में बताया कि पंजाब का ऊपरी 100 मीटर का भूजल वर्ष 2029 तक समाप्त हो जाएगा।
- अकुशल जल प्रबंधन: अकुशल जल प्रबंधन अभ्यास—जैसे सिंचाई प्रणालियों में जल की बर्बादी, जल भंडारण अवसंरचना की कमी और जल स्रोतों का अपर्याप्त रखरखाव—जल की कमी में योगदान करते हैं।
- विश्व बैंक ने बताया है कि भारत अपने सिंचाई जल का 50% से अधिक अक्षमताओं के कारण गँवा देता है।
- तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण: शहरीकरण और औद्योगिक विकास के कारण शहरों और औद्योगिक केंद्रों में जल की मांग बढ़ गई है। नीति आयोग (NITI Aayog) के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बढ़ती आबादी और शहरी विस्तार के कारण कई भारतीय शहर जल की कमी से जूझ रहे हैं।
- जल स्रोतों का प्रदूषण: नदियों, झीलों और भूजल स्रोतों का प्रदूषण जल की कमी की समस्या को और बढ़ा देता है। जल प्रदूषण मानव और पर्यावरणीय उपयोग के लिये उपलब्ध जल की गुणवत्ता एवं मात्रा को प्रभावित करता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) ने पाया कि गंगा और यमुना सहित भारत की कई प्रमुख नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं, जिससे जल की गुणवत्ता और उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बदलते मौसम पैटर्न और बढ़ते तापमान का जल संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अनियमित मानसून, लंबे समय तक सूखे की स्थिति और वर्षा के बदलते पैटर्न ने विभिन्न भूभागों में जल की उपलब्धता को बाधित कर दिया है।
- ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित अल-नीनो (El Nino), जो प्रायः भारत में वर्षा की मात्रा को कम कर देता है, हाल के वर्षों में ‘न्यू नॉर्मल’ बनता जा रहा है।
- कृषि के लिये जल का अकुशल उपयोग: भारत में कृषि क्षेत्र जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो कुल जल उपयोग में लगभग 85% हिस्सेदारी रखता है। अधिकांश सिंचाई विधियाँ पुरानी और बेकार हो गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप निम्न जल उत्पादकता और उच्च जल हानि की स्थिति बनती है। इसके अलावा, गन्ना, कपास और धान जैसी जल-गहन (water-intensive) फसलों की खेती गिरते जल स्तर वाले क्षेत्रों में अब भी लगातार जारी है।
- इन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और बिजली सब्सिडी प्रदान करने की सरकारी नीतियाँ किसानों को जल के अत्यधिक उपयोग के लिये प्रोत्साहित करती हैं।
- पर्याप्त जल अवसंरचना का अभाव: भंडारण जलाशयों, नहरों और उपचार सुविधाओं सहित जल अवसंरचना में अपर्याप्त निवेश ने जल को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने और वितरित करने की क्षमता को सीमित कर दिया है।
- जनसंख्या वृद्धि: लगभग 1.4 बिलियन आबादी के साथ भारत विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश है। वर्ष 2050 तक यह जनसंख्या बढ़कर 1.7 बिलियन तक पहुँच सकती है। इससे देश में उपलब्ध सीमित जल संसाधनों पर भारी दबाव का निर्माण हो सकता है।
- अपर्याप्त नीति कार्यान्वयन: जल संरक्षण उपायों, भूजल नियमों और पर्यावरण संबंधी कानूनों के कमज़ोर कार्यान्वयन ने जल की कमी को दूर करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न की है।
भारत में जल की कमी के संभावित प्रभाव:
- स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: सुरक्षित पेयजल तक पहुँच की कमी से निर्जलीकरण, संक्रमण, बीमारियाँ और यहाँ तक कि मृत्यु जैसी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपर्याप्त जल आपूर्ति के कारण भारत में हर वर्ष लगभग 2 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत में विश्व की 18% आबादी निवास करती है, लेकिन इसके पास केवल 4% लोगों के लिये ही पर्याप्त जल संसाधन हैं। वर्ष 2023 में, लगभग 91 मिलियन भारतीय सुरक्षित जल तक पहुँच से वंचित होंगे।
- पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा: जल की कमी भारत में वन्यजीवों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिये भी खतरा पैदा करती है। कई वन्य पशुओं को जल की तलाश में मानव बस्तियों की ओर जाना पड़ता है, जिससे संघर्ष और संकट उत्पन्न हो सकता है। जल की कमी जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के पारिस्थितिक संतुलन को भी बाधित करती है।
- कृषि उत्पादकता में कमी: जल की कमी का कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो देश के 85% जल संसाधनों का उपभोग करता है। जल की कमी से फसल की पैदावार कम हो सकती है, खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है और किसानों में गरीबी बढ़ सकती है।
- आर्थिक हानि: जल की कमी भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है। जल की कमी औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित कर सकती है, ऊर्जा उत्पादन को कम कर सकती है और जल आपूर्ति एवं उपचार की लागत को बढ़ा सकती है। जल की कमी पर्यटन, व्यापार और सामाजिक कल्याण को भी प्रभावित कर सकती है।
- विश्व बैंक (2016) की ‘जलवायु परिवर्तन, जल और अर्थव्यवस्था’ (Climate Change, Water and Economy) शीर्षक रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि जल की कमी वाले देशों को वर्ष 2050 तक आर्थिक विकास में बड़े आघात का सामना करना पड़ सकता है।
सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम:
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- जल शक्ति अभियान – ‘कैच द रेन’ अभियान
- अटल भूजल योजना
- प्रति बूँद अधिक फसल (Per Drop More Crop)
जल की कमी को दूर करने के उपाय:
- अति-उपभोग को कम करना: जल की कमी का एक मुख्य कारण कृषि, उद्योग और घरों जैसे विभिन्न क्षेत्रों द्वारा जल का अत्यधिक एवं अकुशल उपयोग है। IoT, AI और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर जल की खपत का अधिक प्रभावी ढंग से मापन और इसका प्रबंधन किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, रिमोट सेंसिंग और उपग्रह निगरानी किसानों को मौसम की स्थिति और स्थानीय स्थलाकृति के आधार पर सिंचाई प्रक्रियाओं की योजना तैयार करने में मदद कर सकती है। इससे जल की बचत की जा सकती है और फसल उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- छत्तीसगढ़ के एक किसान प्रशांत मारू ने अपने खेत में IoT का उपयोग किया जिसके परिणामस्वरूप फसल की उपज में 20% की वृद्धि हुई और जल की खपत में कमी आई।
- इसके साथ ही, भारत को अपनी बिजली सब्सिडी नीतियों में सुधार करने की ज़रूरत है।
- उदाहरण के लिये, रिमोट सेंसिंग और उपग्रह निगरानी किसानों को मौसम की स्थिति और स्थानीय स्थलाकृति के आधार पर सिंचाई प्रक्रियाओं की योजना तैयार करने में मदद कर सकती है। इससे जल की बचत की जा सकती है और फसल उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- जल दक्षता में सुधार लाना: जल की कमी को दूर करने का एक अन्य तरीका जल प्रणालियों और अवसंरचना (जैसे वितरण नेटवर्क, उपचार संयंत्र और भंडारण सुविधा) के प्रदर्शन में सुधार लाना हो सकता है। जल रिसाव की मरम्मत करने, हानि को कम करने और उपकरणों को अपग्रेड करने के माध्यम से जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा जल की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, यूनिसेफ (UNICEF) ने जल रिसाव (water leakage) और संदूषण (contamination) को कम करने के लिये कई देशों में शहरी जल वितरण नेटवर्कों और उपचार प्रणालियों का पुनरुद्धार किया किया है।
- जल स्रोतों का विस्तार करना: जल के वैकल्पिक या अतिरिक्त स्रोतों का पता लगाया जाना चाहिये और इसके लिये वर्षा जल संचयन (rainwater harvesting), जलसेतु (aqueducts), अलवणीकरण (desalination), जल का पुन: उपयोग (water reuse) एवं उपयुक्त भूजल निष्कर्षण की दिशा में प्रयास किया जाना चाहिये। ये उपाय विभिन्न उद्देश्यों और स्थानों के लिये जल की उपलब्धता एवं पहुँच की वृद्धि कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, अलवणीकरण से तटीय क्षेत्रों में पेयजल और सिंचाई के लिये समुद्री जल को मीठे जल में परिवर्तित किया जा सकता है।
- जल संसाधनों की रक्षा करना: नदी, झील, आर्द्रभूमि, वन एवं मृदा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना और उन्हें पुनर्स्थापित करना, जो जल प्रदान करने और उनके विनियमन में योगदान करते हैं। ये पारिस्थितिक तंत्र जल चक्र (water cycle) को बनाए रखने, प्रदूषकों को फ़िल्टर करने, कटाव को रोकने और बाढ़ एवं सूखे को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उदाहरण के लिये, आर्द्रभूमियों की पुनर्स्थापना से अपवाह के संग्रहण और भूजल के संभरण के रूप में जल की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार किया जा सकता है।
- जल नीतियों में सुधार लाना: जल प्रबंधन और आवंटन को नियंत्रित करने वाली नीतियों एवं संबद्ध संस्थानों में सुधार किया जाए। इसमें जल के उपयोग, मूल्य निर्धारण और संरक्षण के लिये स्पष्ट नियम एवं प्रोत्साहन तय करना; हितधारकों की भागीदारी एवं सहयोग को बढ़ावा देना; निगरानी एवं प्रवर्तन बढ़ाना; और जल संबंधी मुद्दों को व्यापक विकास योजनाओं में एकीकृत करना शामिल है।
- उदाहरण के लिये, निम्न जल-गहन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन नीतियाँ शुरू करने से कृषि में जल के उपयोग पर दबाव कम हो सकता है।
- भारत को अपनी मौजूदा MSP व्यवस्था पर भी पुनर्विचार करने की ज़रूरत है जो धान और गन्ना जैसी उच्च जल-गहन फसलों की खेती को बढ़ावा देती है।
- सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का प्रयोग करना: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसे अभ्यासों का उपयोग कर न केवल जल की खपत को कम किया जा सकता है बल्कि उत्पादकता भी बढ़ाई जा सकती है।
- एमएस स्वामीनाथन समिति की ‘जल की प्रति बूँद अधिक फसल और आय’ (More Crop and Income Per Drop of Water) शीर्षक रिपोर्ट (2006) के अनुसार, ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई से फसल की खेती में लगभग 50% जल की बचत की जा सकती है और इससे फसलों की उपज 40-60% तक बढ़ सकती है।
- बरीड क्ले पॉट प्लांटेशन तकनीक’ (Buried Clay Pot Plantation Technique) का उपयोग करना: इस विधि की सफलता दर 90% है और इसकी दक्षता बहुत अधिक है, यहाँ तक कि इसे ड्रिप सिंचाई से भी बेहतर पाया गया है। चूँकि राजस्थान में वृक्षारोपण कठिन है और उत्तरजीविता चुनौतीपूर्ण है, यह विधि लवणीय मिट्टी और रेगिस्तानी परिस्थितियों में अत्यंत प्रभावी है। यह अत्यंत शुष्क वातावरण में भूमि पुनर्बहाली के लिये उपयोगी सिद्ध हुई है।
- मटका थिम्बक सिंचाई की एक प्राचीन विधि है जिसमें पौधों को जल देने के लिये सूक्ष्म छिद्रयुक्त मटकों का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में मटकों में जल भरकर इसे ज़मीन में गाड़ दिया जाता है, जहाँ केवल इसकी गर्दन मिट्टी के ऊपर उभरी रहती है।
- मटके से जल रिसता रहता है और धीरे-धीरे आसपास के पौधों तक फैल जाता है। ये मटके पौधों को कम से कम पाँच दिनों तक नमी और जल प्रदान कर सकते हैं।
- मटका थिम्बक सिंचाई की एक प्राचीन विधि है जिसमें पौधों को जल देने के लिये सूक्ष्म छिद्रयुक्त मटकों का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में मटकों में जल भरकर इसे ज़मीन में गाड़ दिया जाता है, जहाँ केवल इसकी गर्दन मिट्टी के ऊपर उभरी रहती है।
अभ्यास प्रश्न: भारत में जल की कमी में योगदान देने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं और इस गंभीर समस्या के समाधान के लिये कौन-सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (A) सही उत्तर है। प्रश्न 2. 'वाटर क्रेडिट' (WaterCredit) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
मेन्स:प्रश्न 1. जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (वर्ष 2020) प्रश्न 2. घटते जल-परिदृश्य को देखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके। (वर्ष 2020) |