प्रोजेक्ट नेत्र
चर्चा में क्यों?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने भारतीय उपग्रहों को मलबे (Debris) और अन्य खतरों से सुरक्षित रखने के लिये अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) प्रोजेक्ट नेत्र (Project NETRA) शुरू किया है।
प्रोजेक्ट का महत्त्व:
मानव के 50 वर्षों के अंतरिक्ष इतिहास में पृथ्वी की कक्षा के चारों तरफ घूमने वाली कचरे की एक खतरनाक पट्टी बन गई है।
- वर्तमान में ISRO के भूस्थैतिक कक्षा (36,000 किमी.) में 15 कार्यात्मक भारतीय संचार उपग्रह हैं; निम्न भू कक्षा (2,000 किमी.) में 13 रिमोट सेंसिंग उपग्रह तथा पृथ्वी की मध्यम कक्षा में आठ नेविगेशन उपग्रह स्थापित हैं।
- अंतरिक्ष में लगभग 17,000 मानव निर्मित वस्तुएँ मॉनीटर की जाती हैं जिनमें से 7% वस्तुएँ क्रियाशील हैं।
- एक समयावधि के बाद ये वस्तुएँ अक्रियाशील हो जाती हैं और अंतरिक्ष में घूर्णन करने के दौरान एक-दूसरे से टकराती रहती हैं। प्रत्येक वर्ष इन वस्तुओं के टकराने से लगभग 250 विस्फोट होते हैं जिसके फलस्वरूप मलबों (Debris) के छोटे-छोटे टुकड़े अत्यंत तीव्र गति से घूर्णन करते रहते हैं।
- अंतरिक्ष में उपस्थित निष्क्रिय उपग्रहों और रॉकेट के मलबे पृथ्वी की कक्षा में कई वर्षों तक विद्यमान रहते हैं और ये मलबे किसी सक्रिय उपग्रहों को क्षति पहुँचा सकते हैं।
- लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत वाली यह परियोजना, अन्य अंतरिक्ष शक्तियों वाले देशों की तरह भारत की अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता (Space Situational Awareness) क्षमता को बढ़ाएगी।
- इसका उपयोग मलबे से भारतीय उपग्रहों को होने वाले खतरों का अनुमान लगाने के साथ-साथ देश को मिसाइल या अंतरिक्ष हमले के खिलाफ एक चेतावनी देने के रूप में भी किया जा सकेगा।
- इसकी स्थापना पहले पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में की जाएगी जिसमें रिमोट सेंसिंग स्पेसक्राफ्ट (Remote Sensing Spacecraft) भी शामिल होगा।