एडिटोरियल (09 Oct, 2024)



हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के हितों की सुरक्षा

यह संपादकीय 08/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “The Chagos Treaty and Indian Ocean Security” पर आधारित है। यह लेख भारत के लिये चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता हस्तांतरण के सामरिक महत्त्व को प्रकट करते हुए मॉरीशस के साथ सहयोग संवर्द्धन के अवसरों पर प्रकाश डालता है। यह निरंतर अमेरिकी-ब्रिटेन सैन्य उपस्थिति और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से उत्पन्न चुनौतियों की ओर भी संकेत करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र, चागोस द्वीपसमूह, INS विक्रांत, सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, भारत की "एक्ट ईस्ट" और "नेबरहुड फर्स्ट" नीति, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन, चक्रवात इडाई, अबू धाबी में BAPS हिंदू मंदिर, चक्रवात रेमल, सागरमाला कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व, हिंद महासागर में भारत के समक्ष प्रस्तुत होने वाली प्रमुख चुनौतियाँ

चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता को हस्तांतरित करने के लिये मॉरीशस और संयुक्त राज्य (ब्रिटेन) के बीच हाल ही में हुआ समझौता हिंद महासागर क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है। भारत और मॉरीशस के बीच द्वीपसमूह की सामरिक अवस्थिति को देखते हुए यह घटनाक्रम भारत के लिये अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है। मॉरीशस के नियंत्रण में आने से समुद्री निगरानी, संसाधन दोहन और विकास में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ने की संभावनाएँ हैं।

यद्यपि, अगले 99 वर्षों तक डिएगो गार्सिया पर अमेरिका-ब्रिटेन की सैन्य मौजूदगी जारी रहने से स्थिति जटिल हो गई है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ पश्चिमी सैन्य पदचिह्नों की दीर्घकालिक मौजूदगी के कारण भारत को अपने हितों का संरक्षण करते हुए और हिंद महासागर में स्थिरता को प्रोत्साहित करते हुए अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करना होगा।

भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र का क्या महत्त्व है?

  • सामरिक समुद्री सुरक्षा: हिंद महासागर भारत की समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जो संभावित खतरों के विरुद्ध एक प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है तथा नौसैनिक शक्ति के प्रदर्शन के लिये एक मार्ग है।
    • भारत का समुद्री सिद्धांत इस क्षेत्र में "निवल सुरक्षा प्रदाता" के रूप में इसकी भूमिका पर बल देता है।
    • भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत INS विक्रांत का वर्ष 2022 में जलावतरण, इसकी नौसैनिक क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण रूप से अभिवर्द्धित करता है।
      • नौसेना प्रतिवर्ष 17 बहुपक्षीय और 20 द्विपक्षीय अभ्यास आयोजित करती है, जो समुद्री सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
    • वर्ष 2018 में स्थापित सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र ((IFC-IOR) भारत की समुद्री क्षेत्र जागरूकता और क्षेत्रीय सुरक्षा प्रयासों के समन्वय की क्षमता को और संवर्द्धित करता है।
  • आर्थिक जीवनरेखा: भारत का 80% बाह्य व्यापार और 90% ऊर्जा व्यापार इन्हीं समुद्री मार्गों से होता है।
    • इसके अतिरिक्त, हिंद महासागर के समुद्री व्यापार मार्ग महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखलाएँ हैं जो विश्व के लगभग 70% कंटेनर यातायात का प्रबंधन करती हैं।
    • केरल में विझिंजम जैसे गभीर जल पत्तनों के विकास का उद्देश्य हिंद महासागर में क्षेत्रीय पोतांतरण बाज़ार को अधिक अधिग्रहित करना है।
    • भारत की नीली अर्थव्यवस्था पहल, जिसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4% योगदान होने का अनुमान है, भारतीय महासागर संसाधनों के संवहनीय उपयोग पर केंद्रित है।
    • सितंबर 2023 में होने वाला समझौता भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), भारत की आर्थिक आकांक्षाओं में हिंद महासागर की भूमिका को और अधिक रेखांकित करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिये हिंद महासागर पर बहुत अधिक निर्भर करता है तथा इसका लगभग 80% कच्चा तेल आयात इसी जलमार्ग से होता है। 
    • देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के कारण ऊर्जा का संरक्षण आवश्यक हो गया है। हिंद महासागर में समुद्री संचार मार्ग (SLOC) महत्त्वपूर्ण हैं।
      • भारत के सामरिक तेल निक्षेप, जिनकी वर्तमान क्षमता 5.33 मिलियन टन है, आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में केवल 9.5 दिन की सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: हिंद महासागर भारत के लिये अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने तथा क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
    • "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" कार्यनीति के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये , भारत ने अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाई है और सेशेल्स, मॉरीशस और मालदीव जैसे देशों के साथ साझेदारी स्थापित की है।
    • भारत की "एक्ट ईस्ट" और "नेबरहुड फर्स्ट" नीतियाँ समुद्री संयोजकता पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
    • भारत सहित 23 सदस्य देशों वाला हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) क्षेत्रीय सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
    • भारत के सैन्य रसद समझौतों का विस्तार, जो अब क्षेत्र के 10 देशों को सम्मिलित करता है, इसकी सामरिक अभिगम्यता में अभिवृद्धि करता है।
  • पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन: हिंद महासागर भारत के जलवायु स्थिरता और आपदा प्रबंधन प्रयासों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा बढ़ते समुद्री स्तर और चरम मौसम की घटनाओं के प्रति संवेदनशील है।
    • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (INCOIS) महासागर अनुवीक्षण और पूर्व चेतावनी प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
    • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) जैसे पहलों में भारत का नेतृत्व, क्षेत्रीय आपदा रोधी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
    • प्राकृतिक आपदाओं के प्रति देश की तीव्र प्रतिक्रिया, जैसा कि वर्ष 2019 में चक्रवात इडाई के बाद मोज़ाम्बिक को दी गई सहायता में देखा गया, इस क्षेत्र में इसकी सॉफ्ट पावर को संवर्द्धित करती है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण: हिंद महासागर वैज्ञानिक अनुसंधान और संसाधन अन्वेषण के लिये विस्तारित अवसर प्रदान करता है, जो भारत की तकनीकी उन्नति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत के डीप ओशन मिशन का उद्देश्य गभीर समुद्र के संसाधनों का अन्वेषण और उनका दोहन करना है। भारत के मत्स्य 6000 (अक्तूबर 2024 के अंत में निर्धारित) का परीक्षण, जो 6,000 मीटर की गहराई तक पहुँचने में सक्षम मानवयुक्त पनडुब्बी है, गभीर समुद्र में अन्वेषण क्षमताओं में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
    • मध्य हिंद महासागर घाटी में भारत द्वारा निर्गत पॉलीमेटेलिक नोड्यूल अन्वेषण, जो 75,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है, उसे गभीर समुद्र में खनन के क्षेत्र में अग्रणी बनाता है।
  • सांस्कृतिक एवं प्रवासी संबंध: हिंद महासागर ऐतिहासिक रूप से सांस्कृतिक विनिमय का माध्यम रहा है, जिसने भारत की समुद्री विरासत और प्रवासी संबंधों को आकार दिया है।
    • हिंद महासागर के तटीय देशों में भारत के प्रवासी, द्विपक्षीय संबंधों और विप्रेषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • वर्ष 2014 में शुरू की गई मौसम परियोजना जैसी पहलों के माध्यम से प्राचीन समुद्री संबंधों को पुनर्जीवित करना भारत के सांस्कृतिक राजनय को सुदृढ़ करता है।
    • हाल ही में इसका उद्घाटन किया गया। फरवरी 2024 में अबू धाबी में बनने वाला BAPS हिंदू मंदिर, संयुक्त अरब अमीरात का पहला पारंपरिक हिंदू मंदिर, हिंद महासागर से संबंधित स्थायी सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के समक्ष प्रस्तुत होने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चीन का बढ़ता प्रभाव: हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के क्षेत्रीय प्रभाव के लिये एक बड़ी चुनौती बन गई है।
    • "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" कार्यनीति, जिसमें ग्वादर (पाकिस्तान), हंबनटोटा (श्रीलंका) और क्याउकप्यू (म्याँमार) जैसे पत्तनों में चीनी निवेश शामिल है, संभवतः भारत को घेरने की कोशिश है।
    • ज़िबूती में चीन का पहला विदेशी सैन्य अड्डा, जो वर्ष 2017 से सञ्चालन में है तथा क्षेत्र में इसकी बढ़ती नौसैनिक गतिविधियाँ कार्यनीतिक परिदृश्य को और जटिल बनाती हैं।
  • समुद्री सुरक्षा खतरे: भारत को समुद्री सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का लगातार सामना करना पड़ रहा है, जिनमें समुद्री डकैती, आतंकवाद और हिंद महासागर में अवैध मत्स्यन शामिल है।
    • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती में वर्ष 2023 में 20% की वृद्धि देखी गई, साथ ही समुद्री अवसंरचना पर साइबर हमले जैसे उभरते खतरे भी बढ़ रहे हैं।
    • दिसंबर 2023 में भारत के पश्चिमी तट के MV केम प्लूटो पर हमला समुद्री आतंकवाद की उभरती प्रकृति को रेखांकित करता है।
    • सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) जैसे समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाने के भारत के प्रयासों को विविध डेटा स्रोतों को एकीकृत करने और साझेदार देशों के बीच वास्तविक समय की सूचना साझा करने को सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • पड़ोसी देशों के साथ भू-राजनीतिक तनाव: कुछ हिंद महासागर पड़ोसी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व आकांक्षाओं के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
    • मालदीव के साथ हालिया राजनय विवाद के कारण मालदीव पर्यटन का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया।
    • यह घटना, इंडिया-आउट अभियान के साथ जलमाप चित्रण संबंधी सर्वेक्षण समझौते को नवीनीकृत न करने के मालदीव के निर्णय के साथ मिलकर, भारत और मालदीव के क्षेत्रीय संबंधों की भंगुरता को प्रदर्शित करता है।
      • यद्यपि भारत और मालदीव, मालदीव के राष्ट्रपति की हाल की भारत यात्रा के बाद अपने संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिये कार्य कर रहे हैं, फिर भी अभी एक लंबा रास्ता तय करना है तथा कई चिंताएँ भी शामिल हैं जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है।
    • इसी प्रकार, श्रीलंका के साथ चल रहा मछुआरों का मुद्दा, जिसमें केवल वर्ष 2023 में 200 से अधिक भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया है, विवाद का विषय बना हुआ है।
    • ये तनाव हिंद महासागर में स्थिर और सहयोगी पड़ोस देशों से अपने संबंधों के संधारण के भारत के प्रयासों को जटिल बनाते हैं।
  • संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा: हिंद महासागर के विशाल संसाधन तीव्र प्रतिस्पर्द्धा और संभावित संघर्ष का स्रोत बनते जा रहे हैं।
    • भारत के गभीर महासागर मिशन को चीन जैसे देशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिसने पहले ही दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर कटक क्षेत्र में अन्वेषण अधिकार प्राप्त कर लिया है
    • आर्थिक हितों को पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ संतुलित करने के भारत के प्रयासों को, जैसा कि नीली अर्थव्यवस्था ढाँचे के प्रति इसकी प्रतिबद्धता में देखा गया है, कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय ह्रास: हिंद महासागर क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है, जो भारत की तटीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है।
    • हिंद महासागर में समुद्र स्तर में वृद्धि का आधा कारण जल की मात्रा का विस्तार है, क्योंकि महासागर तेज़ी से गर्म हो रहा है।
    • चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता (जैसे मई 2024 में चक्रवात रेमल) भारत की आपदा प्रबंधन क्षमताओं पर दबाव डालती है।
    • प्लास्टिक अपशिष्टों सहित समुद्री प्रदूषण (WEF 2016 की रिपोर्ट के अनुसार हिंद महासागर में प्लास्टिक की दूसरी सबसे बड़ी मात्रा है), जैव विविधता और मत्स्य पालन के लिये खतरा है। भारत के प्रयास, जैसे कि वर्ष 2019 में शुरू किया गया राष्ट्रीय तटीय मिशन, बहु-एजेंसी प्रतिक्रियाओं के समन्वय और बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप के लिये पर्याप्त निधियन चुनौतियों का सामना करता है।
  • समुद्री अवसंरचना और संयोजकता अंतराल: महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद, भारत को अभी भी हिंद महासागर में अपनी स्थिति का पूर्ण लाभ उठाने के लिये पर्याप्त समुद्री अवसंरचना विकसित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • सागरमाला कार्यक्रम की प्रगति धीमी रही है तथा वर्ष 2023 तक कुल परियोजनाओं में से केवल 25% ही पूरी हो पाई हैं।
    • संयोजकता संबंधी समस्याएँ, विशेषकर अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह जैसे द्वीपीय क्षेत्रों के साथ, भारत की शक्ति प्रदर्शन और क्षेत्रीय संकटों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की क्षमता को सीमित करती हैं।
    • हाल ही में एक ट्रांसशिपमेंट हब की घोषणा की गई है। ग्रेट निकोबार द्वीप समूह, यद्यपि आशाजनक है, परंतु पर्यावरणीय चिंताओं और निधियन संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
  • गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे: हिंद महासागर में उभरते गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे भारत के लिये जटिल चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
    • इनमें समुद्री अवसंरचना के लिये साइबर सुरक्षा जोखिम शामिल हैं, जैसा कि वर्ष 2017 में जवाहरलाल नेहरू पत्तन न्यास पर रैनसमवेयर हमले से स्पष्ट है।
    • हिंद महासागर के मार्ग से मादक पदार्थों की तस्करी में वृद्धि हुई है तथा भारतीय जलक्षेत्र में लगभग 2,500 किलोग्राम उच्च शुद्धता वाला मेथम्फेटामाइन ज़ब्त किया गया है, जिसकी कीमत लगभग 15,000 करोड़ रुपये है, जिससे विधिक प्रवर्तन क्षमता पर दबाव पड़ा है।
    • अवैध, गैर-सूचित और अविनियमित (IUU) मत्स्यन की जारी चुनौती के लिये उन्नत निगरानी और प्रवर्तन तंत्र की आवश्यकता है।
  • विविध सामरिक साझेदारियों में संतुलन: भारत की चुनौती हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रमुख सहयोगियों को अलग-थलग किये बिना या अपनी स्वायत्तता से समझौता किये बिना अपनी सामरिक साझेदारियों में संतुलन बनाए रखने में निहित है।
    • अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ-साथ चीन के विरूद्ध संभावित रोकथाम कार्यनीतियों के विषय में चिंताएँ भी बढ़ाती है।
    • ब्रिक्स और SCO जैसे समूहों में भारत की भागीदारी, जिसमें चीन और रूस भी शामिल हैं, के लिये सावधानीपूर्वक राजनय संबंधी मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
    • चागोस द्वीपसमूह, जिसमें डिएगो गार्सिया भी शामिल है, के संबंध में मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच हाल ही में हुआ समझौता भारत के लिये महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। 
      • जबकि मॉरीशस को संप्रभुता का हस्तांतरण संभावित रूप से भारतीय प्रभाव के लिये नए मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिसके अंतर्गत 99 वर्षों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका-ब्रिटिश सैन्य अड्डे के गारंटीकृत संचालन से पश्चिमी उपस्थिति जारी रहेगी

हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ करने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • समुद्री अवसंरचना विकास का संवर्द्धन: भारत को अपने सागरमाला कार्यक्रम में तेज़ी लानी चाहिये तथा संयोजकता और आर्थिक गतिविधि को वर्द्धित करने वाली प्रमुख परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • म्याँमार में सित्तवे पत्तन तक अभिगम्यता प्राप्त हो गई है, जो कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
      • 72,000 करोड़ रुपये के नियोजित निवेश के साथ ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट हब के विकास को तीव्र करने से सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण मलक्का जलडमरूमध्य में भारत की समुद्री क्षमताओं में काफी वृद्धि होगी।
  • नौसेना क्षमताओं में वृद्धि: भारत को अपने नौसेना आधुनिकीकरण कार्यक्रम में तेज़ी लानी चाहिये तथा समुद्री और तटीय क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • इसमें INS विक्रांत जैसे अधिक स्वदेशी विमानवाहक पोतों के उत्पादन में तीव्रता तथा पनडुब्बी बेड़े, विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों का विस्तारण शामिल है।
    • मानवरहित प्रणालियों, जैसे कि स्वायत्त जलमग्न संचारित वाहन (AUV) और समुद्री गश्ती ड्रोन में निवेश करने से निगरानी क्षमताओं में काफी वृद्धि हो सकती है।
    • हाल ही में 97 तेजस हल्के लड़ाकू विमान की अधिप्राप्ति के लिये दी गई मंजूरी (दिसंबर 2023) भारत की अपनी वायु शक्ति को वर्द्धित करने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है, जो हिंद महासागर में समुद्री क्षेत्र जागरूकता और शक्ति प्रक्षेपण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सामरिक साझेदारी का विस्तार: भारत को हिंद महासागर के प्रमुख देशों और क्षेत्र से बाहर की शक्तियों के साथ सामरिक साझेदारी को सुदृढ़ करना जारी रखना चाहिये।
    •  फरवरी 2023 में घोषित भारत-फ्राँस-संयुक्त अरब अमीरात त्रिपक्षीय पहल ऐसी साझेदारी का एक प्रमुख उदाहरण है।
    • भारत को अन्य देशों के साथ भी इसी प्रकार की व्यवस्था पर कार्य करना चाहिये, जिसमें संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, खुफिया जानकारी साझा करने और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिये श्रीलंका के साथ हाल ही में हुआ समझौता प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार सामरिक साझेदारी से ठोस आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
    • अक्तूबर 2024 में भारत-मालदीव की हालिया चर्चाओं के परिणामस्वरूप प्रमुख समझौते हुए, जिनमें 30 अरब रुपये और 400 मिलियन अमरीकी डॉलर का मुद्रा विनिमय सौदा, मुक्त व्यापार समझौता (FTA) चर्चाएँ और विधि प्रवर्तन सहयोग तथा अवसंरचना परियोजनाएँ जैसे मालदीव तटरक्षक पोत की मरम्मत, रुपे कार्ड का शुभारंभ एवं हनीमाधू विमानपत्तन पर 700 आवास इकाइयों और एक नए रनवे का उद्घाटन शामिल हैं। 
      • ये घटनाक्रम क्षेत्र में संवहनीय सहभागिता के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
  • समुद्री क्षेत्र जागरूकता का सुदृढ़ीकरण: भारत को तटीय रडार स्टेशनों के नेटवर्क का विस्तार करके तथा उन्नत उपग्रह और एआई-आधारित निगरानी प्रणालियों को एकीकृत करके अपनी समुद्री क्षेत्र जागरूकता क्षमताओं को और अधिक विकसित करना चाहिये।
    • सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) को वास्तविक समय डेटा प्रसंस्करण क्षमताओं के साथ उन्नत किया जाना चाहिये और हिंद महासागर के अधिक तटीय राज्यों के साथ साझेदारी का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र जागरूकता (NMDA) ग्रिड जैसी परियोजनाओं का कार्यान्वयन, जिसका उद्देश्य नौसेना और तट रक्षक स्टेशनों को आपस में जोड़ना है, भारत की स्थितिजन्य जागरूकता को महत्त्वपूर्ण रूप से संवर्द्धित कर सकता है।
    • इसरो के ओशनसैट-3 उपग्रह का हाल ही में किया गया प्रमोचन इस दिशा में एक कदम है और इसके बाद अधिक विशिष्ट समुद्री निगरानी उपग्रहों का प्रमोचन किया जाना चाहिये।
  • सामरिक द्वीप क्षेत्रों का विकास: भारत को अपने सामरिक द्वीप क्षेत्रों, विशेष रूप से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एवं लक्षद्वीप के विकास में तेज़ी लानी चाहिये।
    • इसमें सैन्य अवसंरचना का वर्द्धन, संयोजकता में सुधार और संवहनीय आर्थिक विकास का संवर्द्धन शामिल है।
    • अन्य द्वीपों में भी सामरिक पहल की जानी चाहिये, जिसमें दोहरे उपयोग वाली हवाई पट्टियों और नौसैनिक सुविधाओं का विकास शामिल है। इन क्षेत्रों के लिये एकीकृत द्वीप प्रबंधन योजनाओं का कार्यान्वयन, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के साथ सामरिक हितों को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • समुद्री साझेदारी का विस्तार: भारत को हिंद महासागर के तटीय राज्यों और प्रमुख शक्तियों के साथ नौसैनिक अभ्यास, संयुक्त गश्त और क्षमता निर्माण पहल के माध्यम से अपनी समुद्री साझेदारी को सुदृढ़ करना चाहिये।
    • ऑस्ट्रेलिया को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने के लिये मालाबार अभ्यास का विस्तार एक सकारात्मक कदम है।
    • सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) सिद्धांत जैसी पहलों को ठोस कार्यों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये, जैसे छोटे द्वीप देशों को उनकी समुद्री क्षमताओं का निर्माण करने के लिये गश्ती जहाज़, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • नीली अर्थव्यवस्था पहल में निवेश: भारत को अपनी नीली अर्थव्यवस्था एजेंडे को आक्रामक रूप से अग्रेषित करना चाहिये, जिसमें समुद्री संसाधनों के संवहनीय दोहन, तटीय और समुद्री पर्यटन के विकास एवं समुद्री जैव प्रौद्योगिकी के संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • गभीर समुद्र में खनन, समुद्री जलकृषि और अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से नवाचार तथा आर्थिक विकास को उत्प्रेरित किया जा सकता है।
  • आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं में वृद्धि: प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हिंद महासागर की सुभेद्यता को देखते हुए, भारत को अपनी क्षेत्रीय आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं को और विकसित करना चाहिये।
    • इसमें समुद्री आपदाओं के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की क्षमता का विस्तार करना और सामरिक स्थानों पर अग्रिम परिचालन अड्डे स्थापित करना शामिल है।
    • सागर पहल के तहत मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये 22 मार्च, 2021 को INS जलाश्व का मेडागास्कर के एहोआला पत्तन में आगमन भारत की क्षेत्रीय अभिगम्यता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम था।

निष्कर्ष:

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की सामरिक भागीदारी इसकी समुद्री सुरक्षा, आर्थिक हितों और भू-राजनीतिक प्रभाव के संवर्द्धन हेतु महत्त्वपूर्ण है। इस जटिल परिदृश्य को संचालित करने के लिये, भारत को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को सुदृढ़ करने, सामरिक साझेदारी का विस्तार करने, समुद्री क्षेत्र जागरूकता बढ़ाने और अपने ब्लू इकोनॉमी एजेंडे को सक्रिय रूप से अग्रेषित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। बहुआयामी उपागम अंगीकृत करके, भारत IOR में क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से स्थापित कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. हिंद महासागर का भारत की सुरक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय प्रभाव के लिये अत्यधिक सामरिक महत्त्व है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिये प्रमुख चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिये।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है?

  1. एशिया-प्रशान्त आर्थिक सहयोग (एशिया-पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन)
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स)
  3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) भारत इनमें से किसी का सदस्य नहीं है

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौते की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये।  (2020)