अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका
यह एडिटोरियल 06/08/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “With Bangladesh in turmoil, why India should exercise caution” लेख पर आधारित है। इसमें भारत द्वारा बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य के प्रति सतर्क रवैया बनाए रखने और अपने रणनीतिक एवं आर्थिक हितों को सुरक्षित रखते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिये समर्थन को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-बांग्लादेश, म्याँमार में 2021 सैन्य तख्तापलट, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, हंबनटोटा बंदरगाह, रेडक्लिफ रेखा, ‘इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ के डेमोक्रेसी इंडेक्स 2020, तीस्ता नदी समझौता, ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल, कच्चातीवु द्वीप मुद्दा, डॉकलाम मुद्दा, रोहिंग्या शरणार्थी, एक्ट-ईस्ट नीति, भारत-म्याँमार -थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग। मेन्स के लिये:भारत के पड़ोस में मुद्दे, उपाय जो भारत पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये अपना सकता है। |
दक्षिण एशिया में उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत के लिये आवश्यक बनाते हैं कि वह अपने पड़ोसी देशों के प्रति अपने दृष्टिकोण को विवेकपूर्ण और व्यावहारिक रूप प्रदान करे। बांग्लादेश में हाल के घटनाक्रम, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और देश में सेना का अंतरिम शासन स्थापित हुआ, क्षेत्रीय राजनीति की अस्थिरता और भारत के लिये रणनीतिक संबंधों को बनाए रखते हुए अपने पड़ोसी देशों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का समर्थन करने की अनिवार्यता को उजागर करता है। ताज़ा घटनाक्रम के बहाने हम वर्ष 2006 में नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र के लिये चले आंदोलन को याद करें तो आवश्यक होगा कि भारत का कूटनीतिक रुख लोकप्रिय आकांक्षा के अनुरूप हो और स्थिरता एवं सकारात्मक संलग्नता को बढ़ावा दिया जाए।
चूँकि क्षेत्रीय समीकरण लगातार बदल रहे हैं, अपने पड़ोस में शांति, स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रतिबद्धता न केवल उसके अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित करेगी, बल्कि क्षेत्रीय सद्भाव एवं समृद्धि के व्यापक लक्ष्य में भी योगदान देगी।
भारत के पड़ोसी देश लगातार राजनीतिक एवं आर्थिक उथल-पुथल का सामना क्यों कर रहे हैं?
- नागरिक शासन में सैन्य हस्तक्षेप: दक्षिण एशिया के कई देशों में सैन्य तख्तापलट और हस्तक्षेप का इतिहास रहा है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमज़ोर करता है।
- स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान ने अपने अस्तित्व के लगभग आधे समय तक प्रत्यक्ष सैन्य शासन का सामना किया है।
- म्याँमार में 2021 सैन्य तख्तापलट में सेना (Tatmadaw) ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और असैन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया, जिससे व्यापक नागरिक अशांति का प्रसार हुआ।
- बांग्लादेश में भी सेना ने कई बार हस्तक्षेप किया है, जिनमें वर्ष 2007-2008 का घटनाक्रम सबसे उल्लेखनीय है।
- इन हस्तक्षेपों से प्रायः राजनीतिक अस्थिरता, मानवाधिकार उल्लंघन और आर्थिक व्यवधान की स्थिति बनती है।
- आर्थिक कमज़ोरियाँ और बाह्य निर्भरताएँ: वर्ष 2022 में श्रीलंका का आर्थिक संकट इसका एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें बाह्य ऋण सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- बांग्लादेश की वस्त्र उद्योग पर निर्भरता, जो उसके निर्यात में 80% हिस्सेदारी रखता है, उसे वैश्विक वस्त्र मांग में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है।
- मालदीव का पर्यटन क्षेत्र उसके सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 28% का योगदान देता है, जिसके कारण उसे कोविड-19 महामारी जैसे बाह्य आघातों के कारण संकट का सामना करना पड़ा और उसकी अर्थव्यवस्था सिकुड़ गई।
- वर्ष 2022 के अंत तक पाकिस्तान का विदेशी ऋण 130.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था, जिसमें चीन की हिस्सेदारी लगभग 30% थी। इसके कारण चीन को पाकिस्तान पर आर्थिक प्रभाव रखने का अवसर प्राप्त होता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा और बाह्य प्रभाव: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान की अवसंरचना में चीन के निवेश ने इस्लामाबाद पर बीजिंग के प्रभाव को गंभीर रूप से बढ़ा दिया है।
- श्रीलंका में ऋण संबंधी समस्याओं के कारण हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्ष के पट्टे पर चीन को सौंपना इस बात का उदाहरण है कि आर्थिक निर्भरता किस प्रकार रणनीतिक रियायतों में परिणत हो सकती है।
- नेपाल द्वारा भारत और चीन दोनों के साथ संतुलनकारी संबंध रखने का दृष्टिकोण चीन की सहायता से निर्मित पोखरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जैसी अवसंरचना परियोजनाओं में स्पष्ट प्रकट होता है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियाँ: मालदीव, जिसका 80% भूभाग समुद्र तल से 1 मीटर से भी कम ऊँचाई पर है, बढ़ते समुद्री स्तर के कारण अस्तित्व के लिये संकट का सामना कर रहा है।
- विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2050 तक बांग्लादेश में संभावित रूप से 13.3 मिलियन आंतरिक जलवायु प्रवासी (internal climate migrants) होंगे।
- वर्ष 2022 में पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ आई जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए और भारी आर्थिक क्षति पहुँची।
- नेपाल के ग्लेशियर प्रति वर्ष 10 से 60 मीटर की दर से पीछे हट रहे हैं, जिससे लाखों लोगों के लिये जल सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।
- औपनिवेशिक संरचनाओं और कमज़ोर संस्थाओं की विरासत: वर्ष 1947 में जल्दबाज़ी में खींची गई रेडक्लिफ रेखा ने कई सीमा विवादों को जन्म दिया, जिसमें कश्मीर को लेकर जारी भारत-पाकिस्तान संघर्ष भी शामिल है।
- वर्ष 1971 में बांग्लादेश का निर्माण औपनिवेशिक सीमाओं की अस्थिरता का ही एक अन्य उदाहरण है।
- इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ के डेमोक्रेसी इंडेक्स 2020 के अनुसार, अधिकांश दक्षिण एशियाई देश ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ (flawed democracy) या ‘हाइब्रिड शासन’ की श्रेणियों में आते हैं, जो कमज़ोर संस्थानों में निहित राजनीतिक अस्थिरता को उजागर करते हैं।
- जनसांख्यिकीय दबाव और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: भारत के पड़ोसी देशों में युवाओं की विशाल आबादी पाई जाती है।
- पाकिस्तान में लगभग 64% आबादी 30 वर्ष से कम आयु के लोगों की है, जिससे रोज़गार सृजन करने और उन्हें चरमपंथी विचारधाराओं की ओर आकर्षित होने से रोकने के लिये व्यापक दबाव पैदा हो रहा है।
- क्षेत्र में युवा बेरोज़गारी दर उच्च है; जैसे नेपाल में 20.5% और श्रीलंका में 24.74%।
भारत को अपने पड़ोस में वर्तमान में किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- पाकिस्तान: कश्मीर और सीमा-पार आतंकवाद को लेकर भारत-पाकिस्तान संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
- पाकिस्तान हाल के समय में देश में जारी आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और IMF के वार्ता जैसे मुद्दों से जूझ रहा है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के माध्यम से चीन के साथ पाकिस्तान की बढ़ती निकटता भारत के लिये रणनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न कर रही है।
- हाल में रियासी ज़िले में हुए आतंकवादी हमले, जो कथित रूप से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित थे, ने तनाव को और बढ़ा दिया है।
- बांग्लादेश: विरोध प्रदर्शनों के बीच वर्तमान प्रधानमंत्री के इस्तीफे के कारण बांग्लादेश में गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति व्याप्त है।
- यह परिदृश्य पिछले दशक में विकसित हुई भारत-बांग्लादेश संबंधों की सकारात्मक दिशा को प्रभावित कर सकता है।
- साझा जल संसाधनों का प्रबंधन (विशेष रूप से तीस्ता नदी समझौता), अवैध प्रवासन से निपटना और आर्थिक सहयोग बनाए रखना दोनों देशों के बीच मौजूद प्रमुख मुद्दे हैं।
- असम जैसे भारतीय राज्यों द्वारा अवैध प्रवासन (विशेषकर बांग्लादेश से) के बारे में लंबे समय से चिंताएँ जताई जा रही हैं।
- अगस्त 2024 में एक क्षेत्रीय दल ने बांग्लादेश में अशांति और सीमा के बाड़रहित हिस्सों से अवैध आव्रजन में वृद्धि के बारे में चिंता व्यक्त की।
- ऐसी आशंकाएँ व्यक्त की गई हैं कि अवैध प्रवासियों के आने से असमिया लोग अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन सकते हैं, जैसा कि त्रिपुरा और सिक्किम राज्यों में हुआ।
- बांग्लादेश में संभावित सैन्य शासन से ये मुद्दे और भी गंभीर बन सकते हैं, जिनमें प्रवासन दबाव और अल्पसंख्यक संबंधी चिंताएँ भी शामिल हैं।
- नेपाल: नेपाल का राजनीतिक परिदृश्य जटिल बना हुआ है और सरकार में लगातार परिवर्तन के कारण नीतिगत स्थिरता प्रभावित हो रही है।
- ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल सहित चीन के साथ नेपाल के बढ़ते आर्थिक संबंध भारत के लिये चिंता का विषय हैं।
- सीमा विवाद, विशेषकर कालापानी क्षेत्र का मुद्दा, दोनों देशों के बीच तनाव का स्रोत बना हुआ है।
- हालाँकि सांस्कृतिक और लोगों के परस्पर संबंध मज़बूत बने हुए हैं और जलविद्युत एवं अवसंरचना विकास में सहयोग बढ़ाने की व्यापक संभावनाएँ मौजूद हैं।
- श्रीलंका: श्रीलंका धीरे-धीरे अपने गंभीर आर्थिक संकट से उबर रहा है, जहाँ भारत उसे आर्थिक सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत वह पहला देश था जिसने श्रीलंका के वित्तपोषण और ऋण पुनर्गठन के लिये अपना समर्थन पत्र अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को सौंपा था।
- कच्चातीवु द्वीप, श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार और श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन का कार्यान्वयन द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण मुद्दे बने हुए हैं।
- मालदीव: मालदीव में चीन समर्थक राष्ट्रपति के निर्वाचन के साथ देश की विदेश नीति में बदलाव आया है, जहाँ देश में भारतीय सैन्य उपस्थिति को कम करने की मांग की गई और सत्तारूढ़ दल द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान व्यापक रूप से ‘इंडिया-आउट’ अभियान चलाया गया।
- इससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों के लिये चुनौती उत्पन्न हुई है।
- म्याँमार: म्याँमार में सैन्य तख्तापलट और उसके बाद उत्पन्न नागरिक अशांति ने भारत के लिये जटिल चुनौतियाँ पैदा की।
- पूर्वोत्तर राज्यों में रोहिंग्या शरणार्थी की आमद तथा अस्थिर म्याँमार में चीन के प्रभाव में वृद्धि की संभावना भारत के लिये गंभीर चिंता का विषय हैं।
- यद्यपि भारत के म्याँमार के साथ रणनीतिक एवं आर्थिक हित जुड़े हुए हैं, जिनमें पूर्वोत्तर में उग्रवाद का मुक़ाबला करना और ‘एक्ट-ईस्ट नीति के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं को क्रियान्वित करना शामिल है, फिर भी उसे मानवाधिकारों और लोकतंत्र संबंधी चिंताओं के साथ संतुलन बनाए रखना होगा।
- भूटान: यद्यपि भारत-भूटान संबंध मज़बूत बने हुए हैं, लेकिन भूटान द्वारा अपने विदेशी संबंधों में विविधता लाने तथा भारत पर आर्थिक निर्भरता कम करने के प्रयास नए समीकरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
- भूटान-भारत और चीन के बीच डोकलाम का अनसुलझा मुद्दा रणनीतिक चिंता का विषय बना हुआ है।
- भारत भूटान का प्रमुख विकास साझेदार बना हुआ है, लेकिन भूटान की उभरती आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के लिये संबंधों को अद्यतन करने की आवश्यकता है।
- अफगानिस्तान: तालिबान की सत्ता में वापसी ने भू-राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप प्रदान किया है, लेकिन भारत मानवीय सहायता और अफगानिस्तान क्रिकेट टीम की मेजबानी के माध्यम से सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में सफल रहा है।
- हालाँकि, अफगानिस्तान के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण निवेश खतरे में है क्योंकि इसका रणनीतिक प्रभाव कम हो गया है।
पड़ोसी देशों में राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल के इतिहास के बावजूद भारत किस प्रकार प्रत्यास्थी बना रहा है?
- प्रबल संवैधानिक ढाँचा और संस्थागत सामर्थ्य: भारत का लोकतंत्र इसके व्यापक संविधान पर आधारित है, जिसने वर्ष 1950 से अब तक विभिन्न चुनौतियों का डटकर मुक़ाबला किया है।
- संविधान के मूल संरचना का सिद्धांत (basic structure doctrine), जिसे ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले (1973) में स्थापित किया गया था, संविधान के मर्म की रक्षा करता है।
- भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका, जिसकी पुष्टि 2G स्पेक्ट्रम मामले में (2012) 122 दूरसंचार लाइसेंस रद्द करने जैसे महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप से हुई, कार्यपालिका की शक्ति पर एक मज़बूत अंकुश के रूप में कार्य करती है।
- इसके अतिरिक्त, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण एक संतुलित एवं जवाबदेह शासन संरचना सुनिश्चित करता है।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने और विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का कुशल प्रबंधन करते हुए लगातार स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराए हैं।
- इन संस्थाओं ने, यदा-कदा विवादों के बावजूद, लोकतांत्रिक मानदंडों को कायम रखने में प्रत्यास्थता का प्रदर्शन किया है।
- जीवंत नागरिक समाज और स्वतंत्र प्रेस: भारत में एक गतिशील नागरिक समाज और मीडिया परिदृश्य मौजूद है जो लोकतांत्रिक संवाद में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) ने नागरिकों को जवाबदेही की मांग करने का अधिकार दिया है, जिसके तहत प्रतिदिन 4800 से अधिक RTI आवेदन दायर किये जाते हैं।
- नागरिक समाज के आंदोलनों ने सरकार की नीतियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, जैसा कि जन लोकपाल आंदोलन के दबाव में भ्रष्टाचार विरोधी कानून के अधिनियमन के रूप में देखा गया।
- भारत का प्रेस राजनीतिक पूर्वाग्रहों की चुनौतियों का सामना करता रहा है, लेकिन 100,000 से अधिक पंजीकृत प्रकाशनों के साथ यह काफी हद तक स्वतंत्र और विविधतापूर्ण भी बना हुआ है।
- डिजिटल क्रांति ने सूचना तक पहुँच को और अधिक लोकतांत्रिक बना दिया है, जहाँ 2022 तक भारत में 759 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता थे।
- भारत के अराजनीतिक सशस्त्र बल और नागरिक नियंत्रण: भारत के सशस्त्र बलों ने स्वतंत्रता के बाद से ही नागरिक प्राधिकार का सम्मान करते हुए लगातार अपना अराजनीतिक रुख बनाए रखा है।
- कुछ पड़ोसी देशों के विपरीत भारत में कभी भी सैन्य तख्तापलट नहीं हुआ है।
- नागरिक नियंत्रण का सिद्धांत गहराई से समाहित है, जहाँ राष्ट्रपति सर्वोच्च कमांडर होता है और नीतिगत निर्णय निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा लिये जाते हैं।
- राजनीतिक सत्ता के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा पर सशस्त्र बलों का ध्यान प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका से स्पष्ट होता है (जैसे कि वर्ष 2013 में उत्तराखंड बाढ़ बचाव अभियान और अभी वायनाड में जारी बचाव अभियान) और असैन्य नेतृत्व में राष्ट्र की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।
- संघीय संरचना और विकेंद्रीकरण: भारत की संघीय प्रणाली शक्ति वितरण और क्षेत्रीय स्वायत्तता का अवसर प्रदान करती है, जो एक विविध राष्ट्र के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1992) ने स्थानीय शासन को मज़बूत किया।
- वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) के कार्यान्वयन ने, प्रारंभिक चुनौतियों के बावजूद, सहकारी संघवाद को प्रदर्शित किया।
- भारत का संघीय ढाँचा विशिष्ट क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विशेष उपबंधों की अनुमति देता है।
- संविधान का अनुच्छेद 371 कई पूर्वोत्तर राज्यों को, उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करते हुए, विशेष दर्जा प्रदान करता है।
- वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन, हालाँकि विवादास्पद था, लेकिन इसे संवैधानिक तरीकों से किया गया था।
- क्षेत्रीय मांगों के जवाब में तेलंगाना (2014) जैसे नए राज्यों का निर्माण प्रणाली के लचीलेपन को परिलक्षित करता है।
- विभिन्न क्षेत्रों में राज्यों की स्वायत्तता नीतिगत प्रयोग और स्थानीय शासन की अनुमति देती है, जैसा कि केरल की कोविड-19 के प्रति सफल प्रतिक्रिया या गुजरात की आर्थिक नीतियों में देखा गया है।
- राजनीतिक परिवर्तन और बहुदलीय प्रणाली: भारत के लोकतंत्र ने कई बार सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण प्रदर्शित किया है, जो लोकतांत्रिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख संकेतक है।
- वर्ष 2014 के चुनाव के परिणामस्वरूप नेतृत्व में बदलाव हुआ, जबकि 2024 के चुनावों में एक मज़बूत लोकतांत्रिक प्रक्रिया देखने को मिली, जहाँ किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।
- आर्थिक उदारीकरण और मध्यम वर्ग की वृद्धि: वर्ष 1991 के बाद से भारत के आर्थिक सुधारों ने उभरते मध्यम वर्ग को बढ़ावा देकर और गरीबी को कम कर लोकतांत्रिक स्थिरता में योगदान दिया है।
- लगभग 350 मिलियन की आबादी के साथ भारतीय मध्यम वर्ग लोकतंत्र में एक स्थायित्वकारी शक्ति के रूप में कार्य करता है।
- भिन्न हितों और अलगाववादी प्रवृत्तियों का प्रबंधन: भारत का लोकतंत्र अपनी सांस्कृतिक विविधता से शक्ति प्राप्त करता है, जहाँ संविधान में 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी गई है और कई सकारात्मक कार्रवाई नीतियाँ अपनाई गई हैं।
- विवादों के बावजूद आरक्षण प्रणाली ने हाशिये पर स्थित समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है।
- भारत ने अपने लोकतांत्रिक ढाँचे के भीतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं और अलगाववादी आंदोलनों से निपटने में उल्लेखनीय क्षमता दिखाई है।
- वर्ष 2015 का नागा शांति समझौता और वर्ष 2019 में त्रिपुरा के NLFT के साथ संपन्न त्रिपक्षीय समझौता इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
- केवल सैन्य समाधान के बजाय समझौता वार्ता और राजनीतिक एकीकरण का भारत का दृष्टिकोण विविधता के बीच एकता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण तत्व रहा है।
- विवादों के बावजूद आरक्षण प्रणाली ने हाशिये पर स्थित समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है।
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिये कौन-से कदम उठा सकता है?
- कनेक्टिविटी उत्प्रेरण – ‘ब्रिजिंग बॉर्डर्स, बिल्डिंग बॉण्ड्स’ (Connectivity Catalyst –Bridging Borders, Building Bonds): भारत को बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते और भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी अपनी कनेक्टिविटी पहलों में तेज़ी लानी चाहिये।
- भारत अपनी सीमाओं पर नेपाल और बांग्लादेश के साथ सफल एकीकृत जाँच चौकियों (Integrated Check Posts- ICPs) की तरह और भी ICPs स्थापित कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त, दक्षिण एशियाई उपग्रह (South Asian Satellite) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा दे सकता है।
- ये पहलें भारत को क्षेत्रीय समृद्धि के सूत्रधार के रूप में स्थापित करेंगी और क्षेत्रीय आधिपत्यवादी देश होने की धारणा या आशंका को खारिज करेंगी।
- आर्थिक सशक्तिकरण – सहायता से व्यापार तक (Economic Empowerment – From Aid to Trade): भारत को सहायता-केंद्रित दृष्टिकोण से व्यापार और निवेश-केंद्रित रणनीति की ओर आगे बढ़ना चाहिये।
- अधिमान्य व्यापार शर्तों (preferential trade terms) के साथ पड़ोस प्रथम आर्थिक क्षेत्र (Neighborhood First Economic Zone) के क्रियान्वयन से क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिल सकता है।
- सफल सिद्ध हुए भारत-बांग्लादेश सीमा हाटों की तरह संयुक्त आर्थिक क्षेत्र स्थापित करने से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा।
- इस दृष्टिकोण से पारस्परिक आर्थिक निर्भरता पैदा होगी, जिससे पड़ोसियों के बीच प्रतिकूल नीतियों का आकर्षण कम हो जाएगा।
- सांस्कृतिक संगम – ‘सॉफ्ट पावर’ की हिलोर (Cultural Confluence – Soft Power Surge): भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाते हुए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) छात्रवृत्ति जैसी पहलों का विस्तार करना चाहिये और पड़ोसी देशों में भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों की संख्या बढ़ानी चाहिये।
- ‘बुद्धिस्ट सर्किट’ जैसी पहलों के माध्यम से सीमा-पार पर्यटन को बढ़ावा देने से लोगों के बीच परस्पर संपर्क बढ़ सकता है।
- भारत को अपने प्रमुख संस्थानों में पड़ोसी देशों के छात्रों को अवसर देने के लिये अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिये।
- सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिये बॉलीवुड और भारत के अन्य क्षेत्रीय सिनेमा को रणनीतिक रूप से प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- आपदा कूटनीति – प्रतिकूल परिस्थितियों में एकजुटता (Disaster Diplomacy – United in Adversity): प्राकृतिक आपदाओं के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए, भारत को दक्षिण एशियाई आपदा प्रतिक्रिया बल (South Asian Disaster Response Force) की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये।
- इसमें साझा पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ और समन्वित प्रतिक्रिया तंत्र शामिल हो सकते हैं।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता का उपयोग क्षेत्रीय उपग्रह-आधारित आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
- यह दृष्टिकोण भारत को एक ज़िम्मेदार क्षेत्रीय नेता के रूप में स्थापित करेगा, जो संकट के समय व्यावहारिक सहायता के माध्यम से सद्भावना को बढ़ावा देगा।
- बहुपक्षीय मध्यस्थता – क्षेत्रीय मंचों को पुनर्जीवित करना (Multilateral Mediation-Revitalizing Regional Forums): भारत को आम सहमति बनाने के लिये जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे गैर-विवादास्पद क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सार्क (SAARC) को पुनर्जीवित करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
- ट्रैक II कूटनीति और थिंक टैंक सहयोग को प्रोत्साहित करने से विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने में मदद मिल सकती है।
- भारत बहुपक्षवाद को बढ़ावा देकर अपना प्रभुत्व जमाने संबंधी आशंकाओं को दूर कर सकता है और अधिक सहयोगात्मक क्षेत्रीय वातावरण का निर्माण कर सकता है।
- हरित कूटनीति – पारिस्थितिकी सहयोगी (Green Diplomacy – Eco-Allies): चूँकि जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र के कई देशों के लिये अस्तित्व का खतरा उत्पन्न हो गया है, भारत को दक्षिण एशियाई हरित गठबंधन (South Asian Green Alliance) का नेतृत्व करना चाहिये।
- इसमें स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को साझा करना, जलवायु-अनुकूल कृषि पर संयुक्त अनुसंधान करना और वैश्विक जलवायु वार्ता में समन्वित रुख अपनाना शामिल हो सकता है।
- भारत अपने पड़ोसियों को अपने उभरते हरित हाइड्रोजन और सौर प्रौद्योगिकी क्षेत्रों तक अधिमान्य पहुँच की पेशकश भी कर सकता है।
- यह हरित कूटनीति भारत को क्षेत्रीय पारिस्थितिक सुरक्षा में एक ज़िम्मेदार हितधारक के रूप में स्थापित करेगी।
- खेल एकता – एथलेटिक प्रयासों के माध्यम से एकजुटता (Sports Solidarity-Uniting Through Athletic Endeavors): भारत दक्षिण एशियाई खेलों को पुनर्जीवित करने और विस्तारित करने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है, जहाँ अधिकाधिक खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल किये जा सकते हैं।
- दक्षिण एशियाई खेल विकास कोष (South Asian Sports Development Fund) की स्थापना से पूरे भूभाग में खेल अवसंरचना में सुधार लाने में मदद मिल सकती है।
- भारत पड़ोसी देशों के एथलीटों को अपनी विश्वस्तरीय प्रशिक्षण सुविधाएँ और कोच प्रदान कर सकता है।
- इस भूभाग में क्रिकेट की लोकप्रियता को देखते हुए अधिकाधिक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय क्रिकेट शृंखलाओं के आयोजन से लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा मिल सकता है।
- यह खेल कूटनीति सकारात्मक सहभागिता के अवसर पैदा करेगी तथा भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ को प्रदर्शित करेगी।
अभ्यास प्रश्न: पड़ोसी देशों में हाल के राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल के बीच उनके साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करने में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों पर विचार कीजिये। भारत क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की आवश्यकता के साथ अपने रणनीतिक हितों को किस प्रकार प्रभावी ढंग से संतुलित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) प्रश्न. ‘‘बहुधार्मिक व बहुजातीय समाज के रूप में भारत की विविध प्रकृति, पड़ोस में दिख रहे अतिवाद के संघात के प्रति निरापद नहीं है।’’ ऐसे वातावरण के प्रतिकार के लिये अपनाई जाने वाली रणनीतियों की विवेचना कीजिये। 2014 प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) |