अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत का वैश्विक उत्थान एवं क्षेत्रीय पतन
यह एडिटोरियल 04/05/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The paradox of India’s global rise, its regional decline” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि जहाँ वैश्विक मंच पर भारत का प्रभाव बढ़ रहा है, वहीं दक्षिण एशिया में इसका दबदबा कम हो रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरने की इसकी आकांक्षाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती पेश कर रहा है।
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण एशिया, G-20, I2U2, चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, BRICS, शंघाई सहयोग संगठन, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ, ब्रह्मोस मिसाइल, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, सिंधु जल संधि, कश्मीर विवाद, भारत- मालदीव, भारत-श्रीलंका, भारत-नेपाल। मेन्स के लिये:भारत के वैश्विक उदय हेतु अग्रणी कारक, क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण एशिया में भारत की प्रभावशीलता में कमी के लिये अग्रणी कारक। |
हाल के दशकों में भारत का वैश्विक कद निस्संदेह बढ़ा है, जो इसकी आर्थिक ताकत, सैन्य कौशल और जनसांख्यिकीय लाभ से प्रेरित है। G-20 जैसे वैश्विक मंचों पर एक प्रमुख आवाज़ बनने और I2U2 जैसे बहुपक्षीय समूहों में भागीदारी करने के रूप में भारत ने स्वयं को विश्व मंच पर एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
हालाँकि, वैश्विक स्तर पर भारत का यह उत्थान विरोधाभासी रूप से उसके क्षेत्रीय प्रभाव में—विशेष रूप से दक्षिण एशिया में जहाँ कभी इसका बोलबाला था, चिंताजनक पतन के साथ घटित हुआ है।
भारत के वैश्विक उत्थान हेतु उत्तरदायी कारक:
- आर्थिक उछाल: विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2024 में भारत की उत्पादन वृद्धि दर 7.5% तक पहुँच जाएगी, जो सेवाओं और उद्योग में प्रत्यास्थी गतिविधि से प्रेरित होगी।
- यह आर्थिक ताकत वैश्विक प्रभाव में रूपांतरित होती है। उदाहरण के लिये, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ जैसी भारतीय कंपनियाँ महत्त्वपूर्ण वैश्विक उपस्थिति रखती हैं।
- सुदृढ़ अर्थव्यवस्था अधिक निवेश को भी आकर्षित करती है।
- रणनीतिक साझेदारियाँ और गठबंधन: भारत ने विश्व की प्रमुख शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी और गठबंधन को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया है, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘क्वाड’ (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) का गठन।
- इन साझेदारियों से भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने तथा वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मज़बूत करने में मदद मिली है।
- ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की भागीदारी ने इसकी वैश्विक उपस्थिति को सुदृढ़ किया है।
- वैश्विक दक्षिण की आवाज़ (Voice of the Global South) के रूप में भारत के उदय ने उसे वैश्विक मंच पर नेतृत्वकारी स्थिति प्रदान की है।
- भारत की G-20 अध्यक्षता के दौरान समूह में अफ्रीकी संघ (African Union) को शामिल किये जाने और G-20 नई दिल्ली लीडर्स घोषणापत्र के शीघ्रता से पारित होने (जिसे कठिन माना जा रहा था) जैसे दृष्टांतों से इसकी पुष्टि हुई।
- बढ़ती सैन्य क्षमताएँ: भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं का निरंतर आधुनिकीकरण, स्वदेशीकरण और सुदृढ़ीकरण किया है, जिससे यह इस भूभाग में और इससे परे भी एक दुर्जेय शक्ति बन गया है।
- INS सह्याद्रि , LCA तेजस और INS विक्रांत भारत की हाल ही में निर्मित सैन्य क्षमताओं के प्रमुख उदाहरण हैं।
- भारत ने हाल ही में फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल की पहली खेप सौंपी, जिससे रक्षा कूटनीति को बढ़ावा मिला।
- रणनीतिक स्वायत्तता: भारत की गुटनिरपेक्षता और संशोधित बहुपक्षवाद की रणनीति, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में रूस के विरुद्ध मतदान से दूर रहना और इज़राइल के प्रति स्पष्ट कूटनीतिक रुख बनाए रखते हुए फिलिस्तीन को मानवीय सहायता प्रदान करना, रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसकी वैश्विक स्तर पर सराहना की गई है।
- भारत ने ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति को अपनाया है, जो पश्चिमी आशंकाओं के बावजूद रणनीतिक हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए रूस से कच्चा तेल खरीदने में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ है।
- प्रौद्योगिकीय कौशल: प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों—विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी (IT), अंतरिक्ष अन्वेषण एवं नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की प्रगति ने इसके वैश्विक उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- चंद्रयान-3 और आदित्य-L1 मिशन के साथ भारत की हाल की उपलब्धियाँ अंतरिक्ष क्षेत्र में इसकी क्षमताओं को उजागर करती हैं।
- इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA) में भारत का नेतृत्व नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक प्रभाव: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जीवंत लोकतंत्र और फलती-फूलती प्रवासी भारतीय आबादी ने वैश्विक स्तर पर इसके ‘सॉफ्ट पावर’ में योगदान दिया है।
- भारतीय सिनेमा, व्यंजन, योग और आध्यात्मिकता को दुनिया भर में व्यापक आकर्षण प्राप्त हुआ है।
दक्षिण एशिया में भारत के क्षेत्रीय प्रभाव के पतन हेतु प्रमुख कारक:
- चीन का उदय: दक्षिण एशिया में चीन के व्यापक आर्थिक निवेश, बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के माध्यम से कार्यान्वित अवसंरचना परियोजनाओं तथा विभिन्न कूटनीतिक पहलों ने इस भूभाग में भारत के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र को क्षति पहुँचाई है, जिससे भारत की शक्ति और प्रभाव में सापेक्षिक गिरावट आई है।
- क्षेत्रीय व्यापार की कमी: दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार पहले से ही दुनिया में सबसे कम में से एक रहा है। दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का व्यापार उसके वैश्विक व्यापार के लगभग 1.7% से 3.8% के बीच बना हुआ है।
- भारतीय आधिपत्य की धारणा: दक्षिण एशिया के कुछ छोटे राष्ट्र भारत के विभिन्न कृत्यों को क्षेत्र में अपना आधिपत्य स्थापित करने के उसके प्रयास के रूप में देखते हैं।
- इस धारणा के कारण अविश्वास की एक भावना और बैलेंसिंग, बार्गेनिंग, हेजिंग एवं बैंडवैगनिंग रणनीतियों (Balancing, Bargaining, Hedging and Bandwagoning strategies) के माध्यम से भारत के प्रभाव को संतुलित करने की इच्छा उत्पन्न हुई है।
- पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध: सीमा विवाद, सीमा पार आतंकवाद, जल-बँटवारे के मुद्दों सहित विभिन्न कारकों के कारण भारत के अपने कुछ पड़ोसियों के साथ संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।
- आंतरिक चुनौतियाँ: घरेलू राजनीतिक मुद्दों और संसाधनों की कमी सहित भारत की अपनी विभिन्न आंतरिक चुनौतियों ने सक्रिय क्षेत्रीय भागीदारी से उसके ध्यान एवं संसाधनों को विचलित किया है, जिससे दक्षिण एशिया के भीतर उसके प्रभाव में गिरावट आई है।
नोट
दक्षिण एशिया (South Asia) भौगोलिक एवं जातीय-सांस्कृतिक कारकों के आधार पर परिभाषित एशिया के दक्षिणी भाग को इंगित करता है, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- पाकिस्तान: कश्मीर विवाद और सीमा-पार आतंकवाद भारत एवं पाकिस्तान के बीच तनाव का प्राथमिक कारण बना हुआ है।
- वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) सिंधु नदी प्रणाली में जल अधिकार का आवंटन करती है। जल बँटवारे और नदियों पर अवसंरचना परियोजनाओं के संबंध में असहमति के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा है।
- चीन: यद्यपि चीन दक्षिण एशियाई देश नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में इसका बढ़ता प्रभाव भारत को प्रभावित करता है। भारत और चीन के बीच लंबे समय से एक अनसुलझा सीमा विवाद, विशेष रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर, मौजूद रहा है।
- इसके कारण दोनों देशों के बीच हाल के गलवान घाटी गतिरोध के साथ ही विभिन्न सैन्य गतिरोधों और तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर भारत भारी विरोध जताता रहा है।
- इसके अलावा, चीन द्वारा हाल ही में जारी ‘मानक मानचित्र’ में अरुणाचल प्रदेश राज्य और अक्साई चिन क्षेत्र को उसके भूभाग के रूप में शामिल किया गया, जिससे दोनों देशों का तनाव बढ़ा है।
- मालदीव: हाल के समय में मालदीव की राजनीति में ‘इंडिया आउट’ नामक एक अभियान का उभार हुआ जहाँ मालदीव में भारतीय उपस्थिति को संप्रभुता के लिये खतरा बताया गया।
- इस अभियान के साथ ही राजनयिक विवाद से मालदीव पर्यटन में उभरे तनाव और मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत-मालदीव संबंधों को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- बांग्लादेश: भारत और बांग्लादेश ने 54 साझा नदियों में से केवल 2 के लिये संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें गंगा जल संधि और कुशियारा नदी संधि शामिल हैं।
- तीस्ता और फेनी जैसी प्रमुख नदियों के लिये वार्ता अभी जारी है।
- इसके अलावा, बांग्लादेश से भारत में अवैध प्रवासन (जिसमें शरणार्थी और आर्थिक प्रवासी शामिल हैं) एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिससे सीमावर्ती भारतीय राज्यों पर दबाव की वृद्धि हो रही है और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- श्रीलंका: भारत-श्रीलंका संबंध कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें कच्चातीवु द्वीप के स्वामित्व को लेकर तनाव और सीमा सुरक्षा एवं तस्करी संबंधी चिंताएँ शामिल हैं।
- इसमें श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यक मुद्दे से जुड़ी संवेदनशीलता और श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव (विशेषकर हंबनटोटा बंदरगाह के माध्यम से) के बारे में भारत की आशंकाएँ भी शामिल हैं।
- नेपाल: यद्यपि भारत-नेपाल संबंधों में हाल में सुधार आया है, लेकिन कुछ चिंताजनक मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।
- इसमें सीमा विवाद, विशेष रूप से पश्चिमी नेपाल में कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख त्रिसंगम क्षेत्र और दक्षिणी नेपाल में सुस्ता क्षेत्र से संबंधित विवाद, शामिल हैं।
- नेपाल ने हाल ही में 100 रुपए के नए नोट छापने की घोषणा की, जिस पर अंकित मानचित्र में भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, लिंपियाधुरा एवं कालापानी को नेपाली क्षेत्र दिखाया गया है, जिसका भारत ने विरोध किया है।
- अग्निवीर योजना के कारण नेपाली गोरखा अब भारतीय सेना की बजाय चीन का रुख कर रहे हैं।
- इसमें सीमा विवाद, विशेष रूप से पश्चिमी नेपाल में कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख त्रिसंगम क्षेत्र और दक्षिणी नेपाल में सुस्ता क्षेत्र से संबंधित विवाद, शामिल हैं।
अपने क्षेत्रीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?
- विकास-केंद्रित कूटनीति: अब समय आ गया है कि भारत केवल ऋण सहायता प्रदान करने से आगे बढ़ते हुए पड़ोसी देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली सहयोगी विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इसमें कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा या आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान शामिल हो सकता है।
- सहकारी सुरक्षा: भारत को सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से सैन्य-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ने और सहकारी सुरक्षा उपायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इसमें संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास, क्षेत्रीय आपदा प्रतिक्रिया दल का गठन या सीमा तनाव के प्रबंधन के लिये दक्षिण एशियाई हॉटलाइन स्थापित करना शामिल हो सकता है।
- क्षेत्रीय मंचों/समूहों पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को संपूर्ण क्षेत्र पर हावी होने का प्रयास करने के बजाय बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical Cooperation- BIMSTEC) या दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) जैसे उप-क्षेत्रीय समूहों के साथ मज़बूत संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इन छोटे समूहों में सफलता व्यापक क्षेत्रीय प्रभाव में रूपांतरित हो सकती है।
- ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को पुनः सशक्त करना: भारत को अपनी नेबरहुड फर्स्ट नीति (Neighbourhood First Policy) पर पुनर्विचार करना चाहिये और पारदर्शी संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को बढ़ावा देने वाली समावेशी विकास परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये तथा क्षेत्र के भीतर सहयोगात्मक पहलों के लिये डिजिटल कनेक्टिविटी का लाभ उठाना चाहिये।
- ‘ग्लोबल साउथ’ में दक्षिण एशिया की भूमिका: भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र को वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (Voice of Global South Summits) में एक केंद्रित खिलाड़ी के रूप में प्रदर्शित कर अपने क्षेत्रीय कूटनीतिक संबंधों को बेहतर बना सकता है।
- यह दृष्टिकोण क्षेत्र में भारत के प्रभाव और सहयोग को बढ़ा सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के वैश्विक उदय के बावजूद दक्षिण एशिया क्षेत्र में इसके प्रभाव में गिरावट में कौन-से कारक योगदान कर रहे हैं? इस चुनौती से निपटने के लिये भारत क्या रणनीतियाँ अपना सकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित दक्षिण एशियाई देशों में से किस देश का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक है? (2009) (a) भारत उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017) |