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  • 04 Dec, 2024
  • 27 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बदलती परमाणु व्यवस्था में भारत की स्थिति

यह संपादकीय 03/12/2024 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Behind the making of the global nuclear (dis)order” पर आधारित है। इस लेख में वैश्विक परमाणु व्यवस्था के विघटन का उल्लेख किया गया है, क्योंकि प्रमुख शक्तियाँ और रूस-यूक्रेन व इज़राइल-हमास जैसे संघर्ष अस्त्र नियंत्रण मानदंडों को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें परमाणु अस्त्रों का उपयोग भू-राजनीतिक लाभ के लिये किया जा रहा है। यह उभरती हुई अव्यवस्था भारत के लिये एक अस्थिर, बहु-परमाणु पड़ोस में एक जटिल रणनीतिक चुनौती पेश करती है।

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक परमाणु व्यवस्था, रूस-यूक्रेन, इज़रायल-हमास संघर्ष, हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन, परमाणु अस्त्रों का अप्रसार, अग्नि-V अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल, निरस्त्रीकरण सम्मेलन, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, ज़पोरीज़िया, यूक्रेन 

मेन्स के लिये:

परमाणु अस्त्रों के उपयोग के संबंध में भारत का रुख, वैश्विक परमाणु व्यवस्था में बदलाव के कारण भारत के समक्ष खतरे। 

वैश्विक परमाणु व्यवस्था का तेज़ी से पतन हो रहा है, जिसमें रूस, चीन, अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियाँ और उभरते हुए देश लंबे समय से चले आ रहे मानदंडों एवं अस्त्र नियंत्रण समझौतों को चुनौती दे रहे हैं। रूस-यूक्रेन और इज़रायल-हमास संघर्ष ने उल्लेखनीय रूप से अंतर्राष्ट्रीय परमाणु संयम के टूटने को उजागर किया है, जिसमें भू-राजनीतिक दबाव तथा युद्ध के मैदान में सैन्य धमकी के साधन के रूप में परमाणु अस्त्रों का प्रयोग किया जा रहा है। भारत के लिये, यह उभरता हुआ परमाणु विकार विशेष रूप से एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है, जिसमें तेज़ी से अस्थिर होते जा रहे बहु-परमाणु पड़ोस से इसकी रणनीतिक स्थिति पर संभावित दबाव बना हुआ है।

वैश्विक परमाणु व्यवस्था किस प्रकार विकसित हो रही है? 

  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता परमाणु संतुलन को नया आयाम दे रही है: अमेरिका-चीन सामरिक प्रतिस्पर्द्धा का तीव्र होना वैश्विक स्तर पर परमाणु रुख को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। 
    • चीन का तेज़ी से परमाणु निर्माण, जिसमें हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहनों का विकास भी शामिल है, न्यूनतम प्रतिरोध रणनीति से बदलाव का संकेत देता है। यह इंडो-पैसिफिक में अमेरिका की प्रतिरोध क्षमता को चुनौती देता है।
    • वर्ष 2024 तक चीन के पास कथित तौर पर 500 से अधिक क्रियाशील परमाणु अस्त्र होंगे।
    • ताइवान को अमेरिकी सैन्य सहायता और AUKUS सहयोग में वृद्धि, क्षेत्र में प्रति-संतुलन प्रयासों को दर्शाती है।
  • तकनीकी व्यवधानों से सामरिक अस्थिरता बढ़ रही है: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर वॉर और अंतरिक्ष आधारित प्रणालियों में प्रगति ने परमाणु कमान एवं नियंत्रण में कमज़ोरियों को बढ़ा दिया है। 
    • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश (Mutually Assured Destruction- MAD) के पारंपरिक सिद्धांतों को कमज़ोर कर रही हैं।
    • उदाहरण के लिये, UK में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति वाली एक इज़रायली रक्षा प्रौद्योगिकी कंपनी एल्बिट सिस्टम्स उन्नत रक्षा प्रणालियों को विकसित करने के लिये AI का उपयोग करती है।
    • जून 2024 में, स्लिंगशॉट एयरोस्पेस ने बड़े उपग्रह समूहों के भीतर संभावित खतरनाक अंतरिक्ष वाहनों का अभिनिर्धारण हेतु डिज़ाइन की गई AI-संचालित प्रणाली, अगाथा को विकसित करने के लिये DARPA के साथ साझेदारी की घोषणा की।
  • परमाणु अस्त्रों की दौड़ का उदय: परमाणु अस्त्रों की दौड़ का पुनरुत्थान, अप्रसार संधि (NPT) फ्रेमवर्क के विघटन में स्पष्ट है, जिसमें गैर-अनुपालन बढ़ रहा है और विश्वसनीयता कम हो रही है। 
    • संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) की सीमाओं से अधिक ईरान की परमाणु संवर्द्धन गतिविधियों ने अन्य देशों को संधि की प्रभावकारिता पर सवाल उठाने के लिये प्रोत्साहित किया है।
    • क्षेत्रीय तनाव इस मुद्दे को और बढ़ा देता है, क्योंकि भारत-पाक प्रतिद्वंद्विता पाकिस्तान के सामरिक परमाणु अस्त्र पर ध्यान केंद्रित करने तथा भारत द्वारा अग्नि-V ICBM के विकास के कारण तीव्र हो सकती है, जबकि चीन द्वारा 500 परमाणु आयुधों का तेज़ी से निर्माण करना भारत के 172 तथा पाकिस्तान के 170 से अधिक है। 
  • परमाणु अवसंरचना के लिये बढ़ता साइबर खतरा: कमज़ोर साइबर सुरक्षा उपायों का फायदा उठाने की संभावना के कारण परमाणु सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
    • परमाणु अवसंरचना पर साइबर हमले और दोहरे प्रयोग वाली प्रौद्योगिकियों के प्रसार से परमाणु आतंकवाद का खतरा बढ़ रहा है।
    • वर्ष 2009 में, स्टक्सनेट मैलवेयर ने ईरान के लगभग पाँचवें परमाणु सेंट्रीफ्यूज़ को नष्ट कर दिया था और कथित तौर पर इसका संबंध CIA तथा मोसाद से था।
  • बहुपक्षीय शस्त्र नियंत्रण एवं निरस्त्रीकरण संस्थाओं का क्षरण: वैश्विक शस्त्र नियंत्रण व्यवस्थाएँ कमज़ोर हो रही हैं, क्योंकि प्रमुख शक्तियाँ बहुपक्षीय समझौतों को कमज़ोर कर रही हैं। 
    • निरस्त्रीकरण सम्मेलन (CD) दशकों से रुका हुआ है, और परमाणु अस्त्र निषेध संधि (TPNW) को परमाणु-सशस्त्र राज्यों द्वारा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
  • सैन्य रणनीतियों में असैन्य परमाणु कार्यक्रमों का एकीकरण: परमाणु प्रौद्योगिकी की दोहरी उपयोग प्रकृति का तेज़ी से दोहन किया जा रहा है। 
    • दक्षिण कोरिया जैसे देश असैन्य परमाणु क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं, जो गुप्त निवारक तंत्र के रूप में काम कर सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, जापान ने फुकुशिमा आपदा के बाद की देश की नीति में एक बड़ा बदलाव करते हुए नेक्स्ट जनरेशन के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के विकास और निर्माण की अपनी मंशा की घोषणा की है।

परमाणु अस्त्रों के उपयोग के संबंध में भारत का रुख क्या है?

  • परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग: भारत विद्युत ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा और उद्योग के लिये परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग का पुरज़ोर समर्थन करता है। यह कार्बन उत्सर्जन को कम करते हुए अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये एक स्थायी समाधान के रूप में परमाणु ऊर्जा पर ज़ोर देता है।
    • वर्ष 2023 तक, भारत 6,780 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 22 परमाणु रिएक्टर संचालित करता है।
    • भारत परमाणु सुरक्षा अभिसमय पर हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी (NFU) के प्रति प्रतिबद्धता: भारत ‘नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी’ का पालन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि परमाणु अस्त्रों का प्रयोग केवल निवारक के रूप में तथा परमाणु हमले के प्रतिशोध में किया जाए। 
    • भारत के वर्ष 2003 के परमाणु सिद्धांत ने NFU नीति की पुनः पुष्टि की, यद्यपि इसमें उभरते खतरों के प्रत्युत्तर में परिवर्तन की गुंजाइश छोड़ी गई।
    • भारत के परमाणु अस्त्र कार्यक्रम का उद्देश्य विश्वसनीय न्यूनतम निवारण कायम रखना तथा सामरिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।  
  • परमाणु अप्रसार में सामरिक स्वायत्तता: भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, लेकिन इसकी भेदभावपूर्ण प्रकृति को अस्वीकार करते हुए इसके लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है। 
    • भारत को वर्ष 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) द्वारा छूट प्रदान की गई थी, जिसके तहत उसे NPT पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद परमाणु व्यापार में संलग्न होने की अनुमति दी गई थी।
    • भारत ने फ्राँस, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, नामीबिया, कनाडा, अर्जेंटीना, कज़ाकिस्तान आदि के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • वैश्विक अप्रसार पहल में सक्रिय भूमिका: भारत सुदृढ़ घरेलू सुरक्षा उपायों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अप्रसार प्रयासों का समर्थन करता है। 
    • इसने अपने असैन्य परमाणु संयंत्रों के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के प्रति प्रतिबद्धता जताई है।
    • भारत ने स्वेच्छा से कुछ असैन्य परमाणु सुविधाओं को IAEA सुरक्षा उपायों के अंतर्गत रखा है।
  • असैन्य और सामरिक आवश्यकताओं में संतुलन: भारत अपने असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और अपने सामरिक परमाणु शस्त्रागार के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखता है। 
    • भारत का स्वदेशी त्रि-स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम थोरियम भंडार का लाभ उठाता है तथा असैन्य परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता पर बल देता है।
    • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) जैसी सामरिक सुविधाएँ भारत के स्वदेशी विकास और आत्मनिर्भरता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं।
  • जलवायु लक्ष्यों में उभरती भूमिका: भारत पेरिस समझौते के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिये परमाणु ऊर्जा को महत्त्वपूर्ण मानता है। 
    • यह वर्ष 2070 तक अपने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के हिस्से के रूप में अपने परमाणु ऊर्जा पोर्टफोलियो का विस्तार करने की योजना बना रहा है।
    • भारत के विद्युत उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का योगदान लगभग 3% है, लेकिन अगले दशक में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है।

वैश्विक परमाणु व्यवस्था में बदलाव के कारण भारत के सामने क्या खतरे हैं?

  • वैश्विक अस्त्र नियंत्रण समझौतों का क्षरण: न्यूस्टार्ट के निलंबन जैसी प्रमुख शस्त्र नियंत्रण संधियों के विघटन से परमाणु प्रसार और अस्त्रों की होड़ का माहौल बनता है, जिससे भारत के सुरक्षा परिदृश्य पर प्रभाव पड़ता है। 
    • वैश्विक मानदंडों की कमी से क्षेत्रीय अस्त्रों के निर्माण का जोखिम बढ़ गया है।
    • चीनी विरोध के कारण NSG में भारत की गैर-सदस्यता, नागरिक उपयोग के लिये उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी तक उसकी पहुँच को सीमित करती है।
  • परंपरागत संघर्षों में सामरिक परमाणु खतरे: पाकिस्तान का ‘पूर्ण स्पेक्ट्रम निवारण (Full Spectrum Deterrence)’ सिद्धांत और सामरिक परमाणु अस्त्रों की तैनाती, परंपरागत संघर्षों के दौरान तनाव बढ़ने के जोखिम को बढ़ाती है। 
    • क्षेत्रीय युद्ध में परमाणु उपयोग की संभावना क्षेत्रीय स्थिरता को कमज़ोर करती है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों के कारण बढ़ी हुई भेद्यता: हाइपरसोनिक मिसाइलों, साइबर युद्ध और AI-संचालित लक्ष्यीकरण प्रणालियों में प्रगति से भारत की भेद्यता बढ़ गई है।
    • महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना पर साइबर हमले, जैसे कि वर्ष 2019 में भारत के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में कथित मैलवेयर, कमज़ोरियों को रेखांकित करते हैं।
  • बहुध्रुवीय विश्व में बदलते गठबंधन: चीन-रूस रणनीतिक साझेदारी और पाकिस्तान के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी विनिमय जैसे उभरते गठबंधन भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा को अस्थिर कर सकते हैं। 
    • इन साझेदारियों से भारत के विरुद्ध साझा प्रौद्योगिकियाँ या समन्वित नीतियाँ बन सकती हैं।
    • रूस द्वारा बेलारूस में परमाणु क्षमता संपन्न इस्कंदर-एम मिसाइलों की तैनाती, अतीत में परमाणु सहयोग के लिये पाकिस्तान को दिये गए रूसी समर्थन को प्रतिबिंबित करती है।
  • भारत की NFU नीति पर दबाव: भारत की ‘नो फर्स्ट यूज़’ (NFU) नीति चुनौतियों का सामना कर रही है, क्योंकि विरोधियों की ओर से बढ़ते खतरों के कारण इसमें पुनः समायोजन आवश्यक हो गया है। 
    • पाकिस्तान द्वारा सामरिक परमाणु तैनाती और चीन की आक्रामकता भारत को अपनी रक्षात्मक स्थिति पर पुनर्विचार करने के लिये मजबूर कर सकती है।
  • परमाणु विकास से आर्थिक और पर्यावरणीय जोखिम: वैश्विक परमाणु ऊर्जा नीतियों में बदलाव, साथ ही भारत की महत्त्वाकांक्षी परमाणु ऊर्जा विस्तार, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं। 
    • संघर्ष क्षेत्रों (जैसे- यूक्रेन में ज़पोरीज़िया) में परमाणु दुर्घटनाएँ पड़ोसी क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले परमाणु नतीज़ों के जोखिम को उजागर करती हैं।

बढ़ते परमाणु खतरे से निपटने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ और आधुनिक बनाना: भारत को अपने परमाणु शस्त्रागार के आधुनिकीकरण में निवेश करना चाहिये जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइलों और मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (MIRV) प्रौद्योगिकियों जैसे उन्नत वितरण प्रणालियों का विकास शामिल है। 
    • इससे चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न खतरों के विरुद्ध एक विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता सुनिश्चित होगी। 
    • INS अरिहंत श्रेणी का लाभ उठाते हुए, सर्वाइवेबल सेकंड-स्ट्राइक क्षमता के लिये पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) प्रणालियों को उन्नत किया जाना चाहिये।
  • परमाणु अवसंरचना के लिये साइबर सुरक्षा में सुधार: साइबर हमलों के जोखिमों को कम करने के लिये, भारत को अत्याधुनिक साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करना चाहिये और परमाणु अवसंरचना को डिजिटल खतरों से बचाने के लिये एक समर्पित एजेंसी की स्थापना करनी चाहिये। 
    • नियमित ऑडिट, सिमुलेशन और वैश्विक साइबर सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग आवश्यक है।
    • कुडनकुलम मैलवेयर हमले (वर्ष 2019) जैसी घटनाओं से सबक लेकर AI-संचालित निगरानी प्रणालियों को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।
  • नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी (NFU) का पुनर्मूल्यांकन और परिशोधन: NFU को आधारशिला के रूप में बनाए रखते हुए, भारत को रणनीतिक अस्पष्टता को बढ़ाने और विरोधियों को अपनी रक्षात्मक स्थिति का फायदा उठाने से रोकने के लिये अपने परमाणु सिद्धांत में सशर्त लचीलापन लाना चाहिये।
    • यह सुधार पाकिस्तान द्वारा सीमित परमाणु उपयोग या चीन की आक्रामक परमाणु नीतियों को रोक सकता है।
    • जैविक या रासायनिक हमलों जैसे गैर-परमाणु खतरों के प्रत्युत्तर में "बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई" के लिये शर्तों को स्पष्ट किया जाना चाहिये।
  • परमाणु प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास में तेज़ी लाना: भारत को थोरियम आधारित रिएक्टरों पर ज़ोर देते हुए अपने तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ाकर परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • इससे आयात पर निर्भरता कम होती है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के बीच समुत्थानशीलता सुनिश्चित होती है।
    • थोरियम उपयोग के लिये उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR) परियोजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • परमाणु ऊर्जा उत्पादन को विकेंद्रित करने के लिये अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश किया जाना चाहिये।
  • परमाणु कमान और नियंत्रण प्रणाली को सुदृढ़ करना: भारत को संकट के दौरान प्रभावी निर्णय लेने की क्षमता सुनिश्चित करने के लिये अपने परमाणु कमान और नियंत्रण बुनियादी अवसंरचना को उन्नत करना चाहिये।
    • इसमें संचार प्रणालियों में सुधार करना तथा इसके नेतृत्व एवं महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करना शामिल है।
    • प्रतिक्रिया समय को कम करने के लिये AI-आधारित पूर्व-चेतावनी प्रणालियों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • वैश्विक शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण का समर्थन: भारत को हाइपरसोनिक मिसाइलों और AI-संचालित अस्त्र प्रणालियों जैसे उभरते खतरों से निपटने के लिये अस्त्र नियंत्रण पर एक नए वैश्विक फ्रेमवर्क का समर्थन करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये। 
    • इससे भारत की कूटनीतिक विश्वसनीयता बढ़ती है और यह परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
    • वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये राजीव गांधी कार्य योजना (वर्ष 1988) पर चर्चा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिये।
    • अस्थिरता उत्पन्न करने वाली प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंध लगाने के लिये आम सहमति बनाने हेतु G-20 जैसे मंचों पर समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग किया जाना आवश्यक है।
  • सामरिक लाभ के लिये क्वाड और अन्य क्षेत्रीय गठबंधनों का लाभ उठाना: क्वाड और इसी तरह के मंचों के माध्यम से भारत खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यास एवं समुद्री सुरक्षा को बढ़ाकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में परमाणु जोखिमों का समाधान कर सकता है।
    • क्वाड के वार्षिक मालाबार नौसैनिक अभ्यास में परमाणु जोखिम शमन अभ्यास को शामिल किया जाना चाहिये।
    • क्षेत्र में परमाणु आपूर्ति शृंखला सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
  • परमाणु नीति में जन जागरूकता और पारदर्शिता को बढ़ावा देना: भारत को अपने नागरिकों को परमाणु सुरक्षा एवं इसके रणनीतिक सिद्धांत के संदर्भ में शिक्षित करना चाहिये ताकि जनता का विश्वास सुनिश्चित हो सके और संकट के दौरान घबराहट को रोका जा सके। 
    • नीति में पारदर्शिता राष्ट्रीय एकता को बढ़ाती है और विरोधियों को गलत सूचना का फायदा उठाने से रोकती है।
    • परमाणु सुरक्षा के लिये बहुपक्षीय कूटनीति का लाभ उठाने पर आवधिक लेख प्रकाशित किया जाना चाहिये।
  • परमाणु सुरक्षा के लिये बहुपक्षीय कूटनीति का लाभ उठाना: वैश्विक परमाणु सुरक्षा और संरक्षा मानकों को बढ़ाने, अनुपालन तथा सहयोग सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
    • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में भारत के समावेश को सुनिश्चित करने तथा उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों तक पहुँच को सक्षम करने के लिये इसमें सुधार किये जाने चाहिये।
    • हाइपरसोनिक मिसाइल प्रसार और AI-संचालित परमाणु प्रणालियों जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों के साथ सहयोग करना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

वैश्विक परमाणु व्यवस्था में उथल-पुथल भारत के लिये बड़ी चुनौतियाँ पेश कर रही है। इस जटिल परिदृश्य से निपटने के लिये भारत को अपनी परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को प्रबल करना होगा, अपने शस्त्रागार का आधुनिकीकरण करना होगा और साइबर सुरक्षा में निवेश करना होगा। साथ ही, भारत को वैश्विक अस्त्र नियंत्रण को पुनर्जीवित करने और परमाणु अस्त्र मुक्त विश्व की स्थापना के लिये कूटनीतिक प्रयासों में शामिल होना चाहिये। रणनीतिक स्वायत्तता एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बीच संतुलन बनाकर भारत अपने सुरक्षा हितों की रक्षा कर सकता है और एक अधिक स्थिर एवं शांतिपूर्ण विश्व में योगदान दे सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. वैश्विक सुरक्षा गतिशीलता के संदर्भ में भारत के लिये उभरते परमाणु खतरों का मूल्यांकन कीजिये। इन जोखिमों को कम करने के लिये भारत को कौन से रणनीतिक उपाय अपनाने चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिऐक्टर ‘आई.ए.ई.ए.सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते?  (2020) 

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)


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एसएमएस अलर्ट
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