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एथिक्स


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परमाणु हथियारों पर नैतिकता

  • 06 Nov 2024
  • 21 min read

हिरोशिमा और नागासाकी बम विस्फोटों के बचे लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन निहोन हिडांक्यो को वर्ष 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किये जाने से परमाणु हथियारों से उत्पन्न नैतिक चुनौतियों पर वैश्विक चर्चा पुनः शुरू हो गई है। परमाणु बम विस्फोटों के विनाशकारी प्रभाव और परमाणु युद्ध के निरंतर खतरे के कारण गहन नैतिक जाँच की आवश्यकता है। जबकि कुछ लोग शांति के लिये परमाणु निरोध को आवश्यक मानते हैं, वहीं अन्य लोग ऐसी विनाशकारी शक्ति के अधिकार को स्वाभाविक रूप से अनैतिक मानते हैं। यह नैतिक बहस केवल वैश्विक शक्तियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारत जैसे देशों में भी इसकी प्रबलता है, जो स्वयं परमाणु दुविधाओं का सामना कर रहे हैं।

परमाणु हथियारों के नैतिक आयाम क्या हैं?

  • परमाणु हथियार अनैतिक: परमाणु हथियारों को उनके विनाशकारी परिणामों के कारण व्यापक रूप से अनैतिक माना जाता है, जो तात्कालिक विनाश के साथ-साथ दीर्घकालिक पर्यावरणीय एवं मानवीय क्षति के रूप में भी हो सकते हैं।
  • मानवीय परिणाम: परमाणु हथियारों की भयावह मानवीय कीमत हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदियों से प्रदर्शित होती है। इन बमों ने तुरंत हजारों लोगों की जान ले ली और बचे हुए लोगों को लंबे समय तक पीड़ा का सामना करना पड़ा। विकिरण का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।
    • इससे पता चलता है कि परमाणु हथियार किसी भी नैतिक मानक से कहीं आगे हैं क्योंकि वे नागरिकों को हानि पहुँचाते हैं और पीढ़ियों तक उनकी पीड़ा का कारण बनते हैं।
  • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का उल्लंघन: आलोचकों का तर्क है कि परमाणु हथियार न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांतों, विशेषकर आनुपातिकता एवं भेदभाव के नियमों का उल्लंघन करते हैं।
    • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत उन सिद्धांतों का एक समूह है जो यह निर्धारित करते हैं कि कब युद्ध में शामिल होना उचित है और युद्ध को नैतिक रूप से कैसे संचालित किया जाना चाहिये। सिद्धांत को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है:
      • जूस एड बेलम (युद्ध का अधिकार): यह उन परिस्थितियों को निर्धारित करता है जिनके तहत युद्ध की उचित रूप से घोषणा की जा सकती है, जैसे उचित कारण, सही प्राधिकारी और अंतिम उपाय।
      • जूस इन बेल्लो (युद्ध में आचरण): यह नियंत्रित करता है कि युद्ध को नैतिक रूप से कैसे संचालित किया जाना चाहिये,आनुपातिकता सुनिश्चित करना, योद्धाओं और नागरिकों के बीच अंतर करना तथा कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करना।
    • परमाणु हथियार दोनों ही मामलों में विफल होते हैं। वे बिना किसी भेदभाव के जनसंहार करते हैं और किसी भी सैन्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यकता से अधिक हानि पहुँचाते हैं।
  • पूर्व-आक्रमण और निवारक युद्ध: एक अन्य नैतिक आयाम पूर्व-आक्रमण का विचार है। क्या किसी देश को परमाणु हथियार का प्रयोग करना चाहिये यदि उसे लगता है कि उस पर हमला होने वाला है?
    • इससे नैतिक प्रश्न उठते हैं। हम कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि खतरा वास्तविक है? यदि कोई देश पहले हमला करता है, तो वह डर के आधार पर निर्दोष लोगों की हत्या का जोखिम उठाता है। यहाँ नैतिक चिंता यह है कि तथ्य के स्थान पर भय से कार्य करने से अन्यायपूर्ण युद्ध हो सकते हैं।

परमाणु निवारण का नैतिकता से क्या संबंध है?

  • खतरों के संबंध में नैतिकता: नैतिक प्रश्न इस बात पर निर्भर करता है कि क्या परमाणु हथियारों के खतरे का उपयोग करना नैतिक रूप से सही है, जो कि भारी विनाश और नागरिकों की मृत्यु का कारण बन सकता है, भले ही इसका उद्देश्य युद्ध को रोकना हो।
    • यद्यपि परमाणु निवारण का लक्ष्य संघर्ष को रोकना है, लेकिन खतरा अपने आप में ऐसे कार्य करने की आकांक्षा का संकेत देता है जो निवारण विफल होने पर नैतिक रूप से अस्वीकार्य हो सकते हैं।
  • पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश (MAD): MAD का सुझाव है कि किसी भी परमाणु संघर्ष का परिणाम सम्पूर्ण विनाश होगा, जिससे सामूहिक विनाश की संभावना के बावजूद शांति बनाए रखने का नैतिक मुद्दा उठता है।
    • नैतिक प्रश्न यह है कि क्या वैश्विक सुरक्षा को एक ऐसी प्रणाली पर आधारित करना स्वीकार्य है जो संभावित रूप से मानवता को समाप्त कर सकती है यदि प्रतिरोध विफल हो जाता है।
  • आकस्मिक या अनधिकृत प्रक्षेपण: तकनीकी या मानवीय त्रुटियों के कारण आकस्मिक अथवा अनधिकृत परमाणु प्रक्षेपण की संभावना अनपेक्षित परमाणु संघर्ष के जोखिमों के बारे में नैतिक चिंताओं को जन्म देती है।
    • इस बारे में नैतिक प्रश्न हैं कि ऐसी आकस्मिक घटनाओं के परिणामों के लिये कौन ज़िम्मेदार है,और क्या ये जोखिम परमाणु निरोध के नैतिक औचित्य को कमज़ोर करते हैं।
  • सुरक्षा एवं वैश्विक स्थिरता: यद्यपि परमाणु निवारण कुछ देशों को सुरक्षा प्रदान कर सकता है, लेकिन यह अन्य देशों के लिये अस्थिरता भी उत्पन्न करता है, जिससे यह नैतिक प्रश्न उठता है कि क्या यह असमान सुरक्षा उचित है।
    • इससे एक नैतिक प्रश्न उठता है कि क्या यह उचित है कि परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र वैश्विक सुरक्षा पर हावी हो जाएं, जिससे गैर-परमाणु राष्ट्र अधिक असुरक्षित हो जाएं।
  • परमाणु हथियारों की होड़ और निरस्त्रीकरण: चूँकि विशाल शस्त्रागार होने से कोई देश अधिक खतरनाक हो जाता है, बहुत से लोग सोचते हैं कि विश्व युद्ध को रोकने के लिये निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करना देशों का नैतिक दायित्व है।
    • निवारक नीतियों द्वारा संचालित हथियारों की होड़ से हथियारों का अनियंत्रित संचय होता है, जिससे तनाव बढ़ने के के स्थान पर शांति को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी के बारे में नैतिक चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • परमाणु निवारण बनाम शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: शांति बनाए रखने के लिये भय का प्रयोग परमाणु निवारण का आधार है, जो खतरों के आधार पर शांति की व्यवहार्यता एवं नैतिकता के बारे में नैतिक प्रश्न उठाता है।
    • नैतिक तर्क प्राय: यह सुझाते हैं कि कूटनीति एवं सहयोग के माध्यम से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, व्यवस्था बनाए रखने के लिये परमाणु खतरों पर निर्भर रहने की तुलना में बेहतर, नैतिक रूप से सही विकल्प है।

वैश्विक परमाणु प्रशासन पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?

  • विश्वबंधुत्व: विश्वबंधुत्व का मानना ​​है कि हम सभी एक वैश्विक समुदाय के सदस्य हैं, चाहे उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी हो। इस दृष्टिकोण से, परमाणु हथियार केवल कुछ देशों के लिये नहीं बल्कि सभी मनुष्यों के लिये खतरा हैं।
    • विश्वबंधुत्व का तर्क है कि विश्व स्तर पर मानव जीवन की रक्षा करने के नैतिक कर्तव्य हेतु परमाणु हथियारों से पूरी तरह छुटकारा पाना आवश्यक है। उनका मानना ​​है कि राष्ट्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक सहयोग ही मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिये।
  • उदारवादी अंतर्राष्ट्रीयवाद: उदार अंतर्राष्ट्रीयवाद इस विचार का समर्थन करता है कि वैश्विक सुरक्षा केवल अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है। यह सिद्धांत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) जैसी संधियों का समर्थन करता है, जो परमाणु हथियारों के प्रसार को सीमित करता है।
  • रचनावाद/निर्मितिवाद: रचनावादी इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि किस प्रकार वैश्विक मानदंड और मूल्य राष्ट्रों के परमाणु हथियारों के बारे में सोचने के तरीके को आकार प्रदान करते हैं। अतीत में, परमाणु हथियार रखने को शक्ति के संकेत के रूप में देखा जाता था। लेकिन अब, बहुत से लोग निरस्त्रीकरण को एक नैतिक लक्ष्य के रूप में देखते हैं। परमाणु हथियारों के बारे में सोच में बदलाव से पता चलता है कि मानदंडों में बदलाव से किस प्रकार अधिक नैतिक शासन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • वैश्विक न्याय सिद्धांत: वैश्विक न्याय सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में निष्पक्षता के लिए तर्क देते हैं। इस दृष्टिकोण से, परमाणु हथियार असमानता को जन्म देते हैं। कुछ राष्ट्र परमाणु हथियारों से अपनी रक्षा कर सकते हैं, जबकि अन्य असुरक्षित रह जाते हैं। वैश्विक न्याय निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है ताकि कोई भी देश परमाणु हमले की धमकी देकर दूसरों पर हावी न हो सके।

भारत की परमाणु सिद्धांत नीति क्या है?

    • परमाणु सिद्धांत नीति: भारत की परमाणु सिद्धांत नीति विश्वसनीय न्यूनतम निवारण बनाए रखने के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें संयम और ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया गया है। इस सिद्धांत को पहली बार आधिकारिक रूप से वर्ष 1999 में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा रेखांकित किया गया था और बाद में वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा इसे अपनाया गया था।
      • नो फर्स्ट यूज पॉलिसी: भारत की पहले प्रयोग न करने की नीति (No First Use policy) को परमाणु निवारण में एक नैतिक रुख के रूप में तैयार किया गया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि परमाणु हथियारों का प्रयोग केवल प्रतिशोध में किया जाएगा।
        • यह नीति भारत को एक उत्तरदायित्वपूर्ण परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती है, जो परमाणु संघर्ष के खतरे को कम करने के लिये प्रतिबद्ध है। हालाँकि, आलोचकों का तर्क है कि यह संयमित नीति भी ऐसे हथियारों को रखने के नैतिक जोखिमों को पूरी तरह से संबोधित नहीं करती है।
      • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण: भारत का विश्वसनीय न्यूनतम निवारण सिद्धांत पहले उपयोग न करने की नीति और बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की क्षमता के साथ, निवारण के लिये न्यूनतम लेकिन प्रभावी परमाणु शस्त्रागार बनाए रखने पर केंद्रित है।
      • वैश्विक निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता: भारत ने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण का निरंतर समर्थन किया है तथा विश्व भर में परमाणु शस्त्रागारों में चरणबद्ध एवं सत्यापन योग्य कमी लाने का आह्वान किया है।
        • सुरक्षा कारणों से अपने परमाणु शस्त्रागार को बनाए रखते हुए, भारत का तर्क है कि वैश्विक निरस्त्रीकरण ही परमाणु दुविधा का अंतिम नैतिक समाधान है।
    • भारत की परमाणु नीति पर दृष्टिकोण : 
      • महात्मा गांधी का शांतिवाद: अहिंसा के प्रबल समर्थक गांधी जी ने परमाणु हथियारों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, बम का उपयोग करते समय, समग्र रूप से मानवता ने नैतिक दृष्टिकोण से कुछ आवश्यक चीज़ों को खो दिया था।
        • उनका दर्शन भारतीय विचार में शांतिवादी परंपरा के अनुरूप है, जो मानता है कि सामूहिक विनाश के हथियार अहिंसा और मानवीय गरिमा के मूल्यों के साथ असंगत हैं।
      • के. सुब्रमण्यम का रणनीतिक दृष्टिकोण: एक प्रमुख भारतीय रणनीतिकार के. सुब्रमण्यम ने राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक बुराई के रूप में परमाणु निवारण की वकालत करते हुए एक विपरीत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
        • उनके विचार केवल निवारण के लिये परमाणु हथियार बनाए रखने की नैतिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देते हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत पहले प्रयोग न करने (NFU) की नीति के प्रति प्रतिबद्ध रहे।
      • होमी भाभा का व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी भाभा ने परमाणु क्षमताओं के विकास को उचित ठहराते हुए इस बात पर बल दिया था कि ऐसे विश्व में जहाँ अन्य प्रमुख शक्तियों के पास परमाणु हथियार हैं, भारत को अपनी सुरक्षा करने की आवश्यकता है।
        • उनका दृष्टिकोण विवेकपूर्ण दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करता है, जहाँ परमाणु क्षमता को संघर्ष को बढ़ावा देने के स्थान पर शांति सुनिश्चित करने के साधन के रूप में देखा जाता है।

    आगे की राह

    • अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे को मजबूत बनाना: जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये परमाणु शस्त्रागार में चरणबद्ध कटौती के लिये स्पष्ट समयसीमा और सत्यापन तंत्र के साथ कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिये।
    • एक वैश्विक परमाणु निवारण व्यवस्था बनाना: राष्ट्रों को एक वैश्विक परमाणु संयम शासन स्थापित करने के लिये सहयोग करना चाहिये जो पारदर्शिता, परमाणु संघर्ष को कम करने और आपसी विश्वास निर्माण को प्राथमिकता देता है।
    • नैतिक नेतृत्व एवं निरस्त्रीकरण कूटनीति को बढ़ावा देना: परमाणु हथियार संपन्न देशों को निवारण के स्थान पर कूटनीति को बढ़ावा देकर नैतिक नेतृत्व अपनाना चाहिये।
      • परमाणु हथियारों के नैतिक एवं मानवीय परिणामों पर वैश्विक सम्मेलन जैसी कूटनीतिक पहल अंतर्राष्ट्रीय सम्मति को निरस्त्रीकरण की ओर स्थानांतरित कर सकती है।
    • परमाणु जोखिम न्यूनीकरण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना: तकनीकी सुरक्षा उपायों के माध्यम से आकस्मिक परमाणु युद्ध के जोखिम को न्यूनतम करने के लिये वैश्विक प्रयास किये जाने चाहिये।
      • इसमें परमाणु कमांड और नियंत्रण प्रणालियों के लिये विफलता-सुरक्षित तंत्र विकसित करना, गलतफहमी को कम करने के लिये AI एवं संचार प्रोटोकॉल में सुधार करना तथा परमाणु शस्त्रागारों का नियमित जोखिम आकलन करना शामिल है।
    • निरस्त्रीकरण प्रयासों में नागरिक समाज को शामिल करना: सरकारों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को परमाणु निरस्त्रीकरण पर वैश्विक बहस में नागरिक समाज को शामिल करना चाहिये, जमीनी स्तर पर आंदोलनों को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा संधि वार्ताओं एवं वैश्विक मंचों में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
    • मानवीय प्रभाव आकलन विकसित करना: अंतर्राष्ट्रीय निकायों को परमाणु हथियारों के उपयोग के दीर्घकालिक मानवीय प्रभाव पर निहोन हिडांक्यो द्वारा किये गए कार्य के समान व्यापक अध्ययन करना चाहिये, ताकि न केवल रणनीतिक, बल्कि नैतिक आधार पर निरस्त्रीकरण हेतु एक मज़बूत आधार निर्मित किया जा सके।
    • नए परमाणु मुक्त क्षेत्र निर्मित करना: राष्ट्रों को अतिरिक्त परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्रों के निर्माण के लिये प्रयास करना चाहिये, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ परमाणु संघर्ष अधिक है, जैसे मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया।
    • जवाबदेहिता एवं पारदर्शिता बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय परमाणु शासन को पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी चाहिये। निरस्त्रीकरण संधियों के अनुपालन की निगरानी और परमाणु-सशस्त्र राज्यों को उनकी प्रतिबद्धताओं के लिये जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये बहुपक्षीय सत्यापन तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    नैतिक दृष्टिकोण से, परमाणु हथियार स्वाभाविक रूप से मानवीय गरिमा और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। उनका अस्तित्व नैतिक दृष्टि से घृणित है, क्योंकि इससे सामूहिक विनाश और निर्दोष लोगों की जान जाने की संभावना है, भले ही वे निवारक के रूप में कार्य करते हों। एक सुरक्षित वैश्विक भविष्य को भय और विनाश के स्थान पर सहयोग और जीवन के प्रति सम्मान पर आधारित निरस्त्रीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिये। परमाणु खतरों से मुक्त विश्व प्राप्त करना न केवल एक रणनीतिक आवश्यकता है, बल्कि मानवता के लिये एक नैतिक दायित्व भी है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न:

    प्रश्न 1. वैश्विक सुरक्षा पर इसके प्रभाव और न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के सिद्धांतों पर विचार करते हुए परमाणु निवारण के नैतिक आयामों की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। (15 अंक)

    प्रश्न 2. परमाणु हथियारों पर भारत के परिप्रेक्ष्य पर उसकी 'पहले प्रयोग नहीं' नीति और वैश्विक निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (15 अंक)

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