न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परमाणु निरस्त्रीकरण

  • 24 Oct 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नोबेल शांति पुरस्कार 2024, परमाणु हथियार अप्रसार (NPT), व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस, परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW)  

मेन्स के लिये:

परमाणु निरस्त्रीकरण: आवश्यकता, रूपरेखा, चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार जापान में परमाणु बम से प्रभावित लोगों के कल्याण में लगे संगठन निहोन हिडांक्यो को परमाणु मुक्त विश्व प्राप्त करने हेतु किये गए प्रयासों के लिये प्रदान किया गया है। 

वर्तमान में परमाणु हथियारों से खतरा

  • हिरोशिमा बम की क्षमता 15 किलोटन थी जबकि आधुनिक हथियार (जैसे कि वर्ष 1961 में रूस द्वारा परीक्षण किया गया ज़ार बॉम्बा) 50 मेगाटन की क्षमता तक पहुँच सकता है, जिससे ये 3,800 गुना अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
  • आधुनिक परमाणु शस्त्रागार में न केवल बड़े पैमाने पर सामरिक हथियार शामिल हैं बल्कि युद्ध में उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए सामरिक हथियार भी शामिल हैं, जिससे परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ जाता है।

परमाणु निरस्त्रीकरण क्या है?

  • परिचय:
    • परमाणु निरस्त्रीकरण से तात्पर्य वैश्विक सुरक्षा को बढ़ावा देने और परमाणु युद्ध के संभावित विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिये परमाणु हथियारों को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है। 
      • इसमें परमाणु शस्त्रागार को नियंत्रित करने और अंततः समाप्त करने के उद्देश्य से कई प्रयास शामिल हैं, जिनका अंतिम लक्ष्य परमाणु मुक्त विश्व प्राप्त करना है।
  • आवश्यकता:
    • मानवीय प्रभाव: परमाणु विस्फोट के तात्कालिक परिणामों में व्यापक जनहानि, सामूहिक विनाश और विकिरण संबंधी बीमारियाँ शामिल हैं। 
      • इसके अतिरिक्त कैंसर और आनुवंशिक क्षति जैसे दीर्घकालिक प्रभाव जीवित बचे लोगों और उनकी पीढ़ियों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
    • पर्यावरणीय परिणाम: परमाणु विस्फोट से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति हो सकती है, जिसमें "न्यूक्लियर विंटर" भी शामिल है, जिसमें विस्फोटों से उत्पन्न धुआँ से सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध हो जाता है जिससे वैश्विक शीतलन, कृषि उत्पादन में गिरावट और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान होता है।
    • नैतिक दृष्टिकोण: परमाणु हथियारों की विनाशकारी क्षमता उनके उपयोग के बारे में नैतिक प्रश्न उठाती है। 
      • उनके प्रभाव की प्रकृति न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत एवं मानवीय कानून के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
    • आर्थिक लागत: परमाणु शस्त्रागार को बनाए रखने और निर्मित करने के लिये काफी अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है जिनका उपयोग विकास के साथ गरीबी और जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य प्रमुख मुद्दों के समाधान के लिये किया जा सकता है।

परमाणु निरस्त्रीकरण हेतु कौन-से ऐतिहासिक प्रयास किये गए हैं?

  • परमाणु हथियार अप्रसार संधि (NPT): परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1970 में NPT को लागू किया गया था। 
    • हालाँकि इसके भेदभावपूर्ण होने तथा परमाणु-संपन्न एवं गैर-परमाणु संपन्न राज्यों के बीच भेदभाव करने के लिये इसकी आलोचना की गई।
  • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT): हालाँकि अभी तक पूरी तरह से यह लागू नहीं हुई है लेकिन CTBT के तहत सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिसका उद्देश्य नए हथियारों के विकास पर रोक लगाना है।
  • परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW): TPNW के तहत किसी भी परमाणु हथियार गतिविधि में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। 
    • इनमें परमाणु हथियारों का विकास, परीक्षण, उत्पादन, अधिग्रहण, कब्जा, भंडारण, उपयोग या उपयोग की धमकी न देने संबंधी वचनबद्धताएँ शामिल हैं।

 

परमाणु प्रसार और परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये विभिन्न रूपरेखाएँ क्या हैं?

  • वैश्विक:
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA): IAEA परमाणु समझौतों के अनुपालन की निगरानी करने तथा यह सुनिश्चित करने में भूमिका निभाती है कि परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाए।
    • क्षेत्रीय परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्र (NWFZ): ये क्षेत्र (जहाँ देश परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रतिबद्ध हैं) निरस्त्रीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं। NWFZ का विस्तार वैश्विक प्रतिबंध के लिये गति देने में मदद कर सकता है।
      • पहला NWFZ लैटिन अमेरिका में स्थापित किया गया था (ट्लाटेलोल्को की संधि)।

  • भारत का रुख:
    • नो फर्स्ट यूज़ (NFU) की नीति: भारत ने परमाणु हथियारों के संदर्भ में नो फर्स्ट यूज़ की प्रतिज्ञा ली है लेकिन इसने हमला होने पर जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित रखा है। 
      • NFU नीति का उद्देश्य निवारक व्यवस्था बनाए रखते हुए परमाणु संघर्ष के जोखिम को कम करना है।
    • एक गैर-परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में NPT में शामिल होने से अस्वीकार करना: भारत ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं तथा तर्क दिया है कि यह भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों (P5) को अपने परमाणु शस्त्रागार को बनाए रखने की अनुमति देता है, जबकि इसके तहत अन्य देशों को अपने परमाणु हथियार खत्म करने की आवश्यकता है।
    • शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना: भारत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा उपायों के तहत ऊर्जा और वैज्ञानिक विकास के लिये परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग का समर्थन करता है।
  • अन्य संबंधित पहल: वासेनार अरेंजमेंट और ऑस्ट्रेलिया समूह
    • यद्यपि ये पहल प्रत्यक्ष तौर पर परमाणु निरस्त्रीकरण पर केंद्रित नहीं हैं फिर भी ये परमाणु प्रसार को रोकने और वैश्विक सुरक्षा को बढ़ाने में सहायक हैं।

नोट: 

  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु परीक्षण रोधी दिवस: 29 अगस्त को मनाए जाने वाले इस दिवस का उद्देश्य लोगों को परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता के बारे में शिक्षित करना तथा जीवन और स्वास्थ्य पर उनके हानिकारक प्रभावों को रोकना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण और अप्रसार जागरूकता दिवस: यह 5 मार्च को मनाया जाता है और इसके तहत अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने, नागरिकों की रक्षा करने तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये निरस्त्रीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस: परमाणु हथियारों के खतरे के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिये प्रतिवर्ष 26 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस मनाया जाता है।

परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक परिदृश्य:
    • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: परमाणु हथियारों को कुछ राष्ट्रों द्वारा आक्रामकता के विरुद्ध निवारक के रूप में देखा जाता है जिससे हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिये, अमेरिका, रूस और पाकिस्तान जैसे परमाणु-सशस्त्र संपन्न राष्ट्रों के बीच परमाणु हथियारों की होड़ से निरस्त्रीकरण के प्रयास जटिल होते हैं।
      • कुछ देशों (जैसे कि अमेरिका) के पास NFU नीति का अभाव है जो चीन और रूस जैसे देशों के लिये चिंता का विषय है तथा इससे यह देश संभावित खतरों की प्रतिक्रया में अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार एवं आधुनिकीकरण करने के लिये प्रेरित होते हैं।
    • सत्यापन और अनुपालन संबंधी मुद्दे: यह सुनिश्चित करना जटिल है कि देश निरस्त्रीकरण संधियों का पालन करें क्योंकि परमाणु हथियार कार्यक्रम आमतौर पर गोपनीय रहते हैं, जिससे यह सत्यापित करना जटिल हो जाता है कि हथियारों को ठीक से नष्ट किया गया है या नहीं।
    • तकनीकी विकास: हाइपरसोनिक मिसाइलों के साथ मिसाइल रोधी रक्षा प्रणालियों और साइबर क्षमताओं जैसी नई प्रौद्योगिकियों की दौड़ में जटिलताओं से निरस्त्रीकरण प्रयास बाधित होते हैं।
  • भारत का परिदृश्य:
    • चीन-पाकिस्तान गठजोड़: चीन का तेजी से परमाणु आधुनिकीकरण और पाकिस्तान के साथ उसकी सैन्य साझेदारी, भारत के लिये दोहरी रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करती है। 
    • ये घटनाक्रम तथा वर्तमान सीमा तनाव (दोनों मोर्चों पर) के कारण, भारत को विश्वसनीय प्रतिरोध सुनिश्चित करने के लिये अपनी परमाणु क्षमताएँ बढ़ाने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है।
    • भारत का दोहरा दृष्टिकोण: भारत को वैश्विक निरस्त्रीकरण की वकालत करते हुए अपने परमाणु प्रतिरोध को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भारत अपने शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रहा है, जिसमें K-4 जैसी पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) विकसित करना शामिल है। 
      • भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण को महत्त्व देता है।
    • औपचारिक शस्त्र नियंत्रण समझौतों का अभाव: शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और रूस (USSR) के बीच मौजूद द्विपक्षीय हथियार नियंत्रण संधियों के विपरीत, भारत के पास अपने परमाणु पड़ोसियों के साथ औपचारिक हथियार नियंत्रण समझौते नहीं हैं। 
    • ऐसे समझौतों का अभाव इस क्षेत्र में विश्वास निर्माण तथा परमाणु जोखिमों का प्रभावी प्रबंधन करने के प्रयासों को जटिल बनाता है।

आगे की राह

  • शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकियों में निवेश: ऊर्जा उत्पादन के लिये शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी की उन्नति को बढ़ावा देने के साथ यह प्रदर्शित करना आवश्यक है कि परमाणु क्षमताएँ सैन्य उपयोगों तक सीमित रहने के बजाय लाभकारी उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती हैं।
    • गैर-सैन्य उपयोग के लिये परमाणु अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना, जिससे राष्ट्रों के बीच विश्वास भी बढ़ेगा।
  • सत्यापन और अनुपालन तंत्र को बढ़ावा देना: ऐसी तकनीकों और कार्यप्रणालियों में निवेश करना चाहिये जो परमाणु निरस्त्रीकरण समझौतों की निगरानी और सत्यापन को बेहतर बनाती हैं। IAEA जैसे संगठनों के साथ सहयोग से इनका अनुपालन बेहतर हो सकता है।
    • ऐसे स्वतंत्र निकायों का निर्माण करना चाहिये जो परमाणु शस्त्रागार की स्थिति की पुष्टि कर सकें तथा निरस्त्रीकरण प्रतिबद्धताओं का पालन सुनिश्चित कर सकें।
  • संवाद और कूटनीति को बढ़ावा देना: परमाणु हथियारों और निरस्त्रीकरण से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये परमाणु और गैर-परमाणु देशों के बीच नियमित संवाद शुरू करना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय संगठन जैसे मंच ऐसी चर्चाओं को सुविधाजनक बना सकते हैं।
    • पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाली पहल (जैसे कि परमाणु शस्त्रागार और सैन्य सिद्धांतों पर जानकारी साझा करना) विकसित करना चाहिये। इससे संकट के दौरान अविश्वास को कम करने एवं तनाव को बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है।
  • परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्रों (NWFZs) को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्रों का विस्तार करना, वैश्विक निरस्त्रीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
    • भारत दक्षिण एशिया में ऐसे क्षेत्रों की स्थापना की वकालत करने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है, जिससे राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सहयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ परमाणु खतरे को कम करने में भी मदद मिल सके।

निष्कर्ष

परमाणु हथियारों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करना वैश्विक सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है लेकिन रासायनिक और जैविक हथियारों से उत्पन्न खतरों पर ध्यान देना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। ये हथियार अक्सर परमाणु हथियारों की तुलना में अधिक घातक और सुलभ होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मज़बूत नियामक ढाँचे को बढ़ावा देकर एक ऐसे सुरक्षित विश्व का निर्माण हो सकता है, जहाँ सभी प्रकार के युद्ध के जोखिम काफी कम हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: परमाणु निरस्त्रीकरण पर भारत की स्थिति का परीक्षण कीजिये। वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में में विश्व को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों के साथ क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और आशंकाओं पर चर्चा कीजिये। (2018)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2