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  • 04 Oct, 2024
  • 21 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-जर्मनी साझेदारी में संबंधों का सुदृढ़ीकरण

यह संपादकीय 02/10/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित "Delhi-Berlin partnership has kept pace with India’s rise" पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत और जर्मनी के बीच सुरक्षा, सतत् विकास और आर्थिक विकास में सुदृढ़ सहयोग की विशेषता वाली साझेदारी है, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। जर्मनी में बढ़ते भारतीय प्रवासी सांस्कृतिक संबंधों को और समृद्ध करते हैं और पेशेवर नेटवर्क को सुदृढ़ करते हैं, जिससे आपसी सहमति में वृद्धि होती है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और जर्मनी, डिजिटल प्रौद्योगिकी, कौशल विकास, हरित और सतत् विकास साझेदारी, ऊर्जा संक्रमण, नवीकरणीय ऊर्जा, जैव विविधता, तरंग शक्ति, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता (BTIA), हरित हाइड्रोजन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्मार्ट शहर, उद्योग 4.0, स्टार्टअप 

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में भारतीय विदेश नीति का महत्त्व 

भारत और जर्मनी के बीच संबंध एक सुदृढ़ और गतिशील साझेदारी में विकसित हुए हैं, जिसकी विशेषता आपसी सम्मान, साझा मूल्य और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की प्रतिबद्धता है। वर्ष 1951 में राजनयिक संबंधों की स्थापना और वर्ष 2000 में 'सामरिक साझेदारी' के औपचारीकरण के बाद से, दोनों देशों ने व्यापार, प्रौद्योगिकी, रक्षा और सतत् विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग ने उल्लेखनीय वृद्धि को प्रदर्शित किया है। द्विपक्षीय व्यापार लगभग 33 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया है और भारत में लगभग 2,200 जर्मन कंपनियाँ अवस्थित हैं, जिससे आर्थिक संभावनाएँ बहुत अधिक हैं।

भारत में आगामी 7वां अंतर्सरकारी परामर्श वैश्विक गतिशीलता में स्थित्यंरण के बीच सामरिक निर्देशन का एक महत्त्वपूर्ण क्षण होगा। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष के अंत में नई दिल्ली में जर्मन व्यवसाय का 18वां एशिया-प्रशांत सम्मेलन नवाचार के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से डिजिटल प्रौद्योगिकी और हरित समाधान जैसे क्षेत्रों में। यद्यपि दोनों देश अपने संबंधों को गहन करने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिये शैक्षिक आदान-प्रदान और प्रतिभा गतिशीलता को संवर्द्धित करना महत्त्वपूर्ण होगा। पिछले सहयोगों द्वारा रखी गई नींव एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है जो न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है बल्कि सांस्कृतिक और तकनीकी आदान-प्रदान में भी समृद्ध है, जो भारत और जर्मनी को वैश्विक मंच पर महत्त्वपूर्ण साझेदार के रूप में स्थापित करता है।

भारत और जर्मनी के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन-कौन से हैं?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत और जर्मनी के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का समृद्ध इतिहास है, जो 19वीं सदी के उतरार्द्ध से आरंभ होता है तथा वर्ष 2000 से विभिन्न समझौतों के माध्यम से एक औपचारिक सामरिक साझेदारी स्थापित हुई है।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध:
    • व्यापार में वृद्धि: भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि हुई है, जो वार्षिक लगभग 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। इसके अतिरिक्त, जर्मनी से निवेश लगभग 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
      • यह वर्द्धित व्यापार परिमाण आर्थिक साझेदारी के महत्त्व को रेखांकित करता है, जिसमें जर्मनी भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है।
    • महत्त्वपूर्ण निवेश उपस्थिति: भारत में जर्मनी का निवेश पर्याप्त है, लगभग 2,200 जर्मन कंपनियाँ विभिन्न क्षेत्रों में संचालित हैं। 
      • यह निवेश न केवल रोज़गार सृजन में योगदान देता है, बल्कि प्रौद्योगिकी प्रगति को भी सुगम बनाता है तथा आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करता है।
    • बाज़ार में प्रवेश में सहायता: "मेक इन इंडिया मिटेलस्टैण्ड" (MIIM) कार्यक्रम जर्मन लघु एवं मध्यम उद्यमों और पारिवारिक व्यवसायों को सहायता प्रदान करता है, जिससे 152 कंपनियों को भारत में लगभग 1.46 बिलियन यूरो का निवेश करने में सहायता मिलती है, जिनमें विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के 30 से अधिक अग्रणी कंपनियाँ शामिल हैं।
    • उभरते अवसर: अक्तूबर 2024 में नई दिल्ली में आयोजित होने वाला जर्मन बिजनेस का एशिया-प्रशांत सम्मेलन, भारतीय और जर्मनी के व्यवसायों के बीच सहयोग संवर्द्धन तथा नए निवेश और संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रस्तुत करता है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग: 
    • दीर्घकालिक साझेदारी: भारत-जर्मन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र ने 50 वर्षों से अधिक समय से औद्योगिक अनुसंधान को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
      • यह साझेदारी नवाचार और प्रौद्योगिकी विनिमय के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • शैक्षिक विनिमय: भारतीय और जर्मन विश्वविद्यालयों के बीच 500 से अधिक साझेदारियों के साथ, दोनों राष्ट्र ज्ञान अंतरण और कौशल विकास को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिससे सहयोगी अनुसंधान और नवाचार का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • भविष्य के लिये दिशानिर्देश: नए विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी दिशानिर्देश की योजना का उद्देश्य प्रमुख वैज्ञानिक क्षेत्रों में सहयोग को गहन करना है, जिससे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति हो सकती है।
  • हरित एवं सतत् विकास साझेदारी:
    • जलवायु कार्रवाई के प्रति प्रतिबद्धता: हरित एवं सतत विकास साझेदारी (2022 में आरंभ) जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये दोनों देशों की प्रतिबद्धता को प्रकट करता है। 
    • वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: भारत और जर्मनी ने 3.22 बिलियन यूरो के 38 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। यह विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं को प्रकट करता है ।
    • नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान संकेंद्रण: दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा पर सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं, जिसका उदाहरण हाल ही में विश्वभर में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिये भारत-जर्मनी मंच का शुभारंभ है, जिसका उद्देश्य संवहनीय समाधान विकसित करना और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करना है।
    • नवीन परियोजनाएँ: महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा परियोजनाओं जैसी सहयोगात्मक पहल, इस साझेदारी के व्यावहारिक परिणामों का उदाहरण हैं तथा सतत् विकास में नवीनता की संभावनाओं को प्रदर्शित करती हैं।
  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग: 
    • सैन्य सहयोग: भारत-जर्मनी सैन्य सहयोग उप समूह (MCSG) की 17वीं बैठक अक्तूबर 2024 में बर्लिन, जर्मनी में आयोजित की गई, जिसमें द्विपक्षीय सैन्य सहयोग का संवर्द्धन और रक्षा संबंधों के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • MCSG भारत के एकीकृत रक्षा कर्मी और जर्मन सशस्त्र बलों के बीच सामरिक और परिचालन चर्चाओं के माध्यम से रक्षा संबंधों को संवर्द्धित करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है
    • वर्द्धित सैन्य सहयोग: "तरंग शक्ति" जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास रक्षा सहयोग के प्रति वर्द्धित प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं। 
    • समुद्री सहयोग: भारतीय नौसेना के युद्धपोत INS तबर की हैम्बर्ग यात्रा ने दोनों देशों के बीच समुद्री सहयोग और सांस्कृतिक विनिमय को सुदृढ़ किया।
    • रक्षा व्यापार का विस्तार: रक्षा व्यापार की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसमें वर्ष 2021 से वर्ष 2023 के मध्य सात गुना की वृद्धि देखी गई है (34 मिलियन यूरो से 2,136 मिलियन यूरो तक)।
      • यह वृद्धि सामरिक सैन्य सहयोग पर बढ़ते ध्यान संकेंद्रण को प्रदर्शित करती है।
    • हिंद-प्रशांत का सामरिक महत्त्व: 
      • दोनों राष्ट्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं तथा साझा चुनौतियों से निपटने और क्षेत्रीय स्थिरता के वर्द्धन हेतु अपनी कार्यनीतियों को संरेखित करते हैं।
  • शिक्षा एवं लोगों के मध्य संपर्क:
    • वर्द्धित छात्र उपस्थिति: वर्तमान में लगभग 50,000 भारतीय छात्र जर्मनी में अध्ययन कर रहे हैं, जो दोनों देशों के बीच शैक्षिक संबंधों के महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
    • प्रतिभा गतिशीलता की सुसाध्यता: वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित गतिशीलता और प्रवासन समझौते का उद्देश्य दक्ष पेशेवरों के लिये मार्ग को सुव्यवस्थित करना, कार्यबल सहयोग को प्रोत्साहित करना और आर्थिक संपर्क को संवर्द्धित करना है।
    • सांस्कृतिक विनिमय पहल: छात्रवृत्ति और इंटर्नशिप के अवसरों में वृद्धि से लोगों के बीच संबंध सुदृढ़ होंगे तथा आपसी सहयोग को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • सहयोग के क्षेत्र

भारत-जर्मनी संबंधों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • व्यापार एवं निवेश बाधाएँ:
    • द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) का अभाव: BIT का अभाव गहन आर्थिक सहभागिता के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा प्रस्तुत करता है। 
      • जर्मनी का यूरोपीय संघ के माध्यम से भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता (BITA) है, परंतु उसके पास इस पर अलग से वार्ता करने की क्षमता नहीं है।
      • इससे निवेशकों का विश्वास और सुरक्षा सीमित हो जाती है, जो स्थिर निवेश वातावरण को संवर्द्धित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • व्यापार उदारीकरण पर चिंताएँ: भारत के व्यापार उदारीकरण उपायों और श्रम विनियमों के संबंध में जर्मनी का संदेह, वार्ता को जटिल बना सकता है तथा आर्थिक संबंधों में वृद्धि को बाधित कर सकता है।
    • नियामकीय संरेखण की आवश्यकता: नियामकीय विसंगतियों को दूर करना तथा व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, सुचारू आर्थिक संपर्क को सुगम बनाने तथा पारस्परिक लाभ को प्रोत्साहित करने के लिये आवश्यक है।
  • भू-राजनीतिक मुद्दों पर भिन्न दृष्टिकोण:
    • अनियमित असहमति: यद्यपि भारत और जर्मनी कई वैश्विक मुद्दों पर एकमत हैं, तथापि दृष्टिकोण में अनियमित मतभेद राजनय संबंधी प्रयासों को जटिल बना सकते हैं। 
      • इस तरह के मतभेदों को रचनात्मक संवाद बनाए रखने के लिये सावधानीपूर्वक हल करने की आवश्यकता होती है।
    • राष्ट्रीय हितों में संतुलन: विदेश नीति के प्रति भारत का व्यावहारिक दृष्टिकोण, जर्मनी के नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर बल देने से संघर्ष उत्पन्न कर सकता है। 
      • गलतफहमियों को कम करने और सहयोग को सुदृढ़ करने के लिये निरंतर संवाद आवश्यक है।
    • सामरिक वार्ता का महत्त्व: भू-राजनीतिक मामलों पर नियमित परामर्श से विश्वास और आत्मविश्वास का निर्माण हो सकता है तथा साझा हितों पर संरेखण सुनिश्चित हो सकता है।
  • वीज़ा और आवागमन संबंधी चिंताएँ:
    • वीज़ा प्रक्रिया की चुनौतियाँ: वीज़ा निर्गत करने की प्रक्रिया में विलंब और जटिलताएँ प्रतिभा की गतिशीलता में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे दक्ष पेशेवरों का प्रवाह प्रभावित हो सकता है और शैक्षिक विनिमय सीमित हो सकता है।
      • लोगों के बीच बेहतर संपर्क संवर्द्धन, ज्ञान के विनिमय को सक्षम बनाने तथा द्विपक्षीय संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिये वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता पर ध्यान केंद्रण: शैक्षिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता पर सहयोग करने से गतिशीलता में वृद्धि हो सकती है और जर्मनी में भारतीय पेशेवरों के लिये सहज समेकन की सुविधा मिल सकती है।

आगे की राह 

  • व्यापार और निवेश संवर्द्धन:
    • वर्तमान व्यापार 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ, आपसी निवेश में वृद्धि की पर्याप्त गुंजाइश है।
    • भारत का उभरता हुआ कारोबारी वातावरण गहन आर्थिक संबंधों के लिये उत्प्रेरक का कार्य करेगा।
    • एक व्यापक BIT की स्थापना करके द्विपक्षीय निवेश संधि पर संवाद करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और व्यापार संचालन सुगम हो जाएगा, जिससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रण:
    • भविष्य में विकास को गति देने के लिये नवाचार, विशेष रूप से डिजिटल प्रौद्योगिकियों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फिनटेक और स्वच्छ/हरित प्रौद्योगिकियों पर अधिक बल दिया जाना चाहिये।
  • रक्षा सहयोग का सुदृढ़ीकरण:
    • रक्षा सहयोग पर अधिक ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर इस क्षेत्र में भारतीय निजी क्षेत्र के विस्तार को देखते हुए।
    • इस सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये निर्यात नियंत्रण को अद्यतन करना आवश्यक होगा।
    • हाल के हवाई अभ्यास और गोवा में आगामी नौसैनिक दौरों का सैन्य संबंधों को बढ़ाने के लिये लाभ उठाया जाना चाहिए।
  • हरित एवं सतत् विकास में प्रगति:
    • हरित एवं सतत् विकास साझेदारी में निरंतर प्रगति हो रही है, जिसमें 3.22 बिलियन यूरो की राशि के 38 समझौते हुए हैं
    • हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं, जिनका और अधिक अन्वेषण किया जाना चाहिये।
  • शैक्षिक और प्रतिभा गतिशीलता का संवर्द्धन:
    • विगत् पांच वर्षों में जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या दोगुनी होकर 43,000 हो गई है, परंतु प्रतिभा का प्रवाह काफी बढ़ सकता है।
    • दक्षता गतिशीलता के लिये रूपरेखा स्थापित करने से इस संबंध को सुदृढ़ करने में सहायता मिलेगी, जो अमेरिका के साथ जीवंत सेतु के समान है।
  • वैश्विक मुद्दों पर सतत् परामर्श :
    • साझेदारी में विश्वास और आत्मविश्वास उत्पन्न करने के लिये वैश्विक मामलों पर निरंतर संवाद महत्त्वपूर्ण है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने के लिये भारतीय और जर्मन विदेश मंत्रियों के बीच चर्चा में यह मुख्य मुद्दा होगा।

निष्कर्ष

भारत में 7वां अंतर्सरकारी परामर्श महत्त्वपूर्ण होगा, जो दोनों देशों के लिये महत्त्वपूर्ण समय के दौरान प्रमुख मुद्दों पर कार्यनीतिक दिशा-निर्देश प्रदान करेगा। दोनों देश वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये सतत् विकास, नवाचार और सहयोगात्मक प्रयासों के लिये प्रतिबद्ध हैंइस अक्तूबर में नई दिल्ली में होने वाला 18वां एशिया-प्रशांत जर्मन बिजनेस सम्मेलन (APK 2024) भारतीय और जर्मन कंपनियों के बीच व्यापार सहयोग और संबंध को संवर्द्धित करने के लिये आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: परिवर्तित होती भू-राजनीति में भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स: 

Q. 'अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है'। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020)


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