आंतरिक सुरक्षा
भारत का रक्षा आधुनिकीकरण
यह एडिटोरियल 31/01/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित लेख “How India’s defence sector is shaping up?” पर आधारित है। यह लेख वर्ष 2023 में विश्व के चौथे सबसे बड़े रक्षा व्ययकर्त्ता के रूप में भारत की स्थिति के अतिरिक्त कोविड विश्वमारी के बाद बढ़ते घरेलू निर्यात एवं विदेशी सैन्य आयात पर कम निर्भरता के साथ रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर बदलाव पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का रक्षा परिदृश्य, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020, ब्रह्मोस मिसाइल, iDEX योजना, मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स, यूएस-इंडिया INDUS-X, अग्नि प्राइम मिसाइल, रक्षा औद्योगिक गलियारे, रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, CERT-In, INS विक्रांत, S-400 मिसाइल प्रणाली, आत्मनिर्भर भारत, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मेन्स के लिये:भारत के रक्षा आधुनिकीकरण में महत्त्वपूर्ण प्रगति, भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
भारत वर्ष 2023 में विश्वके चौथे सबसे बड़े रक्षा व्ययकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखता है, जो सैन्य व्यय में केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद सबसे आगे है। देश की रणनीतिक धुरी इसकी मज़बूत पूंजीगत व्यय वृद्धि में स्पष्ट है, जो अन्य रक्षा क्षेत्रों से आगे है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि कोविड विश्वमारी के बाद के युग ने भारत के रक्षा परिदृश्य में एक परिवर्तनकारी बदलाव को चिह्नित किया है। विदेशी सैन्य आयात पर निर्भरता वित्त वर्ष 2022 से स्थिर हो गई है, घरेलू रक्षा निर्यात ने एक प्रभावशाली धनात्मक प्रक्षेपवक्र (उन्नयन) तैयार किया है। आयात पर निर्भरता में कमी और निर्यात क्षमताओं में वृद्धि की यह दोहरी प्रवृत्ति भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता एवं आधुनिकीकरण के अब तक के सफर में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
भारत के रक्षा आधुनिकीकरण में प्रमुख प्रगति क्या हैं?
- स्वदेशी रक्षा विनिर्माण में परिवर्तन: भारत स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर और आयात पर निर्भरता को कम करके रणनीतिक रूप से आत्मनिर्भर रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की ओर बढ़ रहा है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 जैसी नीतियाँ घरेलू खरीद को प्राथमिकता देने का आदेश देती हैं, जिससे यह परिवर्तन प्रेरित होता है।
- सत्र 2023-24 में, घरेलू रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड ₹1.27 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जो सत्र 2022-23 से 16.7% की वृद्धि है और सत्र 2024-25 के लिये ₹1,40,691 करोड़ के पूंजीगत खरीद बजट का 75% उन्नत आयुध प्रणालियों सहित स्वदेशी उत्पादों के लिये आरक्षित किया गया है।
- रक्षा निर्यात में वृद्धि: भारत तीव्रता से रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है तथा लागत प्रभावी, उच्च गुणवत्ता वाले आयुध उपलब्ध कराकर अपनी वैश्विक उपस्थिति को नया आयाम दे रहा है।
- ब्रह्मोस मिसाइल और पिनाक रॉकेट प्रणाली जैसे आयुध निर्माण को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो गई है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात बढ़कर 21,083 करोड़ रुपए हो गया, जो एक दशक पहले की तुलना में 31 गुना वृद्धि है।
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक निर्यात को बढ़ाकर 35,000 करोड़ रुपए तक पहुँचाना है, जिसके लिये वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये iDEX योजना जैसी पहलों का लाभ उठाया जाएगा।
- सामरिक रक्षा साझेदारी: भारत महत्त्वपूर्ण तकनीकी अंतराल को कम करने और उन्नत प्लेटफॉर्मों के सह-विकास के लिये वैश्विक रक्षा अग्रणियों के साथ रणनीतिक साझेदारी कर रहा है।
- प्रोजेक्ट P-75(I) पनडुब्बी के लिये थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स का सहयोग तथा AI और हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों के सह-विकास के लिये यूएस-इंडिया INDUS-X पहल रणनीतिक सहयोग के उदाहरण हैं।
- वर्ष 2023 में भारत और फ्राँस ने संयुक्त रूप से एयरो इंजन का उत्पादन करने पर सहमति व्यक्त की, जो उच्च तकनीक स्वदेशीकरण के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- मिसाइल प्रौद्योगिकी और सामरिक प्रणालियों में सफलताएँ: भारत के मिसाइल कार्यक्रम सामरिक स्वायत्तता और उन्नत निवारण प्राप्त करने में इसकी प्रगति का उदाहरण हैं।
- 'प्रलय' सामरिक मिसाइल के शामिल होने से शत्रुओं के विरुद्ध युद्धक्षेत्र में समुत्थानशक्ति प्राप्त होगी।
- इसके अलावा, वर्ष 2024 में अग्नि प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण, बेहतर परिशुद्धता के साथ भारत की लंबी दूरी की मारक क्षमताओं को प्रबल कर रहा है जो रक्षा प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण प्रगति को प्रदर्शित करेगा।
- क्षेत्रीय विकास के लिये रक्षा औद्योगिक गलियारों का विस्तार: तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना क्षेत्रीय विकास एवं विनिर्माण क्षमता पर भारत के फोकस का उदाहरण है।
- इन गलियारों का लक्ष्य 20,000 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित करना है। अकेले तमिलनाडु-गलियारे से वर्ष 2024 तक 11,794 करोड़ रुपए की प्रतिबद्धता मिलने की उम्मीद है, जिसमें L&T जैसी प्रमुख कंपनियाँ विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित कर रही हैं, जिससे क्षेत्रीय रक्षा नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है।
- अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा रक्षा पर ध्यान केंद्रित: भारत उभरते खतरों से निपटने के लिये अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा को अपनी रक्षा रणनीतियों में एकीकृत कर रहा है।
- रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना तथा निगरानी एवं संचार के लिये उपग्रहों की नियोजित तैनाती भारत की उभरती प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करती है।
- संभावित सैन्य अनुप्रयोगों के लिये वर्ष 2025 में गगनयान मिशन और संवेदनशील रक्षा नेटवर्क की सुरक्षा के लिये CERT-In की साइबर सुरक्षा पहल गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में तत्परता को दर्शाती है।
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों का कार्यान्वयन: पाँच सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों को लागू करके सरकार द्वारा स्वदेशीकरण में तीव्रता लाने का प्रयास किया गया है, तथा निर्धारित समय सीमा के बाद उनके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- इस पहल ने नवाचार को बढ़ावा दिया है तथा K9 वज्र तोपखाना प्रणाली और LCA तेजस के कल-पुर्जे अब स्वदेशीकृत हो गए हैं।
- इन सूचियों की सफलता भारत की आयात को उच्च गुणवत्ता वाले घरेलू उत्पादों से प्रतिस्थापित करने की क्षमता को उजागर करती है, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता काफी कम हो जाती है।
- समुद्री डकैती रोधी और समुद्री क्षमताओं को प्रबल करना: भारत समुद्री डकैती से निपटने और विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री हितों की रक्षा के लिये अपनी नौसैनिक शक्ति को बढ़ा रहा है।
- भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत का वर्ष 2023 में नौसेना में शामिल होना बढ़ती समुद्री शक्ति को दर्शाता है।
- सुमेधा श्रेणी के गश्ती जहाज़ों को नियमित रूप से अदन की खाड़ी जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में तैनात किया जाता है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- आयात पर निरंतर निर्भरता: भारत विश्वके सबसे बड़े आयुध आयातकों में से एक बना हुआ है, जिससे रक्षा तैयारियों में इसकी रणनीतिक स्वायत्तता कमज़ोर हो रही है।
- कुल वैश्विक आयुध आयात में 11% हिस्सेदारी के साथ, भारत वर्ष 2018-22 में प्रमुख आयुधों का विश्व का सबसे बड़ा आयातक था।
- उदाहरण के लिये, रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने S-400 मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति को बाधित कर दिया है, जिससे महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों के लिये बाह्य आपूर्तिकर्त्ताओं पर भारत की निर्भरता की कमज़ोरियाँ उजागर हो गई हैं।
- आयुध क्रय में विलंब: भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया प्रशासन की अकुशलताओं से ग्रस्त है, जिसके परिणामस्वरूप उन्नत आयुध प्राप्त करने में काफी विलंब होता है।
- उदाहरण के लिये, तेजस हल्के लड़ाकू विमान (LCA) को अवधारणा से लेकर सेना में शामिल होने तक दशकों का समय लग गया, जिससे प्रणालीगत अकुशलता उजागर हुई।
- इसी प्रकार, नौसेना के लिये परियोजना 75(I) पनडुब्बी अधिग्रहण, जो हिंद महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, में बार-बार विलंब हो रहा है, जिससे परिचालन में अंतराल उत्पन्न हो रहा है।
- पुराना माल: भारत के रक्षा माल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा पुराना हो चुका है, जिससे परिचालन दक्षता और युद्ध तत्परता पर असर पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय सेना के टैंक बेड़े में अभी भी T-72 टैंक शामिल हैं, जो 40 वर्ष से अधिक पुराने हैं तथा तकनीकी रूप से अप्रचलित हैं।
- इसी प्रकार, 1980 के दशक में शामिल किये गए बोफोर्स हॉवित्जर, आधुनिक तोप प्रणालियों में प्रगति के बावजूद, तोपखाने का मुख्य आधार बने हुए हैं।
- अपर्याप्त स्वदेशी विनिर्माण क्षमता: आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत आत्मनिर्भरता के प्रयासों के बावजूद, भारत का रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र अविकसित बना हुआ है, विशेष रूप से इंजन और सेंसर जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के मामले में।
- उदाहरण के लिये, भारत अभी भी अपने LCA तेजस के लिये जेट इंजन हेतु जनरल इलेक्ट्रिक (GE) पर निर्भर है, जो कि मुख्य प्रौद्योगिकी क्षमताओं में अंतर को दर्शाता है।
- यद्यपि सत्र 2023-24 में रक्षा उत्पादन बढ़कर ₹1.27 लाख करोड़ हो गया, फिर भी यह नवाचार के मामले में वैश्विक मानकों से पीछे है।
- आधुनिकीकरण के लिये अपर्याप्त बजट: भारत का रक्षा बजट आवंटन, यद्यपि बढ़ रहा है, परंतु राजस्व व्यय (वेतन, पेंशन) पर केंद्रित है, जिससे आधुनिकीकरण के लिये सीमित गुंजाइश बचती है।
- वेतन एवं भत्ते 30.68% तथा पेंशन 22.7%, दोनों मिलाकर वर्तमान बजट के तहत कुल रक्षा व्यय का 53.38 % है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विशेष रूप से तीव्रता से विकसित हो रहे सुरक्षा परिवेश के कारण आधुनिकीकरण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आवश्यक धनराशि की कमी है।
- रक्षा अवसंरचना में साइबर सुरक्षा कमज़ोरियाँ: डिजिटल प्रणालियों पर भारत की बढ़ती निर्भरता महत्त्वपूर्ण रक्षा अवसंरचना को साइबर खतरों के प्रति उजागर करती है।
- वर्ष 2013 में, रिपोर्टों से पता चला कि चीनी हैकरों ने DRDO की प्रणालियों में सेंध लगाई, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) से संबंधित संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक फाइलें हैक कर लीं और उन्हें चीन के गुआंगडोंग स्थित सर्वर पर स्थानांतरित कर दिया।
- जबकि CERT-In जैसी पहल का उद्देश्य ऐसे खतरों से निपटना है, भारत साइबर सुरक्षा की तैयारी के मामले में अमेरिका जैसे वैश्विक समकक्षों से पीछे है, जिससे संवेदनशील डेटा तथा प्रणालियों के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है।
- संयुक्त कमान संरचना का अभाव: एकीकृत कमान संरचना का अभाव सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच अंतर-संचालन को बाधित करता है, जिससे संयुक्त संचालन प्रभावित होता है।
- वर्ष 2020 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के गठन के बावजूद, थिएटर कमांड का क्रियान्वयन नहीं किया गया है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 के गलवान घाटी में घटित संघर्ष के दौरान, बलों के बीच निर्बाध समन्वय की कमी के कारण इष्टतम तैनाती रणनीतियों में विलंब हुआ।
- कमज़ोर घरेलू अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र: भारत अपने रक्षा बजट का 1% से भी कम अनुसंधान एवं विकास पर व्यय करता है, जो वैश्विक मानकों से काफी कम है।
- DRDO जैसी संस्थाओं को अर्जुन टैंक और कावेरी इंजन के विकास जैसी प्रमुख परियोजनाओं में विलंब से जूझना पड़ रहा है, जिससे विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ रही है।
- स्वदेशी नवाचार में अंतर तकनीकी स्वतंत्रता प्राप्त करने में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
- रक्षा विनिर्माण में सीमित कुशल कार्यबल: भारत को रोबोटिक्स, AI और सटीक विनिर्माण जैसे उन्नत क्षेत्रों में कुशल कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो नेक्स्ट जनरेशन की रक्षा प्रणालियों के लिये आवश्यक हैं।
- कौशल भारत पहल, यद्यपि आशाजनक है, लेकिन इसने रक्षा क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं की पर्याप्त रूप से पूर्ति नहीं किया है, जिससे घरेलू विनिर्माण और नवाचार की वृद्धि धीमी हो गई है।
- रक्षा कूटनीति में भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: भू-राजनीतिक गतिशीलता के बीच, विशेषकर अमेरिका-रूस के बीच बढ़ते तनाव के बीच, रूसी आयुधों पर भारत की निर्भरता जोखिम उत्पन्न करती है।
- इसके साथ ही, भारत की समुद्री सुरक्षा भी दबाव में बनी हुई है, क्योंकि चीन हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा रहा है, जिसमें क्षेत्र में निगरानी जहाज़ों की तैनाती भी शामिल है।
- इन दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिये मज़बूत कूटनीतिक और रक्षा रणनीतियों की आवश्यकता है।
रक्षा आधुनिकीकरण को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- समय पर अधिग्रहण के लिये खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: भारत को रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 को संशोधित और सरल बनाकर रक्षा खरीद में विलंब को कम करना चाहिये, ताकि तेज़ी से निर्णय लेने एवं अनुबंध को अंतिम रूप देने में आसानी हो।
- अधिग्रहण के लिये एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली प्रशासन की अकुशलताओं को समाप्त करने में मदद कर सकती है।
- AI-संचालित खरीद प्रणालियों को लागू करने से समयसीमा को और भी बेहतर बनाया जा सकता है तथा पारदर्शिता बढ़ाई जा सकती है।
- पूंजीगत व्यय के लिये बजट आवंटन में वृद्धि: आधुनिकीकरण के लिये रक्षा बजट का उच्च प्रतिशत आवंटित करना महत्त्वपूर्ण क्षमता अंतराल को कम करने के लिये आवश्यक है।
- बढ़ी हुई धनराशि से LCA तेजस मार्क II और S-400 मिसाइल प्रणालियों जैसे उन्नत प्लेटफॉर्मों को शामिल करने में तीव्रता आ सकती है, जो प्रतिद्वंद्वियों के साथ तकनीकी समानता बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- योजनाओं के एकीकरण के माध्यम से स्वदेशी रक्षा विनिर्माण को मज़बूत करना: मेक इन इंडिया और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के संयोजन से इंजन, एवियोनिक्स और सेंसर जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इन योजनाओं को जोड़कर भारत निजी भागीदारों और स्टार्टअप्स को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के सह-विकास के लिये प्रोत्साहित कर सकता है, साथ ही आयात पर निर्भरता भी कम कर सकता है।
- प्रौद्योगिकी अंतरण के लिये वैश्विक साझेदारी का विस्तार: भारत को रक्षा प्लेटफॉर्मों के सह-विकास के लिये तकनीकी रूप से उन्नत देशों के साथ सहयोग को गहन करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र (INDUS-X) जैसी साझेदारियों ने AI और हाइपरसोनिक्स जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने के रास्ते खोल दिये हैं।
- इस तरह के सहयोग से प्रौद्योगिकी अंतराल को दूर करते हुए उन्नत प्रणालियों का स्थानीय उत्पादन संभव हो सकेगा।
- मज़बूत साइबर और अंतरिक्ष रक्षा क्षमताओं की स्थापना: साइबरस्पेस और बाह्य अंतरिक्ष में बढ़ते खतरों को देखते हुए, भारत को समर्पित साइबर रक्षा तथा अंतरिक्ष कमांड इकाइयों के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- CERT-In कार्यढाँचा को मज़बूत करना और अंतरिक्ष युद्ध में अमेरिका जैसे वैश्विक नेताओं के साथ साझेदारी को बढ़ाना कमजोरियों को दूर कर सकता है।
- बेहतर अंतर-संचालन के लिये संयुक्त थिएटर कमांड का कार्यान्वयन: भारत को निर्बाध संचालन के लिये सेना, नौसेना और वायु सेना को एकीकृत करने के लिये संयुक्त थिएटर कमांड के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये।
- थियेटर कमांड संसाधनों के उपयोग को बढ़ाएंगे और चीन-पाकिस्तान गठजोड़ जैसी चुनौतियों के लिये समन्वित प्रतिक्रिया को सक्षम करेंगे।
- iDEX योजना के माध्यम से स्टार्टअप्स और MSME का लाभ उठाना: iDEX (रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार) पहल के दायरे का विस्तार करके रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में नवीन स्टार्टअप्स को लाया जा सकता है।
- 200 से अधिक स्टार्टअप्स को शामिल करके पहले ही 14 व्यवहार्य प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा चुका है।
- iDEX को रक्षा औद्योगिक गलियारों से जोड़कर, MSME को UAV और सटीक निर्देशित युद्ध सामग्री जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के उत्पादन को बढ़ाने के लिये आवश्यक बुनियादी अवसंरचना तथा समर्थन प्राप्त हो सकता है।
- हिंद-प्रशांत चुनौतियों से निपटने के लिये नौसेना का आधुनिकीकरण: भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अपने नौसैनिक बेड़े के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- समुद्री प्रभुत्व बनाए रखने के लिये INS विक्रांत और भविष्य की परियोजना 75(I) पनडुब्बियों को शामिल करना आवश्यक है।
- नौसेना क्षमताओं को बढ़ाने से महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करके भारत के SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) दृष्टिकोण को भी समर्थन मिल सकता है।
- केंद्रित नीतियों के माध्यम से निर्यात क्षमताओं को बढ़ाना: भारत को ब्रह्मोस मिसाइल और आकाश वायु रक्षा प्रणालियों जैसे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्लेटफॉर्मों पर ध्यान केंद्रित करके एक प्रमुख रक्षा निर्यातक बनने का लक्ष्य रखना चाहिये।
- निर्यात अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना तथा रक्षा प्रदर्शनियों के माध्यम से वैश्विक खरीदारों के साथ संपर्क स्थापित करना भारत की बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
- वर्ष 2025 तक 35,000 करोड़ रुपए का निर्यात लक्ष्य हासिल करने से भारत के रक्षा उद्योग की वैश्विक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।
- रक्षा विनिर्माण के लिये कौशल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना: भारत को रक्षा उत्पादन के लिये रोबोटिक्स, AI और उन्नत विनिर्माण में विशेषज्ञता वाले कुशल कार्यबल के निर्माण में निवेश करना चाहिये।
- कौशल भारत मिशन को रक्षा क्षेत्र के साथ जोड़कर समर्पित प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाकर इस अंतर को दूर किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के रक्षा औद्योगिक गलियारों में कौशल उन्नयन की पहल से कुशल श्रमिकों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है।
- स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करना: रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास व्यय को बजट के कम से कम 5% तक बढ़ाने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है और आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
- DRDO जैसी संस्थाओं को जेट इंजन और हाइपरसोनिक मिसाइलों जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के सह-विकास के लिये निजी फर्मों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।
- रक्षा में हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: रक्षा में हरित प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से पर्यावरणीय प्रभाव कम हो सकता है और परिचालन दक्षता में वृद्धि हो सकती है। बिजली से चलने वाले सैन्य वाहन और ऊर्जा-कुशल ठिकानों को विकसित करने जैसी पहल वैश्विक संवहनीयता लक्ष्यों के साथ संरेखित हो सकती हैं।
- सृजन पोर्टल के अंतर्गत घरेलू फर्मों के साथ सहयोग से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि पर्यावरण अनुकूल नवाचारों का स्वदेशी स्तर पर विकास और क्रियान्वयन किया जाए।
निष्कर्ष:
भारत की रक्षा आधुनिकीकरण यात्रा आत्मनिर्भरता को मज़बूत करने और वैश्विक साझेदारी को अपनाने के बीच रणनीतिक संतुलन को दर्शाती है। स्वदेशी उत्पादन में वृद्धि, रक्षा निर्यात में वृद्धि और मिसाइल प्रौद्योगिकी में प्रगति जैसी उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण प्रगति को उजागर करती हैं। आगे की राह में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नवाचार, अंतर-संचालन और अनुकूलनशीलता पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा इसकी सुरक्षा और आर्थिक नीतियों में रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है। सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए और उनसे निपटने के उपाय सुझाइये। |
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