भूगोल
ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर का ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर, GEM का ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर, दुनिया भर में कोयला बिजली परियोजनाओं की स्थिति। मेन्स के लिये:वैश्विक ऊर्जा मॉनीटर, दुनिया भर में प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप सहित)। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दुनिया भर में कोयला परियोजनाओं को सूचीबद्ध करने वाली गैर-लाभकारी संस्था ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर (GEM) ने GEM के ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर का अपना त्रैमासिक अपडेट जारी किया है, जिसमें दुनिया भर में कोयला बिजली परियोजनाओं की स्थिति के बारे में कई प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया है।
GEM रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- कोयला निर्माण में वैश्विक रुझान:
- वर्ष 2023 में निर्माण शुरू होने वाली 95% से अधिक कोयला संयंत्र क्षमता चीन में है, जो नई कोयला परियोजनाओं में प्रभुत्व को दर्शाता है।
- लगातार दूसरे वर्ष नई कोयला बिजली क्षमता निर्माण में गिरावट देखी गई है, जो कई क्षेत्रों में कोयले के उपयोग को कम करने के संकेत हैं।
- विचाराधीन कोयला क्षमता:
- 32 देशों में 110 गीगावाट कोयला बिजली क्षमता पर विचार किया जा रहा है, जिससे पता चलता है कि बड़ी मात्रा में कोयला परियोजनाओं पर अभी भी विचार-विमर्श किया जा रहा है।
- भारत, बांग्लादेश और इंडोनेशिया अग्रणी देश हैं, जिनमें चीन के बाहर प्रस्तावित कोयला क्षमता का 83% हिस्सा शामिल है।
- परियोजना की स्थिति पर रुझान:
- वर्ष 2023 के पहले नौ महीनों में कई देशों में 18.3 गीगावाट क्षमता वाले कोयला चालित संयंत्र स्थापना परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई थी, जिसे स्थगित या रद्द कर दिया गया है।
- रद्द करने के बावजूद भारत, इंडोनेशिया, कज़ाखस्तान और मंगोलिया में 15.3 गीगावाट के पूरी तरह से कई नए प्रस्ताव सामने आए हैं ।
- जुलाई 2023 तक भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और वियतनाम चीन के बाहर निर्माणाधीन 67 गीगावाट कोयला विद्युत क्षमता के 84% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भारतीय परिदृश्य:
- भारत ने वर्ष 2032 तक कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करने की योजना बनाई है, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022-32 (NEP) में पहले निर्धारित लक्ष्य 27 गीगावाट की तुलना में 80 गीगावाट कर दिया गया है।
- भारत में विशिष्ट राज्यों ने कोयला संयंत्र परियोजनाओं में प्रगति दर्शाई है, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में परमिट दिये गए हैं और प्रगति की सूचना दी है।
- सिफारिशें:
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के बीच रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावी ढंग से सीमित करने के लिये बिना किसी विनियम के नए कोयला विद्युत संयंत्रों के निर्माण को रोकने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर (GEM) क्या है?
- परिचय:
- GEM स्वच्छ ऊर्जा के लिये विश्वव्यापी आंदोलन के समर्थन में जानकारी विकसित करने के साथ उसे साझा भी करता है।
- विकसित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा परिदृश्य का अध्ययन करके और समझ बढ़ाने वाले डेटाबेस, रिपोर्ट एवं इंटरैक्टिव टूल बनाकर GEM विश्व की ऊर्जा प्रणाली के लिये एक खुली मार्गदर्शिका निर्मित करना चाहता है।
- GEM के डेटा और रिपोर्ट के उपयोगकर्त्ताओं में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व बैंक और ब्लूमबर्ग ग्लोबल कोल काउंटडाउन शामिल हैं।
- ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर:
- यह एक ऑनलाइन डेटाबेस है जो प्रत्येक ज्ञात कोयला आधारित उत्पादन इकाई के साथ-साथ वर्ष 2010 से प्रस्तावित प्रत्येक नई इकाई (30 मेगावाट और बड़ी) की पहचान करता है और उसका मानचित्रण करता है।
- GEM द्वारा विकसित ट्रैकर प्रत्येक प्लांट का दस्तावेज़ीकरण करने के लिये फुटनोट WiKi पेजों का उपयोग करता है और इसे जनवरी एवं जुलाई के आसपास वार्षिक रूप से अपडेट किया जाता है।
कोयला क्या है?
- परिचय:
- यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो तलछटी चट्टानों के रूप में पाया जाता है और इसे प्राय: 'ब्लैक गोल्ड' के नाम से जाना जाता है।
- यह ऊर्जा का एक पारंपरिक स्रोत है और व्यापक रूप से उपलब्ध है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा एवं इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में बिजली उत्पादित करने के लिये किया जाता है। कोयले से प्राप्त बिजली को तापीय ऊर्जा कहा जाता है।
- विश्व के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत शामिल हैं।
- भारत में कोयला वितरण:
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- गोंडवाना कोयला भारत में कुल भंडार का 98% और कोयले के उत्पादन का 99% भाग है।
- गोंडवाना कोयला भारत के धातुकर्म ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाले कोयले का निर्माण करता है।
- यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) तथा नर्मदा घाटियों में पाया जाता है।
- टर्शियरी कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
- कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है लेकिन नमी और सल्फर प्रचुर मात्रा में होता है।
- टर्शियरी कोयला क्षेत्र मुख्यतः अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
- महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग की हिमालय की तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केरल शामिल हैं।
- गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
- वर्गीकरण:
- एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री), यह जम्मू-कश्मीर में कम मात्रा में पाया जाता है।
- बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री), यह झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
- लिग्नाइट (40 से 55% कार्बन सामग्री), यह राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
- पीट (40% से कम कार्बन सामग्री), यह कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 1. भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया था। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013) 1- उच्च भस्म अंश नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स परीक्षा:प्रश्न: गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न: "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये (2017) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
डॉलरीकरण और आर्थिक बदलाव
प्रिलिम्स के लिये:डॉलरीकरण, मुद्रास्फीति, विनिमय दरें, मौद्रिक नीति, डी-डॉलरीकरण, भारत के व्यापार समझौते, विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते मेंस के लिये:डॉलरीकरण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, डी-डॉलरीकरण प्रथाओं में वृद्धि के कारण। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
गंभीर मुद्रास्फीति और व्यापक निर्धनता से त्रस्त अर्जेंटीना को एक निर्णायक क्षण का सामना करना पड़ रहा है। डॉलरीकरण को देश की आर्थिक चुनौतियों के संभावित समाधान के रूप में देखा जाता है।
- अर्जेंटीना के हाल ही में निर्वाचित राष्ट्रपति ने अर्जेंटीना पेसो को डॉलर से बदलने का वादा किया है। हालाँकि अर्जेंटीना में डॉलर भंडार की कमी के कारण डॉलरीकरण के तत्काल कार्यान्वयन की संभावना प्रतीत नहीं होती है।
- डॉलरीकरण किसी देश में प्राथमिक मुद्रा के रूप में स्थानीय मुद्रा की जगह या पूरक के रूप में संयुक्त राज्य डॉलर का उपयोग करना तथा अपनाना है।
डॉलरीकरण किसी अर्थव्यवस्था को कैसे बचा सकता है?
- मुद्रास्फीति को स्थिर करना: अनियंत्रित धन आपूर्ति के कारण बढ़ती कीमतों के चक्र को तोड़कर, स्थिर मुद्रा शुरू करके डॉलरीकरण संभावित रूप से हाइपरइन्फ्लेशन पर अंकुश लगा सकता है। यह स्थिरीकरण अर्थव्यवस्था में विश्वास को बढ़ावा देता है, निवेश और उपभोक्ता व्यय को प्रोत्साहित करता है।
- उन्नत व्यापार अवसर: एक डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था निर्यात-उन्मुख रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करके उन्हें प्रोत्साहित करती है।
- स्थिर मुद्रा के साथ, विदेशी निवेशक विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के साथ संलग्न होने के लिये अधिक इच्छुक हैं। निर्यात के प्रति यह अभिविन्यास आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
- दीर्घकालिक योजना: एक स्थिर डॉलर मूल्य बेहतर दीर्घकालिक आर्थिक योजना की अनुमति देता है। स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के व्यवसाय, घरेलू मुद्रा के मूल्यह्रास की अस्थिरता से बाधित हुए बिना अधिक सटीक पूर्वानुमान और निवेश कर सकते हैं।
- सट्टेबाज़ी के जोखिमों में कमी: डॉलरीकरण विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव से जुड़े सट्टेबाज़ी के जोखिमों को कम कर सकता है।
- यह स्थिरता विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती है, क्योंकि इससे उन्हें कम जोखिम मिलने की अनुभूति होती है, जिससे अंततः पूंजी प्रवाह और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
- वित्तीय अनुशासन: मौद्रिक नीति पर नियंत्रण हटाकर डॉलरीकरण सरकारों को आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय नीतियों पर भरोसा करने के लिये मजबूर करता है।
- यह बदलाव अधिक विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन को प्रोत्साहित कर सकता है, साथ ही संभावित रूप से सरकारी अपव्यय पर भी अंकुश लगा सकता है और आर्थिक अनुशासन को बढ़ावा दे सकता है।
पूर्णतः डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था: इक्वाडोर
- इक्वाडोर की अर्थव्यवस्था इस संदर्भ में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। वर्ष 2000 के दशक में डॉलरीकरण के पश्चात प्रारंभिक राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, देश ने आर्थिक प्रगति का अनुभव किया। कम मुद्रास्फीति दर, कम ऋण अनुपात और बेहतर सामाजिक कल्याण ने इस तरह के कदम के संभावित लाभों को प्रदर्शित किया।
- हालाँकि इक्वाडोर की सफलता केवल डॉलरीकरण के कारण नहीं थी। 2000 के दशक के दौरान बढ़ते तेल और गैस भंडार ने आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा, विस्तारित सरकारी हस्तक्षेप और सामाजिक खर्च ने समृद्धि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉलरीकरण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- नीतिगत बाधाएँ: डॉलरीकरण किसी देश की मौद्रिक नीति को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित करने की क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से सीमित कर देता है।
- मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों पर नियंत्रण खोने से सरकार की आर्थिक मंदी का जवाब देने की क्षमता बाधित हो सकती है।
- आर्थिक आघात भेद्यता: स्थिर मुद्रा के साथ डॉलर वाली अर्थव्यवस्थाएँ बाह्य आर्थिक आघातों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं।
- उनके पास वैश्विक आर्थिक माहौल में अचानक आए बदलावों को संतुलित करने के लिये विनिमय दरों को समायोजित करने के लचीलेपन का अभाव है।
- ग्रीस की स्थिति विदेशी मुद्रा अपनाने से संबंधित मुद्दों के लिये एक चेतावनी उदाहरण है।
- हालाँकि ग्रीस द्वारा यूरो का उपयोग शुरू करने के बाद कुछ वृद्धि हुई थी, यूरोज़ोन संकट ने अपनी नीतियों पर नियंत्रण के बिना मुद्रा का उपयोग करने की समस्याओं को दिखाया।
- ग्रीस को यूरो का उपयोग करने के बदले में सख्त बजट कटौती और वित्तीय सहायता स्वीकार करनी पड़ी।
- सीमित निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: विनिमय दर पर नियंत्रण खोने से निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिये एक उपकरण के रूप में मुद्रा अवमूल्यन का उपयोग करने की देश की क्षमता सीमित हो सकती है।
- आंतरिक असंतुलन को दूर करने में असमर्थता: डॉलरीकरण अर्थव्यवस्था के भीतर आंतरिक संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित नहीं कर सकता है।
- विदेशी मुद्रा पर निर्भरता आंतरिक सुधारों की आवश्यकता पर भारी पड़ सकती है, जैसे उत्पादकता में सुधार या आय असमानता को संबोधित करना, जो निरंतर आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
नोट: IMF ने वर्ष 2022 में पाया कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अमेरिकी डॉलर में उतनी मात्रा में भंडार नहीं रख रहे हैं जितना कि वे पहले रखते थे।
डी-डॉलरीकरण क्या है?
- परिचय: डी-डॉलरीकरण किसी देश या क्षेत्र द्वारा अपनी वित्तीय प्रणाली या अर्थव्यवस्था में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिये जानबूझकर या अनजाने में की गई एक प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
- इसमें लेन-देन, भंडार, व्यापार या वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य निर्धारण के मानक के रूप में डॉलर के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न उपाय शामिल हो सकते हैं।
- संबद्ध कारण: सरकारें कई कारणों से डी-डॉलरीकरण का प्रयास कर सकती हैं, जैसे कि अमेरिकी मौद्रिक नीति के प्रभाव को कम करना, आर्थिक संप्रभुता का दावा करना, डॉलर के उतार-चढ़ाव के प्रभावों को कम करना, या वैश्विक वित्त में अधिक स्वतंत्रता की मांग करना।
- डी-डॉलरीकरण के लिये रणनीतियाँ: इसमें मुद्रा भंडार में विविधता लाना, व्यापार समझौतों में वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देना, मुद्रा स्वैप समझौते स्थापित करना या वित्तीय लेनदेन में क्षेत्रीय मुद्राओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपए के व्यापार निपटान के लिये तंत्र स्थापित किया।
- इन देशों के बैंकों को भारतीय रुपए में भुगतान के निपटान के लिये विशेष वोस्ट्रो रुपए खाते (SVRAs) खोलने की अनुमति दी गई है।
- उदाहरण के लिये, मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपए के व्यापार निपटान के लिये तंत्र स्थापित किया।
निष्कर्ष:
- प्रभावी घरेलू नीतियों के साथ डॉलरीकरण आर्थिक सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हालाँकि इसकी प्रभावकारिता स्वतंत्र आर्थिक रणनीतियों की आवश्यकता के साथ स्थिरता के लाभों को संतुलित करते हुए सूक्ष्म नीति कार्यान्वयन पर निर्भर करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:हाल ही में IMF के SDR बास्कोट में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया है? (a) रूबल Ans: (d) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
डाक मतपत्र और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM), डाक मतपत्र, निर्वाचन आयोग (EC), रिटर्निंग ऑफिसर (RO), मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPATs), मुख्य निर्वाचन अधिकारी, बूथ लेवल ऑफिसर (BLO)। मेन्स के लिये:एक मज़बूत, स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों तथा डाक मतपत्रों की सुरक्षा की आवश्यकता। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश में राजनीतिक दलों ने स्ट्रॉन्ग रूम में डाक मतपत्रों में हेर-फेर और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हुए राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराई है।
- हालाँकि ज़िला निर्वाचन अधिकारी ने स्पष्ट किया कि सहायक रिटर्निंग अधिकारी ने मतपत्रों की छँटाई के लिये स्ट्रांग रूम खोला था, न कि वोटों की गिनती के लिये और यह उन्होंने संबद्ध प्रतिनिधियों को पूर्व सूचना देने के पश्चात् ही किया था।
डाक मतपत्र और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन क्या हैं?
- डाक मतपत्र:
- डाक मतपत्र सैनिक मतदाताओं, अनुपस्थित मतदाताओं (जैसे कि 80 वर्ष से अधिक आयु के लोग, दिव्यांगजन अथवा कोविड-19 से प्रभावित लोगों), चुनाव ड्यूटी पर तैनात मतदाता, और निवारक हिरासत के अंतर्गत आने वाले मतदाताओं के लिये मतदान विकल्प के रूप में कार्य करता है।
- रिटर्निंग ऑफिसर (RO) आवश्यक फॉर्म भर चुके पात्र व्यक्ति को मेल के माध्यम से तथा चुनाव ड्यूटी पर तैनात मतदाताओं को सुविधा केंद्र पर डाक मतपत्र प्रदान करता है।
- EVM की जाँच तथा संग्रहण:
- मतदान केंद्रों पर पहुँचने से पूर्व EVM को एक निश्चित प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है। प्रथम-स्तरीय जाँच और यादृच्छिकीकरण अभ्यास पूरा होने के बाद अगस्त 2023 में जारी निर्वाचन आयोग के नवीनतम मैनुअल में उल्लिखित दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए इन मशीनों को रिटर्निंग अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
- मतदान समाप्त होने के पश्चात्, EVM और मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPAT) को संग्रह अथवा रिसेप्शन केंद्रों पर वापस ले जाया जाता है जहाँ उन्हें स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है।
- निर्वाचन आयोग की नियमावली के अनुसार, सभी उम्मीदवारों को इसकी जानकारी देना अनिवार्य है तथा सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिये उन्हें अपने प्रतिनिधियों को भेजने की अनुमति होती है।
- EVMs के सुरक्षा उपाय और भंडारण:
- EVMs के परिवहन में सशस्त्र सुरक्षा और वातानुकूलित स्ट्रांग रूम में भंडारण सहित कड़े सुरक्षा उपाय शामिल हैं।
- ये स्ट्रांग रूम मतदान के दिन तक EVMs के लिये एक सुरक्षित स्थान के रूप में काम करते हैं, जिससे मतदान प्रक्रिया की अखंडता और गोपनीयता सुनिश्चित होती है।
- राजनीतिक दल के प्रतिनिधि इस भंडारण प्रक्रिया की देख-रेख में भूमिका निभाते हैं, जिससे चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता की एक अतिरिक्त परत जुड़ जाती है।
डाक मतपत्र और अनुपस्थित मतदाताओं के लिये क्या प्रक्रिया है?
- डाक मतपत्रों की प्रक्रियाएँ:
- चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार, डाक मतपत्रों को संभालने वाले सुविधा केंद्र प्रभारी को पार्टी और उम्मीदवार प्रतिनिधियों की उपस्थिति में सर्वप्रथम ड्रॉप बॉक्स खोलना आवश्यक है।
- प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के मतपत्रों को एक बड़े लिफाफे या सूती बैग में रखा जाता है और फिर प्रत्येक मतदान दिवस के अंत में रिटर्निंग ऑफिसर (RO) को भेजा जाता है।
- RO इन बैगों को अपने कब्ज़े में लेता है और उन्हें एक निर्दिष्ट "विशेष स्ट्रॉन्ग रूम" में सुरक्षित रूप से संग्रहीत करता है।
- अनुपस्थित मतदाता:
- अनुपस्थित मतदाताओं के लिये बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) मतदाताओं के घरों तक मतपत्र पहुँचाते हैं। BLO चुनाव अधिसूचना के पाँच दिनों के भीतर भरे हुए फॉर्म लेने के लिये लौटते हैं और उन्हें RO के पास प्रतिदिन जमा करते हैं।
- अनुपस्थित मतदाताओं के बीच आवश्यक सेवा कर्मी विशेष डाक मतदान केंद्रों का उपयोग कर सकते हैं, जो मतदान दिवस से पहले लगातार तीन दिनों तक मतदान करा सकते हैं। इन केंद्रों से डाक मतपत्रों के पैकेट प्रत्येक दिन के अंत में RO को भेजे जाते हैं।
- डाक मतपत्रों के लिये सुरक्षित संचालन और गिनती की तैयारी:
- ऐसे मामलों में जहाँ वोटों की गिनती RO के मुख्यालय के अलावा किसी अन्य स्थान पर की जानी है, गिनती से एक दिन पहले डाक मतपत्रों को मतगणना केंद्र के दूसरे स्ट्रांग रूम में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- यह प्रक्रिया सावधानीपूर्वक चुनावी दिशा-निर्देशों के अनुपालन में डाक मतपत्रों के लिये सुरक्षित संचालन, दस्तावेज़ीकरण और अंतिम गिनती सुनिश्चित करती है।
वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT):
- VVPAT एक स्वतंत्र सत्यापन प्रिंटर मशीन है, जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ी होती है। यह मतदाताओं को यह सत्यापित करने में मदद करती है कि उनका वोट उनके इच्छित उम्मीदवार को गया है या नहीं।
- जब कोई मतदाता EVMs में बटन दबाता है तो VVPAT के माध्यम से एक कागज़ की पर्ची छपती है। पर्ची में उम्मीदवार का चुनाव चिह्न और नाम होता है। यह मतदाता को अपनी पसंद सत्यापित करने में मदद करता है।
- VVPAT के काँच के केस से मतदाता को सात सेकंड तक दिखाई देने के बाद पर्ची VVPAT मशीन में बने ड्रॉप बॉक्स में डाल दी जाती है और एक ध्वनि सुनाई देती है।
- VVPAT मशीनों तक केवल मतदान अधिकारी की पहुँच होती है।
EVMs को सुरक्षित करने के विभिन्न उपाय क्या हैं?
- कार्यात्मक जाँच: मशीनों के पिछले परिणाम को हटा दिया जाता है। क्षतिग्रस्त स्विच, बटन, कनेक्शन और सील की जाँच की जाती है।
- यादृच्छिक जाँच: मतदान के लिये उपयोग की जाने वाली कुल EVMs की 5% संख्या पर मॉक पोल आयोजित किया जाता है। लगभग 1,000 वोट डाले जाते हैं और परिणाम के प्रिंटआउट विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा किये जाते हैं।
- EVM वितरण में यादृच्छिकता: EVMs को निर्वाचन क्षेत्रों और बूथों पर बेतरतीब ढंग से रखा जाता है और यह पहचानना मुश्किल होता है कि कौन सी मशीन कहाँ रखी है। पहले दौर के दौरान EVMs को एक निर्वाचन क्षेत्र में यादृच्छिक रूप से आवंटित किया जाता है।और दूसरे दौर में उन्हें यादृच्छिक रूप से मतदान केंद्र पर आवंटित किया जाता है।
- पूर्वाभ्यास: वास्तविक मतदान शुरू होने से पहले उम्मीदवारों या उनके एजेंटों की उपस्थिति में कम-से-कम 50 वोटों के साथ मतदान अभ्यास का आयोजन किया जाता है।
- फिर मॉक पोल बंद कर दिया जाता है और परिणाम प्रदर्शित किये जाते हैं। मतदान के दिन मतदान एजेंटों, पर्यवेक्षकों और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों द्वारा विभिन्न प्रकार की जाँच की जाती है।
- सुरक्षित और संरक्षित: EVM को उनके कैरी केस में रखा जाता है और सील कर दिया जाता है। मशीनों को सशस्त्र अनुरक्षण के तहत रिसेप्शन सेंटर में वापस ले जाया जाता है और स्ट्रांग रूम में रखा जाता है।
- मौजूदा VVPAT सत्यापन दर को बढ़ाना: मौजूदा VVPAT सत्यापन दर को प्रति विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र या खंड में एक से बढ़ाकर पांँच यादृच्छिक EVM तक करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश, EVM के माध्यम से गणना की अखंडता के बारे में संदेह करने वालों को आश्वस्त करने का प्रयास है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022) |
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक सागरीय जीवन और महासागरों के तापमान में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:उष्णकटिबंधीयकरण, जलवायु परिवर्तन, महासागरों का ताप, भूमध्य सागर, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, कोरल ब्लीचिंग, सौर विकिरण। मेन्स के लिये:सागर के तापमान में वृद्धि और सागरीय जलस्तर में वृद्धि पर समुद्री जैवविविधता पर प्रभाव। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'ट्रेंड्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन महासागरों के तापमान में वृद्धि कर रहा है और इसके परिणामस्वरूप उष्णकटिबंधीय सागरीय प्रजातियाँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं।
- तापमान में वृद्धि होने के कारण समशीतोष्ण प्रजातियों में कमी आ रही है, उन्हें निवास स्थान और नए शिकारियों के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है।
अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन कैसे उष्णकटिबंधीयकरण का कारण बनता है?
- उष्णकटिबंधीयकरण:
- जलवायु परिवर्तन एक समुद्री घटना का कारण बन रहा है जिसे उष्णकटिबंधीयकरण के रूप में जाना जाता है, जहाँ उष्णकटिबंधीय प्रजातियाँ अपनी सीमा का विस्तार करती हैं, जबकि समशीतोष्ण प्रजातियाँ पीछे हट जाती हैं।
- तापमान बढ़ने के कारण समशीतोष्ण प्रजातियाँ कम हो रही हैं, उन्हें आवास के लिये अधिक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है और नए शिकारी सामने आते हैं।
- यह वैश्विक बदलाव समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, जैवविविधता को बदल रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
- इस प्रक्रिया को पहले उदाहरण के रूप में भूमध्य सागर में देखा गया था।
- उष्णकटिबंधीय प्रजातियों में वृद्धि के कारण भूमध्य सागर को "उष्णकटिबंधीय हॉटस्पॉट" माना जाता है।
- जलवायु परिवर्तन एक समुद्री घटना का कारण बन रहा है जिसे उष्णकटिबंधीयकरण के रूप में जाना जाता है, जहाँ उष्णकटिबंधीय प्रजातियाँ अपनी सीमा का विस्तार करती हैं, जबकि समशीतोष्ण प्रजातियाँ पीछे हट जाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण प्रजातियों का विस्तार:
- जलवायु परिवर्तन द्वारा उन भौतिक कारकों को बदल दिया गया है जो प्रजातियों के विस्तार को प्रभावित करते हैं, जैसे कि उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय एवं समशीतोष्ण क्षेत्रों को अलग करने वाले क्षेत्रों में समुद्री धाराएँ।
- ये गर्म-जल सीमा धाराएँ वैश्विक महासागरीय जल के औसत की तुलना में तेज़ी से गर्म हो रही हैं, जिससे प्रजातियों को ध्रुवीय स्थानांतरण की सुविधा प्राप्त हो रही है और समशीतोष्ण प्रजातियों की वापसी को सहायता मिल रही है।
- उदाहरण: रेंज-विस्तारित उष्णकटिबंधीय डैमसेल्फिश और समशीतोष्ण रीफ मछलियों को सह-अस्तित्व की अनुमति देने के लिये उनके भोजन और सामाजिक व्यवहार में बदलाव करते हुए प्रलेखित किया गया है।
- नए लक्षणों का विकास:
- पारिस्थितिकी और विकास के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण प्रजातियों की परस्पर क्रिया में परिवर्तन से नए लक्षणों या व्यवहारों का विकास हो सकता है।
महासागरीय तापन क्या है?
- परिचय: .
- महासागर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से अधिकांश अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित करते हैं, जिससे समुद्र का तापमान बढ़ जाता है।
- कारण:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: ऊर्जा, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिये जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) सहित महत्त्वपूर्ण मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। वायुमंडल में ये गैसें गर्मी को रोकती हैं, जिससे वायुमंडल और महासागरों दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण: महासागर विशाल जलाशय के रूप में कार्य करते हैं जो मानव गतिविधियों से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अवशोषित करते हैं। जबकि यह अवशोषण भूमि पर जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है, इसके परिणामस्वरूप समुद्र का तापमान भी बढ़ता है।
- सौर विकिरण: सौर विकिरण में परिवर्तन हालाँकि मानव-प्रेरित कारकों की तुलना में एक मामूली योगदानकर्त्ता है, यह लंबी अवधि में समुद्र के तापमान को प्रभावित कर सकता है।
- प्रभाव:
- प्रवाल विरंजन: अत्यधिक तापमान होने के कारण मूँगे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवाल को बाहर निकाल सकते हैं, जिससे मूँगे का विरंजन हो सकता है। लंबे समय तक ब्लीचिंग से मूँगे कमज़ोर हो जाते हैं और वे बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जिससे मूँगा चट्टान पारिस्थितिकी तंत्र के लिये एक गंभीर खतरा पैदा हो जाता है।
- सागरीय स्तर में वृद्धि: सागर का गर्म तापमान सागरीय जल के तापीय विस्तार में योगदान देता है। इससे, ध्रुवीय बर्फ की चोटियों और ग्लेशियरों के पिघलने के साथ-साथ, समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप तटीय क्षरण हो सकता है और तटीय समुदायों की संवेदनशीलता बढ़ सकती है।
- सागरीय खाद्य जाल का विघटन: समुद्र के तापमान में परिवर्तन सागरीय प्रजातियों के वितरण और प्रचुरता को परिवर्तित कर सकता है, जिससे सागरीय खाद्य जाल की संरचना प्रभावित हो सकती है। इसका मत्स्यपालन एवं उन पर निर्भर समुदायों की आजीविका पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
- महासागर का अम्लीकरण: महासागरों द्वारा अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण से महासागरों का अम्लीकरण होता है। अम्लीकरण, कैल्शियम कार्बोनेट कंकालों अथवा सीपों वाले समुद्री जीवों को हानि पहुँचा सकता है, जिनमें कोरल, मोलस्क तथा कुछ प्लवक शामिल हैं, जिससे संपूर्ण सागरीय खाद्य शृंखला प्रभावित होती है।
निष्कर्ष:
वैश्विक समुद्री प्रजातियाँ जलवायु-प्रेरित उष्णकटिबंधीयकरण के कारण बदलती हैं, जिसका उदाहरण भूमध्य सागर में "हॉटस्पॉट" है। ग्रीनहाउस गैसों जैसे कारकों से महासागर के गर्म होने से मूँगा विरंजन, सागरीय स्तर में वृद्धि के साथ खाद्य जाल में व्यवधान उत्पन्न होता है। जैवविविधता, तटीय समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं को खतरे को कम करते हुए महासागरीय स्वास्थ्य को संरक्षित करने के लिये तत्काल जलवायु शमन महत्त्वपूर्ण है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का उदाहरण सहित आकलन कीजिये। (2017) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा करें और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये।(2022) |