सीमा निर्धारण के लिये चीन और भूटान की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:भारत-भूटान संबंध, वर्ष 1949 की मित्रता संधि मेन्स के लिये:भारत-भूटान संबंधों को लेकर चुनौतियाँ, क्षेत्र में चीनी चुनौती |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन और भूटान ने सीमा निर्धारण पर ध्यान केंद्रित करते हुए बीजिंग में 13वीं विशेषज्ञ समूह बैठक (Expert Group Meeting-EGM) आयोजित की। इस बैठक में चीन-भूटान सीमा के निर्धारण पर एक संयुक्त तकनीकी टीम की स्थापना को एक महत्त्वपूर्ण परिणाम के रूप में चिह्नित किया गया।
- चूँकि दोनों देशों का लक्ष्य सीमा के समाधान में तेज़ी लाना है, इसलिये यह कदम भारत सहित व्यापक क्षेत्रीय संदर्भ पर प्रभाव डालता है।
13वीं विशेषज्ञ समूह बैठक की मुख्य विशेषताएँ:
दोनों देशों ने विवादित सीमा का समाधान प्राप्त करने की दिशा में प्रयासों में तेज़ी लाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- उत्साहजनक गति बनाए रखने के लिये आगामी 14वें दौर की सीमा वार्ता के लिये योजनाएँ बनाई गईं।
- बैठक में तीन-चरणीय रोडमैप के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई, जो सीमा समझौता वार्ता में तेज़ी लाने के लिये उल्लिखित रणनीति का पालन करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
चीन-भूटान संबंधों में हालिया घटनाक्रम भारत के लिये चिंता का विषय:
- चीन और भूटान संबंधों पर हालिया घटनाक्रम भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं, विशेषकर डोकलाम ट्राई-जंक्शन वह बिंदु है, जहाँ भारत, भूटान और चीन की सीमाएँ मिलती हैं।
- चीन ने भूटान के पूर्वी क्षेत्र, जिसे साकटेंग (वन्यजीव अभयारण्य) के नाम से जाना जाता है, पर भी अपना दावा किया है, जो भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगता है।
- अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना अधिकार मानता है और इसे "दक्षिण तिब्बत" कहता है। साकटेंग पर चीन के दावे को सीमा मुद्दे पर भूटान को अपनी शर्तों को स्वीकार करने के लिये मज़बूर करने के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश पर भारत की संप्रभुता को चुनौती देने के लिये दबाव की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है।
- इस क्षेत्र में भूटान भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है और भारत ने लंबे समय से भूटान को आर्थिक एवं सैन्य सहायता प्रदान की है। हालाँकि हाल के कुछ वर्षों में चीन ने भूटान के साथ अपने आर्थिक तथा राजनयिक संबंधों में वृद्धि की है, जो संभावित रूप से भूटान में भारत के प्रभाव को कमज़ोर कर सकता है।
भूटान के साथ भारत के संबंध:
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध:
- भारत और भूटान बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और अन्य परंपराओं में निहित समान सांस्कृतिक विरासत साझा करते हैं।
- कई भूटानी तीर्थयात्री बोधगया, राजगीर, नालंदा, सिक्किम, उदयगिरि और भारत के अन्य बौद्ध स्थलों की यात्रा करते रहे हैं।
- भूटान वर्ष 1947 में भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था और तब से इसके विकास तथा आधुनिकीकरण का समर्थन करता रहा है।
- सामरिक एवं सुरक्षा सहयोग:
- भारत और भूटान ने शांति स्थापित करने तथा एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के लिये वर्ष 1949 में मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किये, जिसे वर्ष 2007 में संशोधित किया गया।
- भारत ने भूटान को रक्षा, बुनियादी ढाँचे और संचार जैसे क्षेत्रों में सहायता प्रदान की है ताकि भूटान अपनी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में सक्षम हो।
- वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध के दौरान भूटान ने चीनी घुसपैठ का मुकाबला करने के लिये भारतीय सैनिकों को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देकर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- आर्थिक एवं विकास साझेदारी:
- व्यापार, वाणिज्य और पारगमन पर भारत-भूटान समझौता (1972 में हस्ताक्षरित और 2016 में संशोधित) दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित करता है।
- भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत भूटान के सामाजिक-आर्थिक विकास, विशेष रूप से कृषि, सिंचाई, बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्रों में आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
- भूटान के लिये भारत पेट्रोल-डीज़ल, यात्री कारें, चावल, लकड़ी का कोयला, सेलफोन, सोयाबीन तेल, उत्खनन उपकरण, विद्युत जनरेटर और मोटर, टर्बाइन के हिस्से तथा परिवहन वाहन आदि का शीर्ष निर्यातक है।
- भारत भूटान से बिजली, सुपारी, संतरे, लोहे या गैर-मिश्र धातु इस्पात के अर्द्ध-निर्मित उत्पाद, बोल्डर आदि का शीर्ष आयातक है।
- भारत भूटान में प्रमुख निवेशक भी है, जिसमें देश के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का 50% शामिल है।
- जलविद्युत सहयोग:
- वर्ष 2006 के जल विद्युत सहयोग समझौते के अंतर्गत दोनों देशों के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग प्रदान किया जाता है।
- इस समझौते के एक प्रोटोकॉल के तहत भारत वर्ष 2020 तक न्यूनतम 10,000 मेगावाट जलविद्युत के विकास तथा अधिशेष विद्युत के आयात में भूटान की सहायता करने हेतु सहमत हुआ है।
- भूटान में कुल 2136 मेगावाट की चार जलविद्युत परियोजनाएँ (HEPs)- चूखा, कुरिछु, ताला और मंगदेछू पहले से ही संचालित हैं तथा भारत को विद्युत की आपूर्ति कर रही हैं।
- अंतर-सरकारी मोड में दो HEPs नामत: पुनात्सांगछू-I, पुनात्सांगछू-II कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
- अंतर-सरकारी मोड में दो HEPs नामत: पुनात्सांगछू-I, पुनात्सांगछू-II कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
- वर्ष 2006 के जल विद्युत सहयोग समझौते के अंतर्गत दोनों देशों के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग प्रदान किया जाता है।
- बहुपक्षीय भागीदारी:
- दोनों बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं जैसे- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), ‘बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल’ (BBIN) तथा बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) आदि।
- जन-जन के मध्य संपर्क:
- भूटान में लगभग 50,000 भारतीय नागरिक मुख्य रूप से निर्माण क्षेत्र, शिक्षा और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में शामिल तकनीकी सलाहकारों के तौर पर कार्य कर रहे हैं।
- भूटानी छात्रों के लिये भारत सबसे लोकप्रिय शैक्षिक गंतव्य है।
- भारत और भूटान दोनों देश सांस्कृतिक समझ और मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडलों, कलाकारों, विद्वानों के आदान-प्रदान के साथ-साथ सामूहिक रूप से प्रदर्शनियों, त्योहारों आदि का भी आयोजन करते हैं।
भारत-भूटान संबंधों को लेकर चुनौतियाँ:
- भूटान में विशेषकर विवादित सीमा पर चीन की बढ़ती उपस्थिति, भारत के रणनीतिक निहितार्थों को देखते हुए चिंता का विषय है।
- भारत और भूटान 699 किमी. लंबी सीमा साझा करते हैं, जो अधिकतर शांतिपूर्ण है लेकिन वर्ष 2017 में डोकलाम गतिरोध जैसी चीनी सीमा घुसपैठ ने भारत, चीन और भूटान के बीच तनाव पैदा कर दिया है जो संभावित रूप से भारत-भूटान संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
- भूटान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक जलविद्युत पर निर्भर करती है, जिसके विकास में भारत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ परियोजनाओं की शर्तें भारत के पक्ष में होने की वजह से भूटान में चिंता देखी गई है और उनका सार्वजनिक विरोध हुआ है।
- भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार होने के साथ ही पर्यटकों का स्रोत भी है। हालाँकि दोनों देशों के बीच व्यापार और पर्यटन नीतियों को लेकर कुछ मतभेद रहे हैं।
- उदाहरण के लिये भूटान ने अपनी संवेदनशील पारिस्थितिकी और संस्कृति पर व्यापार एवं पर्यटन के पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की है तथा भारतीय पर्यटकों पर प्रवेश शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है।
- अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (All India Surveys of Higher Education- AISHE) के अनुसार, भारत में तृतीयक शिक्षा प्राप्त करने वाले भूटानी छात्रों की संख्या एक दशक पहले के 7% से घटकर सभी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की तुलना में केवल 3.8% रह गई है।
आगे की राह
- स्थिरता और साझा हितों को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करना चाहिये।
- सीमा पर तनाव को कम करने के लिये भारत, भूटान और चीन के मध्य पारदर्शी संचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- दोनों देशों के हित को देखते हुए वार्तालाप और उचित शर्तों के माध्यम से जलविद्युत परियोजनाओं की चिंताओं को संबोधित करना चाहिये।
- भारत और भूटान के पारिस्थितिक एवं सांस्कृतिक संरक्षण के साथ आर्थिक हितों को संतुलित करने वाली धारणीय नीतियों को सहयोगात्मक रूप से सूत्रबद्ध करने हेतु एक संयुक्त समिति का गठन किया जा सकता है।
- भारत, भूटानी छात्रों को छात्रवृत्ति तथा भूटानी पेशेवरों के कौशल को बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान कर शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में भूटान की मदद कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. जटिल भू-भाग और कुछ देशों के साथ प्रतिरोधी संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक जटिल कार्य है। प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिये चुनौतियों और रणनीतियों को स्पष्ट कीजिये। (2016)। |
भारत और ग्रीस संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत और ग्रीस रणनीतिक साझेदारी, अज्ञात सैनिक का मकबरा, द ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑनर मेन्स के लिये:भारत-ग्रीस संबंधों का विकास, भारत और ग्रीस के बीच उनकी रणनीतिक साझेदारी के तहत सहयोग के प्रमुख क्षेत्र |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ग्रीस ने आपसी संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। इस साझेदारी का उद्देश्य व्यापार को दोगुना करना, रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग बढ़ाना तथा साझा चुनौतियों का समाधान करना है।
- इस अवसर पर ग्रीस की राष्ट्रपति कतेरीना सकेलारोपोलू ने भारत के प्रधानमंत्री को "द ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑनर" से सम्मानित किया।
- भारत के प्रधानमंत्री ने एथेंस में 'गुमनाम सैनिक के मकबरे (Tomb of Unknown Soldier)' पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
रणनीतिक साझेदारी के तहत सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:
- रक्षा एवं सुरक्षा:
- भारत और ग्रीस विशेष रूप से समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद का विरोध, साइबर सुरक्षा तथा रक्षा उद्योग में अपने रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने करने पर सहमत हुए।
- साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSA) के स्तर पर भारत-ग्रीस संवाद की रुपरेखा पर भी निर्णय लिया गया।
- समुद्री सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन:
- लंबे समय से समुद्री यात्रा में संलग्न प्राचीन तथा दीर्घकालिक समुद्री दृष्टिकोण रखने वाले दो देशों के राजनेताओं के रूप में उन्होंने समुद्र के कानून, विशेष रूप से समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) के प्रावधानों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय शांति, स्थिरता और सुरक्षा हेतु संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता एवं आवागमन की स्वतंत्रता के पूर्ण सम्मान के साथ एक स्वतंत्र, खुले तथा नियम-आधारित भूमध्य सागर एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित दृष्टिकोण साझा किया।
- संस्कृति और पर्यटन:
- दोनों नेताओं ने कला के सभी रूपों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के प्रयासों का स्वागत किया।
- दोनों देश प्राचीन स्थलों के संरक्षण और उन्हें सुरक्षित रखने के लिये संयुक्त प्रयासों को प्रोत्साहित करने तथा संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के भीतर सहयोग को मज़बूत करने पर भी सहमत हुए।
- व्यापार और निवेश:
- दोनों देशों ने वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का भी लक्ष्य रखा। वे नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे, फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और नवाचार जैसे क्षेत्रों में नए अवसर तलाशने पर सहमत हुए।
- गतिशीलता और प्रवासन साझेदारी समझौता (MMPA):
- दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि MMPA को शीघ्र अंतिम रूप देना पारस्परिक रूप से लाभप्रद होगा, विशेष रूप से दोनों देशों के बीच कार्यबल की मुक्त आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगा।
- सहयोग का व्यापक स्पेक्ट्रम:
- इसके तहत डिजिटल भुगतान, शिपिंग, फार्मास्यूटिकल्स और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में संवाद बढ़ाना है।
‘गुमनाम सैनिक का मकबरा’:
- ‘अज्ञात सैनिक का मकबरा’ ग्रीस के एथेंस में सिंटेग्मा स्क्वायर(Syntagma Square) में स्थित एक युद्ध स्मारक है।
- यह उन यूनानी सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने विभिन्न युद्धों में अपना जीवन न्योछावर कर दिया।
- यह मकबरा अज्ञात सैनिकों के बलिदान की स्मृति और सम्मान के प्रतीक के रूप में बनाया गया है।
- इसे वर्ष 1930 और 1932 के बीच मूर्तिकार फोकियन रोक द्वारा बनाया गया था।
ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑनर:
- ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑनर’ ग्रीस में ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द रिडीमर के बाद दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
- यह पुरस्कार वर्ष 1975 में स्थापित किया गया था और इसके सामने की ओर देवी एथेना का सिर अंकित है, साथ ही शिलालेख पर "केवल धर्मी/न्याय परायण लोगों को सम्मानित किया जाना चाहिये", उत्कीर्ण है।
- यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने राजनीति, कूटनीति, संस्कृति, विज्ञान अथवा सामाजिक सेवा के क्षेत्र में खुद को प्रतिष्ठित किया है, साथ ही ग्रीस के हितों और मूल्यों को बढ़ावा दिया है।
ग्रीस के साथ भारत के संबंध:
- ऐतिहासिक संबंध:
- ग्रीस के साथ भारत का संपर्क 2500 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।
- ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में सिकंदर महान का अभियान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक पहुँचा था।
- अशोक के शिलालेखों में भारत और ग्रीस के बीच राजनयिक, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंधों का उल्लेख मिलता है।
- मौर्य राजाओं और ग्रीस के मध्य व्यापार का प्रमाण सिक्कों एवं लेखों से मिलता है।
- चाणक्य ने अर्थशास्त्र में चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नामक यवन राजदूत के आने के बारे में उल्लेख किया है।
- गांधार कला, जो वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों तक विकसित हुई थी, भारतीय एवं यूनानी प्रभावों का परिणाम मानी जाती है।
- वाणिज्यिक संबंध:
- वर्ष 2022-23 में भारत और ग्रीस के बीच 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।
- भारत अन्य उत्पादों के अलावा ग्रीस को मुख्य रूप से एल्युमीनियम, कार्बनिक रसायन, मछली और क्रस्टेशियंस (Crustaceans) तथा लोहा एवं इस्पात का निर्यात करता है।
- जबकि ग्रीस द्वारा भारत को सबसे अधिक खनिज ईंधन, खनिज तेल और उत्पाद, सल्फर तथा एल्युमीनियम फॉइल का निर्यात किया जाता है।
- भारत ने ग्रीस की सबसे बड़ी वार्षिक वाणिज्यिक प्रदर्शनी, 84वें थेसालोनिकी अंतर्राष्ट्रीय मेला (Thessaloniki International Fair-TIF), 2019 में 'सम्मानित देश' के रूप में भाग लिया।
- राजनीतिक संबंध:
- मई 1950 में भारत और ग्रीस के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। ग्रीस ने वर्ष 1950 में दिल्ली में अपना दूतावास खोला तथा भारत ने वर्ष 1978 में एथेंस में अपना दूतावास खोला।
- ग्रीस को कश्मीर और साइप्रस जैसे मुख्य राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर एक-दूसरे को लगातार समर्थन देने के लिये जाना जाता है।
- ग्रीस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के विस्तार, जिसमें भारत द्वारा स्थायी सदस्यता की मांग की जा रही है, का भी समर्थन करता है।
- रक्षा संबंध:
- वर्ष 1998 में भारत और ग्रीस के बीच रक्षा सहयोग में तेज़ी देखी गई, जिसमें सैन्य प्रशिक्षण, संयुक्त प्रशिक्षण, रक्षा उद्योग सहयोग आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग की परिकल्पना की गई है।
- प्रशिक्षण INIOCHOS-23 में भारतीय वायुसेना की भागीदारी।
- वर्ष 1998 में भारत और ग्रीस के बीच रक्षा सहयोग में तेज़ी देखी गई, जिसमें सैन्य प्रशिक्षण, संयुक्त प्रशिक्षण, रक्षा उद्योग सहयोग आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग की परिकल्पना की गई है।
- संस्कृति:
- दिमित्रियोस गैलानोस, एक यूनानी, पहले यूरोपीय इंडोलॉजिस्ट बने और उन्होंने भारत में 47 वर्ष व्यतीत किये तथा कई हिंदू ग्रंथों का ग्रीक में अनुवाद किया एवं 9000 से अधिक शब्दों का एक संस्कृत-अंग्रेज़ी-ग्रीक शब्दकोश संकलित किया।
- भारत में सितंबर 2000 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में हेलेनिक अध्ययन के लिये एक "दिमित्रियोस गैलानोस" चेयर की स्थापना की गई थी।
- भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ग्रीक छात्रों को भारत में अध्ययन करने के लिये वार्षिक छात्रवृत्ति प्रदान कर रही है।
- प्रतिष्ठित ग्रीक इंडोलॉजिस्ट प्रोफेसर निकोलस कज़ानास को वर्ष 2021 में भारत के 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार विजेता घोषित किया गया था।
- दिमित्रियोस गैलानोस, एक यूनानी, पहले यूरोपीय इंडोलॉजिस्ट बने और उन्होंने भारत में 47 वर्ष व्यतीत किये तथा कई हिंदू ग्रंथों का ग्रीक में अनुवाद किया एवं 9000 से अधिक शब्दों का एक संस्कृत-अंग्रेज़ी-ग्रीक शब्दकोश संकलित किया।
ग्रीस के बारे में मुख्य तथ्य:
- ग्रीस दक्षिणी यूरोप में भूमध्य सागर पर एक लंबी तटरेखा वाला देश है। इसकी सीमा अल्बानिया, उत्तरी मैसेडोनिया, बुल्गारिया और तुर्की से लगती है।
- ग्रीस दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और इसे पश्चिमी सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यह लोकतंत्र, दर्शन, रंगमंच एवं ओलंपिक खेलों का जन्मस्थल है।
- सरकार: संसदीय गणतंत्र
- राजधानी: एथेंस, राष्ट्रीय
- भाषा: ग्रीक
- मुद्रा: यूरो
- प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ: पिंडस और टॉरस पर्वत।
- ग्रीस में सबसे लंबी नदी हैलियाकमोन नदी है।
- ग्रीस का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट ओलम्पस है।
चीन ने क्षेत्रीय दावा करते हुए जारी किया मानचित्र
प्रिलिम्स के लिये:अक्साई चिन क्षेत्र, नाइन-डैश लाइन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) मेन्स के लिये:चीन द्वारा क्षेत्रीय दावा करते हुए जारी किया गया मानचित्र और भारत पर इसके प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
चीन की सरकार ने हाल ही में विवादित क्षेत्रों पर अपने क्षेत्रीय दावों की पुष्टि करते हुए "स्टैंडर्ड मैप ऑफ चाइना' का 2023 संस्करण जारी किया।
- यह मानचित्र चीन के "राष्ट्रीय मानचित्रण जागरूकता प्रचार सप्ताह" के अनुरूप है, जो सटीक और सुसंगत मानचित्रण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
नए मानचित्र में क्या हैं चीनी दावे?
- क्षेत्रीय दावे:
- मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है।
- ये दावे लंबे समय से चीन और भारत के बीच विवाद का मुद्दा रहे हैं।
- मानचित्र में "नाइन-डैश लाइन" भी शामिल है, जो एक विवादास्पद सीमांकन है, यह पूरे दक्षिण चीन सागर को कवर करती है और इस रणनीतिक समुद्री क्षेत्र पर बीजिंग के दावों को रेखांकित करती है।
- मानचित्र में दसवीं-डैश लाइन को भी दर्शाया गया है जो ताइवान द्वीप पर बीजिंग के दावों को रेखांकित करती है।
- मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है।
- स्थानों का नाम बदलना:
- चीन का नया मानचित्र जारी करना उसकी पिछली कार्रवाइयों के अनुरूप है, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नामों को मानकीकृत करना, जिसमें राज्य की राजधानी के करीब के क्षेत्र भी शामिल हैं।
- डिजिटल मैपिंग:
- भौतिक मानचित्र के अलावा चीन स्थान-आधारित सेवाओं, सटीक कृषि, प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था और इंटेलिजेंट कनेक्टेड व्हीकल सहित विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु डिजिटल मानचित्र जारी करने के लिये तैयार है।
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद का मुद्दा
- पृष्ठभूमि:
- भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर की साझा सीमा पर लंबे समय से चले आ रहे और जटिल क्षेत्रीय विवादों को संदर्भित करता है।
- विवाद के मुख्य क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र में स्थित अक्साई चिन और पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश हैं।
- अक्साई चिन: चीन, अक्साई चिन को अपने शिनजियांग क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा करता है, जबकि भारत इसे अपने केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा मानता है। यह क्षेत्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निकट होने और सैन्य मार्ग के रूप में इसकी क्षमता के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है।
- अरुणाचल प्रदेश: चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश राज्य पर दावा करता है और इसे "दक्षिण तिब्बत" कहता है। भारत इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर राज्य के रूप में प्रशासित करता है तथा अपने क्षेत्र का अभिन्न अंग मानता है।
- कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं: भारत और चीन के बीच सीमा स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है और कुछ हिस्सों पर कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) नहीं है।
- 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद LAC अस्तित्व में आई।
- भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टरों में बाँटा गया है।
- पश्चिमी क्षेत्र: लद्दाख
- मध्य क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
- पूर्वी क्षेत्र: अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम
- सैन्य गतिरोध:
-
1962 का भारत-चीन युद्ध: सीमा विवाद के कारण कई सैन्य गतिरोध और झड़पें हुईं, जिनमें 1962 का भारत-चीन युद्ध भी शामिल है। दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के उद्देश्य से विभिन्न समझौतों और प्रोटोकॉल के साथ तनाव को प्रबंधित करने के प्रयास किये हैं।
- हालिया झड़पें: संघर्ष की सबसे गंभीर हालिया घटनाएँ वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी और वर्ष 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुई थीं।
- पर्यवेक्षक इस बात से सहमत हैं कि सीमा के दोनों ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर वर्ष 2013 के बाद से गंभीर सैन्य टकराव की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
-
सीमा विवाद निपटान तंत्र:
- वर्ष 1914 का शिमला समझौता: तिब्बत और पूर्वोत्तर भारत के बीच सीमा का सीमांकन करने के लिये वर्ष 1914 में शिमला में तीनों- तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था।
- चर्चा के बाद समझौते पर ब्रिटिश भारत और तिब्बत द्वारा हस्ताक्षर किये गए जबकि चीनी अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये गए। वर्तमान में भारत इसे मान्यता देता है लेकिन चीन ने शिमला समझौते और मैकमोहन रेखा दोनों को अस्वीकार कर दिया है।
- वर्ष 1954 का पंचशील समझौता: पंचशील सिद्धांत ने स्पष्ट रूप से 'एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने' की इच्छा का संकेत दिया।
- शांति और स्थिरता बनाए रखने पर समझौता:
- इस पर वर्ष 1993 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें बल के प्रयोग को त्यागने, LAC की मान्यता और बातचीत के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान का आह्वान किया गया था।
- LAC के सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली उपायों पर समझौता:
- इस पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें LAC पर असहमति के समाधान के लिये गैर-आक्रामकता, बड़े सैन्य आंदोलनों की पूर्व सूचना और मानचित्रों के आदान-प्रदान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
- सीमा रक्षा सहयोग समझौता:
- डेपसांग घाटी की घटना के बाद वर्ष 2013 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- डेपसांग घाटी की घटना के बाद वर्ष 2013 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।
चीन के नए मानचित्र का भारत पर प्रभाव:
- प्रादेशिक दावा:
- विवादित क्षेत्रों को अपने आधिकारिक मानचित्र में शामिल करके चीन अपने क्षेत्रीय दावों को मज़बूत कर रहा है, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है और सीमा विवाद को बढ़ा रहा है।
- विवादित क्षेत्रों को अपने आधिकारिक मानचित्र में शामिल करके चीन अपने क्षेत्रीय दावों को मज़बूत कर रहा है, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है और सीमा विवाद को बढ़ा रहा है।
- राजनयिक तनाव:
- चीन की हरकतों से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव पैदा हो सकता है। भारत ने लगातार चीन के क्षेत्रीय दावों को खारिज़ किया है और संभवतः अपने स्वयं के दावों की पुष्टि के साथ जवाब देगा।
- द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव:
- यह भारत-चीन संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है, जिससे व्यापार, निवेश और लोगों के बीच आदान-प्रदान सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग प्रभावित हो सकता है।
- क्षेत्रीय संतुलन:
- सीमा विवाद का व्यापक क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर प्रभाव पड़ता है। यह चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अन्य देशों और क्षेत्रीय समूहों के साथ भारत के रणनीतिक संरेखण को प्रभावित कर सकता है।
भारत को चीन की प्रादेशिक और क्षेत्रीय मुखरता से कैसे निपटना चाहिये?
- कूटनीति और संवाद:
- भारत-चीन सीमा मामलों पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता और परामर्श एवं समन्वय कार्य तंत्र (WMCC) जैसे स्थापित तंत्रों के माध्यम से चीन के साथ राजनयिक वार्ता में संलग्न रहने की आवश्यकता है।
- शांतिपूर्ण समाधान, द्विपक्षीय समझौतों का पालन और सीमा पर शांति तथा स्थिरता बनाए रखने के महत्त्व पर ज़ोर देना चाहिये।
- सीमा पर अवसंरचना की मज़बूत करना:
- भारतीय बलों के लिये गतिशीलता और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सड़कों, पुलों, हवाई पट्टियों और संचार नेटवर्क सहित सीमा अवसंरचना में बेहतरी के लिये निवेश करना चाहिये।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों और आपूर्ति की तेज़ी से तैनाती सुनिश्चित करने के लिये लॉजिस्टिक्स हब एवं अग्रवर्ती अड्डा (Forward Base) विकसित करना चाहिये।
- सैन्य तैयारी बढ़ाना:
- सीमा क्षेत्र में प्रभावी ढंग से निगरानी करने और किसी भी घटना को लेकर प्रतिक्रिया देने के लिये उन्नत उपकरणों, प्रौद्योगिकी और निगरानी क्षमताओं में निवेश करना चाहिये ताकि सशस्त्र बलों को मज़बूत बनाया जा सके।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के प्रशिक्षण और तत्परता को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- क्षेत्रीय एवं वैश्विक भागीदारी:
- समान विचारधारा वाले उन देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ साझेदारी को दृढ़ करना चाहिये जो क्षेत्रीय विवादों में चीन की मुखरता के बारे में चिंता साझा करते हैं।
- गुप्त जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यास और क्षेत्रीय चुनौतियों को लेकर समन्वित प्रतिक्रियाओं पर सहयोग करना चाहिये।
- आर्थिक एवं व्यापारिक उपाय:
- चीन पर निर्भरता कम करने और आर्थिक लचीलापन बढ़ाने के लिये आर्थिक क्षेत्र में विविधता लानी चाहिये।
- उन देशों के साथ व्यापार समझौतों और साझेदारी के बारे का पता लगाना चाहिये जो वैकल्पिक बाज़ार एवं निवेश के अवसर प्रदान कर सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच:
- अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और सिद्धांतों पर आधारित शांतिपूर्ण समाधान के लिये समर्थन जुटाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सीमा मुद्दों को उठाना चाहिये।
- क्षेत्रीय अखंडता और विवाद समाधान तंत्र से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों एवं सिद्धांतों को कायम रखना चाहिये।
- सीमा मुद्दे पर भारत का पक्ष प्रस्तुत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों के साथ जुड़ाव जारी रखना चाहिये।
निष्कर्ष:
- चीन द्वारा जारी मानक मानचित्र का 2023 संस्करण अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन क्षेत्र जैसे विवादित क्षेत्रों पर उसके क्षेत्रीय दावों की पुष्टि करता है।
- चीन का यह कदम राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में अपनी सीमाओं और भू-राजनीतिक हितों के प्रति उसके मुखर दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- यह मानचित्र अपने क्षेत्रीय दावों और भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिये चीन के प्रयासों के प्रतिबिंब के रूप में कार्य करता है।
संबंधित इन्फोग्राफिक्स: पड़ोसी देशों के साथ भारत के सीमा-विवाद
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सियाचिन हिमनद कहाँ स्थित है? (2020) (a) अक्साई चिन के पूर्व में उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। मेन्स:प्रश्न. दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबंधन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (2016) |
हीटवेव से निपटने के लिये शहर का अर्बन स्वरूप
प्रिलिम्स के लिये:हीटवेव से निपटने के लिये शहर का अर्बन स्वरूप, हीटवेव, जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) मेन्स के लिये:हीटवेव से निपटने के लिये शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाना |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
भारत में हीटवेव की बढ़ती घटनाएँ एक गंभीर मुद्दा बनकर उभरी हैं, जिससे शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाना अनिवार्य हो गया है।
- जहाँ बड़े शहरों में रहने की क्षमता में सुधार के लिये जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु संघर्ष किया जा रहा है, वहीं छोटे शहर विस्फोटक वृद्धि के कगार पर हैं और इन्हें "हीट-प्रूफ" विकास की आवश्यकता है।
किसी शहर का अर्बन स्वरूप:
- परिचय:
- प्रत्येक शहर में प्राकृतिक और मानव निर्मित बुनियादी ढाँचे और उनसे उत्पन्न गतिविधियों का एक अनूठा संयोजन होता है।
- उदाहरण के लिये अधिक घनत्व वाली इमारतें कम स्थान घेरती हैं, जिससे वाहन उत्सर्जन में कमी आती है, जो वायु को प्रदूषित कर वायु की ऊष्मा में वृद्धि करती हैं।
- अधिक हरियाली और जल निकाय कार्बन उत्सर्जन को कम करेंगे जो परिवेश के वातावरण को ठंडा करेगा।
- अधिक हरियाली वाले स्थानों, जल निकायों और इमारतों के इस संयोजन को शहर का अर्बन स्वरूप कहा जाता है, जो इसकी ऊष्मा के लचीलापन तथा रहने की क्षमता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- हीट रेसिलिएंस में अर्बन स्वरूप की भूमिका:
- शहरी आकृति विज्ञान, आस्पेक्ट रेशियो (Aspect Ratio), स्काई व्यू फैक्टर (SVF), ब्लू/ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर (B/GI), फ्लोर एरिया रेशियो (FAR)/फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और स्ट्रीट ओरिएंटेशन जैसे पैरामीटर सामूहिक रूप से शहर के अर्बन स्वरूप को परिभाषित करते हैं तथा ऊष्मा के प्रति इसकी संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं।
- वर्ष 2022 में विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) के एक अध्ययन ने पुणे, दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरू और जयपुर सहित 10 भारतीय शहरों में ऊष्मा के प्रति विविध शहरी रूपों की प्रतिक्रिया की जाँच की।
- अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों ने भारत के शहरों में गर्मी से निपटने के संभावित कदमों पर प्रकाश डाला है।
- शहरी आकृति विज्ञान, आस्पेक्ट रेशियो (Aspect Ratio), स्काई व्यू फैक्टर (SVF), ब्लू/ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर (B/GI), फ्लोर एरिया रेशियो (FAR)/फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और स्ट्रीट ओरिएंटेशन जैसे पैरामीटर सामूहिक रूप से शहर के अर्बन स्वरूप को परिभाषित करते हैं तथा ऊष्मा के प्रति इसकी संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं।
शहरी आधारभूत ढाँचे से संबंधित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के निष्कर्ष:
- अर्बन मोर्फोलोजी और हीट रेसिलिएंस:
- मध्यम वर्ग की वनस्पतियों के साथ खुली ऊँचाई, खुली मध्य ऊँचाई और सघन मध्य ऊँचाई वाली आकृतियों वाले शहरी क्षेत्रों में ऊष्मा क्षेत्रों में भूमि सतह का तापमान (LST) कम होता है।
- कम ऊँचाई वाली इमारतों के निकट विरल वनस्पति के कारण 2-4 डिग्री सेल्सियस से अधिक भूमि सतह का तापमान (LST) होता। एस्बेस्टस, गैल्वेनाइज़्ड आयरन शीट और प्लास्टिक शीट जैसी अधिक ऊष्मा का अवशोषण करने वाली सामग्री की छत के कारण कम ऊँचाई वाले औद्योगिक क्षेत्र विशेष रूप से समस्याग्रस्त हैं।
- ऐसी बेहतर छत सामग्री, परावर्तक पेंट और हरित छतों (Green Roofs) का उपयोग करके लाभान्वित हो सकते हैं।
- आस्पेक्ट रेशियो:
- आस्पेक्ट रेशियो इमारत की ऊँचाई एवं सड़क की चौड़ाई का अनुपात है। शहरी सतहों द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा को प्रभावित करता है।
- अध्ययन से पता चलता है कि आस्पेक्ट रेशियो जितना अधिक होगा, LST उतना ही कम होगा। इसका मतलब यह है कि सड़क जितनी संकरी होगी, गर्मी या ऊष्मा उतनी ही कम होगी। इमारतें एक-दूसरे को छाया प्रदान करती हैं जिससे सतह सूर्य के सीधे संपर्क में कम आती है।
- स्काई व्यू फैक्टर और हीट ट्रैपिंग:
- SVF सड़कों और खुले स्थानों के भीतर ऊष्मा और अपव्यय को निर्धारित करता है। आकाश दृश्य कारक का मान 0 और 1 के बीच होता है। मान 1 का अर्थ है कि कोई भी नगण्य परिक्षेत्र नहीं है। उच्च SVF मान LST में उल्लेखनीय वृद्धि से जुड़े थे।
- उच्च SVF वाले स्थानों, जिनमें राजमार्ग, सड़क, चौराहे और खुले पार्किंग स्थल शामिल हैं में तापमान में वृद्धि का अनुभव हुआ।
- स्ट्रीट ओरिएंटेशन और सन एक्सपोज़र:
- धूप के संपर्क में आने और हवा की गति के कारण सड़क पर गर्मी का असर पड़ता है। धूप के अधिक संपर्क के कारण उत्तर-दक्षिण उन्मुख सड़कों पर LST अधिक था।
- पूर्व-पश्चिम अक्ष के साथ संरेखित सड़कें ठंडी थीं क्योंकि ये धूप के सीधे संपर्क में कम आती थीं।
- नील/हरित अवसंरचना:
- हरे-भरे क्षेत्र शहरी क्षेत्र के सूक्ष्म जलवायु के सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे तापमान और सापेक्ष आर्द्रता को नियंत्रित करते हैं, प्रदूषकों को अवशोषित एवं विघटित करते हैं तथा समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
- हालाँकि हरियाली के प्रकार जैसे- घास, झाड़ियाँ या सघन पत्तों वाले वृक्ष आदि के आधार पर लाभ व्यापक रूप से भिन्न होते हैं।
- सिंगापुर ने नगरीय ताप द्वीप प्रभाव/अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट को कम करने तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रभावी वनस्पति आवरण (Effective Vegetation Cover- EVC) की गणना करने के लिये एक पद्धति विकसित की है।
- CSE द्वारा किये गए अध्ययन में पाया गया कि EVC में 30% की वृद्धि LST को 2-4 डिग्री सेल्सियस तक कम कर देती है। कैनोपी वाले वृक्षों में EVC बेहतर होता है। सघन पत्तों वाले वृक्षों के नीचे LST उसी क्षेत्र में ताड़ के वृक्षों के नीचे के LST की तुलना में लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ठंडा होता है।
- हरे-भरे क्षेत्र शहरी क्षेत्र के सूक्ष्म जलवायु के सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे तापमान और सापेक्ष आर्द्रता को नियंत्रित करते हैं, प्रदूषकों को अवशोषित एवं विघटित करते हैं तथा समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
किसी शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाने हेतु कदम:
- अर्बन स्वरूप -आधारित कोड संदर्भ-विशिष्ट शीतलन समाधान प्रदान कर सकते हैं। ये कोड किसी शहर या आस-पास की विशिष्ट विशेषताओं के अनुसार ज़ोनिंग नियमों को तैयार करने में मदद कर सकते हैं। ये पुराने बाज़ारों में छायादार मार्ग, मंदिर परिसर, ठंडी छतें और उच्च EVC (30%) वाले व्यापारिक ज़िले हो सकते हैं।
- शहरों को इस अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि को शामिल करने और गर्मी के प्रति अनुकूलन में सुधार करने के लिये अपने भवन उपनियमों और मास्टर प्लान को संशोधित करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये पुणे शहर ने जिस तरह SVF, स्थिति अनुपात, प्रभावी वनस्पति आवरण और शहरी आकारिकी पर ध्यान केंद्रित किया है, वह सभी शहरों के लिये मॉडल हो सकता है।
- यहाँ तक कि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की मामूली कमी से भी शहर की बिजली खपत में 2% की कमी हो सकती है, जो प्रभावी नियोजन के संभावित प्रभाव को दर्शाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्तमान में और निकट भविष्य में भारत की ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में संभावित सीमाएँ क्या हैं? (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संसार के शहरी निवास-स्थानों में ताप द्वीपों के बनने के कारण बताइये। (2013) |
उष्णकटिबंधीय चक्रवात और प्रशांत दशकीय दोलन
प्रिलिम्स के लिये:उष्णकटिबंधीय चक्रवात, निम्न अक्षांश चक्रवात, प्रशांत दशकीय दोलन (PDO), ENSO मेन्स के लिये:भारत पर प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) का प्रभाव, ENSO बनाम PDO |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भूमध्य रेखा के निकट उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात विनाशकारी होते हुए भी हाल के दशकों में असामान्य रूप से कम हुए हैं।
- हालाँकि नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग और प्रशांत दशकीय दोलन ( Pacific Decadal Oscillation- PDO) का संयोजन आने वाले वर्षों में ऐसे चक्रवातों की बारंबारता को और अधिक बढ़ा सकता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात या निम्न अक्षांश चक्रवात:
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात या निम्न अक्षांश चक्रवात (LLC) 5°N और 11°N के बीच उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात उच्च अक्षांशों की तुलना में आकार में बहुत छोटे होते हैं लेकिन अधिक तीव्र होते हैं।
- भूमध्य रेखा (कम अक्षांश) के पास बनने वाले चक्रवात आमतौर पर दुर्लभ होते हैं लेकिन जब पानी गर्म होता है, तो वे अधिक नमी प्राप्त कर सकते हैं और तीव्रता में वृद्धि कर सकते हैं।
- अधिकांश चक्रवात पश्चिमी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होते हैं।
- भूमध्य रेखा (कम अक्षांश) के पास बनने वाले चक्रवात आमतौर पर दुर्लभ होते हैं लेकिन जब पानी गर्म होता है, तो वे अधिक नमी प्राप्त कर सकते हैं और तीव्रता में वृद्धि कर सकते हैं।
- भारत के पड़ोस में इस तरह का आखिरी बड़ा चक्रवात वर्ष 2017 का चक्रवात ओखी था जिसकी तीव्रता 2000 किमी. से अधिक थी जिसने केरल, तमिलनाडु और श्रीलंका में तबाही मचाई।
- मानसून के बाद का मौसम (अक्तूबर-नवंबर-दिसंबर) में उत्तर हिंद महासागर (NIO) निम्न अक्षांश चक्रवात के लिये एक बड़ा केंद्र है, जो NIO (1951 से) में बने सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का लगभग 60% है, लेकिन इस पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है।
प्रशांत दशकीय दोलन:
- परिचय:
- प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) प्रशांत महासागर का एक दीर्घकालिक समुद्री विपर्यय है। यह एक चक्रीय घटना है जो हर 20-30 वर्षों में दोहराई जाती है और ENSO की तरह इसमें 'ठंडा' और 'गर्म' चरण होता है।
- सकारात्मक (गर्म) PDO = ठंडा पश्चिमी प्रशांत महासागर और गर्म पूर्वी भाग (नकारात्मक PDO के लिये इसके विपरीत)।
- PDO शब्द लगभग वर्ष 1996 में स्टीवन हेयर द्वारा गढ़ा गया था।
- PDO का प्रभाव:
- वैश्विक जलवायु पर: PDO चरण का वैश्विक जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, जो प्रशांत और अटलांटिक तूफान गतिविधि, प्रशांत बेसिन के आसपास सूखा एवं बाढ़, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता तथा वैश्विक भूमि तापमान पैटर्न को प्रभावित कर सकता है।
- चक्रवातों पर: एक गर्म (सकारात्मक-चरणबद्ध) PDO का तात्पर्य कम भूमध्यरेखीय चक्रवातों से है।
- वर्ष 2019 में PDO ने ठंडे, नकारात्मक चरण में प्रवेश किया तथा यदि यह जारी रहा, तो इसका अर्थ है कि मानसून के बाद के महीनों में ऐसे और अधिक चक्रवात उत्पन्न हो सकते हैं।
- ENSO और PDO:
- सकारात्मक PDO वाला ENSO आमतौर पर अच्छा नहीं होता है, हालाँकि नकारात्मक PDO वाला ENSO से भारत में अधिक बारिश होती है।
- यदि ENSO और PDO दोनों एक ही चरण में हैं, तो ऐसा माना जाता है कि अल नीनो/ला नीना का प्रभाव बढ़ सकता है।
- PDO बनाम ENSO:
- अल नीनो या ला नीना घटनाएँ प्रशांत क्षेत्र में 2-7 वर्षों में दोहराई जाती हैं, हालाँकि PDO के पास लंबे समय तक (दशकीय पैमाने पर) संकेत होते हैं।
- PDO का 'सकारात्मक' या 'गर्म चरण' समुद्र के तापमान को मापने और वायुमंडल के साथ उनके परस्पर प्रभाव के कई वर्षों के बाद ही जाना जा सकता है (ENSO का चरण किसी भी वर्ष निर्धारित किया जा सकता है)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यह संदेह है कि आस्ट्रेलिया में हाल में बाढ़ ‘‘ला-नीना’’ के कारण आई थी। ‘‘लानी ना’’ ‘‘अल नीनो’’ से कैसे भिन्न है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. अधिकांश असामान्य जलवायु घटनाओं को अल नीनो प्रभाव के परिणाम के रूप में समझाया गया है। क्या आप सहमत हैं? (2014) प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवात अधिकांशतः दक्षिणी चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही परिसीमित रहते हैं। ऐसा क्यों हैं? (2014) |
UWW द्वारा भारतीय कुश्ती संघ की सदस्यता का निलंबन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय कुश्ती संघ, विश्व कुश्ती संघ (यूनाइडेट वर्ल्ड रेसलिंग), कुश्ती मेन्स के लिये:राष्ट्रीय खेल महासंघों के सुचारु कामकाज़ को सुनिश्चित करने में भारत सरकार की भूमिका, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि और प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु खेलों की भूमिका पर चर्चा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कुश्ती की राष्ट्रीय नियामक संस्था, भारतीय कुश्ती संघ (WFI) को विश्व कुश्ती संघ (यूनाइडेट वर्ल्ड रेसलिंग) ने समय पर चुनाव नहीं कराने के कारण अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है।
- इसका भारतीय पहलवानों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, वह सर्बिया में आगामी विश्व चैंपियनशिप में राष्ट्रीय ध्वज के नीचे प्रतिस्पर्द्धा में भाग नहीं ले पाएंगे।
UWW द्वारा WFI को निलंबित करने का कारण:
- UWW ने WFI को उसके संविधान का उल्लंघन करने के आधार पर निलंबित कर दिया है, जिसके अनुसार सभी सदस्य महासंघों को हर चार साल में अपने चुनाव कराना अनिवार्य है।
- WFI को फरवरी 2023 में अपने चुनाव कराने थे लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें देरी हुई, जिसमें कुछ प्रमुख पहलवानों द्वारा पूर्व WFI अध्यक्ष और अन्य के खिलाफ यौन उत्पीड़न, धमकी, वित्तीय अनियमितताओं और प्रशासनिक चूक के आरोप शामिल थे।
- इसके अलावा UWW यह भी चाहता था की एथलीटों को सुरक्षा प्रदान की जाए तथा महासंघ पुनः उचित तरीके से कार्य प्रारंभ करे।
भारत में समान संघर्ष का सामना कर रही अन्य खेल संस्थाएँ:
- फुटबॉल की वैश्विक शासी संस्था FIFA (फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन) ने वर्ष 2002 में चुनावों में देरी के कारण अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (All India Football Federation of India) को निलंबित कर दिया था जिसे बाद में हटा लिया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) और अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) ने भी इसी तरह के कारणों से भारतीय खेल निकायों पर संभावित प्रतिबंध की चेतावनी दी है।
- जून 2020 में भारत सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता 2011 का अनुपालन न करने के कारण 54 राष्ट्रीय महासंघों की मान्यता रद्द कर दी थी।
भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI):
- WFI भारत में कुश्ती की शासी निकाय है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- इसे भारत सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- यह विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है जिनमें प्रो रेसलिंग लीग, राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप और एशियाई चैंपियनशिप शामिल हैं।
- WFI ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले भारतीय पहलवानों का समर्थन और प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
संयुक्त विश्व कुश्ती (UWW):
- UWW शौकिया (Amateur) कुश्ती के खेल के लिये अंतर्राष्ट्रीय शासी निकाय है। यह ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में कुश्ती की निगरानी करता है।
- UWW का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के कॉर्सियर-सुर-वेवे में है।
- UWW की स्थापना वर्ष 1912 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एसोसिएटेड रेसलिंग स्टाइल्स (FILA) के नाम से की गई थी। वर्ष 2014 में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग कर दिया गया।
- UWW का लक्ष्य विश्व स्तर पर एक प्रेरक, नवोन्वेषी और अग्रणी ओलंपिक फेडरेशन के रूप में पहचान बनाना है। इसका मिशन विश्व भर में कुश्ती के विकास का नेतृत्व करना है।
भारत में कुश्ती खेल का इतिहास:
- भारत में कुश्ती की शुरुआत 5वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व से होती है।
- प्राचीन भारत में कुश्ती का अभ्यास किया जाता था जिसे मल्लयुद्ध के नाम से जाना जाता था।
- महाभारत के भीम, जरासंध, कीचक और बलराम प्रसिद्ध पहलवान थे।
- रामायण में कुश्ती का भी उल्लेख है, जिसमें हनुमान एक उल्लेखनीय पहलवान हैं।
- कुश्ती को भारत में "दंगल" कहा जाता है और यह कुश्ती टूर्नामेंट का एक मूल रूप है। पंजाब तथा हरियाणा क्षेत्रों में इसे "कुश्ती" कहा जाता है।
- मूल रूप से रॉयल्स के लिये एक फिटनेस गतिविधि और मनोरंजन, कुश्ती पेशेवर खेल के रूप में विकसित हुई है।
निलंबन का प्रभाव:
- पहलवानों की भागीदारी:
- यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के अनुसार, रेसलर और उनके सहयोगी कर्मी अभी भी UWW-स्वीकृत कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज के बजाय UWW ध्वज के तहत।
- UWW घटनाएँ:
- भारतीय रेसलर बेलग्रेड, सर्बिया में आगामी विश्व चैंपियनशिप सहित UWW प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय ध्वज के तहत प्रतिस्पर्द्धा करने में असमर्थ होंगे। इसके अतिरिक्त यदि कोई पहलवान स्वर्ण पदक हासिल करता है तो कोई भी भारतीय राष्ट्रगान नहीं बजाया जाएगा।
- WFI को UWW से कोई वित्तीय या तकनीकी सहायता नहीं मिल सकती है।
- भारतीय कुश्ती:
- निलंबन से अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती समुदाय में भारत की छवि और प्रतिष्ठा खराब हुई है। यह भारतीय पहलवानों को भी हतोत्साहित तथा निराश करता है, जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप एवं अन्य प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिये कड़ी मेहनत की है।
- भारतीय कुश्ती संघ के निलंबन से पहलवानों की वर्ष 2024 पेरिस ओलंपिक के लिये योग्यता की संभावना बाधित हो गई है, क्योंकि विश्व चैंपियनशिप एक क्वालीफाइंग प्रतियोगिता है।
- यह निलंबन भारतीय कुश्ती के लिये एक बड़ा झटका है, जो हाल के वर्षों में भारत के सबसे सफल खेलों में से एक रहा है। भारत ने वर्ष 2008 से कुश्ती में चार ओलंपिक पदक, 19 विश्व चैंपियनशिप पदक और 69 एशियाई चैंपियनशिप पदक जीते हैं।
आगे की राह
- इसका तात्कालिक समाधान यह है कि जितनी जल्दी हो सके WFI चुनाव कराए जाएँ और नतीजे मंज़ूरी के लिये विश्व कुश्ती संघ को सौंपे जाएं।
- दीर्घकालिक समाधान WFI में सुधार और पुनर्गठन करना है, जो लंबे समय से विभिन्न समस्याओं एवं विवादों से ग्रस्त है। WFI को उचित जाँच तथा संतुलन, वित्तीय लेखापरीक्षा, शिकायत निवारण तंत्र आदि के साथ अपने कामकाज़ के लिये एक पेशेवर और जवाबदेह दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- WFI को UWW और अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ एक स्वस्थ एवं सामंजस्यपूर्ण संबंध को बढ़ावा देना चाहिये तथा उनके नियमों और विनियमों का पालन करना चाहिये। WFI को अन्य राष्ट्रीय महासंघों और क्षेत्रीय संघों के साथ भी सहयोग करना चाहिये तथा भारत एवं विदेशों में कुश्ती के विकास और लोकप्रियता को बढ़ावा देना चाहिये।