अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पश्तून क्षेत्र की भू-राजनीति
प्रीलिम्स के लिये:पश्तून क्षेत्र मेन्स के लिये:तालिबान शांति समझौता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अफगानिस्तान में अमेरिकी विशेष दूत (US Special Envoy for Afghanistan) द्वारा भारत से तालिबान के साथ राजनीतिक वार्ता करने का आह्वान किया तथा तालिबान ने भी भारत के साथ संबंधों को बढ़ाने के संकेत दिये हैं।
प्रमुख बिंदु:
- हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभावी नियंत्रण वाले क्षेत्रों का विस्तार हुआ है।
- अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में अपनी सेनाओं में कमी करने की योजना की घोषणा तथा तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, तालिबान की भूमिका में लगातार वृद्धि हुई है।
- भारत को तालिबान से बातचीत के स्थान पर पश्तून क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में उत्तर-पश्चिमी उपमहाद्वीप की भू-राजनीति को निर्धारित करने में यह प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
भारत की क्या भूमिका हो?
- तालिबान के साथ भारत के जुड़ाव के संबंध में दो स्पष्ट विचारधाराएँ देखने को मिल रही है। एक वे जो तालिबान से भारत के जुड़ाव का समर्थन करते हैं, उनका मानना है कि भारत को दिल्ली-अफगान राजनीति में इतनी महत्त्वपूर्ण ताकत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये।
- जबकि तालिबान से भारत के जुड़ाव का विरोध करने वालों का मानना है कि भारत को तालिबान से संबंध स्थापित कर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- इसलिये तालिबान के साथ एक संवाद स्थापित करना एक सामरिक मुद्दा है। जिसमें संवाद के जुड़ी अनेक शर्तों का ध्यान रखना होगा।
पश्तून के महत्त्व को निर्धारित करने वाले मुद्दे:
- कई जातीय समूहों के बीच एकता का निर्माण करना
- अफगानिस्तान में कई नृजातीय समूह हैं, अत: सभी के हितों का ध्यान रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- अफगानिस्तान के बड़े अल्पसंख्यक समूहों में ताजिकों की (Tajiks) 27%, हज़ारा (Hazaras) 9% तथा उज़्बेकों (Uzbeks) की जनसंख्या 9% हैं।
- अपनी नृजातीय भिन्नता के कारण काबुल विगत चार दशकों से आंतरिक असंतुलन का सामना कर रहा है। इस प्रकार यदि काबुल में तालिबान प्रमुख राजनीतिक भूमिका निभाता है तो यह समस्या और तीव्र हो सकती है।
- तालिबान और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच संबंध:
- वर्ष 1990 के दशक के ‘पश्तून स्वायत क्षेत्र’ के गठन की मांग के दौरान तालिबान एक प्रमुख शक्ति था जिसने क्षेत्र के अन्य अल्पसंख्यक समुदायों का बहुत अधिक दमन किया।
- पश्तून क्षेत्र में तालिबान अभी तक अन्य अल्पसंख्यकों का विश्वास नहीं जीत पाया है।
- अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका:
- पाकिस्तान की महत्त्वाकांक्षा के कारण अफ़गानिस्तान में आंतरिक संतुलन बनाने में बाधा आती है। पाकिस्तान, ब्रिटिश राज के समान अफगानिस्तान पर प्रभुत्त्व स्थापित करना चाहता है।
- लेकिन वर्तमान में पाकिस्तानी सेना के लिये अफगानिस्तान में प्रभुत्व स्थापित करना आसान कार्य नहीं हैं।
पाकिस्तान में पश्तून अल्पसंख्यकों की स्थिति:
- पश्तून की आबादी अफगानिस्तान में लगभग 15 मिलियन और पाकिस्तान में 35 मिलियन होने का अनुमान है।
- पाकिस्तान में पश्तून अलगाववादी आंदोलन लंबे समय तक प्रमुख शक्ति के रूप में प्रभावी रहा है तथा पाकिस्तान में पश्तून का मुद्दा फिर से एक अलग रूप में सामने आ सकता है।
- पाकिस्तान को इस बात का डर है कि तालिबान पश्तून राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे सकता है तथा इससे उसके हित प्रभावित हो सकते हैं।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि काबुल डूरंड रेखा को इस शर्त पर मान्यता प्रदान करने को सहमत हुआ था कि पहले इस्लामाबाद को अपने सीमा-क्षेत्र में रह रहे पश्तून लोगों को स्वायत्ता प्रदान करनी होगी।
पश्तूनिस्तान में भारत की भूमिका:
- भारत ने कूटनीतिक तरीके से बलूचिस्तान, पश्तूनिस्तान (Pashtunistan) तथा पूर्वी पाकिस्तान की भू-राजनीति का उपयोग पाकिस्तान को चुनौती देने में करता आया है।
- भारत डूरंड रेखा के चारों ओर एक सामरिक संतुलन को बनाकर क्षेत्र में शांति-व्यवस्था को स्थापित करना चाहता है।
निष्कर्ष:
- अफगानिस्तान सीमाओं पर पाकिस्तान द्वारा व्यापक सैन्य और राजनीतिक निवेश के बावजूद पाकिस्तान की पश्चिमी सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों का समाधान नहीं हो पाया है। यदि अफगानिस्तान-पाकिस्तान के ‘पश्तून आंदोलन’ फिर से प्रभावी होता है तो इससे भारत के हित भी प्रभावित हो सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम
प्रीलिम्स के लिये:नेशनल करियर सर्विस, करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम मेन्स के लिये:रोज़गार सृजन हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
‘नेशनल करियर सर्विस’ (National Career Service- NCS) और ‘टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ आईओएन’ (Tata Consultancy Services ION) की संयुक्त पहल से नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिये नि:शुल्क ऑनलाइन ‘करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम’ (Career Skills Training) शुरू किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि ‘करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम’ द्वारा उम्मीदवारों के व्यक्तित्व का विकास तथा वर्तमान में उद्योगों में कौशल की मांग के अनुरूप प्रशिक्षित किया जाएगा।
- यह प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘नेशनल करियर सर्विस’ पोर्टल पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।
- ‘नेशनल करियर सर्विस’ पोर्टल पर रोज़गार संबंधी सभी सेवाएँ जैसे कि रोज़गार की खोज, करियर परामर्श, व्यावसायिक मार्गदर्शन, कौशल विकास, प्रशिक्षुता, इंटर्नशिप, आदि की जानकारी प्रदान की जाएगी।
- ‘नेशनल करियर सर्विस’ पोर्टल पर लगभग 1 करोड़ सक्रिय नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार और लगभग 54 हजार नियोक्ता पंजीकृत हैं। साथ ही पोर्टल के माध्यम से लगभग 73 लाख नियुक्तियाँ की गई हैं।
- देशभर में 1000 रोज़गार कार्यालयों (जिनमें 200 मॉडल करियर केंद्र) को ‘नेशनल करियर सर्विस’ पोर्टल से जोड़ा गया है।
- नौकरी खोजने वालों के लिये ‘नेशनल करियर सर्विस’ पोर्टल के मुख्य पेज पर ही ‘घर से काम करने वाली नौकरियाँ (Work from Home Jobs) और ‘ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम’ का एक विशेष लिंक भी बनाया गया है।
- इस पोर्टल पर नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिये वीडियो प्रोफाइल बनाने की भी सुविधा प्रदान की गई है। इस वीडियो प्रोफाइल क्लिप के माध्यम से नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार नियोक्ताओं को अपनी कार्यक्षमता दिखा सकते हैं।
अन्य पहल:
- इस नि:शुल्क ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के अलावा COVID-19 के कारण लागू लॉकडाउन से श्रम बाज़ार में उत्पन्न चुनौतियों को कम करने हेतु अन्य पहल भी किये गए हैं जैसे-
- नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों और नियोक्ताओं के बीच की दूरी को कम करने के लिये ऑनलाइन नौकरी मेलों का आयोजन किया गया जहाँ नौकरियाँ प्रकाशित करने से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक की पूर्ण प्रक्रिया पोर्टल के माध्यम से ही पूरी की जा सकेगी।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान अब तक 76 ऑनलाइन नौकरी मेलों का आयोजन किया जा चुका हैं।
निष्कर्ष:
- ‘करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम’ के माध्यम से रोज़गार सृजन में वृद्धि होगी साथ ही यह कार्यक्रम नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को वर्तमान में उद्योगों की मांग को समझने में मददगार साबित होगा। आज जहाँ रोज़गार के सीमित अवसर दिख रहे हैं वहीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं डिजिटल तकनीक के विस्तार ने चुनौतियाँ और भी बढ़ा दी हैं, इन चुनौतियों से निपटने में यह कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हो सकता है।
नेशनल करियर सर्विस
(National Career Service- NCS):
- 20 जुलाई, 2015 को ‘नेशनल करियर सर्विस’ की शुरुआत की गई थी। यह एक पंचवर्षीय मिशन मोड परियोजना (Five Year Mission Mode Project) है।
- यह पोर्टल श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय (Ministry of Labour & Employment) के अधीन है।
- नेशनल करियर सर्विस भारत के नागरिकों को रोज़गार और कैरियर संबंधी सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है।
- यह पोर्टल नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों और नियोक्ताओं के बीच की दूरी को कम करने की दिशा में कार्य करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
GDP वृद्धि दर में गिरावट
प्रीलिम्स के लियेसकल घरेलू उत्पाद, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सकल स्थायी पूंजी निर्माण मेन्स के लियेGDP संबंधी नवीनतम आँकड़ों का निहितार्थ, लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही अर्थात् जनवरी-मार्च माह में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) की वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत तक गिर गई है।
प्रमुख बिंदु
- वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी अनुमान (Estimate) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में GDP वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत के साथ 11 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ सकती है, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) में 6.1 प्रतिशत थी।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की चौथी और अंतिम तिमाही की वृद्धि दर, बीती 44 तिमाहियों में सबसे कम है, किंतु यह अभी भी विभिन्न अर्थशास्त्रियों और रेटिंग विश्लेषकों द्वारा अनुमानित 2.2 प्रतिशत से अधिक है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में GDP वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में GDP वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत और तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) में GDP वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत रही थी।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation- GFCF) में (-) 2.8 प्रतिशत दर से नकारात्मक वृद्धि हुई।
- GFCF का आशय सरकारी और निजी क्षेत्र में स्थायी पूंजी पर किये जाने वाले शुद्ध पूंजी व्यय के आकलन से है। माना जाता है कि यदि किसी देश के GFCF में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है तो उस देश के आर्थिक विकास में भी तेज़ी से वृद्धि होगी। वहीं इसके विपरीत GFCF में गिरावट अर्थव्यवस्था के नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक विषय होता है।
वृद्धि दर में कमी के कारण
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही की वृद्धि दर से संबंधित आँकड़े स्पष्ट तौर पर 25 मार्च से शुरू हुए COVID-19 लॉकडाउन के पहले सप्ताह के प्रभाव को दर्शाते हैं।
- इस तिमाही के दौरान GDP वृद्धि दर में कमी के लिये विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में हुए तेज़ संकुचन को भी एक प्रमुख कारण माना जा सकता है।
- जहाँ विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) में (-) 1.4 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई, वहीं निर्माण क्षेत्र (Construction Sector) में (-) 2.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। इनके अतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2019-20 में अन्य सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन भी काफी धीमा रहा।
- हालाँकि वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही के दौरान कृषि और सरकारी खर्च में क्रमश: 5.9 प्रतिशत और 10.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई, जिन्होंने गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही में COVID-19 का प्रभाव सीमित था, हालाँकि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में मंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित किया।
2020-21 में और भी खराब हो सकती है स्थिति
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी खराब हो सकती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन का व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा।
- उल्लेखनीय है कि भारत में 25 मार्च को शुरू हुआ लॉकडाउन विश्व के कुछ सबसे कठोर लॉकडाउन में से एक है। लॉकडाउन के पहले, दूसरे और तीसरे चरण के दौरान देश की लगभग सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं, जिसके कारण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। इसका प्रभाव वित्तीय वर्ष 2020-21 में GDP संबंधी आँकड़ों पर देखने को मिल सकता है।
- हालाँकि लॉकडाउन के चौथे चरण में आर्थिक गतिविधियाँ धीरे-धीरे पुनः शुरू हो रही हैं, किंतु देश में कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के आँकड़े दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में आशंका है कि आगामी दिनों लॉकडाउन के नियम और अधिक कठोर हो सकते हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, आठ कोर इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योगों का उत्पादन भी अप्रैल माह में रिकॉर्ड 38.1 प्रतिशत घट गया, जबकि देश का राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.6 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जो कि मुख्यतः कम राजस्व प्राप्ति के कारण है।
- अप्रैल माह में विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers’ Index) 27.4 के निचले स्तर पर आ गया है, जो कि मार्च माह में 51.8 के स्तर पर था। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में 60 प्रतिशत की कमी आई है।
आगे की राह
- मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है और वैश्विक स्तर पर वायरस संक्रमण के आँकड़े 60 लाख के पार जा चुके हैं। वहीं इसके कारण 3 लाख से लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
- वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये विश्व के विभिन्न देशों में लॉकडाउन को एक उपाय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, विभिन्न देशों ने आंशिक अथवा पूर्ण लॉकडाउन लागू किया है।
- भारत समेत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर इस लॉकडाउन का प्रभाव देखने को मिल रहा है, चूँकि आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं।
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, संतुलित और तर्कसंगत निर्णय नहीं लेती है तो आगामी समय में स्थिति और भी खराब हो सकती है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘7.75% बचत बॉण्ड, 2018’ योजना की समाप्ति
प्रीलिम्स के लिये:‘7.75% बचत बॉण्ड, 2018’ मेन्स के लिये:आर्थिक क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने 28 मई, 2020 से ‘7.75% बचत (कर योग्य) बॉण्ड, 2018’ [7.75 per cent Savings (Taxable) Bonds, 2018] को जारी किये जाने पर रोक लगा दी है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में बैंकों द्वारा जमा राशि पर पर ब्याज की दरों में कटौती और सरकार के द्वारा कुछ अन्य छोटी बचत दरों में कटौती की गई है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा 27 मई को की गई घोषणा के अनुसार 28 मई, 2020 के दिन के व्यापार के बाद ‘7.75% बचत (कर योग्य) बॉण्ड, 2018’ की खरीद पर रोक लगा दी गई है।
- सरकार का यह निर्णय निवेशकों को बचत के एक और बेहतर विकल्प से वंचित कर देगा जिसमें उन्हें अन्य विकल्पों की तुलना में कर देने के बाद भी अपेक्षाकृत अधिक रिटर्न/लाभ मिलता था।
क्या है ‘7.75% बचत (कर योग्य) बॉण्ड, 2018’?
- ‘7.75% बचत (कर योग्य) बॉण्ड’ पहली बार 10 जनवरी, 2018 को निवासी नागरिकों/हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family-HUF) के लिये जारी किया गया था।
-
इसके एक बॉण्ड का मूल्य 1,000 रुपए रखा गया था परंतु इसके तहत निवेश की कोई सीमा नहीं निर्धारित की गई थी।
- इस बॉण्ड पर जारी होने की तिथि से सात वर्ष का लॉक-इन पीरियड या निश्चित अवरुद्धता अवधि निर्धारित की गई थी हालाँकि 60 वर्ष या उससे अधिक की आयु के निवेशकों को निर्धारित अवधि से पहले ही अपने पैसे निकालने की छूट दी गई थी।
- इस बॉण्ड में निवेश द्वारा प्राप्त ब्याज पर ‘आयकर अधिनियम, 1961’ (Income Tax Act, 1961) के तहत कर लागू होता है।
सरकार के निर्णय का प्रभाव:
- सरकार के निर्णय के पश्चात् 28 मई, 2020 के बाद इस बॉण्ड में नए निवेश की अनुमति नहीं होगी परंतु 28 मई तक किये गए निवेश पर पूर्व की तरह 7.75% ब्याज का लाभ मिलता रहेगा।
- विशेषज्ञों के अनुसार, इस बॉण्ड में किये गए अधिकांशतः निवेश ‘उच्च निवल मालियत वाले व्यक्ति’ (Hight networth individuals- HNI) द्वारा थे परंतु पिछले कुछ महीनों में बाज़ार में बढ़ी हुई अनिश्चितता के कारण इनकी मांग में वृद्धि हुई थी।
- वर्तमान स्थितियों को देखते हुए लोगों ने अपनी पूंजी पर अधिक ब्याज के स्थान पर निवेश में पूंजी की सुरक्षा को अधिक प्राथमिकता दी है।
- इसके अतिरिक्त पेंशनधारक या ऐसे लोग जिन्हें आयकर अधिनियम के तहत कर देने से छूट प्राप्त है, उनके लिये यह बॉण्ड सुरक्षित निवेश का सबसे बेहतर विकल्प था।
- इस वर्ष सेंसेक्स में 10,000 अंकों की गिरावट और म्यूच्यूअल फंड के मुनाफे में गिरावट के बाद निवेशकों (विशेषकर पेंशन धारकों) पर दबाव बढ़ा है।
- गौरतलब है कि हाल ही में फ्रैंकलिन टेम्पलटन (Franklin Templeton) नामक निवेश प्रबंधन कंपनी ने अपनी 6 क्रेडिट रिस्क योजनाओं को बंद करने का निर्णय लिया है।
अन्य विकल्पों की तुलना में RBI बॉण्ड के लाभ:
- यह बॉण्ड ‘आयकर अधिनियम’ के तहत कर (Tax) की सीमा में आते हैं, अतः कर चुकाने के बाद निवेशकों को निम्नलिखित दरों पर ब्याज प्राप्त होगा-
- 5 करोड़ रुपए से अधिक की आय वाले लोगों को इस योजना के तहत 4.4% का ब्याज प्राप्त होगा।
- 30% के आयकर की श्रेणी में आने वाले लोगों को कर चुकाने के बाद इस योजना के तहत 5.4% का रिटर्न प्राप्त होगा।
- 10% आयकर श्रेणी में आने वाले लोगों को कर चुकाने के बाद इस योजना के तहत 6.975% का रिटर्न प्राप्त होगा।
- यदि इस बॉण्ड की तुलना वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध निवेश के अन्य विकल्पों से करें तो निवेशकों के लिये यह योजना अधिक लाभदायक एवं सुरक्षित थी।
- अप्रैल, 2020 में सरकार द्वारा कई अन्य बचत योजनाओं के ब्याज में कटौती की घोषणा की गई थी।
- सार्वजनिक भविष्य निधि (Public Provident Fund- PPF) की ब्याज दरों को 7.9% से घटाकर 7.1% कर दिया गया था।
- सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samriddhi Yojana) पर मिलने वाले ब्याज को 8.4% से घटाकर 7.6% कर दिया गया।
- इसकी तुलना में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 3-5 वर्ष की सावधि जमा राशि पर 5.3% और 5-10 के निवेश पर 5.4% का रिटर्न दिया जाता है, ऐसे में 30% आयकर की श्रेणी वाले लोगों को इन योजनाओं पर क्रमशः 3.71% और 3.78% ही रिटर्न मिलेगा।
ब्याज दरों में कटौती का कारण:
- COVID-19 महामारी के कारण विश्व के अधिकांश देशों में औद्योगिक गतिविधियों और यातायात बाधित होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भरी गिरावट देखी गई है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व के अन्य देशों की ही तरह भारतीय जीडीपी में गिरावट के अनुमान के बाद RBI ने पहले 27 मार्च, 2020 को रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट की कटौती के साथ 4.4% किया और 22 मई, 2020 को पुनः 40 बेसिस पॉइंट की कटौती के साथ इसे 4% कर दिया गया।
- इसके अतिरिक्त रिवर्स रेपो रेट को भी 3.35% कर दिया गया है।
- ध्यातव्य है कि रेपो रेट में कटौती का अर्थ है कि बैंकों को RBI से लिये गए ऋण पर कम ब्याज देना होगा जबकि ‘रिवर्स रेपो रेट’ में कटौती से बैंकों द्वारा RBI में जमा धन पर पहले की अपेक्षा कम ब्याज मिलेगा।
- RBI द्वारा रेपो रेट में की गई कटौती के कारण बैंक कम ब्याज दर पर अधिक पूंजी उधार ले सकेंगे, जिससे उद्योगों और आम जनता को कम ब्याज दर पर आसानी से ऋण उपलब्ध हो सकेगा।
- जबकि रिवर्स रेपो रेट में की गई कटौती से बैंक अपनी पूंजी RBI में रखने की अपेक्षा बाज़ार में देने में ज़्यादा इच्छुक होंगे, जिससे वर्तमान परिस्थिति में बाज़ार में तरलता की कमी को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘रोज़गार सेतु’ योजना
प्रीलिम्स के लिये‘रोज़गार सेतु’ योजना मेन्स के लियेलॉकडाउन जनित प्रवासी संकट, महामारी के दौर में राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे विविध प्रयास, राज्यों की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये विभिन्न प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य में देश के अन्य हिस्सों से लौटे कुशल श्रमिकों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ‘रोज़गार सेतु’ (Rozgar Setu) योजना की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राज्य सरकार उन सभी कुशल श्रमिकों का सर्वेक्षण कर रही है जो महामारी से पूर्व किसी उद्योग में कार्यरत थे और महामारी के कारण राज्य में वापस लौटे हैं।
- इसके साथ ही श्रमिकों के कौशल की भी पहचान की जा रही है।
- रोज़गार की आवश्यकता वाले ऐसे श्रमिकों की पहचान करने के बाद सरकार कारखाने और कार्यशाला मालिकों तथा बुनियादी ढाँचे संबंधी विभिन्न परियोजनाओं की देख-रेख कर रहे ठेकेदारों से संपर्क करेगी।
- राज्य सरकार का प्रयास है कि मध्यप्रदेश में सभी कुशल श्रमिकों को एक मंच पर एकत्रित किया जाए और इसके पश्चात् इन्हें उन लोगों के साथ जोड़ा जाए जिन्हें इस कौशल की आवश्यकता है। इस प्रकार राज्य सरकार श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करेगी ताकि दोनों को लाभ मिल सके और राज्य की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो सके।
महत्त्व
- राज्य सरकार का यह निर्णय मध्यप्रदेश के उद्योगों के लिये श्रमशक्ति (Manpower) की आवश्यकता को पूरा करने के साथ-साथ कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के दौरान श्रमिकों को रोज़गार भी प्रदान करेगा।
प्रवासी संकट की चुनौती
- भारत में अंतर-राज्य प्रवासियों (Inter-State Migrants) का कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं है, किंतु वर्ष 2011 की जनगणना, NSSO के सर्वेक्षण और आर्थिक सर्वेक्षण पर आधारित अनुमानों के अनुसार, देश में कुल 65 मिलियन अंतर-राज्य प्रवासी हैं, जिनमें से 33 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक हैं।
- ध्यातव्य है कि देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रसार को रोकने के लिये केंद्र सरकार ने 25 मई को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, इस लॉकडाउन के कारण देश भर में सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं।
- ऐसे समय में देश भर के प्रवासी श्रमिकों के लिये अपनी आजीविका चलाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है तथा वे सभी अपने-अपने गृह राज्य वापस लौट रहे हैं, जिसके कारण गृह राज्य पर दबाव और अधिक बढ़ गया है।
- एक अनुमान के अनुसार, मध्यप्रदेश में इस लॉकडाउन अवधि के दौरान लगभग 1 मिलियन प्रवासी श्रमिक वापस लौटेंगे, हालाँकि राज्य सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अब तक 5 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों को राज्य में वापस लाया जा चुका है।
निष्कर्ष
- इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराना राज्य सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी, जिसे देखते हुए सरकार के मौजूदा कदम को एक सराहनीय प्रयास माना जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
नवीन राष्ट्रीय नंबरिंग योजना
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय नंबरिंग योजना, टेली-घनत्व मेन्स के लिये:नवीन राष्ट्रीय नंबरिंग योजना की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
'भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण' (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने देश में नवीन 'राष्ट्रीय नंबरिंग योजना' (National Numbering Plan- NNP) शीघ्र लागू करने की सिफारिश की है ताकि प्रत्येक ग्राहक को ‘विशिष्ट पहचान संख्या’ (Uniquely Identifiable Number- UID) प्रदान की जा सके।
प्रमुख बिंदु:
- दूरसंचार विभाग, ‘अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ’ (International Telecommunication Union- ITU) के ‘दूरसंचार मानकीकरण क्षेत्र’ (Telecommunication Standardization Sector- ITU-T) अनुशंसाओं के आधार पर फिक्स्ड (लैंडलाइन) तथा मोबाइल नेटवर्क नंबरों का प्रबंधन करता है।
- नंबरिंग संसाधनों का प्रबंधन 'राष्ट्रीय नंबरिंग योजना' (National Numbering Plan) के तहत किया जाता है।
नवीन नंबरिंग योजना की आवश्यकता:
- TRAI का मानना है की हाल ही में टेलीकॉम सेवाओं में व्यापक विस्तार देखने को मिला है तथा टेलीकॉम कनेक्शनों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि देखने को मिली है। इससे ‘उपलब्ध नंबरिंग संसाधनों’ (Availability of Numbering Resources); विशेषकर मोबाइल सेगमेंट में, इनकी पर्याप्त उपलब्धता नहीं है।
- वर्तमान में उपलब्ध नंबरिंग योजना को वर्ष 2003 में अपनाया गया था तथा ऐसा अनुमान था कि यह नंबरिंग प्रणाली वर्ष 2033 तक उपयुक्त रहेगी परंतु भारत में टेलीफोन ग्राहकों की कुल संख्या जनवरी, 2020 के अंत में 1,177.02 मिलियन थी।
टेली-घनत्व (Tele-Density):
- टेलीफोन घनत्व या टेलीडेंसिटी एक क्षेत्र के भीतर रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों पर टेलीफोन कनेक्शनों की संख्या है।
- जनवरी 2020 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में टेली-घनत्व 87.45% है।
TRAI द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशें:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि दूरसंचार सेवाओं के सतत् विकास के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों, TRAI ने सरकार को ‘राष्ट्रीय नंबरिंग योजना’ की समीक्षा करने तथा आवश्यक नीतिगत निर्णय लेने को कहा है।
- सरकार को नंबरिंग संसाधनों में किसी भी प्रकार के बदलाव से पूर्व निम्नलिखित तीन विकल्पों पर विचार करना चाहिये।
- वर्तमान 10 अंकीय मोबाइल नंबर प्रणाली के स्थान पर 11-अंकीय मोबाइल नंबर प्रणाली को अपनाना।
- ऑपरेटरों द्वारा बंद किये गए मोबाइल नंबरों को टेलिकॉम कंपनियों को पुन:आवंटित करना।
- फिक्स्ड लाइन (लैंडलाइन) से कॉल करते समयमोबाइल नंबर के आगे '0' का प्रयोग करना। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्तमान समय में फिक्स्ड लाइन कनेक्शन से ‘इंटर-सर्विस एरिया’ में मोबाइल कॉल के लिये नंबर की शुरुआत में '0' लगाने की ज़रूरत पड़ती है।
- प्राधिकरण ने यह भी सिफारिश की है कि सभी मशीन-से-मशीन (M2M) कनेक्शन जो 10-अंकीय 'मोबाइल नंबरिंग शृंखला' का उपयोग करते हैं उन्हे दूरसंचार विभाग द्वारा आवंटित 13-अंकीय नंबरिंग शृंखला में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये। इनमें ऐसे सिम कार्ड्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिये जिनमें केवल डेटा में इस्तेमाल किया जा सके तथा कॉलिंग सुविधा न दी जाए।
- फिक्स्ड लाइन के साथ-साथ मोबाइल सेवाओं के लिये आवंटित किये जाने वाले नंबरिंग संसाधनों को प्रतिवर्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिये।
- ‘राष्ट्रीय नंबरिंग आवंटन' को कुशल तथा पारदर्शी तरीके से लागू करने के लिये 'नंबर प्रबंधन प्रणाली सॉफ्टवेयर' का उपयोग किया जाना चाहिये ताकि 'नंबरिंग संसाधनों का आवंटन' स्वचालित तरीके से हो सके। आवश्यकता हो तो आवंटन कार्य दूरसंचार विभाग के समग्र नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण में किया जा सकता है।
सुधारों में आने वाली संभावित बाधाएँ:
- 11 अंकों की प्रणाली को अपनाने से ग्राहकों को अतिरिक्त अंक डायल करने और फोन मेमोरी को अपडेट करने की आवश्यकता होगी।
- इसके कारण दूरसंचार कंपनियों को नंबर डायलिंग त्रुटियों, राजस्व की हानि आदि का सामना करना पड़ सकता है।
- टेलीफोन नंबर व्यक्तियों की डिजिटल पहचान से जुड़े होते हैं। वित्तीय बैंकिंग सेवाओं, ई-कॉमर्स, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं आदि में व्यक्तिगत पहचान के लिये टेलीफोन नंबर की आवश्यकता होती है। अत: इन सभी सेवाओं के डेटाबेस में परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी।
आगे की राह:
- वर्तमान में उपलब्ध 10 अंकों आधारित मोबाइल नंबर के स्थान पर 11 अंकों के मोबाइल नंबर प्रणाली को अपनाने में अनेक समस्याओं का सामना पड़ सकता है। अत: 11 अंकों आधारित मोबाइल प्रणाली को तभी अपनाना चाहिये जब 10-अंकों की संख्या के साथ इस प्रणाली को जारी रखने के सभी प्रयास समाप्त हो जाएँ।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश मेन्स के लिये:प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
’उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) द्वारा जारी नवीनतम आकँड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) में वृद्धि दर्ज़ की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 18% की वृद्धि दर्ज की गई है जो वर्तमान में बढ़कर 73.46 बिलियन डॉलर हो गया है। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पिछले चार वर्षों के दौरान सबसे अधिक है। इस निवेश के परिणामस्वरुप रोज़गार में सृजन होगा।
- विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारत में 247 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान निम्नलिखित क्षेत्रों में अधिकतम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है-
- सेवा (7.85 बिलियन डॉलर)
- कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (7.67 बिलियन डॉलर)
- दूरसंचार (4.44 बिलियन डॉलर)
- व्यापार (4.57 बिलियन डॉलर)
- ऑटोमोबाइल (2.82 बिलियन डॉलर)
- निर्माण (2 बिलियन डॉलर)
- रसायन (1 बिलियन डॉलर)
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अधिकतम योगदान सिंगापुर का (14.67 बिलियन डॉलर) है। हालाँकि यह निवेश वित्तीय वर्ष 2018-19 में सिंगापुर द्वारा किये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (16.22 बिलियन डॉलर) की तुलना में कम है।
- गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निम्नलिखित देशों का भी योगदान है-
- मॉरीशस (8.24 बिलियन डॉलर)
- नीदरलैंड (6.5 बिलियन डॉलर)
- अमेरिका (4.22 बिलियन डॉलर)
- केमेन द्वीप (3.7 बिलियन डॉलर)
- जापान (3.22 बिलियन डॉलर)
- फ्राँस (1.89 बिलियन डॉलर)।
- ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2018-1) के दौरान कुल 62 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था।
- वित्तीय वर्ष 2013-14 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 36 बिलियन डॉलर का था, जबकि वर्तमान में यह दोगुना हो गया है।
विदेशी निवेश (Foreign Investment):
- जब कोई देश विकासात्मक कार्यो के लिये अपने घरेलू स्रोत से संसाधनों को नहीं जुटा पाता है तो उसे देश के बाहर जाकर शेष विश्व की अर्थव्यवस्था से संसाधनों को जुटाना पड़ता है।
- शेष विश्व से ये संसाधन या तो कर्ज (ऋण) के रूप में जुटाए जाते हैं या फिर निवेश के रूप में।
- कर्ज के रूप में जुटाए गए संसाधनों पर ब्याज देना पड़ता है, जबकि निवेश की स्थिति में हमें लाभ में भागीदारी प्रदान करनी होती है।
- विदेशी निवेश विकासात्मक कार्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण ज़रिया है। विदेशी निवेश को निम्न दो रूपों में देखा जा सकता है-
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI):
- यदि विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10% या अधिक शेयर प्राप्त हो जाएँ जिससे कि वह कंपनी के निदेशक मंडल में प्रत्यक्ष भागीदारी कर सके तो इस निवेश को ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कहते हैं। इससे विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI):
- यदि किसी विदेशी निवेशक द्वारा कंपनी के 10% से कम शेयर खरीदे जाएँ तो उसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कहते हैं। FPI के अंतर्गत विदेशी संस्थाओं द्वारा खरीदे गए शेयर को विदेशी संस्थागत निवेश, जबकि विदेशी व्यक्तियों द्वारा खरीदे गए शेयर को पत्रागत/अर्हता प्राप्त विदेशी निवेश कहते हैं।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की तुलना में बेहतर माने जाते हैं क्योंकि FDI किसी देश की अर्थव्यवस्था को समुचित स्थिरता प्रदान करते हैं जबकि FPI निवेश अस्थिर प्रकृति के होते हैं और इनमें संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था से निकल जाने की प्रवृति देखी जाती है।
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:
- भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को दो अलग-अलग मार्गों के माध्यम से अनुमति दी जाती है- पहला, स्वचालित (Automatic) और दूसरा, सरकारी अनुमोदन के माध्यम से।
- स्वचालित मार्ग में विदेशी संस्थाओं को निवेश करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
- हालाँकि उन्हें निर्धारित समयावधि में निवेश की मात्रा के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित करना होता है।
- विशिष्ट क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सरकारी अनुमोदन के माध्यम से होता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्रतिरक्षा बढ़ाने हेतु फंगल पाउडर
प्रीलिम्स के लिये:कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस मेन्स के लिये:रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम राज्य के ‘बोडोलैंड विश्वविद्यालय’(Bodoland University) के शोधकर्त्ताओं द्वारा एक फफूंद पाउडर (Fungal Powder) तैयार किया है जो लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- इस पाउडर को एक दुर्लभ परजीवी कवक जिसे ‘सुपर मशरूम’ के नाम से जाना जाता है से प्राप्त किया गया।
- इस ‘सुपर मशरूम’ को ‘कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस’ (Cordyceps militaris) के नाम से जाना जाता है।
- ‘सुपर मशरूम’ को -800C तापमान पर हिमशुष्कन (Lyophilisation) प्रक्रिया द्वारा इस फफूंद पाउडर को प्राप्त किया गया।
हिमशुष्कन/लियोफिलाइजेशन (Lyophilisation):
- हिमशुष्कन किसी दिये गए उत्पाद से जल या अन्य विलायकों को हटाने की प्रक्रिया है जिसे क्रायोडेसिकेशन भी कहा जाता है।
- इस क्रिया में एक जमे हुए उत्पाद को बर्फ तरल अवस्था से गुजरे बिना सीधे गैसीय अवस्था में परिवर्तित किया जाता है।
कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस
- वैज्ञानिक नाम: Cordyceps militaris
- जगत (Kingdom)- कवक
- संघ (Division) -एस्कोमाइकोटा
- वर्ग (Class): सोर्डियारोमाइसेस
- गण (Order): हाइपोक्रील्स
- कुल (Family): कॉर्डिसिपिटैसिया
- वंश (Genus): कॉर्डिसेप्स
- विश्व में कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस की 400 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- कॉर्डिसेप्स फफूंद परजीवी के रूप में कीटों के लार्वा पर उपस्थित होता है।
- इसे सुपर मशरूम के रूप में जाना जाता है।
- इसमें एंटी-एजिंग, एंटी-वायरल, ऊर्जा और प्रतिरक्षा को बढ़ाने वाले गुण विद्यमान होते हैं।
- प्राकृतिक रूप में कॉर्डिसेप्स को प्राप्त करना कठिन है और सूख जाने पर इसकी कीमत कम-से-कम 8 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है।
अन्य शोध कार्य:
- फंगल पाउडर के अलावा, बोडोलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा एक झिल्ली मास्क (Membrane Mask) भी विकसित किया है जिसकी कीमत 4 रुपए प्रति यूनिट से कम है।
- इसके अलावा हर्बल और अल्कोहल-आधारित सैनिटाइजर, लेज़र , एक कम लागत वाले फिजिकल-कम-केमिकल सैनिटाइजेशन बॉक्स तथा एक पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (Personal Protective Equipment- PPE) किट भी विकसित की गई है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ज्वारनदमुख-पंक मैदान पारिस्थितिकी
प्रीलिम्स के लिये:ज्वारनदमुख-पंक मैदान पारिस्थितिकी मेन्स के लिये:ज्वारनदमुख-पंक मैदान पारिस्थितिकी का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
वन विभाग ने 'जीएमआर एनर्जी लिमिटेड' (GMR Energy Limited) को कुंभाभिषेकम (Kumbabhishekham) पंक मैदान में तलकर्षण/निकर्षण (Dredging) गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- पंक मैदान/मडफ्लैट (Mudflat) तथा मैंग्रोव के विनाश के करण लुप्तप्राय ‘ग्रेट नॉट’ (Great knot) तथा ‘भारतीय स्किमर’ (Indian Skimmers); जो एक प्रकार के जलीय पक्षी हैं, के आवास क्षेत्र में लगातार कमी आ रही है।
- ‘GMR एनर्जी लिमिटेड’ द्वारा कुंभाभिषेकम (काकीनाड़ा) साइट पर मडफ्लैट के सामने एक तटबंध बनाया गया है।
- मौजूदा तटबंधों को हटाने के लिये GMR एनर्जी लिमिटेड द्वारा तलकर्षण/निकर्षण किया जा रहा था।
- तटबंधों से निकले अवसादों के कारण ‘मैंग्रोव वनों’ में अवसादों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे मैंग्रोव वनों की पारिस्थितिकी प्रभावित हो रही है।
ज्वारनदमुख-पंक मैदान पारिस्थितिकी:
- ज्वारनदमुख/एश्चुअरी नदी तट के किनारे स्थित महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र होता है जहाँ नदी, समुद्र से मिलती है।
- इन क्षेत्रों में न केवल लवणीय तथा मृदु जल का मिश्रण होता है अपितु नदी एवं समुद्र के तलछटों का भी मिश्रण होता है। इन तलछटों का एश्चुअरी के मुख पर पंक मैदान/मडफ्लैट के रूप में जमाव होता है। ये मडफ्लैट कई किलोमीटर तक तट के साथ विस्तृत होते हैं।
- सामान्यत: ज्वारनदमुख-पंक मैदान पारिस्थितिकी तंत्र, मैंग्रोव वन पारिस्थितिकी तंत्र के निकट स्थित होते हैं।
महत्त्व:
- विभिन्न प्रकार के पक्षी, मत्स्य, अकशेरुकी जीवों के लिये आवास स्थल प्रदान करना;
- व्यावसायिक मत्स्यन के लिये प्रजनन आधार के रूप में;
- तट-रेखा को स्थिर रखना; और
- जल का शुद्धिकरण।
पारिस्थितिकी को चुनौतियाँ:
- नदियों के ज़रिये खतरनाक ‘अजैव-निम्नीकरणीय’ रासायनिक अपशिष्ट जैसे भारी धातु एवं कीटनाशक तलछट में जमा हो सकते हैं। ये अपशिष्ट बड़ी मात्रा में अकशेरुकी जीवों के माध्यम से खाद्य जाल में प्रवेश कर सकते हैं।
- ज्वारनदमुख-पंक मैदान बंदरगाहों, औद्योगिक परिसरों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और मानव बस्तियों के लिये महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थान होते हैं। अत: मानवीय गतिविधियों के कारण क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचती है।
कार्यकर्त्ताओं द्वारा चलाया गया अभियान:
- तटबंधों के कारण तात्कालिक रूप से क्षेत्र की स्थलाकृति तथा मृदा की लवणता प्रभावित होती है। ड्रेजिंग के कारण कुंभाभिषेकम मडफ्लैट का लगातार विनाश हो रहा है, अत: पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं द्वारा ड्रेजिंग के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है।
- कार्यकर्त्ताओं ने इस मामले में राज्य सरकार तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests and Climate Change) के हस्तक्षेप की मांग की है।
आगे की राह:
- तटीय व सागरीय संरक्षण व जैव-विविधता संबंधी नीतियों की कानूनी समीक्षा की जानी चाहिये। इस तरह की समीक्षा अतीत के क्रियान्वयन, वर्तमान मुद्दों और सुधार की दिशा में पहल पर ध्यान देने वाली होनी चाहिये।
- समुदाय आधारित प्रबंधन प्रणालियों को अपनाना चाहिये। इससे स्थानीय समुदायों में संसाधनों के प्रति जागरूकता आएगी तथा वे विवेकशील दोहन की ओर अग्रसर होंगे।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 मई, 2020
अजीत जोगी
हाल ही में छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वर्तमान में अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्त्व कर रहे थे। मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नवंबर 2000 में वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे और दिसंबर 2003 तक इस पद पर बने। छत्तीसगढ़ सरकार ने अजीत जोगी के निधन पर तीन दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है, इस तीन दिवसीय अवधि में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और कोई भी शासकीय समारोह आयोजित नहीं किया जाएगा। अजीत जोगी का जन्म 29 अप्रैल, 1946 को बिलासपुर ज़िले (छत्तीसगढ़) में हुआ था। अजीत जोगी ने भोपाल से इंजीनियरिंग और दिल्ली विश्विद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की थी। राजनीति में आने से पूर्व अजीत जोगी वर्ष 1974 में भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service-IPS) के लिये चयनित हुए थे, जिसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने पुनः सिविल सेवा परीक्षा दी और इस बार वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Service-IAS) के लिये चयनित है और तकरीबन 12 वर्षों तक मध्यप्रदेश के विभिन्न ज़िलों में कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। वर्ष 1998 में रायगढ़ लोकसभा से पहली बार चुनाव लड़ा और संसद पहुँचे। जब वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बना तो वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने।
मिसाइल पार्क 'अग्निप्रस्थ'
28 मई, 2020 को INS कलिंग में 'अग्निप्रस्थ' नामक एक मिसाइल पार्क की आधारशिला रखी गई। 'अग्निप्रस्थ' मिसाइल पार्क का उद्देश्य वर्ष 1981 से लेकर अब तक INS कलिंग के मिसाइल इतिहास की झलक दिखना है। इस मिसाइल पार्क की स्थापना मिसाइलों और ग्राउंड सपोर्ट इक्विपमेंट (Ground Support Equipment-GSE) की प्रतिकृति के साथ की गई है, जो यूनिट द्वारा संचालित की जा रही मिसाइलों के विकास को प्रदर्शित करते हैं। इन प्रदर्शनियों को स्क्रैप/अप्रचलित (Obsolete) इन्वेंट्री से बनाया गया है जिन्हें आंतरिक रूप से पुनर्निर्मित किया जा रहा है। इस पार्क का मुख्य आकर्षण P-70 एमेटिस्ट है। यह एक एंटी-शिप मिसाइल है जिसे पानी के नीचे लॉन्च किया जाता है, जो वर्ष 1988-91 के दौरान भारतीय नौसेना में सेवारत था। यह मिसाइल पार्क मिसाइलों और मिसाइल प्रौद्योगिकियों में रुचि रखने वाले लोगों के लिये आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र होगा।
गोवा स्थापना दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोवा के स्थापना दिवस के स्थापना दिवस (30 मई) के अवसर पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएँ दी हैं। इस दिवस का आयोजन गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के अवसर पर किया जाता है। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल ने सभी रियासतों को मिलाकर भारत को एक संघ राज्य का रूप दिया। वे गोवा को भी भारतीय संघ राज्य क्षेत्र में शामिल करना चाहते थे, किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा था, क्योंकि 1510 ई से गोवा और दमन एवं दीव में पुर्तगालियों का औपनिवेशिक शासन था। भारत सरकार ने कई बार पुर्तगाली सरकार से वार्ता की, किंतु वे विफल रहीं, जिसके बाद अंततः 18 दिसंबर, 1961 को भारत की सेना ने गोवा, दमन और दीव में हमला कर दिया। 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और गोवा को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इसके बाद 30 मई, 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा गोवा को आधिकारिक तौर पर भारत का 25वाँ राज्य घोषित किया गया। गोवा, भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसके उत्तर में तेरेखोल नदी (Terekhol River) बहती है, जो गोवा को महाराष्ट्र से अलग करती है, वहीं इसके पश्चिम में अरब सागर है। गोवा का कुल क्षेत्रफल लगभग 3,702 वर्ग किलोमीटर है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, गोवा की जनसंख्या तकरीबन 1458545 है। गोवा की राजधानी पणजी (Panaji) है और यहाँ मुख्य तौर पर कोंकणी (Konkani) भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त यहाँ मराठी, हिंदी, अंग्रेजी तथा कन्नड़ आदि का भी प्रयोग होता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा
संयुक्त राष्ट्र महासभा (U.N. General Assembly) ने COVID-19 प्रतिबंधों के कारण नई मतदान व्यवस्था के तहत अगले माह सुरक्षा परिषद के पाँच गैर-स्थायी सदस्यों (Non-Permanent Members) के लिये चुनाव कराने का निर्णय लिया है। 193 सदस्यों वाली महासभा ने हाल ही में ‘कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के दौरान एक पूर्ण बैठक के बिना गुप्त मतदान द्वारा चुनाव कराने की प्रक्रिया’ शीर्षक नाम से एक निर्णय को अपनाया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लिये गए निर्णय के अनुसार, सुरक्षा परिषद में गैर-स्थायी सदस्यों के चुनाव और आर्थिक तथा सामाजिक परिषद (Economic and Social Council) के सदस्यों के चुनाव जून 2020 में एक साथ परिपूर्ण बैठक (Plenary Meeting) के बिना आयोजित किये जाएंगे। ध्यातव्य है कि वर्ष 2021-22 के कार्यकाल के लिये 15-राष्ट्र परिषद के पाँच गैर-स्थायी सदस्यों के लिये चुनाव मूल रूप से 17 जून को निर्धारित किये गए थे।