अंतर्राष्ट्रीय संबंध
उइगर मानवाधिकार विधेयक
प्रीलिम्स के लिये:उइगर मुस्लिम मेन्स के लिये:अमेरिका-चीन संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका के 'प्रतिनिधि सभा' (House of Representatives) ने ‘उइगर मानवाधिकार विधेयक’ (Uighur Human Rights Bill) को मंज़ूरी दी है। विधेयक में ट्रंप प्रशासन से चीन के उन शीर्ष अधिकारियों को दंडित करने की मांग की गई है जिनके द्वारा अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है।
प्रमुख बिंदु:
- विधेयक के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति को चीन में मुसलमानों के खिलाफ होने वाली अपराध की निंदा करनी होगी तथा शिनजियांग प्रांत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में शिविरों को बंद करने की अपील करनी होगी।
- यह विधेयक वरिष्ठ चीनी अधिकारियों; जिनमें शिनजियांग कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव आदि शामिल हैं, के खिलाफ प्रतिबंधों का आह्वान करता है।
विधेयक में शामिल अन्य प्रावधान:
- इस विधेयक के अनुसार, अमेरिका के राज्य सचिव को शिनजियांग प्रांत में पुन: शिक्षा और जबरन श्रम शिविरों में रखे गए लोगों की संख्या की जानकारी देनी होगी।
- विधेयक, उन प्रौद्योगिकी को चीन को निर्यात कने पर प्रतिबंध लगाता है जो चेहरे तथा आवाज के आधार पर व्यक्तिगत पहचान और निगरानी करने में उपयोग किया जा सकता है।
उइगर मुस्लिम (Uighur Muslim):
- उइगर मुस्लिम चीन के शिनजियांग प्रांत में निवास करने वाले अल्पसंख्यक हैं।
- चीन के शिनजियांग प्रांत में इनकी जनसंख्या तकरीबन 40 प्रतिशत है।
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के विशेषज्ञों के अनुसार, कम से कम 1 मिलियन उइगर मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को शिनजियांग प्रांत के शिविरों में नज़रबंद रखा गया है।
चीन का पक्ष:
- चीनी सरकार ने लगातार दावा किया है कि वह शिनजियांग प्रांत के शिविरों में लोगों को ‘स्वैच्छिक शिक्षा’ और ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ प्रदान कर रहा है।
- चीन ने उइगरों तथा अन्य अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार संबंधित घटनाओं से इनकार किया है। चीन के अनुसार, वह उइगरों तथा अन्य अल्पसंख्यकों को इस्लामी चरमपंथ तथा अलगाववाद से बाहर लाने के लिये उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दे रहा है।
अमेरिका का पक्ष:
- अमेरिका का मानना है शिनजियांग में आधुनिक नज़रबंदी के शिविर हैं जहाँ होलोकॉस्ट (बड़े स्तर पर नरसंहार) के बाद इतने बड़े स्तर पर लोगों का दमन किया जा रहा है।
- अनेक लीक हुए दस्तावेज़ों के अनुसार, शिविरों को उच्च सुरक्षा वाली जेलों के रूप में चलाया जा रहा है, जिसमें कठोर अनुशासन, दंड की व्यवस्था है तथा इन शिविरों से किसी को बाहर जाने की अनुमति नहीं है।
भारत का हित:
- अनेक मुस्लिम बहुसंख्यक देशों का मानना है कि भारत, चीन की ‘मुस्लिम अल्पसंख्यक नीति’ का खुलकर विरोध नहीं करता है, क्योंकि भारत खुद कश्मीर जैसे क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कठोर नीति को बढ़ावा दे रहा है।
क्यों लाया गया उइगर मानवाधिकार विधेयक?
- हाल ही में चीन की संसद के समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पर मसौदा प्रस्तुत किया गया था, जो पहली बार चीन की सरकार को हॉन्गकॉन्ग के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का मसौदा तैयार करने तथा इस ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र में अपने राष्ट्रीय सुरक्षा अंगों को संचालित करने की अनुमति देता है।
- चीन के इस मसौदे को प्रस्तुत करने के बाद अमेरिकी संसद द्वारा हांगकांग में सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन को समर्थन देने वाले कानून को पेश किया गया।
- अमेरिकी संसद में हॉन्गकॉन्ग प्रदर्शन के समर्थन देने वाले कानून को पेश करने के बाद चीन ने प्रतिक्रिया में कहा था कि अमेरिकी सैन्य जहाज़ों और विमानों को हॉन्गकॉन्ग जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी साथ ही अमेरिका के कई ‘गैर-सरकारी संगठनों’ के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा भी की गई।
आगे की राह:
- विधेयक पर अभी सीनेट के अनुमोदन की आवश्यकता है, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिये भेज जाएगा। जहाँ राष्ट्रपति ट्रंप विधेयक पर हस्ताक्षर अथवा वीटो कर सकते हैं।
- राष्ट्रपति को 120 दिनों के भीतर ज़िम्मेदार अधिकारियों की सूची बनाकर, उन पर कार्यवाही करनी होगी।
- उइगर मानवाधिकार विधेयक बिल के पारित होने के बाद चीन और अधिक मज़बूत प्रतिक्रिया कर सकता है जिससे अमेरिका और चीन के मध्य विवाद और अधिक गहरा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
प्रवासी श्रमिक: चुनौती और संभावना
प्रीलिम्स के लियेराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, प्रवासी श्रमिक मेन्स के लियेभारत में प्रवासी श्रमिकों की स्थिति, प्रवासी श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ, प्रवासियों श्रमिकों से संबंधित कानूनी प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) ने गृह मंत्रालय समेत रेलवे बोर्ड और बिहार तथा गुजरात सरकार को ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ में यात्रा कर रहे कुछ प्रवासी श्रमिकों की कथित मौत और भोजन तथा पानी के अनुचित प्रबंधन को लेकर नोटिस जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने नोटिस में ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ के देर से शुरू होने के साथ-साथ उनके अपने गंतव्य स्थान तक कई दिनों में पहुँचने जैसी बातों का उल्लेख किया है।
- NHRC ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि प्रवासी मज़दूर लंबी अवधि और पीने के पानी तथा भोजन की व्यवस्था के अभाव में अपनी यात्रा के दौरान अपनी जान गंवा रहे हैं।
- उल्लेखनीय है कि बीते कुछ दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनसे ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ की छवि धूमिल हुई है। उदाहरण के लिये देश के कई क्षेत्रों में कथित तौर पर भूख के कारण ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ में लोगों की मौत की खबरें सामने आए हैं।
- एक अन्य घटना में एक ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेन’ को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने के लिये 9 दिनों का समय लगा।
- मानवाधिकार आयोग का मानना है कि यदि इस प्रकार की घटनाएँ सत्य हैं तो इनसे देश के भीतर काफी व्यापक स्तर पर श्रमिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
श्रमिक स्पेशल ट्रेन
- केंद्र सरकार ने COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन को देखते हुए 1 मई (मज़दूर दिवस) को देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे श्रमिकों को अपने गृह राज्यों तक वापस पहुँचाने के लिये ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की थी।
- इस प्रकार की पहली विशेष ट्रेन हैदराबाद से हटिया, झारखंड के लिये रवाना की गई थी।
- रेल मंत्रालय के अनुसार, 28 मई, 2020 तक देश भर के विभिन्न राज्यों से 3736 ‘श्रमिक स्पेशल’ ट्रेनें चलाई गई हैं और इन विशेष ट्रेनों के माध्यम से अब तक 50 लाख से अधिक लोगों को उनके गृह राज्य तक पहुँचाया गया है।
प्रवासी श्रमिक- एक बार पुनः चर्चा में
- कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन ने बीते कुछ दिनों में भारत के उस वर्ग विशिष्ट को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है, जो कार्य और आजीविका की तलाश में अपने गृह राज्य से बाहर रहते हैं।
- हालाँकि देश में अंतर-राज्य प्रवासियों (Inter-State Migrants) का कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं है, किंतु वर्ष 2011 की जनगणना, NSSO के सर्वेक्षण और आर्थिक सर्वेक्षण पर आधारित अनुमान के अनुसार, देश में कुल 65 मिलियन अंतर-राज्य प्रवासी हैं, जिसमें से 33 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक हैं।
- सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2019 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत के बड़े शहरों में 29 प्रतिशत आबादी दैनिक वेतनभोगी है।
- यह उन्ही लोगों की संख्या है जो अपने गृह राज्य वापस जाना चाहते हैं, क्योंकि दैनिक वेतनभोगी होने के कारण मौजूदा लॉकडाउन के कारण इनकी आजीविका के सभी साधन बंद हो गए हैं और ऐसे में इन लोगों के लिये बड़े शहरों में रहना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार में देश के कुल अंतर-राज्य प्रवासियों का क्रमशः 25 प्रतिशत और 14 प्रतिशत हिस्सा है, इसके बाद राजस्थान (6 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (5 प्रतिशत) का स्थान है। इसका अर्थ है कि तकरीबन 4-6 मिलियन लोग उत्तर प्रदेश में और 1.8-2.8 मिलियन बिहार में वापस लौटेंगे।
प्रवासियों की आजीविका
- वर्ष 2017 से वर्ष 2019 के मध्य CSDS द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 22 प्रतिशत प्रवासियों की मासिक घरेलू आय 2,000 रुपए है।
- वहीं 32 प्रतिशत प्रवासियों की आय 2,000 रुपए से 5,000 रुपए के मध्य, 25 प्रतिशत प्रवासियों की आय 5000 रुपए से 10000 रुपए के मध्य, 13 प्रतिशत प्रवासियों की आय 10000 रुपए से 20000 रुपए के मध्य और केवल 8 प्रतिशत प्रवासियों की आय 20000 से अधिक है।
अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका
- भारत में रह रहे लाखों प्रवासी कामगार हैं जो मुख्य रूप से निर्माण उद्योग, घरेलू सहायक और सड़क विक्रेताओं (Street Vendors) के रूप में कार्य करते हैं। अनुमान के अनुसार, तकरीबन एक तिहाई प्रवासी निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं।
- अधिकांश प्रवासी श्रमिक निर्माण क्षेत्र, ईंट निर्माण उद्योग, खनन और उत्खनन उद्योग, होटल तथा रेस्तरां आदि में कार्यरत हैं।
- विदित हो कि ये सभी क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं, और देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उल्लेखनीय योगदान देते हैं।
- देश में अधिकांश प्रवासी श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिसके कारण इनके संबंध में किसी भी प्रकार के आधिकारिक आँकड़े का अभाव है।
प्रवासी मज़दूरों की समस्या
- भारत जैसे विशाल देश में अभी तक प्रवासी समुदाय के आकार और महत्त्व को सही ढंग से पहचाना नहीं जा सका है। इस समुदाय के संबंध में आधिकारिक आँकड़े का अभाव इनके विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है।
- अधिकांश शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों को पीने के पानी, बिजली, सुरक्षित घरों जैसी सुविधाओं के अभाव में प्रवासी मज़दूरों को छोटी और गंदी बस्तियों में रहना पड़ता है, जिसके कारण उनके लिये सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सामाजिक मानकों का पालन करना काफी मुश्किल होता है।
- दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में प्रवासी श्रमिकों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें अपनी आवश्यकता के अनुसार कार्य ही नहीं मिल पाता है और यदि कार्य मिलता भी है तो काफी कम वेतन पर, जिससे वे शोषण के प्रति भी काफी संवेदनशील होते हैं।
- रोज़गार की अस्थायी प्रकृति के कारण प्रवासी मज़दूरों को अक्सर अपराधी के रूप में देखा जाता है और सोशल मीडिया ने इस मानसिकता को और अधिक बढ़ावा दिया है।
आगे की राह
- सर्वप्रथम आवश्यक है कि प्रवासियों को भी भारतीय समाज के एक विशिष्ट हिस्से के रूप में मान्यता दी जाए और नीति निर्माण के समय प्रवासियों के मुद्दों पर भी विचार किया जाए।
- उन प्रतिबंधों को शिथिल किया जाना चाहिये जो प्रवासियों को उनके गंतव्य शहरों में राशन जैसे महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त करने से रोकते हैं।
- प्रवासी मज़दूरों के लिये देश के हर राज्य में मनरेगा, उज्ज्वला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मार्कोस ट्रायजो न्यू डेवलपमेंट बैंक के नए अध्यक्ष
प्रीलिम्स के लिये:न्यू डेवलपमेंट बैंक, NBD द्वारा वित्तपोषित भारत के प्रमुख प्रोजेक्ट, NDB में मताधिकार प्रणाली, फोर्टालेज़ा घोषणा मेन्स के लिये:न्यू डेवलपमेंट बैंक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्राज़ील के मार्कोस ट्रायजो (Marcos Troyjo) को 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' (New Development Bank- NDB) के नवीन अध्यक्ष के रूप में चुना गया है।
प्रमुख बिंदु:
- NDB के वर्तमान अध्यक्ष केवी कामथ (KV Kamath) का पाँच वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने वाला है।
- भारत के अनिल किशोर को NDB के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया है।
'न्यू डेवलपमेंट बैंक'
(New Development Bank- NDB):
- यह BRICS देशों द्वारा संचालित एक बहुपक्षीय विकास बैंक है।
- BRICS दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
- वर्ष 2013 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन में 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' की स्थापना पर सहमति व्यक्त की गई थी तथा वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेज़ा में 6वें BRICS शिखर सम्मेलन (6th BRICS Summit at Fortaleza) में स्थापित किया गया था।
- NDB की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 100 बिलयन डॉलर थी।
- NDB का मुख्यालय शंघाई, चीन में है।
संगठनात्मक संरचना:
- NDB के वर्तमान संगठनात्मक ढाँचे में 1 अध्यक्ष, 4 उपाध्यक्ष तथा अन्य कुछ कार्यकारी सदस्य शामिल हैं। अध्यक्ष का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
NDB में मताधिकार प्रणाली:
- विश्व बैंक में जहाँ पूंजी शेयर के आधार पर देशों को मताधिकार प्राप्त होता है, के विपरीत 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' में प्रत्येक भागीदार देश को वर्तमान में समान मताधिकार है तथा किसी भी देश के पास वीटो पावर नहीं है।
- NDB में शेयरधारिता एवं मताधिकार:
देश |
शेयरों की संख्या |
शेयरधारिता (कुल का %) |
मताधिकार (कुल का %) |
ब्राज़ील |
100,000 |
20 |
20 |
रूस |
100,000 |
20 |
20 |
भारत |
100,000 |
20 |
20 |
चीन |
100,000 |
20 |
20 |
दक्षिण अफ्रीका |
100,000 |
20 |
20 |
असूचीबद्ध शेयर |
500,000 |
- |
- |
कुल योग |
1000,000 |
100 |
100 |
फोर्टालेज़ा घोषणा (Fortaleza Declaration):
- फोर्टालेज़ा घोषणा में शीर्ष नेताओं द्वारा NDB के माध्यम से BRICS देशों के बीच सहयोग को मज़बूत करने पर सहमति व्यक्त की गई। सभी BRICS देशों द्वारा इस बात पर भी सहमति व्यक्त की गई कि NDB वैश्विक विकास में, बहुपक्षीय तथा क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के पूरक के रूप में कार्य करेगा।
NDB का मुख्य कार्य क्षेत्र:
- स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएँ;
- परिवहन आधारित बुनियादी ढाँचा;
- सिंचाई, जल संसाधन प्रबंधन और स्वच्छता;
- सतत नगरीय विकास;
- आर्थिक सहयोग और एकीकरण।
NBD द्वारा वित्तपोषित भारत के प्रमुख प्रोजेक्ट:
प्रोजेक्ट का नाम |
ऋण / निवेश / देयता राशि |
लक्ष्य क्षेत्र |
‘राष्ट्रीय निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड’ (NIIF) |
100 मिलियन डॉलर |
बहु-क्षेत्रक |
मुंबई नगर परिवहन परियोजना |
500 मिलियन डॉलर |
नगरीय परिवहन |
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की विकास परियोजना |
300 मिलियन डॉलर |
स्वच्छ ऊर्जा और सतत् विकास |
मणिपुर जल आपूर्ति और स्वच्छता परियोजना |
312 मिलियन डॉलर |
300 मिलियन डॉलर |
NBD की सामान्य रणनीति (NBD’s General Strategy):
- 30 जून 2017 को, न्यू डेवलपमेंट बैंक के 'बोर्ड ऑफ गवर्नर्स' (BoG) द्वारा वर्ष 2017-2021 के लिये बैंक के सामान्य रणनीति दस्तावेज़ को मंज़ूरी दी गई।
- बैंक की सामान्य रणनीति यह बताती है कि NDB, बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के पूरक के रूप में, विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे तथा सतत् विकास परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने में कैसे भूमिका निभा सकता है।
निष्कर्ष:
- NDB की स्थापना एक वैश्विक विकास वित्त संस्थान के रूप में हुई थी। आगे भविष्य में इसकी सदस्यता BRICS देशों के अलावा अन्य देशों तक विस्तारित की जाएगी। नवीन सदस्यों के NDB में शामिल होने से बैंक की वैश्विक पहुँच मज़बूत होगी तथा क्रेडिट रेटिंग में सुधार होगा।
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एशियाई विकास बैंक द्वारा वित्तीय सहायता
प्रीलिम्स के लिये:एशियाई विकास बैंक मेन्स के लिये:एशियाई विकास बैंक द्वारा सड़क सुधार हेतु वित्तीय सहायता |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में 'एशियाई विकास बैंक' (Asian Development Bank- ADB) और भारत ने महाराष्ट्र में सड़कों के सुधार के लिये 177 मिलियन डॉलर के ऋण पर हस्ताक्षर किये।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि ADB द्वारा प्रदत इस ऋण की मदद से महाराष्ट्र के 2 प्रमुख ज़िलों की सड़कों, 450 किलोमीटर के 11 राज्यमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, अंतर्राष्ट्रीय सड़कों, बंदरगाह, हवाई अड्डे, ज़िला मुख्यालय, औद्योगिक क्षेत्र और कृषि क्षेत्र की सड़कों में सुधार किया जाएगा।
- महाराष्ट्र लोक निर्माण विभाग की परियोजनाओं से जुड़े कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा ताकि सड़कों के डिज़ाइन, योजना और सड़क सुरक्षा पर कार्य करते समय उन्हें जलवायु परिवर्तन और आपदा के अनुकूल निर्मित किया जा सके।
उद्देश्य:
- राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी केंद्रों को जोड़ने वाली सड़कों में सुधार कर ग्रामीण लोगों को बेहतर बाज़ार, रोज़गार के अवसर और सेवाएँ उपलब्ध कराना।
- राज्य के प्रमुख शहरों और कस्बों तक बेहतर आवागमन का विस्तार करना जिससे विकास और आजीविका के अवसर में वृद्धि हो सके। उल्लेखनीय है कि ऐसे उपाय लोगों की आय में असमानता को कम करने में सहायक साबित हो सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्वोत्तम कार्य प्रणाली के माध्यम से सड़क सुरक्षा हेतु एक रूप-रेखा तैयार करना। इस रूप-रेखा से सड़क दुर्घटना में कम आएगी।
- ADB द्वारा प्रदत इस ऋण का उद्देश्य सड़कों की रख-रखाव प्रणाली में सुधार भी करना है।
ADB के अन्य वित्तीय सहयोग:
- गौरतलब है कि पूर्व में एशियाई विकास बैंक द्वारा COVID-19 से निपटने हेतु भारत को 2.2 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता का आश्वासन दिया गया है।
- COVID-19 के मद्देनज़र ADB ने भारत सहित विकासशील सदस्य देशों की आपातकालिक ज़रूरतों को पूरा करने हेतु लगभग 6.5 बिलियन डॉलर के प्रारंभिक पैकेज की घोषणा की है।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और चीन के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव
प्रीलिम्स के लिये:भारत-चीन का राजनीतिक संबंध मेन्स के लिये:भारत-चीन सीमा विवाद से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न गतिरोध के मद्देनज़र दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश की है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' (Line of Actual Control- LAC) पर बढ़ते तनाव के मद्देनज़र पहली बार अमेरिका ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है।
- कुछ महीने पहले भी अमेरिका ने कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की थी लेकिन भारत ने इसे खारिज़ कर दिया था।
- भारत ने यह कहते हुए अपनी स्थिति साफ कर दी थी कि इस मुद्दे पर द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से समस्या का समाधान किया जा सकता है।
- यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है जब अमेरिका और चीन के बीच ‘व्यापार तथा COVID-19 की उत्पत्ति’ जैसे मुद्दों पर तनाव की स्थिति बनी हुई है।
- हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि यदि चीन द्वारा हांगकांग पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया जाता है तो चीन पर प्रतिबंध लगा जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
- वर्तमान में भारत और चीन के बीच 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' पर तनाव की स्थिति हैं, जिनमें पैंगोंग त्सो (Pangong Tso), गैलवान घाटी (Galwan Valley), सिक्किम के ‘नाकु ला’ (Naku La) और डेमचोक (Demchok) शामिल हैं।
- चीन द्वारा सेना को युद्ध की तैयारियों को बढ़ाने और देश की संप्रभुता का पूरी तरह से बचाव करने के आदेश के बाद से दोनों देशों के बीच 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' पर तनाव बढ़ गया था।
- चीन के इस रवैये के पश्चात् भारत ने लद्दाख, उत्तर सिक्किम, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है।
- अब तक लद्दाख में भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों के बीच कम-से-कम छह दौर की वार्ता असफल हो चुकी हैं।
भारत का पक्ष:
- अमेरिका द्वारा दोनों देशों के बीच मध्यस्थता हेतु की गई पेशकश को भारत ने तीसरा पक्ष करार देते हुए अस्वीकार किया है।
- भारत शांतिपूर्ण तरीके से इस मुद्दे को हल करने के लिये उच्च स्तरीय बैठकें कर रहा है।
चीन का पक्ष:
- चीन ने साफ किया है कि दोनों देश द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से गतिरोध का समाधान करेंगे। साथ ही यह भी कहा कि भारत के साथ सीमा पर स्थिति ‘समग्र स्थिर और नियंत्रण’ में है।
भारत-चीन का राजनीतिक संबंध:
- भारत ने 1 अप्रैल, 1950 को चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध स्थापित किये थे और इसी के साथ भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश बन गया था।
- वर्ष 1962 में भारत और चीन के मध्य सीमा संघर्ष की शुरुआत दोनों देशों के संबंधों के लिये एक गहरा झटका था।
- वर्ष 1993 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की यात्रा ने दोनों देशों के मध्य संबंधों को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वर्तमान संदर्भ में बात करें तो दोनों देशों के प्रतिनिधियों के मध्य समय-समय पर द्विपक्षीय वार्त्ताओं के साथ-साथ अनौपचारिक सम्मेलनों का आयोजन भी किया जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि दोनों देश अपने दीर्घकालिक हितों को लेकर सजग हैं।
आगे की राह:
- दोनो देशों को सीमा पर उत्पन्न गतिरोध को द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से हल करना चाहिये क्योंकि सीमा संबंधी विवाद पर किसी तृतीय पक्ष की मध्यस्थता से संबंधों में कड़वाहट आने की संभावना होती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ को शून्य जोखिम-भार युक्त ऋण
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड मेन्स के लिये:COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) से सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत घोषित आर्थिक राहत पैकेज के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिये जाने वाले ऋण पर ‘जोखिम-भार’ (Risk Weight) लागू करने की अनिवार्यता से छूट देने का अनुरोध किया है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 और देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण औद्योगिक क्षेत्र को हुई क्षति को देखते हुए सरकार द्वारा MSME क्षेत्र के लिये 3 लाख करोड़ रुपए के ऋण की घोषणा की गई थी।
- MSME क्षेत्र को दिये जाने वाले इस ऋण पर ‘गारंटी युक्त आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ (Guaranteed Emergency Credit Line- GECL) के रूप में ‘राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC) द्वारा 100% गारंटी दी जाएगी।
- NCGTC द्वारा इस गारंटी के लिये कोई भी शुल्क नहीं लिया जाएगा।
- केंद्र सरकार के अनुसार, इस योजना के लिये 41,600 करोड़ रुपए के कोष का प्रबंध किया गया है।
- यह योजना 31 अक्तूबर, 2020 तक या योजना के तहत प्रस्तावित राशि के खत्म होने (जो भी पहले हो) तक लागू रहेगी।
- इस योजना के तहत दिये गए ऋण की अवधि 4 वर्ष की होगी साथ ही मूलधन पर एक वर्ष के अधिस्थगन प्रदान किया जाएगा।
- इस योजना के तहत बैंकों द्वारा जारी किये गए ऋण पर 9.25% ब्याज और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFCs) द्वारा जारी ऋण पर 14% ब्याज लागू होगा।
राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड
(National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC):
- राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड की स्थापना 28 मार्च, 2014 को ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ के तहत केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा की गई थी।
- वर्तमान में NCGTC के तहत 5 क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट का संचालन किया जाता है।
- शिक्षा ऋण हेतु क्रेडिट गारंटी फंड योजना (Credit Guarantee Fund Scheme for Education Loans- CGFSEL)
- कौशल विकास हेतु क्रेडिट गारंटी फंड योजना (Credit Guarantee Fund Scheme for Skill Development- CGFSD)
- क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम फॉर फैक्टरिंग (Credit Guarantee Fund Scheme for Factoring-CGFF)
- सूक्ष्म इकाइयों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड (Credit Guarantee Fund for Micro Units-CGFMU)
- स्टैंड अप इंडिया हेतु क्रेडिट गारंटी फंड (Credit Guarantee Fund for Stand Up India- CGFSI)
योजना का लाभ:
- यह योजना मूलरूप से MSME श्रेणी के उद्यमों के लिये शुरू किया गया है, परंतु अन्य छोटे कारोबारी और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भी इस योजना का लाभ उठा सकेंगी। अतः इस योजना के माध्यम से COVID-19 के कारण बाज़ार में उत्पन्न हुई तरलता को तात्कालिक रूप से कुछ सीमा तक दूर किया जा सकेगा।
- ‘शून्य’ जोखिम-भार का अर्थ है कि बैंकों को इस योजना के तहत दिये गए ऋण पर अतिरिक्त पूंजी अलग नहीं रखनी होगी। इससे बैंकों पर गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA) का दबाव कम होगा और बैंकों को अधिक-से-अधिक ऋण उपलब्ध करने के लिये प्रेरित किया जा सकेगा।
- पिछले सप्ताह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुख अधिकारियों की एक बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बैंकों को बिना तीन ‘C’ {केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI), केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission- CVC) और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India- CAG) के भय के पात्र लोगों को योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने को कहा है।
चुनौतियाँ:
- इस प्रकार के ऋण पर न्यूनतम 20% जोखिम भार लागू होगा क्योंकि यह ऋण प्रत्यक्ष रूप से सरकार की गारंटी के तहत नहीं जारी किये गए हैं।
आगे की राह:
- विशेषज्ञों के अनुसार, इस बात की अधिक संभावना है कि RBI द्वारा जोखिम भार की अनिवार्यताओं को हटा दिया जाएगा, जिससे यह योजना आसानी से लागू की जा सकेगी।
- COVID-19 के कारण देशभर में लागू लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभाव MSME श्रेणी के उद्यमों पर देखने को मिला है, अतः इस योजना के माध्यम से आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करा कर औद्योगिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPET)
प्रीलिम्स के लिये:पेट्रोरसायन, CIPET मेन्स के लिये:भारत में पेट्रोरसायन उद्योग तथा अर्थव्यवस्था में इसका योगदान, पृष्ठभूमि एवं वर्तमान स्थिति |
चर्चा में क्यों?
रसायन और उर्वरक मंत्रालय (Ministry of Chemicals and Fertilizers) के तहत ‘केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Central Institute of Plastics Engineering & Technology- CIPET) का नाम परिवर्तित कर ‘केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Central Institute of Petrochemicals Engineering & Technology- CIPET) कर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- परिवर्तित नाम को तमिलनाडु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1975 (तमिलनाडु अधिनियम 27, 1975) के तहत पंजीकृत किया गया है।
- ‘केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान’ पूरी तरह से पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के विकास के लिये समर्पित होगा, जिसमें एकेडमिक्स, स्किलिंग, टेक्नोलॉजी सपोर्ट एंड रिसर्च इत्यादि क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- CIPET का प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा एवं अनुसंधान जैसे संयुक्त कार्यक्रम के माध्यम से प्लास्टिक उद्योग के विकास में योगदान देना रहा है।
- संस्थान कई वर्षों की विकास प्रक्रिया से गुजरते हए प्लास्टिक के अभिनव प्रयोंगों पर आधारित ऐसे समाधान विकसित करने के लिये उद्योगों के साथ जुड़ रहा है जो संसाधनों के इस्तेमाल के मामले में युक्तिसंगत होने के साथ ही आसानी से बिकने वाले भी हैं।
CIPET के बारे में
- केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPET) की स्थापना वर्ष 1968 में भारत सरकार द्वारा ‘सयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) की मदद से चेन्नई में की गई।
- वर्तमान समय में यह भारत सरकार के उर्वरक मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख राष्ट्रीय संस्थान है।
- इसका मुख्यालय गिण्डी, चेन्न्ई में है।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा एवं अनुसंधान के संयुक्त प्रयासों द्वारा देश में प्लास्टिक उद्योग के विकास में योगदान करना है।
पेट्रोरसायन (Petrochemicals):
- पेट्रोरसायन विभिन्न रासायनिक यौगिकों के हाइड्रोकार्बन से प्राप्त किये जाते हैं। ये हाइड्रोकार्बन कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से व्युत्पन्न होते हैं।
- कच्चे तेल के आसवन द्वारा उत्पादित विभिन्न अंशों में से पेट्रोलियम गैस, नेफ्था (Naphtha), केरोसिन और गैस तेल पेट्रोरसायन उद्योग के लिये प्रमुख फीड स्टॉक हैं।
- प्राकृतिक गैस से प्राप्त ईथेन, प्रोपेन और प्राकृतिक गैस तरल पदार्थ पेट्रोरसायन उद्योग में उपयोग किये जाने वाले अन्य महत्त्वपूर्ण फीडस्टॉक हैं।
भारत में पेट्रोरसायन उद्योग:
पृष्ठभूमि:
- 1970 के दशक में, जैविक रसायनों की की मांग में इतनी तेज़ी से वृद्धि हुई कि इस मांग को पूरा करना मुश्किल हो गया। उस समय पेट्रोलियम शोधन उद्योग का तेज़ी से विस्तार हुआ।
- इस उद्योग ने 1980 और 1990 के दशक में तेज़ी से वृद्धि दर्ज की।
- पेट्रोरसायन उद्योग में मुख्य रूप से सिंथेटिक फाइबर/यार्न, पॉलिमर, सिंथेटिक रबर (इलास्टोमर), सिंथेटिक डिटर्जेंट इंटरमीडिएट्स, परफार्मेंस प्लास्टिक और प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग शामिल हैं।
पेट्रोरसायन उद्योग का विज़न:
पेट्रोरसायन क्षेत्र की परिकल्पना घरेलू पेट्रोरसायन उद्योग की संभावना को ध्यान में रखते हुए तथा उत्पादन और माँग में वैश्विक बदलाव द्वारा प्रदत्त विकास के अवसरों को देखते हुए की गई है। इसके दृष्टिकोण में प्रमुख रूप से शामिल हैं-
- पर्यावरण अनुकूल प्रक्रियाओं एवं प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी कीमतों के आधार पर मूल्यवर्द्धित, गुणवत्तायुक्त पेट्रोरसायन उत्पादों का विकास करना।
- सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ नए अनुप्रयोगों और उत्पादों का विकास करना।
महत्त्व:
- पेट्रोरसायन उद्योग आर्थिक विकास और विनिर्माण क्षेत्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पेट्रोरसायन उद्योग में मूल्यवर्द्धन अन्य उद्योग क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
- पेट्रोरसायन उत्पाद वस्त्र, आवास, निर्माण, फर्नीचर, ऑटोमोबाइल, घरेलू सामान, कृषि, बागवानी, सिंचाई, पैकेजिंग, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रीकल आदि जैसे जीवन के लगभग हर क्षेत्र को कवर करते हैं।
- रसायन एवं पेट्रोरसायन उद्योग संयुक्त रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं, जिसमें नमक से लेकर उपग्रह तक के 80,000 से अधिक उत्पाद शामिल हैं। ये उद्योग लगभग 2 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।
भारतीय रसायन एवं पेट्रोरसायन उद्योग के चालक
मज़बूत आर्थिक विकास, दुनिया की दूसरी सर्वाधिक आबादी, शहरीकरण में तेज़ी और औद्योगिक माँग में भारी वृद्धि भारतीय रासायनिक और पेट्रोरसायन उद्योग के विकास के लिये प्रमुख चालक हैं।
आगे की राह
- भारत में प्लास्टिक की मांग में वर्ष 2013-14 से वर्ष 2017-18 के बीच 8.9% की औसत दर वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 तक यह मांग 24 मिलियन टन और वर्ष 2027-28 तक 35 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- संगठित और असंगठित क्षेत्र में लगभग 50,000 से अधिक प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं तथा प्रसंस्करण क्षमता प्रति वर्ष 45.1 मिलियन टन होने का अनुमान है।
- यह प्रसंस्करण क्षमता 8.8% CAGR (Compound Annual Growth Rate) की दर से बढ़ रही है और प्रसंस्करण उद्योग की क्षमता वर्ष 2022-23 तक 62.4 मिलियन टन एवं वर्ष 2027-28 तक 86 मिलियन टन तक बढ़ाने के लिये 10 अरब डॉलर का निवेश किये जाने की उम्मीद है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
आर्बिट्रेज स्कीम
प्रीलिम्स के लियेआर्बिट्रेज का अर्थ मेन्स के लियेआर्बिट्रेज से संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलू |
चर्चा में क्यों?
अप्रैल माह में 6,587 करोड़ रुपए के शुद्ध अंतर्वाह (Net Inflows) के साथ आर्बिट्रेज स्कीम (Arbitrage Schemes) एक बार पुनः निवेशकों की पसंद बन गई है।
प्रमुख बिंदु
- इसका मुख्य कारण है कि निवेशक ऋण योजनाओं (Debt Schemes) के विकल्प की तलाश कर रहे हैं, क्योंकि फ्रैंकलिन टेम्पलटन (Franklin Templeton) नामक निवेश प्रबंधन कंपनी के समापन (Wind-Up) के बाद ऋण योजनाओं (Debt Schemes) के प्रति निवेशकों की भावना काफी कमज़ोर हो गई है।
- हाल ही में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी संकट के कारण पैदा हुए तरलता संकट (Liquidity Crisis) के चलते फ्रैंकलिन टेम्पलटन ने अपनी तकरीबन 27,000 करोड़ रुपए से अधिक की छह ऋण योजनाओं को बंद करने का फैसला किया था।
- उल्लेखनीय है कि मार्च माह में इस श्रेणी में काफी बड़ी मात्रा में बहिर्वाह (Outflows) दर्ज किया था, जिसका मुख्य कारण था कि निवेशक वर्ष के अंत में अपनी तरलता संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पैसे को निकाल रहे थे।
- आर्बिट्रेज श्रेणी में मार्च के दौरान 33,767 करोड़ रुपए का शुद्ध बहिर्वाह हुआ था।
- हालाँकि, अब बाज़ार स्थिर होने के साथ निवेशक अपने पैसे को निवेश करने और क्रेडिट या अन्य ऋण बाज़ार से संबंधित जोखिमों से बचने के लिये इस श्रेणी को ओर आकर्षित हो रहे हैं।
‘आर्बिट्रेज’ का अर्थ
- आर्बिट्रेज का अभिप्राय मूल्य अंतर पर विभिन्न प्लेटफार्मों से एक साथ परिसंपत्ति की खरीद और बिक्री की प्रक्रिया से होता है।
- ‘आर्बिट्रेज’ की प्रक्रिया के दौरान, खरीदी और बेची गई अंतर्निहित परिसंपत्ति की मात्रा समान होनी अनिवार्य है।
- इस प्रक्रिया में व्यापार करने वाले व्यक्ति को केवल मूल्य अंतर के माध्यम से लाभ प्राप्त होता है।
- उदाहरण के लिये मान लीजिये कि दिल्ली के बाज़ार में सोने का मूल्य 27,000 रुपए प्रति 10 ग्राम और मुंबई के बाज़ार में सोने का मूल्य 27,500 रुपए प्रति 10 ग्राम है।
- इस प्रकार एक व्यापारी दिल्ली में 10 ग्राम सोना खरीद कर उसे मुंबई में बेच सकता है और 500 रुपए का लाभ प्राप्त कर सकता है।
- हालाँकि, यह व्यापार तभी लाभदायक होगा जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की लागत 500 रुपए प्रति 10 ग्राम से कम होगी, क्योंकि इससे अधिक होने पर व्यापारी को नुकसान होगा।
आर्बिट्रेज फंड
- आर्बिट्रेज फंड (Arbitrage Fund) एक प्रकार का म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) है।
- इसका प्रयोग अधिकांशतः उन निवेशकों द्वारा किया जाता है जो अस्थिर बाज़ारों से जोखिम उठाए बिना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं।
- आर्बिट्रेज फंड, नकद बाज़ार (Cash Market) और वायदा बाज़ार (Futures Market) में शेयरों के बीच मूल्य के अंतर का फायदा उठाकर काम करते हैं।
- नकद बाज़ार में शेयर की कीमत क्रेता द्वारा चुकाई गई ‘वर्तमान कीमत’ होती है, जिसे स्पॉट प्राइस (Spot Price) भी कहा जाता है, जबकि वायदा बाज़ार में शेयर की कीमत भविष्य में किसी बिंदु पर चुकाई जाने वाली प्रत्याशित कीमत होती है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण
प्रीलिम्स के लिये:भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, भारतमाला परियोजना, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना, राष्ट्रीय राजमार्ग मेन्स के लिये:आधारिक संरचना विकास में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय’ (Ministry of Road Transport & Highways) के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों को मानसून के मौसम से पहले गड्ढा मुक्त कर और यातायात योग्य बनाए रखने के लिये, ‘भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण’ (National Highway Authority of India- NHAI) द्वारा अपने क्षेत्रीय अधिकारियों (Regional Officers-ROs) और परियोजना निदेशकों को दिशा-निर्देश जारी किये गए है।
प्रमुख बिंदु:
- NHAI मुख्यालय अपने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर- डेटा लेक (Project Management Software– Data Lake ) के माध्यम से इस पूरे कार्य की प्रगति की बारीकी से निगरानी करेगा।
- जहाँ मरम्मत संबंधी अन्य जानकारी के अलावा मरम्मत कार्यों से पहले और बाद की सभी तस्वीरें अपलोड की जाएंगी।
NHAI के बारे में
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1988 के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, अनुरक्षण और प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए किया गया।
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को अन्य छोटी परियोजनाओं सहित, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (National Highways Development Project) का कार्य सौंपा गया है जिसमें 50,329 कि.मी. राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, अनुरक्षण और प्रबंधन शामिल है।
- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) भारत में प्रमुख राजमार्गों को उच्च स्तर पर उन्नत, पुनर्व्यवस्थित और चौड़ा करने की एक परियोजना है।
- यह परियोजना वर्ष 1998 में शुरू की गई थी।
- NHAI का प्रमुख दृष्टिकोण वैश्विक मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की व्यवस्था एवं अनुरक्षण के लिये राष्ट्र की आवश्यकता तथा भारत सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वपूर्ण नीतिगत ढाँचे के अंतर्गत अत्यंत समयबद्व एवं लागत प्रभावी तरीके से प्रयोक्तता की आशाओं को पूरा करना और इस तरह लोगों की आर्थिक समृद्धि एवं उनके जीवन स्तर को समुन्नत करना है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में NHAI ने 3,979 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया है।
- NHAI भारतमाला परियोजना के चरण- I के तहत लगभग 27,500 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिये प्रतिबद्ध है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017-18 से भारतमाला कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की महत्त्वाकांक्षी ‘भारतमाला परियोजना’ के प्रथम चरण के तहत 5,35,000 करोड़ रुपये की लागत से 34,800 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया जाएगा।
- इसके अंतर्गत आर्थिक कॉरीडोर, फीडर कॉरीडोर और इंटर कॉरीडोर, राष्ट्रीय कॉरीडोर, तटवर्ती सड़कों, बंदरगाह संपर्क सड़कों आदि का निर्माण किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम की अवधि वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक है। चरण-1 में कुल 34,800 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जाना है।
NHAI के प्रमुख लक्ष्य:
- केंद्रीय सरकार द्वारा इसे सौंपे गए राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, अनुरक्षण और प्रबंध करना।
- इसके समुचित प्रबंध के लिये राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहनों के प्रचालन को विनियमित, नियंत्रित करना और शुल्क संग्रहण करना।
- भारत तथा विदेशों में परामर्शी और निर्माण सेवाओं का विकास करना तथा राजमार्गों अथवा वहाँ अन्य सुविधाओं के विकास, अनुरक्षण और प्रबंधन के संबंध में अनुसंधान करना।
- राजमार्गों से संबंधित मामलों पर केंद्रीय सरकार को सलाह देना।
- राजमार्गों के विकास हेतु राज्य सरकार के साथ आपसी सहमति से तथा शर्तों पर योजनाओं को तैयार करने और कार्यान्वित करने के लिये किसी भी राज्य सरकार को सहयोग प्रदान करना।
राष्ट्रीय राजमार्ग:
- राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) यात्रियों और वस्तुओं के अंतर-राज्यीय आवागमन के लिये देश की महत्त्वपूर्ण सड़कें हैं।
- ये सड़कें देश में लंबाई और चैड़ाई में आर-पार फैली हुई हैं तथा राष्ट्रीय एवं राज्यों की राजधानियों, प्रमुख पत्तनों, रेल जंक्शनों, सीमा से लगी हुई सड़कों तथा विदेशी राजमार्गों को जोड़ती हैं।
- राजमार्ग/एक्सप्रेस वे देश में सड़कों की कुल लंबाई का केवल लगभग 1.7% हैं और कुल सड़क यातायात 40% इन सड़कों के माध्यम से होता है।
स्रोतः पी.आई.बी.
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 मई, 2020
‘पाई’ चैटबोट
हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (National Payments Corporation of India- NPCI) ने ‘पाई’ (PAi) नाम से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) आधारित चैटबोट की शुरुआत की है। इस चैटबोट का उद्देश्य देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ाना है। यह देश में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये एक नई और महत्त्वपूर्ण पहल है। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित चैटबोट लोगों को 24x7 NPCI के लेन-देन से संबंधित सभी प्रोडक्ट्स के बारे में जागरूक करेगा। उपयोगकर्त्ता शब्दों अथवा आवाज़ के माध्यम से प्रश्न भेज सकते हैं और NPCI के विभिन्न उत्पादों जैसे FASTag, RuPay और UPI Chalega आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। NPCI देश में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन के लिये एक समग्र संगठन है। इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा भारत में भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत एक मज़बूत भुगतान और निपटान अवसंरचना के विकास हेतु स्थापित किया गया है। इसे कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (अब कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8) के प्रावधानों के तहत ‘गैर-लाभकारी संगठन’ के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली द्वारा शुरू की गई प्रमुख पहलों में एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI), भीम एप (BHIM App), तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) और भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS) आदि प्रमुख हैं।
मुज्तबा हुसैन
मशहूर उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुज्तबा हुसैन (Mujtaba Hussain) का हाल ही में 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। मुज्तबा हुसैन अपने व्यंग लेखन के लिये काफी जाने जाते थे और उर्दू अखबारों में लिखे गए उनके स्तंभ काफी चर्चित थे। मुज्तबा हुसैन का जन्म 15 जुलाई, 1936 को हुआ था। वर्ष 1956 में हैदराबाद से बी.ए. (BA) की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् वे हैदराबाद के प्रसिद्ध उर्दू अखबार ‘सियासत’ में उप-संपादक के पद पर नियुक्त हो गए। लगभग 6 वर्षों बाद 12 अगस्त, 1962 को इसी अखबार में हास्य-व्यंग का दैनिक स्तंभ ‘शीशा-ओ-तिशा’ लिखना शुरू किया, जिसे वे मुसलसल 17 वर्षों तक लिखते रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के उर्दू विभाग में संपादक की भूमिका भी अदा की। वर्ष 1986 में उर्दू अकादमी, दिल्ली ने उन्हें उनके रचनात्मक साहित्य के लिये सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया, जिसके बाद उन्हें ‘गालिब अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया। हिंदी में उनकी तीन किताबें प्रकाशित हुई- ‘जापान चलो’, ‘किस्सा आरामकुर्सी का’ और ‘स्विस बैंक में खाता हमारा’। उर्दू साहित्य में मुज्तबा हुसैन के योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2007 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था और वे उर्दू के पहले व्यंग्यकार थे जिन्हें पद्म सम्मान मिला था।
राज्य स्वास्थ्य रजिस्टर
कर्नाटक सरकार ने भविष्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिये राज्य की आबादी के स्वास्थ्य संबंधी डेटा को एकत्र करने हेतु 'राज्य स्वास्थ्य रजिस्टर' नामक अपने तरह के पहले कार्यक्रम को शुरू करने की घोषणा की है। इस राज्यव्यापी कार्यक्रम का उद्देश्य राज्य के प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। इस कार्यक्रम को सर्वप्रथम एक पायलट परियोजना के तौर पर राज्य के चिक्काबल्लापुरा (Chikkaballapura) और दक्षिण कन्नड़ (Dakshina Kannada) ज़िले में लॉन्च किया जाएगा, जिसके बाद इसकी सफलता को देखते हुए राज्यव्यापी स्तर पर इसके विस्तार से संबंधित निर्णय लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि COVID-19 महामारी के अनुभव ने देश भर में एक मज़बूत और वास्तविक समय के सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा की आवश्यकता का प्रदर्शन किया है, ऐसे में प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य संबंधी डेटा के भंडार को बनाए रखना आवश्यक हो गया है। इस संबंध में राज्य के सभी 6.5 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य सर्वेक्षण करने के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी, राजस्व विभाग तथा आशा वर्कर्स के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी तैनात किये जाएंगे। इस परियोजना को निजी अस्पतालों की साझेदारी में निष्पादित किया जाएगा।
विश्व भूख दिवस (World Hunger Day)
प्रत्येक वर्ष 28 मई को ‘विश्व भूख दिवस’ (World Hunger Day) के रूप में मनाया जाता है। ‘विश्व भूख दिवस’ ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ (The Hunger Project) नामक वैश्विक संगठन की एक पहल है। ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ वैश्विक स्तर पर भूख के लिये एक तर्कसंगत उपाय खोजने के लिये प्रतिबद्ध एक वैश्विक संगठन है। इस वैश्विक संगठन की स्थापना वर्ष 1977 में की गई थी और यह विश्व भर में समान विचार रखने वाले लोगों का गैर-लाभकारी समूह है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक लगभग 2 बिलियन लोग गरीबी के दायरे में आ जाएंगे और उन्हें भोजन की कमी का सामना करना पड़ेगा। ग्लोबल हंगर रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत को इस सूचकांक में 119 देशों में से 103वाँ स्थान दिया गया है तथा देश में भुखमरी के स्तर को ‘गंभीर’ श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एक अनुमान के अनुसार, विश्व में लगभग 800 मिलियन लोगों के पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं है।