पाम-ऑयल उत्पादन
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, यूरोपीय संघ निर्वनीकरण-मुक्त विनियमन (EUDR), पाम ऑयल, चीन, खाद्य तेल-पाम ऑयल पर राष्ट्रीय मिशन मेन्स के लिये:भारत की पाम-ऑयल नीति पर पाम-तेल उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये यूरोपीय संघ की पहल का प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
यूरोपीय संघ (EU) ने हाल के वर्षों में पाम ऑयल उत्पादन से संबंधित यूरोपीय संघ निर्वनीकरण-मुक्त विनियमन (EUDR) के माध्यम से वनों की कटाई और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं तथा वर्ष 2030 तक पाम-ऑयल आधारित जैव ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये बड़े पैमाने पर प्रयास किये हैं।
- मलेशिया द्वारा चीन को पाम-ऑयल के निर्यात को सालाना दोगुना करने के समझौते पर हस्ताक्षर करना, वनों की कटाई से जुड़ी वस्तुओं पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध से संभावित राजस्व घाटे की भरपाई करने के लिये एक कदम है।
यूरोपीय संघ निर्वनीकरण-मुक्त विनियमन (EUDR) और मलेशिया व इंडोनेशिया की प्रतिक्रियाएँ:
- यूरोपीय संघ निर्वनीकरण-मुक्त विनियमन (EUDR):
- इसका उद्देश्य यूरोपीय संघ में रोजमर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति शृंखला से निर्वनीकरण को समाप्त करना है। वर्ष 2030 को लक्ष्य मानकर ब्रुसेल्स में वर्ष 2023 में एक कानून अपनाया गया और यूरोपीय संघ में विक्रय के इच्छुक पाम-ऑयल निर्यातकों पर प्रशासनिक भार डाला गया।
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इसके अलावा, जैव ईंधन, पाम-ऑयल और वनों की कटाई पाम-ऑयल नीति तथा निर्वनीकरण कानून के मुख्य फोकस क्षेत्र हैं।
- विनियमन के लिये कंपनियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि यूरोपीय संघ को निर्यात किया गया उत्पाद उस भूमि पर उगाया गया है जहाँ 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई नहीं की गई है।
- यह विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुकूल नहीं है और एक गैर-टैरिफ व्यवधान प्रकट करता है।
- मलेशिया और इंडोनेशिया की प्रतिक्रिया:
- इस कानून के माध्यम से कथित यूरोपीय संरक्षणवाद का व्यापक विरोध किया गया।
- यह निर्यात के लिये चीन पर निर्भरता को बढ़ावा देगा, जिससे पर्यावरणीय लाभ समाप्त हो सकते हैं।
- यूरोपीय संघ के लिये निहितार्थ बहुत अधिक हैं और चीनी बाज़ारों को इससे काफी लाभ हो सकता है।
पाम ऑयल और इसके उपयोग:
- परिचय:
- पाम ऑयल एक खाद्य वनस्पति ऑयल है जो पाम अर्थात् ताड़ के फल के मेसोकार्प (लाल रंग का गूदा) से प्राप्त होता है।
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इसका उपयोग खाना पकाने के ऑयल के रूप में और सौंदर्य प्रसाधन, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, केक, चॉकलेट, स्प्रेड, साबुन, शैम्पू तथा सफाई उत्पादों से लेकर जैव ईंधन तक प्रत्येक वस्तु में किया जाता है।
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बायोडीज़ल बनाने में कच्चे पाम-ऑयल के उपयोग को 'ग्रीन डीज़ल' ब्रांड के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
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उत्पादन:
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इंडोनेशिया और मलेशिया मिलकर वैश्विक पाम ऑयल उत्पादन में लगभग 90% का योगदान देते हैं, जिसमें इंडोनेशिया ने वर्ष 2021 में सर्वाधिक 45 मिलियन टन से अधिक का उत्पादन किया।
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पाम ऑयल उद्योग से जुड़े मुद्दे:
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कथित तौर पर अस्थिर उत्पादन प्रथाओं के कारण निर्वनीकरण और औपनिवेशिक युग से चली आ रही शोषणकारी श्रम प्रथाओं के कारण पाम ऑयल उद्योग आलोचना के घेरे में आ गया है।
- हालाँकि पाम ऑयल कई व्यक्तियों द्वारा पसंद किया जाता है क्योंकि यह सस्ता है, पाम का पौधा सोयाबीन जैसे कुछ अन्य वनस्पति ऑयल पौधों की तुलना में प्रति हेक्टेयर अधिक ऑयल का उत्पादन करता है।
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वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के लिये पाम ऑयल की महत्ता:
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, पाम ऑयल विश्व का सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति ऑयल है, जिसका वैश्विक उत्पादन वर्ष 2020 में 73 मिलियन टन (MT) से अधिक हुआ।
- वित्त वर्ष 2022-23 में इसके 77 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
- रॉयटर्स के अनुसार, पाम ऑयल वैश्विक स्तर पर चार सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले खाद्य तेलों की वैश्विक आपूर्ति का 40% योगदान देता है जिसमें पाम, सोयाबीन, रेपसीड (कैनोला) और सूरजमुखी ऑयल शामिल हैं।
- इंडोनेशिया पाम ऑयल की 60% वैश्विक आपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, पाम ऑयल विश्व का सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति ऑयल है, जिसका वैश्विक उत्पादन वर्ष 2020 में 73 मिलियन टन (MT) से अधिक हुआ।
- पाम ऑयल आयात में भारत की स्थिति:
- भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, जो इसकी वनस्पति तेल की कुल खपत का 40% हिस्सा है। भारत अपनी वार्षिक 8.3 मीट्रिक टन पाम ऑयल की ज़रूरत का आधा हिस्सा इंडोनेशिया से आयात करता है।
- वर्ष 2021 में भारत ने अपने घरेलू पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये खाद्य तेल-पाम ऑयल पर राष्ट्रीय मिशन का अनावरण किया।
- भारत की खाना पकाने की आवश्यकताओं के लिये पाम ऑयल से संबंधित लाभों को देखते हुए, भारतीय किसानों को देश में पाम ऑयल उत्पादन बढ़ाने हेतु पाम ऑयल के क्षेत्र विस्तार के प्रयासों को तेज़ करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- भारत को अपनी खरीद के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी विविधता लानी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (A) प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ है जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है?(2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 2 उत्तर: C |
हिंद प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण चीन सागर, व्यापक रणनीतिक साझेदारी, पेरिस शांति समझौता मेन्स के लिये:एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के आगमन का चीन की तुलना में प्रमुख एशियाई देशों और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति की वियतनाम यात्रा के दौरान वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में एक नए चरण का प्रतीक है।
- दोनों देशों ने वर्ष 2013 में बनी व्यापक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया।
अमेरिका और वियतनाम के संबंधों का इतिहास:
- संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम के बीच संबंधों का इतिहास जटिल है, इसे समझने के लिये सबसे अच्छा दृष्टांत वर्ष 1955 से 1975 तक चला वियतनाम युद्ध है। यह संघर्ष शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुआ जब सोवियत संघ तथा चीन द्वारा समर्थित उत्तरी वियतनाम ने दक्षिण वियतनाम के साथ पुनः एकजुट होने की मांग की, इस मांग का संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी सहयोगी देशों द्वारा समर्थन किया गया था।
- युद्ध के परिणामस्वरूप वियतनाम में जानमाल की भारी क्षति हुई और व्यापक विनाश हुआ तथा अमेरिकी समाज पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
- वर्ष 1975 में उत्तरी वियतनामी सेना के हाथों साइगॉन के पतन के साथ युद्ध समाप्त हो गया, जिससे कम्युनिस्ट नियंत्रण के तहत वियतनाम का विलय हुआ। यह अमेरिका-वियतनाम संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
- वर्ष 1995 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने वियतनाम के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्यीकृत किया और तब से दोनों देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग तथा आदान-प्रदान में काफी वृद्धि हुई है।
- वियतनाम युद्ध उनके इतिहास का एक प्रमुख हिस्सा बना हुआ है, साथ ही वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम के बीच व्यापार, सुरक्षा सहयोग तथा समान क्षेत्रीय चुनौतियों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिक सकारात्मक व रचनात्मक संबंध स्थापित हुए हैं।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र:
- परिचय:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक हाल में विकसित हुई अवधारणा है। लगभग एक दशक पहले की बात है जब विश्व ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बारे में जानना-समझना शुरू किया था, इसकी लोकप्रियता और महत्त्व की वृद्धि प्रमुख रही है।
- इस शब्द की लोकप्रियता के पीछे एक कारण एक सार्वभौमिक समझ है जो बताता है कि भारतीय और प्रशांत महासागर एक संबद्ध रणनीतिक मंच हैं।
- प्रत्येक राष्ट्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अवधारणा के विषय में अपने लाभ एवं चिंताओं के अनुरूप समझ रखता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कोई पूर्ण अवधारणा व भौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं।
- वर्तमान संदर्भ:
- हिंद प्रशांत क्षेत्र विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका।
- इस क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति से पूरा विश्व अवगत है, विश्व की 60% आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 2/3 हिस्सा इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनाता है।
- हिंद-प्रशांत पर भारत का परिप्रेक्ष्य:
- सुरक्षा संरचना के लिये दूसरों के साथ सहयोग करना: भारत के कई विशेष साझेदार, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया मूल रूप से चीन का मुकाबला करने के लिये दक्षिण-चीन सागर तथा पूर्वी-चीन सागर में भारत की उपस्थिति चाहते हैं।
- हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा तंत्र के लिये सहयोग करना चाहता है। समान समृद्धि और सुरक्षा के लिये देशों को वार्त्ता के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है।
- व्यापार और निवेश में समान हिस्सेदारी: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित, खुले, संतुलित और स्थिर व्यापरिक माहौल का समर्थन करता है, जो व्यापार तथा निवेश के मामले में सभी देशों को ऊपर उठाता है।
- यह वैसा ही है जैसा देश क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से अपेक्षा करता है।
- सुरक्षा संरचना के लिये दूसरों के साथ सहयोग करना: भारत के कई विशेष साझेदार, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया मूल रूप से चीन का मुकाबला करने के लिये दक्षिण-चीन सागर तथा पूर्वी-चीन सागर में भारत की उपस्थिति चाहते हैं।
- वियतनाम जैसे आसियान (ASEAN) देशों के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:
- एकीकृत आसियान: चीन के विपरीत भारत एक एकीकृत आसियान चाहता है, विभाजित नहीं। चीन कुछ आसियान सदस्यों को दूसरों के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास करता है, जिससे 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति को लागू किया जा सके।
- चीन के साथ सहयोगपूर्ण कार्य: आसियान हिंद-प्रशांत के अमेरिकी संस्करण का अनुपालन नहीं करता है, जो चीनी प्रभुत्व को नियंत्रित करना चाहता है। आसियान उन तरीकों की तलाश कर रहा है जिनके माध्यम से वह चीन के साथ मिलकर कार्य कर सके।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र अफ्रीका से अमेरिका तक फैला हुआ है:
- अमेरिका के लिये हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी क्षेत्र का प्रतीक है। इसमें विश्व के सभी राष्ट्र और इसमें हिस्सेदारी रखने वाले अन्य देश शामिल हैं।
- अपने भौगोलिक आयाम में अमेरिका अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों तक के क्षेत्र को मानता है।
- एकल प्रतिभागी के प्रभुत्व के विरुद्ध:
- भारत इस क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना चाहता है। पहले इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्त्व हुआ करता था। हालाँकि यह भय अभी भी मौज़ूद है कि इस क्षेत्र में अब चीन का प्रभुत्त्व हो जाएगा। भारत की तरह अमेरिका भी इस क्षेत्र में किसी भी प्रतिभागी का आधिपत्य नहीं चाहता।
- भारत इस क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना चाहता है। पहले इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्त्व हुआ करता था। हालाँकि यह भय अभी भी मौज़ूद है कि इस क्षेत्र में अब चीन का प्रभुत्त्व हो जाएगा। भारत की तरह अमेरिका भी इस क्षेत्र में किसी भी प्रतिभागी का आधिपत्य नहीं चाहता।
- भू-राजनीतिक महत्त्व:
- हिंद प्रशांत क्षेत्र भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया सहित विश्व के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले तथा आर्थिक रूप से गतिशील देशों का आवास स्थान है।
- आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का यह संकेंद्रण इसे वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाता है।
- हिंद प्रशांत क्षेत्र भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया सहित विश्व के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले तथा आर्थिक रूप से गतिशील देशों का आवास स्थान है।
- आर्थिक महत्त्व:
- यह क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है। इसमें प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग शामिल हैं, जैसे कि मलक्का जलडमरूमध्य, जिसके माध्यम से विश्व के व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्रवाहित होता है।
- विश्व के कई सबसे व्यस्त और सबसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाह हिंद प्रशांत में स्थित हैं, जो एशिया, यूरोप एवं अफ्रीका के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाते हैं।
- यह क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है। इसमें प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग शामिल हैं, जैसे कि मलक्का जलडमरूमध्य, जिसके माध्यम से विश्व के व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्रवाहित होता है।
- सुरक्षा और सामरिक चिंताएँ:
- हिंद प्रशांत प्रमुख शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और रूस के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र है। परमाणु-सशस्त्र राज्यों की उपस्थिति और दक्षिण चीन सागर विवाद जैसे अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद, इसकी रणनीतिक जटिलता को बढ़ाते हैं।
- चीन के उत्थान को संतुलित करना:
- वैश्विक आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में चीन का उदय हिंद प्रशांत के महत्त्व का एक केंद्रीय कारक है।
- क्षेत्र के कई देश समान विचारधारा वाले देशों के साथ गठबंधन और साझेदारी को मज़बूत करके चीन के प्रभाव को संतुलित करने तथा अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।
- समुद्री सुरक्षा:
- समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है।
- समुद्री डकैती, क्षेत्रीय विवाद और समुद्री मार्गों की सुरक्षा की आवश्यकता जैसे मुद्दे समुद्री सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
- क्षेत्रीय संगठन और मंच:
- आसियान (ASEAN), क्वाड (QUAD) तथा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय संगठन और मंच सक्रिय रूप से क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने एवं सुरक्षा बढ़ाने में लगे हुए हैं।
- कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचा विकास:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास, कनेक्टिविटी परियोजनाओं और आर्थिक एकीकरण पर ध्यान बढ़ रहा है।
- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अमेरिका की "फ्री एंड ओपन हिंद-प्रशांत" रणनीति जैसी पहल का उद्देश्य क्षेत्र के आर्थिक एवं राजनीतिक परिदृश्य को आयाम देना है।
- पर्यावरणीय और पारिस्थितिक महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र, प्रवाल भित्तियों और समुद्री जैव विविधता सहित विविध पारिस्थितिक तंत्रों का गढ़ है।
- जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दे, जैसे प्लास्टिक प्रदूषण और अत्यधिक मत्स्यन, वैश्विक चिंता का विषय बने हुए हैं, क्योंकि ये मुद्दे न केवल क्षेत्र के देशों को बल्कि पूरे ग्रह को प्रभावित करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की "पूर्व की ओर देखो नीति" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D मेन्स:प्रश्न. (2021) नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारियों को खत्म करने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2021) |
इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023
प्रिलिम्स के लिये:गरीबी, इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) मेन्स के लिये:इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 और इसकी सिफारिशें |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), भारत ने अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) के सहयोग से भारत में तेज़ी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी पर प्रकाश डालते हुए इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 जारी की।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य:
- जनसांख्यिकीय रुझान:
- 41% की दशकीय वृद्धि दर के साथ भारत की बुजुर्ग आबादी तेज़ी से बढ़ रही है।
- वर्ष 2050 तक भारत की 20% से अधिक आबादी बुजुर्ग होगी।
- वर्ष 2046 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी बच्चों (0 से 15 वर्ष) की आबादी से अधिक हो जाएगी।
- वर्ष 2022 और वर्ष 2050 के बीच 80+ वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों की जनसंख्या लगभग 279% बढ़ने की उम्मीद है।
- महिलाओं की उच्च जीवन प्रत्याशा:
- राज्यों और क्षेत्रों में भिन्नता के साथ, महिलाओं की आयु पुरुषों की तुलना में 60 और 80 वर्ष से अधिक है।
- उदाहरण के लिये हिमाचल प्रदेश और केरल में 60 वर्ष की महिलाओं की जीवन प्रत्याशा क्रमशः 23 और 22 वर्ष है, जो इन राज्यों में 60 वर्ष के पुरुषों की तुलना में चार वर्ष अधिक है, जबकि राष्ट्रीय औसत अंतर केवल 1.5 वर्ष का है। .
- राज्यों और क्षेत्रों में भिन्नता के साथ, महिलाओं की आयु पुरुषों की तुलना में 60 और 80 वर्ष से अधिक है।
- गरीबी और खुशहाली:
- भारत में 40% से अधिक बुजुर्ग सबसे कम संपत्ति वर्ग में शामिल हैं।
- बुजुर्गों में गरीबी एक चिंता का विषय है, जो उनके जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य देखभाल के उपयोग को प्रभावित कर रही है।
- बुजुर्ग व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा बिना किसी आय के जीवन यापन कर रहा है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य देखभाल प्रभावित हो रहा है।
- भारत में 40% से अधिक बुजुर्ग सबसे कम संपत्ति वर्ग में शामिल हैं।
- क्षेत्रीय विविधताएँ:
- बुजुर्ग आबादी और उनकी वृद्धि दर में महत्त्वपूर्ण अंतर-राज्यीय भिन्नताएँ हैं।
- दक्षिणी क्षेत्र के अधिकांश राज्यों और हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब जैसे चुनिंदा उत्तरी राज्यों में वर्ष 2021 में राष्ट्रीय औसत की तुलना में बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी अधिक है, यह अंतर 2036 तक बढ़ने की उम्मीद है।
- बुजुर्ग जनसंख्या का पूर्व अनुपात:
- वर्ष 1991 के बाद से बुजुर्गों के बीच लिंगानुपात लगातार बढ़ रहा है, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह अनुपात स्थिर है।
- वर्ष 2011 और वर्ष 2021 के बीच पूरे भारत में और सभी क्षेत्रों में, केंद्रशासित प्रदेशों एवं पश्चिमी भारत में इस अनुपात में वृद्धि हुई।
- पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में यद्यपि बुजुर्गों के लिंग अनुपात में वृद्धि हुई, यह दोनों वर्षों में 1,000 के पैमाने से नीचे रहा, जो यह दर्शाता है कि 60 से अधिक वर्षों में भी इन क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है।
- हालाँकि मध्य भारत, जहाँ लिंगानुपात वर्ष 2011 के 973 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,053 हो गया है, जिसका अर्थ है कि महिलाओं ने इस दशक में 60 वर्षों के बाद जीवित रहने में पुरुषों की बराबरी कर ली और उनसे बेहतर प्रदर्शन किया।
- वर्ष 1991 के बाद से बुजुर्गों के बीच लिंगानुपात लगातार बढ़ रहा है, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह अनुपात स्थिर है।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में कम जागरूकता:
- भारत में बुजुर्गों में उनके लिये बनाई गई विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में कम जागरूकता है।
- आधे से अधिक बुजुर्ग (55%) वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के बारे में; 44% बुजुर्ग विधवा पेंशन योजना (IGNWPS) के बारे में और 12% बुजुर्ग अन्नपूर्णा योजना के बारे में जानते हैं।
- चिंता और चुनौतियाँ:
- गरीबी स्वाभाविक रूप से बुढ़ापे में लिंग आधारित होती है जब वृद्ध महिलाओं के विधवा होने, अकेले रहने, कोई आय नहीं होने और अपनी संपत्ति कम होने तथा समर्थन के लिये पूरी तरह से परिवार पर निर्भर होने की संभावना अधिक होती है।
- भारत की बढ़ती आबादी के सामने प्रमुख चुनौतियाँ में वृद्ध महिलाओं की बढ़ती संख्या और ग्रामीणीकरण शामिल है।
रिपोर्ट की सिफारिशें:
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और भारत में जनगणना जैसे डेटा संग्रह अभ्यासों में प्रासंगिक प्रश्नों को शामिल करते हुए बुजुर्गों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विश्वसनीय डेटा की कमी को दूर करने की आवश्यकता है। इससे सूचित नीति निर्धारण में काफी मदद मिलेगी।
- वृद्ध व्यक्तियों के लिये मौजूदा योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सभी वृद्धाश्रमों को विनियामक दायरे के अंतर्गत लाया जाना चाहिये। वरिष्ठ स्व-सहायता समूहों के गठन एवं संचालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- बहु-पीढ़ी वाले घरों में रहने वाले बुजुर्ग लोगों के महत्त्व पर बल देते हुए ऐसी नीतियाँ बनाई जानी चाहिये जो इस प्रकार की जीवन व्यवस्था (बहु-पीढ़ी वाले परिवार) को प्रोत्साहित करे और उनके लिये पर्याप्त सुविधाएँ भी उपलब्ध करा सके।
- क्रेच या डे-केयर सुविधाओं जैसे अल्पकालिक देखभाल केंद्रों के निर्माण के सात साथ इस बात को भी प्रोत्साहित करना चाहिए कि वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन का यह समय अपने घर-परिवार के साथ के साथ व्यतीत कर सकें। रिपोर्ट दर्शाती है कि बुजुर्ग व्यक्तियों की अपने-अपने परिवारों के साथ रहने पर बेहतर देखभाल की जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA):
- परिचय:
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है तथा यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (UN Economic and Social Council- ECOSOC) इसके अधिदेश निर्धारित करती है।
- स्थापना:
- इसकी स्थापना वर्ष 1967 में एक ट्रस्ट फंड के रूप में की गई थी और वर्ष 1969 से इसका संचालन शुरू हुआ।
- वर्ष 1987 में इसे आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का नाम दिया गया लेकिन जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष के मूल संक्षिप्त नाम, 'UNFPA' को बरकरार रखा गया था।
- उद्देश्य:
- UNFPA प्रत्यक्ष रूप से सतत् विकास लक्ष्यों के अंतर्गत स्वास्थ्य (SDG3), शिक्षा (SDG4) और लैंगिक समानता (SDG5) संबंधी मुद्दों का निपटान करता है।
- वित्तीयन:
- UNFPA संयुक्त राष्ट्र बजट द्वारा समर्थित नहीं है, यह पूरी तरह से दानकर्ता देशों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, फाउंडेशन तथा व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।
आधार को मतदाता सूची से जोड़ना स्वैच्छिक: ECI
प्रिलिम्स के लिये:आधार, भारत निर्वाचन आयोग (ECI) मेन्स के लिये:मतदाता सूची को आधार से जोड़ने का प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका के जवाब में भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने स्पष्ट किया कि आधार संख्या को मतदाता सूची के साथ जोड़ना अनिवार्य नहीं है।
नोट:
- मतदाता सूची एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के तहत पात्र मतदाताओं की सूची है, जिसे ECI द्वारा तैयार और अद्यतन किया जाता है।
आधार को मतदाता सूची से जोड़ने को लेकर चिंताएँ:
- दलील:
- पृष्ठभूमि:
- एक याचिकाकर्ता ने याचिका दायर कर केंद्र और ECI को नामांकन के लिये आवेदन पत्र में संशोधन करने तथा मतदाता सूची के साथ आधार संख्या के प्रमाणीकरण के लिये भारत संघ द्वारा अधिसूचित संशोधित प्रावधानों/नियमों पर 1 अप्रैल, 2023 या उससे पहले की मतदाता सूची को अद्यतन करने का निर्देश दिये जाने का आग्रह किया।
- चिंताएँ:
- याचिकाकर्ता ने मतदाता गोपनीयता के बारे में चिंता व्यक्त की और आरोप लगाया कि केंद्र और निर्वाचन आयोग वैकल्पिक विकल्प प्रदान किये बिना मतदाताओं को अपना आधार नंबर जमा करने के लिये मजबूर कर रहे हैं।
- कानूनी रुख:
- इस प्रथा ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन किया और इससे मतदाताओं के व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग हो सकता है।
- पृष्ठभूमि:
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में इस बात को दर्ज किया कि मतदाताओं के पंजीकरण (संशोधन) नियम 2022 के नियम 26-B के अनुसार आधार संख्या जमा करना अनिवार्य नहीं है।
- "मौजूदा मतदाताओं द्वारा आधार संख्या प्रदान किये जाने के लिये विशेष प्रावधान" से संबंधित नियम 26B के अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम सूची में सूचीबद्ध है, वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 की उपधारा (5) के अनुसार फॉर्म 6बी में पंजीकरण अधिकारी को अपना आधार नंबर सूचित कर सकता है।
- फॉर्म 6B एक सूचना पत्र है जिसमें मतदाता सूची प्रमाणीकरण के उद्देश्य से किसी व्यक्ति का आधार नंबर शामिल होता है।
- "मौजूदा मतदाताओं द्वारा आधार संख्या प्रदान किये जाने के लिये विशेष प्रावधान" से संबंधित नियम 26B के अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम सूची में सूचीबद्ध है, वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 की उपधारा (5) के अनुसार फॉर्म 6बी में पंजीकरण अधिकारी को अपना आधार नंबर सूचित कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में इस बात को दर्ज किया कि मतदाताओं के पंजीकरण (संशोधन) नियम 2022 के नियम 26-B के अनुसार आधार संख्या जमा करना अनिवार्य नहीं है।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की प्रतिक्रिया:
- ECI की प्रतिक्रिया थी कि आधार नंबर जमा करना स्वैच्छिक है। चुनाव आयोग, आधार लिंकेज से संबंधित फॉर्मों में उचित स्पष्टीकरण परिवर्तन करने पर विचार कर रहा है, जो आधार जमा करने की स्वैच्छिक प्रकृति को स्पष्ट करने के उसके इरादे को दर्शाता है।
- चुनाव निकाय ने पीठ को सूचित किया कि "मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में लगभग 66.23 करोड़ आधार नंबर पहले ही अपलोड किये जा चुके हैं"।
भारत निर्वाचन आयोग (ECI):
- स्थापना एवं भूमिका:
- ECI की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के अनुसार की गई थी।
- यह एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं की देख-रेख एवं प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
- आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
- ECI भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों का प्रबंधन करता है। यह भारत के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिये चुनावों की देख-रेख भी करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों से कोई सरोकार नहीं है। इसके लिये भारत का संविधान एक अलग राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है।
- ECI की संरचना:
- मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो चुनाव आयुक्त (EC) भारत के चुनाव आयोग का गठन करते हैं।
- CEC और EC का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
- मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो चुनाव आयुक्त (EC) भारत के चुनाव आयोग का गठन करते हैं।
- राज्य स्तर पर चुनाव आयोग की मदद मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा की जाती है जो IAS रैंक का अधिकारी होता है।
- मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:
- राष्ट्रपति CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
- उनका छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) का एक निश्चित कार्यकाल होता है।
- आयुक्तों का निष्कासन:
- आयुक्त स्वेच्छा से इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया की तरह ही पद से हटाया जा सकता है।
- सीमाएँ:
- संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की गई है।
- संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों के कार्यकाल को निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त हो रहे चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |